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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
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पृथकूपणां कहिये भिन्नपणां होतें ते दोऊ अपृथकू कहिये अभिन्न ही ठहरे हैं । ऐसैं यह पृथक्त्वनामा गुण ही नहीं ठहरे है । जातैं पृथक्त्वगुणकूं एककूं अनेक पदार्थनिमैं ठहऱ्या मानै है सो पृथक्त्वगुण कहना निष्फल भया । यहां ऐसा जानना जो वैशेषिक द्रव्य, गुण, कर्म, सामान्य, विशेष और समवाय ऐसें छह पदार्थ मानैं है । अर तिनके उत्तरभेद ऐसैं हैं जो द्रव्य नौ, गुण चौवीस, कर्म पांच, सामान्य दोय प्रकार, विशेष अनेक तथा समवाय एक है । तिनमैं गुणके चौवीस भेदनिमैं एक पृथक्त्वनामा गुण मानैं है सो यह गुण सर्व द्रव्य गुण आदि पदार्थानिकूं भिन्न भिन्न करै है ऐसा मानैं है । बहुरि नैयायिक प्रमाण, प्रमेय, संशय, प्रयोजन, दृष्टान्त, सिद्धान्त, अवयव, तर्क, निर्णय, वाद, जल्प, वितंडा, हेत्वाभास, छल, जाति, निग्रहस्थान ऐसें सोलह पदार्थ माने है तिनकूं भिन्न भिन्न ही माने है । तिनकै पदार्थनिका सर्वथा भिन्न पक्ष होने तिनकूं पूछिये कि पृथक्त्वनामा गुणतैं द्रव्य गुण ये दोऊ अभिन्न हैं कि भिन्न हैं ? जो कहैअभिन्न हैं तौ सर्वथा भिन्नका एकान्त पक्ष कैसे ठहरै | बहुरि कहै - जो द्रव्य, गुण, पृथवत्वगुणतैं भिन्न हैं तौ द्रव्य, गुण अभिन्न ठहरै | पृथक्त्वगुण न्यारा है तिसनें द्रव्य, गुणका कहा किया किछू भी नाहीं किया जातैं पृथक्त्व गुण एक है अर अनेक मैं ठहरा माने हैं । ऐसैं इस कारिकाके व्याख्यानतैं सर्वथा भेदवादी नैयायिक, वैशेषिककूं. सर्वथा पृथक्त्व-एकान्तपक्षमैं दूषण दिखाया ॥ २८ ॥
आगैं अनित्यवादी बौद्धमती पृथक्त्व - एकान्त ऐसैं मान है - जो सर्व पदार्थ परमाणुरूप, निरंश, निरन्वय, विनश्वर, भिन्न भिन्न हैं । तिनमैं काहू प्रकार मिलाप जोड़ - नाहीं । ऐसा एकान्त मानें है ताविपैं दूषण प्रगट करनेकी इच्छाकर आचार्य कहैं हैं
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