Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 123
________________ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् ज्ञानमें जानना । केवल ज्ञान अपेक्षा स्तोक ज्ञान छद्मस्थका कहिये तामें मोह सहित” वंध होय मोह रहित तैं मोक्ष होय ऐसें जानना । यहाँ भी सप्त भंगी प्रक्रिया पूर्ववत जोड़णी अज्ञानतें कथाचिंत बंध है, बहुरि कथंचित मोह रहित अज्ञानतें बंध नाहीं हैं, बहुरि मोहरहित स्तोक ज्ञान” मोक्ष है मोह सहित स्तोक ज्ञानतें बंध है, कथंचित् उभय है कथंचित् अवक्तव्य है कथंचित् अज्ञानतें बंध अवक्तव्य हैं कथंचित् अज्ञानतें बंध नाही अवक्तव्य है, कथंचित् उभय अवक्तव्य है। ऐसे इहाँ ताई सर्वथा एकान्त बादी अर आप्तके अभिमानतें दग्ध तिनके मत इष्ट तत्वमें बाधा दिखाई । अर अनेकान्त निर्वाध दिखाया ताकी दश पक्ष वर्णन करी । सत् असत्, एक अनेक, नित्य अनित्य, भेद अभेद, अपेक्षा अनपेक्षा, हेतु आगम, अंतरंग बहिरंगत्व, दैवसिद्धि पौरषसिद्ध, पुन्यपापकाबंध, अज्ञानतैबंध स्तोक ज्ञानतें मोक्ष, ऐसैं दश पक्षका विधि निषेधतें साधि सात सात भंग करि सत्तरि भंगका एकांत निषेध्या स्याद्वाद साध्या ॥९८ ॥ कारिका अठाणवै भई। आगै पूछे हैं जो काम आदि दोष स्वरूप जे मोहकी प्रकृति तिन करि सह चरित जो अज्ञान तातै प्राणीन कै शुभ अशुभ फलका भोगनेका कारण जो पुन्य पाप कर्म तिनतें बंध कह्या सो तो हो हू परंतु सो यह कामादिकका उपजनाँ है सो ईश्वर है निमित्त जाकू ऐसा है ऐसैं पू, इस आशंका कू दूर करनेकूँ आचार्य कहैं हैं । कामादिप्रभवश्चित्रः, कर्मबन्धानुरूपतः । तच्चकर्म स्वहेतुभ्यो जीवास्ते शुद्धयशुद्धितः ॥ ९९ ॥ अर्थ-कामादिप्रभवःकहिये काम क्रोध मान माया लोभ आदिका प्रभव कहिये उत्पत्ति जामें होय हैं। ऐसा भाव संसार है। सो चित्र

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