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आप्त-मीमांसा।
अर्थ-तु कहिये पुनः परस्परसापेक्षातैं तो पहली कारिकावि. जनाया अर यहां फेर ताका विशेषणतें आश्रयकरि कहैं हैं । स त्सामान्यतैं तो सर्व जीव आदिक वस्तु हैं सो ऐक्य कहिये एकस्वरूप हैं यातै एकपणांकी प्रतीति निर्विषय नाहीं है । बहुरि न्यारे न्यारे जीव आदिक द्रव्य हैं तिनके भेदतें पृथकपणां है यातै पृथकपणांकी प्रतीति निर्विषय नाहीं है ऎसैं भेदाभेदकी विवक्षा होते असाधारण हेतु मानिये है । सामान्य तौ अभेद विवक्षाकरि हेतु एक मानिये हैं । बहुरि भेदविवक्षाकरि विशेष ताके पक्ष-धर्म आदि भेद मानिये हैं तैसें जानना ॥३४॥ ___ आगैं वादी शंका करै है-जो एकपणां अर पृथकपणां भेद-अभे-. दकी विवक्षारौं साधे सो विवक्षा अर अविवक्षाका तो किछू वस्तु विषय नाहीं, वक्ताकी इच्छा मात्र है । तिसके वशतें तो एकपणां, पृथकपणां ठहरै नाहीं । ऐसैं माननेवाले वादीकू आचार्य कहैं हैं
विवक्षा चाविवक्षा च विशेष्येऽनंतधर्मिणि । .. __ यतो विशेषणस्यात्र नासतस्तैस्तदर्थिभिः ॥ ३५ ॥ __ अर्थ-अनंत हैं धर्म जामैं ऐसा जो धर्मी विशेष्य कहिये विशेषण जामैं पाइये ऐसा जीव आदिक पदार्थ ताविर्षे विवक्षा बहुरि अविवक्षा करिये हैं सो सत् विशेषणकी करिये हैं, असत् विशेषणकी न करिये हैं । कोई पूछ कि ऐसी विवक्षा, अविवक्षा कौन करे है ? ताका उत्तर-जे एकत्व, पृथक्त्व आदि विशेषणनिके अर्थी हैं ते करें हैं। यहां विवक्षा, अविवक्षा वक्ताके पदार्थ कहने की न कहनेकी इच्छारूप है सो जाकू कहने की इच्छा करै सो सत्रूप-विद्यमान होय ताहीकी करे । असत् अविद्यमानकी तौ न करै । सर्वथा असत्के कहनेकी इच्छा किये तिस” कहा अर्थ साधै । सर्वथा असत् तो गधाके. सींगकी तरह अर्थक्रियाकरि शून्य है । ऐसैं पदार्थमैं एकत्व, पृथक्त्व