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आप्त-मीमांसा। ___ आगें चतुर्थ परिच्छेद भेदाभेद पक्षका है। तामैं श्लोक बारह हैं। तिनमैं छह श्लोकनिमैं तौ भेद-एकान्त पक्षका निषेध है। बहुरि तीन श्लोकनिमैं अभेद पक्षका निषेध है । बहुरि एक श्लोकमैं दोउकी पक्ष अर अवक्तव्य पक्षका निषेध है । बहुरि दोय श्लोकनिमैं अनेकान्तका स्थापन है । ऐसें चतुर्थ परिच्छेद समाप्त किया है ॥४॥
आगैं अपेक्षा-अनपेक्षाकी पक्षका पंचम परिच्छेद है तामैं तीन श्लोकनिमैं एकान्तका निषेध अनेकान्तका स्थापन है । ऐसें पांचमां परिच्छेद समाप्त किया है ॥ ५॥
आरौं हेतु आगमकी पक्षका छठा परिच्छेद है तामैं तीन श्लोक हैं। तिनमैं एकान्तका निषेध अनेकान्तका स्थापन है। ऐसे छठा परिच्छेद समाप्त किया है ॥ ६॥
आगैं अंतरंग बहिरंग तत्वकी पक्षका सातमा परिच्छेद है । तामैं नव श्लोक हैं । तहां च्यारि श्लोकनिमैं तो एकान्तका निषेध है । अर पांच श्लोकनिमें अनेकान्तका स्थापन है । ऐसें सातमा परिच्छेद समाप्त किया है ॥ ७ ॥
आरौं दैव पौरुष की पक्षका आठमा परिच्छेद है तामैं श्लोक च्या एकान्तका निषेध अनेकान्तका स्थापन है । ऐसें आठमां परिच्छेद समाप्त किया है ॥ ८ ॥
आगैं पुण्य पापके बंधकी रीतिका नवमां परिच्छेद है । तामैं श्लोक च्यारमैं एकान्तका निषेध अनेकान्तका स्थापन है । ऐसें नवमां. परिच्छेद समाप्त किया है ॥ ९ ॥
आगै दशमां परिच्छेदमैं उगणीस श्लोक हैं तिनमैं तीन श्लोकनिमें तो अज्ञानतें बंध अर अल्पज्ञानतें मोक्ष ऐसा एकान्तका निषेध करि अर बंध मोक्ष जैसैं होय तैसैं अनेकान्त” स्थापन किया है ।