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आवश्यकनियुक्तिः
आलोचनाया: करणे आलोचनाकालेऽथवा करणे षडावश्यककाले परिप्रश्ने प्रश्नकाले पूजने पूजाकाले च स्वाध्याये स्वाध्यायकालेऽपराधे क्रोधाद्यपराधकाले च गुरूणामाचार्योपाध्यायादीनां वंदनैतेषु स्थानेषु कर्तव्येति ॥९८॥
"कस्मिन्स्थाने” यदेतत्सूत्रं स्थापितं तद्व्याख्यातमिदानी कतिवारं कृतिकर्म कर्तव्यमिति यत्सूत्र स्थापितं तद्व्याख्यानायाह
चत्तारि पडिक्कमणे किदियम्मा तिण्णि होंति सज्झाए । पुव्वण्हे अवरण्हे किदियम्मा चोद्दसा होति ।।९९।।
चत्वारि प्रतिक्रमणे कृतिकर्माणि त्रीणि स्वाध्याये ।
पूर्वाणे अपराणे कृतिकर्माणि चतुर्दश भवन्ति ॥१९॥ सामायिकस्तवपूर्वककायोत्सर्गश्चतुर्विंशतितीर्थंकरस्तवपर्यन्त: 'कृतिकर्मेत्युच्यते । प्रतिक्रमणकाले चत्वारि क्रियाकर्माणि स्वाध्यायकाले च त्रीणि क्रिया'कर्माणि भवत्येवं पूर्वाणे क्रियाकर्माणि सप्त तथाऽपराणे च क्रियाकर्माणि सप्तवं पूर्वाणेऽपराणे च क्रियाकर्माणि चतुर्दश भवंतीति ।
- आचारवृत्ति-आलोचना के समय, करण अर्थात् छह आवश्यक क्रियाओं के समय, प्रश्न करने के समय, पूजन के समय, स्वाध्याय के समय और अपने से क्रोधादि रूप किसी अपराध के हो जाने पर गुरु-आचार्य, उपाध्याय आदिकों की वन्दना करें । अर्थात् इन-इन प्रकरणों में गुरुओं की वन्दना करनी होती है । 'किस स्थान में वन्दना करना' ? जो यह प्रश्न था उसका यह उत्तर है ॥९८॥ .. - कितनी बार कृतिकर्म करना चाहिए' ? इस प्रश्न का व्याख्यान करते हैं
गाथार्थ-प्रतिक्रमण में चार कृतिकर्म, स्वाध्याय में तीन-ये पूर्वाह्न और अपराह्न से सम्बन्धित ऐसे चौदह कृतिकर्म होते हैं ॥१९॥
___ आचारवृत्ति—सामायिक-स्तवपूर्वक कायोत्सर्ग करके चतुर्विंशति तीर्थंकर स्तवपर्यंत जो क्रिया है उसे 'कृतिकर्म' कहते हैं । प्रतिक्रमण में चार कृतिकर्म और स्वाध्याय में तीन कृतिकर्म इस तरह पूर्वाह्न सम्बन्धी क्रियाकर्म सात होते हैं तथा अपराह्न सम्बन्धी क्रियाकर्म भी सात होते हैं ऐसे चौदह क्रियाकर्म हैं ।
१.
क क्रियाकमें।
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