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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
पचावने योग्य शक्ति है सो स्वयमेव है तैसें है । बहुरि तिन दोऊनिकी व्यक्ति है प्रगट होना है सो साधि कहिए काल अपेक्षा आदिसहित है तथा अनादि कहिये आदि रहित है । बहुरि यहाँ पूछें जो सादि अनादिकाहेतें है तहाँ ऐसा उत्तर जो यह वरक्तका स्वभाव है सो यह तर्ककै गोचरनाहीं। वक्त स्वभावमें हेतुका पूछना नाहीं ऐसे कारकाका अर्थ है । यहाँटका में ऐसा अर्थ है । जोजीवनकै भव्यपणा हैं सो तो शुद्धि शक्ति है । सो तो सम्यग्ददर्शन आदि की प्राप्तितैं निश्चयकीजिये हैं । बहुरि अशुद्धिशक्ति अभव्यपणा है । सो सम्यदर्शनादिककी प्राप्ति रहित है सो यह प्रत्यक्ष तो सर्वज्ञ जाने हैं । अर छमस्थ आगमतैं जाने हैं बहुरि तिनकी व्यक्ति होय है । सो भव्य जीवकै तो शुद्धिकी व्यक्ति सादि है । जातैं या सम्यग्दर्शन आदिक आदिसहित प्रगट होय हैं । बहुरि अभव्यजीव अशुद्धि की व्यक्ति आनादि ही है ।
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जातैं या भिव्यादर्शन आदिक अनादहीके हैं । बहुरि इस शक्तिकी व्यक्तिका ऐसा भी व्याख्यान है । जो जीवनकै अभीप्रायके भेद शुद्धिअशुद्धि है । तहाँ सम्यग्दर्शनादि परिणाम स्वरूप अभिप्राय तो शुद्धि है । अर मिथ्यादर्शन परिणाम स्वरूप अभिप्राय अशुद्धि है । इनकी व्यक्ति भव्यजीवनहीके सादि अनादि है। तहाँ सम्यग्दर्शनादिक न उपजै तेतैं अशुद्धिकी व्यक्ति अनादि कहिए बहुरि सम्यग्दर्शनादि स्वरूप शुद्धिकी व्यक्ति सादि कहिये ऐसे जानना । बहुरि कोई पूछे जौ हहां स्वभाव में तर्क न करना का सो प्रत्यक्ष प्रीतिमें आया पदार्थका स्वभावमें तर्क न कया है । अर जो परोक्ष होय तामें तो तर्क किया चाहिये ताका उत्तर ऐसा जो अनुमान कर प्रतीतिमें आया अर्थमें भी तर्क न करना । अरु सिद्ध प्रमाण आगम गोचर जो जीनका स्वभाव है । तामें भी तर्क न करना तातैं यह कहना भले प्रकार वण्या