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आप्त-मीमांसा।
२१ आगैं अभावैकान्त पक्षविर्षे दूषण दिखावै हैं ।
अभावैकान्तपक्षेपि भावापन्हववादिनाम् ।
बोधवाक्यं प्रमाण न केन साधनदूषणम् ॥ १२ ॥ अर्थ-अभाव कहिये किछू भावरूप वस्तू नांही ऐसा अभाव एकान्त पक्ष है ताकै हो” भावका लोप भया सो इस भावके लोप कहने वाले वादीनिकै बोध कहिये ज्ञान जिसतै अपणां अर्थ-तत्वका साधन दूषण करिये अर वाक्य कहिये परका अर्थतत्वका साधनदूषणरूप वचन इनका अभाव आया तब प्रमाणकी व्यवस्था न ठहरी तब अपणां अभावैकांत पक्ष काकू थापै अर परका भावपक्ष काहेरौं दूषै ? बहुरि जो स्वपक्षका साधन दूषण मानिये तो भावपक्षकी सिद्ध होइ है। ऐसा दूषण आवै है तातै अभावैकान्तपक्ष कल्याणकारी नांहीं है ॥१२॥ ___ आगैं कहैं हैं-जो परस्पर अपेक्षारहित भावाभाव पक्ष अवक्तव्यपक्ष भी कल्याणकारी नांही है ऐसैं स्वामी समन्तमद्राचार्य कहैं हैं
विरोधानोमयैकान्तं स्याद्वादन्यायविद्विषां ।
अवाच्यतैकान्तेप्युक्तिर्नावाच्यमिति युज्यते ॥ १३ ॥ अर्थ-उभय कहिये भाव अर अभाव ये दोऊ एकात्म्यं कहिये एकस्वरूप सो नाही है तातै स्याद्वादन्यायके विद्विषां कहिये शत्रु-विरोधी तिनकै भाव अभाव दोऊ एक स्वरूप कहनेंमें परस्परपरिहारस्थितिलक्षण विरोध आवै है। बहुरि अवाच्य कहिये कहनेंमैं न आवै ऐसा अवक्तव्य एकान्त मानिये तो वस्तु अवक्तव्य है, ऐसो कहनौं युक्ति न होइ है। तहां ऐसा जाननां जो भाव पक्षमैं अर अभाव पक्षमैं न्यारे न्यारे मानें दोष आवै ताकै दूर करनेकी इच्छाकरि दोऊ• एकस्वरूप माननेवालेकै विधि निषेधके परस्परपरिहारस्थितिस्वरूपपणां.