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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
। इसी अर्थकू विशेष करि साधैं हैं।
बुद्धिशब्दार्थसंज्ञास्तास्तिस्रो बुद्ध्यादिवाचकाः। __ तुल्या बुद्धयादिबोधाश्च त्रयस्तत्प्रतिबिम्बकाः ।। ८५ ॥
अर्थ-बुद्धि शब्द अर्थ ये तीन संज्ञा हैं ते बुद्धि शब्द अर्थ ये तीन संज्ञानि” भिन्न बाह्यार्थ है तिनका वाचक है । बहुरि बुद्धि शब्द अर्थ इनका बोध भी तीन है ते तिन" तुल्य हैं समान हैं । ते तिन तीननिका प्रतिबिंबक व्यंजक है । इहां ऐसा जानना । जो पहिली कारिकामें संज्ञापणाका हेतु तैं बाह्य पदार्थ साध्या था, तहां बौद्धमती एसैं कहे है । जो जीव शब्दका हेतु बाह्यार्थ तो संज्ञापणा हेतु तैं सधै । परंतु जीव शब्द की बुद्धि और जीव शब्दका शब्द ये भी अर्थ है। ते तो विपक्ष है तिनमैं संज्ञापणा हेतु व्यापै है । तातें इस हेतुकै व्यभिचार आवै है ताकू आचार्य इस कारिकामैं उपदेश देय व्यभिचार मेटया है जो संज्ञापणा हेतु तौ बाह्यार्थ सहितपणां ही कू साथै है। बुद्धि शब्द अर्थ ये संज्ञा हैं । ते इनका बाह्यार्थ बुद्धि शब्द अर्थ है। तिनहीके वाचक हैं। और बुद्धि शब्द अर्थ इनका ज्ञान है सो भी तिन तीननि तँ तुल्य है तो तिन वाह्यार्थनिका प्रतिबिम्बक है दिखानेवाला है जैसे अर्थ है पदार्थ जाका ऐसा जीव शब्द है । सो यातॆ जीवकू न हनना । ऐसें कहै जीव अर्थ का प्रतिबिंबक बोध उपजै है । तैसैं ही बुद्धि है पदार्थ जाका ऐसा जीव शब्द तै जीव है। ऐसा जानिये है। ऐसा बुद्धि अर्थ का प्रतिबिंबक होय है तैसे ही शब्द है पदार्थ जाका ऐसा जीव शब्द तै जीवकू कहैं है ऐसा ज्ञान होय है ऐसे शब्द का प्रतिबिंबक होय है । ऐसे संज्ञा तौ बाह्य पदार्थनै कहैहै । अर शब्द का अर्थ, नाम, ज्ञान, ये तीनों तिनके समान है। जे प्रतिबिंबक हैं । जातै तिन तीन का ज्ञान करावे हैं । ऐसे व्यभचार मेट्या हैं ॥ ८५॥