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चातुर्मासिके प्रतिक्रमणे चत्वारि शतान्युच्छ्वासानां चिन्तनीयानि । सांवत्सरिके च प्रतिक्रमणे पंचशतान्युच्छ्वासानां चिन्तनीयानि स्थातव्यानि नियमान्ते कायोत्सर्गप्रमाणमेतच्छेषेषु पूर्ववत् द्रष्टव्यः । एवं कायोत्सर्गोच्छ्वासाः पंचसु स्थानेषु
ज्ञातव्यः ॥१५७॥
आवश्यक नियुक्तिः
शेषेषु स्थानेषूच्छ्वासप्रमाणमाह
'पाणिवह मुसावाए अदत्त मेहुण परिग्गहे चेय । अट्ठसदं उस्सासा काओसग्गाि कादव्वा ।। १५८ ।। प्राणिवधे मृषावादे अदत्ते मैथुने परिग्रहे चैव ।
अष्टशतं उच्छ्वासाः कायोत्सर्गे कर्तव्या: ॥ १५८॥
२प्राणिवधातीचारे मृषावादातीचारे अदत्तग्रहणातीचारे मैथुमातिचारे परिग्रहातीचारे च कायोत्सर्गे चोच्छ्वासानामष्ठोत्तरशतं कर्त्तव्यं नियमान्ते सर्वत्र द्रष्टव्यं शेषेषु पूर्ववदिति ॥ १५८॥
आचारवृत्ति – चातुर्मासिक प्रतिक्रमण में चार सौ उच्छ्वासों का चितवन करना और सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में पाँच सौ उच्छ्वासों का चिन्तवन करना । ये उच्छ्वासों का प्रमाण नियमान्त-वीर भक्ति के कायोत्सर्ग में होता है । शेष भक्तियों में पूर्ववत् सत्ताईस उच्छ्वास करना चाहिए । इस तरह कायोत्सर्ग के उच्छ्वासों का वर्णन पाँच स्थानों में किया गया है ॥१५७॥
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३.
शेष स्थानों में उच्छ्वास का प्रमाण कहते हैं
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गाथार्थ — प्राणिवध-हिंसा, असत्य, चोरी, मैथुन और परिग्रह — इन दोषोंअतिचारों (पाँच पापों) के हो जाने पर कायोत्सर्ग में एक सौ आठ उच्छ्वास करना चाहिए अर्थात् णमोकार मंत्र की एक माला फेरकर जप करना चाहिए || १५८।।
आचारवृत्ति - प्राणिवध के अतीचार में, असत्य भाषण के अतीचार में, अदत्तग्रहण के अतीचार में, मैथुन के अतिचार में, और परिग्रह के अतीचार में, कायोत्सर्ग करने में एक सौ आठ उच्छ्वास करना चाहिए । नियमान्त में सर्वत्र कायोत्सर्ग जानना चाहिए । यहाँ भी वीर भक्ति के कायोत्सर्ग के उच्छ्वासों का यह प्रमाण है, शेष भक्तियों में सत्ताईस उच्छ्वास करना चाहिए || १५८।।
क पाण० ।
०न्तेषु ।
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२.
क प्राण० ।
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