________________
४२
आवश्यकनियुक्तिः
पृथ्वीप्रदेशपूर्वविदेहापरविदेहभरतैरावतद्वीपसमुद्रत्रिषष्टिस्वर्गभूमिभेदादयः । भवानामनुभव: आयुषो जघन्यमध्यमोत्कृष्टविकल्पः ।
भावो 'नाम परिणामोऽसंख्यातलोकप्रदेश-मात्रः शुभाशुभरूपः कर्मादाने परित्यागे वारे समर्थः । द्रव्यस्य गुणाः पर्यायलोकः, क्षेत्रस्य पर्यायाः पर्यायलोक: भवस्यानुभवा: पर्यायलोकः भावो नाम परिणाम: पर्यायलोकः । एवं चतुर्विधं पर्यायलोकं समासेन जनीहीति ॥५०॥
उद्योतस्य स्वरूपमाहउज्जोवो खलु दुविहो णादव्वो दव्वभावसंजुत्तो । दव्वुज्जोवो अग्गी चंदो सूरो मणी चेव ।।५१।।
उद्योतः खलु द्विविधः ज्ञातव्य: द्रव्यभावसंयुक्तः । .. द्रव्योद्योत: अग्नि: चंद्रः सूर्यो मणिश्चैव ॥५१॥
पृथ्वी के प्रदेश, पूर्वविदेह, अपरविदेह, भरतक्षेत्र, ऐरावत क्षेत्र, द्वीप, समुद्र, त्रेसठ स्वर्गपटल इत्यादि भेद क्षेत्र की पर्यायें हैं । भवानुभाव-आयु के जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट भेद भवानुभाव हैं।
भावपरिणाम-भाव अर्थात् परिणाम-ये असंख्यात लोक प्रदेश प्रमाण हैं, शुभ-अशुभरूप हैं । ये कर्मों को ग्रहण करने में अथवा कर्मों का परित्याग करने में समर्थ हैं । अर्थात् आत्मा के शुभ-अशुभ परिणामों से कर्म आते हैं तथा उदय में आकर फल देकर नष्ट भी हो जाते हैं ।
द्रव्य के गुण पर्यायलोक हैं, क्षेत्र की पर्यायें पर्यायलोक हैं, भव का अनुभव पर्यायलोक है और भावरूप परिणाम पर्यायलोक हैं । इस प्रकार संक्षेप से पर्यायलोक चार प्रकार का है ।
इस तरह नव प्रकार के निक्षेप से नव प्रकार के लोक का स्वरूप कहा गया है ॥५०॥
उद्योत का स्वरूप
गाथार्थ-द्रव्य और भाव से युक्त उद्योत निश्चय से दो प्रकार का जानना चाहिए । अग्नि, चन्द्र, सूर्य और मणि-ये द्रव्य उद्योत हैं ॥५१॥
क नाम अनुभवपर्याय: प० । जोऊ द० ।
२.
१. ३.
क वा असमर्थः ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org