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आवश्यकनियुक्तिः
सुवर्णरजतमुक्ताफलमाणिक्यादिमृत्तिकाकाष्ठकंटकादिषु समदर्शनं रागद्वेषयोरभावो द्रव्यसामायिकं नाम । कानिचित् क्षेत्राणि रम्याणि आरामनगरनदीकूपवापीतडागजनपदोपचितानि, कानिचिच्च क्षेत्राणि रूक्षकंटकविषमविरसास्थिपाषाणसहितानि जीर्णाटवीशुष्कनदीमरुसिकतापुंजादिबाहुल्यानि तेषूपरि रागद्वेषयोरभावः क्षेत्रसामायिकं नाम । प्रावृड्व हैमन्तशिशिरवसन्तनिदाघाः षड्ऋतवो रात्रिदिवसशुक्लपक्षकृष्णपक्षाः कालस्तेषूपरि रागद्वेषवर्जनं कालसामायिकं नाम । सर्वजीवेषूपरि मैत्रीभावोऽशुभपरिणामवर्जनं भावसामायिकं नाम ।
अथवा जातिद्रव्यगुणक्रियानिरपेक्षं संज्ञाकरणं सामायिकशब्दमात्रं नामसामायिकं नाम । सामायिकावश्यकेन परिणतस्याकृतिमत्यनाकृतिमति च वस्तुनि गुणारोपणं स्थापनासामायिकं नाम । द्रव्यसामायिकं द्विविधं आगमद्रव्यसामायिकं नोआगमद्रव्यसामायिकं चेति । सामायिकवर्णनप्राभृतज्ञायी अनुपयुक्तो जीव आगमद्रव्यसामायिकं नाम । नोआगमद्रव्यसामायिक त्रिविधं सामायिकवर्णनप्राभृतज्ञा-' यकशरीरसामायिकप्राभृतभविष्यज्ज्ञायकजीवतव्यतिरिक्तभेदेन । ज्ञायकशरीरगति त्रिविधं भूतवर्तमानभविष्यद्भेदेने । भूतमपि त्रिविधं च्युतच्यावितत्यक्तभेदेन । .
कोई-कोई क्षेत्र रम्य होते हैं; जैसे कि बगीचे, नगर, नदी, कूप, बावड़ी, तालाब, जनपद-देश आदि से सहित स्थान, तथा जैसे कि रूक्ष, कंकटयुक्त, विषम, विरस, हड्डी और पाषाण सहित कोई-कोई क्षेत्र अशोभन स्थान होते हैं; जीर्ण अटवी, सूखी नदी, मरुस्थल बालू के पुंज की बहुलतायुक्त भूमि, इन दोनों प्रकार के क्षेत्रों में राग-द्वेष का अभाव होना क्षेत्र सामायिक कहा गया है ।
प्रावृङ्, वर्षा, हेमन्त, शिशिर, वसंत और निदाघ अर्थात् ग्रीष्म-इन छह ऋतुओं में, रात्रि-दिवस तथा शुक्लपक्ष और कृष्णपक्ष में, इन कालों में राग-द्वेष का त्याग काल सामायिक है ।
सभी जीवों पर मैत्री भाव रखना और अशुभ परिणामों का त्याग करना यह भाव सामायिक है । अथवा
जाति, द्रव्य, गुण और क्रिया से निरपेक्ष किसी का “सामायिक"- ऐसा संज्ञाकरण करना (नाम रख देना) नाम सामायिक है।
सामायिक आवश्यक से परिणत हुए आकार वाली अथवा अनाकार वाली किसी वस्तु में गुणों का आरोपण करना स्थापना सामायिक है ।
द्रव्य सामायिक के दो भेद हैं-आगम द्रव्य सामायिक और नो-आगम द्रव्य सामायिक । सामायिक के वर्णन करने वाले शास्त्र को जानने वाला किन्तु जो उस समय उस विषय में उपयोग युक्त नहीं है वह आगम द्रव्य सामायिक है ।
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