________________
- ११२
आवश्यकनियुक्तिः
तथाअद्धाणगदं णवमं दसमं तु सहेदुगं वियाणाहि । पच्चक्खाणवियप्पा णिरुत्तिजुत्ता जिणमदहि ।।१३७।।
अध्वानगतं नवमं दशमं तु सहेतुकं विजानीहि ।
प्रत्याख्यानविकल्पा निरुक्तियुक्ता जिनमते ॥१३७॥ . . . अद्धाणगदं अध्वानं गतमध्वगतं मार्गविषयाटवीनद्यादिनिष्क्रमणद्वारेणोपवासादिकरणं । अध्वगतं नाम प्रत्याख्यानं नवमं, सहहेतुना वर्तत इति सहेतुकमुपसर्गादिनिमित्तापेक्षमुपवासादिकरणं सहेतुकं नाम प्रत्याख्यानं दशमं विजानीहि,
३. शक्ति आदि की अपेक्षा से संकल्प सहित उपवास करना कोटिसहित प्रत्याख्यान है । जैसे कल प्रात: स्वाध्याय वेला के अनन्तर यदि शक्ति रहेगी तो उपवास आदि करूँगा, यदि शक्ति नहीं रही तो नहीं करूँगा, इस प्रकार से जो संकल्प करके प्रत्याख्यान होता है वह कोटिसहित है। .
४. पाक्षिक . आदि में अवश्य किए जाने वाले उपवास का करना निखण्डित प्रत्याख्यान है।
५. भेद सहित उपवास करने से साकार प्रत्याख्यान कहते हैं । जैसे सर्वतोभद्र, कनकावली आदि व्रतों की विधि से उपवास करना, रोहिणी आदि नक्षत्रों के भेद से उपवास करना ।
. ६. स्वेच्छा से उपवास करना, जैसे नक्षत्र या तिथि आदि की अपेक्षा के बिना ही स्वरुचि से कभी भी कर लेना अनाकार प्रत्याख्यान हैं ।
७. प्रमाण सहित उपवास को परिमाणगत कहते हैं । जैसे बेला, तेला, चार उपवास, पाँच उपवास, सात दिन, पन्द्रह दिन, एक मास आदि काल के प्रमाण उपवास आदि करना परिमाणगत प्रत्याख्यान है ।
८. जीवन पर्यन्त के लिए चार प्रकार के आहार आदि का त्याग करना अपरिशेष प्रत्याख्यान है ।।१३६॥
गाथार्थ-९. अध्वानगत और १०. सहेतुक-ये दस भेद जानो । प्रत्याख्यान के ये दस भेद जिनमत में निरुक्ति सहित हैं ॥१३७॥
९. मार्ग विषयक प्रत्याख्यान अध्वानगत है । जैसे जंगल या नदी आदि से निकलने के प्रसंग में उपवास आदि करना अर्थात् इस वन से बाहर पहुँचने तक मेरे चतुर्विध आहार का त्याग है या इस नदी से पार होने तक चतुर्विध आहार का त्याग है-ऐसा उपवास करना सो अध्वानगत प्रत्याख्यान है ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org