Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 103
________________ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm माननैं मैं विरोध दूषण आवै है बहुरि अवक्तव्य एकान्त मानें । अवक्तव्य है ऐसैं कहना न बगैं । कहते वक्तव्य भी ठहरै, तब एकान्त कहना न बगैं । ऐसैं एकान्त में दूषण है आरौं हेतु का अर अहेतु का अनेकान्त कूँ दिखाएँ हैं ॥ ७७ ॥ वक्तर्व्यर्थनाप्यद्धेतोः, साध्यं तद्धेतुसाधितं । आप्तेवक्तरितद्वाक्याल्साध्यमागमसाधितं ॥ ७८ ॥ अर्थ-वक्ता अनाप्त होते जो हेतु” साध्य होय सो तो हेतु साधित है । बहुरि वक्ता आप्त होते तिसके बचन साध्य होय सो आगम साधित है । यहां आप्त अनाप्तका स्वरूप पूर्वं कह्या था जो दोष आवरण रहित सर्वज्ञ वीतराग है सो ऐसा अरहंत भगवान जाते ताके बचन युक्ति आगमनै अविरोधरूप हैं अर ताकें कहे भाषे तत्त्व प्रमाणतें बाधे न जाय हैं । बहुरि जो दोष सहित है सर्वज्ञ बीतराग नाहीं सो अनाप्त है ताके वचन इष्टतत्व प्रत्यक्ष बाधित हैं ताते आप्तके तो वचन ही प्रमाण करने अर अनाप्त के बचन परीक्षा करि प्रमाण करनै इत्यादि चर्चा अष्ट सहस्री तैं जानना अँसैं कथंचित् सर्व हेतु नैं सिद्ध है । जातैं जहां आप्त के वचन की अपेक्षा नाही बहुरि कथंचित् आगमतें सिद्ध है जातें जहां इंद्रिय प्रत्यक्ष अर लिंग की अपेक्षा नाही इत्यादि पूर्व प्रकार की जैसें सप्तभंगी प्रक्रिया जोड़णी ॥ ७८ ॥ चौपाई। मोक्षतत्व अर मोक्ष उपाय हेतु अहेतु कथंचित भाय साध्यो अनेकान्त तैं भलैं तजि एकान्त पक्ष मुनि चलैं । इतिश्री स्वामी समंत भद्र विरचित आप्त मीमांसा नास देवागम स्रोत्र की संक्षेप अर्थरूप देश भाषा भय बचनिका विर्षे छठा परिच्छेद समाप्त भया ॥ ६ ॥

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