________________
अनन्तकीर्ति मन्त्यमालायाम्
naamanaraamana
है। तातें दोऊकू एकरूप माननां युक्त होइ नाही, जातै विरोध दूषण आवै । यातें ऐसा माननां कल्याणरूप नाही । बहुरि भाव अभाव अर दोज़ इन तानूं ही पक्षमैं दोष आया जाणि अवक्तव्य-एकान्त पक्षका ग्रहण करै ताकै अवक्तव्य तत्व है ऐसा कहनां भी न बर्षे तब परकू अपणां अवक्तव्य तत्व कैसे जणावै वचन विनां ज्ञानमात्रहीतैं तो परकू जनावनां बर्षे नाही तातें अवक्तव्य एकान्त मानना भी कल्याणकारी नाही ॥१३॥ ___ आ फेर मानूं भगवान पूछया-जो हे समन्तभद्र ! भाव, अभाव, भावाभाव, अवक्तव्य एकान्त मानें हैं तिन पक्षनिमैं तो दूषण दिखाय परमतका निराकरण किया परन्तु वादीकी जीति तौ परमत-निराकरण अर स्वमतका स्थापन इन दोऊनकै आधीन है तातें हमारा इष्ट-तत्व मत है सो कैसैं प्रसिद्ध प्रमाणकरि नाही बाध्या जाय है सो कहो ऐसैं पू मानूं आचार्य भाव आदि चारूं पक्ष कथंचित् निरबाध दिखावै
कथंचित्ते सदेवेष्टं कथंचिदसदेव तत् ।
तथीभयमवाच्यं च नययोगात्र सर्वथा ॥ १४ ॥ अर्थ-हे भगवन् ! तुमारा इष्टतत्व है सो कथंचित् कोई प्रकार सदेव कहिए सत् ही है । बहुरि कथंचित् असदेव कहिए कोई प्रकार असत् ही है । बहुरि तैसैं ही कोई प्रकार उभयमेव कहिये कोई प्रकार सत् असत् दोऊ ही है । बहुरि तैसैं ही अवाच्य कहिए कोई प्रकार अबक्तव्य ही है । बहुरि चकारकरि तैसैं ही कोई प्रकार सदवक्तव्य है। बहुरि तैसे ही कोई प्रकार असदवक्तव्य ही है ? बहुरि तैसैं ही कोई ...प्रकार सत् असत् अवक्तव्य ही है सो ऐसा काहेरौं है ? नययोगात् कहिए
द्रव्यार्थिक फ्यार्थिक आदि नयनिके योगरौं है, यह कोई प्रकारका