________________
नंबर.
विषयसूची
68-9846 विषय.
प्रथम परिच्छेद ॥ १ ॥
१ पं. जयचंद्रजी छावड़ा विरचित मंगलाचरण.
२ ग्रंथवननेका सम्बंध.
३ भाषा वचनिका वननेका संबंध, नम्रनिवेदन प्रार्थना पं. जयचंद्रजीकृत
पीठिका.
४ देवोंका आना आदि विभूतिहेतु द्वारा भगवान स्तुति करने योग्य नहीं, क्योंकि ये हेतु आप्तता सर्वज्ञताके साधक नहीं - इत्यादि.
५ भगवत् वीतराग सर्वज्ञता विषयक अनुमान. ६ सर्वज्ञ वीतरागपना अरहंत में ही है.
७ आप्तता अन्यमें नहीं.
८ भावाभावपक्षका एकान्त निषेध तथा उसके भाव वगैरः सात भंग
विकल्प.
९ भावाभावके सात पक्षका अनेकान्त स्वरूपस्थापन. १० द्वितीयादि परिच्छेदमें उपर्युक्तपक्षोंके सप्त भंग करनेका विधान. द्वितीय परिच्छेद ॥ २ ॥
पत्र..
चतुर्थ परिच्छेद ॥ ४॥
७
१९ भेद एकान्तपक्षका निषेध. २० अभेद एकान्तपक्षका निषेध.
११
१४
१५
१७
११ अद्वैतपक्ष एकान्तका निषेध.
३३
१२ पृथक्त्व एकान्तका निषेध,
३७.
१३ अद्वैत और पृथक्त्व इन दोनों पक्षोंका तथा अवक्तव्य पक्षका निषेध. ४१ १४ उपर्युक्त पक्षोंका अनेकान्त धर्मकर स्थापन. तृतीय परिच्छेद ॥ ३ ॥
४१.
२२
१५ नित्यत्व एकान्तपक्षका निषेध.
१६ क्षणिक एकान्तपक्षका निषेध.
४९.
१७ नित्यत्व क्षणिक इन दोंनों पक्षोंके एकान्त और अवक्तव्यका निषेध. ५९ १८ अनेकान्त धर्मकर इन सब पक्षोंकी स्थापना.
६०.
४६
६५ ६९..