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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
हे भगवन् ? स्यात् ऐसा शब्द है। सो निपात है । अव्यय है। वाक्यनिविर्षे अनेकान्तका द्योति कहिए प्रकाशने वाला है । बहुरि गम्यं कहिए साधने योग्य जानने योग्य पदार्थ है ताप्रति विशेषण है । जाते याकै अर्थका योगीपणां है अर्थतॆ संबंध है । यातें तुमारे मतमें केवलीनिके भी यह है तहाँ कोई पछै बाक्य कहा ताका समाधान जे वर्णस्वरूप पद हैं । तिनकै परस्पर अपेक्षारूपनिकै निरपेक्ष समुदाय होय सो वाक्य है । अन्यवादी तो वाक्यका स्वरूप अनेकप्रकार अन्यथा कहैं हैं । सो निर्वाध नाहीं ते दसप्रकार वाक्यतो यह कहैं हैं । तिनके नाम आख्याशब्द १ संघात २ तामें वर्तं ऐसीजाति ३ एक अवयव रहित शद्ब ४ क्रम ५ बुद्धि ६ अनुसंहृति ७ आद्यपद ८ अंतपद ९ सापेक्षपद १० ऎसें इत्यादि अनेकप्रकार कहै है । तिनमें बाधाआवै है। स्याद्वादकरि सिद्ध वाक्यका स्वरूप कह्या सोही निर्वाध है । बहुरि पूछे, अनेकान्त कहा ? ताका समाधान-सत् असत् नित्य अनित्य एक अनेक इत्यादि सर्वथा एकांतका निराकरण अनेकांत है । सो इन सत् आदिके लगाया स्यात् शब्द है सो तिसका विशेषण पणां करि तिसकूँ तत्वका अवयव पणां कार ताका द्योतक होय है । जातै निपात शब्दनिकू द्योतक भी कहिऐ हैं । बहुरि यह स्यात् निपात स्याद्वादका वाचक भी है । बहुरि (वाक्य) द्योतक पक्षविधैं भी गम्य कहिए जानने योन्य अर्थ प्रति विशेषण होय है । बहुरि स्यात् शब्द सर्वही वाक्यनि प्रति लगावणां जाते सर्व अर्थकूँ एकही शब्द कहै नांहीं वाक्य क्रमसौं
१ आख्यातशब्दः संघातो, जातिः संघातवर्तिनी एकोनवयवः शब्दः क्रमो बुद्धयनुसंहती ॥ १ ॥ पदमाद्यं पदं चान्त्यं पदं सापेक्षमित्यपि । वाक्यं प्रति मतिभिन्ना बहुधा न्यायवेदिनाम् ॥ २ ॥