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अनन्तकीर्ति-ग्रन्थमालायाम्
तौ भगवान् महान् स्तुतियोग्य ऐसैं हेतुनितें नाहीं हैं ऐसे कया है । बहुरि दोषावरण इत्यादि दोय श्लोकनिमैं भगवान् सर्वज्ञ वीतराग हैं ऐसा अनुमान किया है । बहुरि स त्वमेवासि इत्यादि एक श्लोकमैं ऐसैं सर्वज्ञ वीतराग तुम अरहंत ही हो ऐसैं कह्या है । बहुरि त्वन्मता इस्यादि दोय श्लोकमैं अन्य आप्त नाहीं हैं ऐसा कह्या है। ऐसे आठ श्लोकमैं तो पीठबंध है। बहुरि आगें भावाभावपक्षका एकांतके निषेधका पांच श्लोक है । तामैं भाव १, अभाव २ अर भावाभाव ३, अवक्तव्य ४, भावावक्तव्य ५, अभावावक्तव्य ६, भावाभावावक्तव्य ७, ऐसैं विधिनिषेधके सात भंगकार दूषण दिखाया है । बहुरि आगें नव श्लोकनिमैं भावाभावकी सातूं पक्षका अनेकांत रूप स्थापन है। बहुरि एक श्लोकमैं अगले परिच्छेदनिमैं इनि पक्षनिके सप्तभंग करनेकी सूचनिका है । ऐसैं प्रथम परिच्छेद समाप्त किया है ॥ १ ॥ ___ आगें द्वितीय परिच्छेदमैं एकत्वानेकत्व पक्षका तेरा श्लोकनिमैं वर्णन हैं । तहाँ चार श्लोकनिमैं अद्वैत पक्षके एकान्तका निषेध है। बहुरि चारि श्लोकनिमैं प्रथक्त्व-एकान्त पक्षका निषेध है। बहुरि एक श्लोकमैं दोउ पक्ष अर अवक्तव्यपक्षका निषेध है । बहुरि चार श्लोकनिमैं इनि पक्षनिके अनेकान्तकरि स्थापन है। ऐसे द्वितीय परिच्छेद समाप्त किया है ॥२॥ ___ आगैं तृतीय परिच्छेद नित्यानित्य पक्षका है तामैं श्लोक चोईस हैं। तहां चार श्लोकनिमैं तौ नित्यत्व-एकान्त पक्षका निषेध है । बहुरि चौदह श्लोकनिमैं क्षणिक-एकान्त पक्षका निषेध है । बहुरि एक श्लोकमैं दोउकी पक्ष अर अवक्तव्य पक्षका निषेध है । बहुरि पांच श्लोकनिमैं अनेकान्तकरि इन पक्षनिका स्थापन है। ऐसैं तृतीय परिच्छेद समाप्त किया है ॥ ३ ॥