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आप्त-मीप्रांसा।
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ऐसा प्रत्यभिज्ञान वस्तुकू कथंचित् नित्य साधै है । बहुरि सर्व जीवादिक वस्तु हैं सो कथंचित् क्षणिक हैं जातें कालका भेद है यहां भी प्रत्यभिज्ञान प्रमाण ही तैं सिद्ध है जातें क्षणिकविनाभी प्रत्यभिज्ञान होय नाहीं यह क्षणिक भी प्रत्यभिज्ञानहीका विषय है। जातें पूर्व उत्तर पर्यायस्वरूप कालभेद न मानिये तो बुद्धिके संचारका दोष आवै । काल भेदविना बुद्धिका संचार कैसे कहिए । पूर्वदशाका स्मरण अर वर्तमा-- नदशा का दर्शनरूप बुद्धिका संचारण पूर्वात्तर पर्यायविर्षे होय है। तबही प्रत्यभिज्ञान उपजै है। ऐसैं कथंचित् अनित्यत्व एकवस्तुवि. सिद्ध होय है । तामैं विरोध आदि दूषण भी नाहीं हैं । दूषण आव है.
सो सर्वथा एकान्त पक्षमें ही आवै है ॥ ५६ ॥ ___ आगैं, भगवान मानूं फेर पूछी कि जीव आदि वस्तुकें उत्पादविनाश रहित स्थितिमात्र तो कैसे स्वरूप करि है ? अर विनाश, उत्पाद कैसै स्वरूपकरि हैं ? बहुरि त्रयात्मक एक वस्तु कौन प्रकार सिद्ध होय. हैं ? ऐसैं पूछने पर मानूं आचार्य कहैं हैं.. न सामान्यात्मनोदेति न व्येति व्यक्तमन्वयात् ॥
व्येत्युदेति विशेषात्ते सहैकत्रोदयादि सत् ॥५७ ॥ - अर्थ-वस्तु है सो सामान्यस्वरूपकरि तौ न उदेति कहिये उपजै नाहीं है-उत्याद न होय । बहुरि 'न व्येति, कहिये विनशै नाही है जारौं व्यक्त कहिये प्रकट अन्वयस्वरूप है । बहुरि विशेषस्वरूपकरि विनशै भी है, उपजै भी है । बहुरि युगपत् एकवस्तुवि देखिये तब उपजै है, विनशै भी है अर स्थिर भी है ऐसें तीन भावनिरूप सत् वस्तु है । तहां सामान्य स्वरूप तौ सर्व अवथामें साधारणस्वभाव है ताकू अन्वयरूप द्रव्य कहिये है । बहुरि विशेष व्यतिरेकरूप पर्याय है। बहुरि यहां 'व्यक्त, ऐसा विशेषण है सो प्रकट प्रमाणकरि अबाधित.