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आप्त-मीमांसा।
प्रवर्ते है । तातें जिस वाक्य कैं जो गम्य अर्थ होय ताहीका द्योतक होय है । जो स्यात् शब्द न लगाइये तो अनेकान्त अर्थ जान्या जाय नाहीं ऐसें जानना ॥ १०३ ॥ . आगें पूहैं जो कथंचित् आदि शद्बतें भी तो अनेकान्त अर्थका जानना होय है । आचार्य कहै हैं—यह सत्य है । होय है यह कथ-. चित् शब्द भी तिस स्यात् शब्दका पर्याय शब्द है । सोही स्याद्वाद दिखावें हैं।
स्याद्वादः सर्वथैकान्तत्यागाम्किवृत्तचिद्विधिः ।
सप्तभंगनयापेक्षो हेयादेयविशेषकः ॥ १०४ ॥ अर्थ—स्याद्वाद कहिए स्यात् शब्द है सो सर्वथा एकान्तका त्यागौं कथंचित् । ऐसा याका पर्याय शब्द है । जाते किं शब्दका कथं निपजाय चित् प्रत्ययका विधान किया है तब कथंचित् ऐसा भया है । बहुरि कैसा है । सप्तमंगरूपनयनकी है अपेक्षा जाकै । बहुरि कैसाहै हेय अर उपादेय जो अर्थ ताका विशेषकहै भेद करनेवाला है । इहाँ ऐसा जननां जो यह स्याद्वाद है । सो अनेकान्त वस्तु कूँ अभिप्रायरूप अपणां विषयकरि सप्तभंग नयकी अपेक्षाले अर स्वभाव अर परभावकरि सत् असत् आदि की व्यवस्था कूँ प्रतिपादनकरै है । तहाँ सप्तमंग नयतो पूर्वं कहे ते जानूं । —बहुरि नय हैं ते द्रव्यार्थिक पर्यायाथिक इन दोयके भेद नैगम आदिक हैं तहाँ नैगम संग्रह व्यवहार ये तीनतौ द्वव्यार्थिककेभेद हैं ऋजुसूत्र शब्द समाभिरूढ एवंभूत ये चारि पर्यायर्थिकके भेद हैं बहुरि इन सातनिमें नैगम संग्रह व्यवहार ऋजुसूत्र ये च्यार तो अर्थ प्रधान है । बहुरि शब्द समभिरूढ एवंभूत ये तीन शब्द प्रधान हैं। बहुरि नैगम नयके तीन भेद हैं। दोय द्रव्य कूँ प्रधान गोण करि प्रवर्ते