Book Title: Aapt Mimansa
Author(s): Jaychand Chhavda
Publisher: Anantkirti Granthmala Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 69
________________ ४४ अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम् आदि विशेषण सत्रूप होय तिनहीकू तिनिके अर्थीनिकी विवक्षा, अविवक्षा होय है । असत्रूपकी न होय है । ऐसा जानना ॥ ३५॥ ___ आगैं जो वादी ऐसैं कहैं हैं कि पदार्थनिके परमार्थतें भेद ही है । अभेद कहिये है सो उपचारतें है। जो दोऊ परमार्थतें कहिये तो विरोधनामा दूषण आवै । बहुरि कोई अन्य ऐसैं कहैं हैं जो पदार्थनिकै परमार्थतॆ अभेद ही है अर भेद कहिये है सो कल्पनामात्र है । तथा दोऊ माने विरोध आवै है । तिन दोऊ वादीनिकू आचार्य कहैं हैं प्रमाणगोचरौ संतो भेदाभेदौ न संवृती । . तावेकत्राविरुद्धौ ते गुणमुख्यविवक्षया ॥ ३६ ॥ अर्थ-पदार्थनिविर्षे भेद अर अभेद ये दोऊ हैं ते सत्रूप परमार्थभूत हैं । जातें ये प्रमाणगोचर हैं-प्रमाणके विषय हैं । न संवृत कहिये उपचारस्वरूप नाहीं हैं। यहां भेदपक्ष, अभेदपक्ष, भेदाभेदपक्ष, ऐसे तीन पक्ष कथंचित् परमार्थभूत सिद्ध करने । बहुरि हे भगवन् ! तुझारे मतमैं भेद अर अभेद सत्यार्थरूप हैं ते एकवस्तुविर्षे विरुद्धरूप नाहीं । जिनके मतमैं परस्पर निरपेक्षरूप भेदाभेद है तिनहींकै विरुद्धरूप होय है जातें सवर्था एकान्त प्रमाणगोचर नांहीं है । बहुरि यहां प्रमाणगोचर कह्या सो प्रमाणका स्वरूप आगैं कहेंगे ॥ ३६॥ ___ ऐसैं इस परिच्छेदमैं कथंचित् अद्वैत है कथचित् पृथक्त्व है ऐसें मूल दोय भंग विधि प्रतिषेध कल्पनाकरि एकवस्तुवि. अविरोधकरि प्रश्नके वशतें दिखाये । शेष पंच भंगनिकी प्रक्रिया पूर्व कही तैसैं ही जोड़नी । स्यात् एकत्व-पृथक्त्व, स्यात् अवक्तव्य, स्यात् एकत्व अवक्तव्य, स्यात् पृथक्त्व अवक्तव्य, स्यात् एकत्व पृथक्त्व अवक्तव्य ऐसैं पांच भंग जानने । इनके नययोग पूवौंक्तप्रकार लगावने ॥ ३६॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144