Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti
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. अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
.... चौपाई ॥ ज्ञान अज्ञान मोक्ष अरु बन्ध । संततिकी उत्पत्ती संबंध ॥ नय प्रमाण इन सबकी रीति स्याद्वाद भाषी मुनि नीति ॥१॥
इति श्री आप्तमीमांसा नाम देवागमस्तोत्रकी देश भाषा मय वाचनिका विषै दसमा-परिच्छेद समाप्त भया ॥१०॥ यहाँ ताई कारिका एकसौ चौदह भई ॥ ११४ ॥
सवैया २३ सा ॥ घाति निवार भये अरहंत अघातिनिवारि सुसिद्ध कहाए। पंच अचार समारि अचारिज भव्यनि तारतरे श्रुत गाये ॥ अंग उपंग पढ़े उवझाय पढ़ाय घणे शिव राह लगाये । साधु सवै गुणमूलधरै तव साधय मोक्ष नमों मन भाये ॥१॥
।दोहा। मंगल कारण पंच गुरु । नमों विघ्नकी हानि । ग्रन्थ अंति मंगल अरथ । नमस्कार ममजान ॥ २ ॥ समंतभद्र अकलंक पुनि । विद्यानंदि सुजानि । इनके चरन नमों सदा । साधुत्रयी गुणखानि ॥ ३ ॥
सवैया २३ सा॥ देश ढुंढाहरु जैपुर थान महान नरेश जगेश विराजै । न्याय चलैं सवलोक भलैं विधि वात्सल है सुख सों डर भाजे । जैन जनाव हुते तिनमें जु अध्यातम शैलि भली सुसमाजै । हौं तिनमैं जयचंद सुनाम कियो यह काम पढ़ो निज काळें ॥४॥
- दोहा॥ अष्टा दश सत साठि षट् विक्रम सम्बतजानि । चैत्र कृष्णचोदस दिवस पूर्ण वाचनिका मानि । ५॥
इति ।

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