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आवश्यकनियुक्तिः
सामायिकपरिणतजीवाधिष्ठितं क्षेत्रं क्षेत्रसामायिकं नाम । यस्मिन् काले सामायिकं करोति स काल: पूर्वाह्णादिभेदभिन्नः कालसामायिकं । भावसामायिकं द्विविधं, आगमभावसामायिकं नोआगमभावसामायिकं चेति । सामायिकवर्णनप्राभृतज्ञाय्युपयुक्तो जीव आगमभावसामायिकं नाम, सामायिकपरिणतपरिणामादि नोआगमभावसामायिकं नाम । तथेषां मध्ये आगमभावसामायिकेन नोआगमभावसामायिकेन च प्रयोजनमिति ॥१७॥
निरुक्तिपूर्वकं भावसामायिकं प्रतिपादयन्नाहसम्मत्तणाणसंजमतवेहिं जं तं पसत्थसमगमणं । समयंतु तं तु भणिदं तमेव सामाइयं जाण' ।।१८।।
सम्यक्त्वज्ञानसंयमतपोभिः यत्तत् प्रशस्तसमगमनं । समयस्तु स तु भणितस्तमेव सामायिकं जानीहि ॥१८॥
नो-आगम द्रव्य सामायिक के तीन भेद हैं-ज्ञायक शरीर, भावी और तद्व्यतिरिक्त । सामायिक के वर्णन करने वाले प्राभृत को जानने वाले का शरीर ज्ञायक शरीर है, भविष्यकाल में सामायिक प्राभृत को जानने वाला जीव भावी है और उससे भिन्न तद्व्यतिरिक्त है । ज्ञायकशरीर के भी तीन भेद हैं-भूत, वर्तमान और भविष्यत् । भूतकालीन ज्ञायकशरीर के भी तीन भेद हैं—च्युत, च्यावित और त्यक्त । सामायिक से परिणत हुए जीव से अधिष्ठित क्षेत्र, क्षेत्रसामायिक है । जिस काल में सामायिक करते हैं, पूर्वाह्न, मध्याह्न और अपराह्न आदि भेद युक्त काल काल-सामायिक है ।
भाव सामायिक के भी दो भेद हैं-आगम भाव सामायिक और नोआगम भाव सामायिक । सामायिक के वर्णन करने वाले–प्राभृत-ग्रन्थ का जो ज्ञाता है और उसके उपयोग से युक्त है वह जीव, आगम-भावसामायिक है ।
और, सामायिक से परिणत परिणाम आदि को नो-आगम भाव सामायिक कहते हैं । इनमें से यहाँ आगम-भाव सामायिक और नो-आगमभाव सामायिक से प्रयोजन है ऐसा समझना ॥१७॥
आगे निरुक्तिपूर्वक भावसामायिक का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं
गाथार्थ-सम्यग्दर्शन, ज्ञान, संयम और तप के साथ जो प्रशस्त समागम (एकता) है वह समय कहा गया है, उसे ही सामायिक जानो ॥१८॥
१.
अ,ब-जाणे ।
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