________________
आवश्यकनियुक्तिः
११७
चतुर्विधाहारस्वरूपमाहअसणं खहप्पसमणं पाणाणमणग्गहं तहा पाणं । खादंति खादियं पुण सादंति य सादियं भणियं ।।१४३।।
अशनं क्षुधाप्रशमनं प्राणानामनुग्रहं तथा पानं ।
खाद्यते खाद्यं पुन: स्वाद्यते च स्वाद्यं भणितं ॥१४३॥ अशनं क्षुदुपशमनं बुभुक्षोपरतिः प्राणानां दशप्रकाराणामनुग्रहो येन तत्तथा पानं खाद्यत इति खाद्यं रसविशुद्ध लड्डकादि पुनरास्वाद्यत इति आस्वाद्यमेलाकक्कोलादिकमिति भणितमेवंविधस्य चतुर्विधाहारस्य प्रत्याख्यानमुत्तमार्थप्रत्याख्यानमिति ॥१४३॥
चतुर्विधस्याहारस्य भेदं प्रतिपाद्याभेदार्थमाहसव्वोवि य आहारो असणं सव्वोवि वुच्चदे पाणं । सव्वोवि खादियं पुण सव्वोवि य सादियं भणियं ।।१४४।।
सर्वोपि च आहारः अशनं सर्वोपि उच्यते पानं ।
सर्वोपि खाद्यं पुनः सर्वोपि च स्वाद्यं भणितं ॥१४४॥ सर्वोऽप्याहारोऽशनं तथा सर्वोऽप्याहार: पानमित्युच्यते तथा सर्वोऽप्याहार:
चार प्रकार के आहार का स्वरूप बताते हैं- गाथार्थ-क्षुधा को शांत करने वाला अशन, प्राणों पर अनुग्रह करने वाला पान है । जो खाया जाय वह खाद्य एवं जिसका स्वाद लिया जाय वह स्वाद्य कहलाता है ॥१४३॥ ... आचारवत्ति-जिससे भूख की उपरति-शान्ति हो जाती है वह अशन है । जिसके द्वारा दश प्रकार के प्राणों का उपकार होता है वह पान है । जो खाये जाते हैं वे खाद्य हैं । रस सहित लड्ड आदि पदार्थ खाद्य हैं । जिनका आस्वाद लिया जाता है वे इलायची, कक्कोल आदि स्वाद्य हैं । इन चारों प्रकार
के आहार का त्याग करना उत्तमार्थ प्रत्याख्यान कहलाता है ॥१४३।। .. चार प्रकार के आहारों का भेद बताकर अब उनका अभेद दिखाते हैं
गाथार्थ-सभी आहार अशन कहलाता है सभी आहार पान कहलाता है । सभी आहार खाद्य और सभी ही आहार स्वाद्य कहा जाता है. ॥१४४॥
आचारवृत्ति-सभी आहार अशन हैं, सभी आहार पान हैं, सभी आहार खाद्य हैं एवं सभी आहार स्वाध हैं । इस तरह सभी अशन हैं, सभी आहार पान हैं, सभी आहार खाद्य हैं एवं सभी आहार स्वाद्य हैं । इस तरह चारों प्रकार का
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org