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आवश्यकनियुक्तिः
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भविष्यतीति सर्वदण्डकोच्चारणं न्याय्यमिति, न चात्र विरोधः, सर्वेपि कर्मक्षयकरणसमर्था यतः इति ॥१२९॥
प्रतिक्रमणनियुक्तिमुपसंहरन् प्रत्याख्याननियुक्ति प्रपञ्चयन्नाहपडिकमणणिजुत्ती पुण एसा कहिया मए समासेण । पच्चक्खाणणिजुत्ती एतो उड्डे पवक्खामि ।।१३०।।
प्रतिक्रमणानियुक्तिः पुन एषा कथिता मया समासेन ।
प्रत्याख्याननियुक्ति इत ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामि ॥१३०॥ प्रतिक्रमणनियुक्तिरेषा कथिता मया समासेन पुन: प्रत्याख्याननियुक्तिमित ऊर्ध्वं प्रवक्ष्यामीति ॥१३०॥
तामेव प्रतिज्ञां निर्वहन्नाह- .. णामट्ठवणा दव्वे खेत्ते काले य होदि भावे य । एसो पच्चक्खाणे णिक्खेवो छव्विहो णेओ ।।१३१।।
नाम स्थापना द्रव्यं क्षेत्रं कालश्च भवति भावश्च ।
एषः ‘प्रत्याख्याने निक्षेपः षड्विधो ज्ञेयः ॥१३१॥ . अयोग्यानि नामानि पापहेतूनि विरोधकारणानि न कर्तव्यानि न कारयितव्यानि नानुमंतव्यानीति नामप्रत्याख्यानं प्रत्याख्याननाममात्रं वा ।
होगा तो अन्य किसी दण्डक में स्थिरचित्त हो जावेगा, इसलिए सर्वदण्डकों का उच्चारण करना न्याय ही है, और इसमें विरोध भी नहीं है । क्योंकि प्रतिक्रमण के सभी दण्डकसूत्र कर्मक्षय करने में समर्थ हैं ॥१२९॥
प्रतिक्रमण नियुक्ति का उपसंहार करते हुए प्रत्याख्यान नियुक्ति कहते
___ गाथार्थ-मैंने संक्षेप में यह प्रतिक्रमण नियुक्ति कही है । इसके आगे प्रत्याख्यान नियुक्ति को कहूँगा ॥१३०॥ - आचारवृत्ति-इस तरह मेरे द्वारा यह प्रतिक्रमण नियुक्ति संक्षेप में कही गयी । अब आगे प्रत्याख्यान नियुक्ति कहूँगा ।।१३०।।
उसी प्रतिज्ञा का निर्वाह करते हुए कहते हैं
गाथार्थ-नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप प्रत्याख्यान में छह प्रकार का निक्षेप जानना चाहिए ॥१३१॥ .. आचारवृत्ति-अयोग्य नाम पाप के हेतु हैं और विरोध के कारण हैं ऐसे नाम न रखना चाहिए, न रखवाना चाहिए और न रखते हुए को अनुमोदना ही
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