Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 128
________________ . आप्त-मीमांसा । १०३ प्रत्यक्ष प्रमाण हैं । याका लक्षण समान्य स्पष्ट विशेषनि सहित वस्तुका जानना है । बहुरि परोक्षका लक्षण सामान्य अस्पष्ट व्यवधानसहित जानना ताके भेद पांच । स्मृति प्रत्यभिज्ञान तर्क अनुमान आगम ऐसैं । इनका लक्षण ऐसा जो पूर्वै अनुभवमें धारणमें आया। -वस्तुका स्मरण होना याद आवना सो स्मृति है। बहुरि वर्तमानमें अनुभवमें आया। अर पूर्वलेका यादि आवनां दोऊनितें एकपणा अर सदृशपणां आदिकका जोड़रूप ज्ञान होना सो प्रत्यभिज्ञान है । बहुरि साध्य साधनकै व्याप्ति जो अविनाभाव ताकूँ जानैं सो तर्क है। बहुरि साधन साध्य पदार्थका ज्ञान होना सो अनुमान है ताके भेद दोय हैं स्वार्थनुमान परार्थानुमान ऐसैं तहाँ साधन” साध्यका आपही निश्चय करि जानैं सो स्वार्थनुमान है । बहुरि परके उपदेश” निश्चयकरि जानैं सो परार्थानुमान है। ताके पांच अवयव हैं। प्रतिज्ञा हेतु उदाहरण उपनय निगमन तहाँ साध्य अर साध्यका आश्रय दोऊनिः पक्ष कहिये । ऐसे पक्षके वचनि। प्रतिज्ञा कहिये तहाँ साध्यका स्वरूपतो शक्य अभिप्रेत अप्रसिद्ध ऐसे तीनस्वरूप है । अर साध्यका आश्रय प्रत्यक्षादिक करि प्रसिद्ध होय है। बहुरि साध्य तैं अविनाभाव व्याप्ति जाकै होय ऐसा साधनका स्वरूप है । ताका वचन कूँ हेतु कहिये । वहुरि पक्ष सारखा तथा विलक्षण अन्यठिकाणा होय तापू दृष्टांत कहिए हैं । ताका बचन कू उदाहरण कहिए है। सो पक्ष सारखाकूँ अन्वयी कहिए । विपरीत कूँ व्यतिरेक कहिए । बहुरि दृष्टान्तकी अपेक्षा ले अर पक्षकू सामान करि कहे सो उपनय है । बहुरि हेतु पूर्वक पक्षका नियम करि कहना निगमन है । इनका उदाहरण ऐसा यह पर्वत अग्निमान है। यहतों प्रतिज्ञा बहुरि जात यह धूमवान है यह हेतु बहुरि जो धूमवान है सो अग्निबान है जैसे रसोई घर यह अन्वय दृष्टांन्त । बहुरि जो धूमवान नाहीं तो अग्निबान नाही।

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