Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 129
________________ १०४ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् जैसे जलका निवाश यह व्यतिरेक दृष्टांन्त यह उदाहरण । बहुरि जैसे यह धूमवान पर्वत है यह उपनय । बहुरि ता” यह अग्निमान है यह निगमन ऐसे पांच प्रयोगका परार्था नुमान हैं । बहुरि आप्त जो सर्वज्ञ आदि जो सांचा वक्ता ताकै वचननै वस्तु निश्चयकीजिये सो आगम प्रमाण है । ऐसें प्रमाणकी संख्या है। अन्यवादी स्मृति प्रत्यभि ज्ञान तर्ककू प्रमाण नैं मानि सँख्याका नियम थापै हैं । तिनका नियम स्मृति आदि प्रमाण विगाड़े हैं। बहुरि प्रमाणका विषय सामान्य विशेष स्वरूप वस्तु है । सोही निर्वाध सिद्ध होय है । अन्यवादी सामान्यहीकूँ तया विशेष ही कूँ तथा दोऊँ कूँ परस्पर अपेक्षा रहित प्रमाणका विषय थापें हैं सो निर्वाध सिद्धि होय नाहीं है । बहुरि तत्वज्ञान स्याद्वादनय करि सँस्कृत है तहाँ ऐसे जाननां जो तत्वज्ञान है सो कथंचित् युगपत प्रतिभास स्वरूप है । जातें सकल विषय स्वरूप है। अर कथंचित् क्रम भावी है । जाते जाका क्रमरूप विषय है । इत्यादि सप्त भंग जोड़ना अथवा न्यारे न्यारे भेदनि प्रति लगावणां । जैसे तत्वज्ञान है सो कथंचित् प्रमाण है । अपनी प्रमिति प्रति साधकतम करण है । बहुरि कथंचित् अप्रमाण है जातें अन्य प्रमाणके भेद अपेक्षा प्रमेय है । अथवा आपके आप प्रमेय है । इत्यदि सप्तभंगी जोड़नी बहुरि प्रमाण की विशेष चरचा अष्ट सहभी टीका तैं तथा श्लोकवार्तिक तत्वार्थ सूत्रकी टीका तैं तथा परीक्षामुख ग्रन्थ तैं जाननी ॥१०१॥ आगें प्रमाणका फलका स्वरूप कहै हैं। जानै अन्यवादी फलकास्वरूप अन्यप्रकार मानें है ताका निराकरण होय । उपेक्षाफलमाद्यस्य, शेषस्यादानहानधीः । पूर्व वा ज्ञान नाशो वा सर्वस्यास्य स्वगोचरे॥१०२॥ १ सनातन जैन-ग्रन्थ-मालाकी मुद्रित आप्तमीमांसामें 'पूर्वा' पाठ मुख्य है।

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