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आपत-मीमांसा।
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जैसैं घटवि अस्तित्व है जैसैं यह पट नहीं है ऐसा नास्तित्व भी है । जो इहां नास्तित्व नाहीं होय तो घट पट भी होइ जाय । ऐसैं अस्तित्व धर्म है सो एक धर्मावि. नास्तित्वधर्मकरि अविनाभावी जानना ॥१७॥
आगैं फेर पूछे-जो अस्तित्व तौ नास्तित्वकरि अविनाभावी होइ अर नास्तित्व अस्तित्वकरि अविनाभावी कैसे होइ, आकाशके फूलकै तौ अस्तित्वका कोई प्रकार भी संभवै नाहीं बाकै तो नास्तित्व ही है ऐसैं पू0 आचार्य कहैं हैं
नास्तित्वं प्रतिषेध्येनाविनाभाव्येकधर्मिणि ।
विशेषणत्वाद्वैधयं यथाऽभेदविवक्षया ॥१८॥ अर्थ-नास्तित्व धर्म है सो अपना प्रतिषेध्य जो अस्तित्व धर्म ताकरि एक धर्मावि अविनाभावी है । जातें यह विशेषण है जैसैं हेतुके प्रयोगविर्षे वैधर्म्य है सो अभेद विवक्षा कहिये साधर्म्यरूप प्रतिषेध्यधर्मकरि अविनाभावी है यह सर्व हेतुवादीनिकै प्रसिद्ध है, जैसैं शब्दकै अनित्यपणां साधनेंविर्षे कृतकपणां हेतु आकाशादि विपक्षमैं धर्मरूप है सो घटादिसपक्ष” समाधान धर्मरूप जो साधर्म्य ताकरि अविनाभावि विशेषण है ऐसा उदाहरण जीवादि एकधर्मीविर्षे पररूपादिकरि नास्तित्वकू स्वरूपादिककरि अस्तित्वकरि अविनाभावी साथै ही है । इहां भावार्थ ऐसा-जो अस्तित्व नास्तित्व दोऊ परस्पर विधिनिषेधस्वरूप हैं, विधि विना निषेध नाहीं निषेध विनां विधि नांहीं ॥ १८ ॥ __ आगें पूछे है--जो अस्तित्व (नास्तित्व) तौ विशेषण कहिये हैं विशेष्य नाहीं है। तारौं अस्तित्व नास्तित्वके अविनाभावि साधनेंकू दोय कारिका अनुमानप्रयोगकी कही सो विशेषणरूप धर्म तौ साध्यसाधनकै आधार होइ नाहीं तातै अनुमानका प्रयोग कैसैं बगैं, केइ तो ऐसैं कहैं हैं।