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आप्त-मीमांसा |
`पत् दोऊरूप है सो कह्या न जाय है । बहुरि कथंचित् दो रूप अर युगपत् न कह्या जाय है तातैं उभय अवक्तव्य है । प्रक्रिया प्रत्यक्ष, अनुमानतैं अविरुद्ध जाननी ॥ ७१ ॥ ७२ ॥
चौपाई ।
नानापना एकता भाय, पक्षपाततैं मिथ्या थाय । अनेकान्त साधें सुखदाय, ज्ञात यथा कीया जिनराय ॥ १ ॥
- इति श्री स्वामी समन्तभद्र विरचित आप्त मीमांसा नाम देवागमस्तोत्रकी देशभाषा वचनिकाविषै सर्वथा नानपना माननेवाले एकान्तके पक्षपातीको संबोधनरूप - चतुर्थ परिच्छेद समाप्त