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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
सत्यार्थ ठहरै तिनकौं निषेधै तो काहे तैं निषेधै । इत्यादि अंतरंग एकान्त माननै मैं दूषण है ॥ ७९ ॥ आगैं संवेदना द्वैतवादी बौद्ध] फेर दूषण दिखा हैं ।
साध्यसाधनविज्ञप्तेर्यदि विज्ञप्तिमात्रता ।
न साध्यं न च हेतुश्च, प्रतिज्ञा हेतु दोषतः ॥ ८० ॥ अर्थ-विज्ञानाद्वैतवादी ऐसैं कहै जो साध्य साधनका विज्ञप्ति कहिये विज्ञान है ताकै विज्ञप्तिमात्रता कहिये विज्ञान मात्र पणा ही है। तातें नतौ साध्य ठहरै न हेतु ठहरै जाते याकै प्रतिज्ञा अर हेतुका दोष आवै है साध्य युक्त पक्षका वचन सो तौ प्रतिज्ञा, अर साधनका वचन सो हेतु, सो ताके कहनैं मैं अपने वचन ही तैं विरोध आवै है। जारौं वह विज्ञानाद्वैततत्वकू औसैं साधै है । नीला पदार्थ अर नीला की बुद्धि इनका साथ ग्रहणका नियम है तातें अभेद है। जैसे नेत्र विकारीकू दोय चन्द्रमा दीपे सो परमार्थतें एक ही है । तैसै नील पदार्थ अर नील बुद्धिकू दोय मानना भ्रम है । जैसै अपना तत्वकू साधै ताकें अपने वचन ही तैं विरोध आवै है। साध्य साधनरूप संवेदन दोय देषि अर एकपणांका एकान्त कहै ताकै विरोध कैसै न आवै है । यहां धर्म धर्मीका भेद वचन कह्या संवदन दोयका वचन कह्या । बहुरि ज्ञान अर वचन ये दोय कह्या बहुरि हेतु दृष्टान्तका भेदका वचन कह्या तो अभेद कहने में विरोध कैसैं न आवै बहुरि वचनतें विरोधका भय करि अवक्तव्य कहै अवक्तव्यका वचनभी वर्णै । बहुरि कहै जो अन्य कोई द्वैत मानै है ताकी मान्य के निषेध कूँ मैं भी भेदका वचन कहूं हौं तौ अद्वैत एकान्त मानने” तौ अन्य दूजा ठहरै ही नाहीं। निषेध कौंन कूँ है । इत्यादि दूषण आवै है । तातै संवेदना द्वैत वादी मिथ्या दृष्टि है।