________________
आप्त-मीमांसा।
अपनां परका जाननेवाला मानें हैं । ऐसें एकानेक स्वरूप मानि अर एक पक्ष। सर्वथा मुख्य गोण करै तब अभिप्राय विगड्या हो कहिए । ऐसैं तो यह अनेकान्त स्वरूप वस्तुका विधि वाक्य है । बहुल तेसैंही निषेध वाक्य है । जो वस्तु तत्त्व है सो किछु भी एकान्त स्वरूप नाहीं है । जातें सर्वथा एकान्तमें सर्वथा अर्थक्रिया नाहीं हैं। जैसे आकाशके फूलनाहीं है । तातें अर्थ क्रिया भी नाहीं। ऐसे अन्यवादीनि करि मान्यां जो सर्वथा एकान्तनिकी मान्यका निषेध है । जातें सर्वथा एकान्त तौ किछू वस्तु नाहीं सो निषेधवे योग्य भी नाहीं अर परवादीनिकी मान्य भावरूप है । ताका निषेध है। ऎसैं विधि प्रतिषेध वाक्य करि वस्तु तत्व नियमरूप कीजिये है। बहुरि तैसें ही तथा अन्यथाका अवस्यभाव है जो तथा अन्यथा न होय तौ पदार्थ विशेष न ठहरै प्रतिबेध विना विधि विशेषण नाही दोउ विशेषण विना विशेष पदार्थ नाहीं। इस ही कथन करि विधि प्रतिषेध दोऊको गौण करि सत् असत् आदि वाक्य विर्षे कोई वृत्ति जाननी ॥ १०९ ॥ __ आण अन्यवादी कहै जो वाक्य है सो सर्वथा विधिही करि वस्तु तत्त्वके नियम रूप करै है । ऐसे एकान्त विर्षे आचार्य दूषणदिखावैं हैं।
तदतद्वस्तुबागेषा तदेवेत्यनुशासती।
न सत्या स्यान्मृषावाक्यैः कथंतत्वार्थदेशना ॥११०॥ अर्थ-वस्तु है सो तत् अतत् ऐसैं दोऊ रूप है । जातें यहु वाक् कहिए वाणी तत् ही है । ऐसें कहते कैसैं सत्य होय है न होय । बहुरि ऐसें असत्य वाक्यनि करि तत्वार्थका उपदेश कैसैं प्रवत्तै असत्य वाक्यकू कौन मानै । यहाँ ऐसा जानना जो वस्तु है सो तौ प्रत्यक्षादि प्रमाणका विषयभूत सत् असत् आदि विरुद्ध धर्मका आधाररूप है सो
आ०-८