________________
आप्त-मीमांसा।
अर्थ-स्कंधाः-रूप, वेदना, विज्ञान, संज्ञा, संस्कार ये पांच स्कन्ध हैं । तहां स्पर्श, रस, गंध, वर्णके परमाणु तो रूपस्कन्ध हैं। बहुरि सविल्पक, निर्विकल्पक ज्ञान विज्ञान स्कंध हैं । अर वस्तुनिके नाम सो संज्ञास्कन्ध हैं तथा ज्ञान, पुण्य पापकी वासना है सो संस्कार स्कंध है। तिनके संतानकू संतति कहिये सो यह स्कंधसंतति है ते असंस्कृतहैं अकार्यरूप हैं जातें इनकै संवृतिपना है-उपचारकरि बुद्धिकल्पित हैं । बौद्धमती परमाणूनिकू सर्वथा भिन्न ही मानै है । सो संतान समुदाय आदिहैं ते कल्पनामात्र हैं तातै तिन स्कंध संततिनिकैं स्थिति उत्पत्ति, विनाश नाहीं संभवै है । जातें ये स्कंध संतति विना किये हैं कार्य कारणरूप नाहीं । बुद्धिकल्पितकै काहेका स्थिति, उत्पत्ति विनाश होय ये गधाकी सींगकी तरह कल्पित हैं । तातें पहली कारिकामैं जो कहा था कि विरूप कार्यके लिए हेतुका व्यापार मानिये है सो कहना भी बिगड़े है। स्कंधसंतान ही झूठे तब कौन रह्या हैं जाके अर्थ हेतुका व्यापार मानिये । ऐसैं क्षणिक एकांतपक्ष है सो श्रेष्ठ नाहीं है जैसें नित्य एकान्तपक्ष श्रेष्ठ नाहीं तैसैं यह भी परीक्षा किये सबाध है ।। ५४ ॥ - आमैं नित्यत्व, अनित्यत्व ये दोज पक्ष सर्वथा एकान्तकरि मानैरौं, दूषण दिखाएँ हैं
विरोधान्नोभयैकात्म्यं स्याद्वादन्यायविद्विषाम् । ... अवाच्यतैकान्तेऽप्युक्तिर्नावाच्यमिति युज्यते ॥ ५५ ॥ ___ अर्थ-जे स्याद्वादन्यायके विद्वेषी हैं तिनकै उभय कहिये नित्यत्व;. अनित्यत्व ये दोऊ पक्ष एकस्वरूप नाहीं बनैं हैं जातें दोऊ पक्षमैं विरोध हैं जैसैं जीना, मरना इनमैं विरोध है । तातै एकस्वरूप होय नाहीं। बहुरि विरोध दूषणके भयतै अवाच्यता कहिये अवक्तव्य एकान्त मान.