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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
आदि विशेषण सत्रूप होय तिनहीकू तिनिके अर्थीनिकी विवक्षा, अविवक्षा होय है । असत्रूपकी न होय है । ऐसा जानना ॥ ३५॥ ___ आगैं जो वादी ऐसैं कहैं हैं कि पदार्थनिके परमार्थतें भेद ही है । अभेद कहिये है सो उपचारतें है। जो दोऊ परमार्थतें कहिये तो विरोधनामा दूषण आवै । बहुरि कोई अन्य ऐसैं कहैं हैं जो पदार्थनिकै परमार्थतॆ अभेद ही है अर भेद कहिये है सो कल्पनामात्र है । तथा दोऊ माने विरोध आवै है । तिन दोऊ वादीनिकू आचार्य कहैं हैं
प्रमाणगोचरौ संतो भेदाभेदौ न संवृती । . तावेकत्राविरुद्धौ ते गुणमुख्यविवक्षया ॥ ३६ ॥ अर्थ-पदार्थनिविर्षे भेद अर अभेद ये दोऊ हैं ते सत्रूप परमार्थभूत हैं । जातें ये प्रमाणगोचर हैं-प्रमाणके विषय हैं । न संवृत कहिये उपचारस्वरूप नाहीं हैं। यहां भेदपक्ष, अभेदपक्ष, भेदाभेदपक्ष, ऐसे तीन पक्ष कथंचित् परमार्थभूत सिद्ध करने । बहुरि हे भगवन् ! तुझारे मतमैं भेद अर अभेद सत्यार्थरूप हैं ते एकवस्तुविर्षे विरुद्धरूप नाहीं । जिनके मतमैं परस्पर निरपेक्षरूप भेदाभेद है तिनहींकै विरुद्धरूप होय है जातें सवर्था एकान्त प्रमाणगोचर नांहीं है । बहुरि यहां प्रमाणगोचर कह्या सो प्रमाणका स्वरूप आगैं कहेंगे ॥ ३६॥ ___ ऐसैं इस परिच्छेदमैं कथंचित् अद्वैत है कथचित् पृथक्त्व है ऐसें मूल दोय भंग विधि प्रतिषेध कल्पनाकरि एकवस्तुवि. अविरोधकरि प्रश्नके वशतें दिखाये । शेष पंच भंगनिकी प्रक्रिया पूर्व कही तैसैं ही जोड़नी । स्यात् एकत्व-पृथक्त्व, स्यात् अवक्तव्य, स्यात् एकत्व अवक्तव्य, स्यात् पृथक्त्व अवक्तव्य, स्यात् एकत्व पृथक्त्व अवक्तव्य ऐसैं पांच भंग जानने । इनके नययोग पूवौंक्तप्रकार लगावने ॥ ३६॥