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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
है कि विवक्षित द्रव्य पर्यायनिकै अन्यद्रव्यमैं प्राप्तकरनेके असमर्थपनाकू
अशक्यविवेचन कह्या, अन्यद्रव्यके गुण पर्याय अन्यद्रव्यमें न जाय, • यह अर्थ है । बहुरि द्रव्य पर्यायनि कैं कांचित् एकता कहनेमें विरोध, वैयधिकरण, संशय, व्यतिकर, शङ्कर, अनवस्था, अप्रतिपत्ति, अभाव ये दूषण नहीं आवें हैं । जातें जैसैं एकता कही तैसैं प्रतीतिमें आव है, कल्पनाकरि वचनमात्र नाहीं कहै है । अर जो प्रतीतिसिद्ध होय तामें दूषण काहेका ? । वहुरि जहां नानापना कह्या तहां परिणामके विशेष हैं, द्रव्यका तो अनादि अनंत एकस्वभाव स्वभाविक परिणाम है । बहुरि पर्यायका सादि, सान्त अनेक नैमित्तिक परिणाम हैं । ऐसैं ही शक्तिमान शक्तिभाव जानना । बहुरि द्रव्य नाम है पर्यायनाम है ऐसा संज्ञाका विशेष है । बहुरि द्रव्य एक है पर्याय बहुत हैं ऐसे संख्याका विशेष है । बहुरि द्रव्यतै तौ एकपना, अन्वयपना ऐसें ज्ञान आदि कार्य होय हैं। बदुरि पर्यायतें अनेकपना, जुदापना आदिका ज्ञानरूप कार्य होना यह प्रयोजनकाविशेष है । बहुरि द्रव्य त्रिकाल. गोचर है पर्याय वर्तमानकालगोचर है ऐसे कालभेद है । बहुरि भिन्नप्रतिभास है ही, सो पूर्वोक्तविशेषनितें ही जान्या जाय है । बहुरि लक्षणभेद भी तैसैं ही जानना । द्रव्यका लक्षण गुणपर्यायवान है । पर्यायका तद्भाव परिणाम ऐसा लक्षण है ऐसैं भेदाभेद एकान्त निराकरण करि अनेकान्तका स्थापन किया । तहां वस्तु स्वलक्षणके भेदतें नाना ही है । कथंचित् अशक्यविवेचनपनातें एकरूप ही है । कथचित् दोऊ भाव हैं । क्रमरूप कहने तैं कथंचित् दोऊ रूप युगपत् न कह्या जाय तातें अवक्तव्य ही है कथंचित् नानात्व अवक्तब्य ही है जातें परस्पर विरुद्धरूप है अर युगपत् न कह्या जाय है । बहुरि कथंचित् एकत्व अवक्तव्य ही है जाते अशक्यविवेचन स्वरूप है अर युग