Book Title: Aavashyak Niryukti
Author(s): Fulchand Jain, Anekant Jain
Publisher: Jin Foundation

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Page 264
________________ आवश्यकनियुक्तिः मोक्षमार्ग रूप रत्नत्रय का उपदेशक होने के कारण इस कायोत्सर्ग से चार घातियाकर्मों (ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय और अन्तराय कर्म) के अतिचार विनष्ट हो जाते हैं। उत्तराध्ययन में कायोत्सर्ग को ‘सर्वं दुःख विमोचक' कहा है । - चेष्टा-कायोत्सर्ग और अभिभव-कायोत्सर्ग-ये कायोत्सर्ग के दो भेद १. चेष्टा कायोत्सर्ग के द्वारा श्रमण शौच, भिक्षा आदि के निमित्त जाने और वापस आने तथा निद्रात्याग आदि प्रवृत्तियों के पश्चात् अनजाने में हुए अतिचारों को दूर कर विशुद्धि को प्राप्त करता है। २. अभिभव कायोत्सर्ग के द्वारा जहाँ विशेष आत्मविशुद्धि को प्राप्त किया जा सकता है वहाँ श्रमण-जीवन में निरन्तर होने वाले कष्टों, उपसर्गों, आकस्मिक या सहजप्राप्त विघ्न बाधाओं को समताभाव पूर्वक सहन करने की अपूर्व क्षमता प्राप्त होती है । . जैन साहित्य विशेषकर प्रथमानुयोग के अन्तर्गत पुराण और कथा साहित्य में ऐसे अनेक उदाहरण मिलते हैं जब किसी आचार्य या श्रमण को इस प्रकार की प्रतिकूलताओं और उपसर्गों का सामना करना पड़ा, उस समय उन्होंने कायोत्सर्ग धारणकर ध्यान में खड़े हो गये, तब उससे जो तेज प्रकट हुआ, उसके कारण वे बाधायें और उपसर्ग अपने-आप दूर हो गये । ... जैन परम्परा में प्रचलित रक्षाबन्धन कथा में अकम्पनाचार्य मुनि के उदाहरण से इस कथन की विशेष पुष्टि भी होती है, जबकि हस्तिनापुर में आहार से लौटते हुए अकम्पनाचार्य मुनि पर बलि आदि चार मन्त्रियों ने तलवार से उनके ऊपर हमला करने के लिए घेर लिया । तब वे मुनि कायोत्सर्ग में लीन हो गये और जैसे ही उन मन्त्रियों ने वार करने के लिए तलवारें ऊपर उठायी वैसे ही उन सभी के हाथ कीलित हो गये । इसी प्रकार अन्यान्य उदाहरण भी प्राप्त होते हैं। इस प्रकार कायोत्सर्ग से अनेक लाभ हैं, जिन्हें इस आवश्यक के अन्तर्गत यहाँ विवेचित विभिन्न विषयों में देखा जा सकता है । २. उत्तराध्ययन २६/४७ । १. ' मूलाचार ७/१५५ । ३. आवश्यक नियुक्ति १४५२ । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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