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आवश्यक नियुक्तिः
सावद्यकालाचरणद्वारागतदोषपरिहाराय कायोत्सर्गः कायोत्सर्गपरिणतसहितकालो वा कालकायोत्सर्गः, मिथ्यात्वाद्यतीचारशोधनाय भावकायोत्सर्गः कायोत्सर्गव्यावर्णनीयप्राभृतज्ञ उपयुक्तसंज्ञानं जीवप्रदेशो वा भावकायोत्सर्गः, एवं नामस्थापनाद्रव्यक्षेत्रकालभावविषय एष कायोत्सर्गनिक्षेपः षड्विधो ज्ञातव्य इति ॥ १४७॥
कायोत्सर्गकारणमन्तरेण कायोत्सर्गः प्रतिपादयितुं न शक्यत इति तत्स्वरूपं प्रतिपादयन्नाह—
काउस्सग्गो काउस्सग्गी काउस्सग्गस्स कारणं चेव । एदेसिं पत्तेयं परूवणा होदि तिहंपि । । १४८ ।।
कायोत्सर्गः कायोत्सर्गी कायोत्सर्गस्य कारणं चैव ।
एतेषां प्रत्येकं प्ररूपणा भवति त्रयाणापि ॥१४८॥
कायस्य शरीरस्योत्सर्गाः परित्यागः कायोत्सर्गः स्थितस्यासीनस्य सर्वांगचलनरहितस्य शुभध्यानस्य वृत्ति कायोत्सर्गोऽस्यास्तीति कायोत्सर्गी असंयतसम्यग्दृष्ट्यादिभव्यः कायोत्सर्गस्य कारणं हेतुरेव मे तेषां त्रयाणामपि प्रत्येकं प्ररूपणा भवति ज्ञातव्येति ॥ १४८ ॥
सावद्य काल के आचरण द्वारा उत्पन्न हुए दोषों का परिहार करने के लिए कायोत्सर्ग काल-कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग से परिणत हुए मुनि से सहित काल काल- कायोत्सर्ग है । मिथ्यात्व आदि अतीचारों के शोधन करने के लिए किया गया कायोत्सर्ग भाव कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग के वर्णन करने वाले प्राभृत का ज्ञाता तथा उसमें उपयोग सहित और उसके ज्ञान सहित जीवों के प्रदेश भी भाव कायोत्सर्ग है । इस तरह नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव विषयक यह कायोत्सर्ग का निक्षेप छह प्रकार जानना चाहिए || १४७॥
कायोत्सर्ग के कारण बिना बताए कायोत्सर्ग का प्रतिपादन करना शक्य नहीं है इसलिए उनके स्वरूप का प्रतिपादन करते हैं
गाथार्थ - कायोत्सर्ग, कायोत्सर्गी और कायोत्सर्ग के कारण - इन तीनों की भी पृथक्-पृथक् प्ररूपणा करते हैं ॥१४८॥
आचारवृत्ति - काय - शरीर का उत्सर्ग-त्याग कायोत्सर्ग है अर्थात् खड़े होकर या बैठकर सर्वांग के हलन चलन रहित शुभ ध्यान की जो वृत्ति है वह कायोत्सर्ग है । कायोत्सर्ग जिसके हैं वह कायोत्सर्गी है अर्थात् असंयत सम्यग्दृष्टि संयतासंयत मुनि आदि भव्य जीव कायोत्सर्ग करने वाले हैं ।
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