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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
मानें हैं ता बुद्धकै अज्ञान, असमर्थता कैसे बने ?। वहुरि मध्यम पक्ष 'अभाव, है सो बौद्धमतीकू कहैं हैं कि अब व्याज कहिये छलकरि कहा (क्या ) ? प्रगटपर्ने तत्त्वका सर्वथा अभाव है ऐसैं स्पष्टकरि कहो किन्तु ऐसैं कहैं ठीकपना न आवै है। मायाचारी करत अनाप्तपनाका प्रसंग आवेगा । ऐसैं सर्वथा अभाव कहतें अवक्तव्य अर शून्य मतमें किछू विशेष है नाहीं । ऐसें बौद्धमाकै शून्यमतका प्रसंग आवै है । बहुरि यदि ऐसा कहैं कि क्षणक्षय तत्वका संकेत किया जाता नाहीं तारै अवक्तव्य है । ता• कहिये है वस्तुका क्षणक्षय मात्र स्वरूप नाहीं सामान्य विशेष स्वरूप तथा नित्य अनित्यरूप जात्यंतर है तातें कथंचित् संकेत करना संभव है। प्रत्यक्षगम्य स्वलक्षणवि. संकेत करना नाहीं है तोऊ विकल्प प्रमाणकरि गम्य है तावि संकेत होय ही है । जो वचनगोचर धर्म है तिनके वि संकेत न संभवै ही है ऐसैं सर्वथा अवक्तव्यवादी जो क्षणिकवादी ताकै सून्यवाद आवै है। ___ आगें कहैं हैं कि याहीतैं क्षणक्षय एकान्तपक्षमैं किये कार्यका तो नाश अर विना कियेका होना प्रसंग आवै है । सो ऐसा तो उपहासका ठिकाना है
हिनस्त्यनभिसंधात न हिनस्त्यभिसंधिमत् ।
बद्धयते तद्वयापेतं चित्तं बद्धं न मुच्यते ॥५१॥ अर्थ-निरन्वयक्षणिक चित् है सो जो चित् प्राणीके धातनेका अभिप्राय करै है कि मैं या प्राणीकू घातूं ऐसा अभिसंधिवाला चित् तौ नाही हनै है-नाहीं घातै है । जातें जा क्षणमें अभिप्राय किया ताही क्षणमैं वह चित् है पीछे अन्यचित् उत्पन्न हुआ । वहुरि चित प्राणीके घातनेका अभिप्राय न करै सो अनभिसंधान चित् प्राणीकू हनै है-घातै है । जातें जानें अभिप्राय किया था सो विनास गया पछेि अन्यचित्