________________
आवश्यकंनिर्युक्तिः
आकाशं क्षेत्रं सर्वपदार्थानामाधारत्वात् । शेषा जीवपुद्गलधर्माधर्मकाला अक्षेत्राणि अवगाहनलक्षणाभावात् । जीवपुद्गलाः क्रियावन्तो गतेर्दर्शनात् शेषा धर्माधर्माकाशकाला अक्रियावन्तो गतिक्रियाया अभावदर्शनात् । नित्या धर्माधर्माकाशपरमार्थकाला व्यवहारनयापेक्षया व्यञ्जनपर्यायाभावमपेक्ष्य विनाशाभावात् ।
३७
I
जीवपुद्गला अनित्या व्यञ्जनपर्यादर्शनात् । कारणानि पुद्गलधर्माधर्मकालाकाशानि जीवोपकारकत्वेन वृत्तत्वात् । जीवोऽकारणं स्वतन्त्रत्वात् । जीवः कर्ता शुभाशुभभोक्तृत्वात् । शेषा धर्माधर्मपुद्गलाकाशकाला अकर्तारः शुभाशुभभोक्तृत्वाभावात् आकाशं सर्वगतं सर्वत्रोपलभ्यमानत्वात् । शेषाण्यसर्वगतानि जीवपुद्गलधर्माधर्मकालद्रव्याणि सर्वत्रोपलम्भाभावात् ।
आकाश-द्रव्य क्षेत्र है क्योंकि वह सर्व पदार्थों के लिए आधारभूत है । शेष जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल - ये अक्षेत्र हैं क्योंकि इनमें अवगाहन लक्षण का अभाव है । जीव और पुद्गल क्रियावान् हैं क्योंकि इनकी गति देखी जाती है । शेष धर्म, अधर्म और आकाश और काल अक्रियावान् हैं क्योंकि इनमें गति क्रिया का अभाव है । धर्म, अधर्म, आकाश और परमार्थकाल नित्य हैं, क्योंकि व्यवहार नय की अपेक्षा से व्यंजन पर्याय के अभाव की अपेक्षा से, उनका विनाश नहीं होता है । अर्थात् इन द्रव्यों में व्यंजन पर्याय नहीं होने से उनका विनाश नहीं होता है ।
Jain Education International
जीव और पुद्गल अनित्य हैं क्योंकि इनमें व्यंजन पर्याय देखी जाती है । अर्थात् जीव, पुद्गल भी द्रव्यार्थिक नय से नित्य हैं किन्तु व्यंजन पर्याय की अपेक्षा से अनित्य हैं । पुद्गल, धर्म, अधर्म, काल और आकाश कारण हैं क्योंकि जीव के प्रति उपकार रूप से ये वर्तन करते हैं । किन्तु जीव अकारण है क्योंकि वह स्वतन्त्र है । जीव कर्ता है, क्योंकि वह शुभ और अशुभ का भोक्ता है । शेष धर्म, अधर्म, पुद्गल, आकाश और काल अकर्ता हैं, क्योंकि उनमें शुभ, अशुभ के भोक्तृत्व का अभाव है । आकाश सर्वगत है क्योंकि वह सर्वत्र उपलब्ध हो रहा है । किन्तु शेष बचे जीव, पुद्गल, धर्म, अधर्म और काल द्रव्य असर्वगत हैं, क्योंकि इनके सर्वत्र (लोकालोक में ) उपलब्ध होने का अभाव
I
है ।
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org