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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
विना एकत्व अवस्तु है । ऐसें निरपेक्ष दोऊ ही अवस्तु ठहरै हैं । बहुरि परस्परं सापेक्ष दोऊ हेतु” सो ही पृथक्त्व अर एकत्व परमार्थ हैं, वस्तु हैं। यहां दृष्टान्त-जैसैं साधन कहिये हेतु ताका स्वरूप बौद्धमती पक्षधर्म, सपक्षसत्त्व, विपक्षव्यावृत्ति ऐसैं अपने तीन भेदनिकरि विशिष्ट एक मानै हैं । ताकै भी अन्वय, व्यतिरेक, ये दोय भेद मानें हैं । तहां जो दोऊ परस्पर सापेक्षपणाहीतैं दोऊ वस्तुभूत साधन ठहरै । तैसैं ही पृथक्त्व अर ऐक्य दोऊ सापेक्ष ही वस्तुरूप हैं निरपेक्ष अवस्तु हैं। यहां कोई पूछ-जो पृथक्त्व ऐक्यके एकान्तका निषेध , तौ पहले किया ही था फेर यह कारिका कौन अर्थ कही ताका समाधानजो इसका विधि-निषेध के अनुमानका प्रयोग जनावनेकू फेर स्पष्टकरि कह्या है, परस्पर निरपेक्ष सापेक्षकै दोऊ हेतु जताये हैं। बहुरि साधनका उदाहरण है सर्वमतने साधनकू अन्वय व्यतिरेकस्वरूप मान्या है सो परस्पर सापेक्ष विना साधन सिद्ध होय नाहीं तब अपना अपना मत कैसैं सिद्ध करें तारौं दृष्टान्त भी युक्त है । सर्वथा एकान्त मानें किछू भी सिद्ध न होय है ॥ ३३ ॥
आगैं वादी आशंका करै है-जो एकपणांकी प्रतीति” तथा पृथक्पणांकी प्रतीतिनै जीवादिकपदार्थनिकै एकपणां अर पृथकपणां कैसैं बनैं है । एकपणां तौ प्रत्यक्ष दीखै नाहीं अर पृथकपणां सत्रूप एक मानिये तो कैसैं ठहरै ऐसैं प्रतीतिकै निर्विषयपणां आवै है । ऐसी आशंका होते याका विषय दिखावनेका मनकरि स्वामी समंतभद्र आचार्य कहैं हैं
सत्सामान्यात्तु सर्वैक्यं पृथग्द्रव्यादिभेदतः । भेदाभेदव्यवस्थायामसाधारणहेतुवत् ॥ ३४ ॥