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आध्यात्मिक आलोक उपासिका है और उसकी छाप आज भारतीयों पर भी दिखाई दे रही है। वे अपनी संस्कृति के मूल तत्व "सत्यं शिवं' को भूल से गए हैं। उनकी दृष्टि में आज सिर्फ सुन्दरता ही समायी हुई है। वे इसके पीछे छिपी हुई बुराइयों पर ध्यान नहीं देते किन्तु यह ठीक नहीं। यदि शीघ्रता में एक अत्यन्त सुन्दर भवन तैयार कर लिया जाय और वर्षा ऋतु में उससे पानी टपकने लगे तो उस भवन की सुन्दरता किस काम की ? यदि एक बहुत सुन्दर बांध बनाकर तैयार कर लिया जाये और बाद में उसमें से पानी बहने लगे तो उसका सौन्दर्य किस काम का ? हर क्षेत्र में सुन्दरता के साथ सत्य
और शिवं भी होना चाहिये। उचित तो यह है कि पहले सत्यं और शिवं हो फिर सुन्दरं । यही भारतीय संस्कृति की विशेषता मानी गयी है।
प्राचीन काल की मिट्टी की दीवारें आज कुदाली से भी मुश्किल से टूटती हैं जबकि आज की ईंटों की पक्की दीवारें अनायास टूट-फूट जाती हैं। मतलब यह कि कोई भी वस्तु चाहे कितनी ही सुन्दर क्यों न हो; यदि उसमें “सत्यं और शिवं' तत्व नहीं हैं तो वह वस्तु वास्तविक आदर योग्य नहीं होती। सौरभहीन कागज का फूल चमक-दमक और कमनीय कलेवर वाला होते हुए भी उसे कोई भी नहीं सूंघता । यह तो बाहरी सुन्दरता की बात हुई। जीवन की दशा भी ठीक यही है ।
आज हम कोरे सौन्दर्य के उपासक बन गये हैं और अच्छी वेश-भूषा ही आज के जीवन का उच्चस्तर माना जाता है। इससे जीवन अप्रमाणिक और अवास्तविक बन गया है। जीवन को चमकाने वाली नैतिकता और आध्यात्मिकता की अतिशय कमी हो गयी है। जैसे पोषक-शक्ति के अभाव में शरीरं पीला और व्याधिग्रस्त होकर बेकाम बन जाता है, वैसे ही आध्यात्मिकता के अभाव में भारतीय संतति हतप्रभ और उत्साह-विहीन होती जा रही है। इसका मूल कारण है साधना की कमी और माता-पिता से प्राप्त होने वाले सुसंस्कार का अभाव। जीवन-निर्माण में माता-पिता का महत्त्व -
. जीवन की साधना में माता-पिता के उत्तम संस्कार का बड़ा हाथ रहता है। माता के उत्तम संस्कार पाकर ही महात्मा गांधी श्रद्धाशील और संस्कारवान बने रहे। उन्होंने यद्यपि बैरिस्टरी तक पाश्चात्य शिक्षा ग्रहण की किन्तु उनके आहार-विहार एवं आचार-विचार सभी भारतीय ढंग के बने रहे। क्योकि उनकी माता बड़ी धर्मशीला थीं, विलायत जाने के पूर्व माताजी उन्हें संत रायचन्द्र स्वामी के चरणों में ले गईं और वहीं उनसे संकल्प करवाया कि सात्विक भोजन एवं सदाचार का सदा पालन करूंगा। इसी प्रेरणा का प्रभाव है जो गांधीजी को विलायत के विलासी वातावरण में भी गिरावट से बचाकर पवित्र रख सका ।