Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ आप्त-मीमांसा। अर्थ-स्याद्वाद और केवलज्ञान ये दोउ हैं तै कैसे हैं सर्व तत्त्वका प्रकाशन जिनौं ऐसे हैं । बहुरि इनमें साक्षात् कहिए प्रत्यक्ष अर असाक्षात् कहिए परोक्ष ऐसैं जाननेहीका भेद है बहुरि इनमें एकही कहिये अर एक न कहिये ऐसैं अन्यतम होय तौ अवस्तु होय । इहाँ ऐसा जाननां जो ज्ञान प्रत्यक्ष परीक्ष ऐसें दोय हि प्रकार हैं। इन सिवाय अन्य कोई है नाहीं बहुरि दोउ ही प्रधान हैं । जातै पर-. स्पर हेतुपणा इनक है केबल जानतें स्याद्वाद प्रवरौं है । बहुरि केवल ज्ञान अनादि संतानरूप है तौउ स्याद्वाद तैं जान्याजाय है । बहुरि सर्वतत्त्वके प्रकाशक समान कह्या ताका यह अभिप्राय है जो जीवादि सात पदार्थ तत्व कहे तिनका कहनां दोउकैं समान हैं जैसैं आगम है सो जीवादिक समस्त तत्व कूँ पर कूँ प्रतिपादन करै है । तैसे ही केवली. भी भाषै है । ऐसें समान हैं । प्रत्यक्ष परोक्ष प्रकाशनेंका ही भेद है । वचनद्वारे कहनेकी अपेक्षा भी समान हैं। जातें जिन विशेषनि कू केवली जानैं है तिनमें जे वचन अगोचर हैं । ते कहनेमें आ3 ही नाहीं बहुरि स्याद्वादनयसंस्कृतं तत्वज्ञानं याका व्याख्यान ऐसा जो प्रमाण नयकरि संस्कृत है तहाँ स्याद्वादतौ सप्तभंगी वचनकी विधितैं प्रमाण है । बहुरि नैगम आदि बहुत भेदरूप नय है ऐसे संक्षेप" कह्या विस्तारतें अन्य ग्रन्थनितें जानना ॥ १०५ ॥ __ आनें अब तत्वशानप्रमाणस्याद्वादनयसंस्कृत इनका और प्रकार व्याख्यान करैं हैं । तहाँ स्याद्वादतौ अहेतुवाद आगम है बहुरि नये है सो हेतुवाद है । तिन दोउनकरि संस्कृत है सो ही युक्तिशास्त्र इन दोउन करि अविरुद्ध है । सुनिश्चितासंभवद्वाधक रूप है । ऐसैं. अभिप्रायवान आचार्य है ते-स्याद्वाद अहेतुवाद है । सो तो पहले कह ही आये हैं अवहेतुवाद जो नय ताका लक्षण कहैं ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144