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आवश्यक नियुक्तिः
तथा शवरबधूरिव जंघाभ्यां जघनं निपीड्य कायोत्सर्गेण तिष्ठति तस्य शवरबधूदोष:, तथा निगडपीडित इव पादयोर्महदन्तरालं कृत्वा यस्तिष्ठति कायोत्सर्गेण तस्य निगडदोष:, तथा लम्बमानो नाभेरूर्ध्वभागो भवति वा कायोत्सर्गस्थ - स्योन्नमनमधोनमनं वा च भवति तस्य लम्बोत्तरदोषो भवति । तथा यस्य कायोत्सर्गस्थस्य स्तनयोर्दृष्टिरात्मीयौ स्तनौ यः पश्यति तस्य स्तनदृष्टिनामा दोषः । तथा यः कायोत्सर्गस्थो वायस इव काक इव पार्श्वं पश्यति तस्य वायसदोषः । तथा यः खलीनपीडितोऽश्व इव दन्तकटकटं मस्तकं कृत्वा कायोत्सर्गं करोति तस्य खलीनदोषः । तथा यो युगनिपीडितवलीवर्दवत् ग्रीवां प्रसार्य तिष्ठति कायोत्सर्गेण तस्य युगदोषः । तथा यः कपित्थफलवन्मुष्टिं कृत्वा कायोत्सर्गेण तिष्ठति तस्य कपित्थदोषः ॥ १६७॥
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६. शबरबधू — भिल्लनी के समान दोनों जंघाओं से जंघाओं को पीड़ित करके जो कायोत्सर्ग से खड़े होते हैं उनके यह 'शबरबधू' नाम का दोष है ।
७. निगड – बेड़ी से पीड़ित हुए के समान पैरों में बहुत सा अन्तराल करके जो कायोत्सर्ग में खड़े होते हैं, उनके यह 'निगड' दोष होता है ।
८. लम्बोत्तर - नाभि के ऊपर का भाग लम्बा करके कायोत्सर्ग करना अथवा कायोत्सर्ग में स्थित होकर शरीर को अधिक ऊँचा करना या अधिक झुकाना सो 'लम्बोत्तर' दोष है ।
९. स्तनदृष्टि – कायोत्सर्ग में स्थित होकर जिसकी दृष्टि अपने स्तनभाग पर रहती है उसके 'स्तनदृष्टि' नाम का दोष होता है ।
१०. वायस - कायोत्सर्ग में स्थित होकर कौवे के समान जो पार्श्वभाग को देखते हैं उनके 'वायस' दोष होता है ।
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११. खलीन - लगाम से पीड़ित हुए घोड़े के समान दाँत कटकट हुए मस्तक को करके जो कायोत्सर्ग करते हैं उनको 'खलीन' दोष होता है ।
१२. युग — जूआ से पीड़ित हुए बैल की तरह गर्दन पसार कर जो कायोत्सर्ग से स्थित होते हैं उनके यह 'युग' नाम का दोष होता है ।
१३. कपित्थ – जो कपित्थ (कैथे) के समान मुट्ठी को करके कायोत्सर्ग से स्थित होते हैं उनके यह कपित्थ दोष होता है ॥ १६७॥ आगे और दोष कहते हैं—
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