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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्___ आगें क्षणिकवादी बौद्धमती कहैं हैं जो संतान परमार्थभूत कहिये ।
तो एक संतान संतानीनि तैं भिन्न है ? अथवा अभिन्न है ? या भिन्नाभिन्नरूप है ? अथवा दोऊ भावनितै रहित है ? ऐसा सिद्ध न होय है । तातैं ऐसें है सो कहैं हैं
चतुष्कोटेर्विकल्पस्य सर्वान्तेषूक्तयोगतः । तत्वान्यत्वमवाच्यं च तयोः संतानतद्वतोः ॥ ४५ ॥
अर्थ-क्षणिकवादी बोद्ध ऐसें कहैं जो संतान अर संतानी दोऊ सत्रूप हैं ? कि असत्रूप हैं ? अथवा सत् असत् इन दोऊ रूप है ? या दोऊरूप नाहीं हैं ? । ऐसें सर्व ही धर्मनिविर्षे इनचार विकल्परूप वचनके कहनेका अयोग है । किछू कह्या जाता नाही । ऐसे ही संतान, संतानीकें भी तत्पना, अन्यपना कहनेका अयोग है। जो वस्तुकू धर्मनिरौं अनन्य कहिये तो वस्तुमात्रही ठहरै । बहुरि वस्तु” अन्य कहिये तो इस वस्तुका यह धर्म है ऐसें कहना न बनें । दोऊ. कहिये तो दोऊ दोष आवें । दोऊ रहित कहिये तो वस्तु निःस्वभाव ठहरै । यारौं संतान, संतान के तत्व, अन्यत्व पना अवक्तव्य ही सिद्ध होय है ॥ १५॥
ऐसैं बौद्ध कहैं हैं ताकू आचार्य कहैं हैं जो ऐसें कहने वाले कू ऐसा
कहना
अवक्तव्यचतुष्कोटिर्विकल्पोपि न कथ्यतां । असर्वान्तमवस्तु स्यादविशेष्यविशेषणम् ॥ ४६॥
अर्थ- क्षणिकवादी• आचार्य कहैं हैं जो सर्वधर्मनिविर्षे चार कोटिके विकल्प कहनेका वचन अयोगहै तौ चार कोटिका विकल्प अवक्तव्य है ये बचन भी मत कहो । बहुरि यदि किछू ही न कहना तब अन्यकों प्रतीति उपजोवनका भी अयोग आवै । बहुरि ऐसे होते