Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 135
________________ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् सधर्मणैव साध्यस्य साधर्म्यादविरोधतः । स्याद्वादप्रविभक्तार्थविशेषव्यंजको नयः ॥ १०६॥ अर्थ —जा करि साध्य पदार्थ जानिये सो नय है । सो कैसा है • स्याद्वाद जो श्रुतप्रमाण तातैं भेदरूप किया जो अर्थका विशेष शक्य अभिप्रेत असिद्ध विशेषण विशिष्ट साध्य विवाद में आया ताका व्यंजक है। • सो कैसैं व्यंजक है साध्य के समान धर्मरूप जो दृष्टान्त ताही करि • साधर्म्य कहिए समान धर्मपणातें व्यंजक है सो अविरोधतैं व्यंजक है • साध्यतैं विरुद्ध पक्षके साधर्म्यतें व्यंजक नाहीं है विपक्षतैं तो वे धर्म तें अविरोध करी तुकै साध्यका प्रकाशन पणां हैं ऐसें करने तैं -ही हेतुका लक्षण अन्यथानुपपन्नपणां होय है । ( अन्यप्रकार हेतुका लक्षण कहैं तामें बाधा है ) ऐसें नय है सो ही हेतु है । बहुरि ऐसे नय सामान्य काभी लक्षण होय है । जातैं स्याद्वाद तैं भेद रूपाक या जो अर्थ सो प्रधानपणातें सर्व अंगका व्यापने वाला है । ताका विशेष—जो नित्य पणां आदिक ताका न्यारा न्याराका कहने वाला है - सो यह नय है ऐसें नयका समान लक्षण जानना हेतुतौ जो साध्य अभिप्रेत मैं आवै ताही कूँ साधै है । बहुरि नय सामान्य है सो सर्व धर्मनिमें व्यापक है ऐसे अनेक धर्मनि सहित वस्तुकी प्रत्तिपत्ती प्राप्ति ज्ञान सो तो प्रमाण है बहुरि एक धर्मकी प्रत्तीपत्ती धर्म सापेक्ष प्रतिपत्ति है सो नय है । बहुरि प्रतिपक्षी धर्मका सर्वथा निराकरण सो दुर्नय है ॥ १०३ ॥ C - ११० आगैं जो प्रमाणका विषय अनेकान्तात्मक वस्तु का सो कैसा है ऐसे पूछें आचार्य कहैं हैं । नयोपनयैकान्तानां त्रिकालानां समुच्चयः । विश्वग्र भाव संबंधो द्रव्यमेकमनेकधा ।। १०७ ॥ १' अविभ्राड्' ऐसाभी पाठ है ।

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