Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

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Page 253
________________ जैन श्रमण के षड्- आवश्यक : एक तुलनात्मक अध्ययन इसमें सर्वप्रथम निक्षेप दृष्टि से प्रत्याख्यान के भेद - नाम, स्थापना, द्रव्य, अदित्सा ( न देने की इच्छा), प्रतिषेध और भाव — ये छह भेद किये हैं । इनमें भाव-प्रत्याख्यान के श्रुत और नोश्रुत – ये दो भेद बताये हैं । नोश्रुतभाव प्रत्याख्यान के मूलगुण और उत्तरगुण - ये दो भेद हैं तथा इन दोनों में प्रत्येक के सर्व और देश- ये दो-दो भेद करके सर्व उत्तरगुण के अनागत, अतिक्रान्त आदि दस भेद किये गये हैं । ३ १८८ मूलाचारकार ने प्रत्याख्यान के सर्वप्रथम निक्षेपदृष्टि से नाम, स्थापना आदि छह भेद किये हैं, फिर सीधे ही प्रत्याख्यान के अनागत आदि दस भेद कर दिये हैं। मूलाचार की अपेक्षा अर्धमागधी आवश्यक निर्युक्ति में प्रत्याख्यान के भेदप्रभेदों का कथन अधिक स्पष्ट है । मूलाचार के निखंडित की जगह आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका में नियंत्रित, अध्वानगत की जगह सांकेतित और सहेतुक. की जगह अध्वा प्रत्याख्यान का उल्लेख मिलता है । यहाँ मूलाचार के आधार पर प्रत्याख्यान के भेद-प्रभेदों का चार्ट प्रस्तुत है - प्रत्याख्यान के भेदों का चार्ट प्रत्याख्यान नाम स्थापना १. २. ३. ४. द्रव्य अदित्सा श्रुत मूलगुण सर्व Jain Education International देश आवश्यक निर्युक्ति दीपिका १५५१ । आवश्यक निर्युक्ति दीपिका १५५४-१५५५ । प्रतिषेध सर्व वही १५५८ - १५५९ । मूलाचार ७/१४०-१४१, आवश्यकनिर्युक्ति दीपिका १५५८ - १५५९ । For Personal & Private Use Only भाव १. अनागत २. अतिकांत ३. कोटिसहित ४. नि:खंडित ५. साकार T T ६. अनाकार ७. परिणामगत ८. अपरिशेष ९. अध्वानगत १०. सहेतुक नोश्रुत उत्तरगुण देश www.jainelibrary.org

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