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आवश्यकनियुक्तिः
येन क्रोधमानमायालोभाः सभेदाः सनोकषाया निर्जिता दलितास्तस्य सामायिकमिति ।
संज्ञालेश्याविकाराभावभेदेन सामायिकमाहजस्स सण्णा य लेस्सा य वियडिं ण जणंति' दु ।।२६।। ___ यस्य संज्ञाश्च लेश्याश्च विकृतिं न जनयंति तु ॥२६॥
यस्य संज्ञा आहारभयमैथुनपरिग्रहाभिलाषा विकृति विकारं न जनयन्ति । तथा यस्य लेश्या: कृष्णनीलकापोतपीतपद्मलेश्याः । कषायानुरञ्जितयोगवृत्तयों विकृति विकारं न जनयन्ति तस्य सामायिकमिति ॥२६॥
कामेन्द्रियविषयवर्जनद्वारेण सामायिकमाहजो दु रसे या फासे य कामे वज्जदि णिच्चसा । .. ___यस्तु रसं च स्पर्श च कामे वर्जयति नित्यशः ।
रस:कटुकषायादिभेदभिन्नः, स्पर्शो मृद्वादिभेदभिन्नः रसस्पर्शी काम इत्युच्यते । रसनेन्द्रियं स्पर्शनेन्द्रियं च कामेन्द्रिये । यो रसस्पर्शी कामौ वर्जयति नित्यं । कामेन्द्रियं च निरुणद्धि तस्य सामायिकमिति ।
अर्ध-गाथार्थ-जिनके संज्ञाएँ और लेश्याएँ विकार को उत्पन्न नहीं करती उसके सामायिक होता है-ऐसा जिनशासन में कहा है ।। . आचारवृत्ति—जिनके आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इनकी अभिलाषारूप चार संज्ञाएँ विकार को उत्पन्न नहीं करती हैं, तथा जिनके कृष्ण, नील, कपोत, पीत और पद्म-ये कषाय के उदय से अनुरंजित योग की प्रवृत्तिरूप लेश्याएँ विकार को पैदा नहीं करती हैं उनके सामायिक होता है ॥२६॥
अर्घ-गाथार्थ—जो मुनि रस और स्पर्श-इन काम (वासना) को नित्य ही छोड़ते हैं, उनके सामायिक होता है-ऐसा जिनशासन में कहा है ।
आचारवृत्ति-कटु, कषाय, अम्ल, तिक्त और मधुर-ऐसे रस पाँच हैं । मृदु, कठोर, लघु, गुरु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष- ऐसे स्पर्श के आठ भेद हैं । इन रस और स्पर्श को काम कहते हैं तथा रसनेन्द्रिय और स्पर्शनेन्द्रिय को कामेन्द्रिय कहते हैं । जो मुनि रस और स्पर्श का नित्य ही वर्जन करते हैं और कामेन्द्रिय का निरोध करते हैं उन्हीं के सामायिक होता है ॥२७॥
१. २.
अ, व जणेणी। अ-जो रसे दुरसे य, ब-जो रसेन्द्रियफासे य...., (ग) जो रसे य फासे य कामे.........
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