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आवश्यकनियुक्तिः
आवश्यकनियुक्तिरेवंप्रकारेण कथिता समासतः संक्षेपतो विधिना, तां य उपयुंक्ते समाचरति नित्यं सर्वकालं स सिद्धिं याति विशुद्धात्मा सर्वकर्मनिर्मुक्त इति ॥१८९॥
॥ इति श्रीवट्टकेराचार्यवर्यप्रणीतमूलाचारस्य वसुनंद्याचार्य
विरचितायाम् आचारवृत्तावावश्यकनियुक्तिः ॥ .
आचारवृत्ति—इस प्रकार संक्षेप में मैंने (वट्टकेर ने) विधिपूर्वक आवश्यक नियुक्ति कही है. जो मुनि सर्वकाल इस रूप आचरण करते हैं, वे विशुद्ध-आत्मा सर्वकर्म से मुक्त होकर सिद्धपद को प्राप्त कर लेते हैं ॥१८९॥ ॥ इस प्रकार आचार्यश्रेष्ठ श्री वट्टकेर प्रणीत “मूलाचार" (शौरसेनी प्राकृत .
भाषा के इस आगम शास्त्र की आचार्यश्री वसुनन्दि द्वारा रचित “आचारवृत्ति” नामक संस्कृत टीका सहित “आवश्यक नियुक्ति"
नामक यह आगम शास्त्र सम्पूर्ण हुआ ।
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