Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

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Page 91
________________ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्एकस्यानेकवृत्तिने भागाभाबादहूनि वा। भागित्वाद्वाऽस्य नैकत्वं दोषो इत्तेरनाहते ॥६२॥ अर्थ-कार्यकें अर कारणकें बहुरि गुणकें अर गुणीकें, बहुरि सामान्य अर विशेषकैं जो एकान्तकरि अन्यपना, नानापना या सर्वथा भेद ही मानिये तो एक एक द्रव्य आदि कार्यकी अनेककारणनिविर्षे वृत्ति कहिये प्रवृत्तिनाहीं बनें । जाते कार्यादिकमै भाग कहिये खंडनिका अभाव है बहुरि जो विनाभागका सर्वस्वरूपकरि वर्ते तो एक कार्यक बहुत ठहरै सो है नाहीं । बहुरि कार्यद्रव्यकू भागसहित खंडरूप मानिये तो कार्यकै एकपना न ठहरै । ऐसें अरहंतमततै अन्य जो अनाहत, ताके, मतमें वृत्तिका दोष आवै है । अर वृत्ति अवश्य माननी चाहिये, न मानिये कार्य, कारण आदि भावनिका विरोध आवै । तहां यदि एकदेशकरि वृत्ति मानिये तो बनै नाहीं जाते कार्यद्रव्य अर गुण तथा सामान्य इनके अंश मान्या नहीं, निः प्रदेशी मान्या है। बहुरि सर्वस्वरूपकरि मानिये तो जेते कारण होंय तेते कार्यद्रव्य ठहरें । जैसें एक पृथ्वीके अनेक परमाणुरूप कारणनिकरि बने है सो ऐसें तो जेले परमाणु हैं तेते घट होय सो है नाहीं । बहुरि एक संयोग आदि गुणकैं अनेक संयोग आदि गुण ठहरें सो है नाहीं । बहुरि तैसें ही एक एक सामान्यकै अनेक सामान्य ठहरें । ऐसें कार्यादिककी कारणादिविय वृत्तिका दोष आवे है तारौं सर्वथा अन्यपना कर्ताकरणादिकै बनैं नाहीं । कथंचित् भेद माननाही निर्बाधसिद्ध होय है ॥ ६२ ॥ ___ आगें ऐसे ही कार्यद्रव्य अवयवी आदि कैं, अवयवादिक कारणनै सर्वथा भेद होतें देश काल करि भी भेद ठहरै । ऐसैं कहैं हैं देशकालविशेषेऽपि स्यादवृत्तिर्युतसिद्धवत् । समानदेशता न स्यान्मूर्तकारणकार्ययोः ।। ६३ ॥

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