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आप्त-मीमांसा।
कहिये अनेक प्रकार है जाते यामैं सुख दुख आदिक देशकालके भेद करि कार्य अनेक प्रकार होय हैं सो यह ( कामादिप्रभव ) विचित्ररूप संसार है। सो कर्म बंधकै अनुरूप होय है । जैसा कर्म पूर्व वांध्या था ताकै उदयके अनुसार होय है। बहुरि सो कर्म पूर्व वांध्या था सो अपने कारणनितें वांध्या था बहुरि ते कारण जीव है । बहुरि ते जीव शुद्धि अशुद्धि के भेद तैं दोय प्रकार है । ऐसें संसारकी उत्पत्तिका क्रम है । यहां ईश्वरवादी कहै जो कामादिकका प्रभवहै । सो ईश्वरके किये होय हैं। ताकू कहिये जो ईश्वर तो नित्य है एक स्वाभावरूप है । बहुरि ताकी इच्छा भी एक स्वभाव है । बहुरि ताका ज्ञान भी एक स्वभाव है। अर ये संसारमें कार्य हैं ते अनेक स्वभाव रूप हैं । सो एक स्वभाव होय सो अनेक स्वभाव रूप कार्य्य निकू कैसे करे जो करै तो कार्यनिकी जों ईश्वर कै तथा इच्छा के स्वभाव कैं तथा ज्ञान के अनित्य पणां अर अनेक स्वभाव पणां आवै सो ऐसा ईश्वर मान्यां नाही तथा सिद्ध होय नाही बहुरि जीवन कै शुद्ध अशुद्ध भेद करने तैं केईके मुक्ति होय है कोईके संसार ही है। ऐसा सिद्ध होय है बहुरि ईश्वर वादकी चरचा विशेष है सो अष्ट सहश्री तैं जाननी ॥९॥
आगें पूछे हैं जो जीवनके शुद्धि अशुद्धि कही तिनका स्वरूप कहा है ऎसैं पूछे । आचार्य कहै हैं।
शुद्धयशुद्धी पुनः शक्ती ते पाक्यापाक्यशक्तिवत् । साधनादी तयोर्व्यक्ती स्वभावोऽतर्कगोचरः ॥१०॥ अर्थ-पुनः कहिये बहुरि ते पूर्वोक्त शुद्धि अशुद्धि दोऊ हैं ते शक्ति हैं। योग्यता अयाग्यता है ते सुनिश्वितअसंभवद्वाधक प्रमाणते निश्चित करी हुई संभवै है जैसे मांष-उड़द मूंग धान्य है तिनमें पाक्यापाक्य कहिए पचनें पचावनें योग्य अर न पचने