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आवश्यकनियुक्तिः
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प्रत्याख्याननियुक्तिरेषा कथिता मया समासेन कायोत्सर्गनियुक्तिमित ऊर्ध्वं प्रवक्ष्य इति । स्पष्टोर्थः ॥१४६||
णामट्ठवणा दव्वे खेत्ते काले य होदि भावे य । एसो काउस्सग्गे णिक्खेवो छव्विहो णेओ ।।१४७।।
नाम स्थापना द्रव्यं क्षेत्रं कालः च भवति भावश्च ।
एषः कायोत्सर्गे निक्षेपः षड्विधो ज्ञेयः ॥१४७॥ खरपरुषादिसावधनामकरणद्वारेणागतातीचारशोधनाय कायोत्सर्गो नाममात्रः, कायोत्सर्गों वा नामकायोत्सर्गः, पापस्थापनाद्वारेणागतातीचारशोधननिमित्तकायोत्सर्गपरिणतप्रतिबिम्बतारे । स्थापनाकायोत्सर्गः सावद्यद्रव्यसेवाद्वारेणागतातीचारनिर्हरणाय कायोत्सर्गः, कायोत्सर्गव्यावर्णनीयप्राभृतज्ञोऽनुपयुक्तस्तच्छरीरं वा द्रव्यकायोत्सर्गः, सावंद्यक्षेत्रसेवनादागतदोषध्वंसनाय कायोत्सर्गः, कायोत्सर्गपरिणतसेवितक्षेत्रं वा क्षेत्रकायोत्सर्गः ।
आचारवृत्ति-इस प्रकार मेरे द्वारा संक्षेप में यह प्रत्याख्यान नियुक्ति कही गयी । अब आगे कायोत्सर्ग नियुक्ति का कथन करूँगा । यह स्पष्ट अर्थ है ॥१४६।।
गाथार्थ-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव-ये छह निक्षेप हैं । कायोत्सर्ग में यह छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए ॥१४७।। ____ आचारवृत्ति-तीक्ष्ण, कठोर आदि पापयुक्त (सावद्य) नामकरण के द्वारा उत्पन्न हुए अतीचारों का शोधन करने के लिए जो कायोत्सर्ग किया जाता है वह नाम कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग यह नामकरण करना नाम कायोत्सर्ग है । पापरूप स्थापना-अशुभ या सरागमूर्ति की स्थापना द्वारा हुए अतीचारों के शोधननिमित्त कायोत्सर्ग करना स्थापना कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग से परिणत मुनि की प्रतिमा आदि स्थापना कायोत्सर्ग है । सदोष (सावद्य) द्रव्य के सेवन से उत्पन्न हुए अतीचारों को दूर करने के लिए जो कायोत्सर्ग होता है वह द्रव्य कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग के वर्णन करने वाले प्रामृत का ज्ञाता किन्तु उसके उपयोग से रहित जीव और उसका शरीर ये द्रव्य कायोत्सर्ग हैं । सदोष क्षेत्र के सेवन से होने वाले अतीचारों को नष्ट करने के लिए कायोत्सर्ग क्षेत्र कायोत्सर्ग है अथवा कायोत्सर्ग से परिणत हुए मुनि से सेवित स्थान क्षेत्र कायोत्सर्ग है।
१. . क इति । नामादिभिः कायोत्सर्ग निरूपयितुमाह-१ । २. क ०णातीचार ।
३. क. बिबंस्था०, ग. बिम्बस्थापना ।
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