Book Title: Surajprakas Part 02
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 回 राजस्थान पुरातन ग्रन्ममाला प्रधान सम्पादक-पद्मश्री जिनविजय मुनि, पुरातत्वाचार्य [ सम्मान्य सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ] 屋面成的图 W-57033 ग्रन्थाङ्क ५७ कविया करणोदानजी चारण कृत सूरजप्रकास भाग २ राजस्थानप्रादिप्रतिष्ठान प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रधान सम्पादक-पद्मश्री जिनविजय मुनि, पुरातत्त्वाचार्य [ অন্য দলে, ফজলে রাখি? ঘদিস্তাদ, জধৈg ] ग्रन्थाङ्क ५७ कविया करणीदानजी चारण कृत सूरजप्रकास भाग २ प्रकाशक राजस्थान राज्य संस्थापित राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR जोधपुर ( राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला राजस्थान राज्य द्वारा प्रकाशित सामान्यत: अखिल भारतीय तथा विशेषतः राजस्थानदेशीय पुरातनकालीन संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, राजस्थानी, हिन्दी आदि भाषानिबद्ध विविध वाङ्मयप्रकाशिनी विशिष्ट ग्रन्थावलि प्रधान सम्पादक पद्मश्री जिनविजय मुनि, पुरातत्त्वाचार्य सम्मान्य संचालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ऑनरेरि मेम्बर ऑफ जर्मन ओरिएन्टल सोसाइटी, जर्मनी; निवृत्त सम्मान्य नियामक (ऑनरेरि डायरेक्टर ), भारतीय विद्याभवन, बम्बई; प्रधान सम्पादक, सिंघी जैन ग्रन्थमाला ग्रन्थाङ्क ५७ कविया करणीदानजी चारण कृत सूरजप्रकास भाग २ प्रकाशक राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविया करणीदानजी चारण कृत सूरजप्रकास भाग २ सम्पादक श्री सीताराम लालस वृहत् राजस्थानी शब्दकोशके कर्ता प्रकाशनकर्ता राजस्थान राज्याज्ञानुसार सञ्चालक, राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान जोधपुर ( राजस्थान ) [ ख्रिस्ताब्द १९६२ विक्रमाब्द २०१८ ) प्रथ मावृत्ति १००० । भारतराष्ट्रीय शकाब्द १८८३ । मल्य ६.५० मुद्रक- श्री हरिप्रसाद पारीक, साधना प्रेस, जोधपुर Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सञ्चालकीय वक्तव्य कविया करणीदानजी कृत सूरजप्रकासके प्रथम भागका प्रकाशन राजस्थान पुरातन ग्रन्थमालामें गत वर्ष हो चुका है। अब इस ग्रन्थका द्वितीय भाग भी उक्त ग्रन्थमालाके ग्रन्थाङ्क ५७के रूपमें उत्सुक पाठकोंको प्रस्तुत किया जा रहा है। __इस भागमें जोधपुरके महाराजा गजसिंह, जसवन्तसिंह, अजीतसिंह और अभयसिंहके शासनकालका वर्णन है, जिससे अनेक नवीन ऐतिहासिक तथ्योंका सङ्केत मिलता है। इसी भागमें महाराजा अभयसिंह और सरबुलंदखाँके बीच हुए अहमदाबाद-युद्ध के कारण भी बताए गए हैं। चारणकुलोत्पन्न महाकवि करणीदानजी कविया महाराजा अभयसिंहके प्रमुख दरबारी कवि थे, अतएव प्रस्तत ग्रन्थमें वर्णित तथ्य अधिकांशमें विश्वसनीय कहे जा सकते हैं। करणीदानजी अपने युगके विशेष प्रतिभासम्पन्न , अनुभवी और विद्वान् कवि थे, जिनका परिचय पाठकोंको प्रस्तुत काव्यसे स्वतः ही प्राप्त हो जायगा। सूरजप्रकासका सम्पादन, वृहत् राजस्थानी शब्द-कोशके कर्ता व राजस्थानके विशिष्ट विद्वान् श्री सीतारामजी लाळसने निर्दिष्ट प्रणालीके अनुसार परिश्रमपूर्वक किया है, तदर्थ वे धन्यवादके पात्र हैं । महाराजा अभयसिंह और सरबुलंदखाँके बीच हुए अहमदाबादयुद्ध का प्रोजस्वी वर्णन और ग्रन्थ-सम्बन्धी विशेष ज्ञातव्य अादि विस्तृत रूपमें यथाशक्य शीघ्र ही ग्रन्थके तृतीय भागमें प्रकाशित किये जावेंगे । राजस्थानी भाषाके प्रस्तुत ग्रन्थका प्रकाशन भारत सरकारके वैज्ञानिक और सांस्कृतिक मन्त्रालयके आर्थिक सहयोगसे आधुनिक भारतीय भाषा-विकास-योजनाके अन्तर्गत किया जा रहा है, तदर्थ हम भारत सरकारके प्रति आभारी हैं। मुनि जिनविजय ता० १४-३-६२ सम्मान्य सञ्चालक सर्वोदय साधना प्राधम, राजस्थान प्राच्य-विद्या-प्रतिष्ठान चन्देरिया चित्तौड़, मेवाड़ जोधपुर Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विषय - सूची पृष्ठ संख्या or W Y WCOM भूमिका-ग्रन्थ-सार चौथौ प्रकरण १ अथ महाराजा गजसिंघरौ वरणण २ महाराजा स्रोगजसिंहजीरौ दान-वरणण पांचमौं प्रकरण १ राव अमरसिंघजीरौ वरणण २ महाराजा जसवंतसिंघरौ वरणण ३ उजेणी-जुध-वरणण ४ महाराजा स्रीजसवंतसिंघजीरौ दान-वरणण छठौ प्रकरण १ महाराजा अजीतसिंघजीरौ जनम २ दिली जुध-वरणरण ३ महाराजकुमार महाराजा स्त्रीप्रभसिंघजीरी जनमपत्री ४ महाराजकुमाररा सामुद्रिक चिह्नारौ वरणण ५ महाराजा अजीतसिंघरं स्वागतरौ वरणण ६ सवाई राजा जयसिंहसं बादसाहरौ प्राबेर छीनणी पर महाराजा अजीतसिंहरी मदद करणी __ महाराणा अमरसिंह दुतोयसूं दोनां राजानारौ मिळरण सारू उदैपुर जाणौ ८ महाराजारौ जोधपुर पर अमल करणी * महाराजा अजीतसिंहरी सवाई राजा जयसिंहरी मदद करणी १० महाराजा अजीतसिंहरी सांभरपुरर वास्तै तैयारी करणी, जोधारारी वरणण ११ बादसाह बहादुरसाहरी महाराजा अजीतसिंहसू कुपित होणो प्रर महाराजरौ दिलीरी सलतनतमें उथल-पुथल करणौ १२ महाराजा अजीतसिहरौ दूजा राजावारे साथ जोधपुर आगमन बादसाहरौ मुदफरखानन महाराजा अजीतसिंह पर अजमेर ___ छोडावरण सारू दळ बळ सहित भेजणौ १४ महाराजा अजीतसिंहजीरौ महाराजकुमार अभयसिंहजी मुदफरसं मुकाबलो करण सारू तैयार कर सामौ भेजणौ १५ महाराजकुमार जोसमें करणी १६ महाराजकुमार अभयसिंहजोरी तैयारीरो वरणरण १७ मुदफरखानरौ भाग जाणौ १८ महाराजकुमाररौ सैरमें भाग लमारणी तथा माल लूटणी १६ बादसाहरौ भयभीत होणौ २० साहज्यांपुर लूटणी २१ महाराजा अजीतसिंहजी महाराजकुमार अभयसिंहजीरो मिळणौ ur ज १०० १०२ १११ Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ १३४ १३६ १४० १४० १४१ १४३ १४४ १४७ १४८ १४६ १४६ १५२ १५४ सातौं प्रकरण १ दिलीमें महाराजा अभयसिंहरै राजतिलकरौ वरणण २ महाराजा अभयसिंहरौ जोधपुर विस यागमन ३ महाराजा अभयसिंहजीर स्वागतरौ वरणण ४ महाराजा अभयसिंहर लवाजमारौ वरणण ५ लवाजमारा हाथियारों वरणण ६ लवाजमारा घोड़ारौ वरणम ऊंटांरौ वरणण बाघांरोवरणण ६ बरसणारथी प्रजार समहरी वरणम १० महाराजा अभयसिंहजोरो वधावी ११ बाजाररौ वरणण १२ प्रजारा महाराजारा दरसण करणा १३ प्राभूखणारौ वरणण १४ महाराजा अभयसिंहजीरे दरबाररी धरणण १५ अंतहपुररौ वरणग जोधपुरमें महाराजा अभयसिंहजीरी राज्याभिसेक १७ महाराजारौ अंतहपुरमें पधारणौ १८ अथ संगीत नित भेद वरणण १९ प्रातकालीन नगररौ वरणण २० स्त्री वरण २१ घोड़ारौ वरणण २२ हाथियारौ वरणण २३ प्रथम बगीचांरौ वरणण २४ तळावरौ वरणण २५ महाराजा प्रभसिंघजीरो वरणण २६ अथ खटभाखा वरणण २७ अथ प्रथम भाखा संसक्रत वरणण २८ इति खट भाखा लक्षण २६ अथ नाग भाखा ३० नाग भाखा टिप्पणं ३१ अथ भाखा अपभ्रंस ३२ अथ अपभ्र'स टिप्पणं ३३ अथ मगध देसी भाखा ३४ अथ मगध देस भाखा टिप्पणं ३५ अथ सूरसेनी ३६ अथ प्राक्रेत भाखा वरणण ३७ अथ व्रजभाखा वरणण ३८ प्रथ मरधर भाखा ३६ उत्तरको भाखा पंजाबी ४० अथ दक्खणको भाखा ४१ अथ सोरठकी भाखा ४२ अथ सिंधी भाखा १६० १६७ १६६ १७० १७७ १६६ १६६ १६६ १६६ १६७ १६७ १६७ १९८ १६८ १६८ १६९ २०१ २०२ २०२ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०५ २०६ २०८ २६० २१२ २१४ २१५ २१६ २१७ २२१ २२३ २२६ २३० سه سه २३६ २३९ २४० ४३ पहलवानारो वरमण ४४ हाथियांरी लड़ाईरौ वरणण ४५ सिकाररौ वरणण ४६ सिंघारी सिकार ४७ सिंघां पर भैसारी लड़ाई ४८ सूरांरी सिकाररौ वरणण ४६खरगोस हिरणादिरी सिकाररौ वरणण ५० मांस तथा भुजाईरौ वरणण ५१ मैफलरौ वरणण ५२ भोजनांरी वरणण ५३ मांसरोवरणण ५४ महाराजारौ नागौर पर हमलो करणरी तैयारी ५५ नागौर पर हल्लो ५६ जैसळमेररा विवाहरौ वरणण ५७ महाराजारो दिल्ली प्रस्थान ५८ हमीदखारौ गुजरात में प्राजाद होणौ ५६ पातिसाहरौ सर बुलंदन गुजरातरौ सूबादार वणाणो ६० सर बुलंदरौ अहमदाबाद पर अमल करणौ ६१ सर बुलंदस्वारी अहमदाबाद पर सुतंतर बादसाह बणणौ ६२ महाराजा अभैसींघजीर प्रभावरी वरणण ६३ महाराजा प्रभसीघरी दिलीमें सूररी सिकार करणो तथा बादसाह सूं प्रांमखासमें नाराज होणौ अर पातसाहजीरौ अभैसींघजीनूं मनावणी . . ६४ बादप्ताह मुहम्मदसाह खने गुजरातसूं खबर प्रावणी ६५ सर बुलंदसू जुध करण सारू बादसाह मुहम्मदसाहरौ बीड़ो फेरणौ ६६ कवित्त पानका वणाव ६७ महाराजा प्रभैसींघजीरौ दरबारमें सर बुलंदसू जुध करण सारू पानरौं बीड़ी उठाणौ बादसाह मुहम्मदसाहरौ महाराजा अभैसींघजीनं जोस देराणी बादसाह मुहम्मदसाहरी पोरसू महाराजा अभैसींघजीनें जुधारथ सहायता सारू धन पर अस्त्र सस्त्र वेणा ७० महाराजा अभयसिंहजीरौ डेरा प्राणी पर जुधरी खबर चारों ओर फलणी ७१ महाराजारौ दिलीतूं विदा होय जयपुर प्रावणी ७२ जयपुरमें महाराजा अभंसींघजीर स्वागतरी तैयारी वरणण दोनों राजावांरी मिळणी ७३ दोनां राजावांरी जयनिवास बागमें पधारणी ७४ दोनूं राजावांरी अपणा सुभटारे साथ भोजन करणों ७५ महाराजा प्रभसीधजी पर जैसींघजीरी प्रापसरी सलाह ७६ ऊंटारो वरणण ७७ महाराजा अभैसींघजी पर बखतसीधजीरौ माहोमाह मिळणौ ७८ महाराजा अभैसींघजीरौ जोधपुर दिस प्रागमन २४० २४१ २४२ २४५ . २४६ २४७ २४८ २४८ २४६ १५० ३५१ २५१ २५२ २५३ २५४ २५५ २५५ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० २६२ २६५ २६६ २६७ २६६ २७३ २७५ २७५ २७७ २७६ [ ४ ७६ महाराजा अभैसींघजीरौ अहमदाबादरै जुध सारू प्रापरा सामंतांनं .'' फुरमांण भेजणौ ८० ठाम ठामसू मारवाड़रा सामंतारौ जोधपुरमें एकठौ होवणी ८१ फौजरी सामान ले जाणे वाळा ऊंटारौ वरणण ८२ ऊंटांन बैठा कर सामान उतारणौ अर तंबू ताणणा ८३ डेरांरौ वरणण ८४ जुधरा सांमांनरौ वरणण ८५ तोपरी पूजा अर तोपांरी वरणण ८६ हाथियारी ठरणण ८७ महावतारौ वरणण ८८ घोड़ारो वरणण ८६ वाहणारा नाम १० महाराजा अभैसींघजीरौ वरणण ६१ महाराजा अर्भसिंहका सिरोही पर आक्रमण ६२ सर बुलदखाँन महाराजरौ पत्र लिखणी ६३ महाराजा अभयसिंहने सरदारांरे साथ वडौ दरबार करणौ और सरदारांरौ जोसपूरण उत्तर देणौ १४ महाराजा अभयसिंहजीरौ बखतसिंहजीनं बुलाणी ६५ बखतसिंघजीरौ वरणण ६६ महाराजा अभैसींघजीरौ वरणण ६७ महाराजा अभंसींघजीरौ जोस १८ महाराजा अभैसींघजीरौ सेनामें भासण तथा सूरवीरांरो धरम समझावणौ जोधारी तैयारीरौ वरणण १०० सेर बिलंदरी तैयारी १०१ महाराजा प्रसिंघजीरो सर बुलंदरै प्रत संदेस १०२ सर बुलंदरौ जबाब १०३ महाराजा प्रभसिंघरो बखांण १०४ महाराजा अभसिंघजीरी सेनारौ वरणण १०५ सेनारौ घण-घटाएं रूपक बांधणी १०६ फेर दूसरौ रूपक परिशिष्ट १. नामानुक्रमणिका २. संगीत एवं नत्य सम्बन्धी शब्द तथा भिन्न-भिन्न प्रकारके वाद्योंकी नामानुक्रमणिका ३. विशेष प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों को नामानुक्रमणिका ४. वस्त्र तथा वस्त्रों सम्बन्धी शब्दों की नामानुक्रमणिका ५. प्राभूषणों को नामानुक्रमणिका ६. छंदानुक्रमणिका ७. कलाओंकी नामावली २८२ ३०५ ३०६ ३३८ ३४६ ३५० ३५६ ३५६ ३५७ ३६० ३६१ Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग्रन्थ-सारांश चतुर्थ महाराजा गजसंह महाराजकुमार गजसिंहको जोधपुरमें यह संदेश प्राप्त हुआ कि उनके पिता सवाई राजा सूरसिंह दक्षिण में रोग ग्रसित हो गये हैं तो वे जोधपुरकी शासन-व्यवस्थाका भार अपने विश्वासपात्र मंत्रियोंको सौंप कर तुरन्त ही दक्षिण की ओर रवाना हो गये। उनके वहां पहुँचनेके पूर्व ही सवाई राजा सूरसिंहका देहावसान हो गया था । इस घटना के पश्चात् बादशाहकी आज्ञा से दक्षिण में ही बुरहानपुरमें महाराजकुमार गजसिंह राज्याभिषेकका दस्तूर खाँनखाँनाके पुत्र दौरावखांने किया इस अवसर पर दौराबखाँने इनकी कमरमें तलवार बांधी और बादशाहकी थोर से भेजे हुए उपहार भेंट किये। बादशाहकी प्रोर से इस प्रकार सम्मानित होने पर दक्षिण में बादशाह के सभी विपक्षी महाराजा गजसिंहके शौर्य और पराक्रम से प्रातंकित हो गये । राज्याभिषेक के कुछ ही दिन पश्चात् महाराजा गजसिंहने दक्षिण में महकर नामक स्थान पर श्रमरचंपूकी बहुत बड़ी सेनाका मुकाबिला किया। भयंकर युद्ध हुआ । महाराजा गजसिंहने बड़ी वीरता दिखाई, अमरचंपू पराजित हो गया। महाराजाने बादशाही राज्यका खूब विस्तार किया । दक्षिणके खिड़कीगढ़, गोलकुंडा, आसेर, सितारा श्रादिको विजय कर बादशाही राज्य में मिला दिया । बादशाह इन पर बहुत प्रसन्न हुआ और इन्हें 'दळथंभण' (न) की उपाधि से विभूषित किया। इसके अतिरिक्त कई छोटे बड़े प्रान्त दे कर इनके राज्यकी वृद्धि की । इसके पश्चात् महाराजा गजसिंह कुछ समय के लिये अपने राज्य मारवाड़ में लौट आये । · तत्पश्चात् शाहजादा खुर्रम किसी घरेलू घटनाके कारण अपने भावी भाग्यके विषय में संदेह करने लगा। उसे यह भय हो गया कि बादशाह जहांगीर नूरजहां के हाथ की कठपुतली है और वह परवेजको ही जहांगीर के are बादशाह रूपमें दिल्ली के सिंहासन पर प्रारूढ़ करना चाहती है । इसके अतिरिक्त महाराजा गजसिंहकी असीम शक्तिके कारण दक्षिण में भी Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] बादशाही आतंक पूर्ण रूपसे फैला हुआ है। अतः वह अपने भाग्य-निर्माण के हेतु कोई उपाय सोचने लगा। ___ खुर्रमने अपनी कार्य-सिद्धि के लिए दक्षिणमें बहुत बड़ी सेना तैयार की। उसने बादशाहको सिंहासनसे च्युत करनेकी ठान ली और स्वयमेव बादशाह बननेकी प्रबल आकांक्षाके साथ दक्षिणसे दिल्लीकी ओर कूच किया। । कुछ समय पश्चात् मेवाड़का भीम शिशोदिया भी जो अपने समयका महान शक्तिशाली वीर था, खुर्रमकी सहायताके लिये अपनी २५ हजार सेना सहित आ मिला। . .. . . .. ..जब बादशाह जहांगीरको खुर्रमके इस कुकृत्यका पता चला तो वह बहुत दुखी हुआ। उसने अपने मानकी रक्षार्थ और इस विषम संकटको टालनेके लिए राजपूत राजाओंको बुलाया। इस अवसर पर महाराजा गजसिंह भी अपनी सेना ले कर दिल्ली पहुँचे । बादशाहने आये हुए समस्त राजपूत राजाओंको शाहजादे परवेजके साथ एक बहुत बड़ी सेना दे कर खुर्रमका सामना करने भेजा। इस समय आमेरके मिर्जा राजा जयसिंहके पास बहुत बड़ी सेना थी अतः बादशाहने उन्हींको सेनापतिका पद सौंपा। वीरवर महाराजा गजसिंहको यह बात कुछ कटु लगी, अत: वे अपनी सेनाको शाही फौजके दाहिनी ओर लेजा कर दूर से ही युद्धका परिणाम देखने लगे। खुर्रमकी सेनाके अग्रणी भीम शिशोदियाने अपने योद्धाओं सहित शाहजादे परवेज और सेनापति मिर्जा राजा जयसिंहकी सेना पर बड़ी तेजीसे आक्रमण किया। इसका आक्रमण इतना भयंकर हुआ कि वह चालीस हजारकी शाही फौजको विदीर्ण करता हुआ शाहजादे परवेज़ तक पहुँच गया। मिर्जा राजा जयसिंहकी सेनामें भगदड़ पड़ गई। शाही फौजको इस प्रकार भागते देख कर भीम शिशोदियाको बड़ा गर्व हुआ और उसने दूर खड़े महाराजा गजसिंहको ललकार कर उन पर अाक्रमण कर दिया। वीरशिरोमणि महाराजा गजसिंहने, जिनके पास केवल तीन हजार राजपूत थे, भीम शिशोदियाका डट कर मुकाबिला किया। भयंकर युद्ध हुआ। भीम शिशोदिया वीर गतिको प्राप्त हुआ. और शाहजादे खुर्रमकी विजय पराजयमें परिणत हो गई और वह युद्धस्थलसे भाग गयो। बादशाहने महाराजा गजसिंहका बहुत सम्मान किया। उनके राज्यकी वृद्धि की। उपर्युक्त घटना वि० सं० १६८१ की है। इसके पश्चात् भी महाराजा गजसिंहने चौदह वर्ष तक राज्य करते हुए बादशाहकी बहुत सेवाएँ कीं। पार Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ने जैसे वीर शिरोमणि थे वैसे ही दानवीर भी थे। उन्होंने अपने राज्यमें कई कवियोंको बड़ी-बड़ी जागीरें देकर सम्मानित किया। चम प्रकरण राव अमरसिंह ये महाराजा गजसिंहके ज्येष्ठ पुत्र थे । बादशाहने इनकी वीरता पर प्रसन्न होकर इन्हें नागौर राज्यके साथ रावकी उपाधिसे सम्मानित किया। एक समयकी घटना है-बादशाह शाहजहाँका दरबार लगा हुआ था। सामन्तगण और अमीर बारी-बारीसे मुजरा करने और भेंट नज़र करनेके लिए अन्दर जा रहे थे। बादशाहका साला सलावतखां सामंतों व अमीरोंको अन्दर लेजा कर बादशाहके सामने परिचय करवाता था। ___ ठीक इसी समय राव अमरसिंह भी वहां पहुंचे और सलावतखाँको मुजरा करनेके लिये कहा। इस पर सलावतखाँने इन्हें 'जरा ठहरो' कह कर रोका और स्वयं अन्दर चला गया। कुछ समय प्रतीक्षा करनेके पश्चात् अमरसिंह स्वयं ही बिना किसी हिचकिचाहटके भीतर चले गये और बादशाहको मुजरा करने लगे। सलावतखाँको यह बुरा लगा और वह उन्हें गँवार कहनेके हेतु मुंहसे केवल "ग" अक्षर का ही उच्चारण कर पाया था कि स्वाभिमानी राठौड़ अमरसिंहने उसके हृदयकी बात जान कर उसके मुंहसे पूरा 'गॅवार' शब्द निकलनेके पहले ही अपनी कटार उसके शरीरमें भोंक दी जिससे उसके प्राण पखेरू उड़ गये। बादशाह सिंहासन छोड़ कर अंतःपुरमें भाग गया। उस वीर बाँकुरे राठौड़की क्रोधाग्नि चरम सीमा तक पहुंच चुकी थी। उस समय जो भी उसके सामने आया उसे तलवारके घाट उतार दिया। इस प्रकार रावजी शाही दरबारके पांच उच्चाधिकारियोंका, जो पंचहजारी कहलाते थे, काम तमाम करके बाहर निकले। पीछेसे अर्जुन गौड़ने, जो उन्हींका आदमी होनेका दम भरता था, बादशाहको खुश करनेके लिए इनकी पीठमें करारा वार कर दिया। वीरवर अमरसिंहने मरते-मरते ही वापिस वार किया जिससे अर्जुन गौड़का कान कट गया और ऐसे वीरका धोखेसे प्राण लेने वाला वह कुल- कलंकी सदाके लिए बूचा हो गया। - राव अमरसिंहके स्वामि-भक्त सामंत वीर राठौड़ बलू चांपावत और भाऊ कुंपावत तथा उनके कुछ साथियोंने बादशाहके अनेकों आदमियोंको आगरेके Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . B y . : '. . किलेमैं मार कर राव का बदला लिया और रावजीकी रानियोंको सती होनेमें सहायता देते हुए वीरवर बलूजी भी वीरगति को प्राप्त हुए । महाराजा जसवंतसिंह (प्रथम)- महाराजा गजसिंहके पश्चात् जोधपुरके राज्य-सिंहासन परं महाराजा जसवंतसिंह आसीन हुए। जसवंतसिंह अपने समयके राजाओंमें सर्वश्रेष्ठ नीतिज्ञ थे। इन्होंने कई ग्रन्थोंकी रचना की और हिन्दू धर्मकी रक्षा की। .. 'उस समय वृद्ध बादशाह शाहजहां भयंकर रोगसे पीड़ित हो गया था। उसके पुत्र दिल्लीके सिंहासनको प्राप्त करनेके लिए भिन्न-भिन्न प्रकारसे षड़यंत्र रचने लग गये थे। बादशाह औरंगजेबने दक्षिणसे एक बहुत बड़ी सेनाके सथि राज्ये पाने की प्रबल आकांक्षासे कूच कर दिया। उस समय बादशाहके चारों ओर विपत्ति के बादल मँडरा रहे थे। इस विषम संकटको टालनेके लिये बादशाहको केवल राजपूत राजा दिखाई दे रहे थे, अतः उसने समस्त राजपूत राजाओंको बुलाया । सभी राजपूत नरेश अपनी सेनाओं सहित दिल्ली पहुंचे। आये हुए राजपूत राजानोंमें आमेर-नरेश जयसिंह शाहजादे शूजाको रोकने बंगालकी ओर बढ़े और जोधपुरके महाराजा जसवंतसिंह शाहजादे औरंगजेबका दमन करने दक्षिणकी ओर शाही फौज़ के साथ बढ़े और उज्जैन पहुँच गये जहां दोनों दलोंका कड़ा मुकाबला हुआ। औरंगजेबने शाहजादे मुरादको प्रलोभन देकर अपनी ओर मिला लिया जिससे उसकी शक्ति दुगुनी हो गई थी। ___ महाराजा जसवंतसिंह तनिक भी नहीं घबराये और अपने घोड़े महबूब पर सवार होकर विशाल यवन दल पर टूट पड़े। उन्होंने भयंकर मारकाटके साथ यवनोंका संहार किया और अपने घोड़े सहित पूर्ण रूपसे क्षत-विक्षत हुए । इस समय उनके कुछ सरदारों और रतलामके राजा राठौड़ रतनसिंहने युद्धका भार अपने ऊपर लेकर इन्हें मारवाड़ लौट जानेके लिए बाध्य कर दिया। औरंगजेब विजयी हुया और कई योद्धाओंके साथ रतनसिंह वीर-गतिको प्राप्त हुआ। औरंगजेब दिल्ली पहुँचा और बादशाह बन गया। कुछ समय पश्चात् उसने महाराजा जसवंतसिंहको बुलाया और उनका बहुत आदर-सत्कार किया। यद्यपि उसके हृदयमें महाराजाके प्रति पूर्ण रूपसे कपट था, फिर भी उसने उनको प्रसन्न करनेके निमित्त कीमती उपहार भेंट किये। Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महाराजा जसवंतसिंहर्जी कवियों और विद्वानोंका बहुत आदर करते थे। उन्होंने अपने राज्य में कई. कवियोंको जागीरें देकर सम्मानित किया। इसके अतिरिक्त उन्होंने कई युद्धं किये और अंतमें काबुल में इनका देहावसान हो गया। षष्ठम प्रकरण महाराजा अजीतसिंह1 महाराजा जसवंतसिंहके काबुल में देहावसानकै समय उनकी दो रानियां गर्भवती थीं, जिनसे क्रमशः दो पुत्र अजीतसिंह और दळथैभण लाहौर में उत्पन्न हुए। जन्मसे कुछ समय पश्चात् दळथंभणका देहान्त हो गया। महाराजा जसवंतसिंहके विश्वासपात्र राठौड़ सामंत बादशाहकी आज्ञानुसार राजकुमार और रानियों सहित दिल्ली पहुंचे। औरंगजेब पहलेसे ही मारवाड़ पर अधिकार करने के लिए अपनी फौज भेज. चुका था। उसने राठौड़ोंको दिल्लीमें बहुत लालच दिए और राजकुमारको अपने हवाले करनेका हुक्म दे दिया । स्वामिभक्त राठौड़ औरंगजेबके किसी लालचमें नहीं पाए और राजकुमारको गुप्त रूपसे मारवाड़ भेज दिया। जब वे चारों ओरसे मुगल सेनासे घिर गये तो उन्होंने महाराजा जसवंतसिंहकी रानियोंकी इज्जतं बचाने हेतु उन्हें तलवारके घाट उतार कर यमुनामें बहा दिया और स्वयं । विशाल यवन दलको संहार करते हुए वीरगतिको प्राप्त हुए जिनमें रुघौ भाटी, सूरजमल सांदू, (चारण), चन्द्रभांण, अचलसिंह, रणछोड़दास आदि मुख्य थे। वीर राठौड़ दुर्गादास के साथ कुछ सरदार अपनी तलवारका जौहर दिखाते हुए मारवाड़ आ गये। . बादशाह राठौड़ोंके इस व्यवहारसे बहुत कुपित हुआ और उसने नागौरके राव इन्द्र सिंहसे, जो राठौड़ अमरसिंहका पौत्र था, कहा कि मेरी आज्ञाका पालन करे तो जोधपुर तुझको दे दिया जाय । इन्द्रसिंह इसके लिए राजी हो गया और बादशाहने जोधपुरका पट्टा लिख कर दे दिया। वह एक बहुत बड़ी सेनाके साथ जोधपुर आया। सभी राठौड़ोंने एक होकर उसका मुकाबिला किया। भयंकर युद्ध हुआ जिसमें इन्द्रसिंह पराजित होकर भाग गया। - मारवाड़ पर अधिकार करने के निमित्त मुगल दलने बार-बार आक्रमण किया। राठौड़ डट कर उनका मुकाबिला करते थे किन्तु अन्तमें जोधपुर पर शाही अधिकार हो गया। इस समय मारवाड़में बहुतसे राठौड़ोंने यवनोंका प्रतिकार करनेके लिए विद्रोह करना शुरू कर दिया । वे पृथक-पृथक दलों में विभक्त होकर Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चारों ओर मारकाट और लूट-खसोट करने लगे। वे अवसर मिलते ही मुगलोंकी चौकियों पर टूट पड़ते और ध्वस्त कर देते। यही नहीं, मुगलोंकी रसद लूट लेते थे और उन्हें हर प्रकारसे तंग करने लगे। उन्होंने ऐसी विकट परिस्थिति उत्पन्न कर दी कि मुगलोंको हर समय चौकन्ना रहना पड़ता था। महाराजा अजीतसिंहका गुप्त रूपसे लालन-पालन होता रहा और जब कुछ योग्य हुए तो राठौड़ोंने उन्हें अपना अग्रणी बनाया। इनका बल दिनप्रतिदिन बढ़ता जाता था और इन्होंने मारबाड़में यत्र-तत्र मुगलोंको दबा कर उनसे कर वसूल करना शुरू कर दिया। उस समय जोधपुरका सूबेदार शुजाअतखां था। वह लश्करिखाँको जोधपुरका प्रबन्ध सौंप कर गुजरात गया। इधर महाराजा अजीतसिंहजी अपने दलबल सहित पाडावलाकी ओर गये। लश्करिखाने महाराजाका पीछा किया और कुरमालकी घाटीमें युद्ध किया किन्तु परास्त होकर भाग गया। इस समय उदयपुरके महाराणा जयसिंह और उनके पुत्र अमरसिंहमें गृह-कलह हो गया । महाराणाने उस संकटको टालनेके उद्देश्यसे अपने छोटे भाई गजसिंहकी पुत्रीका विवाह महाराजा अजीतसिंहसे कर दिया। महाराजाने होटलूके चौहान चतुरसिंहकी कन्यासे भी विवाह किया था जिसके गर्भसे जालोरमें संवत् १७५६ मार्गशीर्ष वदि १४को शोभनयोग, शकुनिकरण, मिथुनलग्न और विशाखा नक्षत्रमें महाराजकुमार अभयसिंहका जन्म हुआ। महाराजा अजीतसिंहने अपनी शक्तिसे मुगलोंके नाकमें दम कर रखा था। उन्होंने दक्षिण में औरंगजेबकी मृत्युका समाचार सुनते ही अपनी सेना लेकर जोधपुर पर आक्रमण कर दिया। जाफरकुलीने पहले तो महाराजाका सामना किया किन्तु प्रबल राठौड़वाहिनीको देख कर वह किला छोड़ कर भाग गया। यवन इतने भयभीत हए कि वे अपनी जान बचानेके लिए दाढ़ी मुंडवा कर हाथमें माला-लेकर सीतारामका उच्चारण करते हुए जोधपुरसे भागे । कई राठौड़ों द्वारा कैद कर लिये गये । महाराजाने अपने पैतृक राज्यमें प्रवेश किया। राजधानी, जो यवनोंसे दलित हो गई थी, गंगाजल आदि छिड़क कर शुद्ध की गई। मंदिरोंके स्थान पर मस्जिदें बन गई थी और इनमें मुल्लोंकी बांगें गूंजती थीं, उनके स्थान पर वापिस मंदिर बन गये और शंखों व घटोंकी ध्वनि गूंजने लगी। बड़े ठाटबाटसे महाराजा अजीतसिंह राजसिंहासन पर आसीन हुए। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७ ] श्रीरंगजेब के मरते ही शाहजादों में तख्त के लिए तनातनी हुई और शाहजादा मुहम्मद मुअज्जम बहादुरशाह के नामसे भारतका बादशाह बन गया । उसने श्रामेर नरेश जयसिंहसे राज्य छीन कर उसके छोटे भाई विजयसिंहको दे दिया क्योंकि विजयसिंह उसके पक्षका था । जब बादशाह बहादुरशाहको मालूम हुआ कि अजीतसिंहने जोधपुर पर अधिकार कर लिया है तो वह यवन दलके साथ अजमेरकी ओर रवाना हुआ। इस समय राज्यच्युत ग्रामेर नरेश जयसिंह भी उसके साथ था। महाराज अजीत सिंह और बादशाह में मेड़ते में संधि हो गई जिसमें बादशाहने महाराजा और उनके पुत्रोंका बहुत सत्कार किया, उन्हें उपहार भेंट किये और उपाधियोंसे सम्मानित किया । बादशाह जल्दी ही मारवाड़ में शान्ति स्थापित कर के दक्षिणकी अशान्तिको दबाने के लिए चल पड़ा। उस समय राजा जयसिंह महाराजा अजीतसिंह, दुर्गादास आदि उनके साथ थे । यद्यपि बाहशाह ऊपरसे तो महाराजा अजीतसिंह पर खुश नज़र आता था तथापि उसने जोधपुरका प्रबन्ध करने के बहाने काजमखाँ और मेहराबखाँको भेज कर जोधपुर पर चुपचाप अपना अधिकार कर लिया । जब इसकी सूचना महाराजा श्रजीतसिंहको मिली तो वे बहुत क्रुद्ध हुए किन्तु परिस्थितिवश उन्हें चुप रहना पड़ा । जयसिंह और दुर्गादास के साथ महाराजाने चुपचाप बादशाहका साथ छोड़ दिया और तीनों उदयपुर जाकर महाराणा अमरसिंह से मिले। वहां पर उनका बहुत सत्कार हुआ । लौट कर महाराणा और अजीतसिंहने अपने योद्धाओं सहित जोधपुर पर आक्रमण कर दिया। फौजदार मेहराबखाँ किला छोड़ कर भाग गया और जोधपुर पर पुनः महाराजाका अधिकार हो गया । महाराजा अपने उत्साहसे आगे बढ़ते गये। वे सांभर और डीडवानाको विजय कर के श्रामेरकी ओर बढ़े । वहाँके फौजदार सैयद हुसैनखाँको परास्त किया । महाराजा अजीतसिंहने जयसिंहको, जो उनके साथ था, पुनः आमेरका राजा बना दिया । सांभरके बराबर दो भाग कर के आधा आमेरकी ओर तथा प्राधा मारवाड़ राज्य में मिला दिया और स्वयं अपनी राजधानी जोधपुर लौट आये । कुछ समय बाद साँभरमें पुनः शाही फौजोंका जमाव होने पर जोधपुर और आमेरकी फौज ने श्राक्रमण कर दिया । यह युद्ध बड़ा भयंकर हुआ । इसमें जोधपुरका भीम कूंपावत मारा गया। अंतमें राजपूतोंकी विजय-दुन्दुभि बजी और महाराजा अजीतसिंहजी जोधपुर लौट आये । राजपूतों की इस विजयकी खबर जब बादशाह बहादुरशाहने सुनी तो वह Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बहुत कुपित हुआ और घबराया भी। वह रात-दिन राजपूतों की बढ़ती हु शक्तिके कारण चिंतित रहने लगा। अंतमें उसने महाराजा अजीतसिंहसे संधि कर ली और जोधपुर तथा जयपुर नरेशोंके अधिकारको मान लिया। - बादशाह बहादुरशाहके मरनेके पश्चात् उसका पुत्र मुइजुद्दोन जहाँदारशाह अपने भाइयोंको मार कर दिल्लीके तख्त पर आसीन हुआ। इसके कुछ ही दिन बाद सैयदबन्धुओंकी सहायता से फर्रुखसियार मुइजुद्दीन जहाँदारशाहको कैद कर के स्वयं बादशाह बन बैठा । उसने दोनों सैयदबन्धुओंको महत्त्वपूर्ण पद दिए और उन्हें उपाधियोंसे सम्मानित किया। जब फर्रुखसियर बादशाह बना तो नागौरके राव इन्द्रसिंहका पुत्र म्होकमसिंह दिल्ली जाकर महाराजा अजीतसिंहजीके विरुद्ध बादशाहको बहकाने लगा। महाराजा अजीतसिंह वीर होने के साथ राजनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने भाटी अमरसिंहके साथ कुछ सरदारों को दिल्ली भेज कर धोखेसे म्होकमसिंहको मरवा डाला। इस घटना से बादशाह बहुत क्रोधित हुआ। उसने सैयदहुसैनअलीको एक बहुत बड़ी सेना देकर मारवाड़ की ओर भेजा। विशाल यवन दल और राजपूतोंमें मेड़तामें संधि हो गई और महाराजकुमार अभयसिंहका हुसैनअलीके साथ दिल्ली जाना तय हुआ। राजकुमार अभयसिंहके वहां पहुंचने पर बादशाहने उसका बहुत आदर-सत्कार किया। उन्हें सुनहरी तलवार, जड़ाऊ खंजर, घोड़े ग्रादि भेंट किये तथा पंचहजारी मंसब दिया। महाराजकुमार अभयसिंह ठाटबाटके साथ जोधपुर लौटे। महाराजा अजीतसिंह राजकुमारसे मिल कर और उनके सकुशल लौट आनेके कारण बहुत हर्षित हुए। .. ___महाराजा अजीतसिंह अपने मनमें मुगलोंसे कभी प्रसन्न नहीं हुए। वे मुगल सल्तनतको ढाह ही देना चाहते थे। उधर सैयद बन्धुनों और बादशाह फर्रुखसियर में परस्पर वैमनस्य हो गया। इन्हीं दिनों महाराजा अजीतसिंह भी अपने सरदारों सहित दिल्ली पहुँचे । जब महाराजा दिल्ली में प्रवेश कर रहे थे उस समय उन्होंने अपनी शैशवावस्थामें होने वाले दिल्ली युद्ध में लड़ने वाले उन वीरोंके समाधि-स्थान देखे जो इनकी रक्षार्थ औरंगजेबसे लड़ कर दिल्ली में ही वीर-गतिको प्राप्त हो गये थे। इन्हें अपनी जन्मदात्री मांका भी स्मरण हुआ जिनकी समाधि भी इसी स्थान पर बनी हुई थी। इनके हृदयमें निद्रित प्रतिशोध की भावना प्रबल वेगसे भड़क उठी और मन ही मन ठान लिया कि मुगल वंशका ध्वंस कर दूंगा। किन्तु इसे उन्होंने प्रकट नहीं होने दिया। Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 8 ] दिल्ली में महाराजाका सैयद भाइयों और बादशाह फर्रुखसियरने अलगअलग स्वागत किया । दोनोंमें से हर एक शक्तिशाली महाराजा अजीतसिंहको अपनी ओर मिलाना चाहते थे । महाराजाका मन बादशाहसे उचट गया था अत: उन्होंने सैयद बन्धुओंका पक्ष लिया, किन्तु इस शर्तके साथ कि इस बादशाहके हटने के बाद हिन्दुओं पर से जजिया कर हट जाना चाहिए, हिन्दू तीर्थों पर से कर हट जाना चाहिए, मंदिरोंके बनने और उनमें होने वाली नियमित पूजामें किसी प्रकारको बाधा नहीं पड़नी चाहिए और गौ-वध बन्द हो जाना चाहिए, आदि । ये सब शर्ते सैयद बन्धुओंसे करवाई। इधर सैयद बन्धुओंको यह विश्वास था कि भामेर-नरेश जयसिंह बादशाहको हमारे विरुद्ध बहकाता है, अत: उन्होंने और महाराजा अजीतसिंहने बादशाह फर्रुखसियर पर दबाव डाल कर जयसिंहको आमेर भिजवा दिया। ___बादशाह फर्रुखसियर सैयदोंको मरवानेका षड़यंत्र कर रहा था, अत: उन्होंने अपने बन्धु सैयद हुसैनालीको दक्षिणसे अपनी रक्षा और मददके लिए बुला लिया। वह एक विशाल दलके साथ दिल्ली पहुँचा। अब बादशाह पिटारीका सांप बन गया और बहुत भयभीत रहने लगा। सैयदोंने बादशाह फर्रुखसियरको पकड़ कर कैद कर लिया और मार डाला। बादशाहके महलका सारा माल लूट लिया गया और उसे सैयद बन्धुओं तथा महाराजा अजीतसिंहने परस्पर बांट लिया। उस समय महाराजा अजीतसिंह और सैयद बन्धुओंकी ही दिल्लीमें चलती थी। सैयद बन्धु महाराजाका गुण गाते थे। उन्होंने रफीउद्दरजातको बादशाह बनाया किन्तु कुछ ही समय बाद वह बीमार हो गया तब उसके बड़े भाई रफीउद्दौलाको दिल्लीके तख्त पर बैठा कर बादशाह बनाया। यह बादशाह भी अधिक दिन तक जिन्दा नहीं रहा और महाराजा अजीतसिंहजीकी मंत्रणासे मुहम्मदशाहको बादशाह बनाया गया। ___ इन्हीं दिनों आगरामें ईरानी मुगलोंने आमेर नरेश जयसिंह आदिसे प्रेरित हो कर उपद्रव कर दिया और उन्होंने अपनी ओरसे निकोसियरको आगरेके तख्त पर बैठा कर बादशाह घोषित कर दिया। सैयद बन्धुओंने हुसैनालीको आगरेकी मोर रवाना किया और कुछ दिन बाद स्वयं भी महाराजा अजीतसिंहजीको लेकर प्रागरेकी तरफ प्रयाण किया। सैयदोंने आगरे पर आक्रमण कर के बादशाह निकोसियरको पकड़ कर कैद कर लिया। सैयद बंधु आमेर नरेश जयसिंह पर बहुत कुपित थे, अतः उन्होंने आमेर पर आक्रमण कर के जयसिंहको दण्ड देनेका निश्चय किया। जयसिंहने पहलेसे ही Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १० ] भयभीत होकर महाराजा अजीतसिंहको पत्र लिख कर प्रार्थना की कि अब मेरी लज्जा आपके हाथ में है, आप ही मुझे बचा सकते हैं। इस पर महाराजा अजीतसिंहने सैयद बंधुओंको समझा-बुझा कर अामेरकी और जानेसे रोका, यद्यपि सैयद बंधु मनमें जयसिंहसे बहुत जलते थे, किंतु महाराजा अजीतसिंहके सामने उनकी कुछ चल नहीं सकी और सब दिल्ली लौट आये । कुछ समय पश्चात् महाराजा अजीतसिंहने बादशाहसे विदा मांगी। बादशाहने कई बहुमूल्य वस्तुएं महाराजाको भेंट की और बड़े सम्मानके साथ विदा किए। महाराजा अजीतसिंह शोपुरके राजा इन्द्रसिंह, बूंदोके हाडा बुधसिंह, रामपुरके राव, शिशोदिया अखैमल और फतैमल आदिको साथ लेकर रवाना हुए। मार्गमें आमेर नरेश जयसिंहको भी साथमें ले लिया और सबके सब मनोहरपुर होते हुए जोधपुर आ गये। जोधपुरमें अतिथियों सहित महाराजा अजीतसिंहका शानदार स्वागत हुआ। सभी अतिथियोंको जोधपुर में ठहराया और उनका खूब आदरसत्कार किया। महाराजा अजीतसिंहके दरबार में सभी अतिथि उपस्थित हुए और सबने महाराजाको मुजरा कर के नजरें की। इस अवसर पर महाराजाने अपनी पुत्रीका विवाह आमेर-नरेश जयसिंहके साथ बड़े ठाट-बाटसे कर दिया । कुछ समय पश्चात् महाराजा अजीतसिंहजीको यह खबर मिली कि बादशाह मुहम्मदशाहने सैयद बन्धुओंमें से हुसैनप्रालीको मरवा डाला और दूसरे भाई अबदुल्लाको कैद कर लिया। इससे महाराजा बहुत क्रोधित हुए। उन्होंने तुरन्त अपनी सेना लेकर अजमेर पर धावा बोल दिया और वहां के तारागढ़ पर राठौड़ोकी पताका फहरने लगी। जिस अजमेरमें कुरानके पाठ होते थे, गौहत्या होती थी वह सब बन्द होकर मंदिरोंसे घंटा-रव और शंखनाद सनाई देने लगा। इस समय महाराजा अजीतसिंहजी एक बादशाह की तरह शाही शानशौकत से अजमेर में रहने लगे। इन्हीं दिनों महाराजाने सांभर, डीडवाना आदि पर अपनी सेनाएँ भेज कर वहांके शाही फौजदारको भगा दिया और अपना अधिकार कर लिया। बादशाह मुहम्मदशाहने महाराजा अजीतसिंहका दमन करनेके लिये मुजफ्फरखाँको तीस हजारकी विशाल सेना देकर भेजा। मुजफ्फरखाने मनोहरपुरमें आकर पड़ाव किया। इधर महाराजा अजीतसिंहने एक बड़ा दरबार किया और महाराजकुमार अभयसिंहको मुजफ्फरखाँका मुकाबला करनेके लिए भेजनेका निश्चय किया। महाराजकुमार अभयसिंहने इस अवसर पर बड़ा उत्साह दिखाया और अपनी सेनाके साथ रघनाथ भंडारीको लेकर रवाना हुए। राठौड़वाहिनीको Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनी ओर बढ़ती हुई सुन कर मुजफ्फरखाँ बिना मुकाबला किये ही अपनी सेनासहित भाग गया। महाराजकुमार अभयसिंहने नारनौल तथा दिल्ली व आगरेके आसपासके प्रदेशको लूटना शुरू कर दिया और शाहजहाँपुर तक पहुँच गये । यहाँका फौजदार भी इनके प्रागे नहीं टिक सका और उन्होंने शाहजहाँपुरको लूट कर भस्मीभूत कर दिया। महाराजकुमार अभयसिंहका आतंक चारों ओर फैल गया और दिल्ली में खलबली मच गई। इस समय महाराजकुमारका 'धौकळसिंह' नाम पड़ा। अभयसिंहजी विभिन्न प्रकारकी लूटको वस्तुओं के साथ विपुल धन-राशि लेकर वापिस लौटे । महाराजा अजीतसिंह पुत्रके इस रणकौशल और प्रतापको देख कर बहुत प्रसन्न हुए और उनका स्वागत किया। अब उनको यह विश्वास हो गया कि मेरे बाद मेरा पुत्र भी राठौड़ोंकी शानको रखनेमें समर्थ होगा। उधर बादशाहने घबरा कर एक दरबार किया और उसमें सब राजाओंनबाबोंकी सम्मति लेकर महाराजा अजीतसिंहके पास नाहर खाँको अपना संदेश लेकर भेजा । नाहरखाँ महाराजाके पास पहुँचा किन्तु उसके अनुचित व्यवहारके कारण वह मारा गया। जब बादशाहने यह खबर सुनी तो वह बहुत घबराया और एक बड़ी सेना देकर शरफुद्दौला इरादतमंदखांको और हैदरकुलीको भेजा। इस विशाल दलके साथ आमेर नरेश जयसिंह, महम्मदखाँ बंगस आदि भी अपनी-अपनी सेनाएँ लेकर महाराजाके विरुद्ध प्राये। इस प्रकार शाही दलको आता देख महाराजा अजीतसिंहने नीमाज ठाकुर ऊदावत वीर अमरसिंहको अजमेरके किलेकी रक्षाका भार सौंप कर स्वयं मारवाड़ जोधपुरकी रक्षार्थ आ गये । शाही दलने अजमेरके किलेको घेर लिया। इस अवसर पर नीमाज ठाकुर ऊदावत अमरसिंहने बड़ी वीरता दिखाई। कुछ दिन युद्ध होनेके पश्चात् आमेर नरेश जयसिंहने संधि करवा दी और अजमेर पर बादशाहका अधिकार हो गया। इस संधिमें महाराजकुमार अभयसिंहका बादशाहके दरबार में दिल्ली जाना तय हुआ। बादशाह मुहम्मदशाहने महाराजकुमार अभयसिंहके दिल्ली पहुँचने पर उनका बहुत प्रादर-सत्कार किया और उन्हें कई बहुमूल्य उपहार भेंट किये। दिल्लीमें रहते हुए इन्हीं दिनों एक समय महाराजकुमार अभयसिंह बादशाह महम्मदशाहके दरबार में गये और निर्भय होकर आगे बढ़ने लगे। जब वे बादशाहके बिल्कुल निकट पहुँचे तो वहाँके एक अमीरने उन्हें रोक दिया। महाराजकुमारने तुरन्त ही अत्यन्त क्रोधित होकर कटार निकाल लिया। बादशाह Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १२ ] महम्मदशाह जो सिंहासन पर बैठा यह सब कुछ देख रहा था, तुरन्त उठा और आगे बढ़ कर अपने गलेका मोतियोंका हार महाराजकुमारको पहना कर बड़ी कठिनाईसे इनके क्रोधको शांत किया। अगर बादशाह उस समय ऐसा नहीं करता तो संभवतया वही घटना घटती जो बादशाह शाहजहांके दरबार में राठौड़ अमरसिंह द्वारा हुई थी। महाराजकुमार अभयसिंह उन दिनों दिल्ली में बड़े ठाट-बाट से रह रहे थे और महाराजा अजीतसिंहजी जोधपुर में सुखपूर्वक थे। उन्हीं दिनों एकाएक महाराजाका देहावसान हो गया। [ यहाँ पर कर्नल टॉडके अनुसार बादशाह मुहम्मदशाहने ही महाराजकुमार अभयसिंहको दिल्ली में महाराजा अजीतसिंहके विरुद्ध बहकाया और एक जाली पत्र महाराजकुमार अभयसिंहके हस्ताक्षरका उनके छोटे भाई बखतसिंह के नाम भिजवा दिया, जिसमें मारवाड़के हितके लिये वृद्ध महाराजाको मारनेका लिखा था। उसीके अनुसार राजकुमार बखतसिंहने महाराजा अजीतसिंहको मार डाला। हो सकता है कविवर करणीदान राठौड़ वंश पर लगने वाले इस कलंकको छिपानेके लिए 'सूरजप्रकास' में इस बातके लिए मौन रह गये हों। ] सप्तम प्रकरण महाराजा अभयसिंह स्वाभिमानी महाराजा अजीतसिंहके स्वर्गवासके पश्चात् बादशाह मुहम्मदशाहने महाराजकुमार अभयसिंहका दिल्लीमें अपने हाथसे राज्याभिषेक किया। इस अवसर पर बादशाहने महाराजा अभयसिंहके कमरमें तलवार बांधी, राजमुकुट पहनाया और हीरे मोती आदि भेंट किये। कई बहुमूल्य वस्तुएँ उपहारमें दे कर बादशाहने नागौरकी शासन-सनद मारवाड़ के नवीन महाराजा अभयसिंहको दे दी। इस प्रकार महाराजा बादशाह द्वारा सम्मानित होकर अपने देश मारवाड लौटे। ___महाराजाके मारवाड़में प्रवेश करते हो प्रजाने बड़ी भक्तिसे नवीन महाराजाका स्वागत किया। ज्यों-ज्यों महाराजा अभयसिंह राजधानीकी ओर बढ़ते गये त्योंत्यों प्रत्येक स्थानकी कुलवधुोंने शिर पर जलसे भरे कलश रख कर तथा गीत गा कर महाराजाका सम्मान किया। महाराजाने भी राजधानी लौट कर सामंतोंको उपहार दिये तथा कवियोंको पुरस्कार देकर सम्मानित किया। सदियोंसे चली आ रही प्रथाके अनुसार महाराजा अभयसिंहका जोधपुर में ठाट-बाटसे राज्याभिषेक हुमा । तत्पश्चात् महाराजा अभयसिंहने नागौर पर Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १३ ] आक्रमण करनेके लिये अपनी सेना तैयार की। चिर- प्रचलित प्रथा के अनुसार ज्वालामुखी तोपोंको शक्तिका रूप मान कर बकरों प्रादिकी बलि दी गई। तेलसिन्दूर से उनकी पूजा की गई । युद्धकी सारी सामग्री तैयार की। महाराजा. अभयसिंह अपने छोटे भाई बखत सिंह के साथ पूर्ण रूप से सुसज्जित होकर नागौरकी ओर बढ़े। नागौरका राव इन्द्रसिंह महाराजाकी शक्ति के सामने झुक गया । नागौर पर महाराजाका अधिकार हो गया । महाराजाने अपने छोटे भाई बखतसिंहको नागौरका राजा बनाया और उन्हें 'राजाधिराज' को उपाधि दी । इन्हीं दिनों महाराजाके छोटे भाई श्रानन्दसिंह श्रोर रायसिंहने उपद्रव कर के मेड़ता पर चढ़ाई कर दी। शेरसिंह मेड़तियाने मेड़ताकी रक्षा की । महाराजा भी नागौरकी प्रोरसे निवृत्त होकर अपने भाई बखतसिंह के साथ मेड़ता पहुँच गये। यहां पर आसपास के राजानोंने महाराजाके पास नजरें भेजीं और इन्हीं दिनों महाराजाने जैसलमेरकी राजकुमारीसे विवाह भी किया और जोधपुर लौट आये । कुछ समय पश्चात् बादशाहका आज्ञा-पत्र मिलनेके कारण महाराजा अभयसिंह अपने सामंतों सहित दिल्ली जानेके लिये रवाना हुए। जब वे दिल्ली पहुँचे तो बादशाहने उनका बहुत आदर-सत्कार किया । उसने अपने दरबारमें महाराजाको बैठे हुए सारे उमरावों व अमीरोंसे उच्च स्थान पर आसीन किया और इनकी बहुत प्रशंसा की । बादशाहने गुजरातके उपद्रवको दबाने के लिए सरबुलन्दखाँको भेजा था । सरबुलन्दखाने विद्रोहियोंसे मिल कर गुजरात पर अधिकार कर के अपनेको वहांका अधीश्वर घोषित कर दिया । सरबुलन्दके इस प्रकार स्वतंत्र होनेकी खबर जब बादशाह के पास पहुँची तो वह बहुत घबराया । बादशाहने शक्तिशाली सरबुलन्दका दमन करनेके लिए अपने विशाल दरबारमें सोनेके पात्र में बीड़ा (ताम्बूल ) रख कर घुमाया। मुगल साम्राज्यके शक्तिशाली वीरों तथा अमीरोंसे दरबार खचाखच भरा था किन्तु किसीकी भी सरबुलन्द के विरुद्ध बीड़ा उठानेकी हिम्मत नहीं हुई। बादशाहको निराश व दुखी देख कर महाबली महाराजा अभयसिंहने बीड़ा उठा कर सरबुलन्दको बादशाहके कदमों में झुकानेकी प्रतिज्ञा की । बादशाहने अजमेर के साथ गुजरात सूबेकी शासन-सनद महाराजा अभयसिंहको दे दी। इस अवसर पर बादशाहने प्रसन्न होकर महाराजाको मुकुट, सिरपेच, कीमती खजर, कटार, तलवार आदि देकर सम्मानित किया । इसके अतिरिक्त मय बारूदके विभिन्न प्रकारकी तोपें, अस्त्र-शस्त्र, बंदूकें तथा कुछ सेनाके साथ इकतीस लाख रुपया खर्चेका देकर विदा किया । Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १४ ] वहाँ से महाराजा सेना सहित जयपुर प्राये । ग्रामेर नरेश जयसिंहने इनका बहुत आदर-सत्कार किया और अपने यहाँ ठहराया । वहाँसे महाराजा मेड़ते पहुँचे और अपने छोटे भाई बखतसिंहसे मिल कर उनके साथ जोधपुर लौट आये । राजधानी लौटने पर महाराजाने सरबुलन्द पर चढ़ाई करनेके लिये अपने राज्य के सारे सामन्तोंको परवाने भेज कर सेना सहित इकट्ठा किया । महाराजाने एक विशाल दल तैयार किया । पूर्ण रूपसे अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित हुए । तोपोंको शक्तिका रूप मान कर उनकी पूजा की । महाराजाने इस प्रकार तैयार होकर अपने छोटे भाई बखत सिंह के साथ सरबुलन्दके विरुद्ध प्रयाण किया और जालोर आये। वहांसे रोहेड़ां श्रौर पौसाळियाके जागीरदारोंको परास्त किया । महाराजाने सिरोही के रावको दण्ड देनेके लिए आक्रमण कर दिया । महाराजाकी असीम शक्ति के सामने सिरोही के रावको झुकना पड़ा और उसने अपने भाईकी कन्याका विवाह कर के महाराजासे संधि कर ली । महाराजा अभयसिंह वहांसे रवाना होकर पालनपुर पहुंचे । यहाँका शासक फौजदार करीमदादखां महाराजासे मिल गया | महाराजाने सरबुलन्दको एक पत्र लिखा जिसमें उसको अहमदाबाद छोड़ कर बादशाह के सामने झुकने के लिए लिखा किन्तु सरबुलन्दने स्पष्ट इन्कार कर दिया । महाराजाने अपने दलबल सहित रवाना होकर सरस्वती नदीके किनारे सिद्धपुर में डेरा किया। उधर सरबुलन्द महाराजासे लोहा लेनेके लिए पूर्ण रूपसे तैयारी कर चुका था । उसने अपने अधीनस्थ सभी मुसलमानोंको सेनासहित इकट्ठा कर महाराजाके विरुद्ध मोर्चा बांध लिया । इस समय महाराजाने एक दरबार किया जिसमें उनकी सेना के सभी सुभट इकट्ठे हुए । इस अवसर पर राठौड़ वंशकी भिन्न-भिन्न शाखाओंके -चांपावत, कूंपावत, ऊदावत, कररणावत, करमसिंहोत, मेड़तिया, जोधा, ऊहड़, रूपावत, भारमलोत आदि तथा सभी वंशों के राजपूत जैसे भाटी, चौहान, शिशोदिया, सोनगरा, शेखावत, मांगलिया आादिके अग्रणी वीरोंने तथा चारण कवियों, राजगुरु पुरोहितों तथा प्रोसवाल मुत्सद्दयों आदिने सभा में बड़ी जोशीली आवाज़ से यह प्रदर्शित किया कि हम सरबुलन्द पर विजय करनेके लिये वीर गतिको प्राप्त होने में बिल्कुल नहीं हिचकिचायेंगे । Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१५] महाराजा अभयसिंह सभामें बड़ा जोशीला भाषण दिया। उन्होंने अपनी सेना के वीरोंको बताया कि एक दिन मरना तो सभीको है ही फिर क्यों नहीं हम रणभूमि में वीर गतिको प्राप्त होवें जो कि सन्यासियों व महात्मानों की तपस्या से भी बढ़कर है । सभी वीर अपनी-अपनी सेना को तैयार कर के आगेका कार्यक्रम बनाने में जुट गये । महाराजाकी सेनामें अश्वारोही सेना बड़ी प्रबल थी । उसमें दक्षिण के भीमरथळी नामक स्थानकी अश्व श्रेणी सबसे अग्रणी थी। इसके अतिरिक्त मारवाड़के घाट, राड़धरा और काठियावाड़ के ग्रश्व प्रमुख थे । इस प्रकार वाहिनी एक भयावनी घटाके समान तैयार होकर सरबुलन्दके विरुद्ध चल पड़ी । उधर सरबुलन्द ने इस भयंकर दलका मुकाबिला करनेके लिये पूर्ण रूपसे तैयारी करने में कोई कसर नहीं रखी। उसने नगर में जानेके प्रत्येक मार्ग पर अपनी सेनाके साथ तोपें तैयार करदीं जिन्हें यूरोपियन चलाते थे । उसकी सेवामें बंदूकधारी यूरोपियन सैनिक भी थे । [ ग्रंथ-सार देने के साथ ही में यहां राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुरके सम्मान्य संचालक, पद्मश्री जिन विजयजी मुनि, पुरातत्त्वाचार्य के प्रति आभार प्रदर्शित किये बिना भी नहीं रह सकता कि जिन्होंने राजस्थानी के इस प्राचीन ग्रंथका सम्पादन करनेके लिए मुझे सत्प्रेरणा दी । ग्रंथ संपादन में श्री गोपालनारायणजी बहुरा, एम. ए., उप संचालक, राजस्थान प्राच्य-विद्या-प्रतिष्ठान, जोधपुरने समय-समय पर मार्ग निर्देशन कर और ग्रंथ - सम्पादन हेतु सहायक ग्रंथों के अध्ययन में सहयोग देकर जो सौजन्य प्रकट किया उसके लिए मैं पूर्ण कृतज्ञ हूँ। श्री पुरुषोत्तमजी मेनारिया, एम. ए., साहित्य रत्नने भी ग्रंथके प्रूफ संशोधन में अपना पूर्ण सहयोग दिया है, इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं।] जोधपुर ; वसंत पंचमी, वि० सं० २०१६ - सीताराम लालस Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सहायक ग्रंथों की सूची -00-000 लेटर मुगल्स- इविन उदयपुर राज्य का इतिहास- डॉ० गौरीशंकर हीराचंद ओझा कृत भाग १, २ औरंगजेबनांमा- मुन्शी देवीप्रसाद । जोधपुर राज्य का इतिहास- डॉ. गौरीशंकर हीराचंद ओझा कृत भाग १, २ जोधपुर राज्य की ख्यात- (हस्तलिखित) हमारे संग्रह से तवारीखे पालनपुर- सैयद गुलाबमियां कृत दयालदास को ख्यात- सिंढायच दयालदास कृत, भाग २-डॉ० दशरथ शर्मा द्वारा संपादित, अनूप संस्कृत लायब्रेरी, बीकानेर द्वारा प्रकाशित नैणसी मुहणोत की ख्यात- काशी नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा प्रकाशित, खंड १, २ नैणसी मुहणोत को ख्यात- राजस्थान प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर द्वारा प्रकाशित टॉड राजस्थान- हिंदी अनुवादक पं. बलदेवप्रसाद मिश्र, भाग १,२ पालनपुर राज्य नो इतिहास- (गुजराती) भाग १, नबाब सरताले मुहमंदखां कृत मारवाड़ का इतिहास-पं० विश्वेश्वरनाथ रेऊ, प्रथम भाग मारवाड़ का संक्षिप्त इतिहास- पं० रामकरण आसोपा राजरूपक- वीरभाण रतनूं कृत राजविलास- मान कवि कृत (नागरी प्रचारिणी सभा, काशी का संस्करण) वंशभास्कर- कविराजा सूरजमल मीसरण वीर विनोद- महामहोपाध्याय कविराजा श्यामलदास कृत, भाग २ हिस्ट्री प्रॉव औरंगजेब- यदुनाथ सरकार WWMWwwww Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कविया करणीदानविर्जरांमोतरौ कौ सूरजप्रकास अथ महाराजा गजपिनो वरणण , उठे 'गजण' प्रावियौ', अभंग दळ लियां अथाहां । राव' दुवां जिम रखित पेस न कियो पतिसाहां * । रीत सनातन धरम, क्रिया धम करे अणकळ । राज तिलक सिर धारि, तखत" बैठौ अतुळीबळ" ऐराक गयंद सिरपाव असि, दिल्लीनाथ ' भाग २ १२ जंवहर दिया ' तदिबधे" क्रीत " " गजबंध" तणी, दखिणी' " थाट दहल्लिया " ।। १ .9 3 .१४ १७ १ तपत झळाहळ अतुल पिंड झळाहळ पौरिस I प्रति प्रकास ऊजळी, जगत उज्जास बंधे " जस । १८ १ ख. ग. आवोयौ । २ ख. ग. लीयां । ३ व. राज । ४ ख. ग. रषत ५ ग. कीया । * ख. प्रतिमें निम्न पद्यांश छूट गया है "पेस न कीया पतिसाहां, रीव सनातन धरम ।" ६ ख श्रंणकाळ । ग. श्रणकळ । ७ ख सिहि । ८ ग. तषति । १० ख. अतुलीवल । ११ ख. ग. दिलीनाथ । १२ ख. ग. दीया । १५ ख. गजबंध | १६ २०. दशिणी । १७ ख. ग. दहल्लीया । ख. ग. पौरस । २० ख. ग. उजास । २१ ख. ग. वधे । १४ ख. ग. क्रीति । १५ ख. ग. तप । १ ख. बैठो । १३ ख. वधे । १. रखित रक्षित, धन-दौलत । श्रणकळ - वीर । ऐराक - घोड़ा । जंवहर - जवाहरात । बहल्लिया - भयभीत हुए । थाट - दल, सेना । २. तपत - तप्त, तपस्या, तेज, कांति । झळाहळ - देदीप्यमान । पिंड शरीर । पौरिस - पौरुष, शक्ति, सामार्थ्यं । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २] सूरजप्रकास करण सहंस सम करग, तिमर' कुरियंद' भगौ तिण । दबै तास तप देखि, अवर छत्रपति ताराइण । प्रगटियौ उदैगिरि जोधपुर, कमळ सुकवि प्रफुलित करे । गह धार पाट वणियौ' 'गजण', सूरिज' सूरिजसिंघरै ॥ २ खळ भग्गा देखतां, चोर छळ जोर निसाचर । सुध्रम दांन सिनांन", व्रहम जप वधे स्रियावर'२ । पूजा' देव प्रसाद, बधै'४ झालरि१५ घंट वाजा'६ । सुभ मारग मिळ७ सयण, सकळ सुख वधे सकाजा। किलमांण चंद्रवंसी कमळ, देखि तास सकुचै'८ डरै । गहधार'° पाट वधियौ १ 'गजण', सूरज ३ सूरजसिंधरै३३ ।। ३ उण अवसर मझि 'अमर', अधकधर दुंद उठायौ। मिळि असपत्ति खुरंभ ६, अधिक दळ बळ' मझिायौ। हरवळ 'गजबंध' हुवौ , 'अमर' लड़ियौ १ उण वारां३२ । खेड़ेचां दिखणियां, रीठ वागी खग धारां । १ ख. विमर। २ ख. ग. कुरीयंद। ३ ख. दवे। ग. दबे। ४ ख. ग. तारायण । ५ ख. ग. प्रगटोयो। ६ ख. कम । ७ ख. ग. धारि। ८ ख. ग. वणीयो। ६ ख. सूरज । ग. सूरिझ । १० ख. ग. सन्नांन । ११ ख. वैधे। १२ ख. ग. श्रीयावर । १३ ग. पूजो। १४ ख. ग. वधे। १५ ख. ग. झालर। १६ ग. बाजा। १७ ख. ग. मिलि। १८ ख. सकुचे । १९ ख. डरे । २० ख. महधारि । ग. गहधारि । २१ ख. ग. वणीयौ। २२ ख. ग. सूरिज। २३ ख. सूरिजसंघ। २४ ख. ग. अधिक । २५ ख. ग. मेल्हे। २६ ख. ग. पुरम। २७ ख. वळ । २८ ख. ग. सझि। २६ ख. गजवंध। ३० ख. हुनौ। ३१ ख. ग. लड़ीयौ। ३२ ग. बारां। ३३ ख. ग. दषिणीयां। २. करण सहंस - सूर्य । करग - हाय । तिमर - तिमिर, अन्धेरा। कुरियंद - दारिद्रय, कंगाली, निर्धनता। छत्रपति - राजा : ताराइण - तारागण, उडुगण, गह, गर्व । पाट - राज्यसिंहासन । गजण -- गजसिंह । ३. सुध्रम - सुधर्म, उत्तम कर्म, पुण्य कर्त्तव्य। नियावर - सीतावर, श्रीरामचन्द्र । किलमांण – यवन । ४. प्रमर - मलिक अंबर चंपू नामक व्यक्ति जो जातिका हब्शी था और प्रहमदनगरका प्रधान मन्त्री था। असपत्ति - बादशाह। गजबंध – महाराजा गजसिंह। रीठप्रहार । वागौ - वजा, हुमा । Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास असि गयंद तबल' नेजा लियां', खड़े 'अमर' भड़ रिण खळे । भागा' हजार बावन' भिड़े, उभै हजारां प्रागळे ॥ ४ __खड़की · गढ़ धोखळे", गोळकूडौ गाहट्टे । खत्रि लियौ खेलणौ', झाडि खळ दळ खग झट्टै । तोडिचंदी' तोडियौ'३, निहंग चढ़ियौ' पड़ि' नाळौ । गढ़ विकराळी 'गजण', रूक बळि'६ लियौ रनाळौ । प्रासेर सतारौ'६ ऊझड़े, धोम कोम अहि धूजियौ' । दळथंभ नाम असपति ने दियौ, पटां वधारां पूजियौ ।। ५ दखिण धरा रस दियौ५, असह नह करै इरादौ । दिली लियण ६ जिण दीह, जोम भरियौ" साहिजादौ । देखि चहन ८ दळथंभ, सीख मांगे ६ ते सायत । दीध सीख दळ लियण', असप गज करे३२ इनायत । १ ख. तवल। २ ख. ग. लीया । ३ ख. ग. पडि। ४ ख. नागा। ५ ख. वांवन । ग. वावन । ६ ख. ग. सुभड़। ७ ख. धौयले । ग. धौषले। ८ ख. गोळकंडो। ग. गोळकुंडौ। ६ ख. ग. षत्री। १० ख. ग. लीयो। ११ ख. ग. बेल्हणौ । १२ ख. तोडिचजी । ग. तोडिचंजी। १३ ग. तोडीयौ। १४ ख. ग. चढ़ीयां। १५ ख. ग. पड़। १६ ख. वळ । ग. बळ । १७ ख. ग. लीयो। १८ ग. रजाळो। १६ ख. ग. सतारा। २० ख. ग. ऊजड़े। २१ ख. ग. धूजीयौ। २२ ग. असिपति । २३ ख. ग. दीयो । २४ ख. ग. पूजीयौ। २५ ख. ग. दीये । २६ ख. ग. लीयण। २७ ख. ग. भरीयो। २८ ख. ग. चिहन। २६ ख. मंगै । ग. मंगे। ३० ख. ग, सायति। ३१ ग. लीयण । ३२ ख. करे। ३३ ख. ग. इनायति । ४. तबल - एक प्रकारका शस्त्र विशेष । खळे - विचलित हो कर, अधीर हो कर । प्रागळे - अगाड़ी। ५. धोखळे - युद्ध में । गाहट्ट- ध्वंश कर, पराजित कर । झाड़ि - प्रहार कर, संहार कर। खग भट्ट- तलवारोंके प्रहारोंसे । निहंग - प्रासमान । विकराळो - भयंकर, जबरदस्त । गजण - महाराज गजसिंह । रूक -- तलवार । प्रासेर - गढ़, किला। अझड़े - नाश हो गया। धोम - उष्णता, गर्मी । कोम - कूर्म, कच्छप । अहि- शेषनाग । दळथंभ - सेनाको मुकाबलेसे रोकने वाला, महाराजा गजसिंह की उपाधि विशेष । ६. रस - रुचि, प्राकर्षण । प्रसह - शत्रु । इरादौ-विचार । दोह - दिन, दिवस । जोम- उमंग, जोश। चहन-चिन्ह, निशान । असप- अस्व, घोड़ा । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४ ] सूरजप्रकास हुय विंदा सझे दळ हालियौ', साझण' कज' सुरतांणरौ। जोधांण अयौ जोधांणपति, जगे भाग जोधांणरौ ।। ६ इतै खुरम आवियौ', साह परि सझि दळ सब्बळ । धर साहां धौपट, खलक मंडि" पड़े खळभळ' । तांम'' साह तेडियौ', 'गजण' जीपण गजभारां । अवस' को (इ) ऊबरां'५, तेड़ि लीधा तिण वारां । करि 'गजण' थाट खटतोस कुळ, पाराबा'६ गज धज अगां । हालियौ' साह संकट हरण, खुरम साह भांजण खगां ॥ ७ विखम तबल'९ वाजतां, गयंद गाजतां गरूरां । असि धमसतां अनेक, सगह बहसंतां सूरां । सेलां बीज सिळाव, मरद मारवां२१ गहम्मह१२ । इम पायौ ‘गजसाह', दिल्ली पतिसाह दरग्गह२४ । मिळ५ साह कुरब ६ बगसे महत, तेग बंधे स्री हथि तठे। पतिसाह 'गजण' मसलति परठि, जुध प्रारंभ कीधौ जठै ।। ८ १ ख. ग. हालीयौ। २ ख ग. सजण । ३ ख. ग. काज। ४ ग. जोधांणि । ५ ख. प्रायौ। ६ व. ग. आवीयौ। ७ ख. ग. पर। ८ ख. ग. मझिाग. पड़े। १० ख. पळभ्भळ । ग. षळ नळ । ११ ख. ग. ताम। १२ ख. ग. तेडीयौ। १३ ख. ग. अवर । १४ ख. सकी। ग. सको। १५ ख. ऊंवरा । १६ पारावा। १७ ख. पालीयौ। ग. हालीयौ । १८ ख. ग. संगठ । १६ ख. तवल । २० ख. वीज । २१ ख. ग. मारुवां। २२ ख, गहंमद । ग. गहंमहं । २३ ख. ग. दिली। २४ ख. ग. वरगह । २५ ख. ग. मिलि। २६ ख. ग. कुरव। २७ ख. वधे। ६. साझण - दण्डित करनेको, सजा देनेको, संहार करनेको। ७. धौपट - उपद्रव करते हैं, लूटते हैं । खलक - खल्क, संसार । खळभळ - खलबली, घबराहट । तेडियो - बुलाया । जीपण - जीतनेको । गजभारां- हाथियोंका समूह, हाथियोंकी सेना । थाट - सेना। पाराबा - तोप । धज - घोड़ा । अगां- अगाड़ी। ८. गहरां - गंभीर । असि - अश्व, घोड़ा। धमसतां - जोशपूर्ण चलने पर । सगह - गर्व । सिळाव - बिजली की चमक । मारवां - राठौड़ों । गहम्मह - समूह, भीड़। गजसाह - महाराजा गजसिंह । दरगाह - दरबार । महत - महान । परठि- रच कर। Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ५ ६ सझिया अतुळी बळ ' धोम' नयण सिंधुरां, जंगी हौदां पाखर जड़ि ' । तांम हुवा तइयार", भीड़ सिलहां ससत्रां भड़ि" । परठि जीण पाखरां, तुरंग भार आराबां" भरे, मोहर चढ़ि गयंद तुरां होतां चमर, धख दिल्ली सुख कजि धरै । मिसलां अमीर बंट १४ जुध मंडै", साह खुरम पतिसाहरं ॥ ६ .१२ १३ खड़किया अमंगळ | 9 १७ १८ " ह तांम साह तजबीज ६, - एम चित मभि श्रधा । नयर जोध अंब' नयर, वडा दो" भूप विचारै जादा दळ 'जैसाह', देखि हरवळ करि दीधौ । दळां मौहरि दाहिणे, कमंध खितनिज दळ कीधौ । हकिय साह देखे त्रण लाख दुसह भांजे २३ * २१८ ६ डंमर", घणूं भेद न लहै घणा । तिसा, त्रण हजार 'गजबंध '' १३७ १० ख. १४ ख. १ ग. धोम । २ ग. सीधुरा । ३ ग. जड । ४ ख. ग. हूंश्रा । ५ ख. ग. तईयार । ६ ख तोडि । ७ ख. ग. भड । ८ ख. ग. सभीया । ख. तुळवळ | श्ररावां । ११ ख. ग. भरें। १२ ख. ग. मौहरि । १३ ख. ग. षडकीया । ग. वंटि १५ ख मिले । ग. मंडे । श्राधारे । ग. श्राधारें । १६ ख. अंव । २२ ख. षिज । ग. षीज । २३ ख. १८ ख. २० १३ ख. तजवीज । १७ गः ऐम ख. ग. दोय । २१ ख मौहोरि । ग. मौहोरि । २४ ग. देवं । डहकीयो । २५ ख. ग. डमर । २६ ग. भोदि । २७ ख. गजबंध | तणा ।। १० ६. धोम - अग्नि, आग, लाल । सिंधुरां - हाथियों । हौदां - अम्मारी । भीड़ - कस कर, बाँध कर । सिलहां - कवचों । श्राराबां- तोपें रखनेकी गाड़ी । मोहर - अगाड़ी । खड़किया - बजाये । श्रमंगळ - अमांगलिक वाद्य ! तुरां - घोड़ों । धख - प्रबल इच्छा । कजि - लिये । मिसलां - पंक्तियों । १०. प्रधार - धारण करता है, विचार करता है। नयर जोध - जोधपुर नगर । अंब नयर - प्रमेर नगर जो जयपुर राज्यकी प्राचीन राजधानी था। जैसाह - मिर्जा राजा जयसिंह । हरवळ - हरावल, सेनाका अग्र भाग । मौहरि अगाड़ी। डहकियो - भौंचक्का हुआ, स्तंभित हुआ। डंमर - वैभव, ऐश्वर्य । Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६ ] सूरजप्रकास उठ' भीम हरवला, हुवी खूमांण हठाळी । ' प्रवर* खांन ऊबरां", चढ़े लसकर कळिचाळौ । १० प्रारबा" अपारां । १२ ओळां" जिम पड़ि असण, धोम गोळां धोमारां । 9 3 १४ उडि कोहक बांण" सिर धड़ उडे, गज" भिड़ज्ज' भड़ पड़िगरा । खुरमरा थाट आया खड़े, भिड़ज उपाड़े 'भीमरा' ॥ ११ जाडां थंडां जियार, लोह प्राडां भड़" लागा । जेण वार 'जैसाह', भिड़े हरवळ दळ भागा । जु मसै" दळ जंहगीर १६, अवर नह को आलंबण" । उण वेळा औरिया", थाट दारण दळथंभण | 1 २२ रोकिया ३ खुरम 'भीमांण' रा", दळ दहुंवै फाटांदळां । घण जरद घाट सेलां घमक, वाजि भाट घण बीजळां * ।। १२ ४ ७ तोप दगे तिण वार, अवर १ ख. ग. उठी । २ ख. ग. हरवल्लां । ३ ख. ग. हूवौ । ४ ग. अबर । ५ ख. ऊबरा । ६ ग. लसकरि । ७ ग. तौप । ८. दगे। प्रारवा । ११ ख. ग. बोला । १२ ग. धौम । १५ ख. गज्ज । ग. गभ । १६ ख. ग. भिड़ज्ज । ग. जुमसे । १६ ख. ग. जाहांगीर । २० ख. प्रालंवण । २१ व. ग. ओरीया । २२ ख. रोकीया । ग. रोझीया । २३ ख. ग. भीमेण । २४ ख. ग. वीजळां । ६ ग. अबर । १० ख. श्रारवां । ग. १३ ख. ग. कहौक । १४ ख. वांण । १७ ख. भल । ग. झड़ १८ ख. ११. भीम - महाराणा अमरसिंहका पुत्र भीम सीसोदिया जो महारारणा करणसिंहकी सेनाका सेनापति था । खूमांण- सीसोदिया वंशका राजपूत । हठाळौ - अपनी बात ए दृढ़तापूर्वक रहने वाला । ऊबरां श्रमीर, सरदार। कळिचाळी - योद्धा, वीर । सण - तोपका गोला, तीर, बारा । धोम गोळां - श्रागके गोले । धोमारां - ( ? ) । कोहक बांण - एक प्रकारकी तोप, अग्निबाण | भिड़ज्ज - घोड़ा । गरा - समूहों । थाट - सेना, दल । खड़े - चला कर । भिड़ज - घोड़ा । - १२. जाड थंडां - घनी सेनाओं । जियार - जिस समय । लोह प्राडां भड़ लागा - बहुत से योद्धाओं पर शस्त्र प्रहार हुआ। जैसाह - मिर्जा राजा जयसिंह । मसै - मुड़ना, खिसना | प्रलंबण - अवलंब, सहारा । श्रौरिया - झोंक दिये। दारण- भयंकर, जबरदस्त | दळथंभण - सेनाको रोकने वाला, महाराजा गजसिंहकी उपाधि विशेष । भीमांणरा - भीमसिंह सीसोदिया के । बहुवे दोनों प्रोरके । घण - बहुत । जरद - कवच | घाट - शरीर । घमक - प्रहार, वार । वाजि - बजी, ध्वनित हुई । भाट - प्रहार । बीजळां - तलवारों । Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास मेवाड़ा मारवां', वहै साबळ वीजूजळ । तांणि वाग रवि तांम, दुगम देखंत दमंगळ । पिंड फूटै रत पड़े, पियै चौसठि भर पत्तर । सिर तूटां सूरिमां, सझै संकर गळि चौसर । रिख हसै वरै वर अच्छरा, कमंध लोह स्रीहथ करै । जमदढ़ां खंजर पिंजरां जड़े, कळह 'भीम' 'गजबंध'११ करै ॥ १३ बथां१२ भरै गळ बाह, हथां१४ जमदाढ़ झळाहळ । जडै घटां जरदाळ, भिडै नीकळे झळाहळ । बकै'६ छकै बिकराळ', धुकै ऊचकै पड़े धर' । निहंग हंस नीझक, अगन भभकै धर अंबर' । पाड़ियो२३ 'भीम' खागां पछटि, गयौ खुरम लमि कुरंग गति । गहतंत एम२४ जीतौ२५ 'गजण', पूरब ६ धर जोधांणपति ।। १४ १ ख. ग. मारवां। २ ख. सावळ । ३ ख. रति। ४ ख. पीय। ५ ख. चोसठि । ६ ख. ग. भरि । ७ ख. ग. तूट। ८ ग. चौसरि। ६ ख. ग. अपछरां। १० स. ग. श्रीहथि । ११ ख. गजवंध। १२ ख. वयां। १३ ख. गळवांह। १४ ख. ग. हथा। १५ ख. हलाहल । १६ ख. वकै । ग. वके। १७ ख. छवै। १८ ख. ग. विकराळ । १६ ग. धूक। २० ख. उचकै । २१ ख. ग. धरै। २२ ख. अंवर । २३ ख. ग पाड़ीयौ। २४ ख. ऐम। २५ ख. जीतो। २६ ख. पूरव । १३. मेवाड़ां - सीसोदियों । मारवां - राठौड़ां । बीजूजळ - तलवार। रवि - सूर्य । दुगम - दुर्गम, कठिन, भयंकर। दमंगळ - युद्ध । रत - रक्त, खून । चौसठचौसठ योगिनियोंका समूह । पत्तर - खप्पर। सझै- धारण करते हैं। चौसर - हार, माला (यहाँ मंडमाला अर्थ हैं) । रिख - नारद ऋषि । वर- वरण करती है । पिंजरांशरीरोंमें । जड़े-प्रहार करता है। भीम - भीमसिंह सीसोदिया। गजबंध महाराज गजसिंह । १४. बथां - बाहुपाश । गळबाह - कंठालिंगन । झळाहळ - चमकती हुई। घटा - शरीरों। जरदाळ -- कवचधारी। भिड़े - टक्कर खाती या खाता है। झळाहळ -- चमकदार, दमकती हुई। धुके - क्रोधमें जलते हैं। ऊचके - उचकते हैं। निहंग - आकाश । हंस - सूर्य, प्राण। नीझक - उत्कंठित । अगन - अग्नि। भभक - प्रज्वलित होती है। घर - पृथ्वी। अंबर - आकाश । लसि - शोभा देता हुआ । कुरंग - हरिण । गहतंत - मस्त, जोशपूर्ण । जीती- विजयी हुअा। Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८ ] सूरजप्रकास इम नौबत' बजाइ', दुझल जीतियौ दमंगळ पटा वधारा समपि, साह पूजे भुज सब्बळ । कदे सिलह नह करी', विडंग ऐरि बहू वारां । बौह बारां'' 'गजबंध', भिड़े१ जीतौ' गजभारां । तिण वार तेज 'गजबंध' तणौ', दहुं राहां सिर दीपियौ । स्रीहथां खाग वाहै'५ इसा, जुध करि बावन'६ जीपियौ' * ॥ १५ ___महाराजा स्त्री गजसिंघजीरौ दानवरणण१८ असि सिरपाव अनेक, कड़ा मोती गज कंकण'६ । थाट दरब'• थेलियां', घणा जंवहर भूषण घण । जमदढ़ खग जंवहार, अधिक रीझे जसदावै । दिया जीत दळथंभ, इता गिणतां नह आवै । पलटियो ४ नहीं अहियां पलौ, सत हरचंद विरदां सधे । दातारपणे २७ ‘गजबंध' २८ दुझल, वीकम क्रन'६ हूंतां वधे ॥ १६ १ ख. ग. तववति । २ ख. वजाय । ग. बजाय । ३ ख. ग. जीतीयौ। ४ ख. ग. दुमंगळ। ५ ख. सव्वल । ग. सबळ । ६ ख. ग. किवी। ७ ख. ग. वोरे। ८ ख. ग. वहु । ख. वौहां । ग. बहो। १० ख ग. वारां। ११ ख. भीडे । ग. भिड़े । १२ ख. जीतो। १३ ख. गजवंध। १४ ख. दीपीयौ । ग. दापीयौ। १५ ग. वाहे । १६ ग. वांवन । १७ ग. जीपीयौ। *यह पंक्ति ख. प्रति में नहीं है। १८ ख. वर्ननं । ग. वर्नन । १६ ख. ग. कंचण। २० ख. ग. दरव। २१ ख. ग. थैलीयां । २२ ख. रीझे। २३ ख. ग. दीया। २४ ख. ग. पलटीयौ। २५ स्व. ग. विरदां । २६ ख. सध। २७ ख. दातार तणै। २८ ख. गजवंध। २६ ग. कन। ३० ख. ग. वध । १५. दुझल - वीर, योद्धा। दमंगळ - युद्ध । वधारा - पूर्वजोंकी जागीर या राज्य भूमिके अतिरिक्त प्राप्त की जाने वाली नई भूमि, राज्य या ग्राम । विडंग - घोड़ा। ऐरि - युद्ध-भूमिमें. झोंक कर । गजबंधतणौ - महाराजा गजसिंहजीका। राहां - सम्प्रदायों। सिर - ऊपर । दीपियौ - चमका, शोभित हुआ । १६. थाट - ढेर, राशि, समूह । दरब - द्रव्य । जंवहर - जवाहरात । पलौ - अंचल, वस्त्र, छोर। सत हरचंद - सत्यवादी हरिश्चन्द्र । बिरवां- विरुदों। सधै - प्राप्त किये। गजबंध - महाराज गजसिंह । दुझल - वीर, योद्धा। वीकम - वीर विक्रमादित्य । क्रनहूंता - दानवीर राजा कर्णसे । बधे - बढ़ा, विशेष हुआ। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [. दूहा- गांम आठ बारह' गयंद, पनरह' लाख पसाव । गुण पातां रीझे 'गजण', दीधा दिल दरियाव ।। १७ कवित्त- लाख प्रथम दनि लहै', आदि ‘राजसी' अखावत । लख दूजौ दनि लहै, पात 'राजसी' पतावत । दूरस 'किसन' लख दोइ, लहै आढां जस लाइक । गाडण 'केसव' गुणे, ववे पंचम लख वाइक' । लख छठौ 'खेम' धधवाड़ लहि, रांण जगत'' सेवा रहण । धधवाड़ लाख सपतम धरे, स्यांमदास माधवसुतण ॥ १८ अस्टम लख उणवारने, लहै' 3 खेतल' कवि'५ लाळस । सुकवि हेम सांमौर, जेण लख नमौ काज जस । दसम लाख कलियांण, राव महड़ जाडावत । सिंढाइच'६ हरदास, एक दस लख बांणावत। १ ख. ग. वारह। २ ग. पनर। ३ ख. लाये। ४ ख. हले। ५ ख. दूजो ६ न. दति। ७ ख. हले । ८ ख. ग. लायक । ६. ग. गाढ़ण । १० ख. ग. वायक । ११ ख ग. जगड़। १२ ग. तिणवार। १३ ख. लहे । १४ ग. जळ । १५ ग. किवि । १६ ख. संटायच । ग. संढायच । १७ ग. ऐक । १८ ख. वांणावत । १७. गुण - काव्य, कविता, यश। पाता - पात्रों, कवियों। गजण - महाराजा गजसिंह । १८. दनि - दान में । लाख - लाखपसाव । राजसी - राजसिंह नामक अखावत बारहठको जालीवाड़ा नामक ग्राम लाखपसावमें दिया था। राजसी - राजसिंह नामक पातावत शाखाका बारहठ। दुरस -- महाकवि दुरसा पाढ़ा, या श्रेष्ठ । किसन - दुरसा पाढाका पुत्र किसना पाढ़ा जिसको पांचेटिया ग्राम दिया गया था। 'रघुवरजसप्रकास'के कर्ता अपर किसनाजी इनसे छठी पीढ़ीमें हुये थे। केसव - केसोदास गाडणको सोभड़ावास नामक ग्राम लाखपसावमें दिया गया। प्रवे-दिया गया। वाइक - वाक्य, शब्द । खेम - खेमराज धधवाडियाको राजगियावास नामक ग्राम लाखपसावमें दिया गया। धधवाड़चारणोंमें धधवाड़िया नामक गोत्रका व्यक्ति । माधोदास धधवाडियाके सुपुत्र श्यामदास धधवाड़ियाको सातवाँ लाखपसाव दिया गया। १६. अस्टम लख - आठवाँ लाखपसाव । खेतल - खेतसिंह नामक लाळस गोत्रका कवि जिसको जोधपुर तहसीलका भाटेळाई नामक ग्राम लाखपसावमें दिया गया । हेमहेम कवि जो सांभोरे गोत्रका चारण कवि था। इसको महाराज गजसिंहने अपना कविराजा बनाया था। इसने 'गुण भाखा चरित्र' नामक महाराजा गजसिंहके राज्यकालमें एक ग्रंथ बनाया था जो हमारे संग्रहमें है । दसम "बांणावत - प्रसिद्ध कवि जाडा महडूका पुत्र कल्याणदास । बाणाके पुत्र हरिदास सिंढायचको ग्यारहवाँ लाखपसाव दिया गया। Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० ] सूरजप्रकास बारमौ लाख माधव बगसि, संढायच हर' सुक्खनूं ' । तेरमौ लाख दीधौ तदिन, पोह कविया पंच मुक्खनूं ।। १६ दोहा - सुकवि 'मांन' 'गोकळ' सुकवि, रूपग सुणि बहु" रीध । 'गजै'" होय सुरतर' गहर, दोय भाटां लख दीध ।। २० बहु" राजस सुखदांन बहु, बहु सो' जग ऊपरि'" क्रीत सझि, स्रुगि पुत्र दो 'गजपति 'रै, ast 'अमर' लहुड़ौ ' 'जसौ', वडै पण तपोबळ बयळपति १३ १४ १५ जुध फते " निबाह" । १८ सूर १ २४ २५ २८ मारू अमली मांण ॥ २३ पाट विराजै छत्रपती * असि सिरपाव गयंद प्रथ", पातिसाह भुज पूजिया, कहि महाराज" किताब २ जे जंवहार" प्रदाब * 33 ३६ 3 " - २० गौ" पह" "गजसाह' ॥२१ दतार सधीर । नखत' : नरवीर ॥ २२ નદ 'जसै ६ लहे " जोधांण । १ ख. जस । ग. तस । २ ख. ग. सुष्पनूं । ३ ग. तादिन । कवीयां । ६. ग. सुपनं । ७ ख. पौ । ग. पहौ । नर । १० ख. गजर । ११ ख. वहौ । ग. बहौ । १२ वहौ । ग. बहौ । १५ ख. ग. निवाह । १४ ख. फते । १८ ख. श्रुति । १६ ख. गौहौ । २३ ख. ग. वर्षाति । २४ ख तपोवल । ऊपर । ग. उपर । २२ ख. वडे । २६ ख. जसे । २७ ग. लहे । ३० क. अब । ख. अथि । ३१ ख श्रजवार । ग. जुवहार पतिसाह । ३४ ख. ग. पूजीया । २८ ख. ग. छत्रपति । । ३५ ख. ग. माहाराज । २० ન ८ ख. ग. गजण । २५ ४ ख. ग. पहौं । ग. सुर१३ ख. ख. वहौ । ग. बोहौ । १६ ख. ग. सौहौ । १७ ख. ग. पौह । २१ ग. हुड़ौ । ख. यणपित । ग. वयणपित । २६ ख श्रमती । ग. श्रवळी । 1 ।।२४ ५. ख. १६. कविया पंच मुक्खनूं - कविया गोत्रके पंचायणदास कविको । २०. रूपग - काव्य, रूपक । रोध - प्रसन्न हो कर गजै- महाराजा गजसिंह । सुरतर - सुरतरु, कल्पवृक्ष | गहर - गंभीर । ३२ ख. ग. श्रदाव ३३ ख. ३६ ख. किताव | २१. राजस राज्य । क्रीतकीर्ति, यश । स्रगि - स्वर्ग में पह राजा । गजसाह - गजसिंह | २२. अमर - राव अमरसिंह | लहुड़ौ - छोटा । - २३. पांण - प्राण, शक्ति, बल । बयळपति - बयळ सूर्य + पति सूर्यवंशका पति । जसै जसवंतसिंह पाट - राज्य सिंहासन । मारू - राठौड़ । श्रमली मांण - अपने अधिकार ऐश्वयंका उपभोग करने वाला । २४. प्रति - घोड़ा । श्रथ - अर्थ, धन, द्रव्य । जंबहार - जवाहरात । प्रदाब - मान, प्रतिष्ठा । किताब - ( खिताब, उपाधि ? ) Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ११ गज अस' ब्रवि' नागौर गढ़, दे बहु' कुरब' दिलेस । ताव हुंतासण देखि तन, राव कहै' 'अमरेस' ॥ २५ इति चतुरथ प्रकरण । राव अमरसिंघजीरौ वरणण कवित्त-समें तेण सुरताण, अंब दीवांण वणायौ । जठै राव जोमहूं, 'अमर' मदझर जिम पायौ ऊभौ लोपि अमीर, जवन बह हफतहजारी । मीर त्रुजक' इतमांम'', कियौ तदि जड़े कटारी । तदि गयौ साह तजि छत्र तखत, इम दहुं राह उचारियौ । असपती सलाबति मझि 'अमर', मीर सलाबत मारियौ ॥ १ उभै मिसल अंबखास", प.८ धड़हड़ अणपारां । राव जांणि नरसिंघ, हले करि दयंतविहारां । नख जमदढ़ नीझरै'६, रुधर मुख चख रातंबर । काळरूप विकराळ, 'अमर' छिबतौर भूज अंबर । १ ख. ग. असि । २ ख. ग. ववि। ३ ग. वहौ। ४ ख. ग कुरव । ५ ख. ग. कहे । ६ ख. समे । ग. समै। ७ ख. प्राव । ग. प्रांब। ८ क. जौमहूं। १ ख. ग वहौ । १० ख. तुजिक । ग. तुझिक । ११ ख. ग. अतिमांम। १२ ग. कटारि। १३ ख. ऊचारीयौ। ग. उचारीयो। १४ ख. सलावति । १५ ख. सलावति। ग. सलाबति । १६ ख. ग. मारोयौ । १७ ख. ग. प्रमषास। १८ ख. ग. पड़े। १९ ख. नांझरे । २० ख. ग. रुधिर । २१ ख. मातंवर । ग. रातंवर। २२ ख. छिवतो। ग. छिवतो। २३ ख. अंवर । २५. अवि - देकर, प्रदान कर । दिलेस - दिल्लीश, बादशाह । ताव – जोश, क्रोध । हुंतासण - अग्नि, आग। अमरेस – नागौराधिपति राव अमरसिंह । १. सुरतांण - सुल्तान, बादशाह । अंब दीवांण - आम दरबार । जोमहं-जोशसे । अमर - राव अमरसिंह । मदझर - हाथी, गज। मीर त्रुजक - अभियान या जलूस आदि की व्यवस्था करने वाला कर्मचारी। असपती सलाबति - बादशाहसे रक्षित । मीर सलाबत - बख्शी सलाबतखां । २. अंबखास - प्राम खास । धड़हड़ - गिरनेसे उत्पन्न ध्वनि विशेष । राव - राव अमरसिंह। नरसिंघ - नृसिंहावतार । दयंत - दैत्य, असुर, मुसलमान । विहारां-संहार, ध्वंस । नीझर - झर रहा है । रुधर - रुधिर रक्त, खून । रातंबर - लाल । अंबरप्राकाश। Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ ] सूरजप्रकास मल्हपियौ' रूप अध्रियांमणे, बहसंतौ' बंबाड़तौ । उरड़तौ सुजड़ जड़तौ असुर, पांचहजारी पाड़तौ ।। २ पांच हजारो पांच, धड़ां जड़ि हणे जमंधर । मुख सांम्हा 'अमररै', न को पावै नर - नाहर । ग्रहि छळ अरजण गौड़, परठि मनवार'' अपारां । नजर टाळि नाराज, वहे१२ घट हुवौ'३ विहारां । वढ़ियै सरीर जमदढ़ वधे, 'अजौ' कुसळ१५ नह ऊबरै । जीवहूं लाज मोटी जिका, कान काट ८ अळगौ करै ॥ ३ 'अमर' लोथि आविया, वीर दारण १ विकराळा । पाड़ि खळा जुधि पड़े, काळझाळा किरमाळा२३ । दियण २४ दाग ५ दारणां, 'अमर' प्रांणे उण वारां। रचि आई रांणियां ६, सती करि करि सिणगारां । १ ख. ग. मल्हपीयो। २ ख. ग. अध्रीयांमणे । ३ ख. ग. वहसंतो। ४ ख. वांवाडतां । ग. वांवाडतौ । ५ ख. पंच । ६ ख. मुषि । ७ ख. सामा । ८ ख ग. ग्रह । ६ ख. ग. अरिजण। १० स्व. ग. गवड । ११ ख. मनहार । ग. मनहारि। १२ क. वहै । १३ ख. ग. हुवो। १४ ग. वहै। १५ ख. कुसलि । १६ ख. ऊवरे। १७ ख. कांनि । १८ ख. ग काटि। १६ ख. ग. करे। २० ख. ग. प्रावीयां। २१ ग. दारुण । २२ ग. पड़े। २३ ख. ग. करिमाळ।। २४ ख. ग. दीयण । २५ ग. दीग। २६ ख. ग. रांणीयां। २. मल्हपियो - छलांग भरी, कूदा। अध्रियांमणौ – भयंकर । बहसंतौ - विध्वंस करता हुआ। बंबाड़ती - जोशपूर्ण आवाज करता हुआ। उरड़तौ --- बलात् बढ़ता हुआ। सुजड़ कटार । जड़तो- प्रहार करता हुआ। ३. धड़ां - शरीरों । जड़ि- प्रहार कर । सांम्हा – सम्मुख, सामने । अमरर - राव अमरसिंहके । परठि-प्रतिष्ठा कर के । नाराज - तलवार । वहे - चला कर। विहारां विदीर्ण । वढ़िय- कट गये । अजो- अर्जुन गौड़ । मोटी-महान, महत्त्वपूर्ण । ४. लोथि - शव। वारण- दारुण, जबरदस्त । काळझाळा - वीर, योद्धा। किरमाळा-- खड़ गधारी दियण दाग - अन्त्येष्टि क्रिया करनेको। Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १३ कमधज्ज' 'बलू'२ सतियां' कन, कथ अमरहूं कहाविया । सुरतांणहूंत घमसांण सझि, अम्हां सताबी' आविया ॥ ४ सतियां 'प्रांम''' सहेत, दाग वेदोगति दीधा । केसरियां'' कमधजां, करे१२ म्रत१३ उच्छब' कीधा । वड चांपावत'५ 'बलू'१६, कमध 'भाऊ' कूपावत । अवर' भींच उमराव', रोस भरिया' बहु रावत । सझि तुरां साज जकड़े ससत्र, 'बलू'२१ मौड़ सिर बांधियो१२ । 'अमर'रै वैर२३ असपतिहूं, कमधां जुध प्रारंभ कियौ ॥ ५ आया छिबता उरस'६, तेज खड़िया तोखारां । जड़ता सेलां जवन, रीठ देता खगधारां । सात फौज साहरी, विखम करि धार विहारां । झट वहता झेलता*६, मिळे दरगाह मंझारां। १ ग. कमधइझ । ख. कमधज । २ ख. वलू । ३ ख. ग. सतीयों। ४ ख. ग. कनां । ५ ख. ग. कहावीया। ६ ख. ग. अम्हे । ७ ख. सतावी। ८ ख. ग. प्रावीया । ६ ख. ग. सतीयां। १० ख. ग. अमर । ११ ख. ग. केसरीयां। १२ ग करें । १३ ख. ग. मृत । १४ ख. उछव । ग. उत्छव । १५ ग. चंपावत । १६ ख. वलू । १७ ग. अमर। १८ ख. ग. अमररा। १ ख. ग. भरीया । २० ख. सजि। २१ ख. वलू । २२ ख. वांधीयौ । ग. बांधीयो। २३ ग. वरि । २४ ख ग. कीयो। २५ ख. ग छिवता। २६ ख. ग. उरसि । २७ ख. ग. षड़ीयां। २८ ग, तोषारां। २६ ख. ग. झीलता। ४. बलू – राठौड़ बलू चांपावत । कनै - साथ । कथ - संदेश । अमरहूं- राव अमर सिंहसे । घमसांण – युद्ध । अम्हां- हम । सताबी- शीघ्र । ५. प्राम - राव अमरसिंह । दाग - अन्त्येष्टि संस्कार, दाह-संस्कार । वेदोगति - वेदोक्त विधानसे । वड - बड़ा, महान । चांपावत - राठौड़ वंशकी उपशाखा । कूपावत - राठौड़ वंशकी उपशाखा । अवर -- अपर, अन्य । भींच - योद्धा । रोस - जोश, उमंग। भरिया - पूर्ण, भरे हुए। रावत - (राजपुत्र) योद्धा, वीर। सझि तुरां साज - घोड़ों पर जीन कस कर । जकड़े ससत्र - शस्त्रोंसे सज्जित हो कर । अमरर - राव अमरसिंह राठौड़के। ६. छिबता - स्पर्श करते हुए। उरस - आसमान । तोखारा - घोड़ों। जड़ता -प्रहार करते हुए। रीठ - प्रहार। दरगाह - दरबार । Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ ] सूरजप्रकास सत्र लोटपोट उडि दोट सिर, नवकोट छ खंड वागा निडर, धजर चोट खग धोहड़ां । लालकोट ' मभि लोहड़ां ।। ६ ४ दळ पाड़े बह रखद, पड़े झिल लोह पारां । करे" अचड़ कमधजां, वरे चढ़ विमाण अपछर तिन वारां । चलविया, सकौ कमधज सिरदारे । सूर लोक सत लोक, जाइ 'अमरेस' जुहारे । जान नांम रवि चंद जितै, गोम तितै" सिर नागरै । " थंभ तरवारियां ", प्रौजूं साखी " आागरै ॥ ७ १० २ ४ १६ ७ १८ उडि गया' हौ – 'भ्रमर' प्रवाड़ा एण विध, कहिया " सुकवि सकाज । इण आगळि वरणन ' अथग, राज तेज जसराज ॥ ८ महाराजा जसवंतसिंघरौ वरणण १६ २३ ६ कवित्त - राजतेज 'जसराज, सहस नव पति" संह" राजनीत भ्रमरीत ३, वरण चत्र सुखी राजथंभ मंत्रियां, राज रच्छिक २५ राजद्वार* बहु" कुरब, राज जसधर १ ख. लालकोटि । २ क. पाडे । ३ ख. ग. चौहौ । ४ क. पड़े । ५ क करें । ६ क. वरै । ७ ख. वमांण । ८ख. चलवीया । ग. चालीया । १० ख. ग. ससि । ११ ख. ग. जिते । १२ ख. ग. सिरि । ग. तरवारीयां । १५ ग. सांबी । ग. कहीया । १६ ग. वरन । २० २३ ख. ग. भ्रमरीति । २४ ख. ग. द्वारि । २७ ख वहौ । ग. बहौ । १६ ख. दोहा । ग दौहा । ग. पच्चि । मंत्रीयां । १३ २८ ख. कुरव । २१ क. संह । २५ ख. ग. रछिक । ६. लोटपोट - कुलांचें खाते हुए । राठौड़ों । लालकोट - लाल किला । लोहड़ा - अस्त्र-शस्त्रों । २२ संकर । धरमवर उमरावां । कविरावां । ६ ख जाए । ग जाऐ । ख. उडिया । १४ ख. १७ ग. ऐण । १८ ख. २२ ख. ग. संकर । २६ ख. ग. राज दोट प्रहार । धजर भाला धोहड़ां - जखमों, - ७. रवद यवन, मुसलमान । श्रचड़ महत्त्वपूर्ण कार्य, श्रेष्ठताका कार्य । सकौ सब । सूर लोक - वह कल्पित लोक जहाँ पर वीर गति प्राप्त योद्धागरण पहुँचते हैं। सत लोक - वह कल्पित लोक जहाँ पर वे वीर पुरुष पहुँचते हैं जिनकी अर्धागिनियाँ उनके साथ सती होती हैं । श्रमरेस -- राव श्रमरसिंह । जुहारे अभिवादन किया। गोम - पृथ्वी । नागर - शेषनागके । श्रोजूं - अभी तक । - ८. प्रवाड़ा - वीरता के कार्य, युद्ध, शाका । श्रागळि • अगाड़ी । ६. सहस नव पति सह - मारवाड़का अधिपति । सहंसकर - सूर्य । वरण चत्र - - चारों वर्णं । राजथंभ - राज्यके स्तंभरूप । रच्छिक रक्षक | राज जसधर - महाराजा जसवंतसिंहसे प्राप्त यश वाले । कविरायां - कविराजाओं । - Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १५ दुजराज राजप्रोहित दिपत, सरब' राज सुख साजरौ । पतिव्रता राज मिंदरां' पवित्र, राज एम' 'जसराज'रौ ॥६ *बाजराज' नूत' बेब', करै नटराजतणी कळ । गजां राज घण गरज , गाज सरराज मदग्गळ* । रूप भूप रतिराज, प्रांण म्रगराज'० प्रकासण । कौरवराज'१ धन करण, विमळ सुरराज विलासण । अरिराज थरक' मानै अमत', तप ग्रहराज तराजरौ । इण राज जोड़ नह राज अनि, राज एम'४ जसराजरौ ॥ १० नाभ राज इक निमळ५, प्रफुलि गिरराज वंसपर । रहै ज? तन राज, रमै रसराज रूपधर । पंडव राज प्रधान, मूरछन राज व्रहमंड६ । जीति'" राज तन जिता, चक्र सिवराज खंड चंड । रतिराज पुत्र जैराजरै, किंकर राज सुरपति कियौ ८ । 'जसराज' ग्यांन दुजराज जग'६, जिको राजपति जीपियौ२१ ॥११ १ ख. सरव। २ ख. ग. मंदिरां। ३ ग. ऐम । *ये दो पंक्तियाँ ग. प्रतिमें नहीं हैं। ४ ख. वाजराज। ५ क. नृप। ६ ख. वेव। ७ ख गाज। ८ ख. मद्दगल ६ ग. पांण । १० ख. मृगराज । ग. नृपगराज। ११ ख. ग. कोषराज । १२ ख. ग. थरकि । १३ ख. ग. अमल । १४ ग. ऐम। १५ ख. ग. नृमल । १६ ख. ग. वहैमंड। १७ ख. ग. जीति । १८ ख. ग. कोयौ । १६ ख. ग. जगि। २० ख. जीको। ग. जिको । २१ ख. ग. जीपीयो। ६. दुजराज - द्विजराज, ब्राह्मण । राजमिंदरां- राजमहलोंमें । १०. बाजराज - घोड़ा । बेब -- दो दो । कळ - प्रकार, तरह । सरराज - समुद्र । मदग्गळ - हाथी। रतिराज- कामदेव। प्राण-शक्ति। नगराज-सिंह। विमळ - पवित्र । सुरराज - इन्द्र। करण - धनका दान देने में कर्णके समान । विलासण - उपभोग करने वाला । थरक - भय, डर । अमत - अमित, अपार । ग्रहराज - सूर्य। तराजरौ समानका। जोड़-बराबर । अनि - अन्य । जसराज - राजा जसवंतसिंह । ११. इस पद्यमें महाराजा जसवंतसिंहके गूढ़ वेदान्त एवं योग सम्बन्धी ज्ञानकी ओर संकेत है। Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ ] सूरजप्रका छंद वेताळ 3 ग्यांन ब्रह्म 'जसराज' गुण, पुन' उग्र तप करि पाविया । सार 'जसवंत' आदि 'स्रुतिवर'", विविध ग्रंथ वणाविया' । ब्रह्म व सनकादि मुनिवर, ध्यांन नित प्रत चित धरै । गुण" पर उर" वसै १२ निज तत, राज मझि जसराज ' रे ।। १२ कवित्त-ग्यांनी सीखे ग्यांन, कवी सीखै सीखै खत्री संग्रांम, सस्त्र विद्या३ मत सीख रसचारी । १४ सीखै छत्रधारी । ૩૬ सीखंत मंत्रवी, राग सीख सीखे भ्रम कुळ' सकळ, रीत वेद पंडत १५ सकळ, दाता दांन विध" दसदसौ । स्रब जांण उतम विद्या प्रसध, जगतगरू राजा ' जसौ' ।। १३ करै राज इम कमध े, 'जसौ' छत्रपति जोधाण | - दिल्ली ४ ऊठियौ, खेध धौकळ खुरसांणै । इतै .१६ નર્ २६ २७ ६ त्रिय " बसि "चित जादा । साहज्यहां ति समें, जुगत मिळि 'अवरंग' 'मुरादि', दखिण 3 मुरड़े साहिजादा । १८ १० २ ३ ख वर । ४ ख ग विवधा । १ ख. पुण्य । ग. पुन्य २ ख. ग. पावीया । ५ ख. ग. वणावीया । ६ ख ब्रह्म । ग. ब्रह्म । ७ ख ग. सनकादि । ८ख. ग. निति । εख. ग. प्रति । १० ख. ग. त्रिगुण । ११ ख ग वर । १२ ख. वसे । ग. बसे । १३ ख. ग. विदीया । १४ ख. ग. प्रज । १५ ख. ग. पंडित । १६ ख. ग. दन । १७ ख. ग. विधि | १५ ख श्रव । १६ ख. ग. उतिम | २१ क. प्रसद । ग. प्रसिध । २२ ग. कसंध । २३ ख. यतै । दिली । २५ ख. ऊठोयौ । ग. उठीयौ । २६ ख. ग. धौषळ । २८ ख. समं । ग. समैं | २६ ख जुगति । ३० ख. ग. त्रीय | ३२ ख. दक्षिण । ३३ ग. मुरड़ें। ग विदीया । २४ ख. ग. २० ख ग. यतै । २७ ख. ग. साहजिहां | ३१ ख ग वसि । १२. ग्यांन ब्रह्म - ब्रह्मज्ञान, तत्वज्ञान | जसराज - महाराजा जसवंतसिंह पुन पुण्य । - कविताई | सरसाई । तत - तव । १३. मत बुद्धि, मति मंत्रवी - मंत्री । रसचारी- रसज्ञ । दसदसौ दसों दिशाओं में । जगतगरू - • महान, जगत्गुरु । राजा जसौ राजा जसवंतसिंह | १४. जसो - राजा जसवंतसिंह । खेध - द्वेष, कलह । धौकळ युद्ध, उत्पात । खुरसांणं - बादशाहत, बादशाह | साहज्यहां बादशाह शाहजहाँ । त्रिय- स्त्री । श्रवरंग - औरंगजेब | मुरड़े - कोप कर | साहिजादा - शाहजादा । - -- Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १७ पूरब्ब' धरा' 'सूजै' पलटि', पिता हुकम सुजि लोपिया। साहज्यां अन 'द्वारा' सुकर, कळहण दारुण' कोपिया ॥ १४ तांम 'जसौ' तेडियौ, अधिक दळ बळ सझि पायौ । सुपह मिळे' साहसान, सझे हित कुरब सवायौ । जिण वेळां 'जैसाह', हुतौ'४ कूरम पह'५ हाजर । साहिजादै'६ पतिसाह, बिहूं" देखिया'८ बराबर । तजबीज साह कीधौ त?, अवर सकौ' यांहूं १२ वरै२३ । कीजिये विदा मांडण कळह, अ साहिजादां१६ ऊपरै ।। १५ साह तांम समसेर, जड़त ७ जंवहरां जमंधर । मुलक वधारै समपि, हेम तौड़ा'८ गज हैंमर । 'सूजा' दिस६ 'जैसाह', विदा कीधौ जिण वारे । दो ° साहजादां३१ दिसी३३, एक 3 'जसराज' अधारे । १ ख. पूरव । ग. पूरव । २ ख. षरा। ३ ख. पटलि। ४ ख. ग. लोपीया। ५ ख. ग. साहिजां। ६ ख. दार । ग. दारण। ७ ख. ग, कोपीया। ८ ख. ग. तेडीयौ । ९ ख. वळ। १० ख. ग. प्रायो। ११ ख. मिल । १२ ख. ग. साहतूं । १३ ख. कुरव । १४ ख. हतौ। ग. हतौ। १५ ख. ग. पौहौ। १६ ख. ग. सहजादै । १७ ख. विहूं। ग. विहू। १८ ख. देषीया। ग. देषीया । १६ ख. ग. वहादर। २० ख. ग. तजवीज । २१ ख. ग. सको। २२ ख. याहूं। २३ ख. ग. उरै। २४ ख. ग. कीजीयै। २५ ख. मंडल। ग. मंडण । २६ ख. साहजादां। २७ ख. ग. जड़ित । २८ ख. ग. तोरा। २६ ख. दिसै । ग. दिसि। ३० ख. ग. वारै। ३१ ख. ग. दोय। ३२ ग. साहिजादो। ३३ ख. ग. दिसी। ३४ ग. ऐक । १४. सूज - शाहजादा शुजा। लोपिया - उल्लंघन किया। साहज्यां - शाहजहाँ । द्वारा शाहजादा दाराशिकोह । कळहण - युद्ध । १५. तेड़ियौ - बुलाया। सुपह - राजा । जैसाह - मिर्जा राजा जयसिंह । पह - राजा। मांडण - रचनेको। १६. समसेर - तलवार । जंवहरां- जवाहरात । हेम - सोना, स्वर्ण । तौड़ा - आभूषण विशेष । हैमर - घोड़ा। दिसी - तरफ। जसराज - महाराजा जसवंतसिंह । अधारे - आधार रूप रहा। Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८ ] सूरजप्रकास पाराब' साथ बह सुर असुर, फबे गजां धज फरहरां । आगराहूंत चढ़ियौ' 'जसौ', कीधां विकष्टा लसकरां ॥ १६ सम सरिता घण सुजळ, वहै घण पंथ वहीरां । पयदळ गयदळ पमंग, गज्ज त्रंबाळ'' गहीरां । धर धूजै अहि धुकै, कोम कसकै कंध कमर'२ । चूर अनड़ तर चकै, रजां ढंके रातंबर' । जमरांण इसा दळ सझि 'जसौ', दुगम रूप दरसावियौ । दिन केक मांहिं खड़िया दुझळ, एम१६ उजेणी आवियौ ॥ १७ रचि 'अवरंग' 'मुरादि', गजां चढ़िया'८ गह धारे । इण दळहूं चवगुणे'६, विखम दळ बळ विसतारे' । उभै तरफि प्रारबा, मंडे३४ दळ उभै मद्द गळ५ । उभै तरफि बंधि२६ अणी, दमंग भाला दावानळ । १ ख. पाराव। २ ख. ग. साथि । ३ ख. ग. वहौ। ४ ख. फवे। ५ ख. ग. चढ़ीयो। ६ ख. ग. विकटा। ७ ख. ग. ल्हसकरां। ८ ख. ग. सलिता। ६ ख. ग. गाज। १० ख. वाल। ११ ख. धुजै । ग. धूक। १२ ख. ग. कम्मर। १३ ख. रातवर । १४ ख. ग. दरसावीयौ। १५ ख. ग. षड़ीयां । १६ ग. ऐम । १७ ख. ग. श्रावीयौ। १८ ख. ग. चढ़ीया। १९ ग. चवगुणौं। २० ख. वल । २१ ग. विसतारै। २२ ख. ग. तरफ। २३ ख. पारवा। २४ ख. ग. मंडे । २५ ख. ग. मदग्गल । २६ ख. वंदि । ग. बंदि। १६. पाराब- तोप। सुर - हिन्दू । असुर - मुसलमान । कीधां - किए हुए । विकटां जबरदस्त, भयंकर । लसकरां- सेनाएँ। १७. सरिता - नदी । पयदळ – पदाति, पैदल । गयदळ - हाथियोंकी सेना, गजदल । पमंग - घोड़ा। गज्ज - गजित किये । त्रंबाळ - नगाड़ा। गहीरां- गंभीर । अहि - शेषनाग । धुकै - जलता है। कोम - कूर्म, कच्छपावतार । चूर - ध्वंस कर । ढंके - आच्छादित कर । रातंबर - सूर्य । जमरांण – यमराज । सझि - सज्जित कर के। जसौ - महाराजा जसवंतसिंह । दुगम - भयंकर, भयावह । दरसावियो - दिखाई दिया । खड़ियां - चलाने पर, चलाते हुए। १८. गह- गर्व । चवगुणे - चौगुने । प्रारबा - तोपें। मद्दगळ - हाथी। अणी - अनीक, सेना। दमंग- अग्निकरण । दावानळ - दावाग्नि । Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६ आरोह पखर धर उडंडां, सिलह सस्त्र' धर ऊससै' । तेज में दुरंग सझि तेवडै', जंग 'मुरादि'५ 'अवरंग' 'जस' ॥ १८ एक साथ प्रारबा, दुगम बिहुँदै' दळ' दग्गै' । अगन'' सोर ऊछळे, लाय धर अंबर लग्गै १४ । रोदकार१५ अरड़ाव, पड़े'६ गोळा अणपारां । कै असि गज भड़ होम, धोम मिळि घटा अंधारां । घण बांण'कोहक' बांणां गहक, दुगम घोर सिंधव डकां । कमधजां खाग ऊनंग करे, बोग२३ ऊपाड़ी२३ बेढ़कां ॥ १६ नाळ घमस४ वजि निहंग, धरा जहराळ कमळ' धुकि । सास नास वजि हमस, सरां सलितास नीर सुकि । भिड़िया' मूंछ'८ भुहार, धजर कढ़ियां धजफाड़ां । साबळे भुज साहियां", रूप झळ भूत मुराड़ां । १ ख. ससत्र : २ ख. ऊसमें। ३ ख. ग मै। ४ ख. ग. तेवडे । ५ ख. मुराद । ६ ग. ऐक। ७ ख. ग. साथि । ८ ख. ग. दहवें। ख. ग. वळ। १० ख. ग. दगो। ११ ख. ग अगनि। १२ ख. वूछले । ग. उछळे । १३ ख. अंवर। १४ ख. लग्गे । ग. लगो। १५ स्व. ग. रौदकार। १६ ख. ग. उडे। १७ ग. हवै। १८ ख. ग. वांण । १६ ख. कहौक । ग. कोहक । २० ख. वाणा । २१ ख. ग. सघण । २२ ख. ग. वाग। २३ ग. उपाड़ी। २४ ख. घमसि। २५ ग. वज । २६ ख. ग. कमव। २७ ख. ग. भिड़ीया। २८ ख. मूछ । ग. मुंछ। २६ ग. बढ़ीयां। ३० ख. सावल। ३१ ख. ग. साहीयां । १८. पखर - घोड़ेका कवच । उडंडां - घोड़ों। तेवड़े-तिगुना। १६. दुगम - दुर्गम, भयंकर । बिहुँदै - दोनों। लाय - प्राग, अग्नि । अंबर - आकाश । रोदकार – रुद्ररूप, भयंकर । अरड़ाव - ध्वनि विशेष । अणपारां - असीम, अपार । धोम - अग्नि, पाग। घण बांण - तोप विशेष । कोहक बांणा - अग्निबाण, तोप विशेष । गहक – ध्वनि । सिंधवी - वीर रस का राग । डका - नगाड़ेके डंडों। ऊनंग - नग्न, नंगी। बेढकां-वीरों। २०, नाळ - तोप । घमस - ध्वनि विशेष । निहंग - अाकाश । जहराळ - शेषनाग । कमळ - मस्तक, शिर। नास - नाक । हमस -- घोड़ा। सरां - तालाबों, सागरों, तीरों। सलितास - नदी। भिड़िया - स्पर्श किये। भुंहार - भौंहों । धजर - भाला विशेष । साबळ - भाला विशेष । साहियां - धारण किये हुए। झळ - अग्नि, भाग । भूत - प्रेत । मुराड़ा - ( ? ) Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० ] सूरजप्रकास आवियौ' रूप अध्रियामण', खुरासांण ऊखेलियो । महबूब' थंडां जाडां मही, भूप 'जसै' तदि भेळियौ ।। २० उजेणी जुधवरणण। बहै घमक साबळां, वहै झाटक वीजूजळ । ढहै गयंद खळ ढहै, प्रेत भख लहै ग्रीध पळ । पड़े भिड़ज पखरैत, पड़े जरदैत अपारां । मंडै'° मुगळ मारवां'', इसौ धमचक इणवारां१२ । रक्खग' झडै दडरगत, गहि सगत्त४ पत्र गड़गडै । लड़थड़े पड़े के धड़ ल., एम१५ असुर सुर प्राथडै ।। २१ सेल१६ जड़े स्रीहथां, 'जसौ' पाडै जरदैतां । बगल'७ भरै महबूब'८, पमंग पाड़े परखरतां । जुध खग वाहै 'जसौ', घणा मुगळा खळ घावै । मसत गजां महबूब, धमक उर टक्कर २ धावै २३ । १ ख. ग. प्रावीया। २ स्व. ग. अध्रीयामण। ३ ख. ग. ऊषेलीयौ। ४ ख. महबूव । ५ ख. ग. भेलीयौ। ६ ख. ग. वहै। ७ ख. सावळां ८ ख. भषण। ६ ख. है । १० व. ग. मंडे। ११ ख. ग. मारुवां। १२ ख. ग. उणवारां। १३ ख. ग. रेष्पग । १४ ख. ग. सकति। *यह पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियोंमें इस प्रकार है __रेष्पग झड़े दडई रगत, गहि पत्र सकति गड़गड़े। १५ ग. ऐम। १६ ग. सैल । १७ ख. वगल । १८ ख. महवूव । १६ ग. जुधि । २० ख. ग. मूगल । २१ ग. धर्मक। २२ ख. ग. टकर। २३ ख. ग. धकावै। २०. अध्रियांमणे - भयंकर, भयावह । महबूब - प्यारे, प्रिय । थंडां - सेनाएं । जाडां धनी। मही- में । भूप जसै - महाराजा जसवंतसिंह ।। २१. धमक - प्रहार, वार । वहै - होता है । झाटक - प्रहार। बीजूजळ - तलवार । ढहै - गिरते हैं। पळ - मांस । भिड़ज - घोड़ा। पखरैत – कवचधारी घोड़ा। जरदैत - कवचधारी योद्धा । मारवां - राठौड़ों। धमचक - युद्ध । रक्खग - रक्षक | झड़ेवीर गति प्राप्त होते हैं। दड़ - द्रव पदार्थका ध्वनि करते हुए गिरना। रगत - रक्त, खून । सगत्त - शक्ति, रणचंडी। गड़गड़े - गर्जना करती है। लड़थड़े - लड़खड़ाते हैं। घड़ - कबंध । असुर - मुसलमान । सुर - हिंदू । प्राथड़े - युद्ध करते हैं। २२. जड़े - प्रहार करता है। स्रोहयां - अपने हाथोंसे । जसौ - महाराजा जसवंतसिंह । बगल भरै महबूब - प्रेमी आपस में प्रालिंगन करते हैं; प्रेमपूर्वक परस्पर मिलते हैं। पमंग - घोड़ा। घावै - संहार करता है, मारता है। महबूब - ( ? )। धमकउछल कर। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २१ इम करी' उरड़ असवारि असि, घण निबाब' खळ घाविया । तिण वार कमंध 'सूरज'तणा', सूरज हाथ सराहिया ।। २२ दस हजार रवदाळ, पड़े गज भिड़ज अपारां । अंग असि पर आपरै, वहै रत लीह विहारां' । गूड' हा गहलोत, त्रुटे १४ सिव चखत तरासै । रूक झटां राठौड़, सूर पड़िया'५ सतरासै । बचियौ न एक' लख दळ विचे, जबन धकै चढ़ि जेणसूं । 'अवरंग' 'मुरादि'१८ बचिया उभै, आव न तूटी एणसू° ॥ २३ गाहट' हरवळ गोळ, चोळ चंदवळ करि चुख चुख२२ । निजर चोळ धज नहर, मसत चख चोळ चोळ४ मुख । चोळ सिलह थंड५ चोळ, चोळ२६ हाथळ वीजूजळ । सफरा चोळ सरूप, जदिन रत चोळ वहै जळ । १ ख. ग. करै। २ ख. ग. असवार । ३ ख. निवाव । ४ ख. खग । ग. खगि । ५ ख. ग. घाधीया । ६ ख. ग. सूरिजतणा। ७ ख. ग. सराहीया। ८ ग. रवदाळा। & क. पड़े। १० ख. ग, लोह। ११ ख. ग. विहारां। १२ ख. ग. गौड। १३ ख. ग. गहलौत । १४ स्व. तुटे। ग. तुटै। १५ ख. ग. पड़ीया। १६ ख. ग. वचीयो । १७ ग. ऐक । १८ ख. मुराद । ग. मुराद। १६ ख. ग. बंचीया । २० ग. ऐणसूं । २१ ग. गाहटि। २२ ग. चुष्प चुष्प । २३ ख. ग. निजड़। २४ ख. झोळ। २५ ख. ग. पिंड । २६ ग. चौळ । २७ ख. वहे। २२. उरड़ - युद्ध, आक्रमण, टक्कर । असि - घोड़ा। घाविया - संहार किये, मार डाले। सूरजतणा - सवाई राजा सूरसिंहके वंशज । सूरज - सूर्य, भानु । हाथ सराहिया - युद्ध-भूमिमें सूर्यने हाथोंसे शस्त्र प्रहार करनेकी प्रशंसा की। २३. रवदाळ - मुसलमान । भिड़ज - घोड़ा । असि - तलवार । रत - रक्त, खून । लोह - रेखा। विहारां - विदीर्ण होने पर, फटने पर। गूड -- गौड़ वंशके राजपूत । हडा - चौहान वंशकी हाडा शाखाके राजपूत। तरास - ( ? )। रूक - तलवार । झटां - प्रहारों। प्राव - प्रायु, उम्र । तूटी- समाप्त हुई। २४. गाहट - नाश कर, ध्वंस कर। हरवळ - सेनाका अग्र भाग । गोळ - सेना। चोळ - लाल, घावोंसे पूर्ण। चंदवळ - सेनाके पीछेका भाग। चुख चुख - खंड-खंड । निजर - आंख, नेत्र । धज - भाला । नहर - (दिन, दिवस ?) [नोट - अरबीमें दिनको नहार कहते हैं। सिलह - अस्त्र-शस्त्र । थंड - सेना, समूह । हाथळ – हाथ, एक शस्त्र विशेष । वीजूजळ - तलवार। सफरा- उज्जैनकी सिप्रा नदी। रत - रात, रात्रि । Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ ] सूरजप्रकास महबूब' चोळ लोहां महा, चोळ आप कळि चाळयौ । जुध' चोळ होय प्रायो 'जसौं', एम' वाघ भूखाळयौं' ।। २४ 'अवरंग' असपति हुवो, विखम चंड नयर विचाळै । तदि ' जसै ' " लंकाळ । मसलति साधारी" । & खेलू मालू खोसि, लिया तांम चूक तेवड़े, साह उठे 'सौ' श्रवियो", करग 9 9 १२ १६ अवरंगजेब १४ इम जांणियो", कमंध हणे करिमाळ चूक में कूफ' १६ करि, माळधरी तां प्रीत" भयतणी, व्रवै" बहु तोग ક્ર્ २३ महीमुरतबा‍, उतंग गज 93 धारियां " कटारी * । १४ ग. अवरंगजेबि । १८ ख. ग. मै । ग. व्रवे । २३ ख वहौ । ग. बहौ । १६ ख. ग. कफ । छळबळ कियां' 1 ० गळ मोतियां ।। २५ ३ ग. जुधि । ४ ग. ऐम । ५ ख. । १ ख. महवुव । २ ख. चालुयौ । ग. चाळीयौ । भूषालुयो । ग. भूषांलीयौ । ६ ख षोस । ग. घौस ६ ख. ग. ताम । धारीयां । ७ ख. ग. लोया । ८ख. जसौ । १० ख. सधारी । ११ ख ग आवोयो । १२ ग करगि । १३ ग. * निम्न श्रंश ख. प्रतिमें नहीं है करग धारियां कटारी, अवरंगजेब इम जांणियौ । १५ ग. जांणीयौ । .१७ २४ साह वधारा * । तुरंग अपारा | १६ ख. ग. हर्णे । १७ ख ग. कीयां । २० ख. ग. मोतीयां । २१ ग. प्रीति । २२ ख. २५ ख. ग. मुरतवा । २४ ग. बधारा । २४. लोहां - शस्त्र प्रहारों । कळि चाळयौ - ( योद्धा ? ) । भूखाळयौ - भूखा, बुभुक्षित । २५. चंड नयर - चंडी नगर, दिल्ली । विचाळे - में । जसे - महाराज जसवंतसिंह | लंकाळ - वीर योद्धा | चूक - छल, षड़यंत्र । तेवड़े - विचार कर । साह - बादशाह | मसलति - गुप्त मंत्ररणा । साधारी- ( सलाह की ? ) । करग - हाथ । करिमाळ - तलवार | क्रूफ – ईरानका एक नगर । वि.वि. - ईरानके एक नगरका नाम कुफ्र है । इस नगरके निवासी बड़े क्रूर, निर्दय और बेईमान होते हैं, क्योंकि कूफियोंने हजरत इमाम हुसैनको बड़े-बड़े वचन दे कर बुलाया था और फिर उन्हें अकेला ही छोड़ कर कत्ल होने दिया, अतः कवि महोदय ने भी यह क्रूफ शब्द प्रौरंगजेबके लिए प्रयोग किया है । 1 २६. व देता है । बह - बहुत । बधारा - राज्य या जागीर में वृद्धि । तोग - मुगल बादशाहोंके समयका ध्वज विशेष जो उच्च मनसबदारों या पदाधिकारियोंको विशेष सम्मान के रूपमें प्रदान किया जाता था। इस पर सुरागायके पूंछोंके बालोंके गुच्छे लगे रहते थे। महीमुरतबा - मछली प्रादिके प्राकारके वह निशानात जो बादशाह या राजाकी सवारीके आगे हाथियों पर चला करते थे । उतंग - उत्त्ग, ऊँचा । तुरंग - घोड़ा। Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २३ सूरजप्रकास सुजड़ खंजर समसेर, कनक जवहर' घण किम्मति' । साह ववै' सिरपाव, ववै द्रब मुहम विलायति । सुत 'गजण' जदी दळ बळ संझे, पायौ जोम उमंडरौ । पति त्रिखंड डंड लीधौ पछटि, खंड पाणि खट खंडरौ ॥ २६ महाराजा श्रीजसवंतसिंघजीरौ दांनवरणण५ दूही - चत्र गज सांसण दूंण चत्र, दस चत्र लख दन दोध । ववि रीझां अणपार विण', कमध 'जस' जस कीध ॥ २७ कवित्त- बारहट' नरहर बगसि', एक लख प्रथम उजागर । कवि आढ़ा 'किसन'नूं , वे लख दुवौ क्रीत'वर । अभंग 'खेम' घधवाड, दोय लख हत्थे ७ दीधा । 'हरी'१८ संढायच हेक, लोख व्रवि बह ६ जस लीघा । १ ख. ग. जवहर। २ ख. ग. किम्मति। ३ ख. ग. प्रवे। ___ *ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है-- सुत गजण सबळ दळ बळ सके। ४ ख. माहाराजा। ५ ख. वर्नन । ६ ख. दोहा । ग. दोहा। ७ ख. गज। ८ ख. ग. पार । ६ ख, ग विणि । १० ख. धीर। ११ ख. वारट! ग. वारहट । १२ ख. वगति । ग. बगप्ति । १३ ग. ऐक। १४ ख. ग. प्रवे। १५ ख. दुौ। ग. दुनो। १६ ख. ग. क्रीतिवर। १७ ख. ग. हत। १८ ख. हरि। १६ ख. वहौ। ग. बहो । २६. सुजड़ -- कटार । समसेर - तलवार । कनक - सोना, स्वर्ण । जंवहर - जवाहरात । घण किम्मति - बहुमूल्य । मुहम - मुहिम, सेना, फौज । गजण - महाराजा गजसिंह । जोम - जोश । उमंडरौ - उमड़ कर । 'पति त्रिखंड 'खट खंड ' - जब गजसिंघका पुत्र दल-बल सहित आया तो ऐसा मालूम होता था कि मानों तीनों खण्डोंका पति हाथमें खाण्डा लेकर छहों खण्डोसे दण्ड वसल कर के लाया है । २७. चत्र - चार। सांसण - राजा द्वारा दान में दी गई भूमि या ग्राम, शासन । दूंण - दूना, दुगुना । दन - दान । दीध - दिये। व्रवि - दी, दे कर । जसै - महाराजा जसवंतसिंह। कोध – किया। २८. नरहर - अवतार-चरित्र ग्रंथके रचयिता महाकवि नरहरदास बारहठ । लख - लाख । उजागर - अपने नाम या वंशको प्रसिद्ध करने वाला । आढ़ा किसन - प्रसिद्ध महाकवि दुरसा पाढा का पुत्र । बवे - दिया, दे कर । दुवौ - दूसरा । कीत वर - कीतिको प्राप्त करने वाला, यशस्वी। अभंग- वीर । खेम धधवाड़ - धधवाडिया गोत्रका खेमराज चारण कवि। हरी संढायच - हरिदास संढायच गोत्रका चारण कवि । हेक - एक । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ ] सूरजप्रकास लहि हेक लाख महड़ , 'बल' लख त्रण' सांदू 'नाथ' लहि । आढ़ा ‘महेस' हूं रीझ' अति, पांच लाख दीधा सुपह ।। २८ हदा- इम दत खग बहु करि अचड़, सुख करि राजा समाज । परम हंस मिळियौ पवित्र, राजहंस 'जसरास' ।। २६ इति पंचम प्रकरण । महाराजा अजीतसिंघजीरौ जनम कवित्त-तिण दिन जसवंततणा, निडर बह भड़ नर नाहर । साथ रखत ले सकळ, दिली आविया बहादर' । उदरि हुतौ' उणवार, 'अजौ'५४ सोवन" कुखजद्दवि' । जेण समें'८ जनमियो', रैण नवसहंसतणौ२° रवि । छक वधे कमध सयणां उछब, तदि मुख प्रफुलति' कमळतिम । जनमतां 'अजौ' अवरंग जळे, जनम किसनरै कंस जिम ।। १ १ ख. बलू। २ ख, लषि । ३ ख. ग. त्रिण। ४ ख. लह । ग. लहै। ५ ख. ग. रीझि । ६ ख. दोहा । ग. दौहा। ___*यह पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न प्रकार है --- इम षग दन वहौ करि अचड। ७ ख. मिलीयौ। ८ ग. जराजा। ६ ख. निजर। १० ख. ग. वहौ। ११ ख ग. प्रावीयां। १२ ख. ग. वहादर। १३ ख. हुतो। ग. हूंतो। १४ ग. अजो। १५ ग. सौवन । १६ ख. कुष । ग. कुषि । १७ ख. जदवि । ग. जादवि । १८ ख. समै । ग. समैं। १६ ख. ग. जनमीयौ। २० ख, ग. नवसहसणौत । २१ ख. ग. प्रफुलित। ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पंक्ति निम्न प्रकार हैं 'छक वधे सयण कमा उछव।' २२ ख. ग. जले । २८. त्रण- तीन । सांदूनाथ - नाथा सांदू । प्राढ़ा महेस - प्रसिद्ध कवि आढ़ा दुरसाका पौत्र तथा पाढा किसनाका पुत्र महेशदास आढ़ा। सुपह- राजा, नृप । २६. अचड़ - महान कार्य, बड़ा कार्य। परम हंस मिळियौ- मोक्षको प्राप्त हुआ । जसरास - महाराजा जसवंतसिंह । १. रखत - रक्षित, धनदौलत । उदरि - गर्भमें । प्रजौ - महाराजा अजीतसिंह । सोवन - सुन्दर वर्णवाला । कुख - कुक्षि, गर्भ । जद्दवि - यादववंशको पुत्री महाराणी यादवी । रंण - भूमि, पृथ्वी । नवसहंसतणौ - मारवाड़का। रवि - सूर्य । छक - कांति, दीप्ति, खूब । सयणां - सज्जनों। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २५ 'जस'' दिया' जवनरै, उवर' मझि दाह अकारा । वे चितारि' 'अवरंग'', जोध तेड़िया 'जसारा' । कमधांहूंता कहै, उभं देहमें 'जसावत' । मुनसफ खावौ मुलक, उतन जावौ सब रावत । इम सुणि जबाब'' 'अवरंगहूं', रावत 'जसवंत'रा रटै । नह' दियां साह खावंद' नरिंद, सीस दियां खावंद सटै ॥ २ आयौ'५ लालच उतनुं ६, सुतौ पह' बखत ८ सिधारै' । दइव'° उतन करि दियो', अवर कुण'२ सकै उतारै । रखौ सेवतां४ रखां, अवर ५ मुहमां ६ करि जांणौ । रखौ नहीं तौ रखां, उतन खग बळ" आपणौ । कथ एम ८ सिरै दीवांण कहि, चख धिखे मुरड़े' चालिया । ऐ वचन साह 'अवरंग' उर३३, सेलतणी विध४ सालिया३५ ॥३ १ ख. ग. दीया । २ ख. उवा । ३ ख. ग. बै-चितगरि । ४ ख. ग. प्रवरंगि। ५ ख. ग. तेडीया। ६ ख. कमंधहंतां । ग. कमघांहूता। ७ ख. ग. देहमैं। ८ ग. मुनसप । ६ ग. जानी। १० ख. सव । ११ ख. जवाव । १२ ग. नहं । १३ ख. ग. षांवद। १४ ख. ग. दीयां । १५ ख. ग. प्रापौ। १६ ख. ग. उतन। १७ ख. ग. पौहो । १८ ख. वषत । ग. वषति । १६ क. सधारे। २० ख. ग. दई। २१ ख. ग. दीयो। २२ ग. कंण। २३ क. उतारे। २४ ख. सेवतौं । ग. सेवतो। २५ ग. जबर । २६ ख. महिमा । ग. महुमां। २७ ख. ग. वलि । २८ ग. ऐम। २६ ख. ग. सरे । ३० ग. धिषि। ३१ क. मुरडे। ३२ ख.ग. चालीया। ३३ ख.ग. उवरि। ३४'ख. ग. विधि। ३५ ख. ग. सालीया। २. जसे- महाराजा जसवंतसिंह । उवर - हृदय, उर। अकारा - भयंकर । तेड़िया बुलाये । जसारा - महाराजा जसवंतसिंहके । उभै देहमें जसावत - महाराजा जसवंतसिंहके दोनों राजकुमार, अजीतसिंह और दलथंभन । मुनसफ - मनसब, पद, अधिकार । उतन - जन्मभूमि, वतन । रावत - योद्धा । साह - बादशाह । नरिव -राजा. नरेन्द्र । . सटै- एवज में । ३. सु- दह । पह - राजा, प्रथम । सिधारे - चले गये, चला गया। दइव-देव, ईश्वर । जवर - जबरदस्त। मुहमां- युद्धों, मुहिम । सिरै बीघांण - आम दीवान, प्राम दरबार । चख - नेत्र, चक्षु । चख धिखे मुरड़े चालिया - क्रोधमें प्रज्वलित हो कर चले। सेलतणी विध - भालेकी तरह । सालिया - शल्य रूप हुये । Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६ ] सूरजप्रकास दिलीजुधवरणण 'अवरंग'हूं करि प्रांटि', अडर' डेरां भड़ पाया। जोध साथ करि जतन, पहुव मुरधर पुंहचाया । करि सिनांन वदन करि, ध्यान चित धरे चक्रधर । सिलह कसे कसि सस्त्र, पमंग साखति सझि पक्खर । ऊससै'' करे दूणा अमल, बोम छिबै४ उर१५बर ६ उरै'। इम कहे राड़'८ मांडां इसी, अचड़ प्रथी' सिर ऊबरैः ॥ ४ कवित्त दौढौ छक बोले ३३ रिणछोड, सूर जोधौ ‘गोयंद' सुत । भड़ बोले २४ चंद्रभाण, दूठ जोधौ द्वारावत । भाटी सुरतांणोत५, 'रुघौ' बोलै २६ बिरदाळौ । आगै पड़ि ऊपड़े, भिडै ६ उज्जेण' भुजाळी । ऊदावत बोलिया, अडर भारमल दलावत । निडर बोल रुघनाथ, सूर दारण सूजावत । १ ख. ग. प्रांट । २ ख. परड । ३ ख. हेरां। ४ ख. ग. पहोव। ५ ख. ग. पहुंचाया। ६ स. ग. सनांन । ७ ख. ग. दन। ८ ख. ग. करे। १ ख.,ग. सोकति । १० ख. म. पप्पर। ११ ख. ऊस★। १२ ग. करें। १३ ख. ग. वोम । १४ ख. ग. छिवै । १५ स. ग. इम। १६ ख. ग. वर। १७ ख. ग. वरै। १८ ख ग. राडि। १६ ख. ब. प्रिथी। २० व. ऊवर । ग. ऊबरै। २१ ख. दोढ़ौ । २२ ग. छकि। २३ ख. वोले। ग. बोले। २४ ख. वोले । ग. बोले। २५ ख. सुरतांणीत । ग. सुरतनौत । २६ ख. वोले। २७ ख. ग. विरदालो। २८ ख. ग. ऊपडे। २६ ख. ग. भिडे । ३० स. उजेण । ग. उजेणि। ३१ ख. वोलीया। ग. बोलीया । ३२ ख. वोलि । ३३ ख. ग. रघुनाथ । ४. प्रांटि - शत्रुता, वैर। अडर -निर्भय। जोध - योद्धा। जतन - रक्षा । पहुव - राजा । चक्रधर - विष्णु । पमंग - घोड़ा। साखति - जीन । पक्खर - घोड़ेका कवच । अमल - अफीम । बोम – व्योम, आकाश । राड़ - युद्ध । मांडां - रचेंगे, करेंगे । ऊबर - रक्षित रहे, शेष रहे। छक - जोशमें आ कर । बूठ - जबरदस्त । बिरदाळी - विरुदधारी, यशस्वी । भुजाळीशक्तिशाली, समर्थ । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [२७ स्यांम छळ' करां जुध साहसां', धार समंद झूल ण धसां । किरमरां' विहंड' असुरां कटक, वरां रंभ सुरपुर बसां ।। ५ सुणि इम कहियौ सुकवि, सूर नाथावत 'सूजै' । राजा भुज रावतां, पटां' इण" दिन कजि पूजै । इसड़ौ इज' बोलियौ , कूत जिम हुतौ करारौ। धणी काम खगधार, मरण अवसांण 'समारौ' । ऐ पाय वसां स्रगि'' एकठा', इण विध' सांदू आखियौ । पित मूझ 'जस'१५त्रण लख समपि, राजा हित करि ६ राखियो ।। ६ जिकौ'८ करूं ऊजळी'६, जंग करि लूण 'जसा'रौ । आज करूं ऊजळौ, प्रगट वड कूरब पितारौ । मौहरि गोठि वीमाह, मौहर'२ दरबार मझारां । रहां मौहरि १४ रावतां, सदा जिम वहतां सारां । १ स्व. ग. छलि। २ ख. ग. साहसू । ३ ख. ग. करिमरां। ४ ख. ग. विहंडि । ५ ख. ग. कहीयौ। ६ ख. ग. पटा। ७ क. इस। ८ ख. ग. ईज । ख. वोलीया । ग. बोलीया। १० ख. हुतौ । ग. हूंतो। ११ ख. ग. श्रग। १२ ग. ऐकठा। १३ ख. ग. विधि। १४ ख. ग. आषीयो। १५ क. लसै । १६ ख. कर । १७ ख. प. राखीयो। १८ ख. जिको। १६ ग. उजळो। २० ख. ग. कुरव। २१ ख. मोहोर। ग. मोहोरि। २२ ख. मोहौर । ग. मौहौरि। २३ ख. ग. दरवारि। २४ ख. मोहोर। ग. मोह रि। ५. स्यांम - स्वामी । छळ - लिये । साहसां-बादशाहसे । धार समंद - तलवारोंके समुद्र में, युद्ध में । मूलण धसां - स्नान करने को प्रवेश करे। किरमरां- तलवारों । विहंडनाश कर । असुरां- मुसलमानों। कटक - सेना, दल । वरां - वरण करें। रंभ अप्सरा । सुरपुर - स्वर्ग। बसां - निवास करें। ६. सुकवि - चारण । सूर - वीर । नाथावत सूजी - नाथा सांदू चारणका पुत्र सूरजमन । रावतां - योद्धानों। कजि - लिए । लगि - स्वर्ग। एकठा - एक साथ । सांदूचारण कुलका एक गोत्र, सूरजमल सांदू (चारण) । पाखियो - कहा । जसै - महाराजा जसवंतसिंह। त्रण - तीन । लख - लाखपसाव । समपि - समर्पण किया, समर्पण कर के। ७. जिको - वह, जो। जसारौ - महाराजा जसवंतसिंहका । मौहरि - अग्र, अगाड़ी । गोठि - मित्र-मंडलीका वह सामूहिक भोजन जो किसी सुअवसर या सुन्दर मौसमके समय किया जाय अथवा किसी बड़े व्यक्तिके सम्मानमें किया जाय। वीमाह - विवाह ! मौहर - अग्र, अगाड़ी। मझारां - में, मध्यमें । रहां मौहरि रावता, सदा जिम वहां सारां- तलवारोंके भयंकर प्रवाहमें भी सदैव ही मेरा वंश (चारण) योद्धामोंके अगाड़ी युद्ध करता और प्रोत्साहन देता रहता है। Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ] सूरजप्रकास वीजळां मौहरि' खळ दळ विहंडि, वप विहंडाय परी वरां । स्रग` करें' वास अंजस सरब, कुळ सौ वीस कवेसरां ॥ ७ सुणिनि भड़ कथ सुकवि, कांम प्रवण नीमण कर । आसावत उण वार, दुगम बोलियो" बहादर । दांत चढ़े दळ रवद, जितौ" विहंडूं वीजू जळ" । इसड़ा करूं १३ अनेक दिलीपतिहूंत दमंगळ | १४ .१५ १६ १६ बह १३ १३ करूं दिली धोकळ ४ वडा, अंग बळि " अकळ उर मांहि घट क्रोधा" अगनि, जाळू 'अवरंग करतां इम मचकूर, ग्रेडर 'अवरंग' राजलोक भूपरा, सज्जि" खग" सुरग साबळ १४ पकड़े सूर, तुरां चढ़िया पड़ती आभ प्रचंड, २५ ६ अडर झालै ७. ६ ख. ख. ग. १ ख. महौर । ग. महौरि । २ ग. श्रमि । ३ ख. ग. करां । ४ ख. सरव । ५ ग. अन । ६ ग. कांमि । ७ ख. ग. दुरंग । ८ ख. वोलीयौ । ग. बोलीयौ । वाहादर । ग. बाहादर । १० ख. जितो । ग. जितां । ११ ग. बोजूजळ । १२ करू । १३ ख. ग. वहौ । १४ ख. धौकल । ग. धौंकळ । १५ ख. ग. वल ग. श्रकलि । १७ ख. उरे वरं । ग. उरं बरं । १८ ग. क्रौधा । १६ ग २० ख. जेवरं । २१ ख. ग. साझि । २२ ख. षभि । ग. षगि । २४ ख. ग. सावल । २५ ख. ग. चढ़ीया । २६ ख. जालं । । २३ ग. सुरगि । २७ ग. ऐहा । उरैबरे'" । जेबरै ।। ८ - दळ आया | 3 वसाया । जम तेहा । भुज एहा " । -- वीजळां - तलवारों । विहंडि - नाश कर, ध्वंस कर । वप वपु, शरीर । विहंडाय - संहार करवा कर । परी - अप्सरा । वरां - वरण करू । स्रुग - स्वर्ग | अंजस सरब - सबको गर्वोन्मत्त कर-कर के मेरे कुलके एक सौ बीस गोत्रके कवेसरोंको ( कवीश्वरों, चारणों) गर्वयुक्त करू ं । ८. नीमण ( ? ) । श्रसावत - ग्राशकर्णका पुत्र । दुगम - दुर्गम, जबरदस्त । श्वद मुसलमान । विहंडूं - नाश करू, संहार करू । वीजूजळ - तलवार । दमंगळ - युद्ध । धोकळ - युद्ध, उत्पात । कळ - जबरदस्त । उरंब - उर, हृदय, साहस तलवार । घट - अपार, असीम | - १६ ख अबरंग । — ६. मचकूर - सलाह, विचार, मजकूर । राजलोक - महाराणियाँ, राजा के जनाने । सज्जि - प्रहार कर । सुरंग - स्वर्ग, देवलोक । साबळ - एक प्रकारका भाला । सूर-वीर । तुरां घोड़ों । जम- यमराज । तेहा - तंसे । नाभ - प्रासमान झालं - थामते हैं, धारण करते हैं । - Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६ सूरजप्रकास चमराळ फिरै' दळबळ* चिहूं', दगे तोप गोळा दमंग | भड़ां मुरधरतणा, परम कहे प्रोरै पमंग ॥ ६ तिण वार समर हुवा संफळा, जोध 'अवरंग' धड़ चवधारां धमकि, रीठ वागा छौळ रुधिर ऊछळे" १० कमळ ऊछळ , 3 पत्र भर " चंडी ३ पियै ४, मंडै १५ संकर भाट १६ पड़ै झड़ जजरंग घाट तूटै जरद, दळ खोद बढ़े हूंकळ दिली, धोकळ" कीधौ १७ सिरै भड़ां नवसहंस, जो (ध) रैणायल वा खग वैरियां ", विखम घड़ कळस तूटै भारा त्रजड़', अंग ऊपरा २१ रत छूटै अणपार, धड़ां फूट १ ख. फिरे । ४ ख दगे । ५ ख. दमक । २ ख. दळवळ । ३ ख. ग. चहूं । ६ ख. पमर । ७ ख. ग. वोरे । ८ख. ग. हूश्रा । ६ ख. ग. धमक । १० ग. वागां । ११ ख. ग. उछले । १२ ख. ग. भरि भरि । १३ ख. चंड | १४ ख. ग. पी। १५ ख. मंडे । १६ ग. भाउँ । १७ ग. हंकळि । १८ ग. धौकळ । १६ ख. रैणायर । ग. रेणायर । २० ख. ग. वैरीयां । २१ ख. ग. त्रिजड़ । ६. चमराळ - यवन, मुसलमान । चिहूं - चारों ओर दमंग - प्रग्निकररण | ईश्वर, परमात्मा । श्रोरं युद्धमें झोंकते हैं । पमंग - घोड़ा । - -- 'जसारां' | खगधारां । कराळां । रुंडमाळा । ग्रौझड़ां | 1 १०. समर - युद्ध । संफळा - अस्त्र-शस्त्रोंसहित । श्रवरंग - औरंगजेब बादशाह | जसारां - महाराजा जसवंतसिंहजी के । चवधारों - चारों ओर पैनी धारका भाला विशेष । धमकिप्रहार कर के रोठ - प्रहार या प्रहारकी ध्वनि । वागा - बजे, ध्वनित हुए । छौळ - धारा, प्रवाह । कमळ - शिर, मस्तक । पत्र - खप्पर । जजरंग जबरदस्त, मजबूत । भाट - प्रहार, झड़, निरन्तर होने वाली वर्षाके यवन, मुसलमान, बादशाह । ड्रंकळ - कोलाहल । घूहड़ा - राठौड़ों । 1 धूहड़ां ॥ १० जूटै । विछूटै । अपारा । चवधारा । - घाट - बनावट | जरद - कवच समान । श्रौझड़ां - भयंकर । खोद धोकळ - युद्ध । कीधौ किया। ११. नवसहंस राठौड़, मारवाड़। जो (घ ) - जोधा शाखाका राठौड़ । रैणायल - रण. छोड़दास जोधा । जूट - भिड़ते हैं । कळस - मस्तक । विछूटे दूर होते हैं । भारासमूह । त्रजड़ - तलवार । अपारा - असीम । रत- रक्त, खून। अणपार- प्रपार, असीम | चवधारा - - भाला विशेष । - परम - - Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ] सूरजप्रकास लोहड़ा धाप' इण विध' ल., सूर पड़े हंस नीसरै। रंभ वरे सुरग वसियौ 'रयण', अचड़ प्रिथी सिर ऊबरै'' ॥ ११ खांडां'' झट'२ छ: खंड, दळां विहंडे द्वारावत' । आय आय बह असुर, घाट साबळ१६ खग घावत' । लीधौ पाणी लूण, महीपतिरौ घण मोही८ । जिम पिंड कीधौ जोध, लंण पाणी जिम लोही । इम लड़े खेतर पड़ियौ १ 'अचळ', पहने छळ जस ब्रद पावियो । चंद्रमाण अछर५ वरि रथ चढ़े, अमरापुर मझि प्रावियौ ।। १२ भाटी 'रुघौ २७ भुजाळ, खाग झाटी कळि खाटी । आवियाटी ६ घड़ असुर, धकै चाढ़े असि धाटी । अंग बरंग ऊछळे, किलम विहरंग खग कमळ ४ । सुरंग रंग सांपड़े, जांणि सिधमल्ल गंग जळ । १ ख. ग. धापि । २ ख. ग. विधि । ३ ख. ग. लड़े। ४ ख. ग. पड़े। ५ ग. नीसरे। ६ क. वर। ७ ख. सरगि । ग. सुरपि। ८ ग. वसीयो। ६ ख. ग. सिरि। १० ख. कवरे। ग. ऊबरे । ११ ख. ग. षंडा। १२ ख. ग. झाट। १३ ख. ग. द्वाराउत । १४ ख. प्राप। १५ ख. वहौ । ग. वौहौ। १६ ख, सावल । १७ ख. धावत । १८ ख. मोहा । ग. मौहां। १६ ख ग. लोहां। २० ग. षेति । २१ ख. ग. पड़ीयो। २२ ख. ग. पौहौ। २३ ख. ग. छलि। २४ ख. ग. पावीयौ। २५ ग. अपछर । २६ ख. ग. प्रावीयो। २७ ख. रुधे । ग. रुधे। २८ ग. षगा। २६ ग. अवियाटी। ३० ख. वरंग। ३१ ख. उछळे । ३२ ख. विम। ३१ ख. षंगि । ग. षगि । ३४ ख. प. कंम्मल । ३५ ख. रंष। ३६ ख. सावडै । ग. सापडे। ३७ ख. ग. मलंग। ११. लोहड़ा - अस्त्र-शस्त्रों। धाप - तृप्त हो कर। हंस - प्रारण । नीसर- निकलता है । रंभ - अप्सरा। वरे - वरण कर के । रयण - रणछोड़दास जोधा । अचड़ - कीर्ति । १२. खांडो - तलवारों । झट - प्रहार । विहंडे - नाश कर, ध्वंस कर। द्वारावत - मानका पुत्र द्वारा । असुर - यवन । घाट - शस्त्रका पैना भाग । घावत - प्रहार करते हए। पह- राजा। छळ - युद्ध, लिये। वद-विरुद, कीर्ति । पावियो -- प्राप्त किया। १३. रुघौ - रुघनाथसिंह । भुजाळ – शक्तिशाली । प्रावियाटी - तलवार । घड़ - शरीर । धक - अगाड़ी। असि धाटी- धाटदेशोत्पन्न घोड़ा । बरंग - खंड, टुकड़ा। किलम - मुसलमान । विहरंग - नाश करता हुअा। कमळ - शिर, मस्तक । सुरंग - लाल । सांपड़े - स्नान कर । जाणि - मानों। सिधमल्ल - महादेव । Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३१ 'सुरताण' सुतन पड़िय' समर, मनि प्रबवातां मुर वसी। उर वसी जिसी खाटे अचड़, सुरग' गौ वरे उरवसी ।। १३ उदैभांण अरिहरां, वाहि खग करे विहारां। अरिहर घण पाछटै, धोम झेलै खगधारां । उडै बूथ पळ अंग, जूथ ढाहै जवनांणां । एम पड़े अणबीह", पाडि बहौ मुगळ पठाणां । इळ अंबर' तितै'' खाटी अचड़ , वर रंभ सुजस वधारियौ । रवि मंडळ लोप१५ घाटी रसण, इम भाटी स्रगावियौ' ॥ १४ वाहि सेल खग वाहि', करै 'भाऊ' कळिचाळी१६ । ऊदावत प्रणबीह", किलम गज हण२१ लंकाळौ । साबळ२३ दंतूसळां, घाट फबियौ3 दीपक घट । कमळ पंख जिम कमळ, झेल२४ घणहुवौ खगां झट । १ ख. ग. पड़ीयो। २ ख. प्रक्वात । ग. प्रबवात । ३ ख. ग. श्रुगि। ४ ग. धौम । ५ ख. ग. बूथ । ६ ख ऐम। ७ क. पड़े। ८ ख. ग. अणवीह । ६ ख. वहौ । १० ख. अवर। ११ ख. जिते । १२ ख. अचल । १३ ख. ग. वरि। १४ ख. ग. वधावीयौ। १५ ख. लौपि । ग. लोपि। १६ ख ग. श्रुगि। १७ ख. ग. प्रावीयो । १८ ग. वाह । १६ ख. कळचाळौ । २० ख. ग. अणवीह । २१ ग. हणे । २२ ख. सावल। २३ ख. फवीयौ। ग. फबीयौ। २४ ग. झेलि। २५ ग. पण । २६ ख. हो । १३. सुतन – पुत्र । पड़ियौ समर - युद्ध में वीर गति प्राप्त की। मनि - मनमें । प्रब - पवं, उत्सव । मुर - तीन । उर वसी - जैसे हृदय में निवास किये हुए थी। जिसी-जैसे ही। खाटे - प्राप्त कर । अचड़ - कीर्ति । गौ - गया। वरे - वरण कर के। उरवसी उर्वशी नामक अप्सरा, अप्सरा । १४. अरिहरा - शत्रुओं । विहारां - संहार, ध्वंस, विदीर्ण । प्राट - प्रहार करते हैं। धोम - क्रोधाग्नि । बूथ - मांसके गुत्थे या खंड । पळ – मांस । जूथ - समूह । ढाहै - मारता है। जवनांणां - यवन, मुसलमान । अणबीह - वीर, योद्धा। वर- वरण कर के । वधारियो- बढ़ाया। १५. कळि चाळी - युद्ध । किलम - मुसलमान | लंकाळो - वीर, योद्धा । दंतूसळो - हाथियों के बारह दांत । घाट - शरीर । सावळ...."घट - भालों और हाथियोंके दांतोंके प्रहारोंसे योद्धाका शरीर 'घुड़लों के समान सुशोभित हुआ। (देखो भाग १, पृ. २५२) Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ ] सूरजप्रकास १ तदि पड़े खेत दळत सुतण, वरि रंभ बांणक' विदरै । नरिंदरे कांम प्रायौ नरिंद, प्रायौ सुरपुर इंदर * ।। १५ करे' बरंग" दळ" किलम, 'रुघौ सूजावत ३ कां । वढ़े घाट रत वहै, वाहि" झळ जेम" भभूकां भड़ भिड़ज्ज' गजभार, धार विहरे" पाड़े " धड़ ढहियां सिर पौढ़ियाँ", बौळ क बौळ बहादर * * । 'ऊदल' कुळोध परणे अछर, जयत ६ खीम विरदां जगे । १ २० 3 ४ ५ चढ़ि रथां हले होतां चमर, प्रयौ अमरपुर ऊमगे" ।। १६ सांदू चारण 'सूर', दो हुंडे खळ दळ दुगम, १ ख. ग. पड़े । २ ख. ग. दळपति । ५ ग. नरचं दरं । ६ ग कांमि । મ ७ ख श्राया । ७ - १२ ह मोहर े" बिखम" रावतां महाबळ" । भाटक वीजूजळ | ३ ख वांणक । ग. वणिक । ८. यंदरं । * यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । ११ ग. दळि । १२ ग. रुघो । १३ ग. सुजावत । । १६ ख. ग. भिड़ज । १७ क. विहरै । ग. विहेरे । २१ ख. ग. पौढ़ीयौ । २२ ख. ख. ग. करे । १० ख. ग. वरंग । १४ ख. ग. माहि । १५ ग. जैम १८ क. पाडै । १६ ख. ग. धर । २० ख. ग. ढहीयां : ग. वोल । २३ ख. वाहादर | ग. बहादर । २४ ख. कलो । ग. कलोध । २५ ग. परणि । २६ ख. जयति । २७ ख श्रयौ । २८ ग. कंमगे । २६ ख. मोहोर । ग. मौहौरि । ३० ख. महावल । ३१ ख. ग. विखम १६. बरंग – खंड, टुकड़ा । किलम मुसलमान । रुधौ सूजावत रूकां तलवारोंसे सूरजमलका पुत्र रघुनाथसिंह शत्रु दलको खंड-खंड करता हुआ वीरगति प्राप्त हुआ । बढ़े - भड़- योद्धा । भिड़न्ज - घोड़ा । कट कर। रत - रक्त, खून | भभूकां - ( ? ) गजभार - हाथियों का समूह । धार तलवार । बिहरे - विदीर्ण कर, संहार कर । ढयां - कटने पर, गिरने पर । बौळ - लाल, रक्तपूर्ण । झक बौळ - ( भिगो कर लाल किया हुआ ? ) ऊदल लोध - उदयसिंह के वंशका । परणे - वरण कर के । श्रछरअप्सरा । ऊमगे - उत्कंठित हो कर । ४ ख. ग. व्यंद | - १७. सांग - चारणों का एक गोत्र । सूर सूरजमल वीर । मोहर - अगाड़ी। रावतांयोद्धाओं | खळ दळ - शत्रु दल । दुगम-दुर्गम जबरदस्त । झाटक प्रहार । वीजू - जळ - तलवार । Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३३ अंग चुख चुख प्रावधां, तूट' पड़ियौ' तिणवारां । वरि रंभ चढे विमांण, वणे सुरवप जिणवारां । पित कुरब' खूण भूपाळरौ, करि ऊजळ' जुध जस करगि । मगरूर भेदि सूरजमंडळ", सूरजमल पहुंतौ सरगि ॥ १७ खांप खांपरा खत्री, अवर बहु' सूर अकारा । करि करि तंडळ किलम, धणी छळि तीरथि धारा । इम करि करि बहु अचड़, मोह परहर' वप माया । दिब'४ धरि धरि सुर देह, अछर वर५ झुगि आया। जुध दुरंग दंत' चढ़िया' जिता, खित पाड़े मुगळां खळां । दळ साह डोहि आयो दुझल, वेढक रंगियां वीजळां ॥१८ 'अजौ' बाळ' अवसता, लेख दइवै२३ गढ़ लीधौ । धर४ छळ भड़ धूहड़ा, कटक तड़ तड़ मिळ६ कीधौ । १ ख. ग. तूटि। २ ख. ग. पडीयौ। ३ ख. ग. विमांणि। ४ ग. जिणवरां। ५ स. कुरव । ६ ख. वज्जल । ग. ऊजळ । ७ ग. सूरिजमंडळ । ८ ख. पांष पाष। १ ख. खांपरां। १० ख. ग. वहौ। ११ ख. ग. धारा। १२ ख. ग. वहौ। १३ ग. परहरि । १४ ख. ग. दिव्य । १५ ख. ग. वरि वरि। १६ ख. ग. जुधि। .७ ख. ग. दांति । १८ ख. ग. चढ़ीया। १९ ख. ग. मूगल । २० ख ग. रंगीयां। २१ ख. वाल । २२ ख. ग. लेषि। २३ ख. ग. दूंदै। २४ ख. धरि। २५ ख. ग. छलि । २६ ख. ग. मिळि। १७. चुख चुख - खंड-खंड, टूक-टूक । प्रावधां - प्रायुधों, अस्त्र-शस्त्रों। तूट - कट कर । पड़ियो - वीर गति प्राप्त हुआ । विमांण – वायुयान। लूंण - नमक । भूपाळरौ- राना जसवंतसिंहका। मगरूर - वीर, जोशीला। पहुंती - पहुँच गया। सरगि- स्वर्ग में । १८. स्वांप-- शाखा या गोत्र । प्रकारा- जबरदस्त । तंडळ - नाश, ध्वंस । छळि - युद्ध, लिये । अचड़ - महत्त्वपूर्ण कार्य । परहर - छोड़ कर। वप - शरीर । दिव- दिव्य । अछर - अप्सरा । मुगि- स्वर्गमें। डोहि - विलोड़ित कर के। वेढ़क - जबरदस्त, योद्धा। वोजळां - तलवारों। १६. प्रजो - महाराजा अजीतसिंह । बाळ अवसता - बाल्यावस्था । लेख - प्रारब्ध । घर पृथ्वी, राज्य। छळ - लिये। धूहड़ा - राव धूहड़के वंशजों, राठौड़ों। कटक... कीधो-शाखा-शाखाके वीरोंने मिल कर सेना तैयार की । Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४ ] ऊदावत' । २ रावत चांपा कूंपा जोधा जैता हठि चढ़े क्रोध क्रीमसीहरा, करण ऊससे लड़ण इंद्रसिंघहूं, जाजुळ भड़ 'अगजीत 'रा ॥ १६ धरा व्रद क्रीतरा । १२ 'ईंदा' रा उणवार, अमल थांणा उ । ऊ बांटै" इळ तणा, खाग वळि हास लखाए । 'अमरावत' खीजियौ, एम" घर देख उखेळा । सभि दळ बळ इंद्रसिंघ, विढ़ण आयौ जिण वेळा । ऊगतां भांण 'अगजीत' रा. वेढ़क सांमुहा या भारथ सझण, एक 93 भड़ प्ररिघड़ बना 1 १७ उतनरा‍ ऊपना ।। २० सूरजप्रका अचळ, अभंग दूदा जोध, अडर करनावत १ ख. ग. वृदावत । २ ग. करणावत । ग. ऊससें । ६ ग. जाजुलि । ७ ख खाऐ । १० ख. ग. बीजीयौ । १४ ग. इंद्रसींध । १५ ख. ग. वेढकि । रततरा । - ५ ३ ग. हठ । ४ ख. ग. क्रोधि । ऊठावे । ग. उठावे । ८ख. ११ ग. ऐम । १२ ख. ग. देषि । १६ ख. ग. वना । १७ ग. ऐक । राव कूंपाके वंशज कुंपावत । ऊदावत- राव उदयसिंहके १६. चांपा - वीर चांपा राठौड़के वंशज चांपावत । कूंपा अभंग - वीर । दूदा - राव दूदाके वंशज मेड़तिया राठौड़ वंशज राठौड़ । जोधा- राव जोधा के वंशज राठौड़ । जेता- जैतावत शाखाके राठौड़ । जोध - योद्धा । करनावत - करण के वंशज राठौड़, करणोत । हठि - हठसे । क्रमसीहरा - करमसी के वंशज राठौड़, करमसीहोत राठौड़ । उससे इंद्रसिंघहूं नागौराधिपति राव अमरसिंह के पुत्र रामसिंह के पुत्रसे । औरंगजेबने खासा खिलप्रत, जड़ाऊ साजकी तलवार, सोनेके साजका घोड़ा, हाथी, नक्कारा और निशान दे कर जोधपुरका राजा बना दिया था। जाजुळ - जाज्वल्यमान, तेजस्वी । भड़ - योद्धा । श्रगजीतरा- महाराजा अजीतसिंह के | जोशमें आते हैं । इसको बादशाह - ५ ख. ऊससे । वांटे। ६ ग. १३ ख. वळ । १८ ख. २०. ईंदा - राव इन्द्रसिंह । श्रमल - • अधिकार 1 श्रमरावत - राव अमरसिंहका वंशज, राव इन्द्रसिंह | खोजियो- क्रुद्ध हुआ । उखेळा - युद्ध, उत्पात । विढ़ण - युद्ध करनेको । ऊगतां - उदय होता हुआ । श्रगजीतरा- महाराजा अजीतसिंहके । वेढक - युद्ध करने वाला । अरिघड़ - शत्रु दल बना दुलहा । सांमुहा सम्मुख, सामने । भारथ सण - युद्ध करनेको । उतनरा - जन्मभूमिके । ऊपना - उत्पन्न | - Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३५ विखम तबल' वाजिया', डंका सिंधव' दहुंवै दळ । साकति पमंगां' सझे, झिले पाखर झाळाहळ । सिलह पूर करि सूर, सस्त्र कसि पकड़े साबळ । पाव' रकेबां परठि, बहसि चढ़िया अतुळीबळ' । होकबा'' राग सिंधू हुवा, दगे तोप झळ दारुवां । अम्हसम्हा रीठ गोळां उडै, मारू धर कजि मारवां ॥ २१ गोळी तीर व्रजागि, आगि झड़ पडै ५ अंगारां । उण वेळा पौरिया ६, जंगम जोधार 'अजारां'। घड़ भड़(नि) जोड़ा धमक, घड़ा झूलाळ बड़ड़ घट। रिख हड़हड़ रत बड़ड़, रूक औझड़ झट रूंझट । आवियौ हुतौ प्रांष्टौ लियण', 'अमर' 'जसा' आगौररौ । अमराव जोधपुररां अगै, नठौ.४ राव नागौररौ२५ ॥ २२ १ ख. त। २ ग. वाजीया। ३ ख. ग. सीधव । ४ ख. पमांगां। ५ ख. सावल । ६ ख. पाष । ७ ख. ग. रकेवां। ८ ख. रा. वहसि । ६ ख. ग. चढ़ीया। १० ख. ग. अतुळीवल । ११ स. ग. होकपा। १२ ख. सींधव। १३ ग. दारवां। १४ ख. ग. मालवां। १५ ग. पड़े। १६ ख. प्रोटीया। ग. प्रोरीया। १७ स्व. ग. निजडा । १८ ख. ग. धडड। १६ ख. घड। २० ख. ग. बड़ड़। २१ ख. ग. लीयण । २२ ख. रा. भागोर। २३ ख. ग. उमराव। २४ ख. ग. नठे। २५ ख. नागोररौ। २१. तबल - बड़ा ढोल । डंका-नगाड़ा बजानेका डंडा। सिंधव - वीर रसका राग । दहुंवै- दोनों ओर । साकति - जीन । सझे-सज्जित कर। झिले- चमके, दमकयुक्त हुये । पाखर - घोड़ेका कवच । झाळाहळ - देदीप्यमान, चमकदार। परठि-प्रतिष्ठा कर के । बहसि - जोशमें आ कर । अतुळीबळ - शक्तिशाली। हौकबा - हर्ष, खुशी, उत्सव । राग सिंधू - वीर रसका राग। दारुवा - बारूद। अम्हसम्हा - आमने सामने। रीठ- प्रहार । मारू धर - मारवाड़ । कजि - लिये। मारवां- राठौड़ों । २२. प्रौरिया - झोंक दिये। जंगम - घोड़ा। अजारां- महाराजा अजीतसिंहके। घड़ सेना । भूलाळ - समूह । बड़ड़-ध्वनि विशेष । रिख - नारद ऋषि । हड़हड़अट्टहासपूर्वक हँसना। रत - रक्त, खून। औझड़-भयंकर । रूंझट - लड़ाई। प्रोटीशत्रुता। अमर - राव अमरसिंह । जसा-महाराजा जसवंतसिंह । नठी-भग गया। राव नागौररौ- नागौरका राव इन्द्रसिंह । Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६ ] सूरजप्रकास वाळा । ज्वाळा । भड़ जीता भाराथ, एण' विध' 'अजमल सुणि कथ 'अवरंग' साह, जळे ऊठे उर' विदा किया तिण" वार, धूत दळ असुर 'अवरंग' भड़ प्रविया, भूत गिड़कंध भयंकर । जड़ि ठांम ठांम थांणा जबर", बैठा " मुगळ महाबळी झळ ऊछळी' मुरद्धर" । १३ १६ आसुरां सुरां प्रजळी" अगनि", छोह ध्रोह २५ जमी अमल नह जमै, खपे 'प्रवरंग' भीच पाड़े " इता, खग असि नीठ नीठ धावै इळा, घोर ८ विखम विखौ जिण वार, धोम धिखि दौड़ण " लागा दुझल, वडा तरवार खग झाटां खेसिया ३, मारि थाटां" 3 मुगळांणा । खुरसांणा । थाका भाटां दीधा खळं । १२ 'सोनिग' 'दुरंग' सकाज, हणै मुगळांण # 'अवरंग' आगळे, पड़े नित दिली 919 १६ २० हुवौ मुरद्धर । बहादर । | ।। २३ २२ सथांनां प्रागळे ॥ २४ २ ख. ग. विधि | ३ ग. जमेल । ४ क. उठे । ५ ख. ग. उरि । & ख. ग. आवीया । १० ख. ८ख. ग. मुरधर । महावली । १३ १ ब. ऐण । ६ व. ग. कोया । ७ ख. प. जिण । म. जयर । ११ ख. वेठा । १२ ख १५ ग. अगनी । १६ ग. धोह । १७ ख ग. वूछळी ग. हु । २० ग. मुरधर । २१ ख. ग. दौड़ण । २३ ख. ग. खेसोया । २४ ख. काटां । ग. थांणां । । हजारां । पुकारां । ख श्रसुरां । १४ ग. प्रजल । १८ ख. ग. धषि । १६ ख. २२ ख. बहादर । ग. बाहादर । २५ क. पाडे । २६ ख. गोर । २३. अजमल वाळा - महाराजा अजीतसिंहके । धूत - धूर्त, शैतान । असुर-मुसलमान । भूत - उन्मत्त, प्रेत रूप । गिड़कंध - जबरदस्त । श्रासुरां - यवनों, मुसलमानों । प्रजळी - प्रज्वलित हुई । छोह - क्रोध, क्षोभ । घ्रोह - द्वेष, शत्रुता । झळ - आगकी लपट । २४. विखौ - संकटका समय । धोम - प्राग । धिखि प्रज्वलित हो कर । खेसिया - लूटे । थाट - सेनाओं, समूहों। मुगळांणा- मुसलमानोंके । खपे - कोशिश कर के । खुरसांणा- मुसलमानों, बादशाहों । श्रवरंग - श्रीरंगजेब । भोच - योद्धा । खळंनाश, ध्वंस । घोर – कब्रिस्तान कब्र । स्थानां - स्थानों । I आगळं- श्रगाड़ी । २५. सोनिग - चांपावत शाखाका राठोड़ वीर सोनंग । दुरंग प्रसिद्ध राठौड़ वीर दुरगा दास । Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३७ असपति निसदिन अकस, रहै भेजै अमरावां' । कमधज विहंडै किलम, घणा आवै सुजि घावां । 'अवरंग' हियै' क्रोधाप्रगनि, दाह अघट जुध करि दियो । दुरगेसहुंता मसलति दिली, कहियौ जिम तिमहिज कियौ ॥ २५ प्रगट खांप खांपरा, एम दौडै वड रावत । ठौड़ ठौड़ राठौड़, घणा मुगळां'' खग'२ घावत । पचि थाकौ पतिसाह, किलम विहंडाय कराळा । क्रोध जतन कीजतां, ठहे नह कमध हठाळा । जूटा कंठीर छूटा जिसा, तूटा दळ असपति तरै । अवरंगजेब४ अगजीत नूं, जाळंधर दीधौ जरै ॥ २६ तेज पुंज 'अगजीत', जोम'५ भरियौ' महाराजा"। त्रहक तूर करि तबल', सूर दळ सजे सकाजा । 'अवरंग'तणौ अमीर, घोर'६ मंडियौ गोळां' घण । सायक घण साबळी २२, रूक झोटां कीधौ रण । १ ख. ग. उमरावां। २ ख. घाौं। ३ ग. होय। ४ ख. दीयो। ५ ख. ग. कहीयो। ६ ख. तिमहीज। ७ ख. ग. कीयो। ८ ग. ऐम। ९ ग. ठौर ठौर । १० ख. घणों। ११ ख. मूगलां। १२ ख. ग. षगि। १३ ख. ग. कोड़ि। १४ ख. अवरंगजेव। ग. अवरजेवि । १५ ग. जोमि । १६ ख. ग. भरीयो । १७ ख. ग. माहाराजा । १८ ख. तवल । १६ ख. ग. घेरि । २० ख. ग. मंडीयौ। २१ ग. गौळा। २२ ख. ग. सावळा २५. असपति - बादशाह। अकस - दुःख, डाह, द्वेष । विहंडे - संहार करते हैं, ध्वंश करते हैं। दाह - जलन । अघट - निरन्तर । दुरगेसहुंता - राठौड़ वीर दुरगादाससे । २६. खांप - शाखा । पचि - यत्न कर के, पूर्ण कोशिश कर के, । विहंडाय - संहार करवा कर। हठाळा - अपने हठ पर दृढ़ रहने वाला। जूटा- भिड़ गये, युद्ध किया । कंठीर - सिंह। तूटा - नाश हुआ। तर - तब । अगजीत - महाराजा अजीतसिंह । जाळंघर - जालोर नगर । २७. पुंज - समूह । जोम - जोश, उमंग । भरियो - भरा हुआ। ब्रहक - नगाड़ेकी आवाज । तूर - वाद्य विशेष । तबल - वाद्य विशेष । घोर - भयंकर ध्वनि । सायक-तीर, बाण । साबळां-भालों विशेष रूक-तलवार । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३८ ] सूरजप्रकास लसियौ' निबाब कटिया किलम, गह नूप धरि गजगाहरौ। लसकरी खांन लूटे लियौ , सोबौ औरंगसाहरौ ॥ २७ इम वासर ऊगतां, डाक वागी दसदेसां । जुध जीता 'अगजीत', सुणे जवनेस नरेसां । हिंदसथांन' हरखियौ'', तांम१२ दहले तुरकांणौ'३ । जगत सरब'४ जांणियौ५, जोध लेसी जोधांणौ । 'गजबंध'१६ दुवै धरियौ ८ गुमर, राज धरम कुळरीतरौ । तिण दीह घटे 'अवरंग' तप, तप वधियो' ६ 'अगजीत'रौ ॥ २८ वड वड कुळ वरियांम", साख पैंतीस१ सकाजां। सुता दियण'२ वासतै, रजित स्रीफळ सझि राजां। 'अजण' भेट प्राणियौ ४, कमध पह५ लिया ६ उछब' करि । विद८ इंद वणि वरे, सकति रूपा बहु ६ सुंदरि । १ ख. ग. लसीयौ। २ ख. नवाव । ग. नबाब। ३ ख. ग. कटीया। ४ ग. गृह । ५ ख. ग. नृप । ६ ग. लूट। ७ ख. ग. लीयो। ८ ख. ग. सोवो। १ ख. ग. अवरंगसाहरौ। १० ख. ग. हिंदुसथांन। ११ ख. ग. हरषीयौ। १२ ख. ग. ताम । १३ ख. ग. तुरकाणौ। १४ ख. सरव। १५ ख. ग. जांणीयौ। १६ ख. गजवंध । १७ ख. ग. विये। १८ ख. ग. धरीयौ। १६ ख. ग. वधीयो। २० ग. वरीयांम । २१ ख. ग. पैतीस। २२ ख. ग. दीयण। २३ ख. ग. रजत । २४ ख. प्रांणीयां । ग. आणीया। २५ ख. ग. पोहो। २६ ख. ग. लीया। २७ ख. ग. उछव। २८ ख. ग. वोद। २६ ख. वहु । ग. वहुं । २७. लसियो - पराजित हो कर भाग गया। कटिया किलम - मुसलमान मारे गये । गज ___ गाहरौ- युद्धका । सोबौ - प्रान्त, सूबा । औरंगसाहरौ - बादशाह औरंगजेबका । २८. वासर - दिन । ऊगतां - उदय होने पर । डाक - डंका। अगजीत - महाराजा अजीत सिंह । जवनेस – बादशाह । हरखियो - हर्षित हुया । बहले - भयभीत हुए। तुरकाणौ - बादशाहत । जोध- वीर । गजबंध - महाराजा गजसिंह । दुवै - द्वितीय, दूसरे । गुमर - गर्व, जोश । बीह - दिन । अवरंग - बादशाह औरंगजेब । तप-तेज, तपस्या । २९. वरियांम - श्रेष्ठ । सुता - कन्या, लड़की। वासते - लिये । रजित - चांदी या सोनेका। स्त्रीफळ - नारियल । अजण – महाराजा अजीतसिंह । प्राणियो - लाया । पह - राजा। विद - दुलहा । Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३६ रंगराग अमर' केसर' अतर, उच्छबि छक आणंद अति । अनपुरां आदि उदियापुरा, परणे कमधज छत्रपती ॥२६ 'रांण' राज तिण वार, जुगति धर वेध लगे जदि । 'अमर' कुमर' मुरड़ियौ, तंत ऊथपे दियौ तदि । जदि अायौ जैसिंघ, सरण कमां तदि'' सब्बळ१२ । 'रांण' मदति महाराज, दीध 'अगजीत' सबळ दळ। तदि 'राण' 'जसौ' चाढ़े तखति, कंवर'६ नमे बांधै करां । 'जसराज'तणे कीधौ ‘अजै', प्रांक एह'८ उदियापुरां ॥ ३० १ ख. डंवर । ग. डंबर। २ ख. ग. केसरि । ३ ख. उछव । ग. उत्छव । ४ ख. छकि । ५ न. उदयापुरां । ग. उदीयांपुरां। ६ ख. ग. छत्रपति । . ग. जुगत । ८ ग. कुंवर। ६ ख. ग. मुरडीयौ। १० ख. ग. दीयो। ११ ख. ग. तकि। १२ ख. ग. सव्वल । १३ ख. सछति । १४ ख. ग. माहाराज। १५ ख. सवल। १६ ख. ग. कुंवर । १७ ख. वांधे । ग. बांधे। १८ ग. ऐह । २६. अमर - अंबर । ३०. रांण - महाराणा जयसिंह उदयपुर । जुगति – युक्ति। वेध- युद्ध, उपद्रव । अमर कुमर - महाराजकुमार अमरसिंह। वि.वि. - वि. सं. १७४८ (ई.स. १६६१)में महारानाके जेष्ठ कुमार अमरसिंहने अपने पितासे राज्य छीननेका षड़यंत्र रचा। जब इसकी खबर महाराना जयसिंहको मिली तब वे तत्काल ही उदयपुर छोड़ कर कुंभलगढ़ होते हुए घाणेराव चले गये और वहांके तत्कालीन ठाकुर गोपीनाथ मेड़तियाकी सलाहके अनुसार महाराजा अजीतसिंहके पास प्रादमी भेज कर उनसे सहायताकी प्रार्थना की। इस पर महाराजा अजीतसिंहने चांपावत भगवानदास, वीर करणोत दुरगादास आदि प्रमुख व्यक्तियोंके साथ बड़ी भारी सेना देकर महारानाकी सहायतार्थ घाणेराव भेजे । इन्होंने वहां पहुंच कर सीसोदियोंसे मिल कर पिता-पुत्रमें परस्पर संधि करा दी । संधि हो जाने पर महाराना साहब उदयपुर चले गये और महाराजकुमार राजसमंद तालाब पर रहने लगे। ---देखो महामहोपाध्याय कविराजा श्यामलदास कृत वीर विनोद भाग २, प०६७३ से ६७६ तक । मुरड़ियौ - कुपित हुआ। तंत - सार, तत्व । ऊथपे दियो - उलटा कर दिया, बदल दिया। राण- महाराना जयसिंह । मदति - सहायता। अगजीत - महाराजा अजीतसिंह। रांण जसौ - महाराना जयसिंह । बांध करां- करबद्ध हो कर । जसराजतणे - महाराज जसवंतसिंहके पुत्र । अज - महाराजा अजीतसिंह । प्रांक - अहसान, उपकार । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० ] सूरजप्रकास महाराजा 'अजमाल', करै' राजस अधकारे । प्रिय चहुवांण' पतिव्रता, धरम थित गरभ सधारे । महि वीता दसमास, जांम नप' कुंवर जनंम्मे । वधाउवां जिण वार', 'अजै' बहु दरब उधंमे * । घण धमण' जेम'' नवबति'घुरै', त्रिय प्रफुलति" गावै तठे। चत्रलख सुजाण जोतसि'५ चतुर, जनमपत्री वरती जठै ॥ ३१ महाराजकुमार स्त्री प्रभसिंघजीरी जनमपत्री १ क. करे। २ ख. ग. अधिकारे । ३ ख. ग. चह्वांणि। ४ ख. ग. थिति । ५ ख. ग. नृप। ६ ख. ग. जन्नमे । ७ ग. तिण वार। ८ ग. बहो। ६ ग. उधमे। __ *ख प्रतिमें यह पंक्ति अपूर्ण है। १० ख. ग. धमळ । ११ ख. ग. मंगळ । १२ ख. ग. नववति । १३ ख. मुरे । ग. पुरे। १४ ख. ग. प्रफुलित । १५ ख. ग. जोतिस । ३१. अजमाल - महाराजा अजीतसिंह । प्रिय बहुवांण पतिव्रता - होठलुके अधिपति चौहान चतुरसिंहकी पुत्री जिसका विवाह महाराजा श्री अजीतसिंहके साथ वि. सं. १७५७में हुआ था। इसीके गर्भसे महाराजकुमार अभयसिंहजीका जन्म वि. सं. १७५६ मार्गशीर्ष वदि १४ को हुआ । जाम - रात्रि । वधाउवां - मांगलिक खबर देने वाले । अज - महाराजा अजीतसिंह । उधमे- दान-पुरस्कारादिमें खर्च किया। धण- बहुत, मेघ, घन । घमण - ( ? )। नववति - नौबत । धुर- बजती है। त्रिय - स्त्रियें। Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास महाराजकुमार' महाराजा श्री प्रभसिंघजीरी जनमपत्री। छंद पद्धरी स्रीगणपति सरसति प्रणम' साधि' * । इम लिखे पत्र स्रीपति अराधि । वाखांण सतरसै समत' वीर । सुजि वरस गुणसठे तप सधीर ॥ ३२ सोळसै साक चववीस तास । मधि हिमरित' वर अघण मास । सनि चतुरदसी वद पख सकाज । सिध जोग प्रगट उच्छब'' समाज।। ३३ तदि निसा च्यार घटिका वितीस* । ऊपरा वळे पळ सताईस'४ । वणि नखित्र'५ विसाखा जेणि वार' । 'अभमाल' जनम लीधौ उदार ।। ३४ १ ख. ग. माहाराजा। २ ख. ग. प्रणमि। ३ ग. साध । *ख. प्रतिमें यह पंक्ति 'स्री गणपति' से प्रारम्भ नहीं हुई है, केवल 'पति सरसति' से ही प्रारम्भ हुई है । ४ ख. म. वाषांणि । ५ ख. संमति । ग. समंति। ६ ख. सोलैस । ग. सोलास । ७ ख. चौवीस। ८ ख. ग. रिति हिमंत । ९ ग. सति । १० ख. ग. वदि। ११ ग. उत्छव । यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। १२ ग. च्यारि। १३ ग. ववितीस । *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । १४ ग. सताइस । १५ ग. नक्षत्र। १६ ग. तेणि वार । ३२. स्त्रीपति -विष्णु। प्रराधि- पाराधना कर के। बाखांण "सधीर - वि. सं. १७५६ । ३३. सोळसै'''तास - शक सं. १६२४। हिमरित - हेमन्त ऋतु । अघण मास - मार्गशीर्ष मास। सनि - शनिश्चरवार। बद परख - कृष्ण पक्ष। सिध जोग - सिद्ध योग । ३४. वितीस - व्यतीत हुई। विसाखा - अश्विनी प्रादि सताईस नक्षत्रों में से सोलहवां नक्षत्र जो मित्र गणके अंतर्गत है। अभमाल - महाराजकुमार अभयसिंह । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२ ] सूरजप्रकास व्रस्चक' सक्रांत दिन खट वितीस' । ससि सुक्र रासि तुल वर सधीस । राजै तदि मंगळ कुंभ रासि । कहि मीन ब्रहस्पति बळ प्रकासि ॥ ३५ रचि मीन रासि सनि करक राह । अरु मकर रासि केतह अथाह । कहि वस्चक भांण बुध बुध प्रकास । तन लगन'' मिथुन सुभ अनत तास ॥३६ चित सुद्धि रासि ग्रह २ इम चवेस । कहि ग्रह प्रताप वरणन'४ कवेस । रवि छठे भुवन१५ खळ मैं रूक* । 'पारांण'६ फतै पावै अचूक ।। ३७ तप वधै भाण उद्योत" तेम । अन'८ भूप दबै खद्योत' एम२१ । १ ख. वृश्चक । ग. विश्चक । २ ख. ग. वितीत । ३ ग. राशि। ४ ख. ग. कहै । ५ ख. ग. वृहस्पति। ६ ख. ग. वळ । ७ ग. प्रकास। ८ ख. केतक। ६ ख. ग. वृश्चिक । १० ग. बुधि । ११ ग. लग्न । १२ ख. ग. यम। १३ ग. करि। १४ ख. वरण । ग. वरणण। १५ ख. ग. भुवनि । *यह पंक्ति 'ख' प्रतिमें अपूर्ण है । *ये पंक्तियां 'ख' प्रतिमें नहीं हैं। १६ ग. पाराणि । १७ ग. उद्यौत । १८ ग. अनि। १९ ग. दव। २० ग. षिदोत । २१ ग. ऐम ३५. वस्चक सक्रांत - वृश्चिक संक्रान्ति । दिन खट वितीस - वृश्चिक संक्रांतिके छः अंश व्यतीत हो चुके थे। ससि...."धीस - चंद्रमा और शुक्र तुला राशिमें थे। राजै'मीन ''कुंभ रासि - इस समय मंगल ग्रह कुंभ राशिमें था। कहि प्रकासि - बृहस्पति राशिमें था। ३६. रचि ..."राह - जन्मकुंडली में मीनका शनि और कर्क राशिका राहु है । अरु मकर' केतह -- मकर राशिमें केतु ग्रह है। कहि ..."बुध प्रकास - वृश्चिक राशिमें सूर्य और बुध ग्रह हैं जो बुद्धिका प्रकाश करते हैं । तन'..."तास - तनु भावमें शुभ मिथुन लग्न है । लगन = पूर्व क्षितिजमें उदय होने वाली राशि, लग्न । ३७. चवेस - कहे जाते हैं। कवेस = कवीश - महाकवि । रवि....."अचूक - छठवें स्थान में सूर्य रहने से शत्रुओंको नष्ट करता है, युद्ध में विजय होगी और अन्य राजा उसके सामने खद्योतके (नक्षत्र अथवा जुगनू) समान रहेंगे। Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ४३ पांचमै भवन ससि सुक्र पेखि* । दाखै कवि जातक - भरण देखि ।। ३८ ऊजळ कुमार' उपजै उदार । प्रगटै बुधि' राजस विध' अपार । इळ राजनीत जाणे अनेक । वर मंत्र - सकति कविता विवेक ॥ ३६ गुरजणांहूंत अति विनय ग्यांन । धारंत सुपह हित गुणनिधान । विध राह करकरौ फळ वखांणि । जोतिखी ग्रंथरौ पंथ जांणि ।। ४० अति कोक - कला - भोगी अपार । दातार सूर अति चित उदार । बळिवंत' हुवै प्राजांनबाह । असि गयंद हुवै दळ बळ अथाह ॥ ४१ तेजमें'' रूप बहु१ पुत्र ताच । सोभा अपार गुण एह१३ साच । *यह पंक्ति ख. प्रतिमें अपूर्ण है। १ ख. ऊबार । ग. ऊंवार। २ ख. ऊपजै । ३ ख. बुधि । ४ ख. ग. विधि। ५ ख. ग. नीति। ६ ग. विधि । ७ ख. ग. वळिवंत । ८ ख. म. प्राजांनवाह। ख. ग. वळ। १० ख. ग. तेजमै । ११ ख. ग. वहु। १२ ग. ऐह । ३८. पांच मैं ....देखि - पंचम भवनमें चंद्र शुक्र देख कर ज्योतिषके ग्रंथ जातकाभरणके __अनुसार कवि महोदय फलित बतलाते हुए लिखते हैं --'महाराजकुमार अभयसिंह उज्ज्वल और उदार चित्त, बुद्धिमान, राजनीतिज्ञ, मंत्रशक्तिमें श्रेष्ठ, कविता मौर ज्ञानमें प्रवीण होगा।' ४०. गुरजणांहूंत गुण निधान - गुरुजनोंका आज्ञाकारी, विनयशील तथा गुणोंका खजाना होगा। विध राह... 'वखांणि - ज्योतिष ग्रन्थोंके ज्ञान के माधार पर राहु और कर्कका फलित ज्ञान कह रहा हूँ। ४१. अति....'अथाह - कामशास्त्रमें प्रवीण और विषयभोगमें लिप्त रहने वाला होगा। साथ ही बड़ा दातार, वीर और उदारचित्त भी होगा। प्राजानुबाहु महाराजकुमार बड़ाबलशाली होगा, और इसकी सेनामें अपार हाथी, घोड़े होंगे। Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४ ] सूरजप्रकास बहसपति' भवन दसमै वखांणि । जिण हीज भवन रविनंद जांणि ॥ ४२ द ग्रहां जोड़ि फळ किसूं दाखि । सुजि कहूं जातिकाभरण साखि । खै महासूर' बहु देस होय । दस दिसा सुजस दन खाग दोय ॥ ४३ जाणंत कळा बहतरि सुजाण । प्रियः जूथ मोह अतिसै प्रमाण । सनि गरुके' इंद्र एकणि'' सथांनि । इण जोडि हुवै नहिं नृपति१५ प्रांनि'६ ।। ४४ बळि' जुदौ जुदौ गुण कहि बताय'८ । गुरतणौ जिको गुण प्रथम'६ गाय । ओवै दिलेसरौ धन अपार । केवांण१ पांण. दहुंचे प्रकार ॥ ४५ १. वहसपती। ग. बसपती। २ ख. ग. द ।। ३ ग. माहासूर। ४ ख. वोहो । म. बौहो। ५ ख. कोय। ६ ख. होय। ७ ख. वहौतरि । ग. बहौतरि। ख. ग. प्रीय । १ ख. अति । १० ख. ग. गुरुके। ११ ग. ऐकणि। १२ ख. ग. सथांन । १३ स. ग. जोड। १४ ख. नह । ग. नहं । १५ ख. ग. नृपति । १६ ख. प्राण । ग. मांन । १७ ख. ग. बलि । १८ ख. ग. वताय । १६ ग. प्रथमि। २० ख. दिलेसरो। २१ ग. कैवांण। २२ ख. ग. पाणि । ४२, ४३. वहसपति.... जाणि -- बृहस्पति दसवें स्थान पर है और उसी स्थान पर रविनंद (शनि) भी है। दोनों ग्रहों की युतिका फल जातकाभरण ग्रन्थानुसार कहता है। महाराजकुमार महासूरवीर होंगे और दस ही दिशाओं में इनके दानकी और खड्गकी प्रशंसा अद्वितीय रहेगी। ४. सुजाण - चतुर। जूथ = यूथ – समूह। सनि 'पानि - शनिश्चर और गुरु (बृहस्पति) ___ दसवें स्थानमें युतिका फल कहता हूँ। इसके समान कोई दूसरा राजा नहीं होगा। ४५. पळि - फिर, पुनः। जुदौ - पृथक् । गुरतणौ - बृहस्पतिका । दिलेस - बादशाह । केवांग- कृपाण, तलवार। पांण - शक्ति, से। दहुंदै- दोनों। Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ४५ अति वधै क्रीत' दीरग्घ' प्राव' । सुजि हुवै जोग' दारण सभाव । उच्छाह सदा राखै अनंत । कांमणि जिम भुगतै भूमिकंत ।। ४६ सुग्रही अनै' के इंद्र सार । इण रीत बहसपति'' गुण उदार' । अब कहूं सनीसर गुण अनेक । अन्नेक तणौ तत वचन एक४ ॥ ४७ नप१५ जोग असी'६ चत्र अडिग नेम । जगि करत राज चक्रवरत जेम । महाराजकुमाररा सामुद्रिक चिन्हारौ वरणण सठिक'८ वकूण कर चह न सम्म । पै उरध° - रेख जळहळ पदम्म १ ॥४८ १ ख. ग. क्रीति। २ ख. ग. दीरच्य। ३ ख. प्रवा। ४ ख. सजि। ५ ख. ग. जोम। ६ ग. दारुण। ७ ग. भाव । ८ ख. उछाह । ग. उत्छाह । ६ न. भोगते । १० ग. अन्न । ११ ख. ग. वृहसपति । १२ ख. ग. अपार । १३ ख. ग. प्रव । १४ ग. ऐक । १५ ख. ग. नप। १६ ग. असि । १७ ख. ग. चक्रवति । १८ ख. ग. सठि। १६ ग. नसम्म । २० ख. ऊरध। २१ ख. ग. पदम । ४६. क्रीत - कीर्ति । वीरग्घ - दीर्घ । प्राव - प्रायु । दारण = दारुण -- उग्र। सभाव - स्वभाव। उच्छाह - उत्साह, जोश । कामणि - कामिनी, स्त्री। भूमिकंत- राजा । ४७. सनीसर - शनिश्चर । तत वचन – तत्व वचन, सार शब्द । ४८. सठिक – शरीर में विशिष्ट अंगोंमें होने वाला सामुद्रिक चिन्ह जो स्वस्तिकके आकारका होता है। यह सामुद्रिक शास्त्रानुसार बहुत शुभ माना जाता है। त्रकूण - सामुद्रिक त्रिकोणाकार चिन्ह विशेष जो पैरमें तथा मतान्तरसे हाथकी हथेली में भी होता है। पैपैर, चरण । उरध रेख - वह चरणमें होने वाली रेखा जो अंगूठे और अंगूठेके समीपवर्ती उंगुलीके बीचसे निकल कर सीधे और लम्बे आकार में ऐंडीके मध्य भाग तक गई हुई हो, ऊर्ध्वरेखा । जळहळ – देदीप्यमान । पदम - सामुद्रिक विद्याके अनुसार पैरमें होने वाला विशेष आकारका चिन्ह जो भाग्यसूचक माना जाता है, पद्म । Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ ] सूरजप्रकास कहि हस्त - चिह्न बांणिक' प्रकार । २ सति सांम दुरग विध' वचन सार । मणिबंध तीन मणि जब प्रमाणि । ६ मछ कच्छ कुंभ गज रथ मंडांणि ॥ ४६ असि खड़ग सकति तोरण उदार । अंकुसां संख चक्र सुभ अपार । परचंड दंड हर गदा पाणि" । बिहुवै' प्रकार" वणि धनक बांणि १ 9 ॥ ५० ३ ख. ग. विधि | १ ख. ग. वांणिक । २ ख. ग. साम । ग. प्रमांण । ६ ख. कछ । ग. कल्छ । ७ ख. ग. मंडांण । ग. बिहु । १० ग. आकार । ११ ख. वाण । ग. बांण । ४ ख. मणिबंध | ८ख. ग. पांण । - ४६. चिहन - चिन्ह । सति ( ? ) । सांम - ( ? ) । दुरग होने वाला सामुद्रिक चिन्ह । मणिबंध - कलाई । मणि - ( कारका वह सामुद्रिक चिन्ह जो मणिबंधके उभरे हुए भाग पर होता है। मछ - मत्स्यके श्राकारका हाथमें होने वाला एक प्रकारका सामुद्रिक चिन्ह जो शुभ माना जाता हैं । कच्छ - कच्छप के श्राकारका हथेली में होने वाला सामुद्रिक चिन्ह । कुंभ - कलशके हस्तिके ग्राकारका हाथकी कारका हथेली में होने वाला सामुद्रिक चिन्ह विशेष । गज हथेली के उभरे भाग पर होने वाला सामुद्रिक चिन्ह | मूल के पास होने वाला सामुद्रिक चिन्ह विशेष | रथ - कनिष्ठिका उँगुली के ५०. श्रसि - अश्व (घोड़े ) श्राकारका हथेली के उभरे भाग पर होने वाला शुभ सामुद्रिक चिन्ह विशेष | खड़ग - मध्यमा अँगुलीके मूल स्थानसे कुछ प्रगाड़ी हाथकी हथेली में होने वाला खड्गाकार सामुद्रिक चिन्ह । सकति शक्ति नामक शस्त्र के श्राकारका हथेली में होने वाला सामुद्रिक चिन्ह विशेष । तोरण - वंदनवारके श्राकारका हथेली में होने वाला सामुद्रिक चिन्ह विशेष । अंकुस - अंकुशके आकारका हथेली में होने वाला सामुद्रिक चिन्ह | संख - हाथकी उंगली के ऊपरके पोरमें होने वाला शंखके प्राकारका सामुद्रिक चिन्ह विशेष | मतान्तरसे पैर के तलवे में होने वाला सामुद्रिक चिन्ह विशेष । चक्र - हाथकी मध्यमा अँगुलीके मूल स्थानका समीपवर्ती चक्र के श्राकारका सामुद्रिक चिन्ह विशेष मतान्तरसे हाथोंकी उँगुलीके पोर पर होने वाला चक्र आकारका चिन्ह विशेष । परचंड - प्रचंड, प्रबल दंड- हथेलीके मणिबंधकी ओरके उभरे हुए भाग पर होने वाला दण्डाकार सामुद्रिक चिन्ह विशेष । हर गदा - हरि गदा, विष्णुकी गदाके आकारका हथेली में होने वाला सामुद्रिक चिन्ह | पांणि हाथ । बिहुंबे - दोनों । प्रकार - श्राकार । धनक- हथेली में होने वाला धनुषाकार सामुद्रिक चिन्ह विशेष | बाण - तीरके आकारका हथेलीमें होने वाला सामुद्रिक चिन्ह | - - ५ ख. ६ ख. - एक प्रकारका हथेली में ? ) । जव - • यवके Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ४७ धज चमर छत्र कर रेख धन्न । चक्रवतीतणा साचा' चहन्न' । उजळंग आरकत छिब' अनंग । ऊगता भांण सारीख अंग ॥ ५१ तपवंत हुवै 'अजमल' सुतन्न । धनि वेळा महुरत' वार धन्न । ........................... । ................................ || ५२ कवित्त- मँगळ धमळ उदमाद, वजे वाजंत्र जिण वेळा । ग्रहि ग्रहि उडि गुड्डियां, मिळे सज्जण घण मेळा* । विमळ कतूहळ वधे, हुवौ उच्छब हिंदुवांण । 'अवरंग' चित औदके", तेज घटियौ' तुरकांणै । कमधजां वंस मझि सहंस किर'२, निडर भूप अनुमानमौ । 'अजमाल' ग्रेह जनमे 'अभौ', पह' अवतार पचीसमौ ॥५३ १ ख. ग. सारा । २ ख. चहन्न। ३ ख. ग. छवि। ४ ख. हुवो। ग. हुवो। ५ ग. महुर। ६ ख. धम । ७ ग. गूडीयां । *यह पंक्ति ख. प्रति में नहीं है। ८ ख. ग. हुवो। ६ ख. उछव । ग. उत्छव। १० ग. प्रौदक। ११ ख. ग. घटीयो । १२ ख. ग. करि। १३ ख. पौहौ । ग. पौह । ५१. धज - ध्वजाके आकारका कनिष्टया उंगुलीके मूलके पास होने वाला सामुद्रिक चिन्ह विशेष जो शुभ माना जाता है। चमर - चैवरके प्राकारका हथेलीमें होने वाला सामुद्रिक चिन्ह विशेष । छत्र -हथेली में होने वाला छत्रके प्राकारका सामुद्रिक चिन्ह विशेष । धन्न - ( ? ) । चक्रवती - चक्रवर्ती, राजा। चहन्न-चिन्ह, लक्षण । उजळंग - उज्ज्वलाङ्ग । पारकत - स्वर्ण, सोना । छिब - शोभा, कांति, मूर्ति । अनंग - कामदेव । ऊगता भांण - सूर्यादयकाल सूर्यका। सारीख – सदृश, समान । ५२. तपवंत - तपस्यावान । सुतन - पुत्र । धनि - धन्य धन्य । वेळा - समय । महरत - धन्न-धन्य-धन्य। ५३. मंगळ धमळ – मांगलिक गायन या गीत । उदमाद -- हर्ष, प्रसन्नता। वाजंत्र- वाद्य यंत्र । अहि... 'गुड्डियां - घर-घरमें ध्वजाएँ फहराई या गुलाल उड़ी। कतूहळ - कौतूहल । उच्छब - उत्सव, हर्ष । हिंदुवांणे - हिन्दुस्तान में, हिन्दुओंमें। अवरंग - औरंगजेब बादशाह । प्रौदके - भयभीत होता है । तुरकाण - यवनोंमें । सहंस किरसहस्रकिरण, सूर्य । अजमाल - महाराजा अजीतसिंह । ग्रेह - घरमें, वंशमें । अभौ - महाराजकुमार अभयसिंह । पह - वीर, योद्धा । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ ] सूरजप्रकास दुहौ'-जनमे राम अजौधिया', तिम वरणी तिण वार । 'प्रभा' जनम' बणियौ' इसौ, जाळंधर जिण वार ।। ५४ गाथा-सुत राघव कवसळळ'. किसन मात जनमे देवकी। इम जनमे 'अभमल्लं', राजकुंवर' सुव्रण कुख रांणी ॥ ५५ कवित्त- पह कुमार' पय पान, 'अभौ' खांचे मुख'' अंचळ । सीत पांन जिम साह, होय' तप खंच झळाहळ'४ । पह'५ कुवार'६ पालणे, पौढ़ि झूलाळे प्रेमळ । तनि८ झोला सुरतांण, दिली झोला खाए दळ । पह'' कुंवर हसै तदि तदि प्रसन, काळ हसै अवरंग कमळ । जक पाय कुंवर पौढ़े जरै, दिली अजक खुरसांण दळ५ ॥ ५६ वधै राज सुख विहद, वधै हित संपत२६ वधायक । अवर वधै दिन इतौ, वधै पल पल वरदायक । १ ख. दहा। २ ख. अजोधिया । ग. अजोघीया । ३ ख ग. जनमि। ४ ख. वणीयो। ग. वरणीयौ। ५ ख. कौसल्लं । ग. कवसल्लं । ६ ग. देवक्की। ७ ख. ग. राजकुंवरि । ८ ग. कुषि। ६ ख. ग. पोहो। १० ख. ग. कुंभार । ११ ख. ग. मुषि । १२ ख. ग. हुये। १३ ख. म. पंचे। १४ ख. हलाहल । १५ ख. ग. पौहो। १६ ख. ग. कुमार । १७ ख. ग. प्रम्मल । १८ ख. ग. तन । १६ ख. झोणा । २० ख. ग. षाये । २१ ख. ग. पौहौ। २२ ख. कुंवरि। २३ ग. नदि। २४ ग. कमळि । २४ ख. ग. दळि। २६. ख. ग. संपति । ५४. प्रभा - महाराजकुमार अभयसिंह । बणियो - बना। जाळंधर - जालोर नगर । ५५. कवसळळ – कौशल्या । प्रभमल्लं - महाराजकुमार अभयसिंह । सुव्रण - सुवर्ण चौहान वंशकी सोनंगरा शाखा । कुख – कुक्षि, गर्भ । ५६. पह - राजा। पय पान - दूध पीना । अभौ - महाराजकुमार अभयसिंह । अंचळ - स्नान । झळाहळ – अग्नि, प्राग। पालणे - झूलामें। पौढ़ि – सो कर । भूलाळे - पालनामें भूला दिया जाता है। प्रेमळ - ( ? )। झोला – वायु-प्रवाह, वायुका झोंका । सुरतांण – बादशाह । दिली....''दळ - अस्थिर होना, व्याकुल होना, मुर्भाना। पह कुंवर - राजकुमार। तदि तदि- तब-तब । काळ – मौत । अवरंग - बादशाह औरंगजेब । कमळ - शिर । जक - चैन, पाराम । जरै - जब । अजक - बेचैन, घबराहट । खुरसाण - बादशाह । ५७. संपत -- स्नेह, धनदौलत । वधायक - बढ़ाने वाला । वरदायक -- यशश्वी, विरुदधारी। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ४६ कवि सुभड़ां वधि कुरब', जोम' वधियो' जोधाण । वपि 'अवरंग' दुख वधे , सोच' वधियौ खुरसांणै । हिंदवां धरम मुरधर हरख, सुजस वधे सरसाविया । तन वेस 'अभै' 'अगजीत'तण, वधतां इता वधाविया' ।। ५७ वधे दुजां स्रुत' वाणि, वधे कवि वाणि' सुजस विध । वधे अस्ट१५ सिध'६ विमळ, नरिंद घरि वधे नवै निध' । अकल'८ वधे मंत्रियां, धरा सति वधे सांमध्रम । सरस वधे अरिन साख, पांण भड़ वधे पराक्रम । सत सील वधे बहु२६ राज सुख, ग्यांन वधे प्रभु गाविया । तन वेस 'अभै' 'अगजीत'तण, वधतां इता वधाविया ८ ॥ ५८ तेज पुंज नप सुतण, हवौ जस६ वेस झळाहळ । सांईनां साथियां, मिळे खेले ३ मझि मंडळ । १ ख. कुरव। २ ग. जौम । ३ ख. ग. वधीयौ। ४ ग. प्रवरंगि। ५ ग. वर्ष । ६ ग. सौच । ७ ग. वधीयौ। ___ *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। ८ ख. हीदवा। ६ ग. वधै। १० ख. ग. सरसावीया। ११ ख. ग. वधावीया। १२ ख. ग. श्रुति । १३ ख. ग. वाण। १४ ख ग. विधि। १५ ख. ग. अष्ट। १६ स्व. ग. सिधि। १७ ख. ग. निधि। १८ ग. अकलि । १६ ग. वधै। २० ख. र. मंत्रीयां। २१ ख. सन । ग. रात। २२ ग, संसार । २३ ख. ग. अन। २४ म. प्राक्रम। २५ ग. वधै। २६ ख. वहो । ग. बहो। २७ ख. गावीयौ। ग. गावीया । २८ ख. ग. बधावीया। २६ ख. ग. ससि। ३० ग. वेसि । ३१ ख. ग. सांमीना। ३२ स्व. ग. साथीयां। ३३ ख. ग. षेलै । ५७. सुभड़ा- सुभटों, योद्धाओं। जोम -- जोश । वधियो - बढ़ा । वपि - वपू, शरीर । तन - शरीर। वेस - अायु, वयस् । अभै - महाराजकुमार अभयसिंह। अगजीत तण - अजीतसिंहके तनय, या पुत्र । वधाविया - बढ़ाये । ५८. दुजां - द्विजों, ब्राह्मणों। सत - श्रुति, वेद । अस्ट सिध - पाठ प्रकारकी सिद्धिये । नरिद - राजा। घरि - भवन में। नवै निध - नौ निधिये । सति - सत्य। सांमध्रम स्वामी-धर्म। पांण - बल, हाथ । ५६. पुंज - समूह । सुतण - पुत्र । जस वेस - यश और वायु । झळाहळ - देदीप्यमान । सांईनां -- समवयस्क । मंडळ - मंडली, समूह । Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५० ] सूरजप्रका हुवै बाळ' हेकसा', विखम गढ़ कोट वणावै । आप साह ऊपरा, 'अभौ' दळ बळ' सभि आवै । सझियास कोट गढ़ साहरा, धूम लूटि धन ऊधमै । ऊगतौ भांण बाळक' 'अभौ', राय प्रांगण' इण विधरमै ॥ ५६ निबाबां 1 सताबां । ६ संग्रांम आप सांमुहा" चलावै । औरवै", भिड़े निब्बाब" भजावै । 9 a सभि बाळक सिरपोस, नांम कित्ताब" साह बाळ" दळ सबळ ", सझे भेजंत सभि दळ साजि असि गठ चढ़ १६ ગ્ हि फतै भड़ां निजरां लियै", सभि नौवति" नंद" तिण समै । ऊगतौ भांण बाळक 'अभौ', राय प्रांगण इण विध" रमै ॥ ६० २३ २४ 3 ५ .२६ ६ सुजि बाळक पतिसाह, माफ करि खून मनावै । अंबखास सझि" श्रडर, उरसि छितौ भुज प्रावै । अनराजा २१ अमीर उभै 'ऊभौ' रहै इनांम, धरै निज 9 लोपै जां ऊपर | करग जमंधर । 30. ३ ख. ग. वळ | ४ ख १८ ख. १ ख. वाळ । २ ख. ग. हिसाह | श्रमण | ६ ख. ग. विधि । ७ ख वाळक । ग. किताव । नवाबां । १० ख. वाल ! ११ ख. सबळ । १२ ख. भंजंत । १४ ख. सुमुहा । १५ ग. कठि । १६ व. ग. सभि । १७ ख. रा. नवाव । ग. नव्वाब १६ ख. ग. लोये । २० ख. नौवति । २१ ख. ग. नद । २२ ग. जिण । २३ ख. ग. अंगण ! २४ ख ग विधि | २५ ख. वाळक । २६ ख. प्रवास | ग. प्रांबषास । २७ ख. ग. मझि २८ ख. ग. उरस । २६ ग. छिवतौ । ३० व अनिराजा । ३१ ग.रु । ३२ ख. ग. श्रन्नम | ८ ५६. हेकसा - एक बादशाह, एकसे, समान, एकत्रित । अभी- अभयसिंह । सझियास - सज्जित किये। धूम - धूमधामसे, जोर-शोरसे ( ? ) । ऊगतौ भांण - सूर्योदयके समान । राय प्रांगण - राजाके प्रांगण में । रमं क्रीड़ा करता है, खेलता है । - - ६०. सिरपोस - शिरस्त्राण । सताबां - शीघ्र संग्रांम युद्ध । सांमुहा सम्मुख, सामने । श्रौरव - भोंकता है । भिड़े टक्कर ले कर, भिड़ कर भजावं - पराजित करता है । वाळक । ५ ख. ग. ६ ख. नबाबां । ग. - १३ ख. ग. साज । बोरवं । ६१. खून - अपराध, गुनाह । मनावे खुश करता है। अंबखास - श्रामखास । उरसि - प्रकाशमें । छिबतौ- स्पर्श करता हुआ । करग - हाथ। जमंधर - कटार विशेष | - Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ५१ दिल्लेस खीज' रीझा' दियै', खोद हियै परिहंस खमै । ऊगतौ भांण बाळक' 'अभौ', राय प्रांगण इण विध" रमै ॥ ६१ एका बाळ अमीर'', वडौ करि प्रांटि'' वणावै । इण' पाए असपती, रवद तिण" खड़ी रहावै । सझि पावै 'अभसाह', तेज दळ सझे विढ़ण तदि । संकि अमीर१६ पतिसाह, जाय अंबखास तजे जदि । सांमुहा मिळे उमराव सुजि'८, निजर करै अनमी नमै । ऊगतौ भांण बाळक 'अभौ', राय प्रांगण' इण विध रमै ॥ ६२ सिसु२१ उथापि इक साह, साह सिसु अवर सथप्पै । सिसु सुभड़ां हित सझे, पटै गढ़ देस समप्पै । सिसू इक२४ मंत्री सरूप, धार५ दफतर भर धारै। सिसु दुज करे सरूप, एक सिसु कथा उचारै । कवि होय एक सिसु गुण कहै, सांसण गज दै तिण समै । ससि वेस 'अभौ' 'अगजीत' सुत, राय प्रांगण इण विधरमै ।। ६३ १ ख. ग. खोजि । २ क. रिजां। ३ ग. दीयै। ४ ख. षोद । ग. बाँदै । ५ ख. वाळक। ६ ख. ग. अंगण । ७ ख. ग. विधि। ८ ख. एक । ग. ऐक । ख. ग. वाल। १० ख. ग. अम्मीर । ११ ख. ग. प्रांट । १२ ख. ग. यण। १३ ग. पाये। १४ ख. तण । १५ ख. ग. रषावै । १६ ख. अम्मीर। १७ ख. अंवषास । १८ ख. ग. सुजि । १६ ख. ग. अंगण । २० ख. विधि । २१ ख. ग. ससि । २२ ख. ग. हिक। २३ ख. ग. ससि। २४ ग. ईक। २५ ख. ग. धारि। २६ ग. ऐक। २७ ख. ग. अंगण । २८ ख. ग. विधि । ६१. दिल्लेस - बादशाह । खोज - कोप कर । रीझां - दान, पुरस्कार । खोद - खुद, स्वयं । परिहंस - परिहास हो कर, हँस कर । ६२. प्राटि -'गर्व, शत्रुता । रवव - मुसलमान । अभसाह - अभयसिंह । विढण - युद्ध करनेको। तदि - तब । जदि - जब । ६३. सिसु -- बच्चा, लड़का। उथापि - हटा कर, औंधा कर। साह - बादशाह । अवर - अन्य । सथप्प-नियुक्त करता है। पटै - जागीर । समप्पै - देता है। गुण - कीति, यश। ससि वेस - बाल्यावस्था। अगजीत - महाराजा अजीतसिंह। Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२ ] सूरजप्रकास हा' - जग सास्तर' कहिया * जिता, सुभ सुभ चहन संसार । रांमत' सभि 'अभमल' रमै, कमधज राजकुमार ॥ ६४ तप वधियो 'भमल तणौ इळ ससि वेस अभंग | तपधर मुगळांणातणी, प्राथमियौ अवरंग ।। ६५ कवित्त- जदि दळ सजि" 'अगजीत', उतन जोधाण प्रायौ । मल जमायौ । त्रणा " अधारे । .१४ लसकर जाफर लूटि, जमीं निज जाफरखां जिण वार, असुर मुख" 'अजा' तणां ऊमरां, प्रोट' ३ सस जीव उवारे " । साहरौ हजारी पांच सुजि, किलम भिख्यारी" जिम कढ़े | 'गजसाह' दुवौ जोधाण गढ़', चमर हुंतां 'प्रभमल' चढ़े ॥ ६६ .१५ मंगळीक नंदि" महा, वजै नौबति" जिण वेळा | मंगळ करै चंद्रमुखी, चित्र प्रवछाड़ सचेळा । १ स्व. ग. दोहा । २ ग. जगि । ५ ग. संगति । ६ ग. राजकुवार । ख. ग. प्राथमीयौ । १० ख. १३ ख. ग. वोट । १४ ख. ग. गढ़ि । १७ ख नदि । ग. नद । ३ ख. सासत्र । ग. सास्त्र । ४ ख. ग. कहीया । ७ ख. ग. वधीयौ । ८ख. मुगलाणी । ग. मुगलाणां । ग. सभि । ११ ग. मुषि । १२ ख. ग. त्रिणां । उवारे । १५ ख. विषारी । ग. भिवारी : १८ ग. नौवति । १६ ग. ६४. चहन - चिन्ह । रांमत - क्रीड़ा, खेल । मझि - मध्य में। श्रभमल -: • महाराजकुमार अभयसिंह | -- ६५. तप - ऐश्वर्य, रोब । इळ- पृथ्वी, संसार ससि वेस = शिशु-वयस - बाल्यावस्था । तपधर - तप ऐश्वर्य - प्रकाश +धर - धारण करने वाला सूर्य । मुगळांणांतणौ - मुगलोका । प्राथमियो- ग्रस्त हो गया, अवसान हो गया । अवरंग - औरंगजेब बादशाह | ६६. अगजीत - महाराजा अजीतसिंह । उतन - वतन, जन्मभूमि । जोघांणं - जोधपुर । लसकर - सेना, दल । जाफर - जाफरबेग नामक यवन जिसको, वि. सं. १७६१ में बादशाहने जोधपुर पर भेजा था । अमल - अधिकार जमायौ स्थापित किया । त्रणा - घासका तिनका अधारे मुखमें लिया। प्रजातणा - महाराजा अजीत सिंह के । नोट - श्राड । सस - ( सहस्त्र, हजारों ? ) | किलम - यवन, मुसलमान । भिस्यारीभिक्षुक | कढ़े - निकाल दिया । गजसाह - महाराजा गजसिंह | दुबौ - दूसरा, वंशज । ६७. मंगळीक - मांगलिक । नंदि - नाद, वाद्य ध्वनि । मंगळ - उत्सव, हर्ष, मांगलि कगायन | श्रवछाड़ - रक्षा, आच्छादनका वस्त्र । सचेळा - ( ? ) । - Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ५३ अंब डाळ कुंभ प्रांणि, विमळ वर तरणि वंदावै । वांदि कळस तिण वार, भप द्रब' रूप भरावै । आवियौ' वांदि तोरण 'अजौ', पह सिंगार चौकी परै । तदि मिळे लोक मुरधरतणा, कोड' दरब' निजरां करै ॥ ६७ महाराजा अजीतसिंहरै स्वागतरौ वरणण छंद नाराच अनेक जोध मंत्र आय, बंदवै बळा बळा । कहै अनेक बांणि क्रीत'', पात' गीत प्रग्घळा । रचै विलद छौळ रीझ, कुंद सीस कापियो । 'अजौ' नरिंद'५ जेण' वार, इंद्र जेम अोपियौ ॥ ६८ दुजिंद'८ वेद मंत्र दाखि', आस्रिवाद उच्चरै२' । सतोत्र पाठ है। सकत्ति, कोटि पारथी करै। १ ख. ग. द्रव्य। २ ख. ग. प्रावीयौ। ३ ख. चौरी। ४ ख. ग. मिले। ५ ख. ग. कोडि। ६ ख. दरव। ७ ख. ग. वंदवै । ८ ख. ग. वळा वळा। ६ ख. कहे । १० ख. ग. वांणि। ११ न. ग. क्रोति । १२ ख. प्रीत । १३ ख. ग. प्रघळा। १४ ख. ग. कोपीयौ। १५ ख. ग. नरिंद्र। १६ ख. जिण। १७ ख. वोपोयो । ग. वीपीयो । १८ ख. ग दुज्यंद। १६ ग. दाष । २० प. पाश्रीवाद । २१ ग. उचरै। २२ ग. हुवै। २३ ख. सकति । ग. सक्ति । ६७. अंब - आम्र, ग्राम । डाळ - टहनी, वृक्ष-शाखा । कुंभ - जल-कलश । तरणि-तरुणी, स्त्री, रमणी। वंदावं- नमस्कार कराती हैं। वांदि-वंदना कर, नमस्कार कर। अजौ - महाराजा अजीतसिंह । पह- राजा। सिंगार चौकी - जोधपुर के किलेमें बना एक स्थान विशेष । ६८. जोध - योद्धा। मंत्र - मन्त्री। बंद - वंदन करते हैं। बळा बळा - चारों ओरसे । कीत - कीर्ति । पात - कवि, चारण । गीत - डिंगलका छंद विशेष । प्रग्घळाबहुत । विलंद - महान, बुलंद । छौळ - हिलोर, लहर। रीझ - पुरस्कार, दान । कुंद - निर्धनता, कंगाली। कापियो - काटा। नरिंद - नरेन्द्र, राजा। अोपियो - सुशोभित हुआ। ६९. दुजिद - द्विजेन्द्र, ब्राह्मण। दाखि – कह कर पढ़ कर। प्रास्त्रिवाद - आशीर्वाद । सतोत्र - स्तोत्र । पारथी- प्रार्थना या पार्थिव-शिवलिङ्गका प्रचंन । Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५४ ] सूरजप्रकास हुवै पुरांण ज्याग होम, जोड़ भांण जोपियौ' । 'अजौ' नरिंद' जेण वार, इंद्र जेम अोपियौ ।। ६६ विनोदवान' वागवांन फूलवांन* केवळं । छभा मधे धरंत छाब, प्रांण भूप अग्गळं । लहंत द्रब्ब'१ साख लाख, रंभ खंभ रोपियौ । 'अजौ' नरिंद१४ जेण वार, इंद्र जेम प्रोपियौ १५ ।। ७० करंत कुंकमं तिलक्क'६, पांणि राजप्रोहितं । अक्षत'८ मोतियां' चढ़ाय, सोभ भाळ सोहितं । महीख चक्र'' चाढ़ि मात, स्रोण' 'चंड सो पियौ । 'अजौ' नरिंद४ जेण वार, इंद्र जेम प्रोपियौ६ ॥ ७१ कवित्त- इंद्र जेम प्रोपियो, 'अजौ' नरिंद८ अवतारी* । हित सुबहौ छक हरख. धरै उच्छब १ छत्रधारी । १ ख. ग. जोपीयौ। २ ग. प्रजो। ३ ख. नरिंद्र। ४ ख जिण वार । ५ ख. वोपीयो। क. प्रौपीयौ। ६ ग. वेनौदवांन । ७ ख. ग. फूलपांन। ८ क. केवलं । ग. केफळं । ६ ख. ग. प्रांणि। १० ख. अगलं । ११ ख. ग. द्रव्य । १२ ग. सष। १३ ख. ग. रोपीयौ। १४ ख. ग. नरिंद्र। १५ ख. वोपीयौ । ग. प्रोपीयौ। १६ ख. ग. तिलक । १७ ग. राजप्रौहितं । १८ ख. ग. प्रष्यत । १६ ख. ग. मोतीयां। २० ख. ग. महिष । २१ ख. ग. वक्र। २२ ग. श्रोणि । २३ ख. सोपीयौ। ग. सौपीयौ। २४ ख. ग. नरिद्र। २५ ख. जिण वार । ग. जेण बार। २६ ख. वोपीयो। ग. औपीयौ । २७ ख. ग. प्रोपीयो। २८ ख. नरिंद्र । ग. नर इंद।। *इससे पहलेकी निम्नलिखित पंक्तियां क. प्रतिमें नहीं मिली हैं --- पतिव्रता समूह प्रेम प्रावीयौ अधप्पती। वजंत गायणी बजाय तान गांन नतती। रती रते सजोड़ रूप लेषि ग्रछ लोपीयौ । 'अजी' नरेंद्र जेरिण वार इंद्र जेम प्रोपीयो। २६ ख. सं । ग. सं। ३० ख. वौहौ । ग. वोह। ३१ ख. ग. उछव । ६६. ज्याग – यज्ञ । जोड़ - बराबर, समान । जोपियौ - तेजस्वी हुमा । ७०. छभा- सभा। मधे - मध्य । छाब - फूल या फल आदि रखने की डलिया। प्रांण - ला कर । अग्गळं - अगाड़ी। लहंत - लेते हैं। द्रब्ब - द्रव्य, धन । रंभ - रंभा, केला। खंभ - स्कंभ, खंभा । ७१. पाणि - हाथ । सोभ - कान्ति, शोभा। भाळ - ललाट । महीख - भैंसा । चक्र चाढ़ि मात - देवीको बलि दे कर। स्रोण - शोणित, रक्त । चंड - चंडी, दुर्गा । अजी - महाराजा अजीतसिंह। ७२. छक - शोभा । हरख - हर्ष, प्रसन्नता । उच्छब - उत्सव, हर्ष । छत्रधारी- राजा, नृप। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ५५ सुजि खटव्रन सांसणां, अधिक सुख दियो' असीसां । सुख प्रज' सेवा सुम्रण, तांम सुर कोड़ि तेतीस | महिहंत खप्परांणी मिटे, हिंदवांणां जोधाण' 'ज' प्रायो जदिन', दुजड़ पांण १० ग. श्रवगढ़ । ३० ग. हूंन । ३४ ख. ग. आपै । મૈં १३ समें तेण सुरतांण, दिली फबि" 'साह बहादर " 1 ५ १६ २० 3 दळ" सजियो दुगम, अभंग दखणी " धर ऊपर'" । मिळे निसंक 'अजमाल', जाय सांमुहौ जियारां । खाबै" कीधा खून, तिकै नह गिणै" तियारां । अंबखास मिळे असपत्तिहूं, कुरब* घणौ " सपति कियौ 1 सिरपाव तुरंग मदफर समपि, लारां दक्खण" दिस लियौ ॥ ७३ सवाई राजा जयसिंह बादसारौ प्रांबेर छीनणी पर महाराजा श्रजीतसिंहरी मदद करणी जदिन साह 'जैसाह', अंबगढ़ हूंत " थपे । 'जैसा' कर्णठी 'विजौ', अंब" गढ़ जेनूं " अप्पे ३४ । २८ 3 ८ ग. जोधाणि । । १ ख ग दीयं । २ ख. व्रज । ३ ख. काडि । ४ ख. ग. त्रितीसां । षांफरांणौ । ६ ख. हिंदुवांणो । ७ ख. हूबो । ग. पाणि । ११ ख दुवो । १२ ख. ग. समै दर । १५ ग. दलि । १६ ख. ग. सभि । १७ ख. ग. दषिणी । १६ ख. ग. पावै । २० ख. ग. तिके । २१ ख. ग. गिणे । २३ ख. प्रतिकी इस पंक्ति में यह 'मिले' शब्द नहीं है । २४ ख. कुरव । २६ ख. ग. कीयो । २७ ख. दक्षिण । ग. दक्षिण । २८ ख. ग. लीयो । 19 मुरधर हुवों" । -- १ 'गजबंध' दुवौ' - १३ ख. ग. फवि । - १४ ७२. खटन - राजस्थानकी ब्राह्मणादि छः जातियां प्रज- प्रजा महिहूत - पृथ्वीसे । खप्परांणौ - यवनत्व, मुसलमानोंका धर्म | हिंदवांणौ - हिन्दु धर्म । दुजड़ - तलवार । पांण - हाथ । गजबंध दुवौ दूसरा महाराजा गजसिंह या महाराजा गजसिंहका वंशज । ७३. साह बहादर - बहादुरशाह बादशाह | अजमाल - महाराजा अजीतसिंह । सांमुहौ - सम्मुख, सामने | जियारां - जिस समय । खाब- बांकुरा, वीर। खून - गुनाह, अपराध | तियारां उस समय । बखास ग्राम खास । सपत्तिहूं - बादशाहसे । समपि - देकर । लारां-पीछे, साथ। तरफ । ७४. जैसाह - आमेर का राजा जयसिंह । दिस श्रंबगढ़ हूंत - आमेर के गढ़से । उथप्पे - हटाये गये । जैसा - श्रमेरका राजा जयसिंह । कणेठी - कनिष्ठ, छोटा भाई । जेनूं - जिसको । श्रप्पे - दिया। विजौ - आमेर के राजा सवाई जयसिंहका छोटा भाई विजयसिंह । ।। ७२ २५ ख. णौ । २६ ख श्रवगछ । ३१ ख प्रथा । ग. उथापै । ३२ ख. अंव । ३३ ग. जेतू । ५ ख. ग. ग. जुदिन । १० ख. १४ ख. ग. वहा १८ ख. ग. उप्पर । २२ ख. प्रवासि । Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५६ ] सूरजप्रकास जद' अजमलहूं' 'जसै', प्राय मिळ एह' उचारी । बोल' बांह' बगसियो, धणी मुरधर छत्रधारी । 'जैसाह'हूंत कहियौ” 'अजे', असपति कहि इळ तो अपूं। उथप्पै तूझ असपति इळा, असपति हूं ऊथ ।। ७५ हियै ताम हरखियौ'', सुणे कथ 'अजण''' सवाई । कहै कुरम' कमधज हुँ', बिहूं'४ कर जोड़ वडाई । आप सिरै हिंदवां'५, आप हिंदवां१६ उजागर । राज आप राखियो", कमंधपति ग्रहे मूझकर । परठिवी'६ जागि पतसाह , कवण प्रांट दूजौ करै । मो राज इसी वेळाने मही', अापहीज करि ऊबरै२४ ॥ ७५ एकठ५ करि नप ६ उभै, हिले सामल'८ पतिसाहां । पातिसाह, मुनसंम, दिये १ नह कहै दुराहां । जोधाण3 'अजण', थाट बगसण कथ थापै । 'जैसाहनं जयार३४, उतन३५ प्रांबेर३६ न आपै । १ ख. ग. जदि। २ क. अभमल। ३ ख. ऐह। ४ ख. ग. वोल । ५ ख. ग. वाह । ६ ख. ग. वगसीयौ : ग. बगसीयौ। ७ ख ग. कहीयौ। ८ ख. ग. उथप। ६ ग. हुँ । १० ख. ग. हरषीयौ। ११ ख. अण। १२ ख. ग. कूरम। १३ ख. ग. हूं। १४ ख. विहं । ग. विहूं। १५ ख. हिंदुवां । ग. हींदुवा। १६ ग. हींदुवां । १७ ख. ग. राषीयौ। १८ ख. मुझकर। १६ ख. ग. परछठी। २० ख. ग. पतिसाह। २१ ख. ग सू । २२ ग. बेळा। २३ ख. ग. मही। २४ ख ग. ऊवरै। २५ ग ऐकठ। २६ ख. ग. नप। २७ ख. ग. हले। २८ ख. ग. सांमिल । २६ ख. पातसाह । ३० ख. मुनिसप्प । ग. मुनसुप्प। ३१ ख. दीए। ग. दीय। ३२ ख. ग. कहे। ३३ ख. ग. जोधांणौ । ३४ ख. ग. जियार। ३५ ख. ऊतन। ३६ ख. ग. प्रांवेर । ७४. अजमलहूं - महाराजा अजीतसिंहसे । जसै - सवाई राजा जयसिंहका । जैसाहहूंत - सवाई राजा जयसिंहसे । अजै - महाराजा अजीतसिंह । तो- तुझको। अपूं- दे दूं । उथप्पै - हटा दे। हूं - मैं । ७५. हिये - हृदय, मन । हरखियो - हर्षित हुा । प्रजण - महाराजा अजीतसिंहका । सवाई - सवाई राजा जयसिंह, विशेष । कुरम - कछवाह राजा जयसिंह। बिहूं -दोनों। सिरै-श्रेष्ठ । उजागर - उज्ज्वल । प्रांट - शत्रुता । मो- मेरा। ७६. हिले -चले। सांमळ - साथ । अजण - महाराजा अजीतसिंहको। थाट - वैभव । बगसण - बख्शीश करनेको। जैसाहनूं - सवाई राजा जयसिंहको। जयार - जब । Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ५७ एकलौ न लै' 'अजमल' उतन, पलटै वचन न आपरा । नरबदा' हूंत' मुरड़े नरिंद, करे नगारी कूचरा' ।। ७६ कमघांपति कूरमां, उभे मुरड़िया अधप्पति । सुणे बहादरसाह, उवर प्रजळे असपत्ती । देससुबां लिख दियौ'', कथन स्रीमुखां' कहै इम । सराजांम जंग सझे, किला राखौ दहुं१४ कायम । इम लिखे साह दिस५ ऊंबरां', सुणि भूपति सरसाविया । 'अमरेस' मिळण' कागद दिया'', उदियापुर' दिस२प्राविया ॥७७ महाराणा अमरसिंह दूतीयसू दोनां राजानारी मिळण सारू उवैपुर जाणी 'अमर रांण' करि उछब, पोह५ सांमुहौ पधारे । असिहूं पहिला उतरि, जाय 'अगजीत' जुहारे । महारांण२८ महाराज, सझे हित मिळे सकाजा । महारांण बळ मिळे, रचे हित मिरजा राजा । १ ग. ले। २ ख. नरवदा । ३ ख. हुंत । ४ ख. कूचरा। ५ ख. ग. मुरड़े। ६ ख. ग. अधपती। ७ ख. वहादरसाह । ग. बाहादरसाह। ८ व. ग. उवरि । ६ ख. दिसिसंवां । ग. दिसिसूबा । १० ख. ग. लिषि । ११ ख. ग. दीयौ। १२ ख. श्रीमुख । ग. श्रीमुषि। १३ ख. कही। ग. कहा। १४ ख. दुहुँ । ग. दुहू। १५ स्व. ग. दिसि । १६ ख. ऊंवरां। १७ ख. सरसरसावीया। ग. सरसावीया। १८ ख. ग. मिळण । १६ ख. ग. कागल। २० ख. ग. दीया । २१ ख. ग. उदीयापुर। २२ ख. ग. दिसि । २३ ख ग. प्रावीया। २४ ख. उछवि । ग. उत्छव। २५ ख. ग. पहां। २६ ग. पधारे। २७ ग. जुहारै। २८ स्व. ग. माहारांण। २६ ख माहाराज । ३० ख. ग वलि । ७६ प्रजमल - महागजा अजीतसिंह । मुरड़े - कुपित होकर, मुड़े, लौटे। ७७. कमघांपति - महाराजा अजीतसिंह । करमों - मिर्जा राजा जयसिंह । उभ-दोनों। मुरड़िया - कुपित हुए, लौटे। अधप्पति - राजा। उवर - हृदय । प्रजळे - प्रज्वलित हुआ । असपत्ती- बादशाह । अमरेस – महाराणा अमरसिंह द्वितीय । ७८. अमर राण - महाराणा अमरसिंह द्वितीय । पोह- राजा । सांमुही- सम्मुख । प्रसिहूं घोड़ासे । अगजीत- महाराजा अजीतसिंह । जुहारे - अभिवादन किया। मिरजा राजामिर्जा राजा जयसिंह। Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५८ ] सूरजप्रकास चवि वडम' बोल' गयंदा चढ़े, चमर डमर कह चालिया । सिव विसन व्रहम सुर जांणि स्रब", हेक साथ मिळ" हालिया' ॥ ७८ हुतां'' राग हौकबा, हूं आए छत्रपत्ती' । तांम१५ गजां ऊतरे'६, पौहमि हित चढ़े प्रभत्ती। मुंहगा घण मोलरा, प.१८ पगमंडा अपारां । मह पसमी मुखमलां, तास अतलस जरतारां। तांणाव हीर खंभ नग जड़त, तण जरकस चंद्र तांणिया' । त्रण तखत छत्र सझि छत्रपती, एम° अंबासां १ प्रांणिया२३ ।। ७६ महमांनी सझि 'अमर', जुगति करि सुपह जिमाए । पांन कपूर २४ अरोगि, अनै५ मिळ दरगह पाए १६ । दुझल सिरै दीवांण ८, वणे त्रिहुं भूप विराजे । छभा सहित छत्रपती, छत्र चांमर सिर छाजै । १ ख. ग. वडिम। २ ख. वोल। ३ ग. चढ़े। ४ ख. ग. करि। ५ ख. ग. चालीया। ६ ग. ब्रह्म। ७ ख, श्रव । ८ ख. साथि । ६ ख. ग. मिलि । १० ख. ग. हालीया । ११ ख. ऊतां। १२ ख. त्रिहूं। ग. बिहू । १३ ग. प्राग। १४ ख. ग. छत्रपती । १५ ख. ग. ताम । १६ ख. उारे। ग. ऊतरै। १७ क. पोहम । ग. पौमि। १८ ख. ग. पडे । १६ ख. ग. तांणीयां। २० ग. ऐम। २१ ख. ग. प्रवासां। २२ ख. ग. प्राणीयां। २३ ग. जिमाऐ। २४ ख. कपूरि । २५ ख. अनं। २६ ग. प्रा २७ ख ग. सरै। २८ ग. दीवांणि । २६ ख. ग. त्रिहूं। ३० ख. छाजे । ७८. चवि - कह कर । वडम - बड़ा । चमर - चंवर । डमर - (डंबर, समूह) । विसन - विष्णु। हालिया - चले। ७९. होकबा - जलसा, उत्सव, आनन्द । हूं- तीनों। पौहमि - पृथ्वी। पगमंडा - वह कपड़ा या बिछौना जो प्रादरके लिये किसीके मार्गमें बिछाया जाता है और जिस पर पैर रख कर सम्मानित व्यक्ति चलता है। अपारां- हुत। मह पतमी = महा पश्म+ई - बढ़िया ऊनके वस्त्र । मुखमला- मखमल । तास - एक प्रकारका जरदोजी कपड़ा, ताश, जरबत्फ । अतलस - एक प्रकारका बहुमूल्य रेशमी वस्त्र, अत्लस । जरतारां- सोनेके तारोंसे बना या गूंथा हुा। जरकस - सोने व चांदीके तारोंसे बना कपड़ा। चंद्र - चंदौवा । अंबासां - आवास, भवन । ८०. महमांनी - अातिथ्य । सझि-- तैयार कर । अमर - महाराणा अमरसिंह । जुगति - युक्ति । सुपह- राजा । दरगह- दरबार । दुझल - वीर । सिरै दीवांण - खास दरबार । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ५६ पुर अंब' उदेपुर जोधपुर, इम तप निजरां प्रावियौ।। 'जैसाह' वहम 'अमरौ' त्रजट', दइव 'अजौ' दरसावियौ ।। ८० ___ महाराजारौ जोधपुर पर अमल करणौ जंगम असि जवहार', 'अमर' बहु निजर अधारे । सझि दळ दहुंवैः सुपह, प्रगट मुरधरा पधारे । मुगळ जोधपुर माह , हुतौ सोबै'' छ हजारी । जेण ग्रहण 'अगजीत, विकट फौजां विसतारी । महराब खांन दहले मुगळ, गयौ भाजि तजि छक गजै । पतिसाह हुकम विण१४ जोधपुर, इम खग बळि५ लीधौ' ६ “अजै ।। ८१ ___ महाराजा अजीतसिंहरी सवाई राजा जयसिंहरी मदद करणी जमे अमल जोधांण, करे दळ सबळ१८ कराळा । 'अजौ'१६ करण आवियो", चंड नयरां धखचाळा । हुतौ' सयद हुसैन, अंब२३ गढ़ मझि अजरायल । लोक विदा करि लगस, तिकौ५४ काढ़े खळ तायल । १ ख. अंव। २ ख. ग. प्रावीयौ। ३ ख. त्रजढ़। ग. त्रचष। ४ ख. देव । ग. देव । ५ ख. ग. दरसावीयौ। ६ ग. जव झवहार । ७ ख. वहौ । ग. बहौ । ८ ख. अधार । ६ ख. दुहवै। १० ख. ग. माह। ११ ख. ग. सूवै। १२ ग. विस्तारी। १३ ख. ग. महराव । १४ ख. ग. विणि। १५ ख. ग. वल । १६ ख. लोधो। १७ क. जमै । १८ ख. सवल । १६ ग. अजो। २० ख. ग. प्रावीयो। २१ ख. हुंतो। २२ ख. ग. हुस्सेन । २३ ख. अंव। २४ ख. तिको । ८०. पुर अंब - आमेर नगर । तप - तेज । जैसाह - सवाई राजा जयसिंह। वहम - ब्रह्मा । अमरौ- महाराणा अमरसिंह । बजट - महादेव । दइव - विष्णु । अजी-महाराजा अजीतसिंह । दरसावियो - दिखाई दिया। ८१. जंगम - घोड़ा । असि - तलवार । जवहार - जवाहरात । अमर – महाराणा अमर सिंह । दहुवै - दोनों । सुपह – राजा। हुंती- था । सोबै - सूबा । अगजीत - महाराजा अजीतसिंह । दहले - भयभीत हो कर । छक - गर्व, रोब । लीधौ- लिया। अजै - महाराजा अजीतसिंह। ८२. अमल - अधिकार, शासन । कराळा - भयंकर । चंड नयरां - दिल्ली। धखचाळा - युद्ध । अंब गढ़ - आमेरका किला। अजरायल - वीर, जबरदस्त । लगस - सेना, दल । तायल - प्राततायी, दुष्ट, क्रोधी । Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] सूरजप्रकास इम करे अमल राजा 'अजै', धर मुरधर ढूंढाड़' धर । असपत्ति' तणा लीधा उभै, सांभर' डीडवांणा' सहर ॥ ९२ सुजि डीडवांणा संभरि, सहित बहु' मुलक सकाजा। ऊ बांटै 'अजमाल', रैण भुगतै महाराजा । आवै दरब अपार, पेस आवै बहु'' पाए'। वाका एक'३ अनेक, जवनपति आगळ१३ जाए। सुणि धिकै साह वाका सहर, जवन रीस'५ पावक जिसी । फुरमांण लिखे भेजे फजर, दिलीनाथ सयदां दिसी ।। ८३ इम दसकत प्राविया'६, देखि वाचिया सयदां । करे हुकम विण' कही, मुलक नह दिये मरदां । सो तुम लोपिस रीत'२, मुलक दे अमल मिटाया । सिंघ - अजीत 'जैसिंघ'१३, अमल गज सिका उठाया। अब तुम सताब ५ जावौ उहां, मझम कसम'६ महमंदरां । का करौ जंग संभरि किल, का८ चूड़ी पहरौ' करां ।। ८४ १ ख. ढुढाडु। २ ख. ग. असपती। ३ ख. ग. सांभरि। ४ ख. ग. डिडवाणां । ५ ख. वहौ । ग. बहो। ६ ख. ऊ वाटे । ग. ऊंवाट। ७ ख. भुगते। ८ ग. महाराजा। ख. दरव। १० ख. ग. वहौ। ११ ग. पाऐ। १२ ख. एह । ग. ऐह। १३ ग. प्रागलि । १४ ग. जाऐ। १५ ख. ग. रीझ । १६ ख. ग. प्रावीया। १७ ख. वांचीया। ग. वाचीया । १८ ग. करं। १६ ख ग. विणि। २० ख. दीयां । ग. दीया। २१ ख, अम। २२ ख. य. रोति । २३ ग. जैसींघ । २४ ख. अव । २५ ख. सताव । २६ ग. कस। २७ ख. ग. काय । २८ ख. ग. काय । २६ ख. ग. धारौ। ८२. अजै - महाराजा अजीतसिंह । ८३. संभरि - सांभर नगर । अजमाल - महाराजा अजीतसिंह । रेण- भूमि, राज्य । भुगते - उपभोग करते हैं। पेस - नजर, भेंट । वाका - घटना। जवनपति - बादशाह । प्रागळ - अगाड़ी। धिक - कोप करता है, प्रज्वलित होता है। जवन - यवन, मुसल मान । पावक - अग्नि, पाग। विसी- तरफ, पोर। ५४. दसकत - हस्ताक्षर, दस्तग। सयदां - यवनों । सिंघ-अजीत - अजीतसिंह । का- या, अथवा । जंग-युद्ध । करा - हाथोंमें । Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ६१ महाराजा अजीतसिंहरौ सांभरपुरर वास्तै तैयारी करणी, जोधारांरो वरणण सुणे सयद उससे, अडर' वाहर' पुर वाळा । अगनिकंड ऊछळे, जांणि सींची घ्रत ज्वाळा । जीण पखर असि जड़े, जड़े असुरां जरदाळा । कसि जमदढ़ खग' कसे, कसे भूतांण कराळा । वडफरां अलीबंध करि विखम, प्रातस धोम उफांणियां । प्रांणिया' जोध छिबता' उरस, तांणि चिला मुळतांणियां' ।। ८५ सझि हौदां'३ जंग सजे, महारावतां मदग्गळ'५ । हुकम हुंता'६ हाजरा, मसत प्रांणिया महाबळ । बैसारे१८ चख१६ बोळ, छके आया वेछाड़ा। चढ़ सयद किर चढ़े, प्रचंड कठीर पहाड़ा। अनि चढ़े तुरां विकटां२ अगै२३, रबिल२४ आलमींनां रटै५ । *खळ खटै ६ रमण झपटै खगां, असुरांयण दळ ऊपट २८ ॥८६ सभि दळ आया सयद, कहै ६ इण विध: हलकारां । कया: १ नकीबां हुकम, 'जसै' 'अजमल' जिणवारां२* । १ ख. अड। २ ग. वारह। ३ ग. अगनिकूर। ४ ख. ग. उछले । ५ ख. ग. घृत । ६ ग. षगे। ७ ख. ग. भूथांण । ८ ख. ग. क्रोध । ६ ख. ऊफाणीयां । ग. उफांणीयां । १० ख. प्राणोया । ग. प्रणीया । ११ ख. विछीपा। ग. छिवीया। १२ ख. ग. मुलतागीयां। १३ ख, ग. हौदा। १४ ख. ग. सझे। १५ ख. मदगगल । ग. मद्दगळ । १६ ख. हुवां । ग. हुतां । १७ ख. ग. प्रांणीयां। १८ ख. ग. वैसरि । १६ ग, विष । २० ख. वोल। २१ ख. वेछाडा । ग. बेछाडां। २२ ख. ग. विकटे। २३ ख. ग. अंगे। २४ ख. ग. रविल । २५ ख. ग. रटे। २६ ख. ग. षटे। २७ ग. झपटे। २८ ग. ऊपटे। २६ ग. कहे। ३० ग. विधि । ३१ ग. करिया । ३२ ग. जिणवारां। *ये पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं। ८५. ऊससे - जोशमें पाये। जांणि - मानों। सींची-पाहुति दी हो। जीण - जीन, काठी। पखर - घोड़ेका कवच । असि - घोड़ा। जड़े- सुसज्जित किये। असुर - यवन । जरदाळा- कवचों। जमदढ़ - कटार विशेष । भूताण - तर्कश । वडफरां- ढालें । अलीबंध - ढालको पीठ पर कसनेका बंधन । प्रातस -- अग्नि । धोम-धुंआ । उरस - पासमान । चिला - प्रत्यंचा । मुळतांणियां - मुलतानके । ८६. महारावतां - महा योद्धा । मदग्गळ - हाथी । मसत - मस्त । बैसारे-बैठाये । चख - नेत्र । बोळ - लाल । छके - मस्त हो कर, छक कर। वेछाड़ां-( ? )। कंठीरसिंह । तुरां- घोड़ों। अगै- अगाड़ी। रबिल- ( रब, विधि ? )। पालमी-संसारी, संसार व्यापी ईश्वर । खळ - शत्रु । खट - नाश होते हैं। झपट -प्रहार करते हैं। असुरांयण - बादशाह, यवनोंका । ऊपटै- उभड़ता है। ८७. अजमल -- महाराजा अजीतसिंह । Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ सूरजप्रकास फिर' नकीब चहुं तरफ, एम' बक कहै प्रवाजां । वेग चढ़ौ वेढ़कां, सझे जुध काज सकाजां । * साकति तुरां केजम सके, सिलह ससत्र सिंधुरां जंगी हौदा स, धर" नौबत " सझे सिलह करि" ससत्र १३, महाराजा राजा मिळि । अड़े सीस असमान ४, भौंह मूंछां अणियां " मिळि 1 चोळ वदन जखचोळ, करें ऊतोळ सेल करि" । .१६ के जम" सजां । नेजां धजां * ।। ८७ १८ तुरां चढ़े भड़ तांम, हुवा दहुंवै दळ हाजर | तीसरौ हुवां डाकौ" तबल", होण" प्रलल जुध हालिया " । ६ ४ आरंभे समर चक्रवति उभै, चमर दुळंतां चालिया * 1145 'अजमल' सकति प्रराधि, प्रोण " रक्केब" उधारे चढ़े सवाई चढ़ े, इस्ट ३० स्त्रीराम उचारे" | १ ख. फिरि । २ ख. नकीव । साझ । ग. साज । ७ ग. सस्त्र । ८. सूरां । ११ ख. नौवति । ग. नौबति । ३ ग. ऐम । ४ ख. ग. वक । ग. सभे । * पंक्तियां ख. प्रति में अपूर्ण हैं । १२ ख. ग. कसि । १३ ख. ग. सस्त्र | १४ ग. श्रसमांनि । १५ ख. ग. श्रणीयां । १६ ख. ववदन । १७ ख. ग. कर । १८ ख. दहं । १६ ख. ग. हुवा | २० ख. ग. डाके । २१ ख तवल । २२ ग. हौण । २३ ख. ग. हालीया । २४ ग. आरंभ । २५ ख. ग. चालीया । २६ ग. श्राराधि । २७ ग. प्रण । २८ व रक्केव । २६ ख. ग. अधारे । ३० ख. ग. इष्ट । ३१ ख. उवारे । ५ ग. बेगि । ६ ख. १० ख. ग. धरि । ८७. वेग - शीघ्र | वेढ़कां - योद्धानों, वीरों । साकति - घोड़ोंकी जीन । केजम - ( ? ) । सिधुरां - हाथियों । नेजां - नेजा, भाला । धजां - ध्वजाएँ । ८८. सिलह - कवच | भौंह - भौंहों । श्रणियां- नोंकों । मिळि - स्पर्श की, मिल गईं । चोळ - लाल । ज[च]ष चोळ - लाल नेत्र । ऊतोळ - उठा कर । करि - हाथमें । डाकt - नगाड़े पर डंका । तबल - बड़ा ढोल । प्रलल - त्वरायुक्त, चंचल । समर - युद्ध | चक्रवति - राजा । ८. सकति शक्ति, देवी । श्रराधि - श्राराधना कर के । श्रोण पैर रक्केब - रकेब । उधारे - रखे । सवाई - सवाई राजा जयसिंह | Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास करग्गां* । छजे सीस' छांहगीर, करे अस वाग रावण ऊपर रांम, जाए घड़ियाळ स वग्गां * । घण मोहर' अराबा गज घटा, घटा" मोहरि रावत घणा । ६ वरियांम दहूं झळहळ वरण, तरण जांणि ग्रीखमतणा ॥ ८६ ठी एम" पह उभै, दळां पारंभ दरसाया । सयद उठी सिर जोर, अगन " झळ जिम दळ श्राया । १ २ 3 1 वजि त्रंबाळ' " दहुं वळा, कळळ हूकळां कराळो । धिक" नाळां झळ धुबै, वीज" करड़क वरसाळां धमाधम र डंबर धर, मार" बांण " गोळां मंडै ३ । चकि २४ နှင် ६१ २ २३ . २५ इल" लथराक तिमराक चढ़ि चक्रवाक दळ ऊचकै 1 १ ग. सोसि । २ ख. छांहांगीर । ग. छाहांगीर । ३ ख. ग. श्रसि । * यह पंक्ति ख. और ग प्रतियों में निम्न प्रकार हैरामण ऊपर राम, गयौ घड़ियाळ स वग्गां । ५ ख ग. मौहरि । ६ ख श्रारावा । ग. अरावा । ग. पहौ । १० ग. जोरि । ११ ख. ग. प्रगति । १४ ग. बळां । १५ स. ग. धिषि । १६ ख. धुवे । बरसाळां । १६ ख. डंवर । ग. डवर । २० ख. गोळा । २३ ख. ग. मंडे | २४ ख. ग. चक । ऊचंडे | - - ७ ख. घणा । - १२ ग. बजि । ग. धुबे । । माण | .२६ १७ ग. बीज २१ वाण । २५ ख ग यल । - [ ६३ ८. ऐम । ८६. छांहगीर ( छत्र; प्रातपत्र ) । घण - बहुत | मोहर - प्रगाड़ी । प्रराबा - तो घटा सेना | मोहरि अगाड़ी। रावत - योद्धा । वरियांम - श्रेष्ठ, वीर । दहूं - दोनों । झळहळ देदीप्यमान | वरण - रंग, कांति । तरण = तरणि, सूर्य । ग्रीवमतणा • ग्रीष्मके । - ४ ग. करगां । ।। ६० झळ - लपट । ६०. प्रारंभ - प्रारंभ, शुरू। सिर जोर जबरदस्त । अगन अग्नि । बाळ - नगाड़ा। दहुं वळां- दोनों प्रोर । कळळ - कोलाहल । हुंकळां - घोड़ोंकी हिनहिनाहट, सेनाका कोलाहल । कराळां - भयंकर । धिक प्रज्वलित हो कर । नाळां तोपों, बन्दूकों । धुबै प्रज्वलित होती है। वीज- विजली। करड़क - ध्वनि विशेष | वरसाळां - वर्षा ऋतुएँ। धोमार धोम- पूर्ण धुंग्रा, श्राच्छादित | रज - धूलि । डंबर - समूह । चकि - चक्र । लथराक कंपायमान । तिमराक - अंधेरा । चक्रवाक - चकवा | ६ ख. वाल । १३ ख । १८ ग. २२ ख: ग. २६ ख. ग. Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] सूरजप्रकास विड़ंगां । जंगां उभै तरफ ऊपड़ी', वाग तिण वार म्हौसम्हा सुर असुर, जुड़े सर संभर कसि कबांण' सुर कसे, पार बगतर उर पंजर | पमंगा हूं (त) भड़ पड़े, जांण ग्रह बाज" कबूतर" | घण पड़े " धमक सेलां घटां, लह" सकत्ति" पत्र लोहियां " । लोहियां ऊक वाजी" धरा, रूक असल सीरोहियां " ।। ६१ 3 .१५ १६ स्रीहथां लगाया | अठै जठै असि प्ररि, लोह सेलां मैंगळ साझि, घाय खग सयदां सिर हंस स्रोण, जटी हूरां लहै जोगण । मुग्गळ घाया । १६ त्रपत होय इम तवै, तपौ स्रब सिरै 'जसा 'तण । १ २३ विहंडे जूटै .२२ खगि रद्द हसन हुस्सेन खां, गजां धुजां हालै भड़ां 'गजबंध' हरौ, इसी भांति ४ ख ग करें । ५. ख. १० ख. १४ ग. १ ख. ग. उपड़ी । २ ख. ग. संभरि । ३ ख. कवांण । वगतर । ६ ख. ग. जाणि । ७ ख. वाज । ८ख. कबूतर । ख. ग. पड़े । ग. है । ११ ख. ग. सकति । १२ ख. ग. लोहीयां । १३ ख. ग. धोहीयां । बागी । १५ ख. ग. सीरोहीयां । १६ ग. श्रजै । १७ ख. वोरि १८ ख. ग. मूंगल । १६ ख. ग. त्रिपत । २० ख श्रव । २१ ख. ग. बांगि । २२ ख. ग. रंद । विहंडे । २३ ग. १८ ६१. बाग- लगाम | धारा । रूक- तलवार । विडंगां - घोड़ों । हौसम्हा - श्रामने सामने । सुर- हिन्दू | असुर - मुसलमान । जुड़े - भिड़ते हैं। सर - तालाब, झील । संभर- सांभर । जंगां - युद्धों । पंजर - शरीर । पमंगां - घोड़ों । धमक - प्रहार । सेलां भालों । घटांशरीरों । पत्र - खप्पर । लोहियां खूनका । ऊक - तेज सोरोहियां - सिरोही देशकी बनी हुई । ६२. ठे... नोरि - इधर-उधर, जहां-तहां घोड़े झोंक कर । लोह - - शस्त्र प्रहार | स्त्री - खुदके हाथसे । मैंगळ - हाथी । साभि - संहार कर के | घाया - संहार किये, मार डाले । सयां - यवनों, मुसलमानों । हंस - प्रारण । शोणित, रक्त । जटी - महादेव । जोगण - रणचंडी, रणयोगिनी । संतुष्ठित । तवे कहते हैं। तपौ - ऐश्वर्यवान हो, राज्य-वैभवयुक्त हो महाराजा जसवंतसिंहका पुत्र । खगि - तलवारसे रद्द - नाश, संहार स्रोण - - तृप्त, । जसातणा - हसन हुस्सेन खां - सैयद हसनअलीखां प्रोर हुसेन खाँ नामक यवन सेनापति जो इतिहास में सैयदनामसे प्रसिद्ध । गजो - महाराजा गजसिंहजीका वंशज । हाकलं - उत्तेजित करता है । गजबंध - महाराजा गजसिंह । हरौ - वंशज । जूट - भिड़ता है । श्रजौ - महाराजा श्रजीतसिंह | - 'गजौ' । 'अजी' ॥ ६२ - त्रपत - Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास छंद विराज रंग । करूरं ॥ ६३ जुड़े' भूप जंग, रसै रोद्र सयद्दण सूरं, किलम्मं कुरंमं कमंध, बिनै नेत बंधं । छछोहं" छड़ाळां, भटां खाग झाळां ॥ ६४ 5 वह लोह" वंका, घटां" " घणंका | बिनै तीर बारा, धड़ां स्रोण धारा ॥ ६५ उ अनेकं ' 1 माळा ।। ६६ करं पाव केकं, १ ५ करै ले कराळा, महारुद्र' १६ विनां धू विहंडं, सचै" ४ धू कढ़ी खाग कोपै, जिसा राह जोपै ॥ ६७ २४ ५ हुवै लोह हत्थं, बिन्है ४ लूथ बत्थं " " । ६ जड़े जंमदाढ़, करं पार काढ़ ॥ ६८ संडं ६८. बिहै- दोनों लूथ बत्थं १८ २ ख. किलम्मा । ग. किलम्मां । ३ ख. ग. कूरम्मां । ४ ख. ग. ग. बंधां । ७ ख. ग. छछोहां । १२ ख. विन्हे | १ ख. ग. जोडे । कमंधां । ५ ख. विहे । ग. बिन्हें । ६ ख. बंधं । ८ख. होल । ६ ग. बंका । १० ख ग घंटा । ग. बीन्है । १३ ख. वारा । १४ ख. धडा । १५ १७ ख. ग. अनेकां । १८ ग. माहारुद्र | १६ ख विहंडां । २१ ख. ग. र । २२ ख. रूडां । ग. रुंडां विहे । ग. विन्है । २५ ख. वथां । ग. वत्थां । ग. जस: दाढ़े । २५ ख. ग. करां । ११ ग. हुवं । ख. करः । १६ ख. ग. केकां । विना । ग. वियां । २० ख. ग. २३ ख. ग. हत्थां । २४ ख. २६ ग. तजै । २७ ख. जम: दाढ़ | - - 1 ६३. जुड़े - भिड़ते हैं । रसं रोद्र रंग रौद्र रसमें रंगे हुए हैं। सयद्दांण - सैयद, यवन, सैयद बंधु | सूरं शूरवीर । किलम्मं - यवन, मुसलमान | करूरं - भयंकर | ४. कूरं - कछवाह वंश । कमंधं राठौड़ वंश | बिनै दोनों नेत बंध - ध्वजाधारी, योद्धा । छोहं - तेज । छड़ाळां- भाला । भटां - प्रहारों । झाळा आग, लपट | ६५. लोह - अस्त्र-शस्त्र । घटां- शरीर । घणंका - ध्वनि विशेष । बारा - छेद, बाहर । धड़ा - शरीरों । स्रोण - खून, रक्त । 919 जंग संड* " । १६. करं - हाथ । धू - मस्तक, शिर कराळा - भयंकर माळा- मुंडमाला । ७. विडं नाश, ध्वंस । वीर, रुंड । जोप - जोश में आते हैं । 1 गुत्थमगुत्थ । जंमदाढ़ - कटार विशेष । - [ ६५ Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६६ ] सूरजप्रकास लगां लोह लूट, जमी सीस' जूटै । पड़े' स्रोण' पांण, जगा जेठ जांण ॥ ६६ परी कंत पावै, अनै हूर आवै । मंडै६ कंठमाळा, बरै बिक्कराळा ॥ १०० त्रुटै घाव तुडं, भिडै रुंडमुंड लड़े फौज लाडा, उडै लोह आडा ॥ १०१ भंभारा भभक्क, चौरंगा उचक्कै । करै वीर हक्क, छके जांणि छक्कं ॥ १०२ धुबै खाग धारू, महासूर' मारू । खिलै १२ झाप्ट खंडे, वयंड'३ विहंडै ॥ १०३ तई कुंभ" तूटा, छिले स्रोण छूटा'६ । मही रंग मट्टा, फबै जांणि फुट्टा' ।। १०४ १ ग. सीसि। २ ख. पडे। ३ ख. श्रोण । ग. श्रीण। ४ ख. ग. जग्ग। ५ ख. जांणे। ६ ख. मंडे । ७ ख. ग. वरे। ८ ख. ग. विकराळा। ६ ख. ग. रूंडभिडं । १० ख. ग. उच्चकै । ११ ख. ग. माहासूर। १२ ख. ग. बेल्है। १३ ख. ग. वयडां। १४ क. अभ। १५ ख. ग. तुट्टां। १६ ख. ग. छुट्टा। १७ ख. फवे। ग. फबे । १८ ख. ग. फट्टा। ६६. स्रोण - खून, रक्त । पणेि - ( ? )। १००. परी- अप्सरा। कंत - पति । अन - और । हूर - अप्सरा। बरै - वरण करती है। बिक्कराळा - भयंकर । १०१. तुंडं - मस्तक, मुख । भिड़े - युद्ध करते हैं। रुडमुंडं - बिना मस्तकका घड़, कबंध । लाडा-- योद्धा, वीर। उडे प्राडा - प्रहार होते हैं। १०२ भंभारा - छेद, घाव । भभक्क - उभड़ते हैं। चौरंगा - बिना हाथ-पैर और शिरका धड़। उचक्क - कूदते हैं। वीर हक्कं - वीर ध्वनि । छके – मस्त । १०३. धुबै - तेज क्रोधमें होते हैं, तेज युद्ध होता है। मारू - राठौड़। झाट - प्रहार । वयंडं- हाथी। विहंडे - मारते हैं। १०४. कुंभ - हाथीके सिरके दोनों ओर ऊपर उभड़े हुए भाग। छिले - उमड़ गया, छल छला कर । स्रोण- शोणित। मही- पृथ्वी। मट्टा - बड़ा मिट्टीका पात्र, मटका । फब- शोभा देते हैं। फुट्टा - टूट गये।। Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ६७ खगां धार खुटै', तई संड' तूटे । । परां नाग पाए', जाणै उड्ड जाए' ॥ १०५ पड़े पक्खराळा', तड़प्फै उताळा । जळां तौछ जेहा, प्रोपै मच्छ एहा' ॥ १०६ किलक्कै हकारै, काळिक्का' डकारै । हसै रिक्ख हासं, रचे वीर' रासं ।। १०७ तुरी वाग तांणं, भाळे खेल भांणं । चौरंग१५ सचूंपौ', कमंधां स कूपौ ।। १०८ सयहांण सारां, धुबै८ खाग धारां । कियौ१६ रूप केहौ, जड़ा रुद्र जेहौ ॥१०६ सुतं सच्छळेसं, विढ़' काळवेसं । अरी थाट आवै, घणा लोह घावै ॥ ११० तई सीस' तूट, जई भोंच जूटै २४ । सझै रोद५ सूरं१६, पड़े लोह पूरं२८ ॥ १११ १ ख. षुहै। ग. षुट्ट। २ ख. सुंड । ग. सुंडि। ३ ग. पाऐ। ४ ख. उड । ग. ऊड । ५ ग. जाऐ। ६ ख. ग. पष्षराळा। ७ ख. ग. तड़फै। ८ ख. ग. जळं । ख. ग. तोछ। १० स्व. ग. वो। ११ ग. ऐहा। १२ ख. कालिका । १३ ग. बीर । १४ ख. ग. ताणं। १५ ख. ग. चौरंगा। १६ ख. ग. सचूपौ। १७ ख. ग. कमंधे। १८ ख. ग. धुवै। १६ ख. कीयां । ग. कीया। २० ख. ग. सव्वलेसं। २१ ग. सीसि । २२ ख. ग. तु । २३ ख. ग. भीम। २४ ख. ग. जुहूँ। २५ ख. ग. रौद । २६ ख. ग. सूरां । २७ ख. ग. पड़े। २८ ख. ग. पूरां । १०५. खूट - प्रहार होता है । संड - हाथीकी सूड । परा - पांखें । नाम - सर्प । जांण - मानों। १०६. पक्खराळा - कवचधारी। तड़प्फै - तड़फड़ाते हैं। उताळा - तेज । जळां-पानी । तौछ - थोड़ा, कम । प्रोपै - शोभा देते हैं। मच्छ -- मछली। १०७. किलक्क - किलकारी मारती है । रिक्ख - नारद ऋषि । १०८. तुरी- घोड़ा। भाळे - देखता है। भांण – सूर्य । चौरंगं - युद्ध । सचूंपो - चतुर, दक्ष । कूपो - कुंपावत शाखाका राठौड़। १०९. सयद्दांण – यवन, सैयद । धुबै - संहार करता है। जड़ा - जटा । रुद्र - महादेव । जेहो - जैसा। ११०. विढ़े - युद्ध करता है। काळवेसं - काल, यमराज । घावं - संहार करता है । १११. तई - उसके। नई-जिससे । भींच - योद्धा। जूटै - भिड़ते हैं। रोद - यवन । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास अपच्छं' उमाहो, वरंमाळ वाही । झड़े' घाव झल्लै, हुबै हंस हल्लै ॥ ११२ हुवै दिव्यदेहा, सुरत्री सनेहा । विवाणं' विराजै, गयं स्रग्गि गाजै ॥ ११३ 'अजै' जेण'' वारां, हकाले हजारां । लगी मांहि लग्गी, वधे खाग वग्गी ॥ ११४ मारू फील मंता, दिय'' पाव दंता । कड़क्कै ३ कपाळां, चढ़े वीर चाळां ।। ११५ हुवै१४ जंग हौदां, रच१५ जंग रौदां । गहै'६ बुंद' गाढू, जडै८ जंमदाढ़६ ॥ ११६ सयहां संघारै, धरा लोथ° धारै' । विढ़े२ सयद 3 वीता, जुड़े भूप जीता ॥ ११७ १ ख. ग. अपछा। २ ख. ग. झड़े। ३ ख. ग. घाट । ४ ख. हुवे। ५ ग. हुयो । ६ ख. ग. विवाणां । ७ ख. गया । ग. गयो। ८ ख. ग. श्रगि। ६ ख. ग. गाजे। १० ख. ग. जेणि। ११ ख. ग. दीये। १२ ख. ग. कड़के। १३ ख. वढ़े । ग. चढ़े। १४ ग. हुवे। १५ ख. ग. रचे । १६ ख. ग्रहे । ग. ग्रह। १७ ख. कांद। ग. कौंद । १८ ख. ग. जड़े। १६ ख. ग. जम्मदाढू। २० ख. ग. लोथि। २१ ख. ग. धारे। २२ ख. वि। २३ ख. ग. सैद । ११२. अपच्छे - अप्सरा। उमाही - उत्कंठित। झड़े - वीरगति प्राप्त होते हैं। हंस - प्राण । हल्ले - चलते हैं। ११३. सुरत्री - अप्सरा । विवाणं - वायुयान । विराजे - बैठते हैं। स्रगि- स्वर्ग । ११४. अजे-महाराजा अजीतसिंह । हकाले - उत्साहित किये। मांहि - में। लग्गी लग गई। वग्गी- प्रहार हुआ । ११५. मारू - राठौड़ । फोल - हाथी । मंता- मस्त, मस्तक । दंता - दांत । कड़क्क - ध्वनि विशेष होती है। वीर चाळां - युद्धों। ११६. जंग - युद्ध । हौदां - अम्मारियों । रौवा - यवनों, मुसलमानों। ११७. सयदां - यवनों, सैयदों। संघार - संहार करता है। धरा- पृथ्वी। लोथ - ___ लाश । विढ़े - युद्ध कर के। वीता - व्यतीत हो गये, वीर गति प्राप्त हुए। Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास कवित्त-के कूरम कमंधरा, विहंड घायल जिण वारां । विखम इकहथी वही, पड़े खळ थाट अपारां । हर अपछर रिख हर, चंड खेचर ग्रह भूचर । सिरवर कौतिग सू वर, रुधिर पळ नत मिळ डंबर । 'जैसाह' सहित नौबति बजवि', गुमर धार दूजौ गजौ । सांभरी खेत जसवंततण", अभंग एम जीतौ अजौ ।। ११८ बादसाह बहादुरसाहरी महाराजा अजीतसिंहसू कुपित होणौ प्रर महाराजारौ दिल्लीरी सलतनतमें उथल-पुथल करणौ सयदां (ण) इम साजिया, उडे वाका अणथाहै'। सुणे बहादर'२ साह, मंगळ प्रजळे उर माहै । बडा१४ अमीर बुलाय, साह भेजे१५ तिण सम्मै । 'अजा' 'जसा' दिस असुर, मुहम'६ नंह को प्रांगम्मै । भेजै अमीर असपति भिडण, वरियांमां दिस'६दळ वडै । दै नहीं हाथ पांनां रवद', असतीफा दे औछडै ॥ ११६ १ ख. गृह । ग. गृझ। २ ख. ग. नृत। ३ ग. सहति । ४ ख. ग. नौवति । ५ ख. ग. वजवि । ६ ख. ग. धारि। ७ ख. ग. संभरी। ८ ख. ग. सुतण। ६ ग. ऐम । १० ख. ग. साझीया । ११ ख. ग. अणथाहे । १२ ख. वहादर। ग. बाहादर । १३ ख. ग. माहे । १४ ख. ग. वडा। १५ ख. ग. भेजे। १६ ख. ग. मुहुम । १७ ख. प्रागंम्म। ग. प्रांगंम्म। १८ व. ग. वरीयांमा। १६ ख. ग. दिसि । २० ख. वल। २१ ख. दवद। ११८. कूरम - कछवाह । विहंड - संहार कर के । इकहथी - एक प्रकारका शस्त्र-विशेष, छोटी तलवार । थाट -- सेना, दल, समूह । हर - महादेव। अपछर – अप्सरा । रिख - नारद ऋषि । हर - परी। चंड - युद्धप्रिय योगिनी । खेचर - प्राकाशचारी। भूचर - भूमि पर विचरण करने वाले। सिरवर - श्री वर । कौतिग - कौतूहल । सु वर - श्रेष्ठ, अच्छा । पळ - मांस। डंबर - समूह । जैसाह - सवाई राजा जयसिंह । गुमर - गर्व । दूजौ - दूसरा । गजौ - महाराजा गजसिंह । सांभरी- सांभर । जसवंततण - जसवंतसिंहका पुत्र । प्रजौ - महाराजा अजीतसिंह । ११६. सयदांण – यवन, मुसलमान, सैयद । साजिया - संहार किया। उडे - फैल गये। वाका - घटनाएँ । अणथाहै - अपार । मंगळ - अग्नि, आग। प्रजळ - प्रज्वलित हो कर । माहै - में । सम्मै - समय | प्रजा – महाराजा अजीतसिंह। जसा - सवाई राजा जयसिंह । मुहम - मुहिम्म, युद्ध । प्रांगम्मै - साहस कर सकता है। भिड़ण - युद्ध करनेको। वरियांमां - श्रेष्ठ। पांना-पानका बीड़ा। रवद - यवन, मुसलमान। पौछड़े- पीछे हटते हैं । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७० ] सूरजप्रकास प्रजळे उर पतिसाह, दाह औरिस' अति दाझै' । मनै न' (हि) हुकम अमीर, साह मनसूबासाझै । दहुंवां दिस' लिख दिया, साह फुरमांण सकाजा। उतन दुरंग आपणा, रखौ राजा महाराजा'१* । इम लिखे साह हुय' दीन' अति, मिटै ४ दिली पौरिस मजा । इम सुणे राह उचरै उभै, वाह तेज राजा 'अजा' ॥ १२० नीसांणी हंसगति इम पतिसाह नमाय लीध इळ, एहा'६ भूप' 'अजीत' उजागर । डंडे माल लिया'८ डीडवांणा'६, भोगवि माळ लिया" सर संभर । दावागरां साल पोह'' दारुण, दिल्लेसुरांतणौ २३ दावागर । जम कैळास दिसा नह जावै, इम जोधांण न आवै आसुर४ ॥ १२१ 'अजमल' तेज दिलेसां ऊपरि, वरखै२५ ग्रीखम भांण बिहंतर । आठ पहर दहलै २७ असपत्ती, कमधज तोले दिन्न किरंमर । १ ख. बोरिस । ग. वौरिस। २ ख. दाझे। ३ ख. नह । ग.न । ४ ख. मनसूवा । ५ ग. सझि। ६ ख. ग. दिसि । ७ ख. ग. लिषि। ८ ख. ग. दीया। ६ ग. आपणां । १. ग. राषो। ११ ग. माहाराजा। *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । १२ ख. होय । ग. होय। १३ ख. दीण। १४ ख. ग. मिटे। १५ ख. ग. पौरसि । १६ ग. ऐहा। १७ ख. भूत। १८ ख. ग. लोया। १६ ख. ग. डिडवाणां । २० ख. ग. लीया। २१ ख. ग. पौहो । २२ ख. ग. दारण । २३ ख. ग. दिलेस्वरांतणौ। २४ ग. असुर। २५ ख. ग. वरते। २६ ख. विहतरि । ग. विहत्तर। २७ ग. दहले। १२०. प्रजळे - जलता है। दाह - जलन । औरिस - उर, हृदय । मनसूबा - विचार । साझे - रचता है । दहुंवां - दोनों। साह - बादशाह । फुरमांण – प्राज्ञा-पत्र । उतन वतन, जन्मभूमि । दुरंग - दुर्ग, गढ़। प्रजा- महाराजा अजीतसिंह। १२१. सर संभर – सांभर झील । वावागरां - शत्रु । साल - शल्य । पोह - राजा । दिल्लेसुरांतणौ - बादशाहोंको। जम - यमराज । प्रासुर - यवन, मुसलमान। १२२. प्रजमल - महाराजा अजीतसिंह। दिलेसा - दिल्लीशों, बादशाहों। वरख - बर__ सता है । विहंतर - भयंकर, अधिक । दहले - भयभीत होता है । तोल - प्रहार हेतु शस्त्र उठाता है। दिन-दिन । किरमर - तलवार । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ७१ 'अजमल' फौज जदिन सझि पावै, धावै फौज तदिन साहां धर । तखत' बैठि' छत्र चमर धरै तदि, चगयौ' तखत तजै छत्र चंमर ॥ १२२ मूंछां वळ' घाल महाराजा, चूंघट घालै' तांम दिलीधर । एहाई दूठ नरेस 'अजीता', कुळ दीता दळ पूर भयंकर । जिण बहु वार मुगळ दळ जीता, प्रजळे'' तेणि दिलेस्वर पंजर । असपति सोच पड़े पीळा अंगि', भिळ बहु" सोच पड़े।५ मुख भंमर'। खिलबति' करै न'८ खिलबति खांन, तसबी खांन अजूं न तंतर । आलंमीन रबील' न उचारै २, सझै न न्याव अदालित सध्धर । धरै न जोम चमर छत्रधारे, अंब दिवांण सझै न अबसर ८ । अंबखास पतिसाह न आवै, अंग६ पौसाक न पहरै अंतर३ ॥ १२४ नौख न जौख करै नव रोजै', जौख २ न भूखण धरै जवाहर३३ । दसकत करै न मिळे दिवांणां५, अरजी फरज ६ मतालब ऊपर। १ ख. ग. तषति । २ ख. वैठि। ३ ख. ग. चगथौ। ४ ख. ग. चम्मर । ५ ग. बळ । ६ ग घात । ७ ख. ग. माहाराजा। ८ ख. ग. घातै । ६ ग. ऐहा। १० ख. वौहौ । ग. वहौ। ११ ख. ग. प्रजलै । १२ ख. ग. अंग। १३ ख. ग. भिलि । १४ ख. वही। ग. बहीं। १५ ख. पडे। १६ ख. भम्मर । ग. भमर । १७ ख ग. पिलवति । १८ ख. त। १६ ख. ग. तसवी। २० ख. ग. अालमीत। २१ ख रविल । २२ ख. ग. उच्चार। २३ ख.ग. अदालति । २४ ख. सच्चर । ग. सव्वर । २५ ख. चम्मर । २६ ख, ग. प्रांव। २७ ग. दीवांण २८ ख. अवसर । ग. प्रवस्सर। २६ ख. अमि। ग. अंगि। ३० ख. प्रतर । ग. प्रत्तर । ३१ ग. रोज । ३२ क. मोष । ३३ ल. ग. जवाहर । ३४ ख. दसकति। ३५ ग. दीवांणां। ३६ ख. ग, फरंद । ३७ ख. मतावल । १२२. जविन - जिस दिन। सझि - कटिबद्ध हो कर । तदिन - उस दिन । चगयो - चगताई वंशका, मुगल बादशाह । १२३. दूठ - जबरदस्त, शक्तिशाली। अजीता - महाराजा अजीतसिंह। कुळ दीता - कुल आदित्य, सूर्यवंशी। दिलेस्वर -बादशाह । पंजर - शरीर । भमर - श्याम, काला। १२४. खिलवति -हंसी-मजाक, मखौल । खिलबति खांन - सभा, समाज, विलासगृह । तसबी खांन = तस्वीहखान - जप-माला जपनेका स्थान । प्रजू - वजन, नमाजसे पहले हाथ-पैर धोना, पवित्र होना। तंतर - ( ? ) । पालंमीन रबील - 'रबीउल् पालमीन्' ये कलमे के शब्द हैं। न्याव - न्याय । प्रालित - न्यायालय, कचहरी । सध्धर - दृढ़. पक्का । जोम-जोश । अब दिवाण - आम दीवान । अंबखास प्रामखास । पतिसाह - बादशाह । १२५. नोख - नवीन । जौख - मानन्द, खुशी, हर्ष । नव रोज-नो रोजके त्यौहार में, जश्न में। फरज - फर्द (अाज्ञा)। मतालब- मतालिब, मतलबका बहुवचन जिसका अर्थ वांछित, मनोनीत अर्थात् वसूल करने योग्य रकम । अर्जी, फरज (फर्द) और मंतालिब ये तीन प्रकारके कागज़ पेश होते थे। उन पर हस्ताक्षर नहीं करता था। Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ ] सूरजप्रकास राग न रंग उमंग न राजस, हौज न वोग फुहार न हुन्नर । असवार सिकार न हालत, पाठ कुरांन न पीर पैकंबर ।। १२५ अंग संनिपात' ज्यंहीं हुय' आळस, अाठू* पहर रहै घर अंदर । विरहा अगनि जळे चंदवदनी, हुरमां कदे न आवै हाजर । इम 'अजमाल'तणै भय असपति, औरस अगनि जळे उर' अंतर। सुख करि नींद कदे नहिं सूता, दुख मंझि वीता साह बहादर ।। १२६ सझि दळ पूर पाए" साहिजादा, धोखळ' धोम' बधे ८ दिल्ली धर। जोगणि दिली तजे' वर जूनां, वान चढ़ी नवा धारण वर । देखि कटाच्छ लड़े साहिजादा, जोबन मसत काम वट निज्जर । बढि खगधार अवर सब ४ बीता, जीता मौजदीन दळ' जाहर ॥१२७ १ ख. सझि। २ ख. ग. जही। ३ ख. ग. होई। ४ ग. पालम । ५ ख. आठ। ६ ख. पौहौर । ग. पहौर । ७ ग. चंदबदनी। ८ ख. कदै । ९ ग. पौरिस । १० ख. ग. जले। ११ ग. उरि। १२ ख. अंतरि । १३ ख. कंदै । १४ ख. अये। ग. पाऐ । १५ ग. साहिजादो । १६ ख. धौषल । ग. धौषल । १७ ग. धौम । १८ ख. वधै। १६ ग. तजे। २० ख. ग. कटाछि। २१ ख. ग. जोवन । २२ ख. नज्जर । ग. नझ्झर। २३ ख. ग वढ़ि। २४ ख. ग. सह। २५ ख. धम्म । ग. धम । २६ ख. ग. जग्गर । १२५. पोर - धर्म-गुरु मुर्शिद, बूढ़ा। पैकंबर - पैगंबर, ईश्वरका दूत । १२६. संनिपात - उन्मत्तता, पागलपन। विरहा अगनि - विरहाग्नि । औरस - हृदय की। साह बहादर - बहादुरशाह। १२७. पूर - पूर्ण, पूरा । साहिजादा - शाहजादा। धोखळ - युद्ध, उपद्रव । धोम - अग्नि । जोगणि - योगिनी, रणप्रिय, चडीरूपी। वर -- पति । जूनां - पुराना, प्राचीन । वान : वांनो - विवाहसे पूर्व की जाने वाली रस्म विशेष जिसमें वर-वधूको अपने-अपने कुटुम्बी-जन निमंत्रण दे कर उत्तम और पौष्टिक भोजन कराते हैं, मंगल गीत गाते हैं और प्रसन्नता प्रकट करते हैं। कटाच्छ – कटाक्ष । जोबन - योवन । मसत - उन्मत्त, मस्त । काम -- कामदेव, अनंग। मौजदीन -- बहादुरशाहका पुत्र मोइजुद्दीन जो अपने भाइयोंको मार कर वि. सं. १७६६ की चैत्र सुदि १५ पूर्णिमा (तदनुसार ई.सं. १७१२ की १० अप्रेल)को दिल्लीके तख्त पर बादशाह बन कर बैठा । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ७३ जीता' मौजदीन दळ जीता, कैद करे तकबीर' करद्दर । असपति फरकसेर तिण अवसर', वींद जुवांन हुवा दिल्लीवर । अबदल हसनअली अजराइल', मारे जुलफगार तै मौसर । एक उजीर हुवा असपत्ती, इक उमराव अमीरल अज्जर ।। १२८ अवर अमीर भूपजां प्रागळि, करै सिलाम' दहूं' जोड़े कर । सयदा १२ विदा किया' गज सिक्का,धर अन लीध न लीध मुरद्धर१६ । अवर नरेस नमे असपत्ती, एक' 'अजीत' नमे नह अड्डर । 'अजमलि'१८ नाटसाळ असपतियां, ऊगा तदिनहूंत जम' ऊधर ॥ १२६ जिण 'अवरंग'तणा दळ जीता, प्रातम सकति वजाई १ असमर२२ । मारि बहादर साह ४ मनाया, जोरै मुलक लिया जोरावर । १ ख. ग. जुध करि। २ ख. तकवीर । *निम्न पंक्तियां ख. और ग. प्रतियोंमें हैं, किन्तु उपरोक्त क. प्रतिमें नहीं हैं हरवल सैद कीयां दष्षण हूँ, आया फरकसेर ते ऊपर । प्रागलि हसन अली अबदुल्ला, विहुं दारुण तेग बहादर । ३ ख. प्रोसरि । ग. प्रौसर । ४ ख. जवा । ग. जवांन । ५ ग. दिल्लीबर। ६ ख. ग. अजरायल । ७ ग. मार। ८ ग. ऐक । ६ ग. प्रजर । १० ग. सलाम। ११ ख. विहूं। ग. बिहूं। १२ क. ख. सदा। १३ ख. ग. कीया। १४ ख. सिका। १५ ख. ग. अनि । १६ ख. मुरधर। १७ ग. ऐक । १८ ख. ग. अजमल । १६ ख. ग. घर। २० ख. ग. उद्धर । २१ ख. ग. वजाय । २२ ख. ग. असंम्मर । २३ ख. वहादर । ग. बाहादर। २४ ग. साहि। २५ ख. ग. लोया। १२८. मौजदीन - मोइजुद्दीन जहांदार शाह । तकबीर - ईश्वरकी प्रशंसा (यहाँ सहायतार्थ ठीक बैठता है) तकब्बुर, अभिमान, गर्व । करदर - ( ? ) । फरकसेर = फर्रुखसियर -- इसने भी मोइजहीनको कैद कर लिया था और स्वयं दिल्लीके सिंहासन पर वि. सं. १७६६ की माघ वदि १०को बादशाह बन कर बैठ गया था। अबदल - अब्दुल्लाखां । अजराइल - जबरदस्त, शक्तिशाली। जुलफगार - जुल्फकार नामक यवन । मौसर - अवसर, मोका। उजीर-वजीर । असपत्ती-बादशाह । अमीरल-अमीरोंका सरदार । अज्जर = अमीर उल अजर-बड़े रुतबे वाला, अमीर । १२६. अवर – अवर, अन्य । अमीर - सरदार। प्रागळि - अगाड़ी, प्रागे । जोड़े कर - कर बद्ध हो कर । सयदा- सैयद भाई। अजीत - महाराजा अजीतसिंह । अड्डर निर्भय । अजमलि- महाराजा अजीतसिंह । नाटसाळ - शल्य रूप, वीर। १३०. अवरंग - बादशाह औरंगजेब । असमर - तलवार । जोरावर - शक्तिशाली। Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७४ ] सूरजप्रकास 'अजमलि''तणी एम' बणि आई, साहांहूंत' करंतां सम्मर । आप करै खातर सुज* आवै, खूदालमां न प्रांण खातर ॥ १३० मोहकम मारि लिया दिल्ली मझि, गिणिया नहीं दिलेस्वर गुम्मर। इण विध देखि गरूर 'अजम्मल'', असपति कोप कियौ १ पहने ऊपर। सझि हसनली लार बाईसी, कीधा'५ विदा सतेज लसक्कर । आया हसनअली अजरायल, जाजुळमांन भयंकर जज्जर' ॥ १३१ १ ख. ग. अजमल। २ ग. ऐम । ३ ख. वणी । ग. वणि । ४ ख. हुंत । ग. हुंता । ५ ख. ग. सुजि। ६ ख. ग. मौहौकम । ७ स्व. ग. लीया। ८ ख. ग. विणीया । ६ ख. ग. विधि। १० ख. ग. अजमल । ११ ख. ग. कीया। १२ ख. ग. पहौ । १३ ख. ऊपरि। १४ ख. ग. वाईसी। १५ ख. कोध। १६ ग. जन्झर । १३०. सम्मर - युद्ध । खातर - इच्छा, मर्जी । सुज - वह । खूदालमा - बादशाहों । खातर - विचार, ध्यान । १३१. मोहकम - यह नागौरके राव इन्द्रसिंहका पुत्र था। बादशाह फर्रुखसियर राव इन्द्र सिंहकी रुख रखता था, अतः महाराजा अजीतसिंहजीने जब मोहकमसिंह नागोरसे बादशाह फर्रुखसियरसे मिलने दिल्ली गया था तब भाटी अमरसिंह केसोदासोत, राठौड़ अमरसिंह नाथावत, कर्णसिंह विजयसिंहोत (थोब) एवं राठौड़ दुर्जनसिंह सबलसिंहोत, जोधा (पाटोदी)को बीस-पच्चीस सवारोंके साथ उसको मारने के लिए भेजा! वे व्यापारियोंके रूपमें दिल्ली पहुंचे और जब एक दिन कुंवर मोहकमसिंह संध्या समय किसी नबाबके यहांसे मातमपुर्सी कर के लौट रहा था तब इन लोगोंने उसे मार्गमें ही मार डाला। -देखो महामहोपाध्याय गौरीशंकर हीराचंद प्रोझा कृत जोधपुर राज्यका इतिहास, द्वितीय खंड, पृ. ५५५ । दिलेस्वर - दिल्लीश्वर, बादशाह । गुम्मर - शक्ति, बल, गर्व । गरूर - गर्व, अभिमान । अजम्मल - महाराजा अजीतसिंह । पह - राजा । सझि - सुसज्जित कर, तैयार कर । हसनलीसैयद हुसेन अलीखां । वि.वि. – जब महाराजा अजीतसिंहके भेजे हुए योद्धाओंने राव इन्द्रसिंहके कुंवर मोहकमसिंहको मार डाला तो फर्रुखसियर बहुत कुपित हुआ और उसने बड़ी सेना देकर मारवाड़ पर सैयद हुसेन अलीखांको भेजा था। यह घटना वि सं १७७० पौष सुदि प्रतिपदा की है। --देखो महामहोपाध्याय पं. गौरीशंकर हीराचंद ओझा कृत जोधपुर राज्यका इतिहास, द्वितीय खंड पृ० ५५६ । बाईसी - सेना, फौज जिसमें बाईस सरदार या अफसर होते थे। अजरायल - जबरदस्त । जाजुळमांन - जाज्वल्यमान । जन्जर-यमराज। Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ७५ 'अजमल' विदा कियौ' जिण औसरि धरि दळ पूर 'अभौ' पाटोधर। 'अभमल' मिळे हसनली अणभंग, साइत मज्झि' फिरै पैसाहर। सू-वस राखि मुलक न सांमंद, दळ सांमंद मोड़े' दावागर । 'अभमल' उझळ दळां सझि पायौ, नर सिंणगार' जोगणी नग्गर ॥ १३२ मिळिया'' असपतिहूंत 'अभैमल', असपति कुरब किया अ(प)रंपर। व्रवि सिरपाव तुरी गज बविया'२, खग जमदाढ़ जड़ित नग खंजर। मनसप'५ पंचहजारी समपे, परठे कुरब' राह दो ऊपर । इण विध'८ विदा किया' असपत्ती, क्रांमति 'अभपतो' सुजि संकर ॥ १३३ झळहळ रती भुजां भर झल्ले, हल्ले उतन' नरेस ‘जसाहर'। आयौ जोधदुरंग ऊमहियां', डहियां २ फौज गजां धज डंबर । १ ख. ग. कोयो। २ क. प्रौसर । ग. उसरि। ३ ख. मझ्झि । ग. मझिझ। ४ ख. ग. फिरे। ५ ख. ग. घांसाहर। ६ ख. ग. सूव । ७ ख. मोडे। ८ ख. दीवागर। ६ ख. ग. नरां। १० ख. ग. सिंगार । ११ ख. ग. मिलीया। १२ ख. ग. ववीया । १३ ग. जुग। १४ ख. पंज्जर । ग. पंज्झर । १५ ख. मुनसप । ग. मुनसुप। १६ ख. कुरव । १७ ख. ग. दोय। १८ ख. ग. विधि । १६ ख. ग. कीया। २० ग. उतनि । २१ ख. ग. ऊमहीयां। २२ ख. ग. डहीयो। २३ ख. डंव्वर । ग. डब्बर । १३२. अजमल - महाराजा अजीतसिंह । औसरि - अवसर, मौका । दळ - सेना । पूर - पूर्ण । अभौ - अभयसिंह । पाटोधर - युवराज, पट्टाधिकारी । प्रभमल -अभयसिंह । अणभंग - वीर, योद्धा । साइत - क्षण भरका समय। मज्झि - मध्य, में । घेसाहर - सेना, दल। सू-वस - कुशल, निष्कंटक। सांमंद - समुद्र। दावागरशत्रु । उझळ - उमड़ कर। नर सिंणगार - नर-श्रेष्ठ, नर-पुंगव । जोगणी नग्गर - दिल्ली शहर। १३३. अभमल - महाराजकुमार अभयसिंह। कुरब - मान, सम्मान । प्र(प)रंपर - अपार, असीम । ववि - दे कर । तुरी-घोड़ा। वविया - दिये, प्रदान किये । परठेप्रतिष्ठा कर के। राह - संप्रदाय । ऊपर - विशेष । क्रांमति - कांति, दीप्ति, तेज । प्रभपति – महाराजकुमार अभयसिंह । सुजि - मानों, जैसे । संकर ( ? ) १३४. झळहळ - देदीप्यमान । रती - कांति, दीप्ति, तेज ! भर - उत्तरदायित्व, जबाबदेह, जिम्मेदारी। झल्ले - धारण कर के। उतन - वतन, जन्मभूमि । जसोहर - महाराजा जसवंतसिंहका पौत्र, वंशज । जोधदुरंग - जोधपुरका दुर्ग । ऊमहियां - उत्कंठित, जोशपूर्ण । डहियां - लिए हुए । गजां- हाथियों। धज - घोड़ा। रंबर - समूह । Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७६ ] सूरजप्रकास जाय 'अभ' 'अगजीत' जुहारे, चक्रवत्ती' होतां सिर चंमर' । मिळे 'अजीत' सनेह 'अभैमल', 'गजपति' दुवै धरे बहु गुम्मर ॥ १३४ देखि 'अभैमल' तेज जिकै दिन', पालम एह कथै कथ उच्चर । सूरजवंस 'अजीत'तणौ सुत, सूरजवंसतणौ सहसक्किर ।। १३५ कवित्त- असपति मेळ 'अजीत', धरा नायक नह धारे । आदि सुरां प्रासुरां, वैर जिम दाव विचारे । वळि 'अवरंग'हूं वैर, उवर मझि जिकौ१ अमावौ । जेण तजै न 'अजीत', दिलीपतिहूंता दावौ । कमधजां राव' 'अवरंग' किलम, तूं थपि चह तौ प्रापणौ । उण प्रांटहूंत चाहै 'अजौ', अवरंग वंस उथापणौ' ।। १३६ समें'५ जेण पतिसाह, दुगम बुधिकाळ दबायौ । सैद ग्रहण पतिसाह, आप भय चूक उठायौ । खेध'६ पड़े चित खांन ७, खोद१८ उज्जीर हुवा खळ । सांभळि अलीहुसेन ६, दखिणहूं अयो२१ सझे दळ । १ ख. चक्रवति । २ ख. ग. चम्मर। ३ ख. वहु । ग. बहौ। ४ ग. दिनि । ५ ग. ऐह। ६ ख. कहै । ७ ख. ग. सहंसक्कर। ८ ख. ग. धारै। ६ ख. ग. विचार । १० ख. उवरि। १ ग. जिको। *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। १२ ख. ग. राव। १३ ग. प्रापण। १४ ग. उथापण। १५ ख. म. समै। १६ ख. क. ल । १७ ख. ग. षांति । १८ ग. षौंद । १६ ख. अलिहुसेन । २० ख. दक्षिण । ग. दष्षिण। २१ ग. प्रायो। १३४. प्रभ- महाराजकुमार अभयसिंह । अगजीत - महाराजा अजीतसिंह। जुहारे - अभि वादन किया । चक्रवत्ती- राजा । चमर - चँवर । अजीत - महाराजा अजीतसिंह । अभेमल - महाराजकुमार अभयसिंह । गजपति - महाराजा गजसिंह। दुवै - दूसरे, वंशज । गुम्मर - गर्व, अभिमान । १३५. पालम - संसार । सहसक्किर - सूर्य । १३६. सुरां - हिन्दुओं । प्रासुरां - मुसलमानों । दाव - अवसर । अमावौ - न समाने वाला, अपार । दावी - दावा, नालिश। प्रवरंग - बादशाह औरंगजेब। किलम - मुसलमान । थपि - स्थापित कर। प्रांटहूंत - शत्रुतासे । अजौ - महाराजा अजीतसिंह । उथापणी- उन्मूलन करना, नाश करना। १३७. सैद - सैयद । चूक - षड़यंत्र। खोद - बादशाह । उज्जीर - वजीर, दीवान । खळ - शत्रु। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [७७ पतिसाह ग्रहण जोधांणपति, पेखे मौसर पावियौ' । दइवांण' 'अजौ' दळ सझि दिली, आप मुरादौ प्रावियौ' ।। १३६ आइ. दिली ईखिया', जोध चौतरा 'जसारां' । सुजि 'अवरंग' सजी (...), इता खटके उणवारां । जूना भड़ां जियार, कहै इण भांत हकीकत । माति'' आदि जादम्म', मात अनि अठै खगां म्रत । आइठांण' ३ देखि कथ सुणि 'अजै', धिखे क्रोध इम चित धरी। असपती मारि मांडूं अठै, एक'४ कबरि१५ असपत्तिरी ।। १३८ धख' इम चख" (...) धिखे, तांण'८ मूंछां खग तोले । भड़ांहूंत भूपाळ, बहसि२१ नाहर जिम बोलै २२ । खत्री खांडाधार, एह४ वायक अवखांण५ । जिकौ ६ विरद उजवाळि, खूद पलटी खुरसांण ८ । १ ख. ग. पावीयौ। २ ख. ग. दईवाण । ३ ख. ग प्रावीयौ। ४ ख. ग. प्राय । ५ ख. ईषीया । ग. इषिया। ६ ख. साया। ग. साझीया। ७ ग. उणबारां। ८ ख. कहे। ६ ख. ग. भांति । १० ख. ग. मात । ११ ख. जादम्मि । ग. जामि । १२ ख. ग. मृत । १३ ख. पायठांण । ग. प्रायवांण । १४ ग. ऐक । १५ ख. ग. कवर । १६ ख. षग। १७ ख. ग. धरि चष। १८ ख. ग. तांणि । १६ ग. तोले। २० ग. हुतं । २१ ख. वहिसि । ग. वहसि । २२ ग. बोले। २३ ख. ग. पंडाधार । २४ ग. ऐह । २५ ख. अवषांणौ। २६ ख. ग. जिको । २७ ख. अजुवालि । ग. अजवाळि । २८ ख. पुरसाणौ। १३७. पेखे – देख कर । मौसर - अवसर, मौका। पावियो - प्राप्त किया। दइवांण - वीर, शक्तिशाली । आप मुरादौ - अपनी इच्छासे कार्य करने वाला। प्रावियो - आया। १३८. ईखिया - देखे । जोध -- महाराजा अजीतसिंह राव जोधाका वंशज, वीर । चौतरा शवके दाह-स्थान पर या समाधि-स्थान पर बनायी गयी स्मृति-चिन्हकी चौकी। जसारां- महाराजा जसवंतसिंहके। सुजी - संहार किये, मारे । खटके - कसके, दर्द रूप हुए। उणवारां- उस समय । जूना - प्राचीन, पुराना। जियार - जिस समय । माति - माता। जादम्म – यादव। म्रत - मृत्यु प्राप्त हुई। प्राइठांण – चिन्ह, संकेत-स्थान । अजै - महाराजा अजीतसिंह । धिखे - प्रज्वलित हुना। कबरि - कब्र । १३६. भड़ाहूंत - योद्धाओंसे । बहसि - जोश में पा कर । खांडाधार - तल-वारकी धार । वायक - वाक्य। अवखांणौ - कहावत, लोकोक्ति। खूद - बादशाह । खुरसाणे - मुसलमानों। Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ ] सूरजप्रकास महि वैर वंस गोहरि मंडप, 'अवरंग'" बहु कीधा इसा। ताबूत' (रा) वर भूलै तिके, कहै 'अजौ' राजा 'किसा' ॥ १३६ छंद हगुंफाळ कथ एम सुणि मचक्र', सब कहै इण विध सूर । महि वंस रवि महाराज', अन' भूप जोड़' न अाज ।। १४० अनि करै कुण इण भांति, खित वयर काढ़ण खांति । इक वयर धरा अबीह, सुजि१२ वंस दूजौ 'सीह' ।। १४१ अरु वैर'3 तीजौ गाय, प्रम मंडप'४ चौथौ पाय । ऐ च्यार वयर'५ अजेब, जग' कीध' 'अवरंगजेब' ॥ १४२ पह'८ कही वात प्रमाण, जुड़' ६ वयर लेण सुजाण । कमधज्ज तड़ तड़' केक, 'अवरंग'२२ हणे अनेक ॥ १४३ सुजि काढ़ि वैर सकाज, उत्थापि३ असपति आज । इक साह२४ तखत उथापि, पतिसाह दूजौ थापि ॥ १४४ १ ग. प्रवरंगि। २ ख. वहौ । ग. बहो। ३ ख. तावुरा । ग. तावरा। ४ ख. ग. हनूफाल । ५ ग. ऐम। ६ ख. ग. मचकर। ७ ख. श्रव । ८ ख. विदि । ग. विधि । ९ ग. माहाराज । १० ख. ग. अनि । ११ ख. ग. जोजन । १२ ग. सूजि । १३ ख. ग. वयर। १४ ख. मंड। १५ ख. वैर । ग. वैरि। १६ ग. जगि। १७ ख. ग. कीया। १८ ख. ग. पौहौ। १६ ख. ग. जुडि । २० ख. कमधज । ग. कमधज्झ । २१ ग. भड़। २२ ग. प्रवरंगि। २३ ख. ग. अथापि। २४ ख. साहि । १३६. गोहरि मंडप - कन्न, समाधि-भवन । ताबूत - वह संदूक जिसमें शवको बन्द कर के गाड़ते हैं । नोट- यहाँ कब्रका ही अर्थ ठीक बैठता है। १४०. मचकूर - मजकूर, लिखित विवरण, विचार-विमर्श । वंस-रवि- सूर्यवंश । जोड़ -- बराबर, समान। १४१. खित - भूमि । वयर - वैर, शत्रुता । खांति - विचार । अबीह - प्राद्वितीय, वीर । सीह - राव सीहाका वंजश । १४२. प्रम मंडप - देवालय, देव मन्दिर, विष्णु भवन । प्रजेब- अजब, अद्भुत । १४३. पह - राजा। जुड़ - भिड़ कर, युद्ध कर। तह- शाखा, उपशाखा । केक - कई । १४४. उत्थापि - हटा कर । थापि - स्थापित कर । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [७६ कीजिये' इण विध' काम, निज पंग नूप जिम नाम । विध एम' करतां वात, भिळ सैद दहुंवै भ्रात ।। १४५ तन जीव असपति त्रास, पह अया 'अजमल' पास । खांहसन्न'' अबदुलखांन, इम कही वात अमांन ।। १४६ 'अजमाल' सुणिजै एह'', कर जोड़' एम' कहेह । इस१४ साह की हुइ और ६, जंग किया हम वरजोर ।। १४७ विढ़'८ पड़े जुध उस वेर, सिर खमे बह' समसेर । अति लोह झेले२१ अंग, इम फतै कीध अभंग ।। १४८ मिळ3 मौजदीनह मारि, करि एक४ इस इकतारि५ । इस तरह दिल्ली आणि, पतिसाह कीया प्रमाणि ।। १४६ इक साइयां ६ के एह, दिल अवर न धरी देह । सरियत्त निमख सिपाह, सो गिणी नह पतिसाह ॥ १५० 'जैसिंघ' ध्रोह जणाय, रचि दीध चित मझि राय । सो मांनि फररक८-साह, चितहमै मारण चाह ॥ १५१ १ ख. कीजिए । ग. कीजिए। २ ख. ग. विधि । ३ ख. ग. नुप। ४ ख. ग. विधि । ५ ग. ऐम। ६ ख. ग. मिलि । ७ ख. असति । ८ ख. ग. पौहो। ६ ग. प्राय । १० ख. ग. सन । ११ ग. ऐह । १२ ग. जौड़ि। १३ ग. ऐम। *यह पंक्ति ख. प्रतिमें अपूर्ण है। १४ ग. इम। १५ ख. ग. होय। १६ ख. ग. ओर। १७ ख. ग. कीया। १८ ख. ग. वढ़ि। १६ ख. ग. जुधि । २० ख. खमौ। २१ ख. वहो । ग. बहो। २२ क. झेल । २३ ख ग. मिलि। २४ ग. ऐक। २५ ख. कतार । २६ ख. सांईयां। ग. सांइयां । २७ ख. ग. सरीयत । २८ ख. ग. फररक्क। २६ ग. चित । १४५. पंग नप - राजा जयचन्द जिसका विरुद 'दलपांगला' था। सैद - हसनअलीखाँ और अब्दुल्लाखाँ नामक दोनों सैयद भाई । १४६. अजमल - महाराजा अजीतसिंह । १४७. कहेह - कहता है। १४८. विढ़ - युद्ध कर। वेर - वेला, समय । खमे - सहन करते हैं। समसेर - तलवार । लोह - शस्त्र प्रहार । झेले - सहन करे । १४६. मौजदीन - मुइजुद्दीन जहाँदार शाह । इकतारि - सत्ता, प्रभुत्व, हुकूमत । १५०. सरियत्त - धर्म-शास्त्र । निमत - नमक । सिपाह - सेना, बल, फौज । १५१. ध्रोह - द्वेष, डाह । फररक-साह - फर्रुखसियर नामक बादशाह । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 50 ] सूरजप्रकास दिन राति' हम मभि दाव, इम करै साह उपाव । चित दूध फट्टा चाय, जो फेर नहिं मिळ जाय ।। १५२ कथ कहे " एम कुरांण, महमंदका फुरमाण । 3 ६ 93 बिन" खून घ्रोह' विचार", मारै सुलीजे" मार" ।। १५३ कहै आलमीन कताब '३, इण १४ मांहि नाहि प्रजाब | दिल करै बीच १५ दरोग, जो पहिल मारण जोग ।। १५४ सो किया यह " " जैसाह', रुख साख १६ १८ दहुंवै राह | कम १६ लख हजार । २२ 23 उतन जमियत" काज, इह दाव में " है प्राज ।। १५५ दोय दळ हम लार, है इसे दोय जुड़ि पहल इससे जंग, ब** मार लेहि जंग जीत तखतह जाय, असपती दीय" कमधज्ज तुम विनकोय, हम दोय सैन हि अभंग ।। १५६ ६ उठाय । 39 अनि करै कुण विण प्राप, इहं" दिली ततवीर कर धरि तौर, ३४ २० २७ २४ ख. ग. श्रव । २५ ख. ग. लेह ' ग. कमधज्भ । २८ ख. ग. विण । २६ ३२ ग. दिल्ली । ३३ ग. तौरि । १ ग. रात । २ ख. ग. परि । ३ ग. नह । ऐम । ७ ख. फरमांण । ८ ग. विण । १४ ख. ग. इस । १२ ख. ग. मारि । १६ ख. ग. कीया । १७ ख. ग. इस । १५ ग. साषि । १९ ख. ग. कमि । २० ख. ग. जमीयत । २१ ख. ग. में । २२ ग. पहिल ११ ग. सलीजै । १५ ख. ग. वोचि । । २३ ख. ईससे । २६ ख. दीयां । ग. दीया । २७ ख. कमधज । ख ग ह । ३० ख. ग. अन्य । ३१ ख. ग. यह । ३४ ख. ग. प्रसपति । ३५ ख. जीकै । ग. कीजं । थाप उथाप । असपती कीजे ३५ औौर ॥। १५८ होय ।। १५७ ४ ग. मिलि । ५ ख. ग. कहै । ६ ग. ख. गोह । १० ख ग विचारि । १३ ख. ग. किताब | १५२. चाय - चेत्, यदि । चितजाय -- यदि चित्त और दूध फट जाते हैं तो वे फिर नहीं मिलते | १५३. खून - गुनाह । १५४. श्रालमीन कताब - धर्म - पुस्तक । अजाब - पापोंका वह दंड जो यमलोक में मिलता है, कष्ट, पाप । दरोग - कपट, दुरोग । १५५. जैसाह - सवाई राजा जयसिंह । साख साक्षी । दहुंवं दोनों। कम उतन काज - थोड़ीसी जमीन और सेनाके लिए। जमियत = जमीअत - फौज । १५६. लार - पीछे । श्रभंग - वीर । १५८. इहं - यह । तौर-तरीका, विधि । ततवीर तदवीर, उपाय - - Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ८१ हम रहें' नौकर होय, दिल आप बंधव दोय । पलटां न वायक पेस, नहि तजां हुकम नरेस ।। १५६ महाराज विच रहमांण, करि सौंस छिबी कुरांण । तदि धरे दिल परतीत इम बोलियो' 'अगजीत' ॥ १६० हिंदवांण" तीरथ होय, कर जठै न लगे कोय" । साळग्गरांम सिलाह, दै नहीं आसुर दाह ॥। १६१ जिग होय दुज जप जाप, प्रासुर करें न उथाप । 3 जिण मोह महि दुर जाय", ग्रह तठै मन" १६ ह्र गाय । १६२ * ग्रसुरांण सीस उपाड़ि, परसाद न सकै पाड़ि । प्रासाद" नवनवा प्रमेस, हिंदवांण" सहमेस * ।। १६३ आगै जु दियौ छुडाय, जेजियौ " सुज" मिट जाय । अर साह दरगह आइ * ४, मह" पूज हूं" महमाय" ।। १६४ २० 3 १० २० व. ग. दीयो । २४ ख. ग. श्राय । माय । १ ख कहै । २ ख नौकरि । ३ ख ६ ख. ग. विचि । ७ ख ग छिवे । हिंदुवांण । ग. हीदुवांण । ११ ग. कोइ १४ ख. दुजाय । ग दुजाय । १५ ख. ग. न । १८ ख. ग. हिंदुवाण १९ ख. सझे । । १ २ * यह पंक्तियाँ ख. प्रतिमें अपूर्ण हैं । २१ ख. ग. जेजीयौ । २५ ख. ग. महि । २६ दिलि । ४ ख. ग. नह । ५ ख. ग. माहाराज । ८. धरै । ६ ख ग बोलीयो । १० ख. १२ ख. ग. साळगरांम । १६ ख. ग. हुवे । - १६०. रहमांण - ईश्वर । सौंस - शपथ । छिबी तसबीह, माला । परतीत- विश्वास । गजीत महाराजा ग्रजीतसिंह । - १६३. असुरांण - यवन, मुसलमान । परसाद प्रासाद - देव मंदिर | प्रमेस = परमेश स्तान । स तैयार करें । १६१. साळग्गरांम - शालिग्राम दाह जलन ( ? ) । १६२. जिग- यज्ञ । दुज - द्विज, ब्राह्मरण । श्रासुर - यवन, मुसलमान । २२ ख. ग. ख. ग. बूं । -- - सुजि । २३ ख. ग. मिटि । २७ ख. महामाय । ग. माहा १३ ख. ग. मुह । १७ ग. परसाद । प्रासाद, मंदिर, देवालय पाड़ि गिरा कर । विष्णु, ईश्वर। हिंदवांण - हिन्दू, हिन्दु १६४. जेजियो- एक प्रकारका कर जो मुसलमानी राज्य में अन्य धर्म वालोंसे लिया जाता था, जजिया । महमाय - देवी, दुर्गा, महामाया । - Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ ] सूरजप्रकास 9 मिळ लालकोट मझार, झालरां हूँ મ परमळा धूप प्रकास, उदियात ' रवि राखूं सुरहि' रनधीर, मेटू स मिटै हरवळे करम हूंत, कळि तजी विग्रह * सुजि बाळ" वय समराथ, हृद ग्रहे मैं इण हाथ । आलंमहूत अमेळ, खित करे लीध उखेळ* ।। १६७ राखियौ' डिगतौ राज, ईसांन १२ मांनै आज | १४ सुजि करूं वळि ईसांन, थष्ट रखण हिंदुस्थान ४ ।। १६८ आ मटण न दूं " अनादि, मो थकां हिंदु म्रजादि ७ । .१५ १७ झणकार । अंबखास ।। १६५ अमीर । 3 ग. बात २८. ख. ग. द्यं । २६ ग. युद्ध । ३० ख. ग. बुद्धि । तजि दाव छळ" तुरकांण, 'जैसाह' दीजै जांण ।। १६६ दिल्लीसरखत दरब्ब", सुजि लियूं " वांटि स रब्ब .२२ सकै कोय ॥ १७० २५ ह्वै हुकम जिम हिज होय, करि उजर न विध इती मांनौ वात, तौ साह कितियक ऊथाप" दूं इण वार करि जुद्ध" "बुद्ध" प्रकार ।। १७१ बात ६ О कूंत ॥ १६६ ११ ख वाल । १ व. ग. मिलि । २ ख. प्रमल्ला । ग. प्रम्मला । ३ ख. ग. उदगार । ४ ख. हुवे । ग. हूँ । ५. क. सर है । ६ ख. ग. सधीर । ७ ग. हरवल । ८ ग. कुरम । ६ ग. हुत । १० ख. हूंत । * यह पंक्ति ग. प्रतिमें नहीं है । १२ ख. ग. राषीयो । १३ ग. इसांन । ग. श्रनादी । १७ ख. ग. मृजाद । बरब । २१ ख लिहूं । ग. लिऊं । १४ ग. हिंदूसथांन । १५ ख. ग. द्यं । १६ ख. १८ ख. छलि । १६ ख. ग. दिल्लेस | २० ख. रा. २२ ख. ग. सरब । २३ ख. ग. विधि । २४ ख. २५ ख कितीक । ग. कितीयक । २६ ख. ग. बात । २७ ख. ग. ऊथापि । १६५. झालरां - देव मन्दिरोंमें बजाया जाने वाला घंटा विशेष । झणकार - ध्वनि विशेष | परमळा - सुगंध अंबखास- ग्रामखास | I १६६. हरवळे - हरावल । कूरम हूंत - कछवाहोंसे । कळि | प्रमेळ - शत्रुता । उखेळ - युद्ध । - युद्ध । कूंत - भाला १६७. वय - श्रायु, उम्र १६८. डिगतौ - डाँवाडोल होता हुआ । ईसांन - अहसान । थट वैभव, ठाठ । १६६. थकां - होते हुए। प्रजादि - मर्यादा । तुरकांण - यवन । १७०. दिल्लीस - दिल्लीके बादशाह । वरम्ब - द्रव्य, धन-दौलत । उजर उज्ञ, दावा । १७१. कितियक - कितनी । बुद्ध - बुद्धि । - विचार कर ( ? ) । विग्रह - - - Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ८३ इण मांहि एक' अदाब', नह मनूं' एक निबाब। जदि अापहूंता जंग, ऊखेळ करूं अभंग ।। १७२ सुणि कहे इम सयदांण, पह हुकम सरब प्रमाण । सझि एम' तरह सलाह, दहुं" गए सयद दुबाह' ॥ १७३ 'जैसाह'हूंत जबाब", सुजि कहे 'अजै' सताब'५ । उण वार अंब नरेस, दिय'६ सिख सलाह दिलेस ।। १७४ जदि सीख करि 'जैसाह', दिस'८ उतन चढ़े दुबाह' । तन लगे नह खग ताप, पह° 'अजन'२१ २२ परताप ॥ १७५ सयदाण कमध सकोज, मिळ' थाट सझि महाराज२५ । अंब६ खास मांझटि अाय, असपत्ति८लीय२६ उठाय ॥ १७६ ग्रहि हणे साह गहेर, सुज' नाम फररकसेर । इम वयर लीध अथाह, नरइंद' मुरधरनाह ।। १७७ १ ग. ऐक । २ ख. अवाद। ३ ख. ग. मनौ। ४ ख. ग. कदे । ५ ख. नपाव । ग. नबाब । ६ ग, कहै। ७ ख. ग. सईदांण । ८ ख. पौहौ । ग. पहौ । ६ ख. सरव । १० ख. ग. इम। ११ ख. ग. दहूं। १२ ख. गये। ग. गऐ। १३ ख. दुवाह। ग. दुबाह । १४ ख. जवाव । १५ ख. सताव । १६ ख. ग. दीय। १७ ख. ग. सीख । १८ ख. ग. दिसि । १६ ख. ग. दुवाह। २० ख. ग. पौहौ। २१ ख. ग. प्रजण । २२ ख. ग. तणै। २३ ख. ग. प्रताप। २४ व. ग. मिलि । २५ ख. ग. माहाराज । २६ - ख. अंव। २७ ख. ग, मांझिल । २८ ख. ग. असपती। २६ ख. ग. लीयो। ३० ख. ग. सुजि । ३१ ख. ग नरयंद । १७२. अदाब - अादर, अदब ( ? )। १७३. सयदाण - सैयद भाई-ये दो भाई थे जिनके नाम क्रमशः सैयद हुसेनअलीखां (अमीरुल उमरा) और अब्दुल्लाखां (कुतुबुल्मुल्क) थे। १७४. अज- महाराजा अजीतसिंह। अंब नरेस - ग्रामेर नरेश सवाई राजा जयसिंह । नोट - सैयद अब्दुल्लाखांका (कुतुबुल्मुल्कका) ख्याल था कि आमेर नरेस जयसिंहजी भी उसके विरुद्ध बादशाहको भड़काते हैं। इससे उसने फर्रुखसियरको दबा कर उन्हें अपने देशको लौटनेकी आज्ञा दिलवा दी। दिलेस - दिल्लीश, बादशाह । १७५. उतन - जन्मभूमि। दुबाह - वीर, योद्धा। ताप - भय, आशंका । पह - राजा । अजन - महाराजा अजीतसिंह। १७६. थाट - सेना, दल । अंबखास - प्रामखास । मांझळि - मध्य, में। प्रसपत्ति - बादशाह । १७७. ग्रहि - पकड़ कर । गहेर - जबरदस्त (?) । सुज-जिस । फररकसेर - फरुखसियर । घयर - वैर, शत्रुता । लीध - लिया। प्रथाह - अपार । नरइंद- नरेन्द्र, राजा। Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] सूरजप्रकास छत्र तखत्त । सुज' तेज देखि सधीर, अडियौ न कोय अमीर | सझि तांम 'अजण' सलाह, सा' थियौ' दौलासाह ॥ १७८ इक साह तखत उथापि, इक साह तखतह प्रपि । कथ कहे जिम कमधेस, द्रब वांटि लीध दिलेस ।। १७६ रजतेस कनक रखत्त, तै चमर असि गयंद लीध अपार, हद माल निज जोगणीपुर नाह, सुजि पड़े तीसरौ सपतितांम, बळि" थापियौ अणभंग तप अथाह, सुजि नांम दे तखत छत्र दुभाळ, प्रति घरे छक आगरै गढ़ उणवार", ऊठियो" दुंद धर छत्र बहसे " धांम, निज नेक सेरह नांम ॥ १८३ 3 मुलक दौला साह | " बरियांम" ।। १८१ जुहार ।। १८० महमंद साह | 'जमाल' ।। १८२ " १ ख ग सुजि । २ ख देष । ३ ख. ग. अडीयौ । ४ ख. ग. सथपीयो । ५. ख. दलासा | ६ ग. श्राप । ७ ख. द्रव । ग. द्रव्य । ८. बांटि । ६ ख जोगणिपुर । १० ख. ग. वलि । ११ ख. ग. थापीयो । १२ ख. वरियाम । ग. वरीयांम । १३ ख. तांम । १४ ग. उणबार । १५ ख. ऊठीयौ । ग १६ ख ग अपार । १७ स्व. वहसे । उठीयो । 9 उदार १६ १७८. अडियो भिड़ा, टक्कर ली। प्रजण - महाराजा अजीतसिंह । सलाह - राय । सा' - शाह, बादशाह । दौलासाह - रफीउद्दौला नामक व्यक्ति जिसको सैयद भाइयोंसे मिल कर महाराजा अजीतसिंहने दिल्लीके सिंहासन पर शाहजहाँ सानीके नामसे वि. सं. १७७६ को राज्य सिंहासन पर बैठाया था । १७६. उथापि - उठा कर, उच्छेद कर । श्रपि दे कर । १५०. रजतेस - चांदी, रोप्य । कनक - स्वर्ण, सोना । जाहिरात | - १८१. जोगणीपुर - दिल्ली । नाह- नाथ, राजा, बादशाह । पड़े मर गये, अवसान हुआ । थपियो - मुकर्रर किया, स्थापित किया । बरियांम - श्रेष्ठ । १८२. अणभंग - वीर । तप- ऐश्वर्य तेज । प्रणयाह- अपार असीम । महमंद साह - शाहजादा रोशन अख्तर जिसको सैयद भाइयोंसे मिल कर महाराजा श्रजीतसिंहजीने रोशन अख्तर नासिरुद्दीन मोहम्मद शाहके नामसे दुकाल - वीर। छक - गर्व । श्रजमाल -: रफीउद्दौलाकी बाद दिल्ली के सिहासन पर बैठाया। अजीतसिंह | महाराजा १८३. बुंद - द्वन्द्व । बहसे - जोश में । सेरह नांम - ( ? ) । दिलेस - दिल्लीश, बादशाह । रखत्त - द्रव्य, धन । जुहार - Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [८५ सूरजप्रकास सझि तोप कोट सनाह, सुजि जोम भरियौ' साह । सुणि दुंद इम 'सयदाण', जगजीत पह' जोधांण ॥ १८४ सझि थाट चढ़िया सूर, रोसंग अंग गरूर । अकबर बहादर' आय, जुध कीध धोम जगाय ॥ १८५ दगि नाळ झाळ दुरंत, गढ़ घेरियौ गहतंत । उडि रीठ गोळां प्राग", लख अगन में झड़ लाग' ॥ १८६ जुध सुणे इम 'जैसाह',११, दळ पूर सज्जि' दुबाह । लड़ि करण नेक दिलेस, निज सीम' प्राय" नरेस ।। १८७ सुणि एह'५ कथ 'सयदाण', मिळ' ६ 'अजण' अमली'७ माण। चाढाय असि उर चोट'८, करि हाक भेळे'६ कोट ॥ १८८ गढ़ लीध करि गजगाह, सुजि गहे नेकहसाह । 'जैसाह' दिस' जमरांण, खळ चढ़े दळ खुरसांण ॥ १८६ १ ख. ग. भरीयौ। २ ख. पौ। ग. पौहौ। ३ ख. ग. चढ़ीया। ४ ख. प्रकवरा । ग. अकबरा। ५ ख. ग. वादह । ६ ग. घेरीयौ। ७ ख. ग. प्रागि। ८ ख. ग. अनि । ६ ख. ग. मै। १० ख. ग. लागि। ११ ग. जयसाह। १२ ख. ग. सझे । १३ ग. सीस। १४ ख. ग. प्रायो। १५ ग. ऐह। १६ ख. ग. मिलि । १७ ग. अवली। १८ ख. चोवट। १६ क. भेळे । २० ख. ग. ग्रहे। २१ ख. ग. दिसि । २२ ख. रांण । १८४. सनाह - कवच । सुजि - वह । जोम - जोश । सयदाण- दोनों सैयद भाई । जोधाण -- जोधपुर। १८५. थाट - सेना । रोसंग - रोषपूर्ण शरीर वाला। गरूर - गर्व । धोम - अग्नि, क्रोधाग्नि । १८६. नाळ -- तोप । झाळ - ज्वाला, पागकी लपट। दुरंत - भयंकर । गहतंत - गंभीर, वीर। रीठ - प्रहार या प्रहारकी ध्वनि । झड़-निरंतर होने वाली छोटी-छोटी बूंदोंकी वर्षा । १८७. जैसाह - सवाई राजा जयसिंह । दुबाह - वीर, योद्धा । नेक - हित, भलाई । १८८. प्रजण - महाराजा अजीतसिंह । अमली मांण - अपने ऐश्वर्यका उपभोग करने वाला। हाक - जोशपूर्ण आवाज । भेळे - जीत लिया, हरा दिया। १८९. गजगाह - युद्ध । जमरांण - यमराज । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८६ ] सूरजप्रकास चळ चळे चवदह चाळ, थट हुवा जिम जळ थाळ' । सुत विसन' बह' वधि सोच, इम लिखे खत अालोच ॥ १६० स्रीहत्थ लेखि सकज्ज', 'अजमालहूंत' अरज्ज । स्री महाराज सकाज, इळ वंस सूरिज' अाज ॥ १६१ मो मदत'' कीध हमेस, निज ग्रहे हाथ नरेस । बरियांम'' पालम वार', मो राज उतन मंझार ॥ १६२ यां हूंत होत'५ उथाप, 'अजमाल'५६ राखै १७ श्राप । बलि साह फररक बार, अरि हुता'८ सयद अपार ॥ १६३ सझि थाट कुरब सुथाळ, मो' राखियो' 'अजमाल' । वरियांम१ तीजी वार, अब नको अवर अधीर ।। १६४ कीजिये 3 फेर४ सकाज, 'अजमाल' ऊपर आज । उमराव५ मंत्रिय आणि, पह" दीध कागद पांणि ॥ १६५ १ ख. थाह । २ ग. बिसन । ३ ख. वहौ । ग. बहौ। ४ ग. सौच । ५ ग. पालौच । ६ ख. सकज । ग. सकज्झ। ७ ख. अरक । ग. अरज्झ। ८ ख. ग. माहाराज । ६ ग. सूरिझ। १० ख. ग. मदति । ११ ग. बरीयांम। १२ ग. बार, १३ ख. ग. मझार । १४ ख. ग. इळ । १५ ख. हुंता । ग. हुतां । १६ ख. ग. अगजीत । १७ ख. ग. राषे। १८ ख. हुंता। ग. हुंतां। १६ ख. मौ। २० ख. ग. राषीयौ । २१ ख. वरीयाम । ग. बरियांम। २२ ख. ग. अव। २३ ख. कोजीए। ग. कीजीऐ। २४ ख. वले । ग, बले। २५ ख. उवराव । ग. जबराव। २६ ख. ग. मंत्रीय । २७ ख. ग. पौहौ । १९०. चळचळे - चलायमान हुए, भयभीत हुए। चाळ - लोक । थट - सेना। पालोच - विचार कर । सुत विसन - विष्णुसिंहका पुत्र सवाई जयसिंह । १६१. इळ - पृथ्वी । वंस सूरिज - सूर्यवंश । १६३. साह फररक बार - बादशाह फर्रुखसियर । परि - शत्रु । सयद - दोनों सैयद भाई। १६४. सुथाळ - ठीक, अनुकूल । अवर - अन्य । अधार - प्राधार, सहारा। नको कोई नहीं। १९५. फेर - फिर । ऊपर - मदद, रक्षा । पह - राजा । पाणि - हाथ । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . सूरजप्रकास [८७ मुख' वचन बह' मनुहारि', कहि भांत भांत प्रकारि । मेल्हिया" 'जसै' महीप, आविया 'अजण' समीप ॥ १६६ मुख वचन कहि सामाज'', करि' दीध अरज सकाज । इम वांचि खत 'अजमाल', खितनाथ हुवौ खुस्याळ ॥ १६७ तै सुभड़ मंत्री तांम, विध' कीध हित वरियांम । बिहुं 'सैद' तांम बुलाय, इम कहै बुद्धि उपाय ॥ १६८ कथ अगै कीध करार, लोपां न हुकम लिगार । इक वात जिण'४ मझि आज, करि करौ आतुर काज ।। १६६ 'जैसाह हूंता जंग, प्रारंभ तजौ अभंग । मुनसप'५तजोस'६ प्रमाण, फिर देह लिखि फुरमांण ।। २०० तै लिखौ हित कथ तीख, सझि एम'८ वरसह सीख । इम लिखौ हेत'६ उपाय, जोधांण मो संग जाय ।। २०१ सुण वयण इम सयदाण, उर२ धिखे क्रोध उफांण । दिल मांहि लागौ दाह, 'अजमाल' कुरब अथाह ॥ २०२ १ ख. मुषि। २ ख. वहौ । ग. बहौ। ३ ख. ग. मनुहार । ४ ख. ग. कहै । ५ ख. ग. भांति भांति । ६ ख. ग. प्रकार। ७ ख. ग. मेल्हीया। ८ ख. ग. प्रावीया । ६ ख. कहे। ग. कहै । १० ख. ग. समाज । ११ ख. ग. कर। १२ ख. वचन । १३ ख. ग. वधि। १४ ग. जिणि । १५ ख. सप्प । ग. सुप्प। १६ ख. जितौ । ग. जीतौ। १७ ग. फिरि । १८ ख. ग. एक। १६ ख. हेठ । २० ख. ग. संगि । २१ ख. ग. सुणि। २२ ख. ग. उरि । १९६. प्रजण - महाराजा अजीतसिंह । १६७. खितनाथ = क्षितिनाथ - राजा । खुस्याळ - प्रसन्न, खुश। १९८. सुभड़ - सुभट, योद्धा। बिहुं सैद - दोनों सैयद भाई हुसेनअलीखां (अमीरुल उमरा) और अब्दुल्लाखां (कुतुबुल्मुल्क)। १६६. करार - वायदा, कौल । लिगार - किंचित, थोड़ा। २००. जंग - युद्ध। अभंग - वीर । २०२. घिखे - क्रोधाग्निसे प्रज्वलित हुए। उफांण - उबाल । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८] सूरजप्रकास सो लोप न सके सैद', कथ कीध पहलां' कैद । कथ कहे तजे' करूर, जो हुकम पह मनजूर ।। २०३ सजि दसकतां सुरतांण, महपती दिस' फुरमाण । दाखियौ'' जिम लिख दीध, कूरमां ऊपर कीध ॥ २०४ सो लीध पह'' 'जैसाह', प्रावियौ१२ सझे उछाह । जदि सीख किय जगजीत, जोधांण दिस अगजीत ।। २०५ सझि रीझ बह१५ सुरतांण, सझि निजर बह सयदाण । इम'६ मेलियौ अणपाल, मुरधरा दिस'८ 'अजमाल' ॥ २०६ _ महाराजा अजीतसिंहरौ दूजा राजावारे साथ जोधपुर प्रागमन 'जैसाह' मिळे'६ जियार, लख गौड़ हाडा लार । इंद्रसिंघ सोपुर२० ईस, सुजि लार नामत सीस ॥ २०७ रचि बुधौ बंदी१ राव, पहर लार बंदत पाव । सीसोद२४ हिक सुवियांण ५, 'राजसी' दादौ रांण । २०८ उण नाम भड़६ 'अखमाल', सुजि थाट लार सुथाळ । यां सहित 'विसन' सुजाव, रचि थाठ कूरम राव ।। २०६ १ ग. भेद । २ ख. पहिले। ग. पहिला। ३ ग. कहै। ४ ग. तजै। ५ ख. जो । ६ ख. ग. पौहो। ७ ख. ग. सझि। ८ ख. महपति । ग पहीपती। ६ ख. ग. दिसि । १० ख. ग. दाषीयौ। ११ ख. ग. पौहो। १२ ख. ग. आवीयौ। १३ ख. ग. कोय । १४ ख. ग. दिसि । १५ ख. वहौ । ग. बहो। १६ ख. ग. यम । १७ ख. ग. मेल्हीयौ। १८ ख. ग. दिप्ति । १६ ग. मिळि । २० ख. ग. पर। २१ ख. बूंदी। ग. बूदी । २२ ख. ग. पौहो। २३ ख. वंत। २४ ग. सीसौद। २५ ख. ग. सभियांण। २६ ख. भड । २७ ख. कुरम । ग. कूरम । २०३. सैद - सयद भाई। २०४. महपती - राजा। दिस - पोर । फुरमांण - फरमान, प्राज्ञापत्र । २०५. पह जैसाह - सवाई राजा जयसिंह । जदि - जब । अगजीत - महाराजा अजीतसिंह। २०६. मेलियौ- भेजा। अणपाल - वीर, योद्धा। दिस - तरफ। अजमाल - महाराजा अजीतसिंह। २०७. जियार - जब । २०८. बुधौ - बून्दीका राव राजा बुद्धसिंह। लार - पीछे। सीसोद - सीसोदिया वंशका राजपूत । हिक - एक । सुवियांण = सुभियांण - श्रेष्ठ। राजसी · रांण – महाराणा राजसिंह। २०६. अखमाल - ( ? )। थाट- सेना, दल । सुथाळ - श्रेष्ठ। विसन सुजाव - विष्णु सिंहका पुत्र । नोट - मिर्जा राजा जयसिंहके पौत्र और रामसिंहके पुत्रका नाम विसनसिंह था, वही सवाई जयसिंहके पिता थे। Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ८६ वड वडा गढ़ वरियांम', ताबीन' 'अजमल' ताम । आवियो अमलीमांण, जोधाण - पति जोधांण ॥ २१० हरखंत सहर उछाह, चक्रवरत दरसण चाह । गजगमणि मंगळ गाय, वर* कुंभ हरित वंदाय ॥ २११ छक विच पुर अवछाडि, पौसाक दुरंग पहाडि । जरतार जगमग जोति', अति भांण जांण उदोति ।। २१२ पौसाक तास अपार, स्रब'' नारि नर स्रंगार । भूखणस' नवनव भाव, जगमग्ग१५ कनक जड़ाव ॥२१३ पिणगार गज असि सोभ, लखि हुवै इँदर विलोभ । मिळ१६ मंत्रि' सूभड़ समाज,साजंत निज'६ रस साज-१॥२१४ बाजंत्र बजत3 बमेक, क्रत२५ राग रंग अनेक । नवछावरेस नरंद६, उछळंत द्रब" झड़ इंद ॥ २१५ १ ग. वरीयांम। २ ख. ग. तावीन । ३ ख. ग. प्रावीयौ। ४ ख. ग. चक्रवति । ५ ग. बरि । ६ ग. बदाय। ७ क. चित्र । ८ ख. ग. प्रवछाड़। ६ ख. ग. पहाड़। १० ग. जोत । ख. तथा ग. प्रतियों के अनुसार--- अति जांण भांग उदोत । ११ ख. अव । १२ ख. जारि। १३ ख. ग. सिणगार । १४ ख. भूषणजू । ग. भूषणसु । १५ ख. ग. जगमग। १६ ख, ग. मिलि । १७ ख. मंत्री। ग. मंत्रीय। १८ स्व. ग. साझेन। १६ ख. ग. नज। २० ख. ग. रिस। २१ ख. ग. काज । २२ ख. वाजिन। ग. बाजित्र। २३ ख. ग. वजत। २४ ख. ग. वमेक । २५ ख, ग. कृत। २६ ख. ग. नरयंद। २७ ख. द्रव । २१०. ताबीन - प्राज्ञाकारी, हुक्म मानने वाले ताबईन । जोधाण -- जोधपुर । २११. हरखंत - हर्षित होता है । चक्रवरत - चक्रवर्ती राजा। चाह - इच्छा । मंगळ - मांगलिक गायन । वर""वंदाय - घट के ऊपर हरी दूबें रख कर सौभाग्यवती स्त्रियाँ सामने प्राती हैं; इस मांगलिक रस्म को 'हरी वंदाना' कहते हैं। २१२. छक - वैभव, ऐश्वर्य । पहाड़ि-पहिन कर । २१३. कनक जड़ाव - स्वर्ण-जटित । २१४. सिंणगार - शृंगार । सोभ - शोभा, दीप्ति । विलोभ - मोहिन । २१५. बाजंत्र - वाद्य । नवछावरेस - न्यौछावर । नरंद - नरेन्द्र, राजा। Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६० ] - सूरजप्रकास *सिर' चमर होत सकाज, कहि वद्द बह' कविराज । बंदि' तोरणां जिम इंद', आवियौ' गढ़ नरइंद* ॥ २१६ पतिव्रता नेह अपार, सझि सोळ सरस सिंगार। बह कळा लछण' बतीस, सझि'' आभरण खटतीस ॥ २१५ अति रूप क्रांति उजास, प्रप्फुल्ल'२ वदन' प्रकास । आवियो" पह' उण वार', मिंदरां'" राज मंझार ॥ २१८ गायणी नत्त'८ संगीत, रंग करत उरवस'६ रीत । करि हावभाव अनेक, कट्टाच्छ' मनमथ केक ॥ २१६ वाजंत्र'' वजत२२ विसाळ, रस रागरंग रसाळ । मिळ मूळ सुकिया बांम, क्रत२५ रूप रति जिम काम ।। २२० 'अजमाल' भूप अवास ६, वणि इंद्र जेम विलास । तिण वार निसा वितीत, आवियो" गौख 'अजीत' ॥ २२१ तदि हवा८ हाजर ताम, वड वडा स्रब वरियांम । तळि६ गौख ऊभा तांम, साझंत सुपह सलाम ।। २२२ १ ख. सिरि। २ ख. विरद। ३ ख. वहौ। __*यह पंक्ति ग. प्रतिमें नहीं है। ४ ख. वंदि। ५ स्व. व्यंद। ६ ख. प्रावीयो। ७ ग. परिवता। ८ ख. ग. शृगार। ६ ख. वहौ । ग. बहौ। १० ग. लछिण । ११ ग. सझ। १२ ख. प्रफुलंत । ग. प्रफुलित। १३ ग. बदन। ४ ख. ग प्रावीयौ। १५ ख. ग. पौहो। १६ ग. उणबार। १७ ख. म. मंदिरां। १८ ख. ग. नृत्य । १६ ग. उरवसि। २० ख. काटाछ । ग. काटाछि। २१ ख. वाजिन । ग. वाभित्र । २२ ख. ग. वनति । २३ ख. ग मिलि। २४ ख. ग. स्वकीया। २५ ख. ग. कृत्त। २६ ग. प्रवास। २७ ख. ग. प्रावीयौ । २८ ख. हूपा । ग. हूवा। २६ ख. तयि । ग. लपि । । २१६. वद्द - विरुद । नरइंद - नरेन्द्र, राजा। २१७. सिंगार - शृंगार । प्राभरण - प्राभूषण । २१८. उजास - प्रकाश, दीप्ति । प्रप्फुल्ल - हर्षित, प्रफुल्लित । वदन - मुख । मिदरां राम - राजभवन । मंझार - में, मध्य । २१९. गायणी- वेश्या, नृत्यकी। उरवसी- उर्वशी नामक अप्सरा। कट्टाच्छ – कटाक्ष । मनमथ - कामदेव । केक-कई। २२०. वाजंत्र - वाद्य । भूळ - समूह । सुकिया- स्वकीया, पतिव्रता । बाम - स्त्री। रति - कामदेवकी स्त्री। २२१. निसा - रात्रि । वितीत - व्यतीत । गौख - गवाक्ष, झरोखा । २२२. वरियांम - श्रेष्ठ । तळि – नीचे । सुपह - वीर, योद्धा । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [६१ तवि' निजर दौलति ताम, निज कहै वळ जस नाम । हुय' निजर दौलति' हाम, संग्रांम करै सलाम ।। २२३ पह सरण सेवत पाव, औ रामपुर रौ राव । है निजर स्रीमहाराज, दूसरौ राव दराज ॥ २२४ औ बुधौ बूंदी ईस', सो नमत कदांमां'' सीस । सिंघ' महाबळी सकाज', महि निजर' द्वै महाराज ॥ २२५ नप'५ गौड़ निज ताबीन, तसलीम साजत'६ तीन । गढ़ एण' सौपुर'८ गांम, इंद्रसिंघ'६ इणारौ नाम ॥ २२६ नरिइंद नजर नगाह. सुत चित्रगढ़ पतिसाह । सुत जियां' दोइ सुथाळ, मिळ' मालफत प्रखमाल* ॥ २२७ सीसोद करत सलाम, ऊमेद४ मुलक इनाम । सजि निगह निजर सताब, नमि करत कुनस५ निबाब ६ ।। २२८ १ ग. रवि । __ *ख. और ग. में- निज कहै जस बलनांम । २ ख. ग. होय । ३ ग. नजर । ४ ख. ग. दौलत। ५ ख. ग. पहो। ६ ग. नजर । ७ ख. माहाराज। ८ ग. बुंदी। ९ ख. इस। १० ख. ग. कदमां। ११ ख. सिंह । १२ ग. सक्काज । १३ ख. ग. नजर । १४ ख. माहाराज । १५ ख. ग. नप । १६ ख. ग. साझत। १७ ग. ऐण। १८ ख. ग. सोपर। १६ ख. इंदसिंघ । २० ख. ग. नांध। २१ स्व. ग. जीयां । २२ ख. ग. दोय। २३ प. मिलि । ख. और ग. प्रतियोंके अनुसार इस पंक्तिमें- मिलि माल अखफत माल । २४ ख. ग. उमेद । २५ ख. क्रनस । ग. कुनस। २६ ख. ग. नबाब । २२३. तवि - कह कर । निजर दौलति - नकीब द्वारा राजा-महाराजाके अगाड़ी उच्चारण किये जाने वाले शब्द जिसका अर्थ यह होता है कि जिस पर आप कृपा-कटाक्ष डालते हैं वह दौलतमन्द हो जाता है । हाम- इच्छा। २२४. पह सरण - शरण में आए हुए राजा। दराज- महान । २२५. बुधौ - बून्दीका राव गजा बुधसिंह । महि निजर-नीची निगाह । २२६. ताबीन-पाधीन, मातहत, आज्ञाकारी । तसलीम "तीन - तीन बार सलाम करता है। २२७ चित्रगढ़-चित्तौड़गढ़ । मालफत - फतहमल या फतहसिंह सीसोदिया जो राणा राजसिंहका पुत्र था। प्रखमाल - अखेसिंह सीसोदिया। २२८. सीसोद - सीसोदिया वंशका राजपूत । कुनस = कुर्नुश; कोरनिस - अभिवादन । गर्दन झुका कर तीन कदम पीछे हटना और प्रत्येक कदम पर हाथ से सलाम करना कोरनिस करना कहलाता है। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६२ ] सूरजप्रकास तूरांण मुलक तवंद', रोहिलाखांन रवंद' । पह' करत वंदण पाव, इम' साहका उमराव ॥ २२६ सझि सज्झि तीन सलाम, अति खमे सिर इतमाम । जुड़ि खड़ा बिहुँ कर जोड़, मदमसत गज घड़ मोड़ ।। २३० दुहुं राह दिस' कुळ दीत, इक नजर' कीध 'अजीत' । तप इसौ झळहळ तौर, 'अजमाल' जोड़ न और ।। २३१ छक वंस पूर छतीस, स्रब'' पाइ नांमै १५ सीस'३ । 'अजमाल' भूप अरोड़, जयचंद भूपति जोड़ ॥ २३२ कवित्त-ऐरापति आरिखां, पबै घण गाज पटाझर । ऊंच'४ स्रवा आरिखां, तुरंग घण वर सालोतर । राजलोक नूप मिंदर'६, सकौ पतिव्रत दिढ़ सुंदर । देस कोस अदुतीय, घणा द्रब ८ उछब' घरोघर । पाटवी कुंवर दिनकर प्रभा, वसिस्ठ १ प्रोहितराज वर । सासत्र में म्रजाद मंत्री सदिढ़, धरपति 'अजमल'छत्रधर२४ ।। २३३ १ ख. ग. तबद्द । २ ख. रवद्द । ग. रवद। ३ ख. ग. पहौ। ४ ग. बंदण। ५ ख. ग. इह। *यहाँ पर ख. और ग. प्रतियोंमें- सझि तीन तीन सलाम । ६ ख. ग. विहं। ७ ग. करि। ८ स्व. ग. अघमोड़। ६ ख. ग. दिसि । १० ख. नीजर । ग. निजर। ख. और ग. प्रतियोंमें- छक पूर बंरा छतीस । ११ ख. पाय । १२ ख. ग. नाम । १३ ख. ग. तसीस । १४ ख. ग. उची। १५ ख. ग नप। १६ ख. ग. मंदिर । १७ ख. ग, सको। १८ ग. द्रव्य । १६ ग. उत्छव । २० ग. कवर। २१ ख. ग. वसिष्ठ। २२ ग. सास्त्र । २३ ग. मजाद । २४ ग. छत्रपरि। २२६. तवंद - कहते हैं। रवंद - यवन, मुसलमान । २३०. इतमाम - समाप्ति, पूर्ति, इत्माम । मदमसत - मदोन्मत्त । गज घड़ मोड़- हाथियोंके दलको पीछे हटाने वाले । २३१. कुळ दोत- कुल आदित्य, सूर्यवंश । जोड़ - बराबर । २३३. पटाझर - हाथी । ऊंच स्रथा - उच्चैःश्रवा नामक इन्द्रका श्वेत रंगका घोड़ा। प्रारिखां समान । तुरंग - घोड़ा। घर - श्रेष्ठ । सालोतर - शालिहोत्र। राजलोक - राजाकी पट्टराणिएं। सकौ - सब । दिढ़ - दृढ़, अटल। कोस - खजाना, कोष । अदुतीय - अद्वितीय । घरोघर - प्रत्येक घरमें। पाटवी कुंवर-जेष्ठ कुमार । दिनकर - सूर्य । सासत्र सदिड़ - शास्त्र-मर्यादा में सुदृढ़ । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ६३ दूहौ'- अस्ट अंग राजस अडिग, जीव मंत्रि' दिढ़ जांणि । जो केही नप' 'प्रजण'रै, बड कवि तिकौ वखांणि ।। २३४ कवित्त-संद मुगळ साजता', अमी 'महमंद' वंचाए । रांण मंत्री करि अरज, दरस वड प्राग कराए। अंब नयर उथपतां, थाट 'जैसाह' थपाए । देह सतोतफा दिली, जेण जेजियौ११ छुडाए । 'अजण'१३रै मंत्रि' पतिसाह अग्र, सझि' हिंदू ध्रम सीमसी । ईसांन कियौ' धू जिम अडिग, खलक तणे सिर खीमसी ।। २३५ जयचंद जेम'८ 'अजीत', मसत उच्छब'धर मांणे । इंद्र जेम अोपियो', 'जोध' दूजौ १ जोधांणे । दिली तखत दइवांण ने, हेल मांही करि२४ हिम्मति । ॐथलपथल अनेक, पांन जिम किया५ असप्पति ६ । 'जसराज' सुतण ग्रहराज जिम, विखम राज२७ जग सिर वहै । तिण वार महाराजा८ तण, राव राजा सरण रहै २६ ॥ २३६ १ ग. दुहा । २ ख. ग. मंत्री। ३ ख. ग. नृप। ४ ग. तकौ। ५ ख. ग. साझतां । ६ ग. बंचाऐ। ७ ग. कर। ८ ग. कराऐ। ६ ख. नंपर । ग. नैयर। १० ग. थपाए। ११ ख. ग. जेजीयो । १२ ग. छुडाऐ। १३ ग. अजसाल । १४ ख. ग. मंत्री। १५ ग. साझि। १६ ख. ग. हींदू। १७ ख. ग. कोयो। १८ ख. एम । १६ ख. उछव । ग. उत्छव। २० ख. ग. अोपीयो। २१ ख. दुर्ज। २२ ख. देवाण । ग. दईवांण। २३ ख. महि । ग. माहे। २४ ख. कर। २५ ख. ग. कीया। २६ ख. असपति । २७ ख. ग. राह। २८ ख. ग. माहाराजा। २६ ख. रह । २३४. अजण – महाराजा.अजीतसिंह । २३५. सैद – सयद भाई। साजतां - मारने पर। अंब नयर - अांबेर नगर। उथपता उन्मूलन करने पर, हटाने पर, उलटने पर । जेजियो - जजिया नामक कर । खीमसीभंडारी शाखाका खीमसी नामक प्रोसवाल जो महाराजा अजीतसिंहका पूर्ण कृपापात्र था। सतीतफा -स्तीफा, त्यागपत्र; महाराजा अजीतसिंहजी ने जजिया माफ कराने के लिए दिल्ली से सम्बन्ध-विच्छेद करने तक का निश्चय किया था। २३६. मांणे - उपभोग किया । प्रोपियो - शोभायमान हुप्रा । जोध - राव जोधा । दूजो-दूसरा । दइवाण- स्वामी, दीवान । हेल - क्रीड़ा, खेल। ऊथलपथल'.. प्रसप्पति -- जिस तरह पान को उलटपुलट करते हैं उसी तरह इच्छानुसार एक के बाद एक दिल्ली के बादशाहोंको बदला। जसराम सुतण- यशवंतसिंहका पुत्र । प्रहराज- सूर्य । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६४ ] सूरजप्रकास समें' जेण' हसनली, चूक करि हणे चकत्था । 'अजौ" क्रोध ऊफणे, कमध सांभळ इम' कत्था । वळे हुई' तिण वार, महीपति'' हूं कथ मालिम । जुध करि ग्रहियो जवन, खांन अबदुल खूदालिम"। तदि 'अजे' भेजि दळ हणि तुरक, विखम लियौ' झळहळ वखत । आगरा दिली हूंता अधिक, तारागढ़ दूजौ' तखत ॥ २३७ दळ सझि 'अजौ' दुझाल, 'अजौ' तारागढ़ पायौ । ऊथापे असुरांण, विमळ हिंदुवांण वणायौ । पीर जठे पूजता, पवित्र सुर' जठै पुजाया। तंबा कटती तठे'६, जिग्ग बह होम जगाया । तवता कुरांण काजी तरी, वहम पुरांण वचाविया । आसुरां धरम मेटे 'अजे', सुरां धरम दरसाविया ॥ २३८ १ ख. ग. समै । २ ग. जण। ३ ख. ग. चग्गया। ४ ग. अजो। ५ ख. ऊफणे। ६ ख. कमंध। ७ ख. ग. सांभळि । ५ ग. इक । १ ख. ग. कथां । १० ग. हुई। ११ ख. महिपति । १२ ग. जुधि । १३ ख. ग. ग्रहीयो । १४ ख. पुँदालिम । १५ ख. ग. लीयो। १६ ख. ग. तीजो। १७ ग. सूर। १८ ग. पूजाया। १६ ख. तवं। ख. प्रतिमें-जिठ जग होम जगाया। ग. प्रतिमें-जठ जिग होम जगाया। २० ग. हुवता । २१ ख. ग. वचावीया । २३७. हसनली = सैयद हुसेनअली- मुहम्मद बादशाहने इसे धोखेसे मीर हैदर खां काशगरीके द्वारा मरवा डाला। चूक - धोखा, छल । चकत्यां - चगताई वंशके मुगल । अजोमहाराजा अजीतसिंह । कमष - राठौड़। सांभळ - सुन कर । कत्यां - वृत्तान्त । खांन प्रबदुल - सैयद अब्दुल्लाखां जिसको सैयद हुसेनअलीके मारे जाने के बाद मुहम्मद शाहने सुल्तान इब्राहीमके साथ ही कैद कर लिया। खूदालिम – बादशाह । अर्ज - महाराजा अजीतसिंह। २३८. वुझाल - वीर, योद्धा । असुरांण – बादशाह । विमळ - पवित्र, उज्ज्वल । हिंदवाण - हिन्दुस्तान या हिन्दू धर्म । पीर - मुसलमानोंके धर्म गुरु, मुर्शिद । सुर - देवता। तंबा - गाय । तवता - पढ़ते, स्तवन करते थे। प्रासुरां - असुरों, मुसलमानों । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [६५ संभरि' लीध तिण समै, लूटि डिडवांणी' लीधौ । करि दफतर तिर कलम, कमंध आरंभ कीधौ । आप' प्राय अजमेर, मिळे दळ सबळ महाबळ । कागद भेजे सकळ, आय मिळळे दळ सब्बळ* । धर-थंभ रखै खग पांण धर, धर साहां ल्टै धखां । उण वार करै राजा 'अजौ', लखां खरच प्रोपत लखां ॥ २३६ समद पूर दळ सबळ, हुवा देखे झाळाहळ । 'अजौ' दिली ऊपरां, विखम तोले'. वीजूजळ । तखत बैठि धर छत्र, कमंध इम चमर करावै । जिको करै अजमेर, आपनूं जिको सुहावै । गजमिका'' तराजू अदल'२ गहि, तोग मही-मुरतब, तुरंग । पतिसाह हुवौ 'अजमाल' पह, दिली जेम तारादुरंग ।। २४० तखत रवा तइयार रहै, नाळकियां'५ हाजरि। बहसि' गुरज बरदार, करै अतमांम'८ भयंकरि । १ ग. सांभरि। २ ख. डीडवांणौ। ३ ख. ग. तर । ४ ग. प्राय। ५ ग. मेर। *यह पंक्ति ख. और ग. प्रतियों में नहीं है। यहां पर ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्ति है दरब झलल पही दिय, बढ़े दाद नीबळो बळ। ६ ग. उणबार । ७ ख. प्रोषत। ८ ख. देष । १ ख. अजी। ग. अज। १० ख. ग. तोले। ११ ख. ग. गजसिका। १२ ख. ग. प्रदलि। १३ ख. ग. पोहो। १४ ख. ग. सईयार। १५ ख. ग. नाळकीयां । १६ ख. ग. हाजर। १७ ख. ग. वहसि । १८ ख. ग. प्रतिमांम। २३९. संभरि - सांभर नगर । तिर -( ? ) । कलम - मुसलमान । धर थंभ - भूमिका रक्षक या सहारा, राजा। साहां - बादशाहों । धखां - ( ? ) । प्रजी- महा राजा अजीतसिंह। प्रोपत - प्राय, प्रामदनी। ४०. विखम - विषम, भयंकर । तोले- प्रहार हेतु शस्त्र उठाता है। बीजूजळ - तलवार । जिको-जो, वह । गजमिका-(?) । अदल-न्याय, इन्साफ । तोग-देखो पृ. २२, भाग २ की टिप्पणी। मही मुरतब - मुसलमान बादशाहोंके तथा मुगलकालीन राजाओंके आगे हाथी पर चलने वाले सात झंडे जिन पर मछली और ग्रहों आदिकी प्राकृतियाँ होती हैं, माहीमरातिब । तुरंग - घोड़ा। तारादुरंग-अजमेरके पासका तारागढ़ । २४१. रवा - रौनक, शोभा, रवाई । बहसि - जोशमें, उत्साहमें। गुरज बरदार-गदा नामक शस्त्र उठा कर राजा या बादशाहके प्रागे चलने वाला, गुर्जबरदार। तमाम - एहतमाम । Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास रावराजा'र अमीर, करै सेवा जोड़े कर । अमल कीध धर इती, सरां तीरां सर संभर' । उचरेस मंडै वाका अखर', केवी भाजै जिम कुरंग । पतिसाह हुवौ' 'अजमाल' पह, दिली जेम तारा दुरंग ॥ २४१ खत्रियां गुर अंबखास, अनै पह' सझै अदालत । भुगतै सुख बह भोग, सुपह नित सायत' सायत' । रमण रमण सिकार, सझै दळ पूर सकाजा । नौबति वाजा निहंसि'२, रजां ढांक ग्रहराजा। दळ उझळ' हुवै दसही दिसा, अलल खुरां धूजै उरंग । पतिसाह हुवौ 'अजमाल' पह१४, दिली जेम तारा दुरंग ।। २४२ पह' दाखल ६ पौसाक, अनै जवहर धर पाए। एम'८ खबर' अनि पहां, ज्वाब पल पल मझि जाए। आमदांनी ३ इक दोय, अन तीसरी अवाई। दिली तणा दसतूर, सरा तोरा पतिसाई । गजसिंघ हरौ भारी गुमर, सरब करै असपक सुरंग । पतिसाह हुवौ५५ 'अजमाल' पह६, दिली जेम तारा दुरंग ॥ २४३ . १ ख. ग. संभ्भर । २ ख. ग. अषिर। ३ ग. हुवो। ४ ख. ग. पोहो। ५ ख. ग. षत्रीयां। ६ ख. पोहो । ग. पौहौ। ७ ख. ग. अदालति । ८ ख. ग. बहौ । ६ ख. सुपहो। १० ख. पायत । ११ ख. ग. सायति । १२ ख. ग. निहसि । १३ ग. ऊझळ । १४ ख. ग, पौहौ। १५ ख. ग. पौहौ। १६ ख. दाषिल। ग दापलि । १७ ख. प्राऐ। १८ ग. ऐम । १६ ग. षबरि । २० ख. पलि पलि । २१ ख. जाऐ। २२ ख ग. प्रामंदनी। २३ ख. दोइ । ग. दोई। २४ ख. पतिसाही। २५ ग. हुवो। २६ ख. ग. पौहो। २४१. केवी - ३ त्रु । कुरंग - हरिण। अजमाल - महाराजा अजीतसिंह । २४२. अंबखास - प्राम-खास । सुपह - राजा। सायत - क्षण । रमणे - शिकार खेलने के मैदान में। रमण-शिकार खेलनेको। नौवति - वाद्य विशेष । निहंसि - बज कर, ध्वनि कर । रजां-धूलि करणों। ढांक - प्राच्छादित करता है । ग्रह राजा - सूर्य । प्रलल - घोड़ा। उरंग - शेषनाग । अजमाल - महाराजा अजीतसिंह। २४३. ज्वाब - जवाब, उत्तर। अवाई - पानेकी खबर (?) । हरौ - वंशज, पौत्र । भारी- बहुत । गुमर - गर्व । असपक सुरंग- असपक शफकतका बहुवचन है जिसका प्रर्थ अपनी अनुकम्पा या महरवानीसे सबको पूर्ण हर्षयुक्त करना है। Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [६७ बावसाहरौ मुदफरखान ने महाराजा अजीतसिंह पर अजमेर छोडाण सारू दळबळ सहित भेजणौ मंगळ क्रोध हमंद, साह प्रजळे' दळ सब्बळ' । खेधक मुदफरखांन, मुगळ तेडियौ महाबळ' । तोरा फील तुरंग, बगसि प्रारबा खजांनां । तीस सहस' ताबीन , असुर दळ दीध अमांना । मुरतबौ हजारी हफत महि, पांन ग्रहंतां'' पावियो । इम विदा होय मुदफरअली', 'अजण' भूप दिसावियौ' ।। २४४ महाराजा अजीतसिंहजीरौ महाराजकुमार अभयसिहजीनं मुदफरसू __ मुकाबलौ करण सारू तैयार कर सांमां भेजणौ। एम' सुणे 'अजमाल', आप ऊपरि दळ१८ आया । दुझल' सझै दरबार'', वडा भड़२२ मंत्र बुलाया। तेज - पुंज तेड़ियो, कुंवर झळहळ क्रांमत्ती । ऊससतौ प्रावियौ ६, उरस छिबतौर अभपत्ती । 'अजमल' जुहार ६ बैठौ 'अभौ', सनमुख' तेज समीपियौ । रघुनाथ जांणि रवि वंस रवि, दसरथि अागळ दीपियौ ४ ।। २४५ १ ग. प्रजुळे। २ ग. सबळ । ३ ख ग. तेड़ीयो । ४ ग. महाब्बळ । ५ ख. ग. वगसि। ६ ख. ग. सहस। ७ ख ग. तावीन । ८ ख. लोध । ग. दीध। १ ख. अमानां । ग. अमांमां ५० ख. मुरतवौ। ११ ख. ग्रहंत।। १२ ख. ग. पावीयो। १३ ग होइ। १४ ग. मदफरली। १५ ख. दिसि । १६ ख. ग. प्रावीयौ। १७ ग ऐम । १८ ख. दल। १६ ग दुझले। २० ग. समे। २१ ख. दरवार। २२ ख. भड। २३ ख. ग. मंत्री। २४ ख. ग. तेडीयौ। २५ ख. ग. क्रांमती। २६ ख. श्रावीयो। ग. प्रावयौ। २७ ख. बवतो। ग. छबतौ। २८ ख अभपती। २६ ख. ग. जुहारि । ३० ख. बैठो। ३१ ख ग. सनमुष । ३२ ख. समोपीयो। ग. समपीयौ। ३३ ग. रुघुबंस । ३४ ग. दीपीयौ। २४४. मंगळ - अग्नि, आग । प्रजळ - प्रज्वलित हुई। सब्बळ - शक्तिशाली, जबरदस्त । तेड़ियौ - बुलाया। ताबीन - प्राज्ञाकारी लोग, ताबईन । मुरतबी - पद, ओहदा । अजणभूप-महाराजा अजीतसिंह । २४५. मंत्र - मन्त्री। तेज-पुंज - तेजस्वी । झळहळ - देदीप्यमान । क्रामती- कांति, दीप्ति । ऊससतौ - जोशपूर्ण होता हुआ । उरस - पासमान । छिबतौ- स्पर्श करता हुआ। अभपत्ती-महाराजकुमार अभयसिंह। अजमल-महाराजा अजीतसिंह । जुहार - अभिवादन, अभिवादन कर के। अभौ-महाराजकुमार अभयसिंह । जांणि - मानों। रवि वंस रवि- सूर्यवंशका सूर्य । आगळ- अगाड़ी। दीपियोशोभित हुआ। Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६८ ] सूरजप्रकास उण मौसर 'अगजीत', तई भुज गयण सु तोले' । कर' मूंछां धरि कमध , बहस तोले खग बोले । सुज दळ' महमंदसाह', असुर मुदफर खड़ि पाए । जियां' हूंत जुध करूं, चुरस सांमुहा' चलाए । सुणि कहै सुभड़१५ मंत्री सकळ, लड़ण'६ वडो मौसर लभौ । सुण' एम'६ वयण 'अगजीत' सुत, अजरायल बोले ० 'अभौ' ।। २४६ रही अठै महाराज, आप आणंद उपाए । बीडो २ मो बगसिजे, जडूं ४ मुदफर हूं२५ जाए । जुड़े त मारूं जवन८, भांति ६ बळ " काय भजाऊ । करि झट खंड कराळ', चाक खंड खंड चढ़ाऊं । पुर नारनौळ साहिजांपुरां, दळि५ लूटुं६ दसदेसनूं । अजमेर सोच दियूं३७ उवर, दिल्ली सोच दिलेसनूं ॥ २४७ १ ख. तोले। २ ख. करि। ३ ख ग. मूछां। ४ ख. ग. कमंध। ५ ग. बहसि । ६ ख. ग. तोले। ७ ग. बोले। ८ ख. ग. सुजि। १ ख. दल। १० ख. ग. महमदसाह । ११ ग. प्राऐ। १२ ख. जीयां । ग. जीया। १३ ग, सामुंहा । १४ ग. चलाऐ। १५ ख. सुभड। १६ ख. लडण। १७ ग. मोसर । १८ ख. झण। १६ ग. ऐम। २० ख. बोले। २१ ख. ऊपाए । ग. उपाऐ। २२ ख. वीडा। ग. घोड़ा। २३ ख. वरगसिजे । ग. वसिज । २४ ख. जुडं । ग. जुङ्क। २५ ग. हत। २६ ग. जाऐ। २७ ग. गुड़े। २८ ख. जव। २६ ख. ग. भांजि। ३० ख. वल। ३१ ख. कराल । ३२ ख. ग. खट। ३३ ग. चडाटांऊ। ३४ ग. साहिजापुर। ३५ ख. दलि। ३६ ग. लूटू । ३७ ख. ग. जिमछू। ३८ व. ग. उवरि । २४६. मौसर - अवसर, मौका। अगजीत - महाराजा अजीतसिंह। तई - ( ? ) । गयण - प्राकाश । बहस - जोशमें पा कर। महमवसाह - बादशाह मुहम्मदशाह । असुर - मुसलमान । मुवफर - मुजफ्फरअलीखां । चुरस - ठीक (?) । सांमुहासम्मुख, सामने । बडो - बड़ा। लभौ- प्राप्त हुआ, मिला। अजरायल - जबर. दस्त, शक्तिशाली। अभौ - महाराजकुमार अभयसिंह । २४७. जडूं - पकड़ लू, बंधन में डाल दूं। दिलेस - बादशाहको। Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ६६ महाराजकुमार जोसमें करणी सुत स्याबासे' सुपह, पांन दीधा निज पांणे । कम धरि कसे कटार, 'अजै' बह छक* चित प्रांणे । साथ दिया तिण समै, उभै मिसला उमरावो । मंत्री रुघपति मौहरि, सूर ध्रम'' अचळ सभावां१२ । कथ कहै 'अभौ' मदफर किस्यूं, चढ़े धकै जुध' चाहनूं । जो करै'८ पाय पतिसाह जुध, पकङ१६ तौ पतिसाहनूं ॥ २४८ तइ२० साज साजि तुरग १, प्रांणि पंडवां अधारे । मेघाडंबर२२ मदफरं, सझै माहुतां५ सिंगार। साथ तुरां सझि साथ २७, पहर समहर पौसाकां । साबळ पकड़े सूर, चढ़े दारण त्रुप चाकां । हल्ले बहि झिल्ले हमस', जळध उझल्ळे करि जुवा । दरगाह 'अजण' विमरीर दळ, हुय तयार हाजर हुवा ॥ २४६ १ ख. सावा। ग. सावा । २ ख. पांण । ३ ख. पांणे। ४ ख. ग. करि। ५ ख मरि। ६ ख. रहौ। ७ ख. बक। ८ ख. आणे। ख. ग. दीया। १० ख. मोहोरि । ग. महौरि। ११ ग. धरम। १२ ख. सुभावां । ग. सुभावा । १३ ख. ग. मुदफर। १४ ख. किसू ग. किसू । १५ ख. ग. चढ़। १६ ग. जध। १७ ख. ग. जौ। १६ ख. करि। १६ ख. पकडू। २० ख. तई। २१ ख. ग. तुरां । २२ ख. मेघमंदर । ग. मेघमंबर। २३ ख. मदफरां । ग. मदफरा। २४ ख. ग. सझे। २५ ख. ग. माऊतां। २६ ग. सिधारे। २७ ग. साज। २८ ख. ग. पहरि। २६ ख. सावल। ३० ख. वहीर । ग. बहीर । ३१ ख. ग. हसम । ३२ ख. विमलोर। ३३ ग. हाजरि। २४८. स्याबासे - शाबास कहा, धन्य-धन्य कह कर । सुपह - राजा । पांणे - हाथसे । अजै - महाराज अजीतसिंह। छक - जोश । रुघपति - भंडारी रघुनाथसिंह । मोहरि - अगाड़ी। अभी - महाराजकुमार अभयसिंह । मदफर - मुजफ्फरपली। किस्यू - क्या। २४६. साज'''तुरंग - घोड़े पर चारजामा कस कर । मेघाडंबर - छत्र विशेष। समहर - युद्ध । साबळ - माला विशेष । जळध - जलधि, समुद्र । उझल्ळे- उमड़े। अजण - .. महाराजा अजीतसिंह । विमरीर - जबरदस्त । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०० ] सूरजप्रकास महाराजकुमार अभयसिंहजीरी तैयारीरौ वरणण सझि 'अजणहूं' सलाम, ताम' मल्हपे 'अभपत्ती' । उरस भुजां तोलियौ, करे जप महा सकती। खुटहड़ गज जिम विखम, भरे' पौरस भाळाहळ । पय रकेब धरि पमंग', हरख चढ़ियौ' झाळाहळ । हुय तबल बंब दळ११ सझि हले, दुगम गरद उडि नभ दिसौ। उण वार रूप 'अभमाल' रौ, जोम देह धरियां जिसौ ॥ २५० छंद हणूंफाळ इम चढ़े कंवर अभंग, जगजीत करण' जंग । सजि४ साथ दळ बह' साज'६, रुघनाथ मंत्री राज ।। २५१ वड वडा भड़ विकराळ, कमधज्ज चढ़ि कळ चाळ'८ । धर धूजि अस'६ नग धोम, वणि गरद धुंधळि वोम ।। २५२ भिळेतिमर ढंकियौ ३ भांण, नद घोर घण नीसांण । हबि कमळ२४ सेस हजार, पड़ि कोम सीस५ अपार ।। २५३ १ ग. ताम। २ ख. ग. जिमवीख। ३ ख. ग. भरै। ४ ख. ग. रकेव। ५ ख. पमंगे। ग. पमंगि। ६ ख. ग. हरखि । ७ ख. चठीयो। ८ ख. ग. होय। ६ ख. तवल। १० ख. बंव । ११ ख. दल । १२ ख. ग. धरीयां। १३ ग. कारणि । १४ ख. ग. सझि। १५ ख. वहौ । ग. बहौ। १६ ग. साझ। १७ ख. ग. मंत्रीय । १८ ख. ग. कलिचाल । १६ ख. ग असि। २० ख. धुंधल । ग. धंधळ। २१ ख. ग. भिलि । २२ ख. ढकीयो । ग. ढंकीयौ। २३ ख ग. हुवि। २४ ख. कमल । २५ ख. पीठ । ग. पीव । २५० अजणहूं - महाराजा अजीतसिंह । मल्हपे - छलांग भरी, कूदे। अभपत्ती- महाराज कुमार अभयसिंह। खुटहड़ - वीर। पौरस भाळाहळ - पुरुषार्थसे लगलब भरा हुमा (?) । पय-पैर। रकेव - रकाब । पमंग - घोड़ा । झाळाहळ - जोशपूर्ण (?)। तबल - बड़ा ढोल । बंब - नगाड़ा । दुगम - दुर्गम । गरद-धूलि । नभ - अाकाश । दिसौ- पोर । अभमाल - महाराजकुमार अभयसिंह । जोम - जोश । जिसौ - जैसा । २५२. विकराळ -- भयंकर, जबरदस्त । कळचाळ - युद्ध । अस - घोड़ा। नग -पर। वणि 'वोम - आकाश धूलिसे आच्छादित हो गया। २५३. तिमर - अन्धेरा। दंकियो-पाच्छ दित कर दिया। भाण - सूर्य। नद - नाद, ध्वनि । नीसांण- वाद्य विशेष । कमळ - शिर । सेस - शेषनाग। कोम - कच्छपावतार । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १०१ भरि' कोम कसकत भार, ढ़ह' जात भार अढ़ार । वढ़ि विखम पाहड़ वाट, घण हुवै अवघट' घाट ॥२५४ धर सिखर थरहर धांम, तुटि नदी सर जळ तांम । असपती घर औद्राक', चक च्यार चढ़िया चाक ।। २५५ ऊडंत खग असमांण, पड़ि गरद छूटत पांण । परइंद नाग अपार, घण धोम वोम'' संघार ।। २५६ अामुज्झि'' म्रग' अकुळाइ, पड़ि जाय धर म्रत" पाइ । गजगाज'५ हींस तुरंग, दहलंत साह दुरंग ॥ २५७ बंब' गजर तूर वहाक', कळळ हूंकळ हाक । तपवंत खूटत'' ताळ, वणि जांणि निस वरसाळ ॥ २५८ हुय ४ धांम जळ विरहक्क, चय तांम छंडत चक्क । सझि थाट असपति साल, इम आवियौ ५५ 'अभमाल' ॥ २५६ १ ख. ग. भार। २ ख. टह। ३ ख. अणघट। ४ ख. ग. सिषर। ५ ख. ग. त्रुटि । ६ ग. प्रोद्राक। ७ ख. ग. चढीया। ८ क. उडंड। ६ ख. ग. प्राण। १० क. बौम । ११ ख. प्रांमूझि । ग. प्रांमुझि । १२ ख. ग. मृग। १३ ख. ग. अकुलाय। १४ ख. ग. मृत । १५ ख. ग. गजगाह । १६ ख. दुरंत। १७ ख. व। १८ ग. त्रदाक । १६ ख. ग. हुव । २० क. हुकल । ग. हुंकळ । २१ ख. ग. फूटत । २२ ख. ताल । २३ स्व. वरसाल । २४ ख. ग. होय। २५ ख. ग. प्रावीयौ । २५४. भार अढ़ार - अष्टादश भार वनस्पति, आबू पर्वतका एक नाम । विखम - विषम । वाट - मार्ग । अवघट घाट - ऊँचे-नीचे, ऊबड़-खाबड़ स्थान । २५५. प्रौद्राक - भय, डर, उद्रेक । चक'चाक - चारों दिशाएँ चाक पर चढ़ गईं, कंपाय मान हो गई। २५६. परइंद नाग-सपक्ष सर्प। वोम-व्योम । २५७. हीस - घोड़ोंकी हिनहिनाहट । तुरंग - घोड़ा । दहलंत - भयभीत, कंपायमान । साह - बादशाह । दुरंग - दुर्ग, गढ़। २५८. त्रंब - नगाड़ा । गजर - आवाज । तूर - वाद्य विशेष । हाक - ध्वनि । कळळ हाक - सेनाका कोलाहल वघोड़ोंके हिनहिनाहटकी सम्मिलित ध्वनि हो रही है । २५६. जळ विरहक्क - जलविहीन। चय - दिग्गज, दिग्पाल । चक्क - दिशा। सझि - सुसज्जित हो कर । थाट- सेना । असपति - बादशाह । साल - शल्य । प्रभमाल - महाराजकुमार अभयसिंह। Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०२ ] सूरजप्रकास इम खबर' मुदफर आय, जुध प्रांगमिण' नह जाय । इम सुणे दळ औसाप, तन मुगळ खाधी ताप ।। २६० बिध वाघ' जिम वधबाव, पलटत गज पछ पाव । इम गाज सुणि 'अभमल्ल'', गह छाडि थाट मुगळळ ।। २६१ __ मुदफरखांनरौ भाग जाणौ। भजि गया बिण गजभार, हय थाट तीस हजार । मिट' लाज छाडि गुमांन, खड़ि गयौ मुदफर खांन ॥ २६२ बहसतौ खाग संबाहि, मारतो तो पल'' मांहि । 'अभमाल' विरद उदार, लागै न भागां लार ।। २६३ परि लसे सारंग' पीव, जिण' वचे मुदफर जीव । इम करे विरद अपाल", मन धारि छक 'अभमाल' ।। २६४ धर साह लूटण धाव, दळ हले जिम दरियाव । बहसंत खांघीबंध, कळि चाळ सूर कमंध ।। २६५ महाराजकुमार रौ सरमें आग लगाणी तथा माल लूटी अति धरै धक'६ अणभंग, जोधार मंडण'" जंग । जोजनां८ तीन जयोर १६, वणि हले दळ विसतार' ।। २६६ १ ख षवरि । ग. षबरि । २ क. अगमिण । ख. प्रांगमण । ३ ख. वाग। ४ क. वधिवाव । ग. वधवाव । ५ ख. अभमल । ६ ख. ग. विणि । ७ ख हंजार। ८ ख. ग. मिटि। ६ ख. गांन । १० ख. संवादि । ११ ग. पळ । १२ ग. सारंगि । १३ ख. ग. जिणि । १४ ग अपाळ । १५ ख. षांगीवंध । १६ ख. ग. धष । १७ ख. रमण । १८ ख. ग. जोजंन्न । १६ ख. ग. जियार। २० ख. ग. पणि । २१ ग. विस्तार। . २६०. मुदफर - मुजफ्फरअलीखां । प्रांगमणि - वशमें, अधिकार में । प्रौसाप - शौर्य, पराक्रम । ताप-भय, डर। २६१. बिध - विधि, प्रकार । वधबाव - व्याघ्रके महककी हवा । पछ - पीछा । अभमल्ल - महाराजकुमार अभयसिंहजी। गह - गर्व । २६२. गजभार - हाथी दल । थाट - समूह, दल । खड़ि - चला कर । मुदफर खांन - मुजफ्फरअलीखां। २६३. बहसतो - जोशपूर्ण। संवाहि - सम्हाल कर, धारण कर। लार - पीछे । २६४. अपाळ - अमर्यादित, अत्यन्त । २६५. धाव - दाव, पेच । दरियाव - समुद्र । बहसंत - जोशपूर्ण होते हैं। खांघोबंध - राठौड़। कळिचाळ - युद्ध । २६६. धक - प्रबल इच्छा। प्रणभंग - वीर। मंडण - करनेको। जोजनां तीन जयार - तीन योजन तक। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १०३ आवैस धकै अमास, उडि जाय गढ़' असि हास । लूटंत संपति' लाख, सरदांण कै घण साख ॥ २६७ करि तहसमहसां केक, असपत्ति सहर अनेक । महि साह सहरां मौड़, ठहराव सोबा' ठौड़ ॥२६८ सिप्पाह' वसै कमंध, बावीस हसती-बंध । निज नारनौळह नाम, धुर तेग - बंदा धांम ॥ २६६ अनि लोक संपति इंद, जिण मांहि दळ - वाजंद' । दइवांण सोबादार', पाठांण१३ सूर अपार ।। २७० औ१४ सहर को'५ ऊफांण'६, 'अभमाल' घेरे' प्राण । चहुं१८ तरफ थाट चलाय, लागाय वळ वळ लाय ॥ २७१ धुबि झाळ२° झळहळ धोम, हणमंत लंक जिम होम । जाळीस सबळ पट जागि, आलीस आलिय आगि ॥ २७२ खट छपर चंदण खाट, प्रजळंत२४ चंदण कपाट।। लगि झाळ२५ प्रजळत ६ लाख, खंभ पाट चंदण खाख ।। २७३ १ क. गड । ग. गङि । २ ख. असपति । ३ ग. हुवे। ४ ख. सोवा। ५ ख. ग. सिपाह। ६ ख. वावीस । ७ ख. हस्तीबंध । ग. हस्तीबंध। ८ ख. बंधां। ग. बंधा। ६ ख. धाम। १० ख. ग. वाज्यंद। ११ ख. दईवांण। १२ ख. सूवादार । ग. सूबादार। १३ ग. पाठाण। १४ ख. ग. वो। १५ ख. ग. कीध। १६ ख. ग. उफांणि। १७ ग. धेरै । १८ ख. चहुं । ग. चहु । १६ ख. ग. धुवि । २० ख. झाल । २१ ख. खलहल । २२ ख. ग. षट। २३ ख. चंद। २४ ख. प्रजलंत । २५ ख. झाल । २६ ख. प्रजलत। २६७. पावस - प्रावेश, उत्साह । सरदांण - ( ? )। २६८. तहसमहसां-तहस-नहस, नाश । महि - पृथ्वी। सोबा - सूबा, प्रान्त । २६६. सिप्पाह - योद्धा (?), सेना। हसती-बंध - बड़ा सरदार जिसके यहाँ हाथी सवारीमें काम लिया जाता हो।। २७०. इंद - इन्द्र । वाजंद - घोड़ा । दइवांण - महान, वीर । सोबादार - सूबादार, प्रान्तपति। २७१. थाट - सेना, क्ल । २७२. धुबि- प्रज्वलित हो कर । झाळ - ज्वाला, प्रागकी लपट । धोम - अग्नि, आग । प्रालीय - बढ़िया, श्रेष्ठ । २७३. झाळ - ज्वाला, मागकी लपट । संभ - स्कंभ - खंभा। Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०४ ] सूरजप्रकास घड़' पड़ै सझि घमसांण, प्रजळंत रोगनी खंभ चितरांम, विकराळ उड़ि पड़े पाट दिवाळ, लगि लोल पाथर लाल । धड़ड़ंत झळ धौमाल, कड़ड़ंत वीज कराळ || २७५ ६ 19 ह कटहड़ा मंडप कराळ, झळि काठ वभकत झाळ" । हिम हीर जळि " हिंडलाट, अंगीर दमंग उपाट ।। २७६ इम ठांम ठांम अगन्नि २, गहतंत लगन गगन्नि १४ । १२ 9 3 १५ १६ किरि मिळे रवि हितकारि, पावक्क बांह पसारि ।। २७७ के इम जळे घण" आगार", जळियौ " न वीच" बजार" । उण ठौड़ लोक अपार, हलि धसे लूटणहार* ।। २७८ सुणि लूट पहल सिपाह, असि प्रति लीध ससत्र अनोप, तहं" २३ सुतर लूटि" अथाह । फिलम बगतर टोप ।। २७६ 4. १८ १ ख. ग. घण । २ ख. प्रजलत | ६ ख. धडडंत । ११ ख. जले । १६ ख. वह । जळीयौ । २० २४ ख. श्रसी । २८ ख. वगतर । मुगळ' पठाण । ५ भाळ विरांम ॥ २७४ ७ ख झाल । १२ ग. अगिनि । ३ ख. मुगल । ८ ख. कडडंत । १३ क. लगनि । १७ ख. घणा । १८ ख. श्रगार । ग. श्रंगार । ख. ग. वीचि । २१ ख बजार । २२ ख. श्रास । २५ ख. ग. लोध । ५ ख. झाल । ४ ख. विकराला । ६ ख कटहडा । १० ख. झाल । १४ क. प्रगन्नि १५ क. करि । १६ ख. जलीयौ । ग. . २३ ख. ग. सुजि । २६ ख. ग. सस्त्र । २७ ख. तह । ग. तहा । २७४. घड़ - सेना । घमसांण - युद्ध । रोगनी - रोगनी, चिकना । विरांम - निरन्तर । २७५. पाट - मकानके छतके पत्थरोंकी दृढ़ताके लिए उनके नीचे दीवारों पर लगाया जाने वाला लम्बोतरा पत्थर । धड़ड़ंत - ध्वनि करते हुए अग्निका प्रज्वलित होना । धौमाल - अग्नि, आग | २७६. कटहड़ा - कटघरा । वभकत - भभकती हैं। हीर- लकड़ीका मध्य ठोस भाग । हिडलाट - ( ? ) । दमंग - छोटे-छोटे प्रग्नि-करण । २७७ किरि - मानों । रवि - सूर्य । पावक्क - अग्नि । २७८. श्रागार - भवन, घर । - २७६. सुतर - ऊँट । झिलम बगतर - एक प्रकारका कवच जो युद्धके समय शिर पर धारण किया जाता है, शिरस्त्राण । Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास मिळ' थाट लुटे ग्रमीर, हिम जड़ित भूखण हीर । 3 ४ तारख सरखत वितांन, मूकेस जरियसि करि रजत कंचन केक, नागजड़ित वंस १ ख. ग. मिलि । २ ग. लूटे । ३ ख. ग. तारक । भर । ६ ख. ग. बाज | ७ ख. भिलि । ग. भिळि | १० ख. बजाज । ११ ख. वेसि । ग. बेसि । १४ ख. ग. किमषाप । १५ ग. मुषमल । १८ ख. सबंध | १६ ख. कसवीस | ॥ २८१ & ११ नग - जड़ित सुजड़ नराज, वडवडा मदफर" वाज 1 पौसाक ऊंच अपार, भलि लुटै द्रव्य भंडार ॥ २८२ बाजार लुटत बजाज '", तखतास तहतह ताज । afa पोत कोमति वेस", मभि कारचौभ मुकेस २ ।। २८३ सिकलात मुखमल खास, तहताज प्रतलस तास । खुल' इळाइच खिमखाप", सुजि मुलमुला " स्रीसाप ॥ २८४ बासता ' भिड़बच बंध, सूपेत माल सुबंध | कसबीस' चीरा कौर, अंगरेज फिरंगी ६ १७ १८ १६ और ।। २८५ १२ ख. ग. मुकेसि । १६ ख. ग. वासता । - [ १०५ मांन ॥ २८० अनेक 1 ४ ख. ग. मुक्केस । ८ ग. द्रव्य । ६ ख बाजार । १३ ख. ग. बुलि । १७ ग. भिड़चव | २८०. अमीर - धनाढ्य । हिम- सोना, स्वर्ण । हीर- हीरा मुकेस चांदी सं नेके चौड़े तार, इन तारोंका बुना कपड़ा, मुनवेस | जरियस - चांदी सोनेके तार जिन पर सुनहला मुलम्मा हो । २८१. रजत - चांदी, रोप्य । कंचन - स्वर्ण, सोना । २८२. सुजड़ - कटार । नराज - तलवार । मदफर - हाथी । २८३. पोत - वस्त्र, रेशम वेस पहनावा । कारचौभ - लकड़ीका चौखटा जिसमें कपड़ा कस कर कसीदेका काम होता है, जरदेजी, कसीदाकारी । २८४. सिकलात- बहुमूल्य ऊनी बनात, सिकलात । तहलाज - ( ? ) । प्रतलस - एक प्रकारका बहुमूल्य रेशमी वस्त्र विशेष, अत्लस । तास एक प्रकारका सुनहले तारोंका जड़ाऊ कपड़ा । खुल- ( ? ) । इलाइच एक प्रकारका बहुमूल्य कपड़ा । खिमखाप - खीनखाप, एक प्रकारका बहुमूल्य कपड़ा | मुलमुला एक प्रकारका पतला बारीक सूतसे बुना कपड़ा विशेष । स्त्रीसाप एक प्रकारका बहुमूल्य कपड़ा । २८२. बासता - एक प्रकारका लाल रंगका कपड़ा । भिड़बच एक प्रकारका कपड़ा । सूपेत - सफेद कसबीस - ( ? ) । चीरा - पगड़ी ( ? ) । कौर - गोटा, किनारी । ५ ख. मद - Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०६ ] सूरजप्रकास भर मौल' नीलक भार, आसावरीस उदार । दुल्लीच गिलम दुसाल, थिरमा सफंभ* सुथाळ' ।। २८६ महि माल बह' पसमीर, कर उतन जे कसमीर । इकतार पोत असाधि, विरहानपुर रंग बाधि ॥ २८७ बह माल सामंद बीट, छिबदार वंदर छींट । गुलदार रंग गहीर, चित्रकार नाटी चीर ।। २८८ सुजि तार• रेसमसूत, अति रंग छबि १ अदभूत । भर लुटत कीमति भार, इक'२ कपड़ गंज अपार ॥ २८६ पासार हट्ट प्रियोग, लूटंति३ किंकर लोग । स्रब'४ चीज मेवा सोय, कजि भार न लिए कोय ।। २६० बावना'५ चंदन' बोह, महि डमर अंबर'८ मोह'६ । किसतूर केसर'' केक, असि ऊंट* भरत अनेक ।। २६१ १ ख. मोर। २ ख. ग. सुपंभ। ३ ख. ग सुसाल। ४ ख. पहि। ५ ख. वहौ । ग. बहो। ६ ख. ग. जै। ७ ख. ग. वह। ८ ख. ग. छिविदार। ४ ख. ग. छोट। १० क. तीर। ११ ख. ग. छवि। १२ क. ईक। १३ ख. ग. लूटति । १४ ख. ग. श्रव । १५ ख. वावना । १६ ख. चंदण। १७ ख. वोह । ग. वौह । १८ ख. ग. भंवर । १६ क मौह । २० ख. कस्तूर । ग. कस्तूरि । २१ ख. ग. केसरि । २२ ख. २८६. नीलक - ( ? ) । प्रासावरीस - एक प्रकारका सूती कपड़ा। दुल्लीच - एक प्रकार का कालीन अथवा दुली ? गिलम - बहुत मोटा मुलायम गद्दा या बिछौना, ऊनका बना हुआ नरम और चिकना कालीन । टुसाल - एक प्रकारका प्रोढ़नेका कीमती कपड़ा। थिरमा - ( ? ) । सुथाळ - ( ? )। २८७. पसमीर- एक प्रकारका बहुत बढ़िया ऊनी कपड़ा जो बड़ा मुलायम और मजबूत होता है और कश्मीरमें ही सबसे अच्छा बनता है, पश्मीना। इकतार – ( ? )। पोत - वस्त्रकी मोटाई। बाधि - विशेष । २८८, बीट - टापू । छिबदार - सुन्दर । छींट - एक प्रकारका कपड़ा। गुलदार - एक प्रकारका कशीदा अथवा इस प्रकारके कसीदा वाला कपड़ा । नाटी चीर - ( ? )। २६०. किंकर - सेवक । २६१. बावना चंदन - सर्वश्रेष्ठ चंदन । बौह -- खुशबू । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १०७ परिपूर' लच्छि प्रताप, सुजि लुटत' हाट' सराप । बह मौहर रिपिया बांधि , सिर धरे चोमट' सांधि ॥ २६२ ग्रहि'' अमीरस'' बेगार'२. हम्माल जेम हजार । तदि जंवहरी हट ताम, जंवहार लूटिय२५ जांम ।। २६३ अति किमति'हीर उदार, माणिक्क' लाल मंझार । सझि सीप'प्रोपति सिंध', बड वार मुकत अविध ॥ २६४ कलरंग घाट कुमाच, पन्नास नीलम पाच । संग रंग ढंग सुढाल२३, पुखराज अन्य२४ प्रवाळ ।। २६५ लसणिया५नील झळक्क ६, दुति वंस ८ गोमीदक्क । चत्र असी जाति उचार, जिण वार लूटि3° जुहार' ।। २९६ १ ख. परपूर । ग. पपूरि। २ ख. ग. लूटत। ३ ख. हाठ। ४ ख. सराफ । ५ ख. वौहौ । ग. बौहो। ६ ख. रुपैया। ७ ख. वाधि। ८ ग. धरै। ख. ग. चौमट । १० ग. ग्रहे। ११ क. प्रभीरस । ग. प्रभीर। १२ ख. वेगार। १३ ख. जबहरी । ग. जवहरी। १४ ख. जवहार । १५ ख. लूटीया । ग. लुटीया । १६ ग. कामति । १७ ग. मांणक्क । १८ ख. ग. सीप। १६ ख. सिध। ग. संधि। २० ख. मुकति । २१ ग. अबीध । २२ ख. पंनास । ग. पंनांस। २३ ख. ग. सुठाल । २४ ख. अने। ग. अने। २५ ख. ग. लसणीया । २६ ख. झलक्क । २७ ख. ग. जति । २८ ख. ग. वंत । २६ ग. गोमीदक । ३० ग. लूट। ३१ ख. ग, जंहार। २६२. लच्छि - लक्ष्मी। सराप - सोने-चांदीका व्यापारी, सरीफ । मौहर - स्वर्ण-मुद्रा विशेष । चोमट - ( ? ) २६३. बेगार - बलात् कराया हुआ काम । जंवहरी- जवाहरात बेचने या परखने वाला जौहरी । हट - हाट, दुकान । जंवहार - जवाहरात । २६४. होर - हीरा। मुकत - मोती। अविध - बिना छेद किया हुआ । २६५. कलरंग- ( ? ) । घाट-प्रकार । कुमाच - एक प्रकारका कपड़ा। पन्नास पन्ना। नीलम - नीले रंगका रत्न, नीलमणि। पाच - ( ? ) । २६६. लसणिया - धूमिल रंगका एक रत्न विशेष या बहुमूल्य पत्थर, रुद्राक्षक। नील - ( ? ) । झलक्क - ( ? )। वंस - ( ? )। गोमीदक्क - एक प्रसिद्ध मणि जिसकी गणना नौ रत्नोंमें की जाती है, गोभेदक । चत्र''जाति - चौरासी प्रकारके। जुहार - जवाहरात Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १०८ ] सूरजप्रकास लूटे' न ग्रेह अलीण, दुजराज न लुटे दीण । अनि लूटि स्रब' असहास', सकि नार-नोलह नास ॥ २९७ सुणिया न दीठा सोय, पहरंत जंवहर पोय । अति हुवा द्रब्य उपाव, रंक हुता स हुवा राव ।। २६८ इळ' कनक मौ'र'' उडाय, वधि जोम तबल १२ वजाय । दे साह रै उर3 दाह, इम आवियो१४ 'अभसाह' ॥ २६६ बादसाहरी भयभीत होणौ इम आप डेरा प्रोप, दिन रात'५ वसियौ' ६ दोप। बळ' सझे दळ' विकराळ'६, चढ़२० हले' कजि धक चाळ । पड़२४ दिली तांम प्रकार, पड़ि५ भार जमना२६ पार । जवनेस लोक जितोक", चळचळे चंदन ८ चौक ६ ॥ ३०१ धूर्जत धर तन धीर, अनि भूप सरब• अमीर । दिल सोच महमंद दाह, हुय कंप' उर पतिसाह ।। ३०२ १ ख. ग. लूट । २ ख. श्रव । ग. श्रब। ३ ख. अनहास । ४ क. ससि । ५ ख. नार-नौलह । ग. नार-नौळह । ६ ग. सुणीयां । ७ ग. पहरत । ८ ख. जवहर । ६ स्व. ग. द्रव । १० ख. इल। ११ ख. ग. मोर। १२ ख. तवल। १३ ग. उरि । १४ ख. ग. प्रावीयौ। १५ ग. रति । १६ ख. वलीयो । १७ ख. ग. बल । १८ ख. दल । १६ ख. विकराल। २० ख. ग. चठि। २ ग. हलै। २२ ख. ग. धख । २३ ख. ग. चाल । २४ ख, पडि । ग. पड़ि। २५ ख. पडि। २६ ग. जमनां । २७ ख. ग. जितौक । २८ ख. ग. चंदण। २६ क. चोक । ३० ग. सराव । ३१ ग. केऐ। २६७. अलीण - अग्राह्य, अनुचित । दुजराज - द्विजराज, ब्राह्मण । दीण - दीन, गरीब । २६८. पहरंत - पहिनते हैं, धारण करते हैं। जंवहर - जवाहरात, रत्न। उपाव - उपाय । रंक - गरीब । हुता- थे। राव - राजा, समृद्ध । २६६. इळ -- पृथ्वी । कनक - स्वर्ण, सोना । मौ'र - मुहर, मोहर । जोम - जोश । तबल - वाद्य विशेष । अभसाह - महाराजकुमार अभयसिंह । ३०.. अोप - शोभायमान हुए। दोप- ( ? ) । कजि - लिए। धक चाळ - युद्ध । ३०१. जवनेस - यवनेश, बादशाह । जितोक - जितना। चळचळे - कम्पायमान हुये । चंदन चौक - चांदनी चौक । ३०२. अनि - अन्य । केप - भय, डर । Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १०६ 3 ह्वै' करत कूक हजार, पड़ि ठौड़ ठौड़ पुकार । दळ दहल ऊर्जाड़ि देस, चढ़ि तटां" लोक चलेस ।। ३०३ घण सोर जोर न घात, पड़ि दिली मभि उतपात । धुजि मीरजादा धांम, बेसुतर" भाजत" बांम३ ॥ ३०४ दळ दिली कळळ १४ 'दरोळ, चढ़ि वेगमां चख' -डोळ 1 तिणवार दळ १६ भळे" इम खुरसांण ।। ३०५ सुरतांण, खळ १७ ગ્ २ २३ २४ रु तपत बांण" सधार, खळ भळे जिम जळ ४ खार | इम खड़े बाज`* अलंग, आविया दळ अणभंग ।। ३०६ साहज्यांपुर लूट जवनेस नगर सजोस, पुर साहिजां सिर पोस । दळ ३८ पूर सूर दुबाह, सो घेरियो 'अभसाह' ।। ३०७ जुध करे हण जवनांण, * पाड़ेस " मुगळ' पठांण । पुर जिणवार, होळिका ख. पड़ि । जांणि हजार ॥ ३०८ जाळेस १ ख. हुब । ग. हुब । २ ख. कूंक । ६. ग. दहनि ७ ख ग उजड़ । ८. तहां । धाम । ११ ख. ग. वेसतर । १२ ग. भाजत । १३ कलल । १५ ख. दरोल । १६ ख. ग. चक । १७ ख. रा. डोल । १९ ख. खल | २० ख. भले । २१ ख. वाण । ग. बांण । २२ ख. खल । २३ ख. भले । २४ ख. ग. जल । २५ ख. ग. वाज । २६ ख. ग. अलंग | २७ ग. पौस । दल । २६ ख. जवनाण । ३० ख. पाडेस । ३१ ग. मुगल । ३२ ख. पठाण | ३३ ख. ग. जालेस 1 ३४ ख. ग. होलिका । ४ ख. वौड़ । ५ ख. ग. दल । 8 ख. ग. जोरनि । १० ख. ख वाम । १४ ख. १८ ख. ग. दल । २८ ख. 3 ३ * ३०३. कूक - त्राहि-त्राहिकी पुकार ! दहल - भयभीत हो कर 1 ३०४. मीरजादा - ( मीरजाद. ) मीरका लड़का शाहजादा | बेसुतर - प्रशान्त, भयभीत, सुकून । बम- स्त्री । ३०५. कळळ - त्राहि-त्राहि । वेगमां- रानियें, बीबियें । चख-डोळ - एक प्रकारका वाहन विशेष | दळ - सेना, फौज । सुरतांण- बादशाह, सुल्तान । खळ भळे - भयभीत हो गये, घबराहट में पड़ गये । खुरसांग - बादशाह । ३०६. रुघ - श्रीरामचंद्र भगवान । जळ खार- खारा समुद्र, लवरगोद । खड़े - चल कर । बाज - घोड़ा । अलंग - दूरसे । श्रणभंग - वीर । ३०७. जवनेस - बादशाह । पुर साहिजां - शाहजहाँपुर। सिर पोस - सर-पोश, रक्षक । दुबाह - वीर । प्रभसाह - महाराजकुमार अभयसिंह | ३०८. जवनांण - यवन, मुसलमान । जाणि - मानों । Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११० ] सूरजप्रकास धन लूट' कीधौ' धांण, वधि नारनोळ' विनांण । चंड नयर' रा परचंड", दो नगर औ भुजदंड ॥ ३०६ भांजिया' जिके भुजाळ'', 'अभमाल' विरद उजाळ' । मंडियौ न धके' मुगळळ१५, इम जीपियौ' अभमल्ल ।। ३१० धर साह धोकळ' धींग', सो' कहै धोकळसींग । सझि साह मुलक सरद्द, मोसरां' पहल मरद्द ।। ३११ कुळ भांण विरद कहाय, जुध जीत तबल'२ वजाय । इम हले थाट अथाह, छिल उरस छिब ४ 'अभसाह' ॥ ३१२ गाजतां गयंद गहीर, वाजतां नौबत५ वीर । आवियौ२७ थाट अथाग, रंग हुवां उच्छब ८ राग ।। ३१३ 'अजमाल' सजि उच्छाह, गह-महत भड़६ दरगाह । उण वार 'अभमल' प्राय, पह' कीध वंदण १ षाय ॥ ३१४ १ ख. ग. लूटि। २ ख. कोधो। ग. कोधउ। ३ ख. नालिर। ४ ख. विनाण । ५ ख. ग. नगर । ६ ख. ग. तणा। ७ ख ग. प्रचंड। ८ ख. ग. दोब। ९ ग. भुजडंड। १० ख. भांजीया । ग. भेजीया। ११ ख. भुजाल । १२ ख. उजाल । १३ ख. ग. मंडीयौ। १४ ख. ग. धक। १५ ग. मुगल । १६ ख. ग. जीपीयो । १७ ख. धौकल । ग. धोकल । १८ ख. ग. धीग । १६ ख. ग. सौहो। २० ग. धोकलसींग। २१ ख. मौसरां । ग. मौसरा। २२ ख. तवल। २३ ख. ग. सिर । २४ ख. ग. छिवि। २५ ख. नौवति । ग. नौबति । २६ ग. बीर। २७ ख. ग. प्रावीया ! २८ ख. ग. उछव। २६ ख. भड। ३० ख. ग. पोहौ। ३१ ख. ग. बंधण । ३०६. कीधौ – किया । धांण – नाश, ध्वंश । विनांण - नाश । चंड नयर - दिल्ली नगर । भुजदंड - जबरदस्त । ३१०. भुजाळ - वीर; शक्ति ली। अभमाल - महाराजकुमार अभयसिंह। जीपियो - विजयी हुा। प्रभमल्ल - देखो ऊपर अभमाल । ३११ धोकळ - युद्ध, लड़ाई। धींग - जबरदस्त । सरद्द - सरहद । मौसरां पहल - अव सरके पूर्व ही, श्मश्रुके बाल निकलनेके पहिले ही। मरद्द - मर्द, वीर । ३१२. कुळ भांण – सूर्यवंश । विरद - विरुद, कीति । तबल - एक प्रकारका बड़ा ढोल । थाट - सेना, दल । अथाह - अपार, असीम । छिल - उमड़ कर । उरस - पासमान। ३१३. प्रथाग-- अपार, असीम । रंग - हर्ष, प्रानन्द । उच्छब - उत्सव । ३१४. अजमाल - महाराजा अजीतसिंह । उच्छाह - उत्साह, हर्ष । गह-महत - भीड़, समूह । दरगाह - दरबार । पह - वीर । कोष-किया। Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १११ महाराजा अजीतसिंहजीसू महाराजकुमार अभयसिंहजीरौ मिळणौ सुत तात मिळे' सनेह । दो जांणि सूरज' देह । अति पूर छक अमराव । पति करत वंदण' पाव ॥ ३१५ हसि मिळे 'अजण' हुळास । कमधज्ज जोम प्रकास । उण समें छभा उदार। वेखवा जिसड़ी वार ।। ३१६ धर दिली पड़ियौ धोमं । जोधांण धरियौ' जोम । उण वार सुकवि अनंत । कमधजां'' क्रीत कहंत ॥ ३१७ धनि कमध कुळ१२ अवधेस । दुति धन्य' 3 मुरधर देस । धनि अगंज गढ़ जोधांण । पह१४ 'मजण' धनि परमाण'५॥ ३१८ दळ' साह जीपि दुबाह'८, सुत तास धनि 'अभसाह । ....... ॥ ३१६ कवित्त-जदिन 'अभै'१६ जांणियौ', इळा२० थंभण उमरावां । गज समपण लख गांव', एम जाणे उमरावां । मकलबंत मंत्रियां, दुजां जाणे१३ सुखदायक । 'अजै' 'अभौ' जांणियौ, वंस२४ सूरज'५ वरदायक। १ ख. ग. मिले। २ ख. ग. सूरिज। ३ ग. बंदण। ४ ख. पाय। ५ ग. अंजण । ६ ख. वार । ग. बार। ७ ख. जिसठी। ग. जिसडी। ८ ख. ग. पाडियौ। ४ ख. धौम। १० ख. थरियो। ११ ख. कमधज्ज । ग. कमधझा। १२ ख. ग. कुल । १३ ख. ग. धन। १४ ख. पौहो। ग. पोहो। १५ ख. परमाण। १६ ख. दल । १७ ख. जीत । ग. जीते । १८ ख. दुवाह। १६ ख. ग. अभौ। २० स्व. इला । २१ ख. ग. गांच। २२ ख. ग. कविरावां। २३ ख. जाणे । २४ ग. वस । २५ ग. सूरजि। ३१५. तात - पिता । छक - हर्ष, प्रसन्नता । ३१६. अजण – महाराजा अजीतसिंह । हुळास- हर्ष । जोम - जोश। छभा- सभा, दरबार । वेखवा - देखनेको। जिसड़ी-जैसी। चार - समय । ३१७. धोम - अग्नि, माग । जोम - जोश, उमंग। क्रोत - कीर्ति । ३१८. धनि - धन्य-धन्य । कमध - राठौड़। अवधेस - श्रीरामचन्द्र भगवान । अगंज अजयी। ३१६. जीपि - जीत कर । दुबाह - वीर । प्रभसाह - अभयसिंह । ३२०. जदिन - जिस दिन । प्रभ - महाराजकुमार अभयसिंह । इळा - पृथ्वी । इळा थंभण - भूमि रक्षक, वीर, राजा। उमरावां- सरदारों। प्रज- महाराजा अजीतसिंह । अभी- महाराजकुमार अभयसिंह । बरदायक- यशस्वी, वीर । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११२ ] सूरजप्रकास जांणियौ साह महमंद' जदिन, जाजुळ तप 'जगजीतरौ' । जांणियौ' 'अभै' सारै जगत्त, अवतारी 'अगजीतरौं' ।। ३२७ सजि मसलत' सुरतांण, अनै दीवांण अमीरां । मिळि' अमखास मझार, सझे मचकूर सधीरां । एक छाडि अजमेर, अवर लीजिये मुलक अथि' । नाहर-खांन नरिंद'', कन्ह' मेलियौ कहे कथि । आवियौ खांन नाहर अडर, सांझण"६ दाव सरीतनूं । मगरूर सरा दरबार' मझि', जाय मिळे' ६ 'अगजीत'नूं ॥ ३२१ पह' ० 'अजमल' परताप, प्रसिद्ध दौलत'' इण पाई । वार वार कीरत करै, जाणै सब लोक वडाई । नारनौळ जाळियौ, लूट साहिजांपुर लीधौ । बूंब हुई सब जगत, दाह साहां उर दीधौ । १ ख. महमद । २ ग. जाणीयो। ३ ख. ग. अभौ। ४ ख. ग. जगति । ५ ख. ग. मसलति । ६ ख. ग. मिलि । ७ ख. ग. मझारि । ८ ग. अब र । ६ ख. ग. लीजीयो। १० ख. ग. अथ। ११ ख. रिदरै। ग. रिद । १२ ख. ग. कन्है। १३ ख. मेलीयौ । ग. मेल्हीयौ। १४ ख. ग. कथ। १५ ख. ग. अडर। १६ ग. सोझण। १७ ख. दरवार। १८ ख. मजि। १६ ख. मिले। ग. मिले। २० ख. ग. पौहौ। २१ ख. ग प्रसिध। २२ ख. ग. दौलति । ३२०. जाजुळ - जाज्वल्यमान । तप - तेज, कांति । अगजीतरौ - महाराजा अजीतसिंहका । ३२१. मसलत = मस्लहत - परामर्श, सलाह। अनै- और । मखास - ग्रामखास । मझार - मध्य, में । मचकर - ( ? ) । सधीरां- वीरों। छाडि -- छोड़ कर । अवर - अपर, अन्य । अथि - अर्थ, धनदौलत । नरिंद - नरेन्द्र, राजा। कन्ह - पास । कथि- कथा, वृत्तान्त । नाहर खांन - नाहरखां नामक यवन । सांझण .. सरीतनूं - अपना मतलब हल करनेको । मगरूर - गर्वपूर्ण, अभिमानी। अगजीतन महाराजा अजीतसिंहको। ३२२. अजमल - महाराजा अजीतसिंह । प्रसिद्ध - प्रसिद्धि, कीर्ति । वडाई - बड़प्पन । साहिजांपुर - शाहजहाँपुर । लीधौ - लिया। बूंब – त्राहि-त्राहिकी पुकार । दाह - जलन। साहां-बादशाहों। दीधो- दिया। Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास परजाळां जाळतां सहर ऊठी जिके, ऊफणि बराळां क्रोध, उरि वे झाळां सपत्तिरै ॥ ३२२ आप हुवै उसवास, रविदपति सुणि इम रीसां । जांमन ह्वां तिण जतन, बोल बांहां बावीसां । खोद तजै स्रब खून, प्रगट इम आप पधारे । तिल उसवास न तिकौ, एम 'अभमल' उच्चारै 'अभमाल' कहै जांमन अवर, परठां नह तजि पांगरी । साहरै अम्हां जांमन सदा, जमदढ़ खग जोधांणरी ।। ३२३ सुणि कथ इम 'जैसाह, अनै उमराव इकीसां । जाजुळि तप जांणियों, विखम छवि विसवा वीसां । वाह वाह 'अभमाल', बोल इम कहै सवाई हीमति मरदां हुवै, सभै ज्यां मदत गुसांई । इम कहे सकळ भड़ ऊठिया, साझण कूच समाजरौ । हालज्ये दिली रच्छिक हुसी, राज तपौबळ राजरौ ।। ३२४ छंद पद्ध .२ किलमांण मार' बहु गरद कीध । लसकर तुरंग गज लूटि लीध । नोट - छंद नं० ३२२ और ३२३ ख व ग. प्रति में नहीं मिले । १ ख. ग. मारि । २ ख. वहौ । ग. बहौ । ३ ग. गरब । ४ ग. तुरंग । अपत्तिरै । ३२२. परजाळा - प्रज्वलन, दाह । श्रसपत्तिरं बादशाह के । ऊफणि उबाल खा कर । बराळां - वाष्प, भाप । झाळां- आगकी लपटें । - - [ ११३ ३२३. उसवास - दुखकी अवस्था में ऊपरको चढ़ती हुई सांस, उच्छवास, लम्बी सांस । रविदपति - बादशाह । जामन - जामिन, प्रतिभू । खोद बादशाह । श्रभमाल -: महाराजकुमार अभयसिंह । श्रम्हां - हम । बाहां बावीसां - बाईसों सामन्तों की तलवारें । ३२४. जैसाह - सवाई राजा जयसिंह । अनं - और । जाजुळि - जाज्वल्यमान । विखम विषम, भयंकर । विसवा बीसां- पूर्ण, पक्का, दृढ़ । वाह वाह - धन्य धन्य, शाबास | सवाई - सवाई राजा जयसिंह । गुसांई - गोस्वामी, ईश्वर । रच्छिक - रक्षक । राज तपौ बळ राज्य तप-बल से प्रतिष्ठित रहे । राजरौ - श्रीमानका आपका। ३२५ किलमांण - यवन, मुसलमान । गरदनाश, ध्वंश, धूलि । कीध - किये। लसकर सेना | तुरंग - घोड़ा। लीध-लिये । - ५ ख. लूट । - - Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११४ ] सूरजप्रकास संभळी वात महमंद उर क्रोध अगनि प्रजळे वड वडा खांन भूपति खास कीध पतिसाह प्राय । पहिला ज दीध पतिसाह पांन । खिलकत्ति इरादतिमंद खांन ॥ ३२६ हैदरकुळी दळ" बळ' गहीर । महि विदा की तस" समीर" । महमंदखांन अमलीक मांण । परठियौ विदा बगसी करि क्रोध विदा कीधा सक्रोध । 'जैसिंघ' सहित बावीस जोध । १ सरब्ब ।। ३२८ २२ दळ" बळ' 'तुरंग गज ससत्र' "द्रब्ब' समपिया साह तोरा ऊडंत घमस नौबति" ग्रग्राज साहरा थाट हालै सकाज । १ ख. सांभली । ग. सांभलि । २ ख. ग. महमद | ३ ख. ग. उरि । ५ ख. बुलाय । ६ ख श्रवखास । ७ ख. हैरादकुली । ग. हैदराकुली । ६ ख बल । १० क. श्रीतम । ११ ग. श्रमीर । १२ ख. ग. परठीयौ । बंस । ग. वंगस । १४ ख वम्बीस । १५ ख. दल । १६ ख. वल । सस्त्र । १८ ख. द्रव्य । १६ ख समपीया । ग. समपीयों । श्रजयो । २२ ख. हाले । साह | अथाह || ३२५ बुलाय' । 'S १३ - १४ पठांण ॥ ३२७ १५ 1 ४ क. प्रजळं । ८ ख दल । १३ ख. १७ ख. ग. २० ख. नौवत । २१ ख. ३२५. संभळी - सुनी । ३२६. बखास - श्रामखास । खिलकत्ति जन समूह, भीड़। इरादतिमंद खांन - शर्फ द्दौला इरादतमंद खां नामक व्यक्ति, जिसे बादशाहने अजमेरका हाकिम बनाया था। ३२७. हैदरकुळी - हैदरकुलीखाँ नामक व्यक्ति, जो रहा था । महमंदखांन - मुहम्मदशाह | करने वाला । परठियो - भेजा । विदा - कूच । अहमदाबादसे इस समय वापिस दिल्ली श्रा अमलीक - मांण - अपने ऐश्वर्यका उपभोग ३२८. जोध - योद्धा, वीर। समपिया - समर्पण किये, दिये । तोरा कुरब मान, तोड़े, aorat थैलियाँ | ३२६. घमस - ध्वनि विशेष । श्रग्राज - गर्जना । Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ११५ घण हले गयंद बजि' घरर' घोर । सहनाय तूर नक्कीब सोर ॥ ३२६ वहतां दळ' ऊजड़ हुवै वाट । घण घटा रूख चढ़ि गिरंद घाट । बेबे१० कबांण११ तरगस्स बंध'३ । असुरांण कंध गिड़१३ जोम अंध ॥ ३३० काळरा१४ कुटंबी'५ रूप काळ । झाळरा१६ रूप चख क्रोध झाळ । धमचक्क चाळरा बंध'८ धूत । भाळरा भयंकर रूप भूत' ॥ ३३१ हालंत इसा उजबक हरोळ२१ । चिख२२ चोळ गोळ२४ एहां चंदोळ६ । भड़ इसा दसत चख ८ क्रोध भाळ । रवदाळ' इसा ही जस्तराळ१ ॥ ३३२ १ ख. ग. वाजि । २ ख. ग. घंट। ३ ख. नक्कीव। ४ ग. वह। ५ ख. ग दल । ६ ख. ग. उवट । ७ ख. ग. घाट। ८ ख. ग. रूप। ख. ग. गिरद। १० ख. वेवे। ११ ख. कांण। १२ ख. वंध। १३ ख. डिग। १४ ख. कालरा। १५ ख. कूटंवी। १६ ख. ग. झालरा। १७ ख. चालरा। १८ ख. वंध। १६ ग. भूप । २० ख. ग. उजवक। २१ ख.हरोल । ग. हरोळ। २२ ख.ग.चख। २३ ख. चोल। २४ ख. गोल । २५ ख एहां। ग. ऐहा । २६ ख. ग. चंदौल। २७ ख. भड । २८ ख. ग. चप। २६ ख. ग. मास। ३० ख. रवदाल। ३१ ख. ग. जदस्तरास । ३२६. सहनाय - वाद्य विशेष । तूर - वाद्य विशेष । नक्कीब - बादशाह या राजाकी सवारीके अगाड़ी नजरदौलतकी आवाज लगाते हुए चलने वाला व्यक्ति विशेष । ३३०. ऊजड़-ऊबड़ खाबड़ स्थान, उवट । वाट - मार्ग, रास्ता। गिरंद - पर्वत । घाट पहाड़ों के मध्यके तंग रास्ते । बेबे - दो दो । कबांण - कमान, धनुष । तरगस्सतर्कश, भाथा । असुरांण - यवन, मुसलमान । गिड़ - मस्त ऊँट या सूअर । जोम-जोश । ३३१. झाळ - ज्वाला, आग, आगकी लपट । चख - नेत्र। धमचक्क-युद्ध । चाळ - अंचल, वस्त्र, छोर । धूत - उन्मत्त । चख क्रोध भाळ - क्रोधमें आँखोंसे लपट निकलती हुई। ३३२. हालंत - चलते हैं। उजबक - तातारियोंकी एक जाति, उद्दण्ड, मूर्ख । हरोळ - सेनाका अग्र भाग, हरावल । चिख-चक्षु, नेत्र । चोळ - लाल। गोळ - सेना, सेनाका मध्य भाग । चंदोळ- सेनाका पीछेका भाग । दसत - दस्त, हाथ या दिखाई देते हैं। रवदाळ-यवन, मुसलमान । जस्तराळ - छलांग भरने वाला। Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास ऽवां' मांहि मिळे' 'जैसाह' आय । वैसंदर जांणिक झोल वाय । जवनांण आवियौ' सुणे जांम । तारागढ़ सझियौ' 'अजण' ताम ॥ ३३३ सुत 'कुसळ'५ 'ऊद' हरवळ सकज्ज । 'अमरेस'८ तांम कीधी अरज्ज । 'अवरंग' छोडि मुन' सप' अभंग । 'जगसाह' आप झळि' कीध जंग ॥ ३३४ सझियौ' जैतारण१४ जुध सधीर । 'अवरंग'तणौ मारे'५ अमीर । दळ१६ सझि 'अवरंग'रौ फौजदार । विढियौ१७ गढ़ आए जेण१८ वार ।। ३३५ आपरा लंण परताप'६ अन्न । 'जगसाह' अगै लड़ियौ' जवन्न । १ ख. ग. वडां। २ ख. मिले । ग. मिल। ३ ख. ग. प्रावीयो। ४ ख. ग. सभीयो । ५ ग. कुसुल । ६ ख वल । ग. बल । ७ ख. सकेज। ग. सकज्ज। ८ ग. अमेरेस । ६ ख. अरज । १० ख. ग. मन । ११ ख. ग. सुप। १२ ख. बलि । १३ ख. ग. सझीयौ। १४ ख. ग. जैतारणि । १५ ख. ग. मारे। १६ ख. दल । १७ ख. विठीयो। ग. विटीयो। १८ ख. ग जेणि। १६ ख परतापि। ग. प्रताप। २० ख. ग. लसीयो। ३३३. जैसाह - सवाई राजा जयसिंह। वैसंदर - (वैश्वानर) अग्नि, आग। जाणिक - मानों। झोल - प्रवाहा । जवनांण - यवन, बादशाह । जाम – समय । तारागढ़ - अजमेरके पासका किला । सझियौ -- सुसज्जित किया । अजण - महाराजा अजीतसिंह। ३३४. कुसळ - नीमाजके ठाकुर जगरामसिंहका पुत्र कुमार कुशलसिंह उदावत । ऊद - राठोड़ोंकी उदावत शाखाका वीर । हरवळ - सेना अगाड़ी। अमरेस - नीमाजका ठाकूर, उदावत अमरसिंह राठौड़। अरज्ज - अर्ज, प्रार्थना । जगसाह - नीमाजके ठाकुर जगरामसिंहके लिये यह प्रयोग पाया है। छळि - लिए । ३३५. विढ़ियो - युद्ध किया। ३३६. अगै - पहिले, पूर्वकालमें । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ११७ 'जगसाह' आप छळि समर जोड़ि । मोहकम' दळ' लूटे दीध मोड़ि' ॥ ३३६ अनि घणा कीध जुध सुछळि पाप । पह' जिको आज कीजे प्रताप । ऊथाप हुवै नह अरज अाज । मांगं सुजि पाऊं महाराज' ।। ३३७ दइवांण" १ 'अजण' तद वचन दीध । कर जोड़ि 'अमर' तदि अरज कीध । 'महमंद' असुर पतिसाह माप । इम हिंदवांण१३ पतिसाह अाप ।। ३३८ तुल वाद१४ बरोबर"५ राज तेज । महाराज आप वधतै'६ मजेज । ऊथपे थपे पतिसाह आप । ऽवां कदे भूप न किया उथाप ॥ ३३६ धरथंभ बरोबर१७ तूजकधार१८ । वेढ़रौ१६ एम० कीधौ२१ विचार । १ ख. ग. मोहौकम । २ ख. दल। ३ ख. मोडि । ४ ख. सुछलि । ५ ख. ग. पौहौ। ६ ख. ग. जिको। ७ स्व. ग. कीजै । ८ ख. मांगु। ६ ख. पांऊं । ग. पाऊ। १० ख. ग. माहाराज । ११ ख. ग. दईवांण । १२ ख. ग. तदि। १३ ख. ग. हीदवाण । १४ ख. वारि। १५ ख. बरोवर। १६ ख. वधतौ । ग. वधतो। १७ ख. बरोवरि। ग. वरोबरि। १८ क. त्रुजकधार। १६ ख. ग. वेढिरौ। २० ग. ऐम । २१ ख. ग. कीजै। ३३७. सुळि - लिए। ऊथापाज – मेरी प्रार्थना आज रद्द नहीं की जाय । ३३८. दइवांण – स्वामी, वीर । अमर - नीमाजका ठाकुर अमरसिंह उदावत जिसने तारा. गढ़की रक्षार्थ बड़ा शोर्यका कार्य किया था। महमंद - अबुल्फतह नासिरुद्दीन मुहम्मदशाह । हिंदवांण – हिन्दू, हिन्दू धर्म । ३३६. तुल - तुला, तकड़ी। वध - विशेष । मजेज - मिजाज, गर्व । थपे “प्राप - आपने कई बादशाहोंको तस्तसे हटा दिए और कईको बादशाह बना दिये। कदे - कभी भी। ३४०. धरथंभ - भूमिस्तंभ, भूमिग्क्षक, राजा। तुजक - तुजुक, सैन्य-सज्जा करने वाला, फौजकी व्यवस्था करने वाला, प्रबंध करने वाला। वेढ़ - युद्ध । Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८ ] सूरजप्रकास साह हूं साह जूटे सक्रोध । जोधांण' हुं जूटै' सदा जोध ॥ ३४० छक बाध' नोख जोधाण छात । वधि तेम कीजिये नोख वात । उण साह जोध मेले अनेक । अर आप मेलजे मूझ एक ॥ ३४१ गढ़ चढ़े नाळ दगऊं गरीठ । रवदां दळ'' गोळा'' करूं रीठ । आपरा तेजहूंता अभंग । जवनां१२ दळ'3 अटकू करे जंग ॥ ३४२ मुरधरा मौहर'४ दळ सझि अमाप* । ऊपर'५ कजि रहिजे'६ भूप आप । इम सुणे रीझियौ पह' ८ 'अजन्न'१६ । जमदढ़ खग बगसे दळ० 'जतन्न' २१ ॥ ३४३ १ स्व. ग. जोधां। २ ग. जुट। ३ ख. छकवाध । ग. छकवाधि। ४ ख. नौक । ५ ख. कीजीए । ग. कीजीये। ६ ख. ग. मेल्हे । ७ ख. ग. मेल्हजे। ८ ख. मुझ । ६ ग. ऐक। १० ख. दल। ११ ख. गोलां! ग. गोळा। १२ ख. जवनां। १३ ख. दल । १४ ख. ग. भौहोरि । *ख. प्रतिमें यह पंक्ति- 'मुरधरा मौहौरि सझि दल अमाप है।' १५ ग. उपरि। १६ ख. रहजै । ग. रहजे। १७ ख. ग. रीझीयौ, १८ ख. ग. पौहौ । १६ ख. अज्जन । ग. अझन। २० ख. दल। २१ ख. जतत्र । ग. जतंत्र । ३४०. जूट - भिड़ते हैं। ३४१. छक - वैभव, शौर्य । बाध - पूर्ण, सब, विशेष । नोख - श्रेष्ठ । जोधांण छात - जोधपुरका राजा । जोध - योद्धा, वीर । प्रर - और । ३४२ नाळ - तोप। गरीठ - जबरदस्त, पहान गरिष्ठ। दगऊं - तोप दागू। रवदा - यवनों, मुसलमानों। रीठ - युद्ध । ३४३. पह - राजा। अजन्न - महाराजा अजीतसिंह। जमवढ़- कटार विशेष। दळ - सेना । जतन्न-यत्न, रक्षा । Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [११६ सिरपाव बगसि' बह' सिलह साज' । स्रीहथा खाग बांधे सकाज । कमधज्ज 'अखा' हर देवकन्न । तड जोध सथांना 'हर' सुतन्न' ॥ ३४४ धारे१ छक 'मोहण' १२ हर सुधांम । सुजि किलादार'३ मंत्री संग्राम । विजपाळ मंत्रिदळ अवरि'बाधि१६ । सांमांन दीध गढ़ पहलि१७ साधि ॥ ३४५ दे कुरब'८ भाल बह खांन दीध । कमधज्ज १ 'अमर' इम विदा कीध । सझि त्रण सलाम भड़ थाग२ संग । भूज उरस छिबै२३ मलपै२४ अभंग ॥ ३४६ नव खंड सिरै जुध करण नाम । तारागढ़ चढ़ियौ ५ 'अजण' २६ तांम । धर ऊवर कज'८ पहा ६ तेज धाम । मुरधरा मौहर. मंडियौ' मुकांम ॥ ३४७ १ ख. वगसि । २ ख. वौहौ । ग. बोहौ। ३ ग. सांझ । ४ ख. ग. श्रीहथा। ५ ख. वांधे। ६ ग. कमधझ्झ। ७ ख. पापहर । ग. अषाहर। ८ ख. देवकन । ग. देवक्रन । ६ ख. ग. साथ। १० ख. ग. सुतंन । ११ ख. ग, धारक। १२ क, मौहण । ५३ ख. किलार। १४ ख. ग. मंत्री । १५ ख. ग. अवर । १६ ख. ग. वाधि । १७ ख. ग. पहल। १८ ख. कुरव। १६ ख. वहौ । ग. बहो। २० ख. ग. पान । २१ ख. कमधज । ग. कमधझ्झ । २२ ग. थाट। २३ ख. ग. छिवे । २४ ख. महपे । ग. मल्हपे। २५ ख. ग. चढ़ीयौ। २६ ख. ग. अमर। २७ ख. ग. ऊपर। २८ ख. ग. कजि । २६ ख. ग. पौहौ। ३० ख. ग. मोहोरि। ३१ ख. ग. मंडीया। ३४४. सिलह - अस्त्र-शस्त्र । तड़ - शाखा । सुतन्न - सुत, पुत्र । ३४५. छक – जोश, उमंग। ३४६. अमर - नीमाजका ठाकुर अमरसिंह। त्रण - तीन । थाग- ( ? ) । उरस - आसमान । छिबै- स्पर्श करते हैं । मलपै - कूदते हैं। अभंग - वीर । ३४७. सिरै - श्रेष्ठ, शिरमोर । अजण - महाराजा अजीतसिंह । मौहर - सहायक, अग्रणी। मंडियो- बना, रचा। मुकाम - पड़ाव । Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२० ] सूरजप्रकास सूरवीर । वणियौ' गढ़ 'अम्मर' कळचाळ जांणि पाखर कंठीर । २ ४ उण वार असुर दळ लगो आइ * । धुबि तोप' मंगळ गिर तर 'अमरेस' सघण गोळां धुजाइ" ।। ३४८ अपार । & वारवार । वरसै असुरां सिर झळहळ झपट आय । प्रति गोळां लागी बह" खळदळ वीच " लाय ।। ३४६ चालंत ' १४ इसा गोळा अचूक | भूक दीठ । भड़ भिड़ज पटाभर हुवै .१५ १६ हुं तरफ झाळ धर अंबर रुख ओोळां गोळां पड़े रीठ ।। ३५० मिळ" उडै अरघ घट रंग मटन । १६ घण दिये कबर" खळ अरधघाट । ३ ग. बार । ४ ख. ग. श्राय । ५ ख. १ ख. ग. वणीयौ। २ ख. ग. कळिचाळ | तोव । ६ व. मंग । ७ ख. ग. धुजाय । ८ख. ग. सिरि । ६ ग. बारवार । १० ख. गोलां । ग. गोळा । ११ ख बौहौ । ग. बौहौ । १२ ख. ग. वीचि । १३ ख. पाल । १४ ग. चाल्लत । १५ ग. दुहु । १६ ख. अंवर १७ ख. ग. मिलि । १८ ख. ग. मांट १६ ख. ग. दीयँ । २० ख. कवर । ३४८. अम्मर - नीमाज ठाकुर अमरसिंह । कळचाळ युद्ध। जांणि- मानों । पाखर - कवच | कंठीर - सिंह । धुबि - तोपोंके छूटने से आवाज हो कर । मंगळ - ( ? ) । गिरगिरि - पर्व | तर = तरु - वृक्ष | - ३४६. श्रमरेस - नीमाजका ठाकुर अमरसिंह । सघण घना । झळहळ - प्रज्वलित, ग्राग । झपट - आगकी लपट | खळबळ - शत्रु सेना । लाय अग्निकांड | ३५०. भड़ - योद्धा । भिड़ज - घोड़ा । पटाकर हाथी भूक - चुरचूर, नाश। भाळ - श्रागकी लपट । धर - पृथ्वी । अंबर - श्रासमान । रुख प्रकार, तरह । ओोळां - वर्षा उपल । रीठ - प्रहार । - ३५१. घट - शरीर । रंग माट - रंगके मिट्टी के बने बर्तन । कबर - कब्र । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास बैरिहरां' दी रूप अजमेर मेर हूंता गीत वाधि | साधि ।। ३५१ कहर इरादतमंद्र' 'जैसाह' हैदुरकुळी " " 19 दळ बंगस पखै लागे न को दाव । एक उमराव 'अगजीत' र प्रटकिया ' 1 उमराव ।। ३५२ (१) ११ १२ , पति तणा बावीस ' धोम धड़ड़ अनड़ दोठ" तोपां धुबै रीठ पड़ि दड़ड़ गोळां विरोधा । 'अजा'रै हेक जोधार थांभै असुर [ १२१ > हेक इक्वीप जोधा ।। ३५२ (२) जवनरा 93 १४ 1 हारि मांने कियौ मेळ भड़ साहरां हाथ भट हजारी पंच हायौ । वाजतां नगारां गुमर धरियां" बिमर ६ 1 'अमर' छूटां पटां" मिळण प्रायौ ।। ३५२ (३) ३ ख. गीत सांगोर । ग. गीत साणौर ४ क. १ ख. ग. वैरहरा । २ ग. हु । जैसाह | ५ ख. ग. हैदरकुली । ६ ख. वगस। ग. बगस । ७ ख. ग. षपं । ८ ग. कौ । ६ ख अटकाया । ग. श्रटकीया । १० ख. डावीस । ११ क. ढीठ । १४ ख. ग. धरीयां । १५ ख. ग. कोयौ । १२ ख. धुवं । १३ ख. माने । ग. मानें। १६ ख. विहद । ग. विरद । १७ ख झंडां । ३५१. बैरिहरां - शत्रुवंशजों । वाधि - विशेष । श्रसाधि - ( ? ) । ३५२ ( १ ). कहर - ( कह) काप. गुस्सा । इरावतमंद्र - शफुद्दौला इरादत मंदखां नामक व्यक्ति जिसको अजमेर छीननेके लिए अजमेरका हाकिम बना कर बादशाहने महाराजा अजीत सिंह के विरुद्ध दलबल सहित भेजा । जैसाह - सवाई जयसिंह । बंगस - यवन, मुसलमान । एक उमराव - यह नीमाज ठाकुर अमरसिंह के लिए प्रयोग किया गया है । ३५२ ( २ ). धोम - अग्नि । धड़हड़ - श्रागके प्रज्वलित या तोप श्रादिके छूटने की तेज ध्वनि । अनड़ गढ़ किला । धुइँ - तोपें छूटती हैं। रोठ प्रहार । दड़ड़ ध्वनि विशेष । प्रजा - महाराजा अजीतसिंह । हेक एक । जोधार - योद्धा, वीर । थांभ - रोक दिये । - - ३५२ (३). हारि - पराजय, हार मेळ मित्रता । गमर - गर्व । विमर - जबरदस्त । अमर- नीमाज ठाकुर अमरसिंह । छूटां प्रायो- पूर्ण जोशमें भर कर मिलने के लिये आया । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२२ ] सूरजप्रकास मिळे' 'जैसाह' उमराव खांना मिळे " आप सुत 'कुसळ' पहरं मिळे एतै । कहै जग थाय नह अचड़ इण विध" कही जाय नह नांम रवि चंद जेतै" ।। ३५२ (४) २ हौ" - सभि बळ महमंदसाहरा, प्राया दळ अणपाल सुह 'प्रजै' जै'' सांमुहौ, मोकळियो " 'प्रभमाल' ।। ३५३ १५ कवित्त - मोकळियौ १६ ८ असुर दळां मभि प्रयौ ँ, सहर लूटि साहरा, २२ 13 .२५ तिण नह गिणिया "तिकै, मसत छक हूंत ३ प्रभैमल'" । विच * साह दळां डेरा वणे, तेज पुंज आयौ तदिन । उतरियोंगयंदहूता 'अभौ', जळ" चढ़ियों" मुरधर जदिन ।। ३५४ 1 'अभमाल', सभे दळ पूर सकाजा । विमळ वाजतां वाजा | १३ ४ ख श्रायं । ५ ख. ग. पौहौ । १० ग. जैतै । १४ ख. ग. ज्यां । १३ ख अणपार । १ ग. मिले । २ ख. ग. उवराव | ३ ग. मिले। ६ ग. ऐते । ७ ख विधि | ८ ख ग ससि । ६ ख. ग. सूर | ११ ख. हा । ग. हो । १२ ख. दल । ग. बलि । १५ ग. मोकलीयौ । १६ ख. ग. मोकलीया । १८ ख. लूट । १६ ग. श्रागें । २० ग. तिल । २१ क गिणीयां । २२ ख. ग. तिके । २३ ग. हूँ । २४ ग. श्रभमल । २५ ख. ग. विचि । २६ ख. ऊतरीयौ । ग उतरीयौ । २७ ख. जलि । २८ ख. ग. चढ़ीयौ । १७ ग श्राधौ । - 1 १६ ६ कीधा थळ ऊथळ | ३५२ (४). जैसाह - सवाई राजा जयसिंह, ग्रामेर । उमराव खांनां निजमुल्मुल्क के लिये प्रयोग किया गया है । कुसळ - नीमाजका ठाकुर कुशलसिंह पह - योद्धा । रवि सूर्य । | - ३५३. बळ - सेना, दल । महमंदसाह - नासिरुद्दीन मोहम्मद शाह | प्रणपाल - बेरोक, निःशंक | सुपह - राजा । श्रर्ज महाराजा अजीतसिंह । जे जिस । सांमुही - सम्मुख, सामने । मोकळियौ - भेजा । श्रभमाल - महाराजकुमार अभयसिंह | ३५४. थळ ऊथळ - उथल-पुथल । छक - जोश । अभैमल - महाराजकुमार अभयसिंह । साह - बादशाह । तदिन उस दिन । अभौ - महाराजकुमार अभयसिंह | जळ कांति, शोभा । जदिन - जब, जिस दिन । - Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १२३ डेरां दाखिल' दुझल, होय दरबार' कीध हद । जठे आदि 'जैसाह', जवन सह प्राय मिळे जद । ताछ ताछ बंटि' अतर, मंडि* डंबर' मनुहारां । नरमी करै अनेक, 'प्रभा' आगळि उण वारां । *असपती भड़ां मांझलि 'अभौ', दिपै अंजस जगदीसमौ । बाईस'' दबे११ देखे बहस', तेज पुंज तेईसमौ'3 * ।। ३५५ १ ख. ग. दापिल । २ ख. ग. दरवार। ३ ख. ग, सौहो । ४ ख. ग. वंटि। ५ ख. ग. मंडे । ६ ख. ग. डंवर । ७ ख. मनुहरा । ग. मनद्वारा। ८ ग. बारां । ६ ग. अंजस। १० ग. वाईस। ११ ख. ग. दवे। १२ ख. ग. वहस । १३ ग. तेवीसमो। *ख. तथा ग. प्रतियोंमें यहांसे आगे निम्न वर्णन अधिक मिला है-- असपति भड़ बोलीया, अभा हूता तिरण ओसर । प्रजण लीध अजमेर, सहर डिडवांणां संभर । मारे दोय अमीर, कटक प्रापहर बलि कीधौ । नारनौल जाळीयो, लुटि साहज्यांपुर लीधौ । जालतां सहर ऊठि जिके, पर जाळां तसपत्तिरै । उफरणे बराळां क्रोध उरि, वैफाळां असपत्तिरै । आप हुवै असवार, रवदपति सुरिग इम रीसां । जासन हवा तिरण जतन, बोल वाहां वावीसां । खोद तजै श्रब खून, प्रगट इम आप पधारे । तिल उसवास नतिको, ऐम प्रभमल उचारै । अभमाल कहै जांमन अवर, परठांन हत जिपांगरी । साहर अम्हा जांमन सदा, जमदढ़ खग जोधांगरी । सुरिण कथ इम जैसाह, अन उमराव इकीसां । जाजुलि तप जांणीयो, विखम छवि विसवांवीसां । वाह वाह अभमाल, बोल इम कहे सवाई । हिमत्ति मरदां हुवे, सौ ज्या मदति गुसाई । इम कहै सकळ भड़ उठीया, साझरण कूचे समाजरी। हालजे दिली रछिक हुसी, राज तपी बळ राजरी ॥ ३५५. दुझल - वीर । ताछ - भांति, प्रकार । अतर - इत्र । रबर - सुगंध, महक । नरमी - विनम्रता । अभा - महाराजकुमार अभयसिंह । प्रागळि - प्रगाड़ी । वारांसमय । असपती - बादशाह । भड़ां - योद्धाओं। मांझळि - मध्य, में । Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२४ ] सूरजप्रकास आय डेरां ऊमरां, कूच नग्गारा कीधा । साह मिळे' 'अभसाह', दुझल नग्गारा' दीधा । सझि दळ 'अजमल' सुतण, चढ़े गज हौद चमीरां । चढ़े गजां दळ चढ़े', अवर बावीस अमीरां । बोह' ढळक ढाल नेजास बोह, बह पटझर डग बेड़िया । दळसाह मोड़ि जूनी' दिली, खूनी धोकळ२ खेड़िया ॥ ३५६ केक दीह मझि कमंत्र, 'अभौ' जोगणिपुर पाए । दळ बगसी'५ र दिवाण'६, जाय अरजां गुजराए । सायत ८ देखे साह, तांम तेड़ियौ' 'अजण' तण । प्रायौ दळ सझि 'अभौ', घणै छकहूंत विरद घण । ऊतरे गजां दरगह असुर, तेज चढ़े जगचख तिसौ। जदि हले मसत मदझर जिहीं, दिलीनाथ 'महमंद' २२ दिसौ ।। ३५७ १ ख. ग. मिलण। २ ख. ग नगारा। ३ ख. ग. चले। ४ ख. ग. वावीस । ५ ख. वौहो। ६ ख. ग. ढळकि । ७ ख. वौहौ । म. बौहो। ८ ख. वौहौ। ६ ग. गज । १० ख. वेडीया। ग. बेडीया। ११ ख. जूनी। १२ ख. ग. धौकळि । १३ ख. ग. घेडीया । १४ ख. ग. पाये। १५ ख. वगसी। १६ ख. दीवांण । १७ ग. गुराजराऐ। १८ ग. साय । १६ ख. ग. तेडीय। २० ख. ग. घणा । २१ ख. ग. जहीं । २२ ख. महमद । ग महंमद । ३५६. ऊमरां - अमीरों, सरदारों। साह – बादशाह । अभसाह – महाराजकुमार अभयसिंह । अजमल – महाराजा अजीतसिंह । सुतण - पुत्र । हौद - हाथीका चारजामा विशेष । चमरां- सोनेका, स्वर्णका । ढळक - ढाले ?] । नेजा - भाला। बह - बहुत । पटझर - हाथी । डग बेड़िया - हाथीके पैर बांधनेकी जंजीर निगड । खूनी - कुपित । धोकळ - युद्ध। ३५७. केक - कई, कुछ। दोह - दिवस, दिन। कमंध - राठौड़। अभौ - महाराजकुमार अभयसिंह। जोगिणपुर - दिल्ली। बगसी - सेनाको वेतन देने वाला, बख्शी । दिवाण - वजीर, दीवान । सायत - अवसर, मौका। तेड़ियौ - बुलाया। अजण - महाराजा अजीतसिंह । तण - तनय, पुत्र । धणे - बहुत । छकहूंत - जोशसे । विरद घण - बहुतसे विरुदोंको धारण करने वाला । दरगह - दरबार । असुर - मुसलमान । जगचख - सूर्य। मसत - मस्त । मदझर - हाथी, गज। महमंद - नासिरुद्दीन मोहम्मद शाह नामक बादशाह । दिसो - तरफ, अोर । Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १२५ अंबखास' 'अभमाल', झळळ पौरस' झाळाहळ । आयौ छिवतौ' उरसि, बोल चख चोळ महाबळ । तुजकमीर ताप हूं, जाब' दीधौ नह जाए । सझे अनंम सलाम, एम पाए निज आए। तप देखि हुवौ दिन चंद तिम, मंद कळा महमंद मुख । उमराव खांन दबिया' अवर", रवि उदोत खिद्दोत' रुख ॥ ३५८ एम' देखि 'अभमाल', पांण तप तेज प्रभत्तो' । कमंध हूंत तद' कीध, प्रीत भय' हुं असपत्ती२२ । तौरा 3 जवहर ताम, किलमपति दीध कुरब कर५ । सरब खून पतिसाह, माफ कीधा जिण मौसर । इम जांण साह पूजै ८ 'अभौ', प्राकथ बियां अचंभसी । कोपियां धरा लूटी तिकौ, थाट दियां 3 दळ थंभसी ॥ ३५६ १ ख. ग. प्रांवषास । २ ख. ग. पौरिस। ३ ख. ग. छिबितौ । ४ ख. वोल । ५ ख. जाव। ६ ग. जाऐ। ७ ख. ग. साझे। ८ ख. ग. अनम । ९ ग. ऐम । १. ग पाऐ। ११ ख प्राऐ। १२ ख. ग. हुवो। १३ ख. दवीया । ग. दबीया । १४ ग. प्रबर। १५ ख. उद्दोत । ग. उद्दौत । १६ ख. ग. षिदोत । १७ ग. ऐम । १८ ख. ग. प्रभती। १६ ख. ग. तदि । २० ख. ग. प्रीति । २१ ग. भयं। २२ क. अभपती। २३ ख. ग. तोरा। २४ ख. जंवहर। २५ ख. कुवरकर । ग. कुरबकरि । २६ ख. ग. मौसरि। २७ स्व. ग. जांणि। २८ ख. पूजे । २६ ख. वीयां । ग. बीया। ३० क. अवंभसी। ३१ ख. ग. कोपीयां। ३२ ख. ग. तिको। ३३ ख. ग. लीयां । ३५८. अंबखास -- प्राम-खास । अभमाल - महाराजकुमार अभयसिंह । झळळ - देदीप्यमान । पौरस - पौरुष, शक्ति । झाळाहळ - सूर्य, अग्नि । छिवतो- स्पर्श करता हुअा, छूता हुआ। उरसि - पासमान ! चख - चक्षु नेत्र । चोळ - लाल, रक्तवर्ण! तुजकमीर – अभियान या जलूस प्रादिकी व्यवस्था करने वाला कर्मचारी, मीरतुज़क । ताप - भय, डर, रौब । जाब - जवाब । दोधौ - दिया। उमराव - अमीर, सरदार । खांन - मुसलमान । रवि - सूर्य । उदोत - उदय । खिद्दोत - खद्योत, नक्षत्र, जुगनू । रुख - प्रकार तरह । ३५६. पांण - प्राण, बल, शक्ति । प्रभत्तो - प्रभा, कांति । प्रसपत्ती - वादशाह । तौरा - प्राभूषण विशेष, तुर्रा । जवहर - जवाहरात। किलमपति - बादशाह । दोध - दिये। कुरब - मान, प्रतिष्ठा। खून - गुनाह, अपराध । मौसर - अवसर । पूजे - मान करता है। बियां - दूसरों। अचंभसी - आश्चर्ययुक्त । Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२६ ] सूरजप्रका एक' समें' 'भमाल', एम' दुभल वार दूसरी, चढ़ण प्रावियो पुजाए' । कटहड़े' चलाए । .६ E R 93 अनवह चढ़े अमीर, साहजादां नह मौसर | उठे चढ़े " धर" जोम, बहसि ' ' 'अभमाल' बहादर । गज तजै डांण अन पह" गुमर, तेज साह इसड़ी" तठै । अटकिय प्रसुरति पर" 'अभै', जमदढ़ कर धरियो जठै ।। ३६० १४ 919 E ८ २१ २४ पेखि रोस पतिसाह, माळ मोतियां समप्पै १ । बगसी"" भेजि सताब", आणि माळा * सुज " अप्पै । मीर - तुजक मारिवा, धिखे जमदढ़ कर धारै I दुल खांनदौरांस, पटाकर जिम पंता" । असतूत" करै बह" करिअरज, जोड़े हाथ जुहारियो असपती मौहर प्रांणे 'प्रभौ', इण विध' कोध उतारियो" ।। ३६१ २६ 3 a 3 १ ग. ऐक । २ ख. ग. समै । ३ ग. ऐम । ४ ख ग श्रावीयौ । ६ ख. कटहले । ७ ग. चलाऐ । ८ख. प्रतिनह । ग. श्रनिनह । १० ख. ग चढ़े । ११ ख. ग. धरि । १२ ख. ग. वहसि । १३ ख. वहादर । १४ ख. ग. प्रनि । १५ ख. ग. पोहौ । १६ ग. इसडो । १७ ग. अटकीयौ । १८ ग. परि । १६ ख. ग. धरीयौ । २० ख. ग. मोतीयां । २१ ख. समप्पे । ग. सम्मपे । २२ ख. वगसी । २३ ख सताव | २४ ख. ग. माला । २५ ख. ग. सुजि । २६ ख. धारे । २७ ख. ग. तारे । २८ ग. प्रस्तूति । २६ ग. करे । ३१ ख. जवारीयो । ग. जहारीयो । ३४ ख. ग. उतारीयो । ३० ख. वोहौ । ग. बौहौ । ३२ ख. मौहोरि । ग. मौहौरि । ३३ ग. विधि | ३६०. श्रावियो - प्राया । दुभल - वीर वार- समय, वेला । कटहड़े धारण कर के | जोम - जोश, श्रावेश। बहसि - जोश में आ डां - मद जो हाथीके मस्तक पर श्रवता है, दान। श्रन अन्य पह 1 २० - — 39 - गुमर - गर्व । साह - बादशाह । इसड़ौ ऐसा प्रभै - महाराजकुमार अभयसिंह | ३६१. बगसी - बख्शी । सताब - शीघ्र । समप्पे समर्पण किया। मीर तुजक - सेनाका या अभियान तथा जलूसकी तैयारीका प्रबंधकर्त्ता कर्मचारी । धिखे - क्रोधपूर्ण हो कर । जमदढ़ - कटार विशेष । खांन दौरा - ( ? ) । पटाकर साथी । पूंतारं - जोश दिलाता है, उत्साहित करता है। प्रसतुत प्रस्तुति, प्रार्थना। जोड़े हाथ करबद्ध हो कर । जुहारियो प्रभिवादन किया । प्रसपती - बादशाह । मौहर - गाड़ी, अग्र । श्रांणे - ला कर । प्रभो - महाराजकुमार अभयसिंह | ५. ग. पुजाऐ । ख. ग. जठै । कटहरा । धरकर ( ? ) । राजा, योद्धा । - Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १२७ खौदालम अंबखास, अचड़ कटहडै उबारी'। धरे' गरब' जोधांण, करग धारतां कटारी । इण विध' मेळ अमेळ, करै साहां कळिनारौ । सीख करे साहसू, अडर मलपियौ' 'प्रजा'रौ । असवार हुवौ गज ऊपरा, चढ़ि छक थाट चलावियौ । इम अचड़ खाट छिबतौ' उरस', 'अभमल' डेरा प्रावियौ ॥ ३६२ सोरठा१३ इम अचड़ां अणपाल, कंवरांगुर दिन दिन करै । मरूधर 'अभमाल', अति छक धारै 'अजण' उत ॥ ३६३ जोधांणी'५ जिण वार, इळ१६ मांण राजा 'अजौ' । आसीस' अणपार, जस खट वन'८ 'जसराज' उत' ।। ३६४ सांसण जूना सोय, दत मुकदम भूपाळ१ दत । करै न खेचल कोय, जगपाळग 'जसराज' उत५ ।। ३६५ १ ख. ग. उवारी। २ ख. ग. धरीयौ। ३ ख. अव । ग. गरव। ४ ख. ग विधि । ५ ख. ग. मल्हपीयो। ६ ख, अडारौं । ७ ख. हवौ। ८ ख. चलाइयो । ग. चलावीयौ । ६ ख. खाटि । १० ख. ग. छिवतो। ११ ग. उरसि। १२ ख. ग. प्रावीयो । १३ ख. दूहा सोरठा। ग. दुहा सोरठा। १४ ख. ग. ऊत । १५ ख. जोधांण । ग. जोधण। १६ ख. इण। १७ ख. प्रासी। १८ ख. व्रण । ग. ब्रण। १६ ख. ग. ऊत । २० ख. जूनो। २१ ख. नूपाल । २२ ख. ग. ऊत । २६२. खौदालम - बादशाह । अंबखास - आमखास । प्रचड़ - कीर्ति । कटहडै - राजा महाराजा या बादशाहके इर्द-गिर्द बनी काष्ठकी प्रवेष्ठिनी में। उबारी - रक्षा की । मेळ -- भैत्री । अमेळ - शत्रुता । कळिनारौ - ( ? ) । मलपियो - कूदा, छलांग भरी। अजारौ – महाराजा अजीतसिंहका, महार!जकुमार अभयसिंह । खाट - प्राप्त कर के। ३६३. अणपाल - बेरोकटोक। कंबरांगुर - महाराजकुमार श्रेष्ठ अभयसिंह। छक - जोश, शक्ति। अजण उत - महाराजा अजीतसिंहका पुत्र महाराजकुमार अभयसिंह । ३६४. इळ - पृथ्वी । मांण - उपभोग करता है। अजौ -- महाराजा अजीतसिंह । खट वन - ब्राह्मणादि छ: जातियाँ विशेष । जसराज उत - महाराजा जसवंतसिंहका पुत्र महा राजा अजीतसिंह। ३६५. जूना- प्राचीन, पुराना । दत - दान । मुकदम- प्रधान, मुख्य, मुकद्दम । खेचल तकलीफ, कष्ट । जगपाळग - संसारका पालनकर्ता । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२८ । सूरजप्रकास जस भ्रम काज' जगीस, नवां गांव 'अजमल' नरिंद | तांबापत्र' ब्रवि तीस, जस लीधो' 'जसराज'-उत ।। ३६६ कवि उमरावां केक, दुजां केक मंत्रियां दिया । इज किया अनेक, जगि घर घर 'जसराज ' - उत" & ।। ३६७ 1 सुजि घर असि सिरपाव, दुफल कड़ा मोती दुगम दिल जमल' दरियाव जग' दीधा 'जसराज' - उत 13 १२ ३ ख केम । ऊत | १४ ★ ६ १७ वणि हरचंद जिम वार, वधियौ" सुख चहुं वरण | तप रवि जिम तिणवार, जग ऊपर ' ' 'जसराज'- - उत ॥ ३६६ धरि" हिंदवांणां ढाळ, दावाबंध दिलेसरां । इम स्रुग' गौ 'जमाल', जस खाटे 'जसराज'-उत' ॥ ३७० ह इति षस्ट प्रकरण । । ।। ३६८ १ ख ग काजि । १ ख. ग. गांम । ग. लोधा । ६ ख. ग. उत | ७ ख. १० ख. ग. घरि घरि । ११ ख ग जगि । १४ ख. ग. उत । *ख तथा ग. प्रतियों में यह पंक्ति निम्न प्रकार है- 'अजमल दिल दरियाव ।' १५ ख. ग. वधोयौ । १६ ख. ग. ऊपरि । दिलेसुरां । २० ग भुमि । २१ ग. ऊत । १७ ख. ग. ऊत । १८ ग. धर । १६ ग. ये दो पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं । तांवापत्र | ४ बवि । ग. त्रवि । ५ ख. ८ख. ग. मंत्रीयां । ६. ग. कोया i १२ ख. दरख । ग. दरब । १३ ख. ग. ३६६. जगोस - राजा, नृप । तांबापत्र - दानमें दी गई भूमिका सनद पत्र जो ताम्रकी चद्दर पर बना हुआ होता है । ब्रविदे कर । ३६७. दुजां - द्विजों, ब्राह्मणों । ३६८. अजमल - महाराजा अजीतसिंह | ३६. हरचंद - सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र । वार - समय । चहुंवे चारों । ३७०. हिंदवांणां - हिन्दुनों । दावाबंध - दावा करने वाला, शत्रु । दिलेसरां - बादशाहों। ग- स्वर्ग । गौ गया। अजमाल महाराजा प्रजीतसिंह | Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १२६ दिल्ली में महाराजा अभयसिंहरै राजतिलकरौ वरणण कवित्त-तदिन 'अभा'रै तिलक, साह स्त्रीहथां सधारे' । ते' अबींद मोतियां', अखित स्रीहथां अधारे । राज इंद्र राजेस, रटै स्रीमुख महाराजा । स्री कमळे सोहिया, रूप स्रीवंत ग्रहराजा । स्रीहथां साह सिरपाव सजि', असि' गज अविस्रीनग'' अथां'। स्रीहथां खाग खंजर सहित, सुजड़ बंधाए१३ स्रीहथां ।। १ दूहौ ४- इम विध' विध 'अभमाल'रौ, सझे कुरब ६ सुरताण । अति झळहळ तप अोपियो', भळहळ कमवां भांण ।। २ छंद पद्धरी तपवंत भूप'८ निज धाम तत्र । छज कनक सिंघासण चमर छत्र । दुतिवंत करे सन्नांन'६ दांन । विध राज रीत सासत्र'' विधांन ।। ३ पौसाक ऊंचने जवहर अपार । करि जोतवंत भूखण प्रकार । १ ख. अधारे। २ ग. ते। ३ ग. मोतीयां। *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। ४ ग. राजेसु। ५ ख. ग. रटे। ६ ख ग. माहाराजा। ७ ख. कम्मलि । ग. कंम्मलि। ८ ख. ग. सोहीया। ६ ख. ग. सझि। १० ख. अजि। ११ ग. भग। १२ ख. हयां। १३ ख. वधाए । ग. बंधाऐ। १४ ख. ग. दोहा। १५ ख. ग. विधि विधि । १६ ख. कुरव । १७ ख. ग. प्रोपीयौ। १८ ख. धूप। १६ ख. ग. संन्नांन । २० ख. ग. विधि। २१ ख. ग. सास्त्र । २२ ख. उंच । २३ ख. ग. जोतिवंत । १. तदिन - उस दिन । प्रभार - महाराजा अभयसिंहके। अबींद - अविद्ध, बिना छेदके । साह - बादशाह । अखित- अक्षत। स्त्रीहथां - अपने स्वयं के हाथों। अधारे - किया। राजेस - सुशोभित होता है । कमळे - शिर पर, शिरसे । सोहिया - सुशोभित हुआ । स्त्रीवंत - लक्ष्मीवान् । ग्रहराजा - सूर्य, भानु । बवि – दे कर। सुजड़ - कटार । बंधाए - धारण करवाए। २. प्रभमाल - महाराजा अभयसिंह । झळहळ - प्रज्वलित, देदीप्यमान । तप- ऐश्वर्य । . कमां - राठोड़ों। भांण – सूर्य । ३. तपवंत - तपस्यापूर्ण, ऐश्वर्यवान । तत्र - वहां । छज - सुशोभित हो कर । कनक - सुवर्ण, सोना। दुतिवंत - कांतिवान । सन्नांन - स्नान । विध-विधि, ढंग, कानून । . ४. ऊंच - बढ़िया, श्रेष्ठ । जवहर - जवाहरात । जोतवंत - ज्योतिवान । भूखण - प्राभूषण। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३० ] सूरजप्रकास *कसि जडित जवाहर खग कटार । तुररास जवाहर रूप तार ।। ४ सोवन्न' जवाहर अति सरूप । धरि जडित जवाहर पांणि धूप ।* जयजरी सिमांनां खंभ जड़ाव । ते रूप मेख रेसम तणाव ॥ ५ पग मंडा जरकसी वणि अपार । वरियांम मलपियौ जेण' वार । आवियौ' सिंहासण' राज इंद्र । वाजियौ सिंघासण क्रीत विद ॥६ अोपियौ'' छत्र जगमग उदार । चौसरा चमर उजळंग चार । प्रत जोतग सासत्र'' सुभ'२ प्रमाण १३ । अभिखेक दीध द्विजराज प्रांण१४ ।। ७ १ ग. सोवन्न । *ख. प्रतिमें ये पंक्तियां अपूर्ण हैं । २ ख. ग. मलपीयौ। ३ ख. ग. जेणि ! ४ ख. ग. प्रावीयौ। ५ ख. सिंहासणि । ग. सिंघासणि। ६ ख. ग. यंद। ७ ख. ग. व्राजीयौ। ८ ख. ग. सिंघासणि । ६ ख. वंद । ग. बंद। १० ख. वोपीयो । ग. औपीयो। ११ ख. सास्त्र । १२ ग. सुत । १३ ख. ग. प्रमाणि। १४ ख. ग. आणि । ४. जवाहर - जवाहरात । ५. स्रोन्न - सोना, सुवर्ण। सरूप - सुन्दर, मनोहर । पाणि - हाथ ( ? ) । धूप -- तलवार । जयजरी - ज़रीदार । सिमांनां - शामियाना। तणाव - वे रस्सियाँ जिनके सहारे तंबू खड़ा किया जाता है। ६. पग मंडा - वह कपड़ा या बिछौना जो प्रादरके लिए किसी महापुरुष या राजा महाराजाके . मार्ग में बिछाया जाता है। वरियांम - वीर, श्रेष्ठ । मलपियो - चला, छलांग भरी। ब्राजियौ - बैठा, सुशोभित हुअा। क्रीत - कीर्ति । वींद - दूल्हा, पति । ७. जगमग- चमक-दमकयुक्त । चौसरा - पुष्पहार, फूलोंकी मालाएँ । उजळंग = उज्ज्वल+ अंग-उज्ज्वल । जोतग - ज्योतिष। अभिषेक-अभिषेक । दीध-दिया। द्विजराजब्राह्मण । प्रांण – पा कर, बुला कर । Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १३१ पह' तिलक कीध कुंकम सु पांणि' । मोतियां अक्षत' चाढ़े प्रमाणि । जस जोतख' द्विज्ज' लिखंत जंत्र ।* मुख पढ़त महा द्विज' ° वेद मंत्र ।। ८ करि करि नौछावरि' द्रब्ब' केक । उछळंत हीर मोती अनेक । पन्नास४ लाल मांणिक अपार । ध्रवि जांणि जवाहर ५ सघण धार ।। ६ सहनाय मुरसलां रंग सवाद । नवबती'६ घोर मंगळीक नाद । सुभ' सुभड़ मंत्रि' कनि' लोक सब्ब' । दुति करति नजर घण रजदरब्ब३ ॥ १० वरदाइ२४ पढ़त गुण कवि वखांणि'५ । मंगळीक वयण मौसर प्रमाणि५६ । १ ख. ग. पौहो। २ ख. प्रमाणि। ३ ख. ग. अषित। ४ ग. चाढ़े। ५ ख. ग. जैत। ६ ख. ग. दुज । ७ स्व. ग. लिखत । *ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है जस जैत पत्र दुज लिखत जंत्र । ८ ख. ग. मुषि। ६ ख. माहा। १० क. द्वज। ११ ख. देव । १२ ख. ग. नवछावरि। १३ ख. द्रव। ग. द्रब। १४ ख. पनास । १५ ग. जवाहर । १६ ख. नववति । ग. नववत्ति । १७ ख. ग. सुजि। १८ ख. ग. मंत्री। १६ ख. करि । २० ख. स्रव । ग. श्रब्ब। २१ ख. ग. करत। २२ ख. रतन । ग. रजत । २३ ख. ग. द्रव्व । २४ ख. ग. वरदाय । २५ ख. ग. वषांण। २६ ख. ग. प्रमाण । ८ सु पाणि - सुन्दर हाथसे। जोतख - ज्योतिष। द्विज्ज - ब्राह्मण। जंत्र - यंत्र । ६. नौछावरि - न्यौछावर । द्रब्ब - द्रव्य, धन । हीर - हीरा। ध्रवि - वर्षा, बरमात हुई। जाणि - मानों, जैसे । सघण - सघन, घना । १०. सहनाय - सहनाई नामक वाद्य विशेष । मुरसला - वाद्य विशेषों। नवबती- नौबत । मंगळीक - मांगलिक। सुभड़- योद्धा। सब्ब - सर्व, सब । रज = रजत, चांदी। दरब्ब- द्रव्य, धन-दौलत । ११. परवाइ - जोश दिला कर, विरुदा कर। गुण - कीर्ति, यश । वयण - वचन, शब्द । मौसर - अवसर, मौका। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३२ ] सूरजप्रकास राजसी अंग पौसाक रूप । भळहळत जोत रवि जेम भूप ॥ ११ अंग तेजवंत सोभा अनंग । 'अजमाल' पाट' 'अभमल' अभंग । बरियांम' सीस' किय जेण' वार । आरती राज - प्रोहित उदार ।। १२ सोहियौ 'अभौ' इण विध सकाज । रघुवंस उजागर महाराज । वाधारण हिंदुसथांन' वांन । . 'अभमाल' जोड़ नह भूप ांन ।। १३ स्री भगवतगीता हित सधार । स्री क्रस्ण' अजन हूं कहै१४ सार । नर देह तण'५ मझ'६ हूं नरिंद । औ 'अभौ' जिको जोधांण इंद* ॥ १४ १ ख. पाटि । ग. पाटि । २ ख. वरीयाम । ग. बरीयाम। ३ ग. सीसि । ४ ग. कोय । ५ ख. ग. जेणि। ६ ग. बार। ७ ख. ग. सोहीयौ। ८ ख. ग. विधि । ६ ग. रघुवंसि । १० ख. ग. माहाराजा। ११ ख. ग. हींदुसथांन । १२ ग. जोड़ि। १३ ख. ग. कृष्न । १४ ख. ग. कहे। १५ ग. तणे। १६ ख ग. मझि। *ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पंक्ति इस प्रकार है औ जिको अभी जोधाण इंद । ११. झळहळत - देदीप्यमान होता है। रवि - सूर्य । १२. अनंग - कामदेव । अजमाल - महाराजा अजीतसिंह । अभमल - महाराजा अभयसिंह। अभंग - वीर, योद्धा । १३. सोहियो - सुशोभित हुआ। अभी - महाराजा अभयसिंह । उजागर - उज्ज्वल करने वाला। वधारण - बढ़ानेको। वान - कीर्ति, यश । जोड़ - बराबर, समान । प्रान - अन्य, दूसरा । १४. अजन - वीर अर्जुन । अभी - महाराजा अभयसिंह । जिको - वह। जोधाण इंद जोधपुरका स्वामी या राजा । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [१३३ सूरजप्रकास प्रम अंस सूर दाता प्रमाण । वित' दियण लियण' मुंहगा वखांण । लख समपण भांजण खळां लाख । सूरजकुळ सूरज तेर साख ॥ १५ थट नाथ फबै बळ पूर थाट । परताप चौगुणैः 'प्रजण' पाट । ....................... ................................. ॥ १६ कवित्त- चढ़ि प्रताप चौगुणै, पाट'' पिततणे' प्रभत्ती। असपत्ती अरधियो', पेखि पौरस छत्रपत्ती। भड़१४ तोरा'गज भिड़ज, जड़ित सोवन्न ६ जवाहर। गढ़ बगसै'८ नागौर'६, दुसह दहले' दावागर । साह हूं विदा हुय १ दळ सझे, नरिंद असौ फबियो २ नभौ । 'अजमाल' व्रहम लग पाखिया'३, इता नीर चाढ़े 'अभौ' ।। १७ १ ग. वित्त । २ ख. ग. लीयण। ३ ख. ग. मौहगा। ४ ख. लषां। ५ व. ग. सूरिजकुल। ६ ग. सूरिज। ७ ख. फते। ग. फबे। ८ ख. वल। ६ स्व. चौगणे । ग. चौंगणें । १० ख, ग. पाटि। ११ ग. तणें । १२ स्व. ग. अरघीयौ। १३ ग. पौरिस । १४ ख ग. भर। १५ ख. नोरा। १६ ख. सोवन । ग. सोवन । १७ ख, जवाहर । ग. जंवारह । १८ ख. ग. वगसे । १६ ग. नागौर । २० ख. दहवे । २१ ख. ग. होय। २२ ख. फवीयो । ग. फबीयो। २३ ख. ग. पाषीया । १५. प्रम - परम, विष्णु, ईश्वर। वित - धन, द्रव्य । दियण - देने वाला। लियण - लेने वाला । मुंहगा - महंगा । वखांण - कीर्ति, यश । लख - लाख, लक्ष । समपण - देनेके लिये । भांजण - नाश करनेको। १६. थट - वैभव, ऐश्वर्य । फबै - सुशोभित होता है। थाट - वैभव, सेना। अजण - महाराजा अजीतसिंह । पाट - राज्यसिंहासन । १७. पिततण - पिताके । प्रभत्ती- कीर्ति, यश । असपत्ती - बादशाह। अरधियो- आधे भागका मालिक, अर्द्ध शक्तिवान । पेखि - देख कर । पौरस - पौरुष, शक्ति । छत्रपत्ती - राजा। भड़ - योद्धा । तोरा - तोड़ा, रुपयोंकी थैली। भिड़ज - घोड़ा । सोवन - सुवर्ण, सोना। दुसह - शत्रु। वहले - भयभीत हुए। द वागर - शत्रु । साहहंबादशाहसे । विदा - प्रस्थान, कूच। प्रसौ- ऐसा। फबियौ - सुशोभित हुआ। नभौआकाश, नभ । अभौ - महराजा अभयसिंह । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३४ ] सूरजप्रकास महाराजा अभयसिंहरौ जोधपुर दिस श्रागमन २ 3 सभि दळ झळहळ सकळ, गयंद चढ़ियौ' गह धारे । हळाबोळ दळ हले, वाजि दुंदुभ' जिण वारे । धमस नाळ रजधोम', भळळ तप भंख कमळ झळ । धर थरसळ धरधरण, उतन दिस हलै' 'अभैमल' 1 ढळकत ढाल" मदधर धजां घंट घोर अग्राज घण । चढ़ियां मजेज होतां चमर, तेजपुंज 'गजीत 'तण ॥ १८ १० १२ 93 दाह" केक मभि" दुझल, 'अभौ' मुरधर मभि प्राए' मिळे बंधव १४ भड़ मंत्री, प्रजा आणंद सुख पाए" दाबागर गा दहलि, मिळे ६ सरणां गिर-भंगर । चित सयणां सुख है, कहै जस विरद कवेसर'" । करि ठाम ठाम वंदण कळस, सरस गांम निज गांम सुख । ह्वै नजर नरां सांमंद हरख, राका निस सांमंद रुख ।। १६ ४ ग. रजधौम । ५ ख . हले । १ ख ग चढ़ीयौ । २ ख. हळाबोळ । ३ ग. दुंदुभि । ६ ग. ढळकत । ७ ख ग ढाळ । ८ ग. मदभर । & ग. श्राग्राज । १० ख. ग. चढ़ीयां | ११ ग. दीह । १२ ग. सझि । १३ ग. श्रऐ । १४ ख बंधव । १५ ग. पाऐ । १६ ग. झळे । १७ ग. कवेसुर । - १८. झळहळ - तेजस्वी ( ? ) । सकळ - सब | गह गर्व । हळाबोळ - समुद्र, महासागर | बुंदुभ नक्कारा । धमस - • प्रहार । नाळ - घोड़ोंके टापके नीचे लगाया जाने वाला वृत्ताकार उपकरण । रज धूलि । धोम - धुंग्रा । झळळ - सूर्य । तप- प्रकाश, तेज । भंख - मन्द दिखाई देनेका भाव। कमळ झळ - कमल मुर्झा गये । धर - पृथ्वी । थरसळ - कंपायमान । धरधरण- शेषनाग । उतन - - जन्म-भूमि, वतन । दिस तरफ, और । अमल - महाराजा अभयसिंह । ढळकतां - लुढ़कते हुए । मदधर - हाथी । धजां - ध्वजाएँ । घंट - घंटा । घोर तेज । श्रग्राज - गर्जना, ध्वनि । घण - बहुत, मेघ । मजेज - शीघ्र । श्रगजीत - महाराजा अजीतसिंह । तण - तनय, पुत्र । I - १६. दाह - जलन । केक - कई, कुछ । दुझल - वीर । श्रभौ महाराजा अभयसिंह । मझि - मध्य, में। दावागर - शत्रु । दहलि - भयभीत हो कर । गिर-भंगर - गिरिकुंज या पहाड़ों की झाड़ी। सयणां हितैषियों । विरद- विरुद । कवेसर - कवीश्वर, महाकवि । ठांम - स्थान । वंदण - अभिवादन । सरस- आनन्दपूर्वक समुद्र । राका - पूर्णमासी । निसा रात्रि । रुख - तरह, प्रकार | सांमंद 1 - - Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १३५ जदि नजीक जोघांण, सभे मुक्काम सकाजा । अंग केसर वहौ अतर, मंडे डंबर महाराजा । मंडे गोठ जीमियौ', जोध कवि थाट जिमाए । करि जळ मळ कपूर, पांनि प्ररोगि प्रभाए । पौसाक ऊंच जवहर पहरि, कसि प्रावध" चढ़ियौ करी । बणि हले थाट सोभा वणी, इंद्र जेम ' प्रभमल्ल' री || २० ६ महाराजा अभयसिंहजीरा स्वागतरौ वरणण छंद हणूफळ उण वार" वणि नरइंद्र, 'अभमाल' वांणिक इंद्र | पौसाक ऊंच अपार, स्रब" गत्थर वणि सिणगार ॥ २१ गजबोल चित्रह ३ गात, सिर इंद्रधनुख सुभात । जरकसी के जरतार, पिंड भूल" फूल" अपार ॥ २२ 43 महाराजा श्रभर्यासह लवाजमारौ वरणण वणि रतन" हौदा वाधि, सोवनी रजत साधि | लवाजमारा हाथियांरौ वरणण कळवूत जरकस केक, नव मेघाडंबर" अनेक ।। २३ 19 १ ख. ग. जीमीयो । पांन । ६ ग. प्रभाऐ । २ ग. जीमाऐ । ७ क. श्रावस । । बार । ११ ख. ग. श्रव फूल । मेघडंबर | १५ ग. भूल । ४ ख. ग. नृमल । ५. ग. εग. हणुफाल । १० ग. ३ ख. ग. जरि । ८ख. ग. चढ़ीयौ । । ग. थाट । १३ ख. ग. चित्रत। १४ ग. १७ ग. कळबूत | १८ ख. मेघाडंवर । ग. १२ ख. ठाथ १६ ग. रजत । २०. जोध - योद्धा, वीर । थाट - समूह | तांबूल । आवध = आयुध - अस्त्रशस्त्र । महाराजा अभयसिंह | श्रभमल्ल - जिमाए - भोजन करवाये । पांनि - हाथ, करो - हाथी, गज । थाट - दल, सेना । २१. नरइंद्र - नरेन्द्र, राजा । श्रभमाल - - महाराजा अभयसिंह । वांणिक - कांति, शोभा । २२. गजबोल ( ? ) । जरकसी - सोने-चांदी के तारोंका काम, कलाबूतका काम । जरतार - सोने-चांदी के तारोंसे बना हुआ या गूंथा हुआ । फूल - फूलपत्तीकी चित्रकारी । २३. हौदा - प्रम्मारी । सोवनी - सोनेकी, स्वर्णिम । रजत - चांदीकी । श्रसाधि - ( ? ) मेघडंबर - एक प्रकारका छत्र विशेष । Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास पीलवानह प्रोप | के जड़ित जवहर कांम, धुर मेघडंबर धांम | लड़ लूंब मोतिय* लागि, जग जोति प्रति छवि जागि ' ॥ २४ पौसाक ऊंच अनोप, इम असवार गज उण वार', महमाय पूजा मांन, महरंग करि घंट घोर किलाव, वणि चमर बंध' वणाव ।। २६ भळहळत चित्रत भाल, ढळकंत पुज रंग रंगढ़ाल । १२ धज फरर नेजा धार, सभि तोग धर वणि मही- मुरतव" वाग, नौबत्ति धरहरत मदझर धार, वप सघण जिम बह १४ लंगर धर चख बोळ, क्रीड़ंत भसर लवाजमारा घोड़ांरौ वरणण ३ ख जाग । तदि नचत नाचतुरंग, प्रति चपळ नटवर अंग ॥ २६ १ ख. मेघडंबर | २ ख. ग. मोतीय । ४ ग. अनौप । ५ ग. श्रौष । ६ ग. उण बार । ७ ख. मोहोरंग । ग. मोहरंग । ८ ग. ज । ६ . बंध । १० ख. भलहलत । ११ ग. मही मुरतब | १२ ख. ग. नौवति । १३ ग. विस्तार । १४ ख. वोहौ । ग. बौहो । १३६ ] २४. जवहर- जवाहरात पंक्ति । छवि - शोभा । 9 देव दुज अणपार ।। २५ गज मसतांन । सवार ।। २७ धारक नाग । 93 विसतार ३ ॥ २८ कपोळ | मेघडंबर - मेघाडंबर । लड़-लूंब मोतिय- मोतियोंके गुच्छोंकी 1 T २५. ऊंच - श्रेष्ठ | अनोप - अनुपम, बढ़िया । पीलवांनह - महावत श्रोष - शोभा देती है । दुज = द्विज - ब्राह्मण । श्रणपार - असीम, अपार । २६. महमाय - महामाता, देवी, दुर्गा। महरंग - ( ? ) । मसतांन- मस्त । करिहाथी । घंट - घंटा जो हाथीकी भूल के साथ लटकता रहता है। किलाव - हाथी, ऊँट, कुत्ते आदि गलेका पट्टा, किलादः । चमर बंध - ( ? ) । २७. भळहळत - देदीप्यमान । भाल - ललाट । ढळकत - लुढ़कती है। धज - ध्वजा फरर - - छोटी-छोटी झडिएँ जो भालोंके साथ लगी रहती हैं । नेजा - भात्रा । तोग - मुगलकालीन बादशाहोंका ध्वज विशेष जिस पर सुरा गायके पूंछके बालोंके गुच्छे लगे रहते थे । २८. मही- मुरतव - यवन बादशाहोंके आगे हाथी पर चलने वाले सात फंडे जिन पर मछली और ग्रहों प्रादिकी आकृतियाँ होती थीं, माहीमरातिब । नौबत्ति - नोबत, नगाड़ा विशेष | धारक - धारण करने वाला | नाग - हाथी । धरहरत - ध्वनि विशेष । मदर हाथी । बप वपु, शरीर । सघण - घना । २६. लंगर - श्रृंखला, जंजीर । चख - चक्षु, नेत्र । बोळ - लाल । क्रीड़ंत - क्रीड़ा करते हैं। तुरंग - घोड़ा । चपळ - चंचल । नटवर - श्रेष्ठ नट ( जैसे फुर्तीले ) । Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १३७ सझि रजत सोवन' साज, तारीफ छबि' तह ताज । रेसमी मुखमल रंग, सकळाति ऊच' सुचंग ॥ ३० जरतार कस गुलजार, दमकंत घण रंगदार । बादळां-याळ वणाव', सझि भळक वीज सिळाव ॥ ३१ किलंगी स तुररा केक, असि सीस फबत अनेक । गरकाब केसरि अंग, उच्छाह अंग उमंग ॥ ३२ पौसाक जवहर पूर, जगचख्य जोति जहूर । वां' तुरां पर उणवार", असवार इसा अपार ॥ ३३ ऊंटारौ वरणण जर वफत' झूल जमाज', सकळात मुखमल साज । सीसम्म कूचिय'४ सांम, करि दंत वेलिय'५ काम ॥ ३४ १ ख. ग. सोवण। २ ख. ग. छवि। ३ ग. झंच । ४ क. वाळदा याळ । ५ ग. बणाव। ६ ख. गरकाव । ७ ख उछाह । ग. उत्छाह। ८ ख. जबहर । ग. जंवहर। ६ क. वा तुरां। १० ग. उणबार । ११ ग. बफत । १२ ख. जमाल । १३ ख. ग. सीस्सम । १४ ख. ग. कूचीय। १५ ख. ग. वेलीय । ३०. रजत - शोभा देता है, चांदी। सोवन - सुवर्ण, सोना। साज - घोड़े, ऊँट प्रादिके चारजामाके उपकरण । सुचंग – सुन्दर, श्रेष्ठ । ३१. कस - ( ? )। गुलजार - यहां गुलनार शब्द होना चाहिए जिसका अर्थ एक प्रकारका कसीदा होता है। दमकंत - चमकते हैं। बावळा-याळ - घोड़ेकी गर्दनके बालों पर चांदी या सोनेके चमकीले तार गूंथे हुए हैं, जो इस प्रकार चमकते हैं मानों बिजली चमकती हो। सिळाव - बिजलीकी चमक, दमक । ३२. किलंगी - एक प्रकारका प्राभूषण विशेष जो शिर पर लगाया जाता है। तुररा एक प्रकारका प्राभूषण विशेष । असि - घोड़ा। फबत - शोभा देते हैं। गरकाब डूबा हुआ । उच्छाह - उत्साह । उमंग - जोश । ३३. जवहर - जवाहरात । जगचख्य = जगत् चक्षु - सूर्य । जोति - प्रकाश । जहूर___जुहूर, प्रकट, जाहिर होना। वां - उन । तुरां - घोड़ों। ३४. जर - स्वर्ण, सोना । जर वफत - सोने-चांदीके तारोंसे बना कपड़ा, जरबफ्त । झूल पाखर। जमाज - ऊँट। सकलात - प्रोढ़नेका वस्त्र (?)। सीसम्म - एक प्रकारका वृक्ष, शीशम । कूचिय - ऊँटका चारजामा। करि - हाथी । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १३८ ] सूरजप्रकास अबनोस' चंदण अंग, करि रूप मोर कुरंग । कठ रजत मझि छवि कोर, चित्र कनक हंस चकोर ॥ ३५ दहुं तंग रेसम दीध, कसणास' रेसम कीध । सोभंत स्रीय सकाज, ता सीस कुल्लह ताज ॥ २६ नक्केल सुरंग नराट, पचरंग डोरिय' पाट । तक्खी स रंग महताव', जरताव पंख जुगाव ॥ ३७ पचरंग मौहरिय* पेस, वणि लूंब रेसम वेस' । अति रूप जूंग अपार, कुंझरा'१ जांणि कुमार ॥ ३८ रेसम्म १२ सांमळ रंग, जकसेस घूघर जंग । पल पंच दस धव पाय, जोजन्न'3 ऊपरि जाय ।। ३६ वां पीठि चह१४ असवार, दे खबरि१५ खब्बरदार ६ । दति साज जिल्लहदार, कलंगेपसर'हौकार ॥ ४० १ ग. प्रचतोरा। २ ग. कसणासे। ३ ख, डोरीय । ग. दोरीय। ४ ख. तषीस । ग. ताषीस । ५ ग. महताब। ६ ग. जरताब। ७ ग. जुगाब। ८ ख. मौहौरीय । ग. महोरीय । १ ख. लूंव । १० ख. पेस । ग. बेस। ११ ख. कुंझरा । ग. कूझरा। १२ ख. ग. रेसम । १३ ख. ग. जोजन । १४ ख. चहौ । ग. वहौ। १५ ख. देषवरि । ग. देषबरि। १६ क. षच्चरदार। १७ ग. कलंगेसपर । ३५. प्रबनोस - अबनूसका वृक्ष । कुरंग - हरिण । कठ - काष्ट । रजत - चांदी । कनक - स्वर्ण, सोना। ३६. तंग - जीन कसनेका तसमा । कसणास - फीता । कुल्लह - घोड़ा विशेष, संभव है यह शब्द कुलाह हो जिसका अर्थ भूरे रंगका घोड़ा होता है और जिसके पैर गांठसे सुमों तक काले होते हैं अथवा घोड़े के शिरका आभूषण विशेष । ताज-घोड़ा। ३७. नक्केल -ऊँटके नाकमें डाला जाने वाला उपकरण विशेष । सुरंग - लाल, सुन्दर । नराट - बहुत । पचरंग - पांच रंगका। डोरिय - रस्सी या डोर। पाट - रेशम । तक्खी - एक प्रकारकी गद्दी जो ऊँटके चारजामाके नीचे रखी जाती है। महताव - चांद, चंद्र ( ? ) । जरताव – ( ? )। पंख - ( ? )। जुगाव - ( ? )। ३८. मौहरिय-ऊँटको नाकसे बाँधने की रस्सी विशेष । लंब - गुच्छा। चूंग - ऊँट । कुंझरा कोंच पक्षी। वि.वि. - सुन्दर ऊँटको प्राय: "कुरझरौ बच्यो है" ऐसा कह कर पुकारते हैं। ३६. जकसेस - ऊँट । घूघर - घूधरियां। जंग - ( ? ) । धव - दौड़। जोजन - योजन । ऊपरि - अधिक, विशेष । ४०. वां- उन, उनकी । चह - इच्छा करता है, चाहता है। खबबरदार - संदेश देने वाला, सूचना पहुँचाने वाला । जिल्लहदार - कांतियुक्त, चमकदार । कलंगेपसर - ( ? ) । होकार - ध्वनि विशेष ।। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १३६ सझि तीन हाथ सलंब, कर आबनूंसिय' कंब । करहास धारक केक, आवत जात अनेक ।। ४१ कोतिल्ल' बह' केकाण, पांडवा दोरिय पांण । भळहळत साज भळूस, झड़फिया' पोस झळूस ॥ ४२ नरयंद हालत नग्रि, उछटंत कोतिल अनि ।। कहता बरोबर कोर, जसवल्ल हाक सजोर ॥ ४३ करि कनक छड़ियां'• केक, अनि छड़ी रूप अनेक । जवहार हीर जड़ीस, छाजंत हाथ छड़ीस ॥४४ इम चोपदार उदार, अत मोल' करत अपार । बाधारी वरणण तालंग घोर तबल्ल'', सहनाय नद मुरसल्ल ॥ ४५ वाजंत कळहळ वाज, गाजंत बह गजराज । सनमुक्ख'४ मिळण' सकाज, रचि नजर बह महाराज' ।। ४६ १ ख. पावनूसी । ग. पाबनूसी। २ ख. कोतिल । ग. कौत्तिल । ३ ख. वहौ । ग. बहो। ४ ख. ग. दोरीय । ५ ख. ग. झडफीया । ६ ख. नरयंद। ग. नरीयंद। ७ क. उवटंत । ८ ख. वरोवर। ६ क. कसवल्ल । १० ख. ग. छड़ीयां। ११ ग. माम । १२ ख. तवल्ल । १३ ख. ग. बौहो। १४ ख. सनमुष्प, ग. सनमुष्षि। १५ ख. मिलन । ग. मिलत। १६ ख. वहौ । ग. बहो। १७ ख. माहाराज । ४१. सलंब -- लम्बाई सहित, लम्बायमान। कर - हाथ । आबसिय - पाबनूसका वृक्ष । वि.वि. - आबनूमका वृक्ष बहुत ही मजबूत होता है। इसकी छडिएँ प्रसिद्ध होती हैं । कंव - छड़ी। करहास - ऊँट । धारक – धारण करने वाला, रखने वाला। ४२. कोतिल्ल - राजाकी सवारीका घोड़ा । केकाण - घोड़ा। पांडवा : पांवडा - डगकी दूरीका फासिला। भळहळत - देदीप्यमान, चमकदार । साज - जीनके उपकरण । झळूस - ( ? ) । झड़फिया - तेज गतिसे चलाये । ४३. नरयद - नरेन्द्र, राजा। ननि - नगर । उछटत - छलांग भरते हैं। अग्नि-अगाडी। ___ जसवल्ल - यश (?)। हाक - अावाज। ४४. करि - हाथमें । कनक - सुवर्ण, सोना । अनि - अन्य । रूप -- चांदी, रौप्य । जवहार - जवाहरात । हीर - हीरा । जड़ीस - जटित। छाजत - शोभा देती है। छड़ीस - छड़ी। ४५. तालंग - वाद्य विशेष । तबल्ल - वाद्य विशेष । सहनाय - सहनाई नामक वाद्य । नद - ध्वनि, नाद । मुरसल्ल - वाद्य विशेष । ४६. वाजंत - ध्वनि करते हैं। कळहळ – कोलाहल । वाज - घोड़ा। गाजंत - गर्जना करते हैं। गजराज - हाथी । सकाज - लिए। नजर - भेंट । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४० ] सूरजप्रकास आवंत लोक अपार, वणि उछब बह' जिणवार । दरसणारथी प्रजारा समूहरो वरणण बह नारि नर जुथ बेह, *पावंत लोक अछेह* ॥ ४७ स्रंगार विधि विधि साज', कमधज्ज दरसण काज । हुय" जांण समंद हिलोळ, लख लोक हाल किलोळ ॥ ४८ चालंत इम चतुरंग, रंगराग बह रसरंग । देखिवा जिसौ दुझाल, उणवाररौ' 'अभमाल' ॥ ४६ त्रिय जूथ मिळि बह तांम, विधि रूप अति छवि वांम। सझियांस सोळ स्रंगार'५, चित उछब मंगळचार१६ ॥ ५० प्रफुलंत वदन प्रवीत, गावंत रस रंग गीत ।। महाराजा अभयसिंहजीरौ वधावी त्यां मांहि त्रिय'८ सिरताज, सोभाग भाग सकाज ।। ५१ सुभ चिहन सील सुचंग, अति रजत भूषण अंग । सिर कळस ६ धरियां सोय, हरखंत अति चित होय ।। ५२ १ ख. वौहौ । ग. बहो। २ ख. जिणिवार। ३ ख. वौहो । ग. वहौ। *ख. प्रतिमें यह अंश– 'पावतंत लोक लोक अछेह'। ४ ख. शृगार। ५ ग. साजि । ६ व. ग. काजि । ७ ख. ग. होय। ८ ख. जांणि। - क. लोल। १० ख. ग. बहौ। ११ ग. उणबाररौ। १२ ग. त्रीय । १३ ख. ग. बौहो। १४ ग. वधि । १५ ख. ग. शृंगार। १६ ग. मंगळाचार। १७ ग. मांहि । १८ ख. ग. त्रीय । १६ ख. कल । २० ख. ग. धरीयां । ४७. जुथ - यूथ, समूह । अछेह - अपार, असीम ।। ४६. विध विध - तरह-तरहके । साज - सजा कर । काज - लिये । जांण - मानों। हिलोळ - विलोड़ित, तरंगित । किलोळ - क्रीड़ा । ४६. चतुरंग - चतुरंगिनो सेना, सेना । दुझाल - वीर । ५०. त्रिय - स्त्री। जूथ = यूथ - समूह । छबि - सुन्दरता । वाम - स्मी। मंगळचार - मांगलिक काम । ५१. प्रफुलंत - प्रफुल्लित होते हैं । वदन - मुख । प्रवीत - पवित्र। रस - प्रानन्द । ५२. चिहन - चिन्ह । सुचंग -- सुन्दर । रजत - शोभा देते हैं । Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १४१ वर रजत ' कुंभ विसाळ, दुतिवंत मभि अंब डाळ | दांहि हथ अंब डाळ, रति फूल फळित रसाळ ॥ ५३ सुजिवांम भुज समराथि, हरियाळ दोवज' हाथि । करि मंगळीक करग्रि, उद्रिश्रास पुत्र मुख अग्रि ॥ ५४ इम भूप सनमुख श्राय, वर तरुणि कळस वंदाय । कुंभ मंगळीक सकांम, वंदेस कर वरियांम ॥ ५५ द्र रूप भरि दूझाल, इम प्रावियो " 'अभमाल' । राजेस उच्छब" रीध, करि वंदण तोरण दीध ॥ ५६ बाजाररौ वरणण बहु चित्रहट " बाजार १४, सझियास १५ सिणगार । મેં 3 बहु १६ ૨. ५ ग. सन श्रवछाड़ जरकस प्रोप, अति जोत " रंग अनोप ॥ ५७ लहरीस कोर हुलास, तह ताज पड़दा तास । रवि किरण रूप रसाळ, वादळां" बंदरवाळ ।। ५८ १ क. रजन । २ ख. ग. हरीयाळ । ३ ग. दोबज । ४ ख. ग. भूष । मुषि । ६ ग. बंदाय | ७ ख ग करि । ८ग भूप । εख. ग. भरे ग. श्रावीयौ । ११ . उछ्व । ग. उत्छव चित्र | १४ ख. बाजार । ग. वजार । १७ ख. ग. जोति । १८ ख. ग लहरीक । २१ ख. वांदरां । ग. वादळां । । १० ख. । १२ ख. वहौ । ग. बहौ । १३ ख. ग. १६ ख. चोप । १५ ख. बौहौ । ग. बही । १६ ख. ग. ते है । २० ख. ग. किरणी । १८ श्राम वृक्षकी ५३. रजत - चांदी, रौप्य । कुंभ घट दुतिवंत द्युतिवान । अंब डाळ टहनी । दीवज- दूर्वा । ५४. वांग - बामा । समराथि - समर्थ, शक्तिशाली । हरियाळ - हरित । मंगळीक - मांगलिक । करग्रि - हाथका अग्र भाग । उद्रिग्रास ( ? ) । ५५. वर तरुण - सौभाग्यवती स्त्रियं । कळत वंदाय - कलशका अभिवादन करवा कर के । वरियां - श्रेष्ठ । ५६. दुकाल - वीर योद्धा । श्रभमाल - महाराजकुमार अभयसिंह । राजेस - महाराजा । उच्छब - उत्सव | रोध- प्रसन्न हो कर । वंदण - नमस्कार, अभिवादन । ५७. सझियास - सजाये गये । प्रवछाड़ - ढकनेका वस्त्र । जरकस - सोने-चांदी के तारोंसे बना हुआ कपड़ा | अनोप - सुशोभित हुए । ५८. लहीरस - लहरदार या लहर युक्त । हुलास हर्ष, प्रसन्नता । तह - नीचेका भाग । हाज - शाही मुकुट । रवि सूर्य । तास • कपड़ा विशेष । रसाळ - मनोहर । वादळांचांदी या सोनेका चिपटा चमकीला तार, कामदनीके तार बंदरवाळ - फूल-पत्तों या कपड़े की झालरी जो मंगल-सूचनार्थ द्वार पर या खंभों पर बांधी जाती है, तोरण । - Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४२ ] सूरजप्रकास सुनहरिय' तार' सकाज. रूपहरिय' जोति विराज । भळहळत इम पुर भूप, रवि चंद्र किरण सरूप ॥ ५६ विच हट्ट हट्ट विछात, दुतिवंत अति दरसात' । भर मुखमलां पर भार, पसमीस बाब' अपार ॥ ६० करि जाजमां पर कीध, दुल्लीच तकिया दीध । गीदवां पर गरकाब, बह ऊंच मुखमल बाब' ॥ ६१ धनवंत कोड़ियधज्ज', सुजि दीप'२ लाख सकज्ज' । दुतिवंत दौलतिदार, पौसाक तास अपार ॥ ६२ नखसिक्ख भूखण नौख, जवहार'५ कंचण जौख । उण विछायत अणथाह, स्रीवंत सोभ' अथाह' ॥ ६३ जगमगत इम बह ८ जोति, अति जांण ६ भांण उदोति । धर तरणि जांणिस धारि", साजोति तण' सिणगार२२ ॥ ६४ १ ख. ग. सुनहरीय। २ ग. तार । ३ ग. रूपहरीय । ४ ग. किरणि । ५ ख दुरसात। ६ ख. वाव । ७ ग. तकीया । ८ ग. गीदवा । ख. बहौ । १० ख. वाव । ११ ख. ग. कोड़ीयधझ्झ। १२ ख. दीय। १३ ख. ग. सकझ्झ। १४ ख. ग. नषसिष्ष । १५ ग. जवहार । १६ ख. ग सोभत । १७ ख, ग. साह। १८ ख. वहीं । ग. बहो। १६ न. जांणि। २० ख. ग. धार । २१ ख. ग. तणां। २२ ख. ग. सिंगार। ५६. सुनहरिय - सोनेके । रूपहरिय - रूपके । भळहळत - चमकते हैं, देदीप्यमान होते हैं। ६०. विछात - विछायत । दरसात - दिखाई देती है। पसमीस - एक प्रकारका बढ़िया ___ ऊनी कपड़ा, पश्मीन । बाब - बाप्त, बुना हुआ, वस्त्र, कपड़, प्रकार तरह । ६१. दुल्लीच - दुलीचा, एक प्रकारकी बिछायत । गीदवां - गाल तकिये विशेष । ६२. कोडियधज्ज - करोड़पति । दौलतिदार - धनाढ्य, संपन्न । ६३. नौख - श्रेष्ठ। कंचण - सुवर्ण, सोना । जौख - प्रानन्द, हर्ष। अणथाह - अपार, असीम । स्त्रीवंत - श्रीमान्, लक्ष्मीवान । सोभ - शोभा, कीर्ति । अथाह - अपार, असीम। ६४. जांण - मानों। भाण - सूर्य । उदोति - उदय होता है। तरणि - सूर्य, तरुणी । साजोति - सज्योति । Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास । १४३ आवंत पह' 'अभमाल'. देखंत जोख दुझाल । पर हट्ट अट्ट अपार, आवास चित्र उदार ॥ ६५ *सझि वांम सोळ सिंगार, भळकंत वोज सिलार । छक पूर जोबन' छाक, तन रूप मनि मुसताक* ॥ ६६ . सझि आभ्रणेस छतीस, तनि लछण सुभ जुगतीस । प्रजारा महाराजारा दरसण करणा निरखंत म्रिग बह' नैण, वप कनक कोकल' वैण ॥ ६७ हरखंत मुख जुतः हास, आणंद चंद उजास । निरखंत बह' वर नार"", मिळि गोख गोख मझार ॥ ६८ सुभद्रस्ट करि 'अभसाह', निरखंत पुर नरनाह । उच्छाह४ घर घर एम'५, जळ छौळ सागर जेम ॥ ६६ १ ख. ग. पौहौ। * प्रस्तुत पंक्तियाँ ख. प्रतिमें इस प्रकार मिली हैं नवकाम झलहल नौष, गुलदार चिग वही गोष । वां चढ़ी रूप उदार, सझि वाम सोळ सिंगार ।। २ ख. ग. जोवन । ३ ख. छजि । ग. छवि। ४ ख. ग. तनि । ५ ख. वौहौ। ग. बहौ। ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है- निरषंत बही मृग नैण । ६ ख. वेप । ग. वपि । ७ ख. ग. कोकिल। ८ ग. जुच। ६ ख. आनंद । ग. प्रांनंद। १० ख. ग. पोह। ११ ख. ग. नारि। १२ ख. ग. मंझरि। १३ ख. सुभदृष्टि । ग. सुभदृष्ट। १४ ख उछाह । ग. उत्छाह। १५ ग. ऐम। ६५. अभमाल - महाराजा अभयसिंह । जौख - अानन्द, हर्ष । दुझाल - वीर, योद्धा । हट्ट - दुकान । अट्ट - महल, अट्टालिका। आवास - भवन । ६६. सभि - सज कर। वाम - स्त्री। सोळ सिंगार - सोलह शृगार । भळकंत - चम___ कती है। वीज - बिजली। सिलार - बिजलीकी चमक । ६७. प्राभ्रणे - आभूषणोंमें। तांनि - उनके । जुगतीस - बत्तीस । वप - वपु, शरीर । कनक - सोना स्वर्ण । वैण - नचन, वाणी । ६८. मुख जुत हास - हास्ययुक्त मुखसे । गौख – गवाक्ष, झरोखा । ६९. प्रभसाह – महाराजा अभयसिंह । नरनाह - नरनाथ, राजा। Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४४ ] सूरजप्रकास निज नगर एम' निहारि', आवियौ' राज दुवारि । उण ठौड़ लोग' अनंत, मन राज छक मदमंत ॥ ७० आभूखणरौ वरणण सिरपाव जरकस साज, तुररा ज सिर तह ताज । सुतसीप स्रवणां सोहि, महि लाल सोव्रण मोहि ॥ ७१ करि कड़ा सोवन काज, सोवन्न' प्रावध'' साज । वणि कंठ'२ सोवन वेस, सोबन्न१३ जगि पवित्रेस ॥ ७२ धुगधुगी सोवन्न'५ धार, जिण वीच जड़त जुहार'८ । सोवन्न' पन्न' सधीर, हद जड़त'' सोवन २ हीर ॥ ७३ वीट सी3 सोवन वेल, मांणक्क सोवन मेल । सुजि करां इम सिंणगार, दुति लहत बह ५ दरबार ॥ ७४ १ ग. ऐम। २ ख. निहार। ३ ख. ग. प्रावीयौ। ४ ख. दुवार। ग. दरबारि । ५ ख. ग. लोक । ६ ग. साइझ। ७ ख. ग. सिरि। ८ न. ग. मझि। ६ ख. ग. सोवन। १० ख. ग. सोवन। ११ ख. पावत । १२ ख. ग. कठि। १३ ख. सोवन । घ. सोवन। १४ ख. जग। १५ ग. सोवन । १६ ख. ग. जिणि। १७ ख. ग. जडित । १८ ख. जह्वार । जंह्वार। १६ ख. ग. सोवन्न। २० ख. पन । ग. पंन्न । २१ ख. ग. जड़ित । २२ ग. सोवन । २३ ग. बीटीसं । २४ ख. ग. माणिक । २५ ख. ग. वौहो। ७०. निहारि -- देख कर। राज दुवारि - राज्यद्वार पर। छक - तृप्त । मदमंत - मस्त, मदोन्मत्त । ७१. जरकस - सोने-चांदीके तारोंसे बुना कपड़ा। तुररा - सुनहरे तारोंसे बना ग्राभूषण जो शिरकी पगड़ी पर लगाते हैं। तह – नीचे । सुतसीप - मोती। स्रवणां - कानोंमें। सोहि - शोभा देते हैं। महि - ( ? ) । सोवण - सुवर्ण, सोना । ७२. कड़ा-वलय । प्रावध-प्रायुध, अस्त्र-शस्त्र । साज - अस्त्र-शस्त्रोंकी सजावटके उप करण । बेस - प्राभूषण। जगि पवित्रेस - यज्ञोपवीत । ७३. धुगधुगी- एक प्रकारका आभूषण विशेष । जड़त - जटिल । जुहार - जवाहरात । पन्न – पन्ना नामक पिरोजेक जातिका रत्न विशेष । हीर - हीरा । ७४. वीटो - मुद्रिका । सोवन मेल - एक प्रकारका आभूषण । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १४५ सूरजप्रकास १० वणि एम' छबि विसतार, गढ़नाथ खिदमतगार । सहचरीय रंभ समान, गावंत मंगळ गांन ॥ ७५ सोभंत रूप सरीर, चंद जांणि कड्य* चीर । इम कुंभ सीस' प्रधारि, उणहीज कुंभ उणहारि ॥ ७६ गजगमणि सोळ सिंगार, क्रत "कास्स भूंब'' प्रकार । अति रंग उच्छब" गाइ' ', ' अभमाल' सनमुख श्राइ ॥ ७७ उही विध सुत प्रस्स, सिर" अंब डाळ कळस्स । इकहत्थ'" रूप सु अच्छ", मभि एक हथ दधि मच्छ१ ।। ७८ कुंभ सुपह बंद कीध, द्रब ३ रजत मभि धर दीध । धरथंभ निज गढ़ धांम, वंदि* तोरणां* वरियांम ॥ ७६ १४ १६ .१६ २० ૧૬ १ य. ऐण । २ ख. ग. छवि । ३ ख. ग. षिजमतिगार । ४ ख. कंठीय । ग. कट्टीय । क. कृतक । ६ ग. ऋत१२ ख. ग. गाय । १६ ख श्रव । ५ ख. ग. इक | ६ ख. ग. सीसि । ७ ग. गगमणि । गास । १० ख. ग. भूल । ११ ख उछ्व । ग. उत्छ । १३ ग. समुषि । १४ ख ग विधि | १५ ख ग. सिरि । १७ ख. ग. इकहत्थ । १८ ख छ । ग. अत्छ । १६ ग ऐक । २० ख. ग. हथि । २१ ख. मछ । ग. मत्छ । २२ ख. वंदण । ग. बदन । २३ ख. ग. द्रव | २४ ग. बंदि । २५ ख. ग. तोरणा । ७५. खिदमतगार - सेवक, नौकर । सहचरीय- सखी, सहेली, पत्नी, भार्या । रंभ रंभा नामक अप्सरा, अप्सरा । मंगळ गांन - मांगलिक गायन । 93 ७६. सोभंत - शोभा देते हैं। चंद चंद्रमा । जांणि - मानों । कुंभ - कलश । प्रधारि - धारण कर के । उणहारि - सूरत ( ? ) - ७८. उणमच्छ - (?) 1 ७६. सुह - राजा । वंदण - अभिवादन । कीध दीघ - दिया । धरथंभ - धरास्तंभ, राजा । श्रेष्ठ । ७७. ऋतकास्स - कृतिका नक्षत्र जिसकी प्रायः युवतियोंको उपमा दी जाती है । भूंब - समूह | रंग - आनन्द, हर्ष । उच्छब • उत्सव । श्रभमाल - महाराजा अभयसिंह | — किया । द्रब- द्रव्य । रजत - चांदी | बंदि - नमस्कार कर के ! वरियांम - Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४६ ] सूरजप्रकास १ इळ चढ़े पह' उणबार े, पह' चढ़े दुरंग पगार । पगमंडा हीर पसम्म, नवरंग वांणि नरम् ॥ ८० असलूफ रंग उजास खित मंडे मुखमल खास । प्रतिलूंब छिब" उणवार, दुति जरी " छापादार ||८ धर फरस जेम घरीस, रंग लहरदार जरीस । धर सिरै राजस धांम, तासरा" धरिया तांम ॥ ८२ पग मंड थांन अपार, हिक हिक्क मोल हजार । रंग विछाइत* अनिराज, दुति इसा पायंदाज ॥ ८३ सिर" मौहरि चौक" सिंगारु, चौ पसम गिलमां चारु । १३ १६ १८ af कनक जबहर वंस, कसि हीर डोरि कंसंस || ८४ इण वणे रूप उमंग, समियांन जरिय६ सचंग | बह" कासमीर बिलौर, अनि रंग छबि धर और ।। ८५ વ .७ ४ ख. १ ख. ग. पोहौ । २ ख. उणवार । ग. ऊणबार । ३ ख पहौ । ग. पौहो । परसंम । ग. पत्संग । ५ ख. ग. वणे । ६ ख. नरंम । ग. नरंग । ७ ख. प्रतलू । ग. अतल्लस । ख. ग. विछि । ६ ख. ग. श्रणपार । १० ख. ग. जरीय । ११ ग. तसपरा । १२ ख. ग, धरीया १३ ग. हिक्क । १४ ख. विछायत । ग. विछायति । १५ ख. ग. सिरि । १६ ख. ग. मोहोरि | १७ ख. ग. चोकि । १८ ख. ग. इम । १९ ख. जरीय । ग जरीप २० ख. ग. बहौ । २१ ख. ग. विलोर । www ८०. इळ परम । ८१. सलूफ - ( ? ) । खित-क्षिति, पृथ्वी । प्रतिलूब ( ? ) । छिब - शोभा । दुति - द्युति, कांति । छापादार - छापयुक्त । - | ८२. धर फरस – परशु धारण करने वाला ( ? ) | धरोस - राजा ( ? ) । जरोस - ( ? ) सिरै - श्रेष्ठ । राजस धांम राज भवन । तासरा - सुनहरे तारोंके जड़ाऊ कपड़े के । ८३. विछाहत - बिछानेका कपड़ा, जाजम आदि । श्रनिराज - अन्य राजा । पायंदाज - फर्श के किनारेका वह मोटा कपड़ा जिस पर पैर पोंछ कर अन्दर जाते हैं, पैर पोंछनेका कपड़ा । ८४. मौहरि - गाड़ी । चौक सिंगारु - जोधपुरके गढ़के अन्दरका स्थान विशेष श्रृंगारचौकी। चौ- चारों चारों ओर । गिलमां- बहुत मोटा मुलायम गद्दा या बिछौना । चारु - श्रेष्ठ | कनक - सुवर्ण, सोना । जवहर- जवाहरात । हीर डोरि - वे रस्सिएँ जिनके हीरे जड़े हुए होते हैं । कंसंस - कसते हैं । इला, पृथ्वी । पगार ( ? ) । पसम्म बढ़िया बहुमूल्य ऊनी वस्त्र विशेष, २ - - सचंग - ८५. उमंग - जोश । समियांन शामियाना, बड़ा तंबू । जरिय- जरीके । सुन्दर | बिलौर - एक प्रकारका स्वच्छ पत्थर जो पारदर्शक होता है, स्फटिक । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १४७ मंडि जाब' ज्वाब मतंग, संग असम सरवर संग । तै' वीच सरवर' तत्र, छजि तखत जवहर छत्र ।। ८६ कथ खमां खमां कहंत, गजमसत जिम गहतंत । दुति एम' हूंत दुमाल, प्रावियौ' पह अभमाल ॥ ८७ महाराजा अभयसिंहजीरै दरबाररौ वरणण लख लोक गहमह लार, क्रत रागरंग नतकार । अति करत सुकवि असीस, सिणगार-चौकी' सीस५ । ८८ चढि एण'' विध' चक्रवत्ति, तदि ब्राजियोस तखत्ति १६ । चौसरा'" चमर सचार'८, वणि झपट वारंवार ६ ॥ ८६ नवछावरेस सनेह, मोतियां मंडियौ' मेह । दहं मिसल थाट दुबाह, गहतंत भड़ दरगाह ॥६० १ ख. ज्वाव । ग. ज्वाब। २ ख. ते। ३ ख. ग. जगमग । ४ ग. जंवहर। ५ ग. ऐम। ६ ख. ग. भावीयौ। ७ ख. ग. पौहो। ८ ख. ग. कृत। ६ ख. ग. नतकार। १० ख. चावकी। ग. चवको। ११ ख. सीष। १२ ग. ऐण। १३ ख. ग. विधि । १४ ख. ग. चक्रवति । १५ ख. ग. व्रजीयौस । १६ ग. तिषत्ति। १७ ख. चोसरा । १८ ख. ग. सचारु । १६ ग. वारंवार। २० ख. ग. मोतीयां। २१ ख. ग. मंडीयौ । २२ ख. ग. दुवाह। व कर. बना कर। जाब ज्वाब-जा-ब-जा-स्थान-स्थान, जगह-जगह । मतंग - हाथी । संग असम = संगे-प्रसवद - एक प्रकार का काले रंगका पत्थर विशेष । सरवर - ( ? ) । छजि - सुशोभित कर के । ८७. खमां खमा - राजा महाराजाओंके सामने उच्चारण किया जाने वाला शब्द जिसका अर्थ "क्षमा करने वाले" हैं। गज गहतंत - मस्त हाथीके समान गर्वसे पूर्ण हैं । दुति - धूति । दुमाल - वीर । अभमाल - अभयसिंह । ८८. गहमह - भीड़, समूह । लार - पीछे। क्रत - करते हैं, करते हुए। नतकार - नृत्य कार । असीस - प्राशीश ! सीस - पर, ऊपर । ८६. चक्रवत्ति - चक्रवर्ती, राजा। वाजियोस - शोभायमान हुआ, प्रासीन हुमा । तखत्ति - तख्त, राज्य सिंहासन। चौसरा- पुष्पहार । चमर = चमर - चंवर । सचार - ( ? ) । झपट - चँवरका झोंका या संचालन । १०. नवछावरेस – न्यौछावर । सनेह - स्नेह, स्नेहपूर्वक । मंडियो- रचा गया, बना । मिसल - राजाके पार्श्वमें बैठने वाले सरदारोंकी पंक्ति । थाट- शोभा। दुबाह - वीर । गहतंत - गर्वपूर्ण, समूह । दरगाह - दरबार । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४८ ] सूरजप्रकास मंत्रीस सकवि' समाज, राजंत' प्रोहित राज । साजंत दुज स्रुति साधि, वाजंत नौबत' वाधि ॥ ६१ वाजत्र' वजत विमेक, नित' गांन करत अनेक । सोभंत इंद्र समाज, रवि वंस रवि महाराज ॥६२ अतरेस छंटि अवास, पह पंग सेज प्रकास । अंतहपुररी वरणण *दुति भांण पदमणि देखि, पति जेम पदमणि' पेखि* ।। ६३ सज्जंत'१ सोळ सिंगार', आभरण दूण अढ़ार । *नव जरी वेलि अप, चिग नौख गौख सचूंप ॥ ६४ सहचरी चतुर सबोह', मिळ'४ रचत उच्छब' मोह । वर करत चौक वणाव'६, करि कुंमकुंमां छिड़काव ॥ ६५ १ ख. षकवि । ग, सुकवि । २ ख. राजति । ३ ख. ग. नौबति । ४ ख. ग. वाजित्र। ५ ख. ग. नुत । ६ ख, माहाराज । ७ ख. ग. पोहो। ८ ख. ग. सेझि। १ ख. ग. पाणि। १९ ग. पद्मणि । *यह पद्यांश ख. प्रतिमें अपूर्ण है। ११ ख. साजंत । ग. सालंज। १२ ख. ग. शृंगार । ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है- 'चिग गोष नौष सचूप ।' १३ ख. संचोह। ग. संबोह। १४ ख. ग. मिलि। १५ ख. उछव । ग. उत्छव । १६ ख. वणाय । १७ ख. छडकाय । ग. छडकाव । ६१. मंत्रीस - महामात्य, महामंत्री। राजंत - शोभा देते हैं। सात - करते हैं। दुज द्विज, ब्राह्मण । वाधि - वाद्य, विशेष । ६२. वाजत्र - वाद्य, बाजे । विमेक - विवेक । रवि वंस रवि - सूर्यवंशका सूर्य । ६३. प्रतरेस - इत्र । प्रवास - भवन । पह पंग - राजा जयचन्द । पेखि - देख कर । ६४. पाभरण - आभूषण । दूण प्रहार - छत्तीस । नव जरी- ( ? ) । चिग बांस या सरकंडेकी तीलियों से बना हुआ झझरीदार पर्दा, चिलमन । नौख - श्रेष्ठ । सचूंप - सुन्दर, मनोहर । ६५. सहचरी- सखी, सहेली। सबोह - सब । उच्छब - उत्सव । चौक - मांगलिक अव सरों पर प्रांगनमें या खुले स्थानोंमें आटे, अबीर, अनाजके दानोंसे या मोतियोंसे बनाए हुए रेखा चित्र। कुंमकुंमां- ( ? )। Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १४६ मझि छभा राज मंझारि, नव उछब' इम नर नारि । जोधपुरमें महाराजा अभयसिंहजोरौ राज्याभिसेक पढ़ि मंत्र ब्रहम' प्रवीत', दुतिवार देखि अद्वीत ॥ ६६ बर तिलक कीजै वार, अबिखेक' राज उदार । स्रीकमळ' फबि सिरताज, स्री अनुज अखित सकाज ॥ ६७ स्रब लोक नजर सुपेस, निज हत्थ लीध नरेस । धुर थाळ प्रोहित धारि, किय' आरती अधिकारि'' ॥ ६८ इम वणे निज प्राथांण", पहपंगराज प्रमाण'४ ॥ ६६ महाराजरी अंतहपुरमें पधारणौ कवित्त-पंगराज प्रमाण'५, प्रगट चढ़ियौ'६ 'अभपत्ती' । सह" जांणियौ'८ संसार, राज'६ झाळाहळ रत्ती । कवि सुभड़ां करि कुरब, सझे आणंद समाजा । मगज धार" माल्हियौ , राजमिंदर महाराजा२४ । १ व. ग. उछव। २ ख. ब्रहम । ग. ब्रह्म। ३ ख. प्रतीत । ४ ग. दुतिबार। ५ ख. ग. कोय। ६ ख. ग. अवषेष। ७ ख. ग. श्रीकम्मल । ८ ख. ग. धुरि। ख. ग. धारी। १० ख. ग. कोय। ११ ख. अधिकार। १२ ख. ग. अथांणि। १३ ख. ग. पौहौ। १४ ख. ग. प्रमाणि। १५ ख. परमाणि । ग. प्रमाणि। १६ ख. ग. चढ़ीयो। १७ ख. ग. सहूं। १८ ख. ग. जाणीयो। १६ क. राग। २० क. कसि। २१ ख. ग. धारि। २२ ख. ग. मल्हपियो। २३ ख. ग. राजमंदिरां। २४ ख. ग. माहाराजा । ६६. मझि - मध्य, में। छभा - सभा। मंझारि - मध्य, में। वहम - ब्राह्मण । प्रवीत - पवित्र । प्रद्वीत - अद्वितीय । ६७. प्रबिखेक - अभिषेक, राज्यतिलक । स्त्रीकमळ - श्रीमुख ( ? )। फबि- शोभा दे कर । सिरताज - मुकुट, श्रेष्ठ । अनुज - छोटा भाई । १८. सुपेस - सुन्दर भेंट, भेंट। EE. प्राणि - भवन, घर । पह पंगराज - वीर राठौड़ राजा जयचन्द । प्रमाण - समान, तुल्य । १००. अभपत्ती- राजा अभयसिंह । झाळाहळ - रवि, सूर्य । रत्ती- कांति, दीप्ति । सुभड़ा योद्धाओं। कसि - कस कर, बांध कर । मगज - गवं। माल्हियौ - गौरवपूर्ण मंदगतिसे चला। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास १५० ] सुकिया' समूह' मिळ' नेह सुख, नत गायन पाणंद' में । सुरराज जेम नरराज सुख, 'अभमल' राजस इंद में° ॥ १०० गिलम विछायत गरक, पसम मौड़ा'' तकिया पर । तठे विराजै१३ तांम, सझे आणंद नरेसुर । सझि सझि तीन सलाम, चंद वदनियां उछब' चित। हुवां'८ विराजै हुकम, हरखि आणंद सहित हित । जगपीलसोत २१ गिरदां जरी, जोतीवंती२२ कपूर जळि । अगरेल'४ चिराका जोति अति, कळा जोति भळहळ कमळि५ ॥ १०१ गाथा सोळह सझि सिणगार, सोळह वीस प्राभरण सुंदरि६ । वाजंत्र' सझि विसतारं, गांन संगीत करण मिळ८ गाइण ॥ १०२ मुगधा वेस प्रमाण , लखि अति रूप उरवसी लज्यत' । पय घुघर बंध३ पांण ३३, सझियौ ४ नमसकार३५ सारदा६ ।। १०३ १ ख. ग. सुकीया । २ ख. ग. समूह। ३ ख. मिलि। ग. मिले। ४ ख. ग. नृति । ५ ख. ग. गायणि। ६ ख. ग. प्रानंद। ७ ख. मैं। ग. में। ८ ग. सुररा। ६ क. अजमल । १० ख. मै । ग. मैं। ११ ख. ग. मोड़ा। १२ ख. ग. तकीया। १३ ख, विराजे । १४ ख. प्राण। १५ ख. ग. चंद्र। १६ ख. वदनीया। ग. वदीय। १७ ख. ग, उद्धव । १८ ग.हवा। १९ ख.ग, विराजे। २० ख. ग. सहत। २१ व. ग. जगिपीलसोत । २२ ख. ग. जोतिवती । २३ ख. ग. कप्पूर । २४ ग. अगरेलि । २५ ख. कमति । २६ ग. सुंदर । २७ ख. ग. वाजिन । २८ ख. ग. मिलि । २६ ख. गायण । ग. गायणि। ३० ख. ग. प्रमाणे। ३१ ख. लज्जत । ग. लइझत। ३२ ख. वंधि ग.बंधि। ३३ ख. ग. पांणे। ३४ ख.ग. सझीयौ। ३५ ख.ग.नमस्कार। ३६ ग. सरद्द । १००. सुकिया- अपने ही पतिसे अनुराग रखने वाली, पतिव्रता । नेह - स्नेह । सुरराज इन्द्र । अझ मल --महाराजा अभयसिंह । गिलम - बहुत मोटा मुलायम गद्दा। गरक - डूबा हुआ। पसम-बढ़िया ऊन, पश्म । मौड़ा- मसनद । नरेसुर - नरेश्वर, राजा। जग-जगि, प्रज्वलित हुई। पीलसोत- एक प्रकारका दीपक विशेष। गिरदां जरी-(?)। अगरेलएक प्रकारका सुगंधित पदार्थ । भळहळ - देदीप्यमान, कांतिमान । कमळ - शिर, मस्तक, मुख । १०२. वाजंत्र - वाद्य । गाइण – गाने वाली। १०३. मुगधा - साहित्यमें वह नायिका जो पूर्ण युवावस्थाको प्राप्त हो परन्तु जिसमें काम चेष्टाएँ न हो, अज्ञात यौवना । वेस: वयस - आयु, उम्र । उरवसी- उर्वशी नामक अप्सरा । लज्यत - लजायमान होती है । पय -पैर घूघर - धुंघरू । सझियो - किया। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १५१ ताल मृदंग' तंबूरं, सुर वीणा वीणाधरि सुंदरि । हरखत' नृपत' हजूरं, सझे सलाम अलाप कीध सुर ।। १०४ दोहा-गांन सप्त सुर ग्रांम मुर, अरु' मुरछन यकवीस' । तांन कोटि गुणचासते, मूरतिवंत मईस ॥१०५ ताल प्रस्ट द्वादस तवन, सोळह भेद संगीत । राग छत्तीसह रागणी, पंच उकति सुप्रवीत ।। १०६ जुगति च्यार जुग च्यार जंत्र, अस्ट च्यार परमाण' । चौरासी नाटक'' चतुर, विध'२ रसरीत' वखांण ॥ १०७ अति प्रकास गति भेद अति, विगति एह१४ विसतार । आदि आदि कहिया'५ इता, सति प्रबंध ततसार ॥ १०८ सौ प्रवीण गायण सकळ, उछटत" उच्छब१८ पाखि । महि संगीत सागर महीं, स्त्रीधर वायक साखि ।। १०६ १ ख. ग. मृदग। २ ख. सुंदर। ३ ख. ग. हरषित । ४ ख. ग. नृपति । ५ ख. ग. अर। ६ ख. इकवीस । ग. ईकवीस । ७ ग. इमईस । ८ व. तबल । ९ ग. छतीसोह । १० ख. ग. परवांण । ११ ख. ग. नाटिक । १२ ख. ग. विधि । १३ ग. रसरीति । १४ ग. ऐह। १५ ख. कहीया । ग. कहीये । १६ ख. सो । १७ ख. ग. उघटत। १८ ख. उछव । ग उत्छव । १०४. तंबूरं - वाद्य विशेष । वीणाघरी- वीणा नामक वाद्यको धारण करने वाली । अलाप - संगीतके सात स्वरोंका साधन, तान, अलाप । सुर - संगीतमें वह शब्द जिसका कोई निश्चित रूप हो और जिसकी कोमलता या तीव्रता अथवा उतार-चढ़ाव आदिका सुनते ही सहज में अनुमान हो सके । १०५. सप्त सुर - (नोट-संगीत संबंधी शब्दोंके लिए विस्तारपूर्वक टिप्परिण परिशिष्टमें देखें - सम्पादक ।) ग्रांम - संगीतमें सुभीतेके लिये षड़ज, मध्यम, और गांधार ये तीन ग्राम माने गये हैं जिन्हें क्रमशः नंद्यावर्त, सुभद्र, और जीमूत भी कहते हैं। मुरतीन । मुरछन - संगीत में एक ग्रामसे दूसरे ग्राम तक जाने में सातों स्वरोंका पारोह, अवरोह, मूर्च्छना। १०८. विगति - वृत्तान्त, हाल, विवरण। सति - सच्चे । प्रबंध - पूर्वापर संगति लेख या ___ अनेक संबद्ध पद्योंमें पूरा होने वाला काव्य, निबंध। ततसार - सारतत्व, निचोड़। १०६. गायण – गाने वाली, वेश्या । उछटत - ( ? )। उच्छब - उत्सव, जलशा । प्राखि - कह कर। Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५२ ] सूरजप्रकास अथ संगीत नित' भेद वरननं कवित्त धुनि मृदंगधुधकटस, धुकट धुधुकटस' धुकट धुर । झणणणणण जंत्र झणकि, प्रगट झिमझिम धुनि नूपर । उमंग अंग उछरंग, रंग क्रुक्रु थुग शुंग रत । थेइय° थेइय तत थेइय'', ततततत थेइय'२ थेइय तत । नवरंग कटाच्छ रस रंग नूत', जंग जंग वाजिय" जगत । हरमिय'५ उरप तुरपंग हद, लाग दाट वेवट लगत ।। ११० भाव हाव रंग भेद ६, कांम कट्टाच्छ' उघट क्रत'८* । राग वखत परमाण, नवल रति रूप करत नत' । वीणताल सूरवीण, तार तंबूर चंग तदि । प्रत खंजरी पिनाक, जुगति 3 मरदंग२४ वजत५ जदि । १ ख. ग. नृत। २ ख. ग. वर्ननं। ३ ख. ग. मृदंग। ४ ग. धुधकटत। ५ ग. धुधकटत। ६ न. सर । ग. धर। ७ ग. झणण। ८ ग. प्रगटि । ख. जिम । ग. रिमझिम । १० ख. ग. थेईय थेईय । ११ ख. ग. थेईय। १२ ख. ग. थेईय थेईप। १३ ख. नृति । ग. नति । १४ ख. ग. वाजीय। १५ ख. ग. ह्वरमईय । १६ ख. भेव। १७ ख. कटाछि । ग. कट्टाछि। १८ ख. ग. कृत।। *यहाँ पर ख. प्रतिमें 'छप्पय तथा ग. प्रतिमें छप्पै' शीर्षक दिया हुआ है । १६ ग. बषत। २० ख. प्रमाण । ग. परमाण। २१ ख. ग. नृत । २२ ख. चबूर । २३ ख. जुगत। २४ ख. ग. मिरवंग। २५ ग बजत । ११०. जंत्र- वीणा। धुनि - ध्वनि। उछरंग - उत्साह, जोश। उरप - ( ? ) । तुरपंग- ( ? ) । लाग - ( ? ) । दाट - ( ? ) । वट - ( ? ) । १११. भाव - नवयुवती स्त्रियोंके २८ प्रकारके स्वभावज, अलंकारोंके अंतर्गत तीन प्रकारके अंगज अलंकारोंमें से पहला, नायक आदिको देखनेके कारण अथवा और किसी प्रकार नायिकाके मनमें उत्पन्न होने वाला विकार । हाव - नायिकाकी स्वाभाविक चेष्टाएँ जो पुरुषको उसकी ओर आकर्षित करती हैं। साहित्य में इनकी संख्या ग्यारह मानी गई है, इन सबके लिए परिशिष्ट में देखें। काम - कामदेव । कट्टाच्छ – कटाक्ष, तिरछी चितवन । उघट - ( ? ) । नवल - नवीन । रति रूप - कामदेवकी स्त्रीके सौंदर्य के समान । तंबूर - वाद्य विशेष। चंग - वाद्य विशेष । पिनाक - वाद्य विशेष । जुगति - युक्ति । मरदंग - मृदंग । Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १५३ ऐराक' पिये प्याला 'अभौ', सुख मुसताक' नरेसुरां । देखि सुख, मन विभूल मुनि ईस्वरां ।। १११ सुरपति विभूल छंद विवेक ६ वणिक एम विनोद, 'अभैमल' इंद्र इसौ । श्रोपम रूप अनोप, जठै रतिराज जिसौ । जोवत जोख' जमाव, घणूं नूत भेद घणै ' .१० ११ क्रीड़ति जांणि किसन्न, व्रंदावन १२ हा - लग कलियांण विहंग लग, सुणि रंगराग सुथाल । महाराज" 'अभमाल' ॥ ११३ पतिव्रत रीझ प्रभाज । रति सोभा सुख सुकिया" सेझां वसै", उच्छब" हास विलास प्रति, सोभा दंपति नेह सुख, रतिराज ॥ ११४ पीयें । विसेषक । I १४ ३ रास वर्णै ४ ॥ ११२ १ ख. ग. भैराक 1 २ ख. ग. थिमूल । ६ ख. विखेषक । ग. ग. जौष । १० ख. ग. नृत | वृंदावन | ग. बंदावन । १४ ख. रासणे । ग. वणे । १६ स्व. ग. वसे । १७ ख. ग. माहाराजा । १८ ख. उछ्व । ग उत्छव । ३ ख मुषताक । ७ ख. ऐक । ११ ख. ग. धणे । ४ ग. सूरपति । ८ख. ग. वोपत । - १११. ऐराक - तेज शराब । मुसताक - उत्कंठित, उत्सुक, मुश्ताक । विभूल - भ्रमित । मुनि ईस्वरां - मुनीश्वरों, महर्षियों । ५. ख. ६ व. १३ ख. १२ ख. ग. क्रीडंत । १५ ख. सुकीयां । ग. सुकीया । ११२. वाणिक - ढंग, व्यवस्था । श्रभैमल - महाराजा अभयसिंह । श्रोपम - उपमा । श्रनोप अनुपम । रतिराज - कामदेव । जोख = योषा - स्त्री, महिला । जमाव - समूह, यूथ । क्रीड़ति - क्रीड़ा करता है। जांणि मानों । किसन्न - श्रीकृष्ण । रास - रासलीला | ११३. लग - तक, पर्यन्त । कलियांण - सम्पूर्ण जातिका एक शुद्ध राग, कल्याण । इसके गानेका समय रात्रिका पहला प्रहर है। विहंग - एक राग जो आधी रात के बाद लगभग २ बजे गाया जाता है, बिहाग | रंगराग गायन, गायनका रसास्वादन, आनन्द | सुथाल - व्यवस्थित, सुन्दर ढंगसे । सुकिया - स्वकीया, पतिव्रता । सेझां - शय्याओं । श्रभमाल - अभयसिंह | ११४. उच्छब - उत्सव, जलसा । हास-परिहास, दिल्लगी। विलास - प्रसन्न या प्रफुल्लित करनेकी क्रिया । रति कामदेवकी पत्नी । रतिराज - कामदेव | Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५४ ] सूरजप्रकास इम' निस' विति' आणंदमैं, प्रगटे भांण प्रताप' । 'अभी'६ झरोखै आवियौ, छत्रपति जोधां छात ॥ ११५ प्रातकालीन नगररौ वरणण खट वरनां ताळा खुलै, सीस नमै संसार । करै'• निजर रीझां करै'', इंद्र झड़ दरब अपार ॥ ११६ करि'२ वंदण' सूरिज कमंध, दिस१४ सूरज्ज उदार' । ईखे'" सूरज'८ अंजसियौ', सूरिज कुळ सिणगार ॥ ११७ हाका अासीसां' हुवै, तांम निजर१ विसतार । इण सोभा दीठौ 'अभौ'२२, जोधाण3 जिणवार ।। ११८ छंद नाराच२४ सझंत ब्रह्म के सिनांन५, केक त्रप्पणं करै । धरत्त केक न्यास ध्यांन, चंडि पाठ उच्चरै । १ ग. ईम। २ ख. निसि । ३ ख. ग. वीती। ४ ख. ग. पाणंदमै । ५ ख. ग. प्रभात । ६ ख. प्रभो। ७ ख. ग. प्रावीयो। ८ ख. ग. षुले। ६ ख. ग. नमे। १० ख. ग. करे। ११ ख. ग. करे। १२ ख. ग. करे। १३ ग. बंदण। १४ ख. ग. दिसि । १५ ख. सूरज । ग. सूरिज। १६ ख. ग. ऊदार। १७ ग. इथे। १८ ख. ग. सूरिज । १६ ख. ग. अंजसीयौ। २० ख. प्रासासां । २१ ग. निजरि। २२ ग. प्रभ। २३ ख. जोधाणो। २४ ख. ग. नाराज। २५ ख. ग. सनांन । २६ ख. ग. परंत। २७ ख. चडि। ११५. निस - रात्रि । विति - व्यतीत हुई। भांण – सूर्य । अभौ - महाराजा अभयसिंह । छत्रपति - राजा । जोधां - राव जोधाके वंशजों। छात - श्रेष्ठ, शिर-मौर । ११६. खट वरनां - राजस्थानकी छः प्रमुख जातियाँ यथा-ब्राह्मण, सन्यासी, जती आदि । ताळा - भाग्य, पेशानी। इंद्र झड़ – इन्द्रकी वर्षा के समान । दरब - द्रव्य, धन-दौलत । ११७. वंदण - नमस्कार । सूरिज - सूर्य। दिस - तरफ, ओर। सूरज्ज - सूर्य, भानु । ईखे - देख कर। अंजसियो - गर्वित हुआ, गर्वयुक्त हुआ । ११८. हाका - आवाज । दीठौ - देखा गया। ११६. सझत - साधन करते हैं। ब्रह्म- ब्राह्मण . के -- कई । सिनांन - स्नान । त्रप्पणं - कर्मकाण्डकी एक क्रिया जिसमें देव, ऋषि और पितरोंको तुष्ट करनेके लिये हाथ या अरघेसे जल देते हैं, तर्पण । न्यास - पूजाकी एक तांत्रिक पद्धति जिसके अनुसार देवताके भिन्न-भिन्न अंगोंका ध्यान करते हुए मंत्र पढ़ कर उन पर विशेष वर्णों का स्थापन । Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास जयंत गायत्रीस जाप, वेद मंत्र ब्रहमळा' करंत पूज नौ प्रकार, केक कंत कम्मळा ॥ ११६ १ खिरोद" कन्न' खीनखास, धारियं सुसोभितं" सिखास सुत्र, १५ सेनयं हरी कुसं समुद्र हाथ, चित्र करत पण जोड़ि केक, वेणि सनांन के खत्री सत , ते " करंत दुजंस दान गाय दांन, प्राय देत . २० जिगंन' ज्वाळ होम ज्वाप', हुतं तं करंत पारथी अनेक, जोग इंद्र के उचार स्त्री सुभागवंत", संस्र नाम संभरै । गिनांन उग्र त्रीय गीत, केकयं कथा करै ॥ १२० श्राहुतं । ५ ख. ग. घृतं । ख. सं । ग. संश्री १३ ख. ग. धूतंबर । तनयं । १४ सकंत । १७ ग. हाथि । २१. ग. तै । २५ ख. ग. अर्पणं । दुजे । १२०. जिगंन - यज्ञ । ज्याप पारथी - प्रार्थना | १२ । - - २ १ ख. विमाला । ग. विम्मळा । २ ख. जिगांन । ग. जिग्गन । ३ ख. ग. जाप । ४ ख. ग. ७ ख. ग. श्री । ६ ग. के । । १० ख. ग. षीरोद । ११ ख. ग. कंन । ८ख. ग. भागवंत । १२ ख. ग. धारीयां । १६ ख. तेनयं । ग. ख. ग. ससोभितं । १८ ख. ग. बेषि ग. भांण । २० क. २२ ग. करतं । २३ ख. तर्पणं । ग. तिर्षणं । २४ ख. ग. । जपै । 3 धुजंबरं । पितंबरं । भाळ चंदणं । १६ भांणि वंदणं ॥ १२१ तरपणं प्ररपण [ १५५ १५ ख. ग. सूत्र । १६ ख भाल । ११६. गायत्रीस - गायत्रीमंत्र । ब्रहमळा - विमल, पवित्र । केक - कई कंत कम्मळा - लक्ष्मीपति । २५ १२१. खिरोद - एक प्रकारका वस्त्र विशेष, क्षीरोद । खीनखास - एक प्रकारका वस्त्र विशेष, खीनखाप | सिखा - शिखा, चोटी। सूत्र - यज्ञोपवीत, जनेऊ । पितंबर - पीताम्बर वस्त्र । हरी - दुर्वा, दोब । चित्र भाळ - ललाटमें तिलकादि । जाप । श्रहुतं प्राहुति । व्रतं घृत । श्रपे - देते हैं । १२२. समान स्नान । खत्री - क्षत्रिय । स ंत - करते हैं । तरपणं - कर्मकाण्डकी एक क्रिया, तर्पण । दुजंस - द्विज, ब्राह्मण । श्ररपणं - अर्पण | Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५६ ] सूरजप्रकास प्रमाण खोडसं' प्रकार, देत उन दानयं' । प्रमेस चंड रुद्र' पूज, सेवतं समांनयं ॥ १२२ अनट्ट जे म्रखा अवाच्य', सूरमंस री नरा । परं सती अभेट पिंड, दास गाय दीनरो । धणी स अग्र होत ढाल, जूटि, धांमजन में । इसा वसंत के अपार, गाढ़ पूर नन में'२ ॥ १२३ सनांन दांन के सजंत, तै बईस उग्रता । जईन सास्त्र त्रांण जांण, ध्यान ग्यांन धारता । पौसाक ऊंच द्रब्ब'५ पूर, भूखणं धरं भरं । जगत्त' जै कनंक जोत", जोति जै जवाहरं ॥ १२४ खुले बजार' हाट खूटि, छज्जयं ६ विछायतं । इसा बईस तेणि वार, वेण' ठौड़ ने प्रावतं । वणैस हट्ट हट्ट वीच, वाणिजं स्रबेसरा२४ । *लखां खरीद देत लेत*, रूप में२५ धनेसरा ॥ १२५ १ ग. षोडशं। २ ग. दानयं । ३ ख. रूद्र। ४ ग. समांनयं। ५ क. मृषा। ६ ख. ग. अवाचि । ७ ख. ग. सूरिमांस। ८ ख. ग. सत्री। १ ख. दानरा । १० ग. जूझि। ११ ख. ग. मै। १२ ख. मै। ग. में। १३ ख. ग. सझंत। १४ ख. ग. जांणि । १५ ख. द्रव । ग. द्रव्व । १६ ख. जगंत । १७ ख. ग. जोति जोति । १८ ख. ग. वजार। १९ ख. ग. छजयं । २० ख. ग. तेण । २१ ख. ग. वेणि । २२ ख. ठौर । ग. ठौड़ि। २३ ख. ग. वणेस । *ख. प्रतिमें यह पद्यांश- 'लषां खरीद लेत देत ।' २४ ख. स्रवेसरां । ग. श्रवेसरां। २५ ख. ग. मै । १२२. प्रमेस - ( परम-+-ईश ) विष्णु, ईश्वर। चंड - चंडिका, दुर्गा । रुद्र - महादेव । समानयं-( ? ) । १२३. अनट्ट-कभी याचकको न नहीं कहने वाला। म्रखा - मृषा, असत्य । अवाच्य - जो कहने योग्य न हो। परं- दूसरे की। अभेट - अस्पर्श, स्पर्श न करनेकी क्रिया । पिंड - शरीर । ढाल - रक्षक, रक्षा। जूटि- लग कर। धांमजन - युद्ध । वसंत - रहते हैं। गाढ़ पूर - शक्तिशाली। १२४. जईन-जैन। ऊंच-श्रेष्ठ। द्रब्ब- द्रव्य । कनक - स्वर्ण, सोना । १२५. छज्जयं-सुशोभित । विछायतं-वह कपड़ा जो बड़ी सभा पादिमें बैठनेके लिये बिछाया जाय । बईस - वेश्य वर्ण । हट्ट हट्ट - प्रति दूकान । पाणिज- वाणिज्य, व्यापार । स्रबेसरा- सबका । धनेसरा-कुबेरका । Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरज प्रकास सिधं' निधं ठं नवं स, सच्चयं घरं घरै । इकौस' नांम प्राखतं, अनेक साद उच्चरै । समुद्र के क्रतं सनांन, रुद्र जाप रच्चयं । खटं स क्रम्म वांटि खाइ", आप वांट १० १२ १४ प्राय, प्रीत हूंत ३ पुज्जयं' दुवार है सरब्ब'" दास, जै वसेख दुज्जयं" । अतीत ग्रेह तप्प वसै सुखी छहु वरन्न प्रवास गोख ग्रेह ऊंच, एक १६ १५ १६ अन्न धन्न अग्घळा' 1 प्रच्चयं ॥ १२६ १ ग. सिंधि । २ ख. ग. रच्चयं । श्रावतां । ६ ख. ग. जे । ग. सरब । ११ ग. दुझ्यं । ग. पुझ्झयं । सघळा । ग. घळा । १६ ग. ऐक ऐक । 9 करी तुरी चित्रांम" केळि, द्वार द्वार डंबर I गुलाब के लगत गात, अंतरेस अंबरं । नवंत केक रंत राग, विम्मळं विलावळं । करंत गोख जोख केक, हेम में ४ झळाहळं ॥ १२८ २२ 3 १८ एक अग्गळा* ।। १२७ ३ ख ईकोस । ग. इकोस । ४ ख श्रायतां । ग. ७ ख. ख. ऋष । ८. खाय । ६ ख. ग. वंट । १० ख. १२ ख. ताप । ग. ताम । १३ ख. ग. प्रीति । १५ ख. ग. वरन । १६ ख. अन । ग. अंन । १७ ग. धंन । १४ ख. १८ ख. [ १५७ * यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । २० ग. चित्रांग | २१ रा. डब्बरं । २२ ख. ग. तांन २३ ग. हैम । १२६. सिधं - आठ प्रकारकी सिद्धियाँ। निधं - नव प्रकारकी निधियां । सच्चयं - सञ्चित, वास्तविक रूप में । श्राखतं - कहते हैं । साद - श्रावाज, शब्द | १२७. बुवार - दरवाजा । वसेख - विशेष । दुज्जयं द्विज, ब्राह्मण, पंडित । प्रतीत सन्यासी, फकीर | पुज्जयं - पूजे जाते हैं। वरन - वर्ण, जाति (हिंदू) । श्रग्घळा अधिक, अपार । श्रवास - भवन । गोख - झरोखा | अग्गळा - विशेष । २४ ग. मैं । - १२८. करी - हाथी । तुरी - घोड़ा । चित्रांम - चित्र । केळि केल वृक्ष । डंबरंसमूह | अंतरेस - इत्र । थंबरं - ( ? ) । विम्मळं - पवित्र । विलावळं - एक राग जो केदार और कल्याणके योगसे बनता है। यह दीपक रागका पुत्र माना जाता है । यह सवेरेके समय गाया जाता है । जोख - प्रानन्द, हर्ष । हेम - स्वर्ण, सोना । झळाहळं - देदीप्यमान, चमकयुक्त । Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५८ ] सूरजप्रकास करंत केक चित्र कांम, रूप भूप कवी विनोद भूप ऋत्त', उच्चरै वईदराज के विसाळ, औषधी तई' रसायणी' स्वधातु", स्वच्छयं पुरांण, तारकेस के तवै । -१५ १६ पढ़ंत जोतकी १४ रघुंस सांमजुझ अथू", च्यार" वेद' " के " चवै । सिखंति केक भेद सौंण, साधनं सरोदरा । २२ अभ्यास मोदरा ।। १३० २१ २४ महा मंत्रेस अग्गमं ३, मही अराध वीर मंत्र एक, सिखंत भेद कोक " सार, साधनं सासत्र - रंगरा । उमंगरा । म उपाइकं । १२ १ ख. ग. रूप | २ ख. रंगता । ३ ग. विनोद । ४ ख. ग. क्रीति । उचरै । ६ ग. वइदराज । ७ ख. श्रबधी । ग. उषधी । ८ख. ग. उपायकं । भई १० ग. रसाइणी । ११ ख. सुधातु । १३ ख. ग. रसाइकं । १४ ख. ग. जोतिकं । १७ ख. अत्र । ग. प्रभु । १८ ख. ग. च्यारि । ग. सीवंत । २२ ख. सरोदया । २३ ख. ग. ग. केक । ग. सुधातुर । १५ ख. ग. रघुस । १६ ग. बेद । २० श्रागमं । २४ ख. ग. महा । २५ ख. - १३१. वीर मंत्र - वीरोंको जगानेके मंत्र, भूत-प्रेत के मंत्र करने की क्रिया, सिद्धि । सधीतरा - ( ? ) सार- काम-शास्त्र । .93 रसायकं ॥ १२६ १२६. केक - कई । कांम कामिनी, कार्य । रंगरा - श्रानंदका । ऋत कीर्ति । उच्चरै - उच्चारण करते हैं । उमंगरा - जोशके । वईदराज वैद्यराज, चिकित्सक । श्रखधी - औषधी, दवा । उपाइकं - उत्पन्न करने वाला, बनाने वाला । तई - उनमें । रसायणी - रसायन विद्याको जानने वाला । स्वधातु - ( ? ) । साफ, मैलरहित । रसायकं - रसायन । स्वच्छयं - सधीतरा । संगीतरा । १३०. जोतकी - ज्योतिषी, यहाँ पंडित श्रर्थ ठीक जँचता है। तारकेस - तर्क-शास्त्र अथवा तारकेश्वर, शिव । तवं स्तवन करते हैं । रघुस - ऋग्वेद । सांम - सामवेद । जुभू - यजुर्वेद । श्रथू - अथर्ववेद । चवं पढ़ते हैं। सौंण- शकुन । सरोदरा - स्वरोदयके । महा मंत्रेस - महामंत्र । श्रग्गमं - दुर्लभ । मोदरा - हर्ष । ५ ख. ग. ६ ख. १२ ख. ग. रच्चयं । १६ ख. ग. जुज्ञ | ग. के । २१ ख. साधनं - किसी कार्यको सिद्ध । सिखंत - सीखते हैं । कोक Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १५६ मलं अखाड़ केक मंड, दाव घाव दायकं । वहंत के पटास्य' बंकरे, पांणवंत पाइकं ॥ १३१ सजत के चिकन्न' साज, सुंदरा ससोभरा । करत के मुकेस कांम, भार कार चौभरा । तणंत के बणंत तास, प्रम्मळं. पटंबरं । सिवंत'' के जरी सकाज, अंग अंग अंबरं' ।। १३२ करंत कनंक'3 काम, जोति भांण मै जसं । सिंगार प्रावध'४ सिरै, तिसं१५ जरंत तैनसं१६ । वणाय खाग चाढि वाढ़', प्रोपवै१८ उजासरा । वणंत वोच'६ नीर वाधि, रूप में वणासरा ।। १३३ वढ़ाळ सेल के वणाय, कीध अोपमै कळा । जिकै ' कुमार बीज जांणि, चंचळो अपच्चळा'३ । १ ख. ग. पटास। २ ख. ग. वांकि । ३ ख. ग. पायक। ४ ख. ग. सझंत। ५ ख. ग. चिक्कन । ६ ख. ग. सुंदरं। ७ ख. सुशोभरा। ग. सुसोभरा। ८ ख. चौभरा । ६ ख. ग. वणंत । १० ख. प्रमल्लं। ११ ख. ग. सीवंत । १२ ख. अंवरं । ग. अंब्बरं । १३ ख. नकंस । ग. गकस । १४ ख. ग. प्रावधां । १५ ख. निसां। ग. निसा । १६ ख. ग. हंनसां । १७ ख. वाट । ग. वाढ़ि। १८ ग. प्रोपर्व । १६ ग. बीज । २० ख. ग. मै। २१ ख. ग. जिके। २२ ख. ग. वीज । २३ ख. ग. अचप्पळा । १३१. मलं-मल्ल, द्वन्द युद्ध करने वाला, पहलवान। अखाड़ - अखाड़ा, कुश्ती लड़नेका स्थान। वहंत - धारण करते हैं। पटास्य -- पटा, प्राय: दो हाथ लम्बी किर्चके आकारकी लोहेकी पट्टी जिससे तलवारकी काट और बचाव सीखते हैं। बंक - तल वार विशेष, वक्र। पांणवंत - बलवान । पाइक - चतुर, दक्ष, नौकर । १३२. चिकन – एक प्रकारका कशीदा जो रेशम या सूतसे कपड़े पर काढ़ा जाता है । ससोभरा- शोभासहित, शोभा व कांति वाला। मुकेस - सोने-चांदीके चौड़े तार, इन तारोंका बना हुअा कपड़ा, मुक्कैश । भार - ( ? ) । कार चौभरालकड़ीका चौखटा जिसमें कपड़ा कस कर कसीदेका काम हो, जरदोजी। तास - कपड़ा विशेष । प्रम्मळं - सुन्दर । पटंबरं- रेशमके वस्त्र । सिवंत - सीते हैं। १३३. केक - कई। कनक - स्वर्ण, 'सोना। भांण – सूर्य, भानु । वाढ़ - शस्त्रका पैना भाग, शस्त्रकी धार । प्रोपर्व - उज्ज्वल करते हैं। वीज - बिजली । वासरा वनास नदी। १३४. पढ़ाळ - तलवार । सेल - भाला। प्रोपमै - चमकमें, द्युतिमें। अपच्चळा - चंचल, उदण्ड । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] सूरजप्रकास करत नोख' नोख काम, सोवनी संवाहरं । घड़त हेम घाट के, जड़त के जंवाहरं ॥ १३४ रंगै अनेक रंगरेज, आबदार अंबरं । हुलास है मुनिंद्र हांसि, देखि देखि डंबरं । रजंत के कनंक" रूप, भार द्रब्य भारखं । विराजमान स्रीबरं, रचे'' करंत पारखं ॥ १३५ जवाहरं'' परक्ख' जोत' के जवाहरी करै । अनोप रंग तोल प्राब, संग ढंग संभरै । घरं घरं सघन्न ५ झंब फूल पै झलं । तरं तरं करंत तांम - क्रील बांणि कोकिलं ।। १३६ स्त्री वरणण निवांण त्री भरंत नीर, रूप कुंभ हेमरा । मैमंत जोबनं ६ मनोज, नेह कंत नेमरा । चलै गयंद जेम चाल, भाल इंदु सोभयं ८ । महामुनेस होत मोह, लेख२० रूप लोभयं ॥ १३७ १ ख. ग. नौष नौष। २ ग. संवाहरां। ३ ग. अनेक । ४ ख. अव्वरं । ५ ख. ग. होस । ६ ख. डंकरं। ग. डंब्वरं। ७ ख. ग. कन्नक। ८ ख.द्रव्व । ग.द्र ६ ख ग. श्रीवरं। १० ख. ग. रजै । ११ ग. जबाहरं। १२ ख. ग. परष्प। १३ ख. ग. जोति । १४ ख. अव। १५ ख. सध्यन । ग. सघन । १६ ख. ग. जोबनां । १७ ख. ग. इंद्र। १८ ग. सभयं । १६ ख. ग. माहामुनेस। २० ग. लेषि । १३४. नोख - श्रष्ट । सोवनी - स्वर्णमयी। घडत - घड़ते हैं। हेम - सोना । जवाहरं - जवाहरात। १३५. प्राबदार - चमकदार, द्युतिवान । अंबरं - वस्त्र । हुलास - हर्ष, प्रसन्नता । डंबरं ( ? ) । रजंत - शोभा देते हैं, चांदीके । के - कई । कनक - स्वर्ण । स्त्रीबरं - धनाढय। १३६. परक्ख - परीक्षा । जोत - ज्योति, कांति । जवाहरी- जौहरी । अनोप - अनुपम । श्राव - कांति, चमक। संग -( ? ) । संभर- ( ? )। सघन्न - घना । झंब - फूल, फल व घने पत्तोंयुक्त टहनी, टहनी । तरं - वृक्ष । कील - क्रीड़ा । १३७. निवांण – जलाशय, तालाब । त्री- स्त्री। कुंभ -- कलश, घड़ा। हेमरा - स्वर्णके, सोनेके । ममंत - मस्त, उन्मत्त । जोबनं - जवानी। मनोज - कामदेव । गयंद - हाथी, गज। भाल - ललाट। इंदु - चंद्रमा । सोभयं - शोभा देती है। महामुनेस - महामुनि, महर्षि । लेख - प्रारब्ध । Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६१ वणे' भुजंग रूप वेणि, मंग' सीस मोतियं । प्रजा लजै न छत्र पांति', जोय तास जोतियं । छुटी अलक्क नाग छौन', सोभ एम' साज ही । रथंस जांणि चंद्र रासि, रूप में विराजही ॥ १३८ राजै मुखं सबाधि'४ रूप, *जोति चंद्र हं जहीं । रहै सदा अखंड रूप, निक्ख'५सांमता ६ मही१७ । सिंदूर बिंदु'८ भाल सोभ, ओपियौ पाणंद रै । जिकौर उरम्म'' माल २ जांणि, चाढ़ि दीध चंद ॥ १३६ सरीस मोतियां१४ सधार२५, कोर भाल केसरी । कला तमंस ६ वीच कीध, चंद जांणि चंदरी। भँजै धनंख चक्र भौंह, सोभ काम साबळं' । प्रफलयं २ कटाच्छ फर कंत ४ नेत्र कम्मळं५ ।। १४० १ ख. ग. वणे। २ ख. ग. मांग। ३ ख. ग. मोतीयां। ४ ख. प्रभा। ग. प्रला । ५ ग. छत्र। ६ ख. पाणि। ७ ख. ग. जोतीयां। ८ ख. अलक । ग. अल्लक। ६ ग. छौंन । १० ख. ए। ग. ऐम। ११ ख. ग. में। १२ ख. बिराजही। १३ ख. ग. रज। १४ ख. ग. सवाधि । ख. प्रतिमें नहीं है। १५ ख. विष। ग. निषि । १६ ग. सामंता। १७ ग. नही। १८ ख. ग. विदु । १६ ख. औपीयौ। ग. ओपीयौं। २० ख. ग. जिको। २१ ख. उरम। ग. उरम । २२ ग. मोज। २३ ख. ग. वंदरै। २४ ख. मोतीया । ग. मोतीयां। २५ ख. ग. सधारि। २६ ख. ग. तमं । २७ ख. विचै । ग. वि. । २८ ख. म. कीध । ग. सकीध । २६ ग. आडं। ३० क. जुजै । ३१ ख. ग. सावल । ३२ ख. प्रफुलयं। ३३ ख. कटाछ । ग. कछ। ३४ ख. ग. पूरक्रांति। ३५ ख. ग. कंम्मलं । १३८. भुजंग - सर्प । वेणि - स्त्रियोंके शिरके बालोंकी गुथी हुई चोटी । मंग - शिरके बालोंके बीचकी वह रेखा जो बालोंको दो ओर विभक्त कर के बनाई जाती है, मांग, सीमंत । अलक्क - मस्तकके इधर-उधर लटकने वाले मरोड़दार बाल, अलकें । छौन - बच्चा। सोभ - सुन्दरता, शोभा । रथंस - ( ? )। विराजही - मानों चंद्रमा अलका रूप रास (वल्गा)की पकड़ कर रथमें बैठा हो । १३६. राज - शोभा देता है। सबाधि रूप - पूर्ण रूप। निक्ख - निकष, कसौटी? सांमता - कालापन। भाल - ललाट । सोभ - शोभा देता है । प्रोपियो सुशोभित हुआ । उरम्म माल %3D मिमाल - समुद्र, सागर। १४०. सरीस'चंदरी- ललाटमें केशोंके पास-पास मोतियोंकी लड़ी इस प्रकार शोभायमान हो रही है मानों रात्रिकी श्यामतामें चंद्र का प्रकाश हो । Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६२ ] सूरजप्रकास अनंग बांण लाजि जाइ', ईख नैण अंजणं । मनी तजै कुरंग मीन, जोय रूप खंजणं । जड़ावमें तिलक्क जोति, एम' भाल अंकरै । निजं वरंस 'जोति' निक, अोपियौ मयंकरै ॥ १४१ ससोभ भूखणं स्रुतं, वणे जड़ाव बांमरा'' । विराजमान जांणि वीर, कोर बांधि'कामरा' । चमकवै टंक चक्र. अोपमा उमंदरा । जडाव चक्र दोय जै, रथंस जांणि चंदरा ॥ १४२ सुकीर नासिका सरूप, *वेस रीत राजिौं । सुरू''गुरू' र भोम सुक्र', राजद्वार राजिमैं। १ ख. ग. जाय। २ ख. ग. ईषि । ३ ख, ग. अंज्जणं। ४ स्व. ग. में। ५ ख. तिल्लक । ग. तिलक। ६ ग. ऐम। ७ ख. उरंस । ग. उरम। ८ ख. ग. न्यक्र । ६ ख. वोपीयो । ग. वोपीये। १० ख. श्रुतं । ग. शुभं। ११ ख. वामरा । ग. वांमरा । १२ ख. वांधि । १३ ख. ग. कामरा । ___*ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पद्यांश इस प्रकार है- 'बेसरी बिराजिये ।' १४ ख. ग. सुर। १५ ख. ग. ग्रु। १६ ख. जोड । ग. जाड़। १७ ख. ग. राजीये । १४१. अनंग - कामदेव । लाजि जाइ - लज्जित हो जाते हैं। ईख - देख कर। नैण नेत्र। अंजणं -- काजल । मनी- गर्व । कुरंग - हरिण । मीन - मछली। जोय - देख कर। खंजणं - एक प्रसिद्ध पक्षी विशेष जो स्वभावसे बहुत ही चंचल होता है । इसकी चंचलताको स्त्रियोंके नेत्रोंको उपमा दी जाती है। निक्र - ( ? ) । प्रोपियो - शोभायमान हुआ । मयंक - चंद्रमा । १४२. ससोभ - शोभापूर्वक, शोभासहित । भूखणं- प्राभूषण । स्वतं - श्रुति, कान। बांमरा स्त्रीका । त्रटक - तारक, कानका आभूषण । प्रोपमा - उपपा । १४३. सुकीर' 'राजिये - सुन्दर तोतेके नाकके समान नाक है और उसमें मोतीयुक्त बेसर (नामक आभूषण (नथ) इससे वह ऐसा शोभायमान होता है मानो सुरगुरु (बृहस्पति) भोम (मंगल) और शुक्र ये तीनों राजद्वार पर उपस्थित हो गये हों । यहाँ बेसर जो सोनेकी बनी हुई, उसका रंग सुर-गुरु (बृहस्पति) समान है, पीत है तथा बेसरमें जो मोती है उनका रंग श्वेत है । वह शुक्रके समान प्रतीत होता है और प्रोठोंका रंग लाल है जहाँ पर मोतियोंयुक्त बेसर लटकता है, वे अोठ मंगलके समान लाल प्रतीत होते हुए आनंददायक हैं। Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६३ मुखं प्रकास हास मंद, अोपमा' उजासयं ।। उदै अरद्ध भांणए', मयंकजं प्रकासयं ॥ १४३ चुंनी सुचंग रूपचै, कणंस नील क्रांमती । दिठौण रूप भोम दीध, रीझियै रतीपती । कपोन' कंठ पोत केम, मोह अोपमा' मिळी । जिका तनूज' भांणि जांणि', मेरसंग मंडळी ।। १४४ सरीसकंठ' सोभयं, मुकत्त' माळ नम्मळी'८ । सुमेर संग हुंत स्रोत, जांणि गंग ऊजळी* । हमेळ बेल चंद्रहार, सोभयै सकाजयं । उडंत' नेक चंद्र अग्न, राज पंत राजयं ।। १४५ १ ख. ग. प्रोपमं । २ ख. उभासयं । ३ ख. ग. उदौ। ४ ख. अरद । ग. ऊरद्व । ५ ख. एम । ग. ऐम। ६ ख. ग. चुभी। ७ ग. विठौंण। ८ ख. ग. भोमि । ९ ग. रत्तिपती । १० ख. ग. कपोळ । ११ ग. प्रोपमा। १२ ख. तनूंज । ग. तन्नज । १३ ख. ग. भांणि। १४ ख. ग. मेरि । १५ ख. शृंग। ग. श्रंग। १६ ख. सरीर । १७ ख. ग. मुक्कत। १८ ख. ग. नमळी । १६ ग. समेर। २० ख. ग. शृग । *ग. प्रतिमें यह पंक्ति इस प्रकार है- सुमेर शृंग हूंत जांणि, श्रोत गंग ऊजळी । २१ ख. ग. उडं। २२ ख. ग. अनि । १४३. अरद्ध - अाधा। भाणए - सूर्य । मयंकजं - चंद्रमा । १४४. चुनी- माणिक्यादि रलका बहुत छोटा टुकड़ा, चुन्नी । सुचंग - सुन्दर । नील रत्न विशेष । क्रांमती - कांति, चमक । दिठौण - ( ? ) । भोम -- मंगल । रीझियो- मोहित हुआ। रतीपती- कामदेव । पोत - एक प्रकारका अत्यन्त बारीक मोती विशेष जो स्त्रियोंके कंठाभरण (तिमणिया) विशेषमें पिरोया जाता है। तनूज भांणि - सूर्यतनया, यमुना । जाणि - मानों। मेर - सुमेरु । १४५. सरीस - श्री नामक कंठाभरण। सोभयं - शोभायमान हो रही है। मुकत्त माळ - मोतियोंका हार । नम्मळी - स्वच्छ, उज्ज्वल । सुमेरु - सुमेरु पर्वत । लंग- शिखर स्रोत - श्रोत, यहां झरना अर्थ बैठता है। गंग - गंगा नदी। हमेळ - एक प्रकारका कंठाभरण । बेल - आभूषण विशेष । चंद्रहार - प्राभूषण विशेष । सोभय - शोभायमान होता है। उडत-उड़ते हैं। नेक - ठीक, मानों। राज पंत - ( ? )। राजयं - शोभायमान होते हैं । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६४ ] सूरज प्रकास ५ 10 Ε १३ 9 3 दुहूं' विसाळ चंपडाळ, ओपयं भुजा इसी । दुरद्द दंत रंगदार, चंद्रबाह' चौपसी । बिनै जड़ाव बाजुबंध', सम्म पाट" सोहिया । स्रिखंड साखि" जांणि स्रप्प, मैण" धार मोहिया ।। १४६ प्रवीण कंकिणीस पौच १४, गज्जरा" ज नौग्रही" । हिमंकरं रखत्त" हस्त, भेद जांणि सोभही " । * विराजमान रूप वाधि, अंगुली अनोप | * अनोप पंकजं श्ररद्ध, पंख जांणि प्रोप* ॥। १४७ समुद्रिका छलास छाप, सो जड़ाव संगरा । अनेक भौंर जांणि प्राय, रीझ" रंगरागरा । १८ १६ २१ २२ O 1 २ ख. प्रोपीए । ग. श्रोपीये । ५ ख. विन्हे ग. विन्है । ६ व. ग. सोहीया । १३ ख. ग. कंकणीस । १ ख. दुहुं । ग. चौंपसी । ग. पाटि । मोहीया । ग. नवग्रहो । १७ ख. ग. नक्षत्र | * ये दो पंक्तियां ग. प्रतिमें नहीं हैं। १९ क. रूख । २० ख. भौर। ग. भौरि । ८ ख. ३ ख. वाह । ग. बाँह । ४ क. aौपसी । ६ ख. वाजुबंध । ७ ख ग सांम १० ख. ग. साष । ११ ख. ग. मेणि । १४ ग. पाँचि । १५ ख. ग. गइभरा । १८ ग. श्रपरे । १२ ग. १६ ख. यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । २१ ख. ग. रोझि । २२ ख. ग. रंगरंगरा । १४६. चंपडाळ - चम्पाकी डाली । श्रोपयं - शोभायमान होती हैं । दुरद्द - हाथी, गज । दंत - दांत । चंद्रबाह - हाथी दांत की पतले चीरकी विशेष प्रकारकी रंगदार चूड़ियोंके चूड़ेका नाम जिसे चंद्रबाई या चंद्रबाहका चूड़ा कहते हैं। चौपसी - शोभित होती है ! बिनै दोनों जड़ाव - जटित । बाजुबंध- स्त्रियोंके बांह पर धारण करनेका श्राभूषण विशेष | सम्म पाट - श्याम रंगका रेशम । वि.वि. - बाजूबंध रेशम या सूतके धागों में पिरोया जाता है । सोहिया - सुशोभित हुए । त्रिखंड - चंदन-वृक्ष । साखि - शाखा, टहनी । जाणि - मानों । त्रप्प - सर्प, सांप | मण धार = मरिण घर - मणिको धारण करने वाला कृष्ण सर्प । मोहिया - मोहित कर दिया गया हो । १४७. कंकिणीस - स्त्रियोंके हाथका श्राभूषण विशेष पौच स्त्रियोंकी कलाईका आभूषण 1 विशेष | गज्ञ्जरा - स्त्रियोंकी कलाईका प्राभूषरण विशेष । नौग्रही - स्त्रियोंकी कलाईका ग्राभूषण । हिमंकरं - चंद्रमा रखत- नक्षत्र, ऋक्ष । सोभही - शोभित होता है । विराजमान - सुशोभित । अनोपए - अनुपम । पंकजं - कमल । १४८. समुद्रिका - मुद्रिकासहित । छलास एक प्रकारकी सादी अंगूठी जो घातुके तारके टुकड़े को मोड़कर बनाई जाती है। भौंर- भौंरा । रीझ - मोहित हो कर । रंगराग - हर्ष आनंद । I Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६५ रजै सुमंध' बूंद रेख,कोमळं करै' क्रिया । अनंग जांणि रूप अंक, चित्रकार चित्रिया ।। १४८ उरंस रूप में उदार, राजए उरोजयं । लघू चित्रांम जांणि लेख, सोवनं कळस्सयं' । कसे हरीस कूचकी'', उरोज अोप प्रांणिजै । छिपा रिमं जुगं छिपै, जळंज पात्र जांणिजै ।। १४६ कुचं १५ अलक्क' ६ छूटि केस, वेस जे प्रभा वणी । अई महेस पूजिवा, नवीन जांणि नागणी । कनंक'८ अंग रंग कंति, सोभ नाभ सुंदरं । मुनेस मोह रूप भोम'६, रास जांणि रंधरं ॥ १५० छजं२० चित्रं १ कटीस छीण, छुद्रघंट२२ छाजयं । सकौ ग्रहं ससिंघ रासि, एक साथि आजयं । १ ख. ग. सुमंधि। २ ख. वूद । ग. बुद। ३ ख. ग. कर। ४ ख. त्रीया । ५ ग. चित्रकार । ६ ख. ग. चित्रीया। ७ ख. ग. मै। ८ ख. रज्जए। ग. रझ्झऐ। ६ ख. लघु । ग. लघु। १० ख. कस्सयं । ११ ख. कुचकी। ग. कंचुकी। १२ ख. गं. छिपारिपं । १३ ख. ग. छिपे । १४ ख. जलंज । ग. जल्लज । १५ ग. कुंच । १६ ख. ग. अल्लक । १७ ख. ग. जं। १८ ख. ग. कंनक । *ग. प्रतिमें यह पंक्ति इस प्रकार हैं- 'कनक रंग अंग क्रांति सोभि नाभि सुंदर।" १६ ख. ग. भोमि। २० ख. ग. छज। २१ ख. ग. चितं । २२ ख. ग. छुद्रघंटि । २३ ग. ऐक । १४८. चित्रिया -चित्रित किये। १४६. उरंस - वक्षस्थल । उवार - ( ? )। उरोजयं - स्तन, कुच । लघु- छोटा । चित्रांम - चित्र । सोवनं - सुवणं, सोना। कळस्सयं - कलश, घट । कूचकी - कंचुकि । उरोज - स्तन, कुच। प्रोप - उपमा। छिपा - रात्रि । रिमं - शत्र । जळंज -- कमल । जाणिजे - मानों। १५० कुच - स्तन, कुच । अलक्क – मस्तकके इधर-उधर लकटते हुए मरोड़दार बाल । वेस - ( ? )। प्रभा - कांति, दीप्ति, शोभा। महेस - महादेव । पूजिवा - पूजा करनेको। जांणि- मानों । कनंक - कनक, सुवर्ण, सोना । ति - कांति, दीप्ति । सोभ - शोभा । नाभ -- नाभि । मुनेस - मुनीश, महर्षि । भोम - भूमि । रास - ( ? ) । रंधरं - रंध्र, छिद्र । १५१. छजं - शोभा। कटीस - कटि । छुद्रघंट - क्षुद्रघंटिका, करधनी । छाजय - शोभित होती है। सकौ - सब। हंन - ( ? ) । प्राजयं - अजा (?) is Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] सूरजप्रका रजंत जंघ खंभ रंभ, उरध' सोव्रनं घुमत्त' घग्घरं स घेर', *त' में & १० सुसुब्भरं ॰ । २ सरूप पिंड कस्स सोभ, सुंदरं झमक कंचनं भुलास", भूल पाइ घमं घमंक होत घेर, भंन्नीकार" १५ कांम फौज जांणि, यंत्र तमांम ऊचरै ।। १५२ जसौल 93 .१६ १७ इसी । जरक्कसी ॥ १५१ ८ २० पाए सुचंग स्यांम पाट, पै कनक नूपरं । मकंद कंज रक्खिमांन", पीत भौर ऊपरं । झक नूपुरास भीण, प्रोप तास एहड़ा 1 बदंत तोतळीस बांणि ४, जांणि पुत्र जेहड़ा મને 3 .२५ भंभरं । भंभरै । १ ख. ग. ऊर्द्ध । २ ख. सौवनं । ३ ख. ग. घुमंत । ४ ख. ग. घध्धरं । ६ ख. ग. क्रांति । ७ ख. ग. में । ग. पिडि । ख. ग. कासु । भरं । ग. सुसुरं । ११ ख. ग. झलूस । १२ ख. ग. पाय । १४ ख. ग. भातकार । १५ ग. जसोल । १६ ख. ग. श्राति । १८ ख. पोए । ग. पोऐ । १६ ख. ग. पाटि । २० ख. ग. रष्पिमांन । २२ क. श्रापतास । २३ ख. एहडी । ग. ऐहडी । २५ ख. ग. जेहड़ी । - ५ ख. घेरा । १० ख. सुसु१३ ख ग घणं । १७ ख. ग. उच्चरै । रंभ - केला । कंत - - कांति, । १५१. रजंत - शोभा देती है । जंघ - पिंडली, जंघा । खंभ - स्तंभ, सांभ । उरध - उर्ध्व । घग्घरं - लहंगा, घघरी घेर फैलाव ( ? ) दीप्ति । जरक्कसी- सोने-चांदीके तारोंका काम, जरकशी । १५२. सरूप - स्वरूप, सौंदर्य । सोभ - कांति । सुसुब्भरं - सुशुभ्र, स्वच्छ । झमक ध्वनि विशेष । झुलास भूल - स्त्रियोंका समूह, यूथ । पाइपैर । भंभरं - झांझर नामक आभूषण । घमं घमंक - चलनेकी ध्वनि । भंशीकार - ध्वनि विशेष । जसौल - यश गायक यंत्र - वाद्य । तमांम - सब । १५३. सुचंग - सुन्दर, मनोहर । विशेष । मद - फूलों का कंज - कमल । रक्खमांन झीण - महीनतम ध्वनि । श्रोष तोतळीस तुतलाते हुए बोलने वाली । जाणि - मानों । जेहड़ा - जैसा । 1 रस पाट - रेशम । पै - चरण । जिसे मधुमक्खियां प्रोर भौंरे ( ? ) । झणंक - ध्वनि । उपमा । एहड़ा ऐसा नूपुरास - नूपुर । बदंत - बोलता है । - ।। १५३ नूपुरं । २१ ख. ग. २४ ख. ग. वांणि - नूपरं पैरोंका आभूषण चूसते हैं, मकरंद | आदि - Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास प्रणोट वींछिया उदार, पाय पंख अनंग ह्वै छनंग अंग, रंग रंग में पयंस थांन रंग पूर, जावकं तणा ४ जिकै समान रंभ जांणि, आविया अगे १ जगे । कळाबतोस पोस कांम, जोति तास यौं जिकैस चाल हंस जांणि, लोभ धार पै इसी जिलंभ ₹ अनेक, रंग राग उच्चरी । लगे । 3 इसी " अनेक राजद्वार, सुंदरी सहच्चरी ।। १५५ इयांसु .१८ परी ३ चौगणास' .१३ रूप, इंद्र लोक इंदरां । १६ " चौगणा उदार, रूप राज घोड़ां वरणण 'मिंदरां" । , तुरी झळूस साज तांम धाव देत उडण पंखराज एम, पांण में १४ १ ख. ग. वीछीया । २ ख. ग. मैं । ग. श्रावीया । ६ ख. ग. पयं । जिकेस | १० ख. जलंभ | ११ परोस । १४ ख. ग. चौगुणास | १७ ख. राज्य । १८ ख. ग. म्पंदरां । श्रपारकं । पंकजं । रजं । जगै । अगे ।। १५४ अपारकं धारकं । ३ ख. ग. जावकां । ७ ख. ग. कलावतीस । ख. ग. यसी । १२ ख. ग. १५ ख. ईयांस । ग. ईवास । १६ ख. ग. ऐम । २० www [ १६७ - 1 १५४. प्रणोट - पैर के अंगूठे में पहिननेका एक प्रकारका छल्ला । बछिया-पैरोंकी अंगुलियों में धारण करनेका स्त्रियोंका प्राभूषरण विशेष । पाय पैर पंकजं कमल । श्रनंग - कामदेव । छनंग अंग - खंड-खंड, टूक-टूक । रंगपयंस थांन - ( ? ) । जावकं तणा - मेहदीके जिस । रंभ - अप्सरा, रंभा नामक अप्सरा । - • ग्रानंद । रजं - तुष्ट, खुश । । जगं - सुशोभित होते । जिके - - ४ ख. ग. जिके । ५ ख. ८ कयौ । ६ ख. ग. राजद्वारि । १३ ख. ग. १६ ख. ग. सौगुणा । ख. ग. मे । २१ ख. १५५. पोस कांम - कामदेवको पोषण करने वाली । जिलंभ - ग्राभा । सहचरी - सखी, सहेली, सेविका । ।। १५६ - १५६. परी अप्सरा । चोगणास चौगुना । राज मिदरां राज भवनों । तुरी - घोड़ा । झळूस - ( ? ) । साज सजावट कर के । धोव - विचार । घारकं - धारण करने वाला । उडांण - दौड़ पंखराज गरुड़ । पांण - शक्ति । अपारकं - असीम, I अपार । Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६८ ] सूरजप्रकास पवन्नि' सांमुहै पवंग, आसवार धारबै । बजंत' सौक' पाइ' बे, उबारत बिहारबै । उलट्ट ए पलट्ट यौं, झपट्ट ते सझावतं । समीर नां° मिळे सके, इतैस फेर'' प्रावतं ।। १५७ वछेर केतलं सवागि', फेरकं फरावतं । नटंस नाटक विधांन', साझना'४ सझावतं । नचंत चातुरीस नृत्य, जोड़ तातुरी जिसी'६ । परी न पांतुरी न पाइ", अातुरी करै इसी'८ ॥ १५८ छमासहूं मसत्त'६ छाक, चाचरै नरं चढ़े । अरोह वाज डाक आंणि, काळ कोठगै° चढ़े' । तरील दै हरोळ२२ ताम, हट्ट हूंत हल्लवै । पटा गिरंद खाळ पूर, ऊपटा१५ उझल्लवै ।। १५६ १ ख. ग. पव्वनि। २ ख. ग. वजंत। ३ ख. ग. सोक । ४ ख. पायवै । ग. पायबे । ५ ख. उवायतै । ग. उवायनै । ६ ग. ऐ। ७ ख. ग. न । ८ ख. ग. म्मिले। ९ ग. इतेस। १० ग. फेरि। ११ ख. ग. सवाग । १२ ख. ग. नाटिकं । १३ ग. निधान । १४ ख. ग. साधना। १५ ख. ग. नृति । १६ ख. यसी। १७ ख. ग. पाय। १८ ग. इ। १६ ख. ग. मसत । २० क. गोठग। २१ ख. कढ़े। ग. कढ़े। २२ ख. ग. हरौल। २३ ख. हव । ग. हव्व। २४ ख. दूर। २५ ख. ऊपट्टा । १५७. पवनि - पवन, वायु । सांमुहै - सम्मुख, सामने। पवंग - घोड़ा। पासवार - अस वार। सौक -- तेज दौड़, गति, प्रवाह आदिकी ध्वनि। बिहारब - ( ? ) । झपट्ट-दौड़, तेज दौड़ । समीर – हवा, पवन । १५८. बछेर - छोटा घोड़ा। सवागि - वल्गा सहित । फेरकं - घोड़े, ऊँट आदिको चाल सिखाने वाला। विधांन - ढंग, प्रकार। साझना - साधना सिद्धि। चातुरीस - दक्षता, चतुराई। जोड़ - समानता। तातुरी - वरा, शीघ्रता, चंचलता ( ? )। परी- अप्सरा । पांतुरी - वेश्या, रंडी। पाइ - पर। आतुरी - शीघ्रता । १५६ मसाल-मस्त। छाक.-.? ) चाचर - ललाट, माथा । अरोह - सवारी, पारोह । ए का बड़ा तरीका (1) हरळ.- अगाडी हरावल । हट्ट हूंत - ( ? ) । हल्लवै - चलते हैं या चलाये जाते हैं। Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास हाथियांरौ वरणण 9 डांस' बेड़ियां डहै', जंभीर* भार जूवळां । करंत खून काळकीट, सुंड नाग़ सांमळां धतांधतां चरक्ख' धोम, ऊडि झाळ ऊछ । कराळ रूप कोप में, उखाड़ि वच्छ ग्रांम ॥ १६० ε .१२ उत भूत-सा अनेक, जोम काळ जेहड़ा । सभंत सूंड " हूं सलांम, प्राय प्राय एहड़ा' घडाळ ३ नौबती" घुरंत, जैदराज " नागरं । हिलोळ में किलोळ होत, सद्द जेम सागरं दिपंत " एम" राजद्वार, राजनग्र राज में ' जो हिंदवांण जोड़, एणवार" प्राजमें" ६ १७ ह a २ ३ १५ ६ छकं 'अभौ धणी । २६ घणो प्रभा वणी ।। १६२ ५ ख. ग. इसौ विलोकि रीझयौ ४, घरं मी सुद्रस्ट" सींचियो", वळे १ ग. डंगंस २ ख. ग. बेड़ीयां । ३ ख. ग. हे । ४ ख. ग. जंजीर । चरख । ६ ख. ग. उडि । ७ ख. ग. उछ । ८ख. ग. मै । ६ ख. ग. वृछ । १० ख. ग. श्रौत । ११ ग. सूंडि । १२ ग. ऐहड़ा । १३ ख. ग. घड़ाळि १४ ख. ग. नौवती । १५ ख. जद्दराग । ग. जद्दराग । १६ ख. मं । ग. में । १७ ग. दिपांत । १८ ग. ऐम । १६ ख. में । ग. में । २० ख. हंदुवाण। ग. हंदुवोन । २१ ग. ऐणवार । २२ ग. श्राजमें । २३ ग. बिलोकि । २४ ख. रोझयौ । ग. रोमियो । २५ ख. धरे । ग. धरै । २६ ग. श्रभै । २७ ख सुद्रिष्ट । ग. सुद्रिष्टि । २८ ख. ग. २६ ख. वले । ग. वळें । सोंचीयौ । ० Bo ५ - [ १६६ I १६०. डांस - निगड, हाथीके पैर बाँधनेकी जंजीर । उहै - धारण करते हैं । जूवळां - पैर, चरण । काळकोट - प्रत्यन्त श्याम | सांमळ - श्याम, काला । धतांधतां - हाथीको पीछे हटानेका शब्द । चरक्ख - तोप । धोम - अग्नि । भाळ - अग्निकी लफ्ट । श्रांमळ - दलमलते हैं, कुचलते हैं । १६१. उधृत - उद्दण्ड । भूत-प्रेत I सा - समान, तुल्य जोम - जोश । काळ - यमराज । जेहड़ा - जैसे । सभंत करते हैं । सलाम - नमस्कार, अभिवादन | एहड़ा - ऐसे घडाळ - घड़ियाल, घंटी । नौबती - राजाओं और अमीरोंके दरवाजे पर बजने वाला वाद्य विशेष, नौबत । घुरंत बजती है । जै-जय । दराज - महान । हिलोळ - तरंग । किलोळ - ध्वनि, क्रीड़ा, खेल । सद्द - शब्द | १६२. दिपंत - शोभा देता है । राजन - राजनगर । हिंदवांण - हिन्दुस्तान । एणवार - इस समय । छकं - वैभव । श्रभी- अभयसिंह | धणी - स्वामी । ग्रमों - अमृत । सुद्रस्ट - शुभ दृष्टि । सोंचियो सींचा । प्रभा - कांति, शोभा । १६१ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७० ] सूरजप्रकास इसौ समाज राज ऊँच, दीपियौ' नरिंदरै' । समाज अंम्मरं झुग' इसौ, जिसौ न राज इंदरै । दुवौस" जोड़ि ग्वाग दन्नि', तेण सूं धरापती । नरांपती जोधाण नाथ, ऐहड़ौ 'अभपती' ।। १६३ दूहा' - सब हिंदू राजा'२ सिर, अभपति अमलीमांण । स्रब गढ़ हिंदवांणां' सिरै, जाजुळ१४ गढ़ जोधांण ॥ १६४ जे'५ चाकर जोधांणरा, इळ इतरा गढ़ ांन । अंबनयर मंत्री इसौ, उदियापुर१६ परधांन ।। १६५ प्रथम बगीचारौ वरणण दवावत ऐसा गढ़ जोधांण और सहरका दरसाव, जिसके ८ चौतरफकौं वागीचूका डंबर और दरियाऊंका'६ वणीव । पहिलै वागीचूंकी सोभा कहिके० दिखाय'', पीछे दरियाऊंकी तारीफ जिसके ४ गुन ५ गाय । सो कैसे१६ कही दिखाय, जळ२८ निवांणूंका निवास १ ख. ग. दीपोयो । २ ख. ग. नरयंद। ३ ख. श्रुमं । ४ ख. दुवोन । ग. दुवौन । ५ ख. ग. जोड़। ६ ख. दांनि । ग. दानि । ७ ख. ग. धरप्पती। ८ ख. एहडौ । ६ ख. ग. अभपती। १० ख. ग. दोहा। ११ ख. ग. हींदू । १२ ग. राजां। १३ ख. हिंदुसिर । ग. हिंदवांणा। १४ ख. ग. जाजुलि । १५ ग. जो। १६ ख. ग. उदीयापुर । १७ ख. ग. असा। १८ ख. ग. जिसके। १६ ख. ग. दरीयाऊंका। *यह वाक्य ग. प्रतिमें नहीं है। २० ख. कहिके। २१ ख. दिषाव। २२ ख. पार्छ । २३ ख. दरीयाऊं। २४ ख. जिसके । २५ क. न. । २६ ख. सो सो कैसे । ग. सोकैसे । २७ ख. ग. कहि । २८ ख. ग जल । १६३. ऊंच - श्रेष्ठ । दीपियो - शोभायमान हुआ । नरिंदरे - नरेन्द्रका, राजाका । अंम्मरं - देवता । स ग - स्वर्ग। दुवौस - दूसरा ही। जोड़ि - समानतामें। खाग दन्नियुद्ध और दानमें। तेण - इससे । घरापती - राजा। नरांपती - राजा, नरेश । प्रभपती- अभयसिंह। १६४. लव- सब। सिरै - श्रेष्ठ । अभपति - अभयसिंह । अमलीमांण - अपने ऐश्वर्यका उपभोग करने वाला। हिंदवाणां - भारतवर्ष । जाजुळ - जाज्वल्यमान, तेजस्वी । १६५. इळ - पृथ्वी, संसार । प्रान - अन्य । अंबनयर - आमेर । उदियापुर - उदयपुर । १६६. बरसाव - दृश्य, नज्जारा । चौतरफकौं- चारों ओरका । डंबर - समूह । वणाव - रचना, बनावट, शोभा, शृंगार। जळनिवाणूंका - जलाशयोंका। Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १७१ रतिराजका वास । गुलजारके रसतै हौजूका' वणाव । 'इंद्र लोकका सा उदोत' अवांसूका दरसाव । फौहारूकी पंकति जळ-चादरूंका' उफांण । जळ-चादरूंकी धरहर मानूं छिल्लै महिरांण। स्त्रीखंडूंका डंबर समीर' से झोला खावै । मलियागिरके भौळे भूलि पंखेसर मिणधर भुजंग पावै । अंबूंका समूह फळ जंबूंका" विसतार'। कोकिलूकी कोहक मोर चात्रक' अपार । चंपूंकी अंधेरी बोळसरूंके ४ थंड । रतिराजके'५ असपक्क आसापालक्के ६ झंड। सोनजुह" रियाबेल'८ चंबेल ६ चंबेलीके फुलवाद मोगरेकी महक गुलाब फूलूकीसुगंध जवाद । १ ख. ग. हौजूका । २ ख. ग. उद्दोत । ३ ख. ग. धारूंका ! ४ ग. ऊफांण । ५ ख. समैर । ६ ख. झूला। ग. भूल। ७ ग. मिलियागिरके। ८ ख. भोले। ख. अंका। ग. अंबुका। १० ख जंबूका। ग. झंबूका। ११ ग. विस्तार। १२ ख. ग. कोहोक । १३ ख. ग. चात्रिक । १४ ख. बौलसरूके। ग. बौलसूरी। १५ स्व. ग. रतिराजकेसे । १६ ख. ग. प्रासपल्लवके । १७ ख. ग. सोनजुही। १८ ख. यवेल । ग. राबेल । १६ ख. चंवेली । ग. चंबेली। २० ख. ग. मोगरेको । २१ ख फुलूकी । ग. फूलंकी । १६६. रतिराज – कामदेव, वसंत ऋतु । गुलजारके - उद्यानके, वाटिकाके । उदोत - प्रकाशमान । प्रवासूका- भवनोंका । फ्रौहारूंकी- फव्वारोंकी । जळचादरूंका-पानीकी चौड़ी धार जो कुछ ऊपरसे गिरती हो। उफांण - उमड़ना। घरहर - ध्वनि, आवाज । छिल्ल - उमड़ रहे हों, सीमा-उलंघन कर रहे हों। महिरांण - महार्णव, सागर, समुद्र । स्त्रीखंडूंका - चंदनका। डंबर - समूह। समीर - वायु । झोलावायु-प्रवाह या वायु-प्रवाहका प्राघात । मलियागिर - चंदनगिरि । भौळे - भ्रममें । भूलि - भूल कर, भ्रममें पड़ कर । पंखेसर - पंखधारी। मिणधर - मणिधारी सर्प । अंबूंका - आमोंका । जंबूका- जामुनका (?) । कोहक - कोयलकी आवाज । चात्रक - चातक । चंपूकी - (चम्पाकी ?) । बोळसरूके – मौलश्रीके। थंड - समूह । प्रसपक्क - बड़ा तंबू, खेमा, अस्वक । प्रासापालवके - अशोक वृक्षके । झंड - समूह । सोनजुह - एक प्रकारकी जूही जिसके फूल पीले रंगके होते हैं, स्वर्णयूथिका । रियाबेल - रायबेल, चमेली आदिकी जातिका एक प्रकारका छोटा पौधा जिसमें सफेद रंगके सुगंधित फूल लगते हैं। चंबेल - ( ? )। चंबेलोके - चमेलीके । फुलवाद - पुष्प, फूल । मोगरेकी - एक प्रकारका बहुत बढ़िया बेला (पुष्प) । जवाद - ( जवाजा ? )। Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७२ ] सूरजप्रकास मालती सेवती केतकी प्रफूलमांन' । फूलूकी सोभा असमानके तारूंका विधांन'। *केवकी बाड़ी सिरूंका विकास। नाफरमां हजारा औरे' गुलहूवास । गुललालके डंबर सूरगुलूका प्रकास । दाबदो अजूबां गुलरोसका उजास । गुल-नौरंग महंदी गुल-रेसमी गल सोहै। मुनमथका इंदका मुनेस्वरूका मन मोहै। फलफूलूके'२ भार भरी अढ़ार' भार । ठाम ठांमके ऊपर मोरूंका तंडव भौंरू का गुंजार' ।' ठांम ठांम सेती रतिराजके ५ नकीब कोकिला बोलै । "सीतल मंद सुगंध तीन प्रकारके झोले । अंजीरूंके'६ दरखत नागलताके वरेलि"। अंगूर सरदूं फळी'८ अनेक ६ बेलि । १ ख. प्रफुलमांन । २ ग. प्रासमानके। ३ ख. विकास । *ख. प्रतिमें नहीं है। ४ ग. वाड़ि । ५ ख. और । ग. प्रोर । ६ ख. ग. गुलहकेवास। ७ ख. गुललालूके । ग. गुललालके। ८ ख. उंवर । ग. डब्बर । ६ ग. सूरजगलंका। १० ख. ग. दाऊदी। ११ ख. ग. इंद्रका। १२ ग. फूलके । १३ ग. अट्टार । १४ ग. गुंझार । १५ ख. ग. रतिराजकेसे । ग. प्रतिमें इस प्रकार है-सीतल मंद सुगंध तीन प्रकारके पवनके झोले । १६ ख. ग. अंजंरूके। १७ ख. ग. वरेल । १८ ग. सरसफली। १६ ख. ग. अनेक । २० ख. वेल । ग बेल। १६६. मालती- एक प्रकारकी लता जो हिमालय और विंध्याचल पर्वतके बनोंमें अधिकतासे पाई जाती है। सेवती - गुलाबकी एक किस्म जिसके फूल सफेद रंगके होते हैं । केतकी - एक प्रकारका छोटा भाड़ विशेष, केवड़ेका एक भेद विशेष । प्रफूलमांन - प्रफुल्लित, विकसित । तारूका- तारागणके, उडुगणके । विधान - रचना, बनावट, निर्माण । केवड़ की - सफेद केतकीके पौधेकी जो केतकी से कुछ बड़ा होता है। सिरूंकासिरू का पौधा विशेष । नाफरमां - एक प्रकारका पौधा जिसके फूल ऊदें या बैंगनी रंगके होते हैं, ना-फरमान । हजारा-जिसके हजार या अधिक पंखड़ियांहों, सहस्त्रदल । गुलहू पास - गुले-अब्बास, लाल व पीले फूलों वाला पोधा, गुलहबास। ( ? )। गुललालके - गुल्लालाके ( ? ) डंबर- समूह, महक । सूरगुलूका- (?) दावदी - एक प्रकारका पौधा जिसके श्वेत रंगका पुरुप होता है, दाऊदी। अजूबां - ( ? ) । गुलरोसनका – ( ?) गुल नौरंग - ( ? )। महंदी - मेंहदी। मुनमथका - मन्मथका, कामदेवका। अढ़ार भार – अष्टादश भार वनस्पति । मोलंका - मोरोंका। तंडव - नृत्य । भौंरूका - भौंरोंका। रतिराजके - वसंत ऋतुके । नकीब - राजा महाराजा व बादशाहकी सवारीके आगे नजरदोलत शब्दका उच्चारण करने वाला। झोले - वायु-प्रवाह, वायुका झोंका। सरदूं- एक प्रकारका लम्बोतरा खरबूजा जो काबुल में अधिक होता है, खरबूजोंमें यह श्रेष्ठ गिना जाता है । Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १७३ 9 १.४ १७ बेदांने' दाखां बेदांनै' अनार | चिलको चै ' बेह और सेवूंका विस्तार" । कपूर - गरभ केळीका जूथ केळंकी भूंब । स्त्रीफळ विदांम' और नींबूके" लूंब । कमळा रेसमी नारंगी पैबंदूका हूंनर अदभूत । रोसनी हमरांनी सुरखांनी सहतूत ऐसे दरखतूंके" ऊपर रिमीले " फळंका रसपान कर १३ । कीर कीला करते हैं । रस सुगंधके डंबर' भोम" पर भरते हैं । ऐसे वगीचूंके" वीचमें " सलियळ सरोवर कैसे । महाराजा वसंतकी फौजके नीसांण जैसे । सघन गंभीर प्रारामूंका पार नहीं आवै । आफताफका तेज जिसकी छांहको भेद जमी लग न जावै । ऐसे ही जोधांण तैसे * ४ वगीचै" । मंडोवर के बीच जैतकारी काळे गोरे महावीरूं १६ .२० १ R 3 ६ निवास । जहां स्त्री महाराजके खड़ग २६ भैरूंका वास । ऐसे " वगीचूंका મ ८ २७ १ ख. वेदांने । ग. वेदानं । २ ख. ग. वेदांने । ३ ख. ग. चिलकौचे । ४ ख. वेही । ग. वीही। ५ ख. ग. विसतार । ६ ख. ग. वदांम । ७ ग. नीबू । ८. पैबंदका । ख. ग. हुन्नर । १० ख. से। ग. अँसे । ११ ख. दत् । १२ ख. रसीले । ग. सीतल । १३ ख. ग. करि । १४ ख. डंवर । ग. डंब्बर । १५ ग. भौम arita | ग. वीके । १७ ख. वीचमै । ग. बीच में । १८ ख. ग. सलीयल ग. सरोस । २० ग. प्रासूका । २१ ख. ग. नहीं । असे । गं. असे । २४ ख. ग. तेसे । २५ ख. ग. वगीचे । माहाराजाके । ग. माहाराजके । २८ ख. ग. महावीर । २६ ख. भैरूंका। ग. भैरूऊंका । ३० ख. से। ग. से । २२ ख. ग. छोहकूं । 1 २६ ग. वीचि । २७ ख. १८ । १६६. चिलकोचे - एक प्रकारका मेवा । बेह - कमलकी नाल । सेवूंका - सेव नामक फलका । कपूर - गरभ - कपूर है गर्भमें जिसके । केळीका - कदलीका। जूथ यूथ, समूह | केळंकी - केला नामक फलका । भूंब - फलोंका गुच्छा, गुच्छा । स्त्रीफळ - नारियल । लूंब - गुच्छा, जो लटकता है। पैबंदूका किसी वृक्षकी शाखा काट कर उसी जातिके दूसरे वक्ष में जोड़ कर बांधना जिससे फल बढ़ जाय और स्वादमें भी नवीनता हो सुरखांनी ( ? ) । जाय । रोसनी - ( ? ) । हमरांनी - ( ? ) । रिसीले रसिक, रसास्वादन करने वाला । कीर - तोता । कीला - क्रीड़ा, खेल । डंबर - समूह । भोम भूमि । सलियळ - पानीसे पूर्ण । नीसांण- वाद्य विशेष । सघन - घना गंभीर - गहरा। आरामू का - वाटिकाएँके, उपवनोंके । श्राफसाफका - सूर्यका । तेज धूप, प्रकाश । जैतकारी - विजयी । भैलंका - भैरव नामक देवका । - — १६ ख. ग. १६ स्व. २३ ख. Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७४ ] सूरजप्रकास सिंगार' सोभाका अथाग । "सिरूंका सिंगार असे बने हैं बाग। कागा नांम काकरिख भुसंडी' दिलके वीच धारी। सब भूमि सेती उत्तिम भूमि देखि तपस्या करनेकी विचारी। केतेक दिन तपस्या करि आराम लगाया। तिस काकरिखके नाम कागा कहाया । तिस बगीचूके' दरम्यान वरणै जेते फळफूलूका विस्तार । सब्बूके सिरपोस आनारूंका अधिकार। सौ बेदाणै अनारके'• से रसके पूर हीरूं मांणीकूकी' जोती'। स्वात५३ बूंदसे दूसरे मां अम्रतके'५ मोती। ऐस१६ अलोकोक मेवै विसन सकतिकू८ अरपण करि प्रसादीक ६ आरोगैणेमै आवै। केतेक हजूरके २२ सेवगर दुज कवि उमराव मंत्री तिनकू बगसावै । असे अनार बहुत सी मनुहार बहुत सी लिखेतै २४ किसी किसी बखत पातसाहूंके पास रसाळ १ ख. ग. शृंगार। *यह पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियोंमें नहीं हैं । २ ख. भ्र संडी । ग. भ्र सुंडी। ग. प्रतिमें यहांसे प्रागे निम्न पंक्तियां और मिली हैं । इसमें उपरोक्त पंक्ति भी निम्न प्रकार है'कागा नाम काक रिष - सुंडीका बाग । सो किस वजे से हू वाहि दिषाय । ऐक स4के वीच काकरिष भ्र सुडी दिलके वीच धारी।' ३ ख. करनेकी । ग. करने । ४ ख. ग. नांय । ५ ख. ग. वागीचेके। ६ ख. ग. धरणे । ७ ख. ग. विसतार । ८ ख. सव्वूके । ग. सबूंके । ६ ख ग. वेदाने । १० ख. ग. अनारक। ११ ख. ग. माणिक । १२ ख. जोति । १३ ग. स्वांत । १४ ग. बंदसे । १५ ख. ग. अमतके। १६ ख. असे । ग. प्रेस । १७ ख. ग. मेवे । १८ ख. सकतीकू। १९ ख. प्रादीक। २० ख. अरोगनमै। क. पारोगनेमै । २१ ग. पावें । २२ ग. हझुरके । २३ ख. ग. मनुहार। २४ ग. लिखते। १६६. काकरिख – एक ब्राह्मण जो लोमश ऋषिके शापसे कोया हो गये थे, काकभुशुंडि । कागा-जोधपुर नगरके पास स्थित एक पवित्र स्थान। दरम्यान - मध्य, बीच । सब्बूके - रजनीगंधा नामक पौधा या उसका फूल ( ? )। सिरपोस - शिरका प्रावरण । होरूं - हीरे। मांणीकू - माणिक्योंको। स्वात बूंदसे - स्वाति नक्षत्रकी बूंद जैसे मोती। विसन - विष्णु। सकती - दुर्गाको, देवीको। परपण - भेंट, अर्पण । प्रसादीक - प्रसाद । सेवगर - सेवक । दुज - ब्राह्मण । रसाळ - स्वादिष्ट और मीठे फल । Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १७५ तरीक भिजवावे' । जिन्हू के रस सवाद देखे से विलायत के पातसाहके' भेजै' । विलायत त [क]के बेदांने अनार सो' पैमाल जावे" । जिनके रस सवादके मजा देवतूंका" मन हरे" । दिल्लेसुर" ऐसे ४ बगीचे" अनेक ह १४ .१५ १३ परमेसुर जिसकी स्त्रीमुख से तारीफ करें। सो तौ संखेप'" वरनै सुभाय । ६ 5 १६ ad अब दरियाऊंकी तारीफ * सो कहिकै दिखाइ । जगजीत जोधा के दरियाव कैसे। प्रभेसागर बाळसमंद दोऊ मानसरोवर जैसे " । अम्रितके समुद्र तैसै लहरूंके प्रवाह. जिनका रूप देखे से छीरसमुद्रका गुमर भाजै । गंभीर नीर तिम .२३ ४ २६ .30 अनेक पावे नहीं था । सारस तिममंगळ " ग्राह । थागतै बतक मुरगाबी बक खेल कुमार" हंजे । छहूं रिति नचंत तीर खंजन 8 3 ताळावांरौ वरणण *.... नहीं हैं । १ ग. भिजवावं । २ ख. जिन्हुके । ग. तिन्हूके । ३ ग. देवें । ४ ग. पातिसाह के । ५ ख. ग. भेजे । ६. ग. सोपं । ७ ग. जावें । ८ख. ग. जिसके । ६ ख. ग. स्वादका । १० ग. देवकां ११ ग. हरें । १२ ख. ग. दिलेसुर । १३ ग. त्रमुखसे । * ये पंक्तियां ग. प्रतिमें १४ ख. स । १५ ख. वागीचे । १६ ख. । १७ ख. संपेष | १६ ग. सौ । २० ख. ग. दिषाय । २१ ग. गढ़ जोधांणके । २२ ग. केस जैसे । २४ ख. हलके । २५ ग. छाजें । २६ ख. जिन्ह । ग. जिन्हूं । तिमतिमगल । २८ ग. थाघ । २६ ग तें । ३० ग. अन के | ३१ ग. ३२ ग. कुंमार । ३३ ख. रति । ३४ ख. ग. जिन्हुके । ३५ ख. ग. तटि । ब्रह्म के ग्यांनी । १८ ख. वरने । । २३ ख. २७ व. ग. हरषि । ३६ ख. - संजे । हरख ३ " जिन्हूंके ३४ तट ३५ परि ब्रह्मग्यांनी १६६ तरीक - विधि, प्रकार, ढंग, तरीका | मजा - - आनन्द, रसास्वादन | दिल्लेसुर - दिल्लीश्वर, बादशाह । संखेप संक्षेप दरियाऊंकी - तालाबोंकी । लहरूंके - तरंगों के, हिलोरोंके | छार्ज - शोभा देते हैं। से- सब । छीरसमुद्रका - क्षीरसागरका । गुमर - गर्व । भाज- नाश होते हैं, मिट जाते हैं । तिममंगळ - समुद्र में रहने वाला मत्स्य प्रकारका एक बड़ा भारी जंतु जो तिमि नामक बड़े मत्स्यको भी निगल जाता है। ग्राह- मगर, घड़ियाल । याग नदी, तालाब, समुद्र प्रादिके नीचेकी जमीन, थाह । मुरगाबी मुरगेकी जातिका एक पक्षी मछलियाँ पकड़ कर खाता है । हरख - हर्ष । नचंत तट, किनारा हंजे - सुन्दर, मनोहर । छहूं - छही। जो जलमें तैरता है। नृत्य करते हैं । तीर - छाजै" । २५ - रिति ऋतु । - Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७६ ] सूरजप्रकास ६ . १२ 93 १४ १६ १७ सिध' मुनिराज छावै ' । मानसरोवर के ' भौळे* भूल' अनेक ( क ) * लीलंग आवै । ऐसे दरियाऊंके वीचमें " जिहाज सते से धरवाय । चंदणी" विछायत करवाय महताबी जरदोजी के बंगळे समीयांने' तणवावै ' । तहां स्त्री महाराजा राजराजेस्वर नरलोकके इंद्र छभा संजुत" विराजमान होय मजळस वणवावें । रस- कवितूंकी चरचा रंगराग " अपार । कुमुदाँकी' फूलूं पर भंवरूंका गुंजार" । सरदकी चंदणी चंद्रवंसी विमळूंका उजास । रितराजके" दिवस तहां सूरज वंसी कंवळूंका प्रकास । इस वजै खटरितुकी क्रीला जल्ले ४ गुलांबूंकी छाक । तिसके देखे " ते होत रितराज मुस्ताक । लावन्य रूप देखि रितराज लोभा । सब राजसकी जळूस सेती गढ़ जोधाणकी सोभा । ऐसा * २६ २८ एक प्रथमीकी पीठ पर गंजी ३६ 10 २० 4 3 १८ ७ १ ग. सिद्ध । २ ग. छावें । ३ ख ग मांनसरवरकै । ४ ख भोले । ग. भौंलें । ५ ग. भूलि । ६ ख. ग. अशोक । ७ ख लालंग । ८ ख से । ग स । ६ ग. दरियाऊंके । १० ख. बीचमै । ग. वीचमै । ११ ख. चांदणी । ग. चांदणीको १२ ख. ग. जरदोजीके । १३ ख. ग. समियांने । १४ क. तनवावे । ग. तणवांवें । १५ ख. ग. संजुगत । १६ ग. वणवांवें । १७ ख. रागरंग । १८ ख. कुमट्टू की । ग. कुमत के । १६ ग. गुइभार । ग. चांदणी । २१ ख. रितिराजके । २२ ग. बंसी । २३ ख. ग. कमलूका । लगे । ग. गले । २५ ख. देषं । ग. देषे । २६ ख. तराज । २७ ख. ग. २८ ग. ऐक । २६ ग. प्रिथमो । १६६. छावं - शोभा देते हैं, फैले हुए हैं। भौळं- भ्रम में, भूलमें । लीलंग - हंस । सते से - धीरेसे । धरवाय - रखवा कर । चंदणी - बिछानेका सफेद रंगका कपड़ा । विछायत - बिछाने का कपड़ा या बिछानेकी क्रिया । महताबी- किसी बड़े भवन के प्रागे अथवा बागके बीच में बना हुआ गोल या ऊँचा चबूतरा जिस पर लोग रात्रिमें बैठ कर, चांद चादनीका श्रानन्द लेते हैं, अथवा = जरबत्फ । जरदोजीके- सल्मे सितारा और जरीका काम, कारचोबीके । समीयांने शामियाना, बड़ा तंबू । छभा - सभा । संजुत संयुक्त सहित । मजळस - बहुत से लोगों के बैठनेकी जगह, मजलिस, सभा । कुमुदाँकी - लाल कमलोंकी, कुमुदोंकी। भंवरूंका - भौंरोंका रितराजके - वसंत ऋतुके । दिवस-दिन । कंवळंका कमलोंका। रितु ऋतु । क्रीला - क्रीड़ा । जल्ले ( खिले हुए चमकदार ? ) । छाक - ( ठाठ ? ) । रितराज - ऋतुराज, वसंत ऋतु । मुसताक - उत्कंठित, मुश्ताक | लावन्य - सुन्दरता, लावण्य | लोभा - लुभायमान हुआ । श्रगंजी - प्रजयी । - २० ख. २४ ख. सा । Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास । १७७ गढ़ जोधाण । जिसने' वारंवार सरण रक्खे' राव राजा रावळ रावत अरु रांण । अंबगढ़का राजा, चित्रगढ़का' राणा सिर ईसांनं वहै । और भी राव राजूक बखत पड़े सो सरणा गह्या चहै। सरण तकिके महाराजाके कदमू आवै । जिसकू समसेरके पांणि फिर उतनको मसलति'१ बैठावै। जैसा जिस'3 जोधांणगढ़का पातिसाह सो कीरतिका नाह। महाराज प्रभैसींघजीरो वरणण - सरणाई साधार सरणाई१४ राय विजै१५ पंजर रूपका अनंग प्राजांनबाह'६ । *खटवनका सुरतर हिंदुसथांनका पातिसाह ।* तेजका झाळाहळ पौरसका धाम । जससुगंधका भंमर प्रारंभका रांम । वाचका जुजिस्तर१७ साचका विधांन । सतका'८ हरचंद'६ द्रोणसा मांन' । सीलका गंगेव भारथका पाथ । नरूंका जंवहरी जोधांणका नाथ । मेरसा अचळ धू जैसा ध्यांन । संकरसा तपसी गोरखसा ग्यांन । लाजका समुद्र १ ख, जिसने । ग. जिसनं। २ ख. ग. रखे। ३ ख. ग. चित्रकोटका। ४ ग. बहै । ५ ख. ग. गति । ६ ख. ग. तकीक । ७ ख. ग. माहाराजाके। ८ ग. प्रावै। ६ ख. ग. फिरि । १० ग. उत्तनको। ११ ख. ग. मसलंद। १२ ख. वैठावै। ग. बैठांवें। १३ ख. जिसि । १४ ख. ग. सरणाय । १५ ग. बिजें। १६ ग. प्राइझान । *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। १७ ख. ग. जुजिस्तल । १८ म. सत्तक । १६ ग. हरचंदद । २० ख. जोण । ग. झोण । २१ ख. सामान। २२ ख. सामुद्र । १६६. अंबगढ़का- आमेरका। चित्रगढ़का-चित्तौड़गढ़का । ईसांनं - अहसान । वहै - धारण करता है। कदमू-चरणोंमें। समसेरके - सलवारके। पाणि - बल, शक्ति । उतनको -जन्मभूमिकी, वतनकी। मसलति - परामर्श, सलाह, मस्लहत । पातिसाह - सम्राट । नाह - नाथ, स्वामी । सरगाई साधार - शरणमें पाए हुएकी रक्षा करने वाला । सरणाई राय - राजा, महाराजाओंको शरण देने वाला। पंजर - शरीर । अनंग - कामदेव । प्राजांनबाह - आजानुबाहु । खटवनका - ब्राह्मणादि छ: जातियोंका। सुरतर - कल्पवृक्ष। झाळाहळ - सूर्य, अग्नि । भमर - भौंरा । वाचका - वचनोंका। जुजिस्तर - सत्यसंध, युधिष्ठिर । हरचंद - हरिश्चंद्र राजा । द्रोण - द्रोणाचार्य ऋषि । सीळका - सदाचारका, सद्वृत्तिका । गंगेव - गांगेय, भीष्म पितामह । भारथ - युद्ध । पाथ - पार्थ, अर्जुन । नरूंका - नरोंका, वीरोंका । जंवहरी- जौहरी। मेरसा - सुमेरु पर्वतके समान। धू - भक्तराज ध्रुव, ध्रुव नक्षत्र। Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७८ ] सूरजप्रकास करण-सा दातार । बीकम-सा' बिवेकी' परा-उपगार । पांणका कपिराज सूरजका वंस । देवीका वरदाई दईवका अंस । दिलका दलेल लहरूंका दरियाव । रूपक केसरीज' गजबंधका' सभाव । दवागीलंका सुरतर दावागीरूंका साल । सब राजूंका सिरपोस'' महाराजा' अभमाल । जस बखतमें सनांन१५ दांन ग्रंबाका पूजन करि सिरै दरबारका हुकम किया। फरमांवरदारूंनै प्रादाब वजाय" लिया । अा१ मिसलके हवालगीर केउ धाए । फरासून प्रावासू वीच विछायत वणवाए। लाहानूर मुसैद अंजीलकी चोपस्मी गिलमूंकी' विछायत करै। १ ख. ग. वीकमसा। २ ख. ग. विवेकी। ३ ग. सूरिजका । ४ ख. ग. रूप। ५ ख. कौसरीझ । ग. कौसेरीझ । ६ ख. गजवंधका। ७ ख. ग. सुभाव । ८ ख. ग. दवागीलंका। ६ ग. सूरतर। १० ग. राजौंका। ११ ग. सिरपोस । १२ ख. ग. माहाराजा। १३ ख. ग. जिस । १४ ख. बखतमै। ग. बखतमें। १५ ख. ग. सन्नांन। १६ ख. ग. अंबिका। १७ ख. ग. सरे। १८ ख. ग. कीया। १६ ग. बजाय। २० ख. ग. लीया। २१ ख. ग. पाठौ । २२ ख. ग. मिसके । २३ ख. हवालगीरनको । ग हवालगीरनक्वी। २४ ख. वधाए। ग. बधाऐ। २५ ग. फरासूनं। २६ ख. ग. प्रारासू। २७ ख. ग. वीचि । २८ ख. वाणवाए। ग. वणवाऐ। २६ ख. ग. लाहानूर । ३० ग. मुसैंद । ३१ ख. ग. गिल्मू की। ३२ ग. करें। १६६. बोकम-सा- विक्रमादित्य जैसा । परा-उपगार - परोपकार । पांणका - प्राणका, शक्तिका, बलका। कपिराज - हनुमान । देवीका वरदाई - देवीसे वरदान प्राप्त करने वाला। दईवका - परब्रह्मका, ईश्वरका, श्रीरामचंद्र भगवान्का । दलेल - उदार, विशाल। लहरूंका - तरंगोंका, हिलोरोंका । रूपक - स्वरूपका । केसरीज - जाति विशेषका सिंह। गजबंधका - महाराजा गजसिंहके। दवागीलंका - दुआ करने वालोंका, दुआगोओंका, शुभचिंतकोंका। सुरतर - कल्पवृक्ष। दावागीलंका - शत्रुअोंका। साल - शल्य । सिरपोस - शिरत्राण, शिरका रक्षक । जस - जिस । अंबाकादुर्गाका, देवीका। फरमाबरदारूंन - प्राज्ञाकारियोंने, हुक्म मानने वालोंने । प्रादाब - शिष्टाचार। पाठू मिसलके - वे पाठ ही बड़े सरदार जो जोधपुरके राजाके पासकी पंक्तिमें बैठते थे। हवालगीरके - ( ? )। उधाए - ( ? ) । फरासून - वह व्यक्ति जिसके जिम्मे दरबार या मजलिस आदिके फर्श प्रादि बिछाने यो रोशनी आदि करनेका प्रबंध हो, फर्राशने । आवासू - भवनों । विछायत - बिछानेका वस्त्र । लाहानूर - कच्चे रेशमके चमकदार। मुसैद - ( ? ) । अंजीलको - ( ? )। चोपस्मी - चार प्रकारकी ऊनकी । गिलमूंकी- बहुत मोटा मुलायम गद्दे या बिछौनेकी। Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १७६ મ ज्वाब ज्वाबके ऊपर सबज हमरंग वर मतंगे धरै । सुनही' गुलजार कस्मीरके कांम । सबजी असमसिंघ मीनेके विरांम। ऐसे ठांम ठांमके विछायतके ऊपर सोहै । * सो कैसे, मनमथ बालके - खिलौने मनमथके मन मोहै" । * तिस गिलमूंके ऊपर रंग ६ १४ सो कैसे, रूपकी भोम" पर अनंगका .१६ १७ १८ .1 E देखे " ते " १ वेल" बूंदूंका विसतार " । गुलजार । जिस प्रवासकी सीढ़ियूंके ऊपर रंगदार सबजू पसमीन पायंदाज राजै । सो कैसे जिसकी सोभाके नीलघन सघनके वद्दल लाजै । जरकसी आफताबके सूरत के समियांने ४ जड़ाऊ * * खंभूंपर खड़े किये । किरमजी रेसम के तणाव दिये । जोतिके वीचते सुरख डोरि कैसी खुली । R 3 २५ ह ७ ग. वालके । ४ ख. ग. से। १ . ग सुनहरी । २ ख. कस्मीरके । ग. कास्मीरके ! ३ ख. मीनके । ग. मीनकै । ५ ख. ग. ऊपरि । ६. संवै । ग. सह । ७ ग. कैसे । ग. पिलने । ८ ख. * ग. प्रति में यह पंक्ति निम्न प्रकार है 'सो कैसे मनमथ वालके खिलौने माहाराजूंके मनमथके दिल मोहैं । १० ख. ग. दिल । ११ ग. मोहें । १२ ख गिल्मूकं । १३ ग. बेल । १४ ग. विस्तार | १५ ख भोमि । ग. भोंमि । १६ ख. ग. सीढ़ीयू के । १७ ख. यह शब्द ख. प्रतिमें नहीं है । १८ ख. ग. सबज । १९ ख. ग. सोभाकूं । २० ख. ग. देव । २१ ग. तें । २२ ख. ग. श्राफसाफको । २३ ख. सूरतिके । २४ ख समियाने । ग. समियांने । २५ ख. जड़ाऊं । २६ ख. ग. कीये । २८ ख. ग. दीये । २६ ख. ग. वीचिर्म । २७ ग. तनाव १२ १६६. ज्याब ज्वाब - जगह-जगह, जा-बजा, उपयुक्त स्थान पर हमरंग - समान रंग वाले । मतंगे -बिछायतको उड़ने से रोकने के लिए भारी मीरफर्श ( ? )। सुनही स्वरिणम । गुलजार - उपवन, वाटिका । श्रसमसंघ - ( ? ) । ठांम ठांमके - स्थान-स्थान के । मनमथ बालके खिलौने - कामदेव के बच्चेके खिलौने, वे मीरफर्श इतने सुन्दर थे मानों कामदेव के बच्चे के मनोहर खिलौने हों । भोम भूमि । श्रनंगका - - कामदेवका । प्रवास - भवन । सीढ़ियू के - जीनेके । सबजू - हरे रंगका, हरा पसमीन - बढ़िया मुलायम उनका पश्मीन पायंदाज - पैर पोंछनेका बिछावन, फर्शके किनारे पर रखा हुआ वह कपड़ा जिस पर पैर पौंछ कर फर्श पर जाते हैं। राजे - शोभायमान होते हैं । सोभाके - कांतिके, दीप्तिके । बद्दल - बादल, मेघ । जरकसी कलाबतूका काम। आफताब के सूर्यकी रोशनी से बचनेके लिए एक प्रकारका छोटा शामियाना या छत्ता जिस पर जरी कलाबत्का काम हुआ रहता है वह आफताबी कहलाता है । समियांने शामियाने, तंबू | जड़ाऊ जटित । खंभूंपर - खंभोंपर, स्तंभोपर 1 किरमजी - किमिज के रंगका, लाल । तणाव - वे रस्सिएं जो तंबू खड़ा करते समय टियों की जाती हैं । कट 1 ગ 1 - Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८० ] सूरजप्रकास तारामंडळतै' और धार सुरसतीकी' चली। तिसी समन्नेके बीचिमें कनक सिंघासन छत्र मसंद गाव - तकियै । तकियौ संजुगत विराजमान किये। मां इंद्रसूं जंग कर जीतके'१ लियै २ । सतखनै आवासूको'४ हलहल नरचंदूंका'५ निवास । गौखूके'६ वीचमें'७ जोतिका उजास । चित्रके'८ काम रास - मंडळंका वणाव । तावदानके जलूस' अस्टपदीका भाव । अस्मूंकी२२ आब ३ जे२४ महताबूका५ ताव२६ । जाळियूके ७ वीचमें प्रवाळियूंके ६ जाब । कलाबुतूका हूनर२ साईवां का काम । जरकसके वगीचे लगे33 ठाम ठांम । तिलाकारीके पड़दे जोतिके जहूर जरबफती चिगैका बणाव* गुलजारूंके क्यारे वसंतका १ ख. तारामंडळ मै । २ ख. ग. च्यार। ३ ख. सस्वतकी। ग. सरसतीकी । ४ ख. समानेके । ग. समांन । ५ ख. ग. वीचमें। ६ ख. तकीयो । ग. तकियों। ७ ख. कीए । ग. कीयें। ८ ख. मानौ । ग. मांनौं । ६ ख. इंद्र सौ। ग. इन्द्रलौंौं । १० ख. ग. करि। ११ ख. ग. जीतिके। १२ ख. लाए । ग. लीयें । १३ ख. ग. सतषणे । १४ ग. आवासंका। १५ ख. ग. नरिंदू का। १६ ख. गोषूके। १७ ख. वीचिमै । ग. वीचिमें। १८ ख. प्रतिमें यह नहीं है। ग. का। १६ ख. ग. मंडलका। २० ख. तावदानू का। ग. तावदांनूका। २१ ख ग. अष्ट । २२ क. अस्मू की। २३ ख. अव । २४ ख. जेव । ग. जेब । २५ ख. महतावूका । ग. महताबूंका । २६ ग. ताब। २७ ख. ग. जालीयू के । २८ ख. वीचमै । ग. वीचमैं । २६ ख. ग. प्रवालीयू के । ३० ख. ग. ज्वाब। ३१ ख. कलावुत्तू । ग. कलाबुतूं । ३२ ख. हुंनर। ग. हुनर । ३३ ख. लग्गे। ग. लगो। ३४ ग. चिगेका। ३५ ख. ग. वणाव । *ख. तथा ग. प्रतियोंमें यहाँसे आगे निम्न पंक्तियां मिली हैं 'उद्दोत सूर, समीरके झोलेसें असी दरसावें। विद्रलताके वीज सिळाव जिसके देषे से पेमाल जावें। फोहारू के रसतै हौज चादरू का वरणाव । १६६, तारामंडलते चली- जिन रस्सियोंसे जरीके कामके शांमियाने व आफताबियाँ बाँधी गई थीं वे ऐसी मालम होती थी मानों तारामडलसे सरस्वती नदी की धाराएं पथ्वी पर आ रही हैं। तिसी- उस, वही, उसी। समन्न के- शामियाना । गावतकियेमसनद जो पीठके नीचे रखा जाता है, बड़ा तकिया। संजुगत - संयुक्त, सहित । सतखन - सात मंजिलके । प्रावासू की - भवनों, प्रासादों। हलहल-दमक, चमक (?) । नरयंका- नरेन्द्रोंका, राजामोंका । तावदानके - रोशनदानके । अस्टपदीका - सोनेकी । अस्मकी - कीमती पत्थरकी । प्राव - कांति, दीप्ति । महताबंका - रोशनीका। ताव-प्रकाश । प्रवाळियके-मंगोका । जाब-जवाब, जोड़। तिलाकारी- सोनेका मुलम्मा चढ़ानेका काम। जहूर - प्रकाश । जरबफती- चांदी-सोनेके तारोंसे बना कपड़ा, जरबत्फ। चिगैका -चिलमनका । गुलजारूंके - उपवनोंके । Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १८१ भाव। ऐसी हवाके वीच' ऐसे' डंबर' दरसाए। उस वखतमें हुकम माफक खटतीस वंसू राजकुळ उमराव पाए । सो कैसे, पौसाकूस जळूस'' मदमस्त गयंदकी चाल। प्रावधूंसें'' कड़ाजूड़ ढळकती ढाल । भुजदंडांके '२ जोर पड़ता आभ१३ झेले। खगझाट्के खेल जमरामसैं'४ खेले' । स्यांमके सहाय मुरधरके'६ किंवाड़। पिंडके प्रचंड पौरसके पहाड़। दातार सूर सीळके' ८ निवास। दीनके ६ सहाय द्विज गऊके दास। जंगूंके जैतवार अजांनवाह'। ऐसेनेने भड़ पाय विराज महाराजकी४ दरगाह । बुधिवंत२५ वजीर २६ अकलके अथाह । खानसांमा बगसी मिळि आए'८ दरगाह । वेदव्याससे पिंडत६ बहसपतिसे कविराज । आए अनेक जहां कीरतिके काज । और' ही खिजमतदार लोग अपने हवाले ५ पर सब ही दरसाए । गण ग्रंधप "गांनधारी सब ही मिळ पाए । १ ख. ग. वीचि । २ ख. ग. अस। ३ ख. ग. डंन्वर। ४ ग. दरसाऐ। ५ ख. बखतमं । ग. बखतमै। ६ ग. माफ। ७ ख. ग. बंस। ८ ग. पाऐ। ६ ख. पोसाकूसू । ११ ख. ग. जलूस। १० ख. ग. प्रावधूसू । १२ ख. ग. भुजदंडोके। १३ ख. प्रासमान । ग. प्रासमांन। १४ ख. मजरावसू । १५ ग. खेलें। १६ ख. ग. मुरघराके । १७ ग. किंवाड़ि । १८ ग. सोलकै । १६ ख. दिनके । २० ख. जगूंके । ग. जंगूके । २१ ख. ग. प्राजांनबाह । २२ ख. ग. असे । २३ ख. ग. विराजे । २४ ग. म्हाराजाको । २५ ख. बुद्धिवंत । ग. बुधिवंत। २६ ग. वझीर । २७ ख. वगसी। २८ ख. पाऐ । २६ ख. ग. पंडित। ३० ग. प्राऐ। ३१ ख. प्रोर। ३२ ख. ग. भी। ३३ ख. ग. षिजमतगार । ३४ ख. लोक। ३५ ख. हबाले। ३६ ग. दरसाऐ। ३७ ख. गणगंध्रप । ३८ ख. वसही। ३६ ख. मिलि । ४० ग. प्राऐ। १६६. डंबर - समूह । जलूस - सज्जित, प्रकाशमान । मदमस्त - मदोन्मत्त । प्रावधूंसे - प्रस्त्र शस्त्रसे । कड़ाजूड़ - सुसज्जित । दळकती- लुढ़कती हुई । झेल - ढाभते हैं, रोकते हैं। जमरामसें - यमराजसे। स्यांमके -- स्वामीके, मालिकके । सहाय - सहायक, मदद करने वाला। किवाड़% कपाट - रक्षक । निवास - रहनेका स्थान । वीनके-गरीबके । जंगूके- युद्धोंके । जैतवार - विजयी। प्रजांनवाह - प्राजानुबाहु । दरगाह - दरबार। खिजमतदार - सेवक । गण गंध्रप गांनधारी- गंधर्व-गायिकानोंके गण। Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८२ ] सूरजप्रकास जिस बखत' स्री महाराजा * केसरिया' ऊंच पौसाक पहरि खांधी पाघ पेच वणवाय। जंवहरके सिरपेच सिर सोबा जग जोति जगाय। मणि माणिक हीर पन्नै सोवन संयुगत मीनेके'' काम पाघ पर जंवहरी'' किलंगी धरी सो साजोतिकी सिखा परि २ मां, नवग्रहूंन 3 पंकति करी मोतियांका'४ तुररा'५ रतनपेचूके वीच ऐसा दरसाए । मानू नवग्रहूं' पास तारागण पाए । सो तारागण कैसा। क्रतका नक्षत्रका'' जोतिगण जैसा। जिसमें बखत सिर सोभाके हरवळका मोती पाघके जवाहरके ऊपर तारीफसू23 झोला खावै । जिसका जबाब इस वजै कहता है जो आलमके विच इस भूपतिकी जोड़ और भूपति कोई नहीं आवै । जिसके ८ देखेसै ६ होत सब हिंदुसथांनका' अाघ । ऐसी सोभा से विराजांन स्री महाराजा' अभमालक सीस३२ पाघ । १ ख. ग. बषत। २ ग. माहाराज। ३ ख. केसरीय्यां । ख. प्रतिमें यहांसे प्रागे- 'रूप हरितास' है। ४ ख. ग. पहर । ५ ख. ग. वणाय । यहां पर ग. प्रतिमें हीरूके' शब्द मिला है। ६ रा. सरिपेच । ७ ख. ग. सोभा । ८ ख. ग. पन्ने । ४ ख. संजुगत । १० ख. मीनके । ग. मोनेके । ११ ख. ग. जवहरी। १२ ख. पर । १३ ख. नवग्रहहूंन । ग नवप्रहूं । १४ ख ग. मोतीयू का। १५ ग. तूररा । १६ ख. ग. असा। १७ ग. दरसाऐ । १८ ख. नवग्रह। १६ ग. प्राऐ। २० ख कृतिका । ग. कृतका । २१ ग. नषित्रका । २२ ख. ग. जिम । २३ ख. ग.तारीफसे । २४ ग. षांवें । २५ ख. जवाव । ग. जबाव । २६ ख. ग. वीच । २७ ख. न । ग. नां। २८ ख. जिसके। २६ ख देषसे। ३० ख. ग. हींदुसथानका। ३१ ख. महाराज । ग. माहाराजा। ३२ ख. सिर । ग. सिरि। १६६. ऊंच - श्रेष्ठ, बढ़िया। खांधी - खांधेवाली, तिरछी । पाघ – पगड़ी । जंवहरके - जवाह रातके । सिरपेच -- पगड़ी पर धारण करनेका आभूषण विशेष । जग जोति - चमक, दमक । संयुगतकी - संयुक्तकी, सहित की । किलंगी - सिरकी पगड़ी पर धारण करनेका प्राभूषण विशेष । साजोतिकी- प्रकाश या ज्योतियुक्तकी । तुररा-शिर पर पगड़ी के साथ धारण करनेका प्राभूषण विशेष। रतनपेचूंके - शिरमें पगड़ीके साथ धारण करनेका आभूषण विशेष । ऋतका - छः तारों वाला सताईस नक्षत्रोंके अंतर्गत तीसरा नक्षत्र, कृतिका । हरवळका - प्रागेका । झोला खावं - शोभायमान होता है। पालमके - संसारके । विच - में। जोड़- समानता। पाघ - सन्मान, प्रतिष्ठा । Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १८३ केसरका' तिलक ऊदार' भळहळतै भाल पर वणवाय । अवींध' मोतियूं के' अक्षत चढ़वाये । सो कैसौ', मांनू महाराजाका जस दिगविजय करि रवि-किरण अरौहि जगजीत होय स्री कमळि आए । पाबदार ऊजळ' बडवार मकताफळ सोवन लाल संजूति रूपवंत स्रवणूंवीच राजै । सो कैसे'५, मानू च्यार नक्षत्र' दोइ" रूप धरि मंगळ बाळ-अवसता धरि ब्रहस्पतिकी ८ बाहू'६ कुंडळी" कीला'१ करंत छाजै। मुगतफळ मांणिकूकी कंठी सोभै माळोका विसतार' । सो कैस, मान मिळ५ चली सरस्वती गंगाकी धार । और भी भांति भांतिके सोसत्र गाए जैसै ८ राजूंका ६ वणाव । जोतिके • जहूंर१ दिनकरका २ दरसाव । जरकंबर ३ धुगधुगी नवग्रही विराजै। जहांगीर३५ हथ सांकले ६ सोभाका रूप छाजै। १ ख. केसरिका। २ ख. ग उदार । ३ ग अंबोध । ४ ख. ग. मोतीयू के । ५ ख. अषित । ग. अषित्त। ६ ख. चढ़वाए। ग. चढ़वाऐ। ७ ख. ग. कैसे । ८ ख. माहाराजाका । ६ ग दिगबिजय । १० ख. ग. अरोहि । ११ ग. प्राऐ। १२ ख. उज्जल । ग. उझल । १३ ख. संजुगति । ग. संयुगति । १४ ख. ग. स्रवणवीचि । १५ ग. कैसे । १६ ख. ग. नषित्र । १७ ख. ग. दोय । १८ ग. ब्रहसपतिकी। १६ ख. वाहु । ग. बाहूं। २० ख. ग. कुडळ । २१ ख. क्रीळा । २२ ख. मुकताफळ । २३ ग. विस्तार । २४ ख. सा। २५ ख. ग. मिलि । २६ ग. को। २७ ग. गाऐ। २८ ख. जैसे। २६ ख. राजुके। ग. राजूक । ३० ग. जोतिकै । ३१ ख. ग. जहूर । ३२ ग. दीनकरका । ३३ ख. ग. जरकव्वर। ३४ ग. विराझे। ३५ ख. ग. जहंगीर । ३६ ख. ग. संकले। ३७ ख. ग. साजें। १६६. उदार - विशाल । भळहळते - देदिप्यमान । भाल - ललाट। प्रवीध - बिना छेद किया हुअा। रविकिरण - सूर्य की किरणों। अरौहि - चढ़कर । प्राबदार - कांतियुक्त । बडवार -- बड़ा ( ? )। मुकताफळ – मोती। सोवन - सुवर्ण, सोना। लालमाणिक्य नामक रत्न। संजुति - संयुक्त। स्रवणूंवीच - श्रवणमें, कानमें । राज - शोभा देते हैं। सो कैसे, मानू ... कीला करंत छाजे । मानों चार नक्षत्र बालावस्थामें दो मंगलके साथ वृहस्पतिकी बाहुमण्डलीमें क्रीड़ा कर रहे हैं । वृहस्पतिका रंग पीला, वह सोनेकी बालीका रंग है। मुक्ताफल श्वेत नक्षत्रके समान हैं, और लाल मंगल है। जहूंर - जुहूर, प्रकाश । दिनकरका - सूर्यका। दरसाव - दर्शन। जरकंबर – (?) । धुगधुगी - कंठमें धारणकरनेका प्राभूषण विशेष । नवग्रहीप्राभूषण विशेष। जहांगीर सांकळे - एक प्रकारका हाथका आभूषण विशेष । छाजे - सुशोभित होते हैं। Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८४ ] सूरजप्रकास हीरै' माणिक पनौसौं' जड़ित कनंक' मुद्रका', कैसी ? जगजीत विरदूी रूप पंकति जैसी। जैसे भूखणूस जुगति पन्नूके' मोहरे जूस' कम्मर' पेचकसि"। जवह (र) के साज सू जमदढ़ खग कसि । बुलगारूंकी उदगार चौतरफकू बसी। अहमदनगरका बालाबंधने झळूस' पल्लेदार। सोवनी तारूकी४ लाज वरकी'५ बेलूकी तरह कौरका ६ विसतार। गुलअनारका हौद गुलनाफरमांके दीदार कारचौभके'८ - बूंटे' जरीके तार । असै बालाबंधके. दहूं' पल्ले २ बरोबर करि केसरिए१४ सिरपाव ऊपरि ५ वणाए। कसूंबल बालेके पर८ पेच पै ठहराए । असे झळूसके साज सू महाराजा। अभमाल' पांन कपूर अरौगाए। जदी गुलाबी अतर पहरि करि धूप धारे। खपांखमां १ ख. ग. हीरे। २ ख. पनासो। ३ ख. ग. कनक । ४ ख. ग. मुद्रिका । ५ क. ग. विरहूंको। ६ ख. अस। ७ ख. पंन्नूके। ग. पन्नुक। ८ ख. मोहरे। ६ ग. जूस। १० ख. कम्मर । ११ क. पंचकसि । १२ ख. वालावंध। १३ ख. झल्लूस । १४ व. ग. तारूकी । १५ ख. वरजका। १६ ख. ग. कोरका। १७ ख. हौव । १८ ख. कारचोवके । ग. चोबके। १६ ग. छूटे। २० ख. ख. वालावंधके । ग. बाळबंधके । २१ ख. ग. । दोऊ । २२ ख. पले । २३ ख. वरोवर । ग. बरोबरि । २४ ख. केसरीये । ग. केसरोऐ। २५ ख. ग. उप्पर । २६ ख. वणाए। ग. वणाऐ । २७ ख. वाळेके । २८ क. घर। २६ ग. हठराऐ। ३० ख. माहाराजा। ३१ ग. श्रीप्रभमाल । ३२ ख. अरोगिए। ग. अरोगिऐ। ३३ ग. अंतर। ३४ ख. षमा षमा । ग. अम्मा षम्मा । . १६६ कनक - सुवर्ण,सोना । मुद्रका - मुद्रिका । विरदंकी-विरुदकी। पति - पंक्ति, कतार। संजुगति - संयुक्त, सहित । पन्नूके- पिरोजेकी जातिका हरे रंगका एक रत्न विशेष । मौहरे - जोड़ । पेचकसि - शस्त्र विशेष । जमदढ़ - कटार, तलवार । बुलगारूंकी - कपड़ा विशेषकी। उदगार - ( ? ) । चौतरफ. - चारों ओरका । बालाबध - एक प्रकारका कपड़ा विशेष जो चांचदार पगड़ी पर लपेटा जाता है। कसूबल - लाल । बालेके - पगड़ी विशेषके । पेच - पगड़ीकी लपेट । झळूसके – सजावटके, समूहले । साज-सजावट, सज्जा। प्रभमाल - अभयसिंह । पारौगाए - खाए। जदी-जब । धूप - तलवार । खमां खमां- राजा महाराजा व बड़े सरदारके आगे उच्चारण किया जाने वाला शब्द जिसका अर्थ होता है- "आप समर्थ हैं, हमारे अपराध क्षमा करने वाले हैं।" Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १८५ हाके' होते' अंदरसे बाहर पधारे। तिस बखत सब दरबारके लोगंनै अदाब बजाय सनमुख प्राय मुजरा किया। दवागीरूंनै दुजराजूने प्रास्त्रीवाद दिया' । चौपदारूंके हमत्त'' न[ज]र दौलतूंकी' हाक । पलकू हाथूसै कुरब करि' दुवा” मुसताक । द्वजराजूंकी'५ तरफ नजरका इसारा दिया। दोऊ कर जोडिके" नमसकार किया। असी जळूस किये ८ मदमसतज्यू पाव धरता तखतकी तरफ हल्ले । दोऊ भुजदंडंस १ पासमानका तोल करता तिस बखतका स्री महाराजा२३ 'अभमाल'का वांणिक देखै१४ ही वणि आवै । जेता तुजक'५ तेता किस ही सौं कहणेमें ६ नावै । ऐसे मगजसौंपाय तखतपरि विराजै । चौसरै १ चमर होय. इंद्रा सा छाजे । १ ग. हाकें। २ ख. होते । ग. होते। ३ ख. अंदरस । ग. अंदरसैं। ४ ख. वाहिर । ग बाहरि। ५ ग. पधारे। ६ ख. लोगूनो । ग. लोगांन । ७ ख. ग. कीया । ८ ख. दवाद्विजराजूने। ग. दवाद्विजराजूंन । घ. दुजराजूनें। ६ ग. पाश्रीबाद। १० ख. ग. दीया। ११ ख. ग. हमतमन । घ. हमजर। १२ ख. दौलतूकी। ग. दौलतूंकी १३ ख. ग. कर। १४ ख. हुपा । ग. हुआ। १५ ख. द्विजराजूकी । ग. द्विजराजूकी। १६ ख. ग दीया । १७ ख. ग. जोड़कं । १८ ख. कोय । ग. कोयें। १६ ख. मदमस्सजू । ग. मदमस्तज्ये। २० ग. दोऊ । २१ ख. भुजदंडौसो । ग. भुजदंडौंसौ। २२ स्व. ग. जिस । २३ ख. ग. माहाराजा। २४ ख. देषै । ग. देथें । २५ ख. ग. तुजक । २६ ख. ग. कहणमौ । घ. कहणमैं। २७ ग नावें । २८ ख. मगजसों। ग. मगजसौ। २६ ख. ग. तखत पर। ३० ख. विराजे । ग. विराज । ३१ ख. ग. चौसरे । ३२ ख. ग. होइ । ३३ ख छाजे । १६६. अदाब - मान, प्रतिष्ठा। मुजरा - अभिवादन, सलाम । दवागीरूनै - दुआ मांगने वालोंने, शुभचिंतकोंने, दुपागोषोंने । दुजराजून - द्विजराजोंने, ब्राह्मणोंने । प्रास्त्रीवाद - आशीर्वाद। चौपदारूंके - वह नौकर जिसके पास चोब या प्राशा हो, चोबदारके। हमत्त - समान, तुल्य, हमता अथवा महतंग जिसका अर्थ अनुकूल, मुसाफिक । दौलतू की- नजरदौलतके लिये प्रयोग किया गया है। हाक - आवाज । दुवा- प्रार्थना, दुआ । मुसताक - बहुत अधिक इच्छा या कामना रखने वाला, मुश्ताक । द्वजराजूको- द्विजराजोंकी, ब्राह्मणों की। जळूस - सिंहासनारोहण, धूमधामकी सवारी, समारोह । दोऊ- दोनों। हल्ले - दोनों गतिमान हुए, चले। अभमालका- अभयसिंहका। वांणिक – शोभा, कांति, सजावट। तुजक - सजावट, प्रबंध, वैभव । मगजसौं – राबसे। विराजे-बैठे, प्रारूढ़ हुए, शोभायमान हुए। चौसर - चारों ओर। चमर - सुरा गायके पूंछके बालोंके गुच्छे जो काठ, सोने, चांदी आदिके दंडमें लगाये जाते हैं, चँवर । Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८६ ] सूरजप्रकास जळ चादरूंकी धरहर तमासेका विसतार' । सो कैसी, वैकुंठसै' छूटी जांणि गंगा हजार धार । छछोहै। आब गहर फौंहारा' छूटै । जमींसे मेघ जांणि आसमांनसे जूटै । जिस वखतका तेज प्रताप मेरगिर-सा दरसावै''। अनि रावजूके बूते कंकरसे नजर आवै । दऊ3 मसल बहादरूंकी'५ कोरबंधी' ६ * प्रोहितराज व्यास कविराज पंडितराज विराजै'। वजीर खांनसांमां बगसी अपने-अपने मुरातबके पाये पर छकपूर छाजै । खवास पासवान सफर' समसेर जड़ाऊ पांनदान लिए खड़े मो* कैसा'५। अनि राव अनि राजूके अंग भोळे पड़े असा । दरियावका पूर छभाका दरसाव । पोसतकी ८ वाड़ी फुलवादकावणाव। असे नरलोकके वीच १ नरियंद३ 'अभैमाल'३३ १ ग. विस्तार । २ ख. ग.वैकुंठसे। ३ ख. छछोहे ग छछौहै। ४ ख. फौहारे । ग. फौहारें। ५ ख. छूटे। ग. छुटे। ६ ख. जमीसे । ग. जमीम। घ. जमीसें। ७ ख. प्रासमानस । ग. प्रासमानौं । ८ ख. जू?। ग तु। ६ ख. ग. वषतका। १० ख. ग. परताप । ११ ग. दरसांव। १२ ग. पावें । १३ ७. दोऊ । ग. दोऊ। १४ ख. ग. मिसल । १५ ख. वाहावरूंकी ग. बाहादरू की। १६ ख. ग. कोरबंधी। __*यहां पर निम्न पंक्तियां ख. तथा ग. प्रतिमें और मिली हैं - 'चित्र का साथाळ । बाजूसे बाजू लगे ढ़ालू सनमुखकी कोरबंधी प्रोहितराज । १७ ग. विराजे । १८ न. वजीर । ग. वझ्झीर । १६ ख. पाए । ग. पाऐ। २० ख. छाजे। २१ ख. सपर। २२ ख. लीये। ग. लीये। २३ ख. पड़े। २४ ख. सौ। २५ ख. ग. कैसे। २६ ख. असे । ग. अस। २७ ख. दरियावका। ग. दरीयायका । २८ ख. पोतसको। २६ ख. फुलवादिका । ग. फूलवावका । ३० ख. ग. असे । ३१ ख. ग. बरलोकके वीचि । ३२ ख. ग. नरयंद। ३३ ख. ग. प्रभमाल । १६६. चादरूंकी - पानीकी चौड़ी धारा जो ऊपरसे गिरती हो। धरहर - ध्वनि विशेष । छछोहै - स्वच्छ, निर्मल । मेरगिर-सा - सुमेरु पर्वतके समान । दरसा - दिखाई देते हैं। बूते- शक्ति, बल, सामर्थ्य । कंकरसे - किंकरसे, सेवकसे। बऊ-दोनों। मसल-पंक्ति । कोरबंधी-पंक्तिबद्ध। मुरातबके -प्रतिष्ठाके । छक - शोभा । छाज- शोभायमान होते हैं। खवास - राजाओं और रईसोंके खास खिदमतगार । पासवांन - राजा महाराजाभोंके पास नित्य रहने वाले । सफर - ( ? )| भोळे - भ्रांति । दरियावका - समुद्रका । पूर - पूर्ण । छभाका- सभाका । बरसाव - दृश्य । वाड़ी- वाटिका, उपवन। पोसतकी - अफीमका पौधा । फुलवाद - फूल लगने वाले पौधे या पृष्प। बणाव- शोभा। नरियंव- नरेन्द्र, राजा। प्रभमालअभयसिंह। Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १८७ राजै । जिसकी तारोफ सुणि' सुरलोकके वीच' सुरियंद' लाजै । जिसका मयांना इस नरयंदनै अनेक गज कविराजौंको दिया। उस' सुरयं दसै क गज' औरापति दिया१४ न१५ गया। लालच करि राखि लिया। नरलोकमें नरियंद'८ सांसण बहौ बगसाए । सुरलोकमें २१ सुरियंदके दिये २ सांसण सुणबेमें 3 न पाए। इससे 'अभमाल'का प्रताप देखि इंद्रका गरब२५ भजै । नरइंदकी कोरति सुणि सुरिइंद्र १८ यो लजै । नरियंदका' प्रताप सुणि समुद्रका गरब २ जावै । इसकी जोड़ उससै33 करणैमें ४ नावै। उसके ६ हीरे पन्ने माणिक मोती उसहीमें रहै। इसके हीरे पन्ने माणिक मोती रीझूमे ८ सब प्रोलम लहै । जिसका राज तेजकी करौं तारीफ सो'' कैसा। झाळाहळ चक्र सुदरसण ४२ जैसा। जिसके तेज नजर 3 १ ख. सुंणि । २ ख. ग. सुरलोककेवीचि । ३ ख. ग. सुरीयंद। ४ ग. लाजें। ५ ख. माईना । ग. माईना। ६ ग. ईस । ७ ख. नरिइंदन। ग. नरियंदनं। ८ क नैक । ख. अन्नक। ६ ख. कवराजांको । ग. कवीराजांकौं। १० ख. ग. दीया। ११ ख. ऊस । ग. और। १२ ख. ग, सूरीयंदसै । ग. सुरयंदसैं । १३ ग. गझ। १४ ख. ग. दीया । १५ ख. मै । १६ ख. ग. लोया। १७ ख. नरलोकमै । ग. नरलोकमें। १८ ख. नरइंद । ग. नरयंद। १६ ख. ग. वहौ। २० ख. वगसाण । ग. बगसाऐ। २१ ख. सुरलोकमै ग. सुरलोकम। २२ ख. दीये । ग. दीऐ। २३ ख. सुगवेमै । ग. सुणवैमे । २४ ग. प्राऐ। २५ ख. गरव । २६ ग. भझ्झे। २७ ख. ग. नरियंदकी। २८ ख. ग. सुरियंद । २६ ख. यौं । ३० ख. लक्झे । ग. लइझे। ३१ ख. ग. नरइंदका। ३२ ख. ग. गर्व । ग. गर्ब । ३३ ख. ऊसस । ग. उससे । ३४ ख. करणेमै । ग. करण । ३५ ख. नावै । ग. नावें। ३६ ग. उसही। ३७ ख. उसहीमै। ग. उसहीमें। ३८ ख. रोभमै । ग. रोझमें। ३६ ख. सव। ४० ग. लहैं। ४१ ख. ग. तारीफ सौ। ४२ ख. ग. सुदरसन । ४३ ग. नर । १६६. राजे - शोभायमान होते हैं। सुरियंद - सुरेन्द्र, इन्द्र । मयांना - मतलब । सुरयंदसे - इन्द्रसे, सुरेन्द्रसे । औरापति - ऐरावत नामक इन्द्रका हाथी । सांसण - पुरस्कारमें दी गई जागीर, शासन, राजाकी दान की हुई भूमि । प्रभमालका - अभयसिंहका । प्रताप - ऐश्वर्य, वैभव, तेज । भज - नष्ट होते हैं। नरइंदकी - नरेन्द्रकी, राजाकी । यो - ऐसे । नरियंदका - नरेन्द्रका, राजाका । जोड़ - समानता, बराबर। रीझूमें - दान में, पुरस्कारमें। पालम - संसार । झाळाहळ - देदीप्यमान । चक्र सुवरसण - सुदर्शन चक्र। Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८८] सूरजप्रकास 3 ४ ७ ० ५१ प्रागै' मदमस्त गजराज नावे सो मदको छाडि प्ररु सिरकूं' नमावै । गिरवरूंके वीचमें सांमल' रहत सींह ग्ररु गाय । पांणी भी पीयत एक ठौड़ एकठे आय' । रंकसै " राव जोरावर करणे" न पावै । पंखीकी पर सेतो बाज दहसति खावै । से" तेजपुंज महाराजा खुसः बखतीस" विराजे' I 93 १५ १ 3 पण " पण किसबूके हुन्नर की १६ स्त्री 'अभमाल' सिरै दीवांण" तखतपर ० छत्र चमर धरै । जिस बखत तारीफ सब लोग मालूम करें जणूंने सुरूंका" अलाप किया .२६ २८ मूरछना" अस्ट" ताल गुनचास कोटि तांनूं संजुगति छतीस रागणीका भेदग जिनूंन बखत प्रमांण उचार 33 ३४ मांनूं सबके दिलूं विच‍ मोहनीमंत्र वसीकरण कियै ७ ४ जिस बखत " बेबाहबाज " गुणी - * | सप्त सुर तीन ग्रांम इकवीस १ ४ ख. ग. गिरवरौं । ५ ख. ग. ८ख. ग. और १२ ख. करणे १६ ख. ग. सरे । १ ग. आगें । २ ख. ग. मदकू । ३ ग. सिरक । वीचिमं । घ. वीचमें । ६ ख. ग. सांमिल । ७ ख. ग. सेरकूं । & ख. इक्कठे । १० ग. प्राये । ११ ग. रंकस । १४ व. ग. से। १५ ख. ग. माहाराजा । १८ ख. ग. खुसिबखत । १६ ग. विराज । २० ख. घरे । २२ ख. किसव । ग. किसब । २३ ख. हुंनर। ग. हुनर । वेवाहवाहवाज । ग. वेवाहबाज | २६ . जणुं । २७ ख. सरूं । २५ ख श्रालाप | २६ व. ग. कीया २४ ख. वषत । २५ ख. । * यहांसे आगे ख. तथा ग. प्रतियोंमें 'सो कैसे' मिला है। ३० ख. मूर्च्छना । ग. मुर्छना । ३१ ख. ग. अष्ट । ३२ ख. संजुगत । छपंच | ३४ ग. वषत । ३५ ख. ग. उच्चार । ३६ ख. ग. कीया । दिल वीचि । ३८ ख ग कीया । - ८ छ राग कियै । । स्वर १३ ग. पांवे । १७ ग. दोवांणि । २१ ग. श्राप श्रापणै । एकत्रित । रंकर्स - गरीबसे । १६६. गिरवरूंके - गिरिवरोंके, पर्वतोंके । सांमल - साथ । एकठे राव - संपन्न, धनाढ्य राजा। पंखीकी- पक्षीकी । सेती - सहित, से। दहसति - दहस्त, भय, आतंक | स्त्री प्रभमाल - श्री प्रभयसिंह । सिरं दीवांण- प्रमुख दीवान । खुसबखतीस - हर्षपूर्वक | बेबाहबाज - ( ? ) । गुणीजणूंने- गवैयों, गायकों । सुरूंका - स्वरोंका | अलाप- श्रालाप | नोट - सप्त शब्दों के लिए परिशिष्ट देखें। संजुगति - सहित । भेदग - भेदज्ञ या रहस्य जानने सुर तीन ग्राम श्रादि संगीत वाला । ३३ ख. ग. ३७ ख. ग. Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास. [ १८६ वाजंका भेद कहि' दिखाय सो कैसे खडज' रखव गंधार मधम' पंचम धईवंत निखाख सप्त सुरके अलाप करि कोकिलूकी बांणीसै बोलते है जिसके अांनंदतें इत्यादिक नरूंके मन मोह वसि' हुवा तिसका अचिरज कैसा। देवतूंके मन भूलते डोलते' हैं म्रदंगूके परन धौलङके टिकौर१३ । सुरवीणूके'४ झणहण तंबूरूंके १५ घोर । तालूकी झमक झंझरूंके ६ झणकार। कांमके घुघर' जैसै१८ जंत्रके तार । पिनाकूका परवेज स्रीमंडळूका सवाद । रंगकी वरखा अलगौजूके' नाद । असी भांति अनेक उछबसै२३ गावते है।४ तारीफकी तांन आसमांनसे२५ लावते है । असा मूरतिवंत रागका थाट रचि जरकस८ जंवहरूके ६ इनाम पाए'। जिसने बखतमैं पिंडतराजनै33 अपनै कसबका हुनर करि दिखाए३५ । सो पिंडत३६ १ ख. ग. कहै। २ ग. सौ। ३ ग. खड़जः । ४ ग. रखवः । ५ ग. मधमः । ६ख.धईवंत । क. वंत। ७ क. निखास । ८ क. प्रसर । ग.ऐ सप्त। 8 ख. ग. वांणीस । १० ग. भरूके। ११ ग. बसि । १२ ख. डोलते। ग. डोलते। १३ ख. ढकोर । ग. ट:कोर । १४ ख. सूरवीणूके । ग. सुरवीणंके। १५ ख. तंवर के । ग. तंबुरूंके । १६ ख. झंझूरुके । ग. झंझू के। १७ ख. ग. घूघर। १८ ख. ग. तैसे । १६ जंत्रको । २० ख. पिनाक को। २१ ख. ग. अलिगुंजु । २२ ख. अनेक । ग. अन्न क । २३ ख. उछव । ग. उत्छव। २४ ग. हैं। २५ ख. ग प्रासमानस। २६ ख. ग. ल्यावते । २७ ख. ग. मूरतवंत । २८ ग. जरकसि । २६ ख. ग. जवहरू । ३० ख. ग. अनाम । ३१ ग. पाऐ । ३२ ख. ग. तिस। ३३ ख. ग. पंडितराजूनौ। ३४ ग. अपनै । ३५ ग. दिषाऐ। ३६ ख. ग. पंडित । ६६६. वाजंत्रूका - वाद्योंका । खडज - षडज । रखव - ऋषभ। गंधार - गांधार । मधम - मध्यम । पंचम - सात स्वरोंमें पाँचवाँ स्वर । निखाख - संगीतके सात स्वरों से अन्तिम स्वर निषाद। अचिरज - अाश्चर्य । 'नदंगूंके - मृदंगोंके । धौलकूके - चमड़ेका मंढा वाद्य विशेषका। टिकौर - घंटा। सुरवीणूंके - वाद्य विशेषके । झणहण - ध्वनि विशेष । तंबूलंके - वाद्य विशेषके । घोर - ध्वनि, अावाज । तालूकी - तालकी। झमक - ध्वनि विशेष । झझलंके - स्त्रियों के पैरोंमें धारण करने का आभूषण विशेषकी । झणकार - ध्वनि विशेष । घुघर - घुघुरू। जंत्रके - वीणा नामक वाद्यके । पिनाकूका - वाद्य विशेषका। परवेल - ( ? )। स्रीमंडळूका - वाद्य विशेषका। सवाद - स्वाद, आनन्द, रसानुभूति । अलगौजूंके - वाद्य विशेषके । नाद - ध्वनि, आवाज। थाट- ठाठ, मूल स्वर । Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६० ] सूरजप्रकास कसे'। चौवीसमां' अवतार वेदव्यास जैसे। सो कैसे बाळ-वय विद्या' बुधि सनकादिकू जैसे। सुखदेवसे तरुण विध' सो वेदव्यास तैसे । त्रकालग्यांनदरसी' निज व्रमकू पहिचान । भूत, भवस्त'", वरतमान जुगतिसौं' जाणै' । च्यार वेद नौ व्याकरण खट सासāके विनांण । पिंडत विद्यामें पारावार जांणै' नवदूण'६ पुरांण । सो पिंडतराज"" स्त्री महाराजाकी'८ कीरति प्रतापका वरणणका ६ सिलोक पढ़ते हैं जिस सिलोकांका' आदि प्रबंध अस्ट अखिरूंसे २ लेकरि इकीस अक्षरूं.3 लग पद वणावणैका ४ ठहराव च्यार२५ पद हुवै एक सिलोकका२७ वणाव सो बतीस अखिरूंसै२८ लेकरि६ चौरासी अखिरूं लंग लही इस ऊपर' होय सो दंडक कहियै । तिसमें ४ फिर३५ भेद बहोत सालंकार अठार वरणण ६ मात्राका विचार । १ ख. कसै। २ ख. चौवीसमों। ३ ख. बिद्या। ४ ख. ग. सुकदेव। ५ ख. ग. वृद्ध । ६ ख. ग. त्रिकालग्यांनदरसो। ७ ग. नि । ८ ख. ग. ब्रह्मकू । ६ ख. ग. पहचांण। १० ख. भविष्य । ग. भाविषि। ११ ग. जूगतिसू। १२ ख ग. जाने । १३ ख. ग. पंडित । १४ ख. ग, विद्याम। १५ ग. जाण । १६ ग. नवदूण। १७ ख. ग. पंडितराज । १८ ख. ग. माहाराजाको। १६ ख. ग. वर्णनका । २० ख. पढ़ते । २१ ख. सिलोकूका। ग. सिलौकूका। २२ ख. अखिलंसे । ग. अखिरूंसे । २३ ख. ग. अष्पिर। २४ ख. ग. वणावणेका । २५ स्व. चार। २६ ग. हुवे। ७ ख. ग. श्लोकका । २८ ग. अखिरुसें । २६ ग. लेकर । ३० ख. ग. लहीये । ३१ ख. उपरी । ग. उपरांत । ३२ ग होईसो। ३३ ख. ग. कहीये। ३४ ख. तिसमै । ग. तिसमें। ३५ ख. ग. फिरि । ३६ ग. वरनन । १६६. बाळ वय - बाल्यावस्था । तरुण - युवा । त्रकालग्यांनदरसी- तीनों ही कालोंको देखने वाला, त्रिकालज्ञ । ब्रमकू - ब्रह्मको। भवस्त - भविष्यत् काल। विनांण - व्याख्या, विवेचन । पारावार - समुद्र, पूर्ण । नवदूण पुरांण – अठारह पुराण । जिस सिलोकां..."पद वणावणका ठहराव - संस्कृतके विद्वानोंमें परम्परासे प्रचलित रीति चली आ रही है कि वे वर्ण छंदोंमें सबसे छोटे आठ अक्षरोंके अनुष्टुप छंदसे लेकर सबसे बड़े स्रग्धरा छंद (२१ अक्षरोंके) तक प्रधानतासे व्यवहार करते आये हैं । उसीका यहां पर ग्रंथकर्ता कविराजा करणीदांनजीने वर्णन किया है। ठहराव - विश्राम, यति, ठहरनेका स्थान । दंडक - छंदोंका एक भेद, वह छंद जिसमें वर्णों की संख्या २६ से अधिक हो। बहोत - बहुत । सालंकार - अलंकारोंसहित, वह काव्य जिसमें अलंकार हों। Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६१ *जिसका तौए' देवविद्यासौ' कोई अंत न पार।* जिस वीच' फिर कोई पंडितराज कविराज पूछ मनके वीच संदेह राखि तिस संदेहके मेटणको दोइ ग्रंथ एक व्रतरतनाकर दूसरा स्रुतबोध साखि और फिरि एक पागलै१° पंडितका वणाया स्लोक'' इसही साखिका सो कहणैमें १२ आवै साखि उही सच्ची जौ ५ अौरका कह्या वतावै सो कंसे'६ कहि दिखाय । श्लोक- अनुस्टप' अष्टपदं जुक्त, इंद्रवज्र इकादस। ऊपिंद्रवज्र इकादस'', वसंततिलक चतुर्दसः ॥ १६६ पंच-दस२२ मालनी छंद, संक्षनी२३ सप्तदस्तथा । एकौनविसतीसार्दूल", इकवींसति ५ श्रगधरा ॥ १६७ एतौ प्रस्थावका सिलौक२६ आगिले पिंडतका कह्या साखिके *यह पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं है। १ ग. तौऐ। २ ग. देवविद्यासो। ३ ग. जिसिबीचि । ४ ग. फिरि । ५ ग. मेटणेको। ख. मेटणको। ६ ग. दोय। ७ ख. ग. दूसिरो। ८ ख. ग. श्रुतिबोधसाषि । ६ ग. ऐक। १० ख. ग. प्रागले। ११ ख. ग. श्लोक। १२ ख. कहणेमै । ग. कहणे में । १३ ग. पावें। १४ ख. ग. वही । १५ ख. ग. जो । १६ ख. केसै । ग. कैसे। १७ ख. अनुष्टुप। १८ ख ग. युक्त । १६ ख. ग. एकादश २० ख. ग. उपेंद्रवज्र । २१ ख. ग. द्वादस । २२ ख. ग. पंचदश । २३ ख. ग. संपनी। २४ ख. एकोनविंशतिसार्दूल। ग. एकोनविशतिसार्दूल। २५ ख. इक विसति । ग. इक बिसतो। २६ ख. श्लोक । ग. सलोक । २७ ख. ग. पंडितका । १६५. देवविद्यासौ- संस्कृतका सा ( ? ) । १६६. उपर्युक्त श्लोकका पाठ बहुविज्ञ एवं प्राशुकवि स्वर्गीय पं० नित्यानन्दजी शास्त्री चांद बावड़ी, जोधपुरने निम्न प्रकारसे शुद्ध किया हैअनुष्ठुब् अष्टाक्षरं, एकादशार्णा भवतीन्द्रवज्रा। (अष्टाक्षरं अनुष्ठुब् वै) उपेन्द्रवज्रा लघुपूर्विका सा। ज्ञेयं वसन्ततिलकं तु चतुर्दर्णिम् । पञ्चदशभिर्वरणकैः स्यान् मालती संगीर्णा । रसैरुद्रश्छिन्ना यमनसभलाग: शिखरिणी । सूर्याश्वमंसजस्ततः सगुरवः शार्दूलविक्रीडितम् । म्र-भ्रर्यानां त्रयेण त्रिमुंनियतियुता स्रग्धरा कीत्तित्तेयम् ॥१ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास १६२ ] वास्ते' कहि दिखाया। पंडतोवाचः काव्य "सिधाणां च शिरोमणि सिव इति' नागेस्तथरावतं । देवाणां च शिरोमणी रिति तथा चंद्रो भवे चातुर । पंखीणां गुरुडौ नगैस्तथै' मेरूं१२ । सदा स्त्री कन्यां ३ महान् *श्री राज्ञ४ च शिरोमणी'५रभपति ६ वरवति सर्वोपरि ।। १६६ नृपतिरभयसिंहश्च'८ तैद्र मेवांबभा। सूस्वर पई १ वरतिसौ २ मांनि नमान' वधी । रवि कुल ऋत२५ जन्मा शत्रुहंतां प्रथव्य । जयतु सकल दोता धन्य धन्यौ नरेस८ ॥१० १ ख. ग. वासते। २ ग. कहै । यहां पर निम्न पंक्तियां ख. तथा ग. प्रतियोंमें और मिली हैं - 'सो चातुरी कळा प्रवीण भूपालूके मन भाया। अब नवीन श्लोक महाराजका जसबरननका पंडितराज राज छभाके वीचि कहते हैं सो कैसे कहि दिषाय । ३ ख. ग. श्लोक। ४ ख. ग. सिद्वानां । ५ ख. ग. शिव इती। ६ ख. ग. देवानां । ७ ख. ग. शिरोमणि । ८ ख. ग. चंद्रोभवे । ६ ख. ग. च्चातुरं। १० ख. ग. पंक्षीणां । ११ ख. नगैस्वथै। ग. नगेस्वथै। १२ ख. ग. मेरु। १३ ख. ग. कात्या । १४ ख राज्ञां । ग. राझां। १५ ख. ग. शिरोमणि । १६ ग. रंभपति । १७ ख. वरवत्ति सवोपरि। १८ ख. नृपंतिरभसिंहश्च । १६ ख. ग. वाव । २० ख. ग. स्वरू । २१ ख. ग. पइ। २२ ख. मानी। ग. मांनी। २३ ख. नामांन । २४ ख. ग. वृत। २५ ख. ग. कृत। २६ ख. त्रात्रु। २७ ख. ग. पृथिव्यां । २८ ग. नरेश । १६९. इन श्लोकोंका पाठ भी पूर्व वणित विद्वद्वर्य स्वर्गीय पं. नित्यानन्दजी शास्त्रीने निम्न प्रकारसे शुद्ध किया है पण्डित उचाव काव्यम्सिद्धानां शिव इत्युदीरित, इतो नागेषु चैरावतो, देवानां च शिरोमरिणस्तदनु वै चन्द्रश्चकोरे हितः । पक्षिष्वा ! गरुडो जगत्सु बलवान् मेरुनगानां तथा। राज्ञां तत्त्वकाव्यविदामसावभयराट वर्वत्ति सर्वोपरि । अनुपतिरभयसिंहः श्रोन्द्र एवावभासी स्वक-पर-समवर्ती मानिनां मानदायी। रविकलकृतजन्मा शत्रहन्ता पथिव्यां जयतु सकलदाता धन्यधन्यो नरेशः ।। Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६३ ऐसी विध' पंडतराज' चातुरच' कळा प्रवीण स्रिलोकूका प्रबंध अनेक विध' विमळ बांणीस उच्चरै जिनूंसे रीझ स्री माहाराज कनक जग्योपवीत चढ़ाया । कनक रजत द्रब्यसौं° पूजा करै ऐसे'' उछाहके सरूपसू'२ देखि स्री माहाराजा' अरु१४ चंडीके पुत्र चारण बोलै कविराजसो स्री माहाराजाकी छभाके* कैसे कविराजूंकी तारीफ कहि वताया१६ । आदि तौ अमरलोगके' अग्रकारी अमरलोगसें'८ पाए', आय स्री नारायण जस अमर करणैके काज नरलोग वीच प्रथु' अवतार करिके २२ प्रगटाए । जिसकी साखि स्री भागवत महापुराणमें ४ * गाए। जहां जहां देवसभाका ६ वरणण२७ किया२८ तहां तहां सिध२६ चारण कहि कहि वताए° ऐसे कुळके कविराज, बुधके ' दराज । 'चातुरी कळाकी सब पालमसै १ ख. ग. विधि । २ ख. ग. पंडितराज। ३ ख. ग. चातुर्ज। ४ ख. स्त्रिलोकंका। ग. त्रिलोक्कं। ५ ख. ग. विधि । ६ ख. ग. वांणीस। ७ ख. ग. रीझि। ८ ख. ग. जगोपवित्र । ६ ख. ग. चढ़ाय। १० ख. ग. द्रव्यसै । घ. द्रव्यसै । ११ ख. असे । ग. अस। १२ ख. ग. सरूपसौ। १३ ख. माहाराजा । ग. माहाराज। १४ ख. ग. पर। १५ ख. वोले। *यहांसे प्रागे ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है 'छभाके कविराज कैसे कविराजूंकी तारीफ कहि वताया। १६ ख. वताय । १७ ख. ग. अमरलोकके । १८ ख. ग. अमरलोकस। १६ ख. पाऐ। २० ख. ग. नरलोक वीचि । २१ ख. प्रिथी। ग. प्रिया । २२ ख. धरिके । ग. धरिक । २३ ख. प्रगटाए । ग. प्रगटाऐ। २४ ख. माहापुराणमै । ग, माहापुराणमें । यहांसे प्रागे इस पंक्तिमें- 'वेदव्यास सुकदेव जैसून गाये । २५ ख. ग. गाये। २६ व. ग. छभाका। २७ ख. वणण। २८ ख. ग. कीया। २६ ख. ग सिद्ध । ३० ग. वताऐ। ३१ ख. बुद्धिके । ग. बुधिके । इस पंक्तिसे पहले निम्न शब्द ख. तथा ग. प्रतियोंमें और मिले हैंमाहा सकतिके वरदाई। ३२ ग. पालमसै। १७१. कनक – स्वर्ण, सोना । जग्योपवीत - यज्ञोपवीत । रजत - चांदी, रौप्य । अमर लोगके - स्वर्गके, अमरपुरके । अग्रकारी- अग्रगण्य । बुधके - बुद्धिके । दराज - महान, बड़ा । पालम - संसार । Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९४ ] सूरजप्रकास अधिकाई' । स्यांमधरमके सच्चे खुसबखतीके साहिब, सिंधुके सभाव सरस्वतीके नाइब। दातारूं सरूंके दिलके' खुस्याळ । सूंबू कायरूंके हीयू के नाटशाल । दातार सूरूं राजूंका पुत्र जैसे प्यारे । सूंबू'' कायर राजूंको' विख जैसे१३ खारे । राजसभाके भूखण* दिलके उदार । विरदूंके भारे समसेर बहादरूंके" समसेरूंके चितारे । अपणी'५ खाटी संपति जगतकू खुलावै। लख लहण सवालख विद्रवणका' विरद बुलावै । वडे जंगूमें' विरद बोल लोह बाहूंकौं' जोम चढ़ि लड़ावै । आप सबसै ५ अागू वीजूंजळ२६ बाहै । दईवकै धणी और तीसरा न जाणे । असे गुण अनेक कवि कहां लग वखांणें । च्यार प्रकारकी जुगति सात रूपकुंके विधांन । पंत्र प्रकारकी उगति' अस्टाविधांन । तीन प्रकारका गुण नव प्रकारकी रजधांणी। दोय प्रकारका काइब ४ रूप च्यार प्रकारकी १ ख. अधिकाइ । २ ख. सिंधूके। ग. सिधूक । ३ ग. नायव । ४ ख. सूरूंके । ५ ग दिके। ६ ख. ग. पुस्याल । ७ ख. ग. संव। ८ ख. ग. सूर । ६ ख. राजूका । ग. राझंका। घ. राजकू। १० ग. जैसे। ११ ख. ग. सूब। १२ ख. ग. राजकू । १३ ग. जैसे। *यहांसे आगे ख. तथा ग प्रतियोंमें निम्न पंक्तियाँ मिली हैं--- 'सनेहके सझ्भरण मजलसके मुसताक माहाराज के मनरंजण । १४ ग. वाहादरूके। १५ ख. ग. अपनी। १६ ग. फुलावें। १७ ख ग. वीद्रवण । १८ ख. ग. बोलावै । १६ ख. ग. जंगूमै । २० ख. ग. लौह । २१ ख. ग. वांहूंकू । २२ ख. ग. जौम । २३ ख. वाटि । ग. चाढ़ि । २४ ग. लड़ावै । ६५ ख. ग. सस । २६ ख. वीजूजल । ग वीजूजळ । २७ ग. वावै । २८ ख. अस। २६ ग. कांहीं । ३० ख. ग. निधान । ३१ ख. ग. उकति । ३२ ख. त्रीन। ३३ ख. ग, रजढ़ाणी। रेखांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं। ३४ ग. कायब । १७१. स्यांमधरम-स्वामिभक्तिके। खुसबखती - समयकी अनुकूलता, समद्धि। सिधुके - समुद्रके । नाइब - नायब । खुस्याळ - खुश करने वाला । सूबू - कृपरणों, सूमों। होयूंके - हृदयके । नाटसाल - शत्रु योद्धा । विरदूंके - विरुदके । भारे - समूह । समसेर - तलवार । खाटी - उपार्जन की हुई। लख - लाख । लहण - लेने वाला । सवालख - सवा लाख । विद्रवणका - देने वालेका । जंग्में - युद्धोंमें। जोम - जोश । वीजूंजळ - तलवार । वांहै - प्रहार करते हैं। दईवक - भाग्यके, प्रारब्धके । जुगति - युक्ति। Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६५ बांणी। सात प्रकारका सर च्यारसूं लेके' चढ़ावै । आठमै' सरकी झपट पर वे चौरासी बंध रूपकौंके सरिजणहार । ऐसे कविराज जिस बखत' महाराजाकी राजसभाके वोच* भांति भांति गुण गावते हैं। विद्याबांणीके हिलोहळ'° दरियावका सा हिलोहळ१२ दरसावत हैं । जिस बखत स्त्री महाराज'५ 'अभामाल' बोहतर कळा चौदह विद्या विधान रूपकों की छाकसं छाजै'८ प्राय स्री मुख१६ हुकम फुरमःया । जो प्राग चौरासी बंध रूपकाके" स्रब २ भेद नवरस अलंकार संजुगति 3 घेतो" सब ही सुणबेमें आया। पै एक ६ खट-भाखाकी जुदी जुदी रहस्यतौ२७ कहां कहां किसी किसी कवीसुर८ पास दरसाई। पै ठौड़ करि खटभाखा किसीने २६ न गाई । जिससै' खट भाखा एक साथ कहिके ३ दिखावौ । जिसी जिसी ग्रंथमें वरणण किया३५ है तिसी तिसी ग्रंथकी ६ साखि लावौ । असे ८ हुकम स्री महाराजनै३६ फुरमाए• सो कविराजून १ तीन सलाम करि सिरि ऊपर धारि लिया । हुकम माफक भाखा वरणणका ४ आरंभ किया५ ।। १७१ १ ख. ग. लेक। २ ग. पाठमें। *यहांसे आगे ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्तियां मिली हैं--- वसा काम पड़े तो प्रा नवरस षटभाटा । अकसौ अष्ट अलंकार अस। ३ ख. रूपक । ग रूपकुं। ४ ख. रा. सिरजणहार । ५ ख. बषत। ६ ख. महा । ७ ख. ग. बीचि । ८ ख. जावते । ग. गावते । ६ ख. ग. विद्यावाणीके । १० ख. हीलोहल । ग. हीझ्झोहळ । ११ ख. ग. दरीयावका। १२ ख. ग. हीलोहल। १३ ख. है। १४ ग. वषत । १५ ख. ग. माहाराजा। १६ ख. ग. बौहौतर। १७ ख. ग. रूपकंकी। १८ ग. छाकसें । १६ ख. ग. मुषि। २० ग. प्रागें। २१ ख. ग. रूपकूके। २२ ख. ग. श्रव। २३ ख. सजुगत । ग. सयुगत। २४ ख. एतौ। ग. ऐतौ। २५ ख. सुणबेमै । ग. सुणबेमें। २६ ग. ऐक । २७ ख. रहसितौ। ग. रहसतौ। २८ ख. ग. कवेसुर। २६ ग. किसीनें । ३० ख. ग. भाई। ३१ ग. जिसमें । ३२ ख. ग. कहिके। ३३ ग. विषावै । ३४ ख. ग. ग्रंथमै। ३५ ख. ग. कीया। ३६ ख. ग. ग्रंथंकी । ३७ ग. लावै । ३८ ग. अस । ३६ ख. ग. माहाराजन । ४० ग. फरमाये। ४१ ख. कविराजून। ४२ ख. ग. धार। ४३ ख. लाया। ग. लीया। ४४ ग. वर्णन । ४५ ख. ग. कीया। १७१. निघांन - घर । छाकस - प्यालासे, शराबसे । चौरासी बंध रूपोंके - डिंगलके चौरासी प्रकारके गीत छंदोंके । संजुगति - संयुक्त, सहित । Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६६ ] सूरजप्रकास अथ खटभाखा वरणण ' छपे संसक्रत' है ' सुरभाख, आदि पहिला सुजि भाखा दूसरी, सेस दूजै तै अपभ्रंस तीसरे, मगधदेसी सरस सूरसेनीस, पढ़ें थांक पंचम्मै करि" थांन छठे प्राक्रत" कहूं, विधि प्रा घणी विसत्तरूं' 1 सर रचि प्रताप 'अभमाल सह, इम खटभाखा उच्चरूं ।। १७२ ७ *अथ प्रथम भाखा संसऋत वरणण १३ १४ 1 'स्रीमन्नरेंद्र जमुना' तव खङ्गधारा गंगेव कीर्तिरचला' १५ प्रतिभाति नित्यं । स्त्रीयोधदुर्गाधिपतीर्थराजस्वयं बभौ १६ ८ " उच्चारूं । विसतारूं । चवथ मै राघववंशजन्मा ॥ १७३ इति खटभाखा लक्षणौ: १७ । संस्कृतस्येदमुदाहरणमुक्त ' १८ अथ नाग भाखा बोलै चाली पांणं" ", वधै पांण" संमुख तारं । .१६ it २३ .२४ ૨ મ कथी* ‘अभूमाणं', मंडलाघ पैणा महिपत्ती १ ख. वनंन । ग. वरनन । घ. बरनन । २ ख. ग. संस्कृत । ४ ख. पहला । ५ ख. ग. ऊचारूं । ६ ख चवथ्यमै । ग चवथमे ८ख. थांनि । ग. यांनिक । ख. ग. पांचम्मै । १३ ख. ग. विस्सतखं । श्रीमन् नरेन्द्र ! यमुना तव खङ्गधारा गङ्गव कीर्तिरचला प्रतिभाति नित्यम् । श्रीदुर्गाधिप तीर्थराज - स्वयं बभौ राघववंशजन्मा || १३ *ग. प्रतिमें यह शीर्षक निम्न प्रकार है- 'अथ प्रथम संस्कृत भाषा वर्नन || श्लोक' १४ ख. वर्ननं । श्लोक ॥। १५ ख. यमुना । ग. यना । १६ ग. कितिरचला । १७ ख. ग. वभो । १८ ख. ग. लक्षणे । १६ ख. मुक्तं । ग. प्रति में यह शब्द नहीं है । २० ख. वोले । २१ ख. ग. पाणं । २२ ख. ग. वद्वे । २३ ख. कथा । २४ ख. ग. मंडलाघ्र । २५ ख. ग. महिपती । ॥ १७४ ३ ख. ग. ह । । ७ क सरप । १० ख का । १२ ख, ग. प्राकृत । १७२. सुरभाव - सुरभाषा, देववाणी । सुजि - फिर, पुनः । सेस शेषनाग ( यहां नाग भाषा के लिये प्रयोग किया गया है ) । चवथम्मं - चौथी, चतुर्थी । सूरसेनीस - शौरसेनी भाषा । थांनक स्थान । - १७३. इस इलोकका पाठ निम्न प्रकारसे स्वर्गीय पं. श्री नित्यानन्दजी शास्त्रीने संशोधित किया है। Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६७ नाग' भाखा टिप्पणं कश्चित् कवि[:]राजानं प्रति वदति', हे राजन् महदाश्चर्यमेतत् किं न एतत् महदाश्चर्यम् ॥ १७५ ___ अथ भाखा अपभ्रंस रंगा नौ गय धमयं'', दिठांणे नताय गैदंते १२ । 'प्रभा' एह ऊभमयं", रटांणे" सतौय' चित्राळी ॥ १७६ अथ अपभ्रंस१७ टिप्पणं१८ इ[द]मन्यत्' महदाश्चर्यं किं हे राजन यैः चित्रमिद[मन्दि]रै पगजानद्र [य गजेन्द्र]१ द्वास्तेषा[द्वारतेषां]२२ बहूतरा२३ दंती ४ न त्वया ५ दता यदमेवाश्चर्यं ।। १७७ अथ मगध देसी भाखा जुगे अठ कठाणं२८ सिधाणं ६, लही ए' स्रगाणं' । खगे पल्ल मझाणं, रिपाणं च.२ अप्पवं चरियं ॥ १७८ अथ मगधदेसभाखा टिप्पणं३४ हे राजन् मगधदेसयं ६ तृतीयमिदमाश्चर्य यैः सिधैः अष्टांग योगभ्यासेन ८ स्वर्ग न प्रापते ६ तत° स्वर्ग शत्रुणां१ त्वयाखङ्गेन २ तृणमावेण दत्तंइहं ।। १७६ १ ग. अथ नाग। २ ख. टोपण । ग. टीपनं ! ३ ग. कवि- राजानां। ४ ख. ग. प्रतिवदतिः। ५ ग. महदश्चर्यमेतत्। ६ ख. त । ७ ख. महदाश्चयं । ग. महदाश्चयं । ८ ग. भाष । ६ ख. अंपभ्रंस। १० ख. नो। ११ ग. वनयं । १२ ख. गैदते । ग. गेदंते। १३ ग. ऐह । १४ ख. ग. उभमयं । १५ ख. रदाणे । ग. ठटाणे। १६ ख ग. शतोय । १७ ख. अपभ्रंश । १८ ख. ग. टीपणं । १४ ख. इदमन्यत् । ग. इदमनात् । २० ख. चित्रमंदिरे । ग. चित्रमंदिरै । २१ ख. पगपानदृष्टा। ग. पिगनानदृष्टा। २२ ख. स्तेषां । ग. स्तेषी। २३ रन, बहुतरा । ग. पहुतरा । दति । २४ ख. ग. नस्त्वया । २५ ख. ग. इदमेवाश्चर्य । २६ ख. ग. २७ ख. ग. अछ। २८ ग. कठ्ठाणं । २६ ख. ग. सिद्धाणं । ३० ग. ऐ। ३१ ख. ग. श्रगाणं । ३२ ख. प्रतिमें नहीं है। ग.स। ३३ ख. अप्पवंचरी। ग. अप्पवंचरीयंयां। ३४ ख. ग. टीप्पणं । ३५ ख. राजन्न । ३६ ख.ग. मगधदेसजं। ३७ ख.ग. सिद्धः। ३८ ग. योगाभ्यासेन । ३६ ख. ग. प्राप्यते। ४० ख. ग. तत् । ४१ ख. ग. नत्रूणा । ४२ ख. त्वयासखने । ग. त्वयास्वखने। ४३ ख. ग. तणमात्रेण । १७५. कश्चित् कवि[:]राजानं प्रति वदति, हे राजन् ! महदाश्चर्यमेतत् । किं न एतन् महदाश्चर्यम् ? १७७. इ[द मन्यद् महदाश्चर्यम् । किम् ? हे राजन् ! यश्चित्रमन्दिरेऽपि गजा न दत्तास्तेषां [द्वारि] बहुतरा दन्तिनस्त्वया दत्ता इदमेवाश्चर्यम् । १७९. हे राजन् ! मगधदेशजं तृतीयमिदमाश्चयं यः सिद्धः अष्टाङ्गयोगाभ्यासेन स्वर्ग न प्राप्यते तत् स्वर्ग शत्रूणां त्वया खङ्गन तृणमात्रेण दत्तमिदम् । Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १९८] सूरजप्रकास अथ सूरसेनी गजागमणि' अवासौ', वामौ सत्र तव सुणि दूंदभी । म्रगागमणि बनासौ , प्राचंभम पंचमं कत्थं ॥ १८० अथ सुरसेनमिदमाश्चर्य' हे राजन्' गजगामन्या" २ स्वशत्रुस्त्रिया, स्वमंदिरे तव दुंदभे श्वुनं ४ श्रुत्वा प्रारण्येमृगवत् १५ पलायनं कृतं इदमपी आश्चर्यं ।। १८१ *अथ प्राकृत भाखा वरणण दूहा इम'८ पंच भाखा उच्चरे'६, सुणि ग्रंथां तत सार । अब कुळ भाखा उच्चरू, पराक्रमी अणपार' ॥ १८२ ब्रजभाखा मुरधर विमळ, आदि करे उच्चार । देस देस भाखा डंबर२५, वरणूं करि१६ विसतार' ।। १८३ अथ व्रजभाखा ८ वरणण अदभुत२६ रसोक्ति३° सवैया अरि झंडनुत' रिनु सिंघ अने, भुजदंडनि पांनि प्रचंड रचे । किरमालतें मंगल ज्वाल उठे, मुनिराज विलोकत हास्य"मचे। १ ख. गज्जागमणि। २ ख. ग. अवासो। ३ ख. ग. वामो। ४ ख शत्र। ग. शत्र । ५ ग. तवं। ६ ख. ग. स्रणि । ७ ख. इंदभि । ग इंदभ । ८ ख. वनासो। ग. बनासो। ६ स्व. पंचमं । १० ख. ग. सूरसेनजमिदमाश्चर्य । ११ ख. ग. राजन । १२ ख. गजगामिमा । ग. गजगामिन्या। १३ ख. दुदभे । ग. दुंदुभे। १४ ख. ग. स्वनं। १५ ख. अरण्येमगवत् । ग. अरण्ये म्रगवत् । १६ ख. ग. इदमपि। १७ ख. ग. प्राकृत । *ग. प्रतिमें यह शीर्षक निम्न प्रकार है- 'अथ भाषा प्राकृत वर्नन।' १८ ख. ग. यम । १६ ग. उच्चरं । २० ख. ग. पराकृत । २१ ग. उणपार । २२ ख. ग. वृजभाषा। २३ ग. करै। २४ ग. देश। २५ ख. डमर । ग. डमर । २६ ग कर। २७ ग. विस्तार । २८ ख. ग. वृजभाषा। २६ ख. ग. अदभूत । ३० ख. ग. रसउक्ति। ३१ ख. झुडुनते । ग. झूडुनते। ३२ ख. ग. रनु। ३३ ख. पानि । ३४ ग. रचि। ३५ ख. ग. किरमालते । ३६ ग. ज्वाळ । ३७ ख. ग. विलोकित। ३८ ख. हास्य । ३६ ख. मच्च । ग. मचें । १८१. अथ शौरसेन्यामिदमाश्चर्यम् । हे राजन् ! गजगामिन्या स्वशत्रुस्त्रिया स्वमन्दिरे तव दुन्दुभेःस्वनं श्रुत्वा पारण्यमृगवत् पलायन् कृतमिदमप्याश्चर्यम् । १८२. पराक्रमी - शक्तिशाली । अणपार - अपार, असीम । १८३. डंबर - वैभव, शौर्य । १८४. पानि - हाथ । किरमाल - तलवार । मंगल - अग्नि । ज्वाल - प्रागकी लपट । विलोकत - देखते हैं। Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ १६६ अनि' मंगल जलवारे बचै', त्रिण वारे जलै यह रीति सचै । अदभूत चरत्रकी रीति यह है, जलवारे जरै* त्रणवारे बचै ॥ १८४ अथ द्वितीय इकतीसा कवित्त साहके'' कटहरै'२ विफरि ठाढ़ौ अभैसाह - मारन१४ तुज कमीर रोसकी रटारीय १५ । मीरखांन चक्रत'६ अमीर परे मुरझाइ, छोहकी कटक देखि छटक छटारीयै । मोतीमाल साह दे'८ मनायौ खांन दौरां२०.."मिलउझक२२ विलोकै२३ तहां वेगमा२४ अटारीयै । पांन धारचौ प्रगट गुमांनी धारचौ जोधपुर - दिल्ली सोच धारचौ कर धारयौ तें कटारीयै ॥ १८५ . ___ अथ मुरधर ६ भाखा दूहा२८ लाल वदन चख लाल, कर जमदढ़ दीधां कमध। उण वेळा 'अभमाल', जोवण जेहडौ 'अजणउत'' ॥ १८६ १ ख. अति । २ ख मंगतौ। ३ ग. जलबारै। ४ ख. वर्च। ग. बच्चें। ५ ख, ग. तन। ६ ग. जरैं। *यहांसे आगे ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्तिां हैं- (जलवारे जर यह रीति सचें। अदभूत चरित्रकी रीति यहै जळवारै जरै (त्रिनवारे वर्च)।' ७ ख. ग. विनवारे । ८ ख. बचे। ग. वचै। । ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह नहीं है। १० ख. ग. सवैया। ११ ग. साहके । १२ ग. कटहरें। १३ ख. ग. प्रभसाह । १४ ख. मारनु १५ ख रटारी । ग. रटारोपे। १६ ख. ग. चक्रित। १७ ख. ग. मुरछाय। १८ ख. ग. दै। १६ ग. मनायौं। २० क. दौरां । ग. दौरा। २१ ख. ग. मिलि । २२ ख. ग. उझके । २३ ग. विलौके । २४ ख. वेगम। ग. बेगम । २५ ख. पै। ग. 4। २६ ग. मुरधरा । २७ ख. ग. भाषा। २८ ख. दोहा । ग. दुहा। २६ ख. कमंध । ३० ख. चेहड़ो। ३१ ख. ग. अजणऊत । १८४. सचै - सत्य, साँच। चरत्रकी - चरित्रकी । १८५. कटहरै - कटधरा । विफरि - क्रोध कर के। ठाढ़ौ- खड़ा है। प्रभसाह - अभय सिंह। तुजकमीर - अभियान या जलूस प्रादिकी व्यवस्था करने वाला। चक्रत - चकित, पाश्चर्ययुक्त । छोहकी - कोपकी, क्षोभकी।। १८६ वदन - मुख । चख - चक्षु, नेत्र । जमदढ़- कटार विशेष। अभमाल - महाराजा अभयसिंह । जेहड़ौ- जैसा। अजणउत – महाराजा अजीतसिंहका पुत्र । Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०० ] सूरजप्रकास कवित्त प्रताप वरणण' सूरज हिंदवाणरौ', गाढ़ तोलरौ' गिरंदह । रूपकरौ रिझवार, अनै रूपरौ अनंगह । वरदायक सकतिरौ, कंत' क्रीत ६ कहावै । उरड़ जोम अंगरौ, अवर पह" मीढ़ न आवै । दौलति' प्रताप जैचंदरौ, कंत गह सभाव 'गजबंध'रौ । 'अभमाल' इसौ 'अजमल्ल'रौ'', क्रोडि जुगां राजिस करौ।। १८७ उत्तरकी भाखा' 3 पंजाबी नीसांणी रज्जा" तं१५ वड्डा ६ सबै, सिरपोस'" रजंदा । रूप दुडंगा'८ रज्जिए, तपतेज तुजंदा । अज्जा १ तेडा२२ अगाळे, प्राग्गौ २४ 'जैचंदा' । नाळ जिहंदी२५ हिंद६, देस सब भूप सझंदा ॥ १८८ तूंदा रावल व्याहित ८, रंक राव२६ रचंदा । दिद्दा अत्थू' दायज २, चित्रौड़ दिपंदा । १ ख. वरनन । ग. बर्ननं। २ ग. हिंदवाणरौ। ३ ख तोलरो। ४ ख. सतिरो। ५ ग. कति । ६ ख. ग. क्रोतिरौ। ७ ख. ग. पौहौ । ८ ख. ग. दौलत । ६ ख. जयचंदरौ। १० ख. ग. अजमाल। ११ ख. ग. कोडि। १२ ख. ग. राजस । १३ ख. ग. भाषा। १४ ग. रझ्झा । १५ ग. तू। १६ ख. ग. वङा । १७ ख. सिरयोस । ग. सिरपोस । ख. म. टुडांदा। १६ ख. रज्जीए । ग. रझ्झीऐ। २० ख. तुझंदा। ग. तुकंदा। २१ ख. ग. प्राजा। २२ ख. तैडा । ग. तैङा। २३ ख. अग्गलै । ग. पागले। २४ ख. जगौ । ग. जग्ग। २५ ख. जिन्हं । २६ ख. ग. दे। २७ ख. तूंट्टारागळ । २७ ग, व्याहित। २६ ग. रा। ३० ख. ग. दिद्या। ३१ ख. अथू। ३२ ख. दाइजै । ३३ ख. चित्रोड। ३४ ग. दियंदा। १८ ख १८७. हिंदवांणरौ- हिन्दुस्तान। गाढ़- दृढ़ता, मजबूत । गिरहद - पर्वत । रूपक - काव्य, कविता । रिझवार - प्रसन्न होने वाला । अन - और । अनंगह- कामदेव । वरदायक - वरदान प्राप्त करने वाला। कंत - पति । क्रीत - कीर्ति । उरड़ - साहस, शक्ति । मीढ़ - समानता, बराबरी। गह - गम्भीर । गजबंधरौ- गसिंहका। प्रभमाल - महाराजा अभयसिंह । अजमल्ल - महाराजा अजीतसिंह। १८८. रज्जा - राजा। तं - तू । वड्डा -- बड़ा, महान । सिरपोस - शिरत्राण । दुडंगा सर्य (?) । तुजंदा-तेरा। प्रज्ज- महाराजा अजीतसिंह। तेड़ा-तेरे, तेरा। अगाळे - पूर्व, पहिले । अम्गौ - पूर्व । नाळ - (?) । जिन्हूदी-जिनकी। १८६. तूंदा - तेरा । दिद्दा - दिया। प्रत्यू- अर्थ, रुपया, धनदौलत । वाय दहेजमें। चित्रौड़ - चित्तौड़ गढ़ । दिपंदा - शोभायमान होता है। Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २०१ ईसानं दे अंकड़े, कत्थे' न करंदा । जित्थे' जित्थे जोइये', तित्थी' दरसंदा ॥ १८६ कल्ह तुझंदा पित्र' सो, 'अजमाल' उपदा । जंदा रक्खंदा सजै, राजस रांणंदा । रज्ज डिगंदा रविखया", अंबं नयरंदा"। दिलू उमंदा 'अभै'१२ दिळू, तू खाट तिन्हंदा ॥ १६० तेंडा उन्नूंदा तुझक'", दूणे दनसंदा' । एक थपंदा असपई, एक'६ उथपंदा । दरियावंदा फेर ८ दिल, लहरूं आमंदा । लक्ष'६ लहंदा अख्ख, तैतै लक्ष दियंदा' ।। १६१ दीपंदा 'अभमल' दुडंद, तूं सख तेरंदा । तेंडी२३ नाळ गुसांईयां, सब आलम दंदा । देव तरंदा रूप दिढ़, सरणाय सझंदा । एक तुझंदा एक अंग, जग सब जांणंदा ॥ १९२ १ ख. ग. क्वथ। २ ख. ग. जिथे जिथे। ३ ख. ग. जोइय। ४ ख. ग. तिथी। ५ स्व. पित । ग, पित्त । ६ ख. रवंदा । ग. राषंदा । ७ ग. राणंदा। ८ ग. रझ्झ । ९ ख. डिमंदा । ग. डिगदा। १० ख. रषीया। ग. रषिया। ११ ख. ग. अंबा । १२ ख. ग. अभ। १३ ख. दिठ। १४ ख. तुजक। १५ ख. ग. दरसंदा। १६ ख. ग. ऐक। १७ ख. दरीयावंदा। १८ ग. फेरि । १६ ख. ग. लष। २० ख. ग. लष। २१ ख. ग. दीयंदा। २२ ख. दुडंगद । दुड्यद । २३ ख. ग. तेडी। २४ ख. स्रव। २५ ख. ग. ऐक। २६ ग. तूझंदा। २७ ग. ऐक । १६१. कल्ह - कल । तुझंदा - तेरा। पित्र-पिता। अजमाल - अजीतसिंह। उपदा उत्पन्न (?) । जंदा- जिसका । रक्खंदा - रखा गया है। राजस - राज्य। राणंदामहाराणाका। रज्ज - राज्य । डिगदा- डिगता हुआ। रक्खिया - रखा । अब - प्रामेर । नयरंदा -- नगरका । अभै - अभयसिंह । तिन्हंदा - उनका, उसका । १६२. तेंडा - ( तेरा ? ) । उन्नूंदा- उनका। थपंदा - स्थापित करता है। असपई - प्रश्वपति, बादशाह । उथपंदा - खेड़ता है, हटाता है । १६३. दोपंदा- सुशोभित होता है। प्रभमल - अभयसिंह। दुउंद - सूर्य, भानु । सख - शाखा, वंश । तेरंदा - तेरहका। तेडी - ( तेरी ? )। तरंदा - ( तरहका ? )। दिढ़ - दृढ़। सरणाय - शरण, पनाह । सझदा - सज्जित करते हैं। तुझंवातेरा । जाणंदा- जानता है। Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०२ ] सूरजप्रकास होय बंदा सो ऊबरें, खळ हाय एहा' गुण तेंडा' 'प्रभा', १ 1 घण वरदा' बूंद ज्यां नहिं पार पांन तरंदा पिक्खियै", पंथा तूझ गुणंदा पार नां, ज्यां कणंदा । आजंदा दीठा सबै, मैं हौर " नरचंदा । -99 १२ ४ हुंडे " रज्जवी ३, नहि होर करंदा । मरंदा | किताक कहंदा | लहंदा । उतरंदा ॥ १६३ १७ रेण 19 अथ दक्खणको ११ भाखा :: सोरठा ६ प्राला मुदफर खांन, घोए " चे आाला प्रभा । जाला भज्जी खांन, घौय दिलीचा मग्गए २० अथ सोरठकी भाखा :: सोरठा २२ २३ हखापहतणा" । २७ ज्यौ । भूपति बाके भाह, तडकै २४ भोगै कंत 'प्रभाह', एक 'अजमल रावउत १ ग. ऐहा । २ ख. र. तेंडा । ३ ख घरसंदा । ४ ख. ग. पिषीय । ६ ख. ग. ज्यौ । ७ ख. ग. रेण । ८ ग. दिठो । ख. मैं । ग. होर | १२ ख. हुडे । ग. हुडें । १३ ख. ग. रझ्झवी । ग. नहीं। १५ स्व. ग. दक्षिण १६ ख. दूहा । ग. दोहा । १७ ख. मुफर । धोऐ । १६ ग. भी । घोय । २१ ग. सोरठा । २३ ख. वाके । ग. केवाके ग. पितां । २६ ग. भोगें । ११ ख. तेडी | । २० ख ग । राऊत । ॥ १६४ १ www । १६५ ।। १६६ ५. ख. ग. १० ख. मग्नऐ । २२ ख. ग. दूहा २४ ख. ग. तड़प । २५ ख. त्रहवां पतितणा । ख. हको । ग. ऐको । २७ २० ख. ग. अजमल तेंडा - तेरा । प्रभा - अभयसिंह | | वरसंदा - बरसने । घण - मेघ, बद्दल १४. बंदा - भक्त, सेवक । ऊबरें - बचता है । किताक - कितने ही । कहंदा - कहते हैं वाला । तरंदा - तैरता हुआ । पिक्खियं - देख कर । उतरंदा - उत्तर दिशाका । १६५. गुणंदा - गुणोंका । रेण - भूमि, पृथ्वी । कणंदा करणोंका । श्राजदा - प्राजके | मरघंबा - राजा । तेडी - तेरी हुंडे - बराबरी, समानता । रज्जवी राजा । १६६. श्राला - ( उच्चपदाधिकारी ? ) । धोए - ( निरस्त किया, भगा दिया ? ) + १४ ख. १८ ग. - प्रभा - अभयसिंह | १६७ बाके - ( ? ) । भाह - ( ? ) । तडके - ( कांपते हैं, विदीर्ण होते हैं ? ) । श्रहखापह तणा - ( तीन खांपोंके ? ) । Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास श्रथ सिंधी' भाखा हंमार, चंगा माढूं रज्जियां' | कुरौ प्रचे प्रभा' तुज्भीभार, गंनण हत्थी' द्रंगड़ा ॥ १६७ श्रथ दवावेत 3 ऐसी भांति खटि भाखा कहि बताई । चातुरी कलाकी भांति भांति चतुराई । जिसकी साख प्रथम भाखा संसऋत सो तौ अनुभूति - ऋत्य" सारस्वतसो" पाई । दूसरी नागभाखा सो नागपिंगळसौ आई | अपभ्रंस भाखा " १४ प्राक्रतसो कुळ काविवार जिससेती प्राक्रत" भाखा विस्तार करि गाई । जिसमें पूरब पच्छिम" उत्तर दक्खिरकी ए च्यार भाखा कहि दिखाई। जिसमें तीन भाखाएँ एक ग्रंग करके वखांणी । चौथी पच्छिमकी 1 भाखा जिसकी कहि " तीन प्रकारकी वांणी । ऐसे तरहसै १६ .१८ ह २ २५ ६ २७ * इस छन्द से पूर्व ख. तथा ग प्रतियों में निम्न पंक्तियां और मिली हैं 'सा सा सां भाषै ससि आदि तसमां रहस्यै, भाषह जस भलां । प्रजमलरावऊत | । १ स्व. ग. सिद्धी । २ ग. कुरौं । ५ ख. ग. अभ्भा । ६ ख. ग. हथी ग. अनभूति । १० ख. ग. कृत । अपभ्रंश । १४ ख. प्रतिमें नहीं है । ४ [ २०३ ३ ख अचै । ४ ख. रज्जीया । ग. रीयां । ७ ख. ग. साषि । ११ ख सौ । ग. सौं । ० ८ख. ग. संसकृत । ६ ख. १२ ख. सौ । १३ ख. १५ ख. ग. प्राकृत | यहां से आगे निम्न वर्णन ख. तथा ग. प्रतियों में और मिला है ' ( अपभ्रंस भाषा ) ग्रंथ विनोद विजयसौं पहिचांरणी । मगध देसकी भाषा जैन सास्त्र जाणी । सूरसेनी भाषा हेम व्याकरणका विचार नर भाषा ( प्राकृतसो कुलका विवहार जिससेती ) ।' १६ ख. ग. विसतार । १७ ख. ग. पछिम | १८ ख. ग. दक्षिणकी । १६ ग. ऐ । २० ख. जिसमे । ग. जिसमें । २१ ख. ग. भाषा । २२ ख. ग. एक एक । २३ ख. करिके । ग. करिकै । २४ ग. चोथी । २५ ख पछिमकी। ग. पत्छिमकी । २६ ख. ग. कही । २७. ग. सी । २८ ग. तरहसें । १८. कुरौ - ( ? ) । श्रचे - ( ? ) | चंगा - श्रेष्ठ, स्वस्थ । माढूं - मित्र । रज्जियां प्रसन्न करने पर । श्रभा - - अभयसिंह । गंगण ( ? ) । द्रंगड़ा नगर । १६९. खटि - षट्, छः । अनुभूति - अनुभव, अनुभूतिक्रत्य । सारस्वतसो - अनुभूतिस्वरूपा - चार्यकृत सारस्वत नामक व्याकरण ग्रन्थ । पाई प्राप्त की । नागपिंगळसौ - एक प्रसिद्ध छंदोंका लाक्षणिक ग्रंथ नागपिंगल । काविवार काव्यानुक्रमसे । जिससेती जिससे । वखांणी - वर्णन की । - Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०४ ] सूरजप्रकास भाखाका भांति भांतिका' वाखाण' करिकै दिखाया। दिल्लेसुर' पातिसाहूंकी भाखा जिसमें पारसीका इलम गाया । ऐसी भाखाके" गुण जिस राजसभाके वीच चंडीके वरदायक कविराजून गाए। लखू गज'' सांसणूंके इनाम पाए" ॥१६८ दूहौ'- कुरब रीझ पाए'५ करै'६, कवि प्रोसीस प्रकास । कायम 'अभमल' कोड़ि जुग, निज खट भाख निवास ॥ १६६ अथ दवावंत जिस बखतमें'८ और भी हुन्नरबंधूंन ६ सब हुन्नरका तमासा दिखाया' । सो कैसे कहि दिखाया। जिस बखतका विहार२४ सूरति पाक होसनायकाँनै २५ नजर गुजराए२६ । प्रासमांनी मौहरा" किये ८ पल्लैसै ६ झिलते आए । छछोहै' हौसनायकूकी हमराहस छूटे । जगजेठुकी तरबीत जोमसै जूटै । १ ख. ग. प्रतियोंमें नहीं है। २ ख. ग. व्याषांन । ३ ख. ग. दिलेसुर । ४ ख. पातसाहूंकी। ५ ख. जिससै । ग. जिससे । ६ ग. ईलम । ७ ग. भाषाके। ८ ख. राजसभासे । ६ ख. ग. वोचि । १० ग. कविराजने । ११ ख. ग. गाये । १२ ग. गझ्झ। १३ ग. पाऐ। १४ ख. अथव्हा । ग. अथदुहा । घ. दोहा। १५ ग. पाऐ। १६ ग. करें। १७ ख. मिवास । १८ ख. वखतमै । ग. बखतमै । १६ ख. हुनरवंधत। ग. हुनरबंधून। २० ख. हुनरका । २१ ख. दिषलाया। २२ ख. कैस । ग. कैसें । २३ ग. दिषाय। २४ क. तिहार । २५ ख. हौसनायककू । ग. हौंसनायकू। २६ ग. गुजराऐ। २७ ख. ग. मौहौरा । २८ स्व. कीए । ग. कोय । २६ ग. पल्लेसे । ३० ग. प्राऐ। ३१ ग. छछोहे । ३२ ख. होसनायकूकी। ३३ ग. हमराहसें। ३४ ग. छूट। ग. छुटै। ३५ ख. जगजेठकी। ग. जगजेठूकी। ३६ ख. ग. तरवीत। ३७ ग. जोमस । ३८ व. जुट्ट । ग. जुट्ट। १६६. वाखांण – वर्णन, व्याख्यान । दिल्लेसुर - दिल्लीश्वर, बादशाह । गाया - वर्णन किया। वरदायक – विरुद बखानने वाले अथवा वरदान देने योग्य । सांसगुंके - राजा द्वारा दान में दी गई भूमि याग्रामोंके । २००. कुरब - मान, प्रतिष्ठा। रीझ - पुरस्कार, दान । अभमल - महाराजा अभयसिंह। भाख - भाषा, वाणी। २०१. हुनरबंधूने - कलाको जानने वालोंने। पाक - पवित्र । होसनायकॉन - चतुरोंने (?)। हमराहस - साथी, मित्र । जगजेठुकी- पहलवानोंकी। तरबीत - ( तरतीब व्यवस्था ? )। Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २०५ पहलवांनीरौ वरणण स्रंगूंकी' खाटक चौटी' बंगड़ीके दाव। हमरांनी कंमरपेच दाबूंके' लगाव । तरह तरहके दाव जंगूके झणाके अपणै अपणै कुरंगूकी हमराहा हौसनायकूके हाके जोधांण मेड़तो वीरखेतके जाए भाजै" न लहवहै जेते लड़े तेते बरोबर२ रहे। पायकाँके हमल्ले १५ बांक' पट्टे फूलहत्थूका"" दाव । नजरबछेकका हुन्नर अंगूंगा वचाव । हणमंत रूप जगजेठून ८ भुजंग' दंडूंपर* दस्तताळ दिया । मानू' अनेक २ रणजीत बागळंके सीस इक डंका किया । अवासू ४ गिरंदूंके वीच पडसाद२६ फुट्टे । जाजुळमांन काळा गोरा वीर १ ख. ग. भृगूकी। २ ख. ग. चोटी। ३ ख, ग. दावूके। ४ ख. ग. अपणे अपणे । ५ ख. मैडता । ६ ग. जाऐ। ७ ख. भांजे । ८ ग. लहबहैं । ६ स्व. जेते । १० ख. ग. लड़े। ११ ख. ते । १२ ख. वरोवर । ग. बरोबर । १३ ख. रहै। ग. रहैं । १४ ख. ग. पायकूके। १५ न. ग. हमले। १६ ख. ग. वांक। १७ ख. ग फुलहथूके। १८ ग. जगजेठने। १६ ख. ग. भुजताळ । *(दंडूं पर) यहाँ से आगे ग. प्रति में निम्न पंक्तियाँ और मिली हैं (दंडूं पर) मुसताकि हवा आदम अलाह । सिंघ अभ हिदने वादस्याह महताब दिगर सुमां आफताब आलम तमाम तारीफ वंजाव । हफतविलाइत हे मुदई । हिंदसथानके सिरताज द्वमि कुनम उमरदराज (दस्तताळ दिया)।' २० ख. ग. दीया। २१ ग. मान्नूं । २२ ख. ग. अन्नक। २३ ख. ग. कीया। २४ ग. आवासू । २५ ख. गिरदूके वीच । ग. गिरदूंके वीचि । २६ ख. पडसाह । ग. पड़साद । २७ ख. ग. जाजुलिमांन। २८ ग. बीर । २०१. स्रगूंकी - सिरोंकी। खाटक - ध्वनि, अावाज, टक्कर । बंगड़ीके - दाव विशेष (?) । कमरपेच -- कुश्तीका एक दाव, कमरपेटी ( ? )। जंग्के – जांघोंके। झणाके - ध्वनि विशेष । कुरंगूकी - (?) । हमराहा - साथ । हाके - आवाज, शोरगुल । वीरखेतके - वीर प्रसविनी भूमि । जाए - उत्पन्न । लहवहै - जब तक अवसर हो, युद्ध करते रहते हैं। पायकाँके - सिपाहीके, पहलवानके । हमल्ले - प्राक्रमण, टक्कर। बांक - तलवार विशेष । पट्टे - प्रायः दो हाथ लंबी किर्चके प्राकारकी लोहेकी पट्टी जिससे तलवारकी काट या बचाव सिखाया जाता है। फूलहत्थूका - तलवारका । हणमंत - हनुमान । जगजेठून - पहलवानने । भुजंग दस्तताळ - भुजाएँ ठोकी, भुजा पर ताल लगाये । वागळंके - नगाड़ोंके । प्रवासू - भवनोंके । गिरंदूंके वीच - घेर, आवेष्टन ( ? )। पडसाद - प्रतिशब्द, प्रतिध्वनि । जाजुळमान -ज्वाजल्यमान । वीर - महादेवका रूप विशेष जिसे भैरवदेव भी कहते हैं। Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०६ ] सूरजप्रकास जैसे जगजेठ जुट्टे । नजरूंका निहार पंजूंका दाव । कदमूंका' फुरत डोरयूंका घाव । जडं तेहै डोरी लथोबथ' होय जावै। एकल-गिडवाराहूंकी दंतळू झड़ औझड़ असै दरसावै । स्रोणके फुहारे आसमांनको छूटे । लगो धख जमी पर लौटण ज्यू लुट्टै । ऐसे'' किसबूंका'' हुन्नर' करि मुजरैको प्राव'५। कड़े सूनकी'६ गुरज इनां में पावै। हाथियांरी लड़ाईरौ वरणण ___ जिस बखत' लाड़ा' लगौ' महावतूंन २२ छोडै ३ छंछांळ । झरणां गिरंदसे नीझर२४ वहत ५ विकराळ । जगरूप भयाणंक जमाति'६ जांण डाकदारूनै डाकके हुन्न रसे२८ आणे । अंगूके अवनाड़। चालते पहाड़ । अगडूंपरि" प्राय जूटे वीफरे ३ १ ग. कंदमूका। २ ख. लथोपूथ । ग. लथौवथ । ३ ख. ग. होय। ४ ख. एकलि । ग. ऐकल। ५ ख. वराहूंकी। ग. बराहूंकी। ६ ग. वरसावै । ७ ख. प्रासमानक । ग. प्रासमानकु। ८ ख. छ । ग. छुटै । ६ ग. लग्गे। १० ग. ज्यौं। ११ ग.अस । १२ स्त्र. किसवका । ग. किसबका। १३ ख. हुनर । १४ ख. मुजरेको । ग. मुजरैको । घ मुजरेकौं। १५ ग. पावै। १६ ख. ग. सुन्ने की। १७ ख. इमामूमै । ग. इनाममै । १८ ग. पावें । १६ ख. ग. बषतत। २० ख. लडाणूं। ग. लड़ाणूं। २१ ख. लगे । ग. लग्गे। २२ ग. महावतांने। २३ ख. ग. छोडे । २४ ख. निझर । ग. नीझर । २५ ग. बहत । २६ ख. ग. जमजमात । २७ ग. डाककै । २८ ख. हुंनरसै। ग. हुन्नरसैं । २६ ग. अबनाड । ३० ग. पाहाड । ३१ ख. ग. अगडपर । ३२ ख. जुट्ट। ग. जुटे। ३३ ग. बीफरे । २०१. जुट्ट- भिड़े, टक्कर ली। नजरूंका - दृष्टिका । लथोबथ - गुथंगुथ्थ । एकलगिड वाराहूंकी - एक दांत वाले सूअरकी। वंतळू - दाँत । झड़ औझड़ - प्रहार टक्कर । स्रोणके - शोणितके, खूनके । लौटण - कबूतर विशेष । कड़े - वलय । गुरज - शस्त्र विशेष। लाड़ाणूंलगौ - लड़ाने के लिये। छछांळ - हाथी। गिरंद - पर्वत । नीझर - निर्भर, झरना। विकराळ – महान, जबरदस्त । जमरूप - यम-तुल्य । भयाणक - भयावह । जमाति - जमात, समूह । जाणे- मानों। डाकदारनै - मस्त हाथीको अपने स्थान पर लाने वाला व्यक्ति। डाक - एक प्रकारका छोटा भाला जो मस्तहाथीको अपने स्थान पर लानेके लिए उपयोगमें लिया जाता है। प्रवनाड़ - जबरदस्त, प्रचंड । अगडूं परि - हाथियों का बंधस्थल । वीफरे - कुपित हुए। Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [२०७ सूरजप्रकास वच्छर' दतूंसळूके खाटक कैसे दरसावै । इंद्र वज्रकी झाट ऐसी' नजर आवै । चाचरूंकी भचक संडाडंडंका उपाट* । चरखंकी भभक धोम धड़हड़का अंधार । वीरघंट किलावूकी घोर भमरूंका गुंजार । पौतकारूंका पनि फौजदारूंका हलकार जगजेठ ज्यू जूटै जांण आबू गिरनार' झाटकते'' हैं पोगर आसमांकू उपाड़ि इनांमूंकी उरड़ ऐसी गजराजूंकी राड़ि ऐसे' समैं मीर सिकारूनै१४ सलाम करि अरज गुजराई । जिस पर हुकम हुआ। १ ख. वछर। ग. वेत्छर। २ ग दरसावं। ३ ख. ग. झाटक । ४ ख. असे । ग. अस। ५ ख. ग सुंडाडंडूका। ___ *यहांसे प्रागे निम्न पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियों में मिली हैं 'कुंभा थलू पर बझ्झौ काळदार भुजंगूंकी-सी झाट । ६ ख. पौतकारूका। ग. पौतकारूका। ७ ख. ज्यौ। ग. ज्यौं। ८ ख. जुट्टे । ग. जुट्ट। ६ ख. ग. जाणि। १० ख. झिरनार। ११ ग. झाटकतै । १२ न. ग. पोगरा । १३ ग. अस। १४ ग. सिकारूनै । १५ ग. तिस। १६ ख. ग. हुवा। २०१. वच्छर - ( ? )। दतूंसळंके - हाथीके मुंहके बाहरके दाँत । खाटक – टक्कर, आघात । दरसाव - प्रभाव दिखाना। झाट -प्रहार, चोट । चाचरूको - माथेकी, लिलाटकी। भचक - टक्कर, प्राघात । सुंडाडंडूका - सुंडका। उपाट - उठाना । चरखूकी - चरखी नामक औजार विशेष में बाँसकी दो नलियाँ जो लगभग सवा फुट लम्बी होती हैं और उनमें बारूद भरा हुआ रहता है। यह नलियों एक दूसरीको काटती हई ऊपर नीचे लगी रहती हैं और एक लम्बे बाँसके सिरे पर मजबूतीसे लगाई हुई रहती हैं। वि०वि० जब हाथी पूर्ण मस्ती में होता है और वह किसी आदमी पर झपट कर उसे मारने ही वाला होता है तो एक आदमी मैदानके किनारे बाँस पर लगी इस चरखीको लिए खड़ा रहता है जो चरखीदार कहलाता है। उस समय वह चरखी लेकर चलता है, उसके पास भी एक सूतका पलीता जला हुआ रहता है, वह उसको फूक लगा कर आग ताजा कर के चरखीके बारूद को जलाने की बत्ती (पलीता) को जला देता है, इससे चरखीके दोनों नलियों का बारूद जल जाता है। बारूद जलते ही बाँसके सिरे पर वह चरखी जोरसे घूमने लगती है और बड़ी जोर की फटाफटकी आवाज करती है, उसमें से ●ा भी निकलता है। · रखीदार उसको हाथी के मुंहके आगे ले जाता है जिससे हाथी घबरा कर आदमीका पीछा छोड़ देता है और भाग जाता है। भभक - धधक, विस्फोट । धोम- अग्नि, आग। धड़हड़ - ध्वनि, आवाज। बीरघंट- हाथी के पाखारके साथ बंधा घंटा। किलावूकी - एक मोटा रस्सा जिससे होथी को गर्दन से बांध रखते हैं। पौतकारूंका - जोश दिलाने वाला। पान -(?) फौजदारूंका - महावतोंका। हलकार - हुंकार । जगजेठ- पहलवान । जूट - भिड़ते हैं। भाटकते- टक्कर लेते। पोगर - हाथीकी सूड। राड़िलड़ाई, टक्कर । मीर- सरदार । सिकाख्ने - शिकारोंके । अरज गुजराई - प्रार्थना या निवेदन किया। Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २०८ ] सूरजप्रकास सिकार वरणण • २ सिकोरकी चढ़ाई । जिस बखत हवालगीरूंने' सलांम बजाय असवारीका सरांजांम सब हाजर किया । किस किस तरह के कहि बताय । घोड़-वहलि माफे इक्के खासे सुखपाळ मेघोडंबर" हौंदू गजराज साभूमै झळंस * अनेक खास वरदारूने धारी परि पंखी सजि आए मीर - सिकारी तिस बखत स्त्री महाराज सबज पौसाक पहरि प्राखेट व्रतके प्रावध धारे तीसरे नगारेके डंके ६ रकेब पाव धारे । बाजराज" प्ररोह" कैसे " दरसावै । सूरज"सापतासका" सा रूप नजर आवै । छतीस वंस राजकुळ बाजराजूं अरोहि है । घुमर" हल्लै छौल जळू जांणि समुंद्र छिल्ले १४ ५ १ 1 २३ १ ख. ग. हवालगीरूंनौं । २ ख. सरंजाम | ३ ख हार । किसि किसि । ६ ख. तर है । ग. तर है । ख. साजूंमै । ग. साजुमें । * यहाँसे श्रागे निम्न पंक्तियां ख. तथा ग. प्रतियों में मिली हैं 'बाजराज दुसाल । लाहानूर नळवरकी बंदूक साजूस झलूस ।' ४ ख. ग. कीया । ५ ख. ७ ख. ग. वताय । ८.ग. मेघाडंबरौ । १० ख. ग. झलूस । धार। १६ ख. दंके । १७ ख. बाजराजूं । २० ख. ग. सूरिज। २१ ग. श्रफलास । हल्ले । २४ ख. ग. सामुद्र । ११ ख. ग. पर । १२ ग. आऐ । १३ ख. ग. माहाराज । १४ ग. पौसाथ । १५ ग. १८ ग. आरोहि । १६ ख. ग. कैसे । २२ ख. घुंम्मर । ग. घुम्मंर । २३ ख. ग. - २०१. हवालगीते - खबर देने वालोंने ( ? ) । सरांजांम - सामग्री, सम्मान । घोड़-वहलि एक प्रकारकी घोड़े द्वारा खींची जाने वाली गाड़ी । माफे - ( ? ) । खासे - राजा या बादशाहकी सवारीका घोड़ा । सुखपाळ - एक प्रकारकी पालकी । मेघाडंबर - एक प्रकारका छत्र विशेष । हौंदूंसे हाथीकी पीठ पर कसा जाने वाला चारजामा । साभूम - उपकरण में, सामग्री में । झळूस - सुसज्जित । वरदान - लेजाने वालोंने, वहन करने वालोंने । मीर- सिकारी- शिकार करने वालोंमें प्रमुख अथवा राजा बादशाहों के शिकारगाहका प्रबंध करने वाला, मीरे शिकार । सबज - हरे रंगका, सब्ज़ । श्राखेट - शिकार | श्रावध शस्त्र, प्रायुध । रकेब - घोड़ेकी काठीका पावदान । बाजराज - घोड़ा । श्रारोह- सवार हो कर । घुमर समूह । हल्ले - गतिमान होते हैं, चले । छोळ - तरंग, हिलोर । जळूसें जलूस । जांणि मानों छिल्ले - उमड़ते हैं, सीमाके बाहर होते हैं। G - १३ — ४ - Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २०६ नगारूंकी घोर नकीबूंके' हाके' छपै' कपोलूं क्रीला करते' छुटै छंछाळ छोके रज डंबरका पूर चढ़ि ढ़के भांण । ठांमठांमूसें फौजूके" इंबर उछटते केकाण । ऐसे विमरीर दळूसै विकट गिर झिंगर घेरे । फौजूके लगस चौतरफ फेरे । सिंघांरी सिकार तहां सौनहरी-पटैत विकराळ रूप बाघ भभकार ऊठे' । रोसका २ रूप जांणि जमराज'3 रूठे। जिन्हंसै'४ सांम्हे'५ जाइ१६ जूटै१७ महाराजके'८ जोधांणके ६ राव । हथलू पहल कीए बीजळूके घाव । केतक'' वाघूपर आप असि धरै। सेल तरवारूंका घाव स्त्री हथूसर में करै । * नाहरू रजपूतांकी ३ राड़ि पौरस अलेखे। सूरज भी रथ खांचि ५ तिसका कवतग देखै । सिंघों पर भैसांरी लड़ाई केतेग सेर नवहत्थे७ मारिके२८ गिराए केतेक जाळियूंकेवीच. १ ख. नकीक। २ ख. हाक । ३ ख. छप्प। ४ ग. करते। ५ ख. छूटे । ग. छुटे । ६ ख. ग. डम्मरका। ७ ग. फौजूंके। ख. डम्मर । ग. डम्मर । ह ख. असे । १० क. पटेत। ११ ख. उठे। ग. उर्छ। १२ ख. रोकसे। १३ ख. ग. जमराव । १४ ख. जिहंसे । १५ ख. सांम्है । ग. सांम्हें। १६ ख. ग. जाय । १७ ख. जुवे । ग, जुटे। १८ क. माहारावके। १६ ग. जोधरणके राव। २० ग. कीऐ। २१ ग. केतेके । २२ ख. ग. हथसै । *यहांसे भागे ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्तियां मिली हैं 'लगी नरहै असे करत घाय जहां लगै तहां दोय टूक हुय जाय। २३ ख. ग रजपूतंकी। २४ ख. औरस । २५ ख. ग. थांभि । २६ ख. केतक । ग. केतक । २७ ख. ग. नवहथे। २८ ख. मारिक । ग. मारकै । २६ ग. केतक। ३० . जालीयांके वीचि । २०१. घोर - ध्वनि, आवाज । हाके - अावाज । छप - (षट्पद) भौंरे । कपोलू - गंडस्थल । क्रीला-क्रीड़ा। छंछाळ - हाथी। रज-धूलि। डंबरका - समूहका। पूर - पूर्ण । भाण - भानु, सूर्य । ठांमठांमूंसें - स्थान-स्थानसे । केकाण - घोड़ा । विमरीर - विकट, जबरदस्त। लगस – समूह। सौनहरी-पटेत - एक प्रकारका सिंह । विकराळ - भयंकर । भभकार - दहाड़ कर, कोप कर । रोसका - कोपका, क्रोधका । रूठे - कोप किया। जिन्हूसै – जिनसे। सांम्हे – सम्मुख, सामने। जूट - भिड़े । हथलू - सिंहका अगला पंजा जिससे वह शत्रु पर प्रहार करता है। बीजळूके - तलवारोंके । स्त्री हyसै - अपने हाथसे । नाहरूं - सिंहों। राडि-लड़ाई। पौरस - शक्ति, बल। अलेखे - अपार, असीम। कवतग - कौतुक । केतेग - कितने ही। नवहत्थे - नौहत्था सिंह। जाळियूंके वीच - फंदोंके बीच, जालके बीच । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१० ] सूरजप्रकास कैदमे' ल्याए । तिनूं परि महिषके चख झाळ तूटै । जमराजके राजबांण पारण जूटै । सो कैसे भयाणक गजराजूंके आकार आरोध' कंधे' । चोगजे'२ साबळसे लंग' जोमसै अंधे । धिखते" आरणसे लोयण जमराजसे असवार कालीनाग ज्यूं५ करते फुरगूंका फूंकार ६ ऐसे' सारवांनूंके'८ हाकलेसै ६ विमरीर वाचूं परि १ धाए। उस तरफ केसरसिंघ२ पटैत२३ नले२४ झाड़५ भभकार सांमुहै।६ पाए । नळू हाथळूका दाव औझडि झड़ ८ लंगूका घाव दारुणूंके हाथळ' लगण३२ न* पावै । आरजूंक स्रंग पार होय ४ जावै। फूटे ५ घड़६ अाफळते" है ८ ज्वाळानळ ज्यौं जलते हैं। रुइके ६ पहल ज्यौं० लंगू पर चढ़ाई रोळे । १ ख. केदमै । ग. केवढं। २ ख. ग. लाए। ३ ख. ग. तिन पर । ४ ख. तुट्ट। ग. तु। ५ ख. ग. प्रारणे। ६ ख. छूटे। ग. छुटें। ७ ख. कैसे। ८ ख. भयाणष । ग. भयानक । ६ ख. गजराजौके । ग. गजराजूंके। १० ख. ग. प्रारोट । ११ ख. ग. कंध। १२ ख. ग. चौगजे। १३ ख. अंग। १४ ख. धिषत। १५ ख. कालीनाग ज्यूं । ग. काळोनण ज्यौं। १६ ख. फुकार । १७ ख. असे। ग. अस। १८ ख. ग. सारंवानूके। घ. सारवांनूक। १६ ख. हाकलैस । २० ख. ग. विमरीर । २१ ख. ग. वाचूं पर। २२ ख. ग. केसरीसिंघ । २३ ख. पट्टीत। २४ ग. नलै। २५ ख. ग. झाड़ि। २६ ग. सांम्हे। २७ ख. ग. ओझड। २८ ख. ग. झड । २६ ग. हाघाव। ३० ख. ग. दारणूक । ३१ ख. ग. हाथल। ३२ ख. ग. लगणे । *रेखांकित पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। ३३ ग. शृंग। ३४ ग. हुय। ३५ ख. में नहीं है । ग. फूट। ३६ ख. में नहीं है । ग. घटुं। ३७ ख. फलते। ३८ ग हैं। ३६ क. रूईके। ४० ग. पहलजू। ४१ ख. शृगूंपर। ४२ ख. ग. चढ़ाय। ४३ ग. रोले । महिषूके - भैसोंके । चख – नेत्र । झाळ - कोप, कोपाग्नि । राजबांण - राजाके वाहन । पारण-जंगली भैसे । भयाणक - भयावह, भयंकर। साबळसे - भाला विशेषसे । संग-सींग । जोमस - जोशसे । धिखते- प्रज्वलित । श्रारणसे - लुहारकी भट्टीसे। लोया – नेत्र, लोचन । फुरगूंका - नाकके नथनेका । सारवांके - ऊँटके सवारके । हाकलेस - हाँक करके । नले - ललाट । भभकार - कोप कर । सांमुहै - सम्मुख, सामने । नळू - ललाट । प्रौझडि झड़ - भयंकर रूपसे प्रहार या टक्कर । स्र गूंका - सींगोंका। दारुणूक - भयंकरके । पारपुंके - भैसोंके । रूइके पहल ज्यौं - धुनी हुई रुईकी मोटी तह जैसी। रोळे - फेंकते हैं। Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २११ छूटे' हंस पड़े जांणे' मंजीठ बोळे । इस उजैका तमासा देखि गिर झंगरूंवीचि पैसाहर फेरे । अरूंके झुंड नटूके'' तटाक घण घूमरूंसें' घेरे। तहां सेती' होकरि ऊ?" अंधकंध गिड़दी'५ ढाळ अगनकुंडसे चखूबीच भभकते ८ क्रोधकी झाळ। हमफरते' तोपका' गोळाज्यू * अाए । जिन्हूं पर ठांमठांमसेती फौजूके लडंग धाए। सूरांरी सिकाररौ वरणण दंतूसळूकी ४ प्रौझड़२५ घोड़२६ भड़ासू" लड़ते हैं। जाजुळमांन२८ जोधार सेलूस ६ जड़ते हैं। ऐसे बाराहूंके ' ऊपर घण वीजूजळांकाने घाव । सो कैसे 3 सामळे बदूळपर वीजूजळांका सिळाव । ऐसे भयांणंख एकलगिड़ बराह ढाए ।। १ ख. छुट्ट। ग. छूट। २ ख. जागि। ३ ख. वजका । ग. वजेको। ४ ख. गिरि । ५ ग. झींगरूवीचे। ६ ख. ग. घांसाहर। ७ ख. फेर । ग. फेरे। ८ ग. प्रेरारूं । ६ ख. झंड। ग. झंड। १० ख. नटू। ग. नडू। ११ ख. ग. घूमरसे । १२ ख. सैती। १३ हौकरि । ग. होकर। १४ ग. करि उठे। १५ ख. गिडदा। ग. गोडदा । १६ ख. ग. अगनकुंडसे। १७ स्व. ग. चबूंवीचि। १८ ख. ग. भभकते। १६ ख. हमफरते। ग. होफरते। २० ख. ग. तोपके। २१ ख. ग. गोळाज्यौं। २२ ग. प्राऐ। २३ ग. जिन-पर। २४ ख. ग. दतुसलूके। २५ ख. ग. प्रौझड़ झड़। २६ ख. घोरू । ग. घोडू । २७ ख. भलूस । ग. भड़सें । २८ ख. जाजुलिमांन । ग. जाजूलामांन । २६ ग. सैलूसौ । ३० ग. अस। ३१ ख. ग. वाराहूंके । ३२ ख. ग. वीजूंजळूका। ३३ ख. ग. कैसा । ३४ ख. बद्दलपर । ग. वदनपरि । ३५ ख. ग. वीजलूंका। ३६ ख. असे । ग अंसा। ३७ ख. वराह । ग. वाराह । ३८ ख. अन्नक ढ़ाहे । ग. अनेक ढ़ाएं। २०१. छूटे हंस.....'बोळे - उनके प्राण छूट गये और वे खूनसे लथपथ ऐसे प्रतीत होते हैं मानों मजीठ घोल में सराबोर हों। उजैका - प्रकारका। धैसाहर - सेना, दल । घण - बहुत । घूमरूंसे - समूहसे, दलसे । धेरे- आवेष्टन, घेरा । सेती - से। होकरि - दहाड़ कर । चलूँ – नेत्र। भभकते - प्रज्वलित होते । झाळ -- ज्वाला, आग। हमफरते-तेजीसे स्वास लेते हुए। जिन्हं-जिन पर। ठांमठामसेतीस्थान-स्थानसे । लडंग - टुकड़ी, दल। दंतूसळूको - मुंहके बाहरके दांत । औझड़ - टक्कर । भड़ांसू - योद्धाओंसे । जाजुळमांन - जाज्वल्यमान, तेजस्वी । जोधार - योद्धा, भट । सेलूस - भालोंसे । जड़त हैं- प्रहार करते हैं। बाराहके - सूअरोंके । वीजूजळांका - विजलीका, तलवारोंका। सामळे - श्याम रंगके, कृष्णा । घदूळपर - बादलों पर, मेघों पर । सिळाव- चमक, दकम । भयाणंख - भयानक । एकल "बराह - जंगलोंमें अकेला रहने वाला सूअर । ढाए - गिरा दिए, मारे । Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१२ ] सूरजप्रकास खरगोस हिरणादिरी सिकाररौ वरणण ชุ ७ एते में केक खिरगोस' म्रिग सांमरूंके जूथ श्राए । तिसपर चित्रु कूंतूंका धाव | सीहगोसूके दाव । ऊछट " झपट से मिलते हैं । मोहरा " जड़ाव करते हैं । पाछे रंजक " मुडियांण काळे गोरे १२ 33 म्रग'' खरगोस जांणै१४ न पावै । तहां मारि गिरावै । पंखी कंदीलूंका विसतार । मीर जिनावरूंकी " सिकार | सिकारूका हुन्नर नजर होत" है । लगतू " रमतूंके प्रातुरी । € ६ जहां देखे " द ४ ख. ग. मृग । १ ख एतं । ग. ऐते । २ ग. केतेक । ३ ख. ग. बरगोस । ५ ख चीतूं । ग. तींतूं । ६ ख कुतूंका। ७ ख. साहगोस । ग. सोहगोस् । ८ ख. उछल । ग. मिलते। १० ग. मोहौरा । ११ ख. ग. रंज । १२ ग. मुडीयांण । १३ ख. ग. मृग । १४ ख. जांणे । १५ ग. देषै । १६ ख. ग. जानवरूंकी । १८ ग. कदिलूंका । १६ ख. हुनर । पंष । १७ ख. ग. ग. हुनर । २० ख होते । २१ ख. ग. लगतु । २०१. एते में - इतने में । केतैक - कितने ही । म्रिग = मृग - हरिण । सांमरूंके - भारतीय मृगी एक जाति विशेषके । वि.वि. - इस जातिका मृग बहुत बड़ा होता है। इसके कान लंबे होते हैं और सींग बारहसिंगोंके सींगों के समान होते हैं । इसकी गर्दन पर बड़े-बड़े बाल होते हैं । जूथ - समूह, टोली । चित्र - एक प्रकारके शिकार के लिए शिक्षित किए हुए चीते, इनकी प्रांख पर ढक्कन लगे रहते हैं। शिकार के समय प्रांखका ढक्कन उस समय खोल देते हैं जब हरिणोंकी टोली सामने या जाती है। ज्योंही प्रांखका ढक्कन खोला जाता है त्योंही ये चीते सीधे हरिण पर झपट कर उसे पकड़ लेते हैं । उस समय इन चीतों को शिक्षित करने वाला आदमी दौड़ कर उनके पास पहुँचता है । चीता शिकारका खून चूसने में लगा रहता है और ग्रादमी वापिस इसकी प्रांख पर ढक्कन लगा कर पट्टी बांध देता है। कूंतूंका - कुत्तोंका घाव - आक्रमण, हमला । सोहगोसूंके - सियहगोस नामक एक जंगली पशु विशेषके । ऊछट - कूद कर फांद कर । झपटसें - हमले से आक्रमणसे । मोहरा करते हैं - उछल कर आक्रमण करते हैं, कोप कर झपटते हैं । पाछै - एक प्रकारका हरिण । रंजक - एक प्रकारका हरिण । मुडियांण - एक प्रकारका हरिण जिसके सींग नहीं होते हैं । काळे - कृष्ण हरिण । गोरे-गोर वर्ण के हरिण । पंखी - पक्षी । कंदीलूंका - ( ? ) । मी रसिकारूंका शिकारकी व्यवस्था करने वाला प्रधान कर्मचारी, मीर- शिकार । हुनर - कला, हुनर । लगतं - लगतू या लगडू नामक पक्षी विशेष जो पक्षियोंका शिकार करने में शिक्षित किया जाता था । - Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २१३ .२ 90 9 3 चरज' सींचांणूं सो लाग प्रातुरी । बाज बहरूंकी झपट | क्रुही ' * कुही लूगूंकी ऊछट । लावे' तीतरि कल तीतर नंहरू * चाढ़ि ऊट" गिरावते हैं । नहरू परूं चूंच जड़े चरज बटेर मरगाबूंकूं' धर श्रावतें" हैं । ग्रासमांनके खेल नजरूं निहारै" । अलंगांसूं' चढ़ि कुलंगको " मारि उतारै । असै " तमास" अनेक भांति भांति पातिसाहूकी दस्तूरीकी सिकार हौसनायकांकी" जीवन" स्त्री महाराजाजीकी रीझवार" । श्रातुके " धमके बांकी चोट" । १६ 19 २० ५ で २७ संमळ ७ चीतळ पाठे केते लोटपोट । ऐसी प्राखेट करि नौबत ह बाजतूं श्राए । दुसमणूक" दाह साजणूंके मन भाए" । तिस बखत हौसनायकू 3 A चाक चढ़ाय टंकणै बणवाए ३४ । १ ख. ग. चरग । ३ २ ख. कुही । ग. कुहीकु । ख लूंगीकी । ग. लंगूंकी । ४ ख. ग. उछट । ५ ख. ग. लावे । ६ ख. ग. तीतर | ७ ख. ग. नहरूं । * चिन्हित पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । ८. उछटसे । ६ ख. ग. चचू । १० ग. मुरगा । ११ क. श्रावते । १२ ग. आसमामकें | १३ ग. निहारे । १४ ख. ग. अलंगूं । १५ ख. कुलंगूको । ग. कुलगूंको । घ. कुलंगकु । ड़. कुलुंगकं । १६ ग. उतारे । १७ व. ग. से । १८ ख. ग. तमासे । १६ ख. ग. पातसाहूकी । २० ख. दस्तूरकी। ग. दस्तूर । ग. हौसनायकोंकी । २२ ग. जावन । २३ ख. य. रिभवार । २५ ख. बांबूंकी । २६ ग. चौट । २७ ख. संम्मल । ग. सांमल ग. वाजत । २६ ग. आऐ । ३० ख. दुसमणोंकू । ग. दुसमणूंका। ३२ ग. हौसनायकौं । ३३ ख. ग. टांकणे । ३४ ख. ग. वणवाये । २१ ख. हौसनायकूंकी 1 २४ ख. ग. प्रातसूंके । । 3 १४ - २०१. चरज- पक्षी विशेष । सींचांणूं - शिकारी पक्षी विशेष, सचान ( यह बाजसे भिन्न होता है ) । बाज - शिकारी पक्षी विशेष । बहरूंकी - पक्षी विशेषकी । झपट - टक्कर, भिड़ंत । क्रुही - शिकारी पक्षी जो छोटी-छोटी चिड़ियोकों मारता है, कुरही। लूंगूंकी - पक्षी विशेषकी । ऊछट छलांग, झपट, भिड़ंत । नहरू - ( पक्षी विशेष ) । ऊझटसें टक्करसे । बटेर पक्षी विशेष । मरगाबूंकू - मुर्गेकी जातिका एक पक्षी विशेष, मुर्गाबी अलंगांसू - दूरसे । कुलंगको पक्षी विशेषको । दस्तूरीकी - नियमकी, कायदेकी । हौसनायकांकी - ( ? ) । रोभवार - प्रसन्नता, पुरस्कार, इनाम । प्रातुसूंके - प्रातशबाजीके । धमके - श्रावाज । संमळ काला हरिण । चीतळ - एक प्रकारका हरिण । पाठे - एक प्रकारका हरिण । लोटपोट - कुलांच | दाह जलन, कुढ़न । साजणूंके - सज्जनके । चाक चढ़ाय ( ? ) । टंकण - ( ? ) २८ ख. वाजतू । ३१ ग. भाऐ । W - Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४ ] सूरजप्रकास मांस तथा भुंजाईरौ वरणण छुरू खंजरूंके विहार' सूर संबलं असे दरसाए सुपेत लाल भंभार घाट मानू नारनौळकी लूट खूटे । बजाजूंके हट" यस वजै ठाम ठाम छिनौती कर'' कर कड़ियाल'२ तोलूं चढ़ाए । हौसनायकांन१४ मसाले चाढ़ि चंडी भोग वणाए'५ । चुरू'१६ अातसूके झळपट जग्गे अथाह । दूसरे सठ मठ राजूंके हियै " पर दाह । भांति'८ भांतिके कडियाल' चरू° चढ़े सकाज । भांति भांतिके पकवान भांति' भांतिके अनाज। रोगांन मसालेसै सूलूकी सीक वणावै । अनेक५ भांतिके साग तिसका पार न पावै । कड़ियालूके वीचि" कूड़छूरू २८ खरडाते ६ वग्गे' । दावागरूके हियै विच सूलसे 33 लग्गे । ऐसी विध५ भुंजाईकी तैयारी करि हवालगीरूंनै ८ १ ग. विहारतूं। २ ख. सांवर । ग. सांबर। ३ ख. असे। ग. ए। ४ ग. मानौ । ५ ख. लूटि। ६ ख. षुटे । ग. फूटे। ७ ख. ग. वजाजूके । ८ ख. ग. हाट। ६ ख. ग. इस। १० ग. बजे। ११ ग. करि। १२ ख. कडीयाल । ग. कडीयाले । १३ ख. ग. तौलू। १४ ख. हौसनायगून । ग. हौसनायकून । १५ ख. वणवाए। ग. वणवाऐ। १६ ख. चूनू। ग. चुरू। १७ ख. हीये। ग. हिये। १८ ग. भांत भांत । १६ ख. कडीयाल । ग. कडियाल। २० ख. चरूं । २१ ख. भांत भांत । २२ ख. रोगात । २३ ग. मसालसे । २४ ख. ग. वणवावै । २५ ख. अन्न क । २६ ख. पावै। २७ ख. ग. कडीयाळूकेवीचि। २८ ख. कुडछूका। २६ ख. ग. परडाट। ३० ख. वगो। ग. वग्गे। ३१ ख. हाये। ग. हीऐ। ३२ ख. ग. वीचि । ३३ ख. ग. सेल। ३४ ख. लगो । ग. लग्गे। ३५ ख. विधि । ३६ ख. भौजाई । ग. भौजाइ। ३७ ख. ग. तयारी । ३८ ग. हवालगी ने। २०१. छुरू - छुरा। खंजरूके - खंजर नामक शस्त्रके, एक प्रकारके छुरेके। विहार – विदीर्ण कर चीर कर। सुपेत - श्वेत । भंभार - बहुत बड़ा। खूट- खोला हो। हट - दुकान । ठाम ठाम - स्थान-स्थान । छिनौती - उत्तेजना, चुनौती। कड़ियाळ - बड़ा कड़ाह। चंडी - देवी, दुर्गा। भोग - नैवेद्य । चुरूं -- भोजन पकानेका बड़ा बर्तन विशेष । प्रातसूंके - अग्निके, प्रागके। झळपट - प्रागकी लपट या लपट लगने से होने वाला चिन्ह । सठ मठ – कृपण, कंजूस । रोगांन - घी तेलादि स्निग्ध पदार्थ । सूलूकी - शिकंजे पर पकाये जाने वाले मांसकी। सीक - लोहेकी सलाख पर पकाया . जाने वाला मांस । कूडछूरूं - बड़ी डांडीका चमचा, कलछा। खरडाते - रगड़ते । दावागरूंके - शत्रुके, दुश्मनके। सूलसे - शल्यसे, कसकसे । हवालगीरूंनै - वह जिसके अधिकारमें हो। Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २१५ अरज गुजराई । तिस बखत खिलबतके' लोगूके' वीच' मजलस वणवाई। मैफलरौ वरणण सोनै रूपै जड़ाऊंके' तूंग ऐराक फूलसू भरवाए । रसके पूर झूलूकी नुकल'' बांटि'' प्याला'२ फिरवाए। दोऊ मिसलसै उमराऊंके हुकम माफक°४ देते१५ हैं। सलाम वजाय फूल छाक लेते ६ हैं। कविराजुंकू' स्रीमुख हुकम करि बगसावते हैं । *सलाम असीस करि चंडी'८ मंत्र पढ़िक चढ़ावते हैं।* आप लेते हैं प्याला' तब बोलते हैं कविराव । सत्रु° सोखिये२१ मित्र पोखिये२२ । गढ़ कोट्पर अमल रंगका चढ़ाव तिस बखत रंगराज केहौक ४ (बै) रस रहिसकी बात। अमलूका चढ़ाव सोभा दरसात। संग असम संगमरवर कस्मीर बिलवर १ ख. षिलवतनै । ग. षिलवतिनै । २ ख. लोग । ग. लोगन। ४ ख. वीचि। ३ ख. सोने। ग. सोने । ५ ख. ग. रूपे। ६ ग. जडायु। ७ ख. ग. तुंग। ८ ग. फुल । ६ ख. ग. भरेभाए। १० ख. नुकुल। ११ ख. वंटि। १२ ख ग. प्याले। १३ ख. ऊमरावूके । ग. उमरावूके। १४ ग. माफिक । १५ ख. देते। १६ ग. लेते । ग. लेते। १७ ख. कविराजांकू । ग. कविरजादूको। १८ ग. चंडि । *चिन्हित पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। १६ ख. ग. .प्याले। २० ख. सत्रु । ग. सत्। २१ ख. ग. सोषीयै। २२ ख. ग. पोषीय। २३ ग. अमलरंगकं. ४ ख. कहोक। २५ ख. ग. पेरस । २०१. खिलबतके - मित्र-मंडलाक । मजलस- सभा, जुलूस, नाचरंगका स्थान । तूंग - शराब रखने का बड़ा पात्र । ऐराक - तेज शराब । झूलूकी - शिकंजे पर आग पर पकाये हुये मांसकी। नुकल - वह चीज जो शराब अफीमके साथ खाई जाय, नुकल, गजक । मिसलसै - पंक्तिसे, सिलसिलेसे । उमराऊंके - सरदारोंके । माफक - माफिक, अनुकूल । फूल - भट्टीसे प्रथम बार निकाला हुअा हलका शराब। छाक - शराब पीनेका प्याला। स्त्रीमुख - स्वयं, खुद। बगसावते हैं - प्रदोन करते हैं। असीस - आशीष । सोखिये - नाश कीजिये । पोखिये - पोषण कीजिये। तिस - उस । केहौक - हर्षोल्लास । रस - आनन्द । संग असम - श्याम रंगका एक बहुत प्रसिद्ध पत्थर, प्रसंग सवद 'संगे-यशब'। संगमरवर - संगमरमर। कस्मीर - कश्मीरका पत्थर विशेष । बिलवर - एक प्रकारका सफेद रंगका पत्थर विशेष, बिल्लोर । Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१६ ] सूरजप्रकास सून' रूपैके' मौरियां जड़ाऊके प्याले फिरते हैं। जिस प्यालूके वीच ही अन्नार दालचीनी परतकाली अंगुरी गले कुलाब ऐसी भांति भांतिके फूल ऐरोक भरते हैं। उस बखत चौसरिये पंति'' करि जरकसी समियांनां''। स्रीसापका मंगसखांना'२ । खडा करि' सुनहरीकी'४ चौकी धरि१५ । तिस परि' भोजन पूर कनकथाल विराजमान करि७ खिजमतगारून ८ अरज कीवी भौंजाईकी तयारी। भोजनांरो वरणण तहां सुभड़ कविराजू' सहित प्राय विराजे छत्रधारी । परूसवारेकी ऊरड़४ ठाम ठांमसै लगी। चंडी भोग अनाजूंके गंजूपर रोगकी छौल ६ वगी। जीमणूंके गंज एते दरसावै। जिसकी ८ १ ख. ग. सूने । २ ख. ग. रूपे । ३ ख. मोती पन्नू । ग. मोरी पन्न। ४ ख. ग. वीचि । ५ स्व. ग. बीही। ६ ख. परकाली। ७ ख. अंगूरी। ८ ख. असे । ग. अस । ६ ख. चौसरीय । ग. चोसरीय। १० ख. ग. पाते। ११ ख. ग. समीयांनां । १२ ख. मंगसषाता। १३ ख. ग. कर। १४ ख. तथा ग. प्रतियोंमें नहीं है। १५ ख. ग. धर । १६ ख. ग. पर। १७ ख. कर। १८ ग. षिजमतगारौंन । १६ ख. अरजकीवि । २० ख. भौजाई। ग. भौजायो। २१ ग. कविराजां। २२ ग. सहत । २३ ग. विराजै। २४ ख. ग. उरड। २५ ख. भोम । २६ ग. छोल । २७ ख. वग्गी। २८ ख. विसकी। २०१. मौरियां - प्यालेके ऊपरका भाग, प्यालेका मुख (?)। जड़ाऊके -- जटित, पच्चि कारी किया हुआ। गले कुलाब - ( ? ) । फूल ऐराक - हल्के नशेका शराब। चौसरिये - ( ? ) । पंति -पंक्ति । समियांनां - तंबू । स्त्रीसापकाएक प्रकारके कपड़ेका । मंगसखांना - ( ? ) । सुनहरीको – स्वणिमकी, सोनेकी । चौकी-पाटा। कनक - स्वर्ण, सोना । विराजमान - शोभायमान, रख कर । खिजमतगारूंन - सेवकोंने, अनुचरोंने। सुभड़ - योद्धा । विराजे -बैठ गये, शोभायमान हुए। छत्रधारी- राजा । परूसवारेकी - परोसनेका कार्य करने वालेकी। ऊरड़ - उमंग, जोश | ठाम ठांमसे - स्थान-स्थानसे। चंडी - देवी, दुर्गा। गंजू - ढेर । रोगनकी - घीकी तेल आदि स्निग्ध पदार्थोंकी। छौल - धारा, प्रवाह। वगीगतिमान हुई । जीमणूंके - भोजनोंके। एते - इतने। दरसावै - दिखाई देते हैं। Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २१७ प्रोट' जीमणहारूं नजर न आवै । कुमाच मैहेली' महरि' ए" मंडोवरके मूंग सुखदा सराय। भोग' ° लंजहा के भात जायके'' फूलांकी सोभा दरसात। और भी भांति'४ भांतिके सो कैसे'५ कैसे कहि दिखाय । कमोद" तुलछी'" स्यांमजीरा' दधि मोगर चीनी एळची पूरब कपूर पोहप' प्रसंग हरेवी सौरंभ " कुसुमवो किय" जगनाथ भोग असी चौरासी भांति जिन्हुंके 3 गंज२४ दरसावै । सुपेत५ केसरियै २६ रंग कविराजूंस गिणणैमें नावै । मांसारौ वरणण कलिया पुलाब• बिरंज'' दुप्याजा२ जेरी33 बिरियां ४ अखनी चखताळा भांति भांतिके मजे । भांति भांतिका मसाला - १ ख. वोट । २ ख. जिमणहार। ग. जीमणहार। ३ ख. नजरूं । ग. निजर। ४ ख. ग. कुमाच । ५ ख. ग. मैहेल । ६ ख. ग. महरी। ७ ग. ऐ। ८ ख. मुंग। ६ ख. सूषा। १० ग. मोग। ११ ख. लंहके। ग. के । १२ ख. फूलूकी। ग. फूलको । १३ ग. पोर । १४ ख. भांत भांत । ग. भांत भांति भांतके। १५ ग. केसे कसे । १६ ख. ग. कमौद। १७ ग. तुलसी। १८ ग. सामजीर। १६ ख. ग. पोहोप । २० क. सोरांभ। २१ ख. कीया। ग. कोया। २२ ख. चौरासी जातिके । ग. चौरासी जातक। २३ ख. जिहुँ । ग. जिन्हूं। २४ ख. जंग। २५ ख. सुपेद । २६ ख. केसरीए । ग. केसरीये । २७ ख. गिणणमै। २८ ख. ग. न आवै । २६ ख. कलिया। ३० ख. युलाव । ग. पुलाव। ३१ ख.ग. विरंज। ३२ स्व. दुप्पाजा। ग. दुप्पाजी। ३३ ख. ग. जेर। ३४ ख. विरीयां। ग. विरांयां। ३५ ख. ग. भांति भांतिके । २०१. जीमणहारूं - भोजन करने वाले । कुमाच - ( ? ) । मैहली- ( ? )। महरि ए - ( ? ) । लंजहा - श्रेष्ट, स्वादिष्ट । कमोद - एक प्रकारके चावल । तुलछी - तुलसी। स्यांमजीरा - शाहजीरा, कृष्णजीरा । मोगर - छिलका उतारी हुई दाल । एळची - इलायची। पोहप - पुष्प, फूल । हरेवी - एक प्रकारकी खटाईयुक्त दाल। सौरंभ - सुगंध, महक । जिन्हूंके - जिनसोंके, भोज्य-पदार्थोके । गंजसमूह, ढेर। कलिया - दही डाल कर बनाया जाने वाला मांस विशेष । पुलाव - एक प्रकारका प्रसिद्ध खाद्य जो मांसके साथ चावल डाल कर बनाया जाता है, पलाव, पुलाव । बिरंज - एक प्रकारके पकाए हुए मीठे चावल । दुप्याजा- एक प्रकारका मांस जिसमें केवल प्याज ही पड़ती है, दुपियाज । जेरी बिरियां - एक प्रकारका पकाया हुअा गोश्त । प्रखनी - मांसका रस, शोरबा। चखताळा - ( ? )। मजे-मानन्द। Page #243 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१८ ] सूरजप्रकास रोगांनी' * रौसनी केसरियां' चक्खी भांति भांतिकी मिठाई । मेवैकी पुलाव अनेक आई । अजरख जमीकंद रताळूका विसतार । अंबु नींबू अंगीर' करूंका प्राचार' । वादांमी साबूनी'२ सरेसे जुड़ी । भांति'४ भांति मिखरणी'५, भांति ६ भांति पुड़ी' । मेवैकी'८ खीर नमखकी दोइ.६ करवा छुदा करार जीमै सहकोई ' । जुजस्टळकासा" ज्याग कुमेरका भंडार। इत्यादिक साक पतूंका अंत न पार । गौरसकी 3 उझेल जीमे ४ परज्याद२५ । सकरसै१६ बीहै २७ तरतकरका८ सवाद । ऐसी विध६ रस आई। राजेस्वरूंकी" भूजाई २ । कविराजुनै संखेप सी कही। सब कहिणमें 33 ना३४ पाई। १ ख. ग. रोगनी। *यहां निम्न पंक्तियां ख. तथा ग. प्रतियोंमें और मिली हैं---- '(रोगनी) छूटि कहलवांनी मसालेदार । सीक चढ़त ली अलबंटे वांन सूले अपार रोगांनी।' २ ख. ग. रोसनीके। ३ ख. ग. केसरीयां। ४ ख. ग. चष्पी। ५ ग. मेवे। ६ ख. ग. अन्नक । ७ ख. ग. प्रदरष। ८ ख. प्रांवू । ग. अब । ६ ख. ग. नोवू। १० ख. ग. अंगूर । ११ ख. ग. अचार । १२ ख. सावू । ग. सावू । १३ ख. ग. सोरेसे । १४ ग. भांत भांत । १५ ख. सिषरणि । १६ ग. भांत भांत । १७ ख. पुडी। ग. पुरी। १८ ख. मेवेकी । ग. प्रतिमें नहीं है। १६ ख. ग. दोय। २० ख. ग. सबकोय । २१ ख. ग. जुजष्टल । २२ ख. ग. पāको। २३ ख. ग. गोरसको। २४ ख. ग. जीमै । २५ ख. ग. परजाद। २६ ख. ग. सक्वरसे । २७ ख. ग. विहै । २८ ख. ग. तरतक्वरकी। २६ ख. ग. विधि। ३० ख. ग. रसि । ३१ ख. ग. राजेस्वरको। ३२ ख. ग. भौंजाई। चिन्हित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं । ३३ ग. कहोणमै। ३४ ग. ना। २०१. रोगांनी - स्निग्धतायुक्त, जो घी या तेलयुक्त हो । चक्खी - ( ? ) मिठाई विशेष। अजरख - अद्रक । रताळूका - एक प्रकारके भूमिकंदका जिसका शाक बनाया जाता है। अंबु - कच्चा आम । अंगीर - अंगूर । करूंका- करील वृक्षके हरे और कच्चे फलका जिसका शाक बनाया जाता है । वादांमी- बादामके रंगकी। साबूनी- एक प्रकारकी मिठाई। सिखरणी - दही और चीनीका बनाया हुआ एक प्रकारका मीठा पदार्थ या शर्बत जिसमें केसर, कपूर तथा मेवे आदि डाले जाते हैं। जुजस्टळका सा- युधिष्ठिरके समान। ज्याग - यज्ञ। गौरसकी - दूधकी। उझेल - तरंग, हिलोर । ग्य शार्ट - प्रशासनकर्ट । जाई -गोन। - Hom, Page #244 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २१६ जिस बखत सब लोगांन' चळू किया जिसकी जलधारा' जाई । जिस* चळू विच अदेवाळ राजूंका मगज वहि जाइ': । तिस बखत स्री महाराजा पान कपूर अरोगि'' हुकम किया। हुकमसै पांन कपूर उमराव कविराजू कू दियो । जिस बखत कविराजू पांन कपूर लेकर ग्रासीस'५ करते हैं *जिस आसोसूं'६ चूंडराव' चरू सुकाळका विरद धरते हैं ।* २०१ तिसका ८ कायब ६ दुहा२ ० (सोरठा) चाचर चरू सुकाळ, जग'' 'अभमल' 'चूंडा' २२ जिहीं । खलक चरू जळ खाळ, मठा२५ पहां वहिया२६ मगज ॥ २०२ दवावैत जिस बखत स्री महाराज सब लोककी८ रुसनाईका मुजरा लेकरि राजगिंदरूं३१ पधारै३२ । अागू33 वरणन किया तैसाई १ लोग्ने । ग. लोगूने । २ ख. ग. कीया। ३ ख. जालधारा। ४ ख. ग. जाय । ५ ख. ग. तिस। ६ ख, चलूके वहालू । ग. जलूके वाहालू । ७ ख. वीचि । ग. प्रतिमें नहीं है। ८ ग. देषाल । ६ ख. ग. राजू रावूके। १० ख. ग. जाय । ११ ख. अरोग्य । ग. प्रारोग। १२ ख. कोया। १३ ग. दीया। १४ ग. लेके। १५ गः असीस। १६ ग. प्रासीसमै । १७ ग. चौडराव । *...* रेखांकित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं। १८ ख. ग. जिसका। १९ ख. ग. कायव। २० ख. ग. दोहा । २१ ख. ग. जगि । २२ ख. ग. चौंडा। २३ ख. ग. जहीं। २४ ख. ग. चलू। २५ ख. जठा। २६ ख. ग वहीया। २७ ख. माहाराज। २८ ख. ग. लोकका। २६ ख. रोस्ताईका । ग. रोस्नाई। ३० ख. लेकर। ३१ ग. राजमिदरौ। ३२ ख. पधारे। ३३ ख. पागू। ३४ ख. वर्णन । ग. वर्नन । ३५ ख. कीया। ३६ ग. जैसा । २०१. अदेवाळ – नहीं देने वाले, कृपण। मगज - गर्व। चूंडराव - राव चूण्डा सुकाळका - राव चूंडाका विरुद था जिसने भूखी प्रजाको भोजन खि किया था। २०२. कायब - काव्य, कविता । चाचर - भाग्य, ललाट, जैसे ही । खलक - संसार । खाळ -- नाला। मठा • २०३. रुसनाईका - रोशनीका संध्योपरान्त । मुजरा - अभिः Page #245 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२० ] सूरजप्रकास सुख विलास आणंद धारें। इस उजै हरहमेस उछाह कौतूहलका डंबर जगजीत विरदूंका जहूर दातारूंका दातार । सूरां सूर जिस देखे से सब हिंदुवांण गरब धारै । ऐसे " तपतेज" प्रतापसूं स्रीं महाराजा' " 'अभमाल' गढ़ जोधांण राज करै । रीसे" तारै । खीजैसे " मारे । बंदगी" अरु १६ वैर दिलसे न विसारै । जिसका १६ निवाजस कर a 13 * १८ २१ ४ .२५ २६ २७ मयांनां" जे तूंने दिल सुध बंदगी कीवी जिनूंकू वडे किये । राव 'इंद्रसिंघसे' वैर जिस पर दाव दिया । सो वयर किस वजैसू कहि दिखाया। महाराज जसराज " सुरगलोक ' सिधाए । 'प्रजमाल' बाल अवस्तामें " उतनकूं आए । तिस बखत रावने छळ द्रौह किया । जोधाण अपणै लिया । सचतौ " जिणही ४ दिन जोघांणके उमरावांस पबर कायम जैतगढ़ आरे कीया । जिस वैरकी 3 R 33 .३ ६ .3७ ५ 73 - ४ 30 मुनसफ में .३५ - ० धक १७ ख. मायनां । ग. २० ख. ग. सकरि । १ ख श्रानंद । ग. श्रांनंद | २ ख. ग. धारे। ३ ख. वजेह । ग. बजह 1 ४ ख. हमेस । ग.हमेस । ५ ख. ग. प्रतियोंमें नहीं है । ६ ग. जिसके । ७ ग. देषै । ८ख. होंदवांण । ख. ग. घरं । १० ख. से । ११ ख. ग. तेज । १२ ख. माहाराजा ! १३ ख.. रोके । १४ ग. षीजे । १५ ग. बंदीगी । १६ ख. ग. अर । मैनां | १८ ख. ग. वंदगी । १६ ख. जिनौको । ग. जिनको । २१ ख. ग. दीया । २२ ख. ग. दिषाय । २३ ख. ग. माहाराज | २४ ग. जसवंत । २५ ख. ग. देवलोक । घ. अमरलोक । २६ ग. सिधाऐ । २७ ग. अवस्थामे । ग. अवस्ताम | २८ ग. उत्तनकौ । २६ ख. कीया । ३० ख. ग. श्रपणे । ३१ ख. मुनसपमे । ग. मुनसबमे । ३२ रा. लोया । ३३ ख. सच्चतो । ३४ ख. ग. जिसीही । ३५ ख. ऊमरांऊ । ग. उमरावांसे । ३६ ख. ग. पैर । ३७ ख. जैतैगढ़ | ग. जेतगढ़ | ३८ ग. श्रर । ३६ ख. ग. धष । 3 9 पायो । २०३. विरका - विरुदका । जहूर - प्रकाश | हिंदुवांण - हिन्दुस्तान । रोझेस - प्रसन्न होनेसे । खीजैसे - क्रुद्ध होनेसे । विसारं विस्मरण करते हैं । मयांनां - श्रर्थ, मतलब | जे - अगर, यदि । वयर वैर, शत्रुता । जसराज महाराज यशवंतसिंह | जमाल - महाराजा अजीतसिंह | प्रवस्तामें - प्रायुमें, अवस्थामें । उतनकूं - वतनको, जन्मभूमिको । मुनसफ में - मनसब में ( ? ) । धक - क्रोध । 3 & Page #246 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २२१ स्री महाराजा' 'अजमाल'' नागदुरंगपर' दाव दिया। रावइंद्रसींघ ऊपर जडा रुद्रकासा कोप किया। हैदल पैदल रथ गजराज हुकमसै बांण पाए । जगूंके साज छत्तीस कारवा[खा]नूंके हवालगीरूंनै सब जंगूंका' सराजांम' हाजर किया' । नागदुरंगकी तरफ फरासून" पेसखांनां खड़ा'५ किया। जबर ठठरूंके ऊपर भयाणंख' नाळ अतिभार । किलकिला काळिका ज्वाळामुखीका अवतार । जलूस'८ यकी' याबलंका चरचार । भैसाबाकरूंका रुधर' चाढ़े२ मदकी धार । तेल सिंदूरसें3 चरचि धमळूके जूट जोय । टल्लूसू दोवड़े गजपीठ होय। तबल्लूकी घोर गजटिल्लूस हल्ली। चोळ धजाबोळ ६ मौहरूसै ऐसी ८ अनेक चल्ली। सीसा सौरडेरू अटालूके भार । १ ख. ग. माहाराजा। २ ख. ग. अभमाल । ३ ख. नागदुरंम। ४ ख. दीया। ग. कीया। ५ ग. रावइंद्रसींघऊपर। ६ ख. इंद्रकासा । ग. रूद्रकासा। ७ ख. कीया। ८ ख. म. वणवाए। ६ ख. स्कारषांनाके । ग. कारषांनौंक। १० ग. हवालगीरांन । १६ व. ग. जगूंका। १२ ख. सरंजाम । ग. सरांजांम। १३ ख. ग. कीया । १४ ग. फर्रासांन। १५ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है। १६ ख. कीया। १७ ख. भयानष । ग. भयाणष। १८ ख. जसूस । १६ ख. ग. धोय। २० ख. ग. भैसू। २१ ख. ग. रुधिर । २२ ख. चीढ़े । ग. चाढ़े। २३ ख. सिंदूरस। २४ ख. टिलूसू । ग. टिल्लूकू । २५ ख. ग. तबलूको । २६ ग. धजाचोल । २७ ग. मोहरूंसे । २८ ग. अंसा । २६ ग. चली। ३० ख. सोरडेकू । ग. सोरडेरू । २०३. नागदुरंगपर - नागौरके किले पर । दाव -- हक, अधिकार। रुद्र कासा - महादेवकासा। हैदल - घुड़सवार, घुड़सेना । कारवां खा]नूंके - महकमोंके । हवालगीन - (?) । जंगंका - युद्धका। सराजांम - सामान । पेसखांनां - वह खेमा जो अगले पड़ाव पर पहलेसे लगा दिया जाय ताकि दौरेके पदाधिकारियोंको कष्ट न हो, पैशखेमा । ठठरूके - अस्त्र-शस्त्र, तोपादिको ले जानेकी गाड़ीके । भयाणंख - भयानक । नाळ - तोप । किलकिला - एक प्रकारकी तोप । चरचि - पूजा कर के । धमळंके - बलके । जूट - दो, युग, जोड़ा। टल्लूसू-प्राघातसे । दोवड़े- दो तहके । चोळ - लाल । सौरउरूं - बारूदका गोदाम । प्रटाळूके - विविध सामानके (?) । Page #247 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२२ ] सूरजप्रकास ऊंटारौ वरणण कठठे हठी' पाकेटूकी कतार । सो कैसे बगलूके *उरळे गिर सिखरूंसे' धुंभा । जूबळंके घाट देवळंके थांभा' *। अजगरके कंध टांमकसे" सीस । “चखू के चोळग सैल रीस । नौहत्थी' झौक' ' झागूड झल्लेस । कड़े छंट चसळकते' नेस । गाजतै चलै ५ राकसूंका दरसाव । धमणसे धोम फीफरूंका फुलाव'। जिस बखत छत्तीस वंस राजकुळ उमराव सिलह "प्रांव●सै कड़ाजूड़ होयके पखरेतूं१८ चढ़ि आए'६ दळूका पारंभ.समंदसा दरसाए। जिस बखत स्री महाराज महामायाका' आराध करि ऊंच पौसाक'२ धरि वीर प्रावध धारि२३ पौरससै पूर अंदरसै बाहिर पधारे। श्रीखमसे५ भांणकासा रूप पटाझर२६ ज्यौं पाव धारे। हजारूंकी प्रासीस हजारूंकी १ ख. ग. हठोधघकी। *...*चिन्हित पंक्तियां ख. प्रति में नहीं हैं। २ ग. सिषरसे। ३ ग. थुभा। ४ ग. जवळूक । ५ ग. षंभा। ६ ख. ग. अजगरसे। ७ ख. ग. टामंक। ... रेखांकित पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । ८ ग. चष्पूके। ६ ग. सेल । १० ग. नौहथी। ११ ग. झोक । १२ ख. मकडे । ग. मकडे । १३ ख. चसळक्वते । १४ ग. गाजते। १५ ख. चल्ले । १६ ख. फुल्लाव । ग. पुलाव । ३..."चिन्हित पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं हैं। १७ ग. होयकरि। १८ ग. पषरेत । १६ ग. प्राऐ। २० ख. ग. माहाराजा । २१ ख. ग. माहामायाका। २२ ग. पौसाष। २३ ग. धरि। २४ ख, पौरसमै । २५ ख. प्रोखमके। २६ ख. पट्टाझर । २७ व. ग. असीस। २०३. पाकेटूकी - ऊंटकी । बगलूंके - बगल के । उरळे - चौड़े। धुंभा - कोहान । जवळंके - पहाड़के, पर्वतके। घाट - रचना, बनावट । देवळंके - देवालयके । थांभा - स्तंभ । टांमकसे -- नगाड़ेसे । चके -- चक्षुके, नेत्रके । चोळग - लाल, रक्तवर्ण । नौहत्थी - नौ हाथ लम्बी (?) । झोक - ऊँटके बैठनेका स्थान या ढंग । झागूड – फेन । झल्लेस - ( ? )। कड़े छंट - ऊंट प्राय: मस्ती में पेशाब करते समय अपनी पूंछको बारबार ऊंचा-नीचा झपटता रहता है, इस क्रियाको कड़े छंट कहते हैं । चसळकते नेस - ऊंट मस्तीमें प्रायः मुंहसे दांतोंको टकराता हुआ ध्वनि करता है । धमणसे - धौंकनीसे । फीफलंका-फेंफडेका । फलाव- फलना क्रिया । सिलह-कवच । प्रविधंस-अस्त्रशस्त्रोंसे । कड़ाजूड़ -- सुसज्जित । पखरेतू- घोड़ों । महामायाका - देवीका, दुर्गाका । आराध - प्रार्थना । ऊंच - ऊँची श्रेष्ठ । पौररासै - पौरुषसे, बलसे । भाणकासा - सूर्यकासा । पटाझर - हाथी । Page #248 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २२३ सलाम' हजारूंकी निगैदासत' हजारूंपर इतमाम । वींझाजळ रूप गयंद चढ़ि मेघाडंबर विराजे । नौबतूंके निहाव वीरारस वाजे । जिस बखत जळाबोळ हालोहळसै फौज हल्ली। नाळूके निहाव सेती धरती थरसली । नागौर पर हल्ला गजराजूंकी हळवळ' । बाजराजूंकी'' कळहळ । नाळूका निहाव। साबळूका सिळाव। त्रंबागळंके डाके । जसोल्लूके' हाके । झूलाळूकी झळहळ । पैदलूकी हळवळ । ढ़ालूंकी ढळक । चपड़ास' फूलूकी भळक । महीमुछट'५* रजडंबरका घटाटोप । तिमरका चढ़ाव । भाद्रवैकी ६ अमावस घटाका वणाव । असे विमरीर दळूसै१८ गढ़ नागपुर' घेरे। तोपूँका'' जंजीरा चौतरफ फेरे। दोऊ तरफ " दगी'२ तोपू२३ अताळ । झालूँका झळहळ गोळूका वरसाळ । धोमूंका १ ग. सिलांम। २ ख. निर्णदास्त । ३ ख वींझाझल । ग. थोझाझळ । ४ ग. विराज। ५ ग, नौवतांके। ६ ग. वाझे। ७ ख. होलोहलसे । ८ ग. नालोंके । ६ ख. थरसल्ली । ग. थरहली। १० ग. हलबल । ११ ख. वाजराकूकी। १२ ग. त्रंबागलौंके । १३ ख. जसौलूके । ग. जसौलौके । १४ ख. ग. चपरास । १५ ख. महोमुरात । ग. माहीमुरात । *यहांसे आगे ख. तथा ग. प्रतियोंमे निम्न पद्यांश मिला है 'बाकाडंबर नीसांगूंका फरहर जलेबदारूकी झपट । कोतळ की प्राछट।' १६ ख. ग. भाद्रवेको। १७ ग. अस। १८ ग. दलांस । १९ ग. नागोर । २० ख. तोवू। २१ ख. ग. तरफसे । २२ ग. लगी। २३ ग. तोप । २०३. निर्गदासत - संरक्षा, हिफाजत, निगरानी । इतमाम - बन्दोबस्त, प्रबन्ध । वींझाजळ - विंध्याचल | मेघाडंबर - छत्र विशेष । निहाव - ध्वनि । जळाबोळ - जलपूर्ण । हालोहळसे- समुद्रसे, सागरसे । हल्ली - गतिमान हुई । नाळूके - तोपोंके, बन्दूकोंके । थरसली - कम्पायमान हुई। हळवळ - आवाज, हल्ला। बाजराजूंकी - घोड़ोंकी । कळहळ - हिनहिनाहटकी ध्वनि । साबळूका - भालोंका। सिळाव - चमक, दमक । बागळंके -नगाडोंके । जसोल्लंके - यशगायकके, यशका वर्णन करने वालेके। हाकेआवाज । झूलाळंकी - पाखर, झूल । झळहळ - चमक । हळवळ – कोलाहल । फूलको - फुलड़ीकी। भळक - चमक, दमक । रजडंबरका - धूलि समूहका । तिमरकाअन्धेरेका। वणाव - बनावट । विमरीर - वीर, बहादुर । नागपुर - नागौर । जंजीरा- प्रावेष्टन, घेरा । चौतरफ - चारों ओर । प्रताळ - (बेहद ?) । झालूका - आगको लपटोंका। झळहळ - चमक, दमक । वरसाळ - वर्षा । धोका - धुंअंका। Page #249 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२४ ] सूरजप्रकास अंधार। धमाका धोठ। अोळूकी' असण ज्यू' गोळूकी रीठ। ज्वाळा तै जम्मीके' थरहरते थाळ । कमठका कंध सेसका कपाळ । प्रलंकाळका पावस प्रातसूंका उक* भुरजाळ। सिखराळ दुरुंगूके भड़ भिड़ज भूक काळ । चक्र मोरचूंका दबाव नजीक लिया। हाकूस धूजे रावके'' हिया'२ ॥ २०३ कवित्त- निडर भूप नागौर, समर झोके दळ सब्बळ१४ । क्रोध धूप कळकळे, तूप सोंचे किर'६ मंगळ । इंद्रसिंघ प्रौद्राव", ग्रांम'८ गोळा'६ विखमी गति । राव पाव छाडि गौ, जीव साटै दे ईजति । नौबत १ वजाइ२२ जीतौ नरिंद, लाखां भाखां जस लभै । 'गजबंध' हरै नागौर गढ़, एण४ भांत५ लीधौ ६ 'अभै' ॥ २०४ १ ख. ग. प्रौळंकी। २ ख. ग. ज्यौ। ३ ग. गोलौकी। ४ ख. ग. तजमीके। ५ ख. ऊत । क. ऊक । ६ ख. ग. दुरंगूके। ७ ख. ग. दवाव । ८ ख. ग. नजदीक । ६ ख. लीया। १० ग. धूज। ११ ख. ग. रावका। १२ ख. हाया। ग. हीया। १३ ख. ग. नागोर । १४ ख. सच्चल । ग. साबल । १५ ग. कळ कळे । १६ ख. ग. किरि । १७ ग. प्रोद्राव । १८ ख. ग्राव । १६ ग. गौळा । २० ख. ईझ्झति । २१ ख. नौवति । ग. नौबति । २२ ख. ग. वजाय । २३ ग. जोतो। २४ ग. ऐण। २५ ख. भांति । २६ ग. लीघो। २०३. धमाकूका धीठ - एक प्रकारको बजनी बड़ी बन्दुककी, आवाजका। ( ? ) । असण (अशनि, वज्र?)। रीठ-प्रहार। थरहरते - कम्पायमान। थाळ - स्थाल, बड़ी थाली। कपाळ - मस्तक । प्रलंकाळका - प्रलयकालका, संहारके समयका। पावस - वर्षा । प्रातसूका - ( ? ) । ऊक - धारा, प्रवाह । भुरजाळ – गढ़, किला । सिखराळ - शिखर वाला | दुरुंगूके - दुर्गोंके, गढ़ोंके । भड़ - योद्धा । भिड़ज - घोड़ा । भूक - चूर, चूरा। काळ - यमराज । चक्र - सेना। नजीक - निकट । हाकूस - हल्लेसे, शोरसे। रावके - राव इन्द्रसिंहके । २०४. समर - युद्ध । झोके - झोंक दिये। दळ - सेना। सब्बळ - शक्तिशाली। धूप - तपत। कळकळे - खोलता है, गर्म होता है। तूप- घी, घत । किर - मानों । मंगळ - अग्नि । प्रौद्राव - भय, डर । प्रांम - समूह । विखमी - भयंकर । पाव - पैर, चरण । साटै - एवजमें। गजबंध - महाराजा गजसिंह । एण - इस । अभअभयसिंह। Page #250 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [२२५ छंद दंग जीत' दळ सझि हले राजा, वाजतां' रिणजीत वाजा । राव 'ईंदौ” मांण रोळे, भीम गयंदा हूंत भेळे ॥ २०५ दावागर कर तास दावा, उण समैं मेड़तै आवा । जोध जिससै सेर जूटा , लोक मारा' रखत लूटा ॥ २०६ भगा' पौरस मांण भग्गौ', अड़ सगर उमराव अग्गौ । ताप सुणि म्रग'५ जेम तासा, वसे खळ गिर-झिंगर वासा ।। २०७ थटे आयौ ६ जैत'" थंडे, मेड़त मुक्काम'८ मं.१६ । चुरस पातां कीध चौजां, मेड़तै गजगांम मौजां ॥ २०८ जस विरद सुणि दुरंग जैरां, नजर भेजी 'वीकनैरां' । एह सुणि वीकांण' अक्खेने, रावळां बह 3 निजर रक्खे ।। २०६ १ ग. जीति । २ ग. वाजंतां। ३ ख. रणजीत । ग. रणजीति । ४ ख. इदौ । ग. इंद्रो। ५ क. रेले । ग. रेळे । ६ क. भेल । ग. भेळे । ७ ख. दाउंगर । ग. दाऊगर । ८ ख. ग. स । ९ ख. जुट्टा । ग. जुटा। १० ग. मारे । ११ ख. लुट्टा। १२ ख. भागा। १३ ख. भग्गै । ग. भगे। १४ ख. ग. अग्ग। १५ ख. ग. मृग। १६ ग. प्रायो। १७ ग. जेत । १८ ख. मुक्वांम । ग मुकाम। १६ ख. ग. मंडे। २० ख. येह। २१ ख. ग. जेसांण । २२ ख. ग. अष्पे । २३ ख. वहौ । ग. बोहो। २४ ख. ग. रष्ये। २०५. राव इंदौ - नागौरका अधिपति राव इन्द्रसिंह । मांण – गर्व, मान । रोळे - गमा कर, नष्ट कर । भीम - पांडुपुत्र भीम । गयंदां हूत - हाथियों सहित । भेळे -- शामिल कर के। २०६. दावागर - शत्रु । जूटा - भिड़े। रवत - धन, द्रव्य । २०७. भगा - नाश हो गया। भग्गौ - भाग गया, मिट गया । अग्गी - अगाडी। ताप अातंक । तासा - (त्रास, डर ?)। गिर झिगर - गिरिकुंज, पर्वतोंका वन । वासा - निवास स्थान । २०८. थटे - वैभवयुक्त हो कर । जैत - विजय । थंडे - प्राप्त कर । चुरस -- श्रेष्ठ । पातां - कवियों। चौजां - हर्ष, प्रसन्नता । मौजां - पुरस्कार । २०९. नजर - भेंट। वीकनैरां -- बीकानेरके ! एह – यह। दोकांण - बीकानेर । अक्खे - कहा। Page #251 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२६ ] सूरजप्रकास सुणे रूपा दुरां सत्थां ', अधक नजरां की प्रथां । सुणि फते किय' निजर' साजा, रचै हित 'जैसाह' राजा ॥ २१० थाटपति मेवाड़ थांण, रचे निजरां दीध 'राणे' | १० बापहूं" चवगुणी" बाजी, गुमर धरियौ' १४ विढ़ण पहल अयाक वागा, लखे तप सह जोम प्रचड़ां जगत जांणी, एक हुकमां ५ १८ लड़े इम नागौर लीधो', दुफल बँधवनू" पटौ" जैसलमेर विवाहरौ वरणण १२ 93 'बियै ' ' 'गाजी' ॥ २११ १६ सोईज ब्रद' महाराज साजा, रहे सेवग राव राजा ॥ २१३ पाय लागा । भोमि प्रांणी ॥ २१२ दधौ । १२१ २२ 3 स अचड़ा" दळ सवायौ, एण विध 'जेसांण' ३ प्रायौ । .२४ २५ सझे** तोरण चित्र साजा, जैत आगम महाराजा" ।। २१४ ७ ख. ग. नजर । १ ख. ग. रूप । २ ख. ग. दुरंग । ३ ग. सथां । ४ ख. ग. श्रथां । ६ ख. ग. कीय । ८. र । ६ ख. ग. नजरां । ११ ख चवगणी । १२ ख. ग. धरोयौ । १३ ख. वीयं । ग. वायै । सौहौं । १५ ख. प्रचडा । ग. अचंडां । १६ ग. लीधो । १७ ख. तथा ग. नहीं है । १८ ख. ग. पटै । १६ ख. ग. वृद । श्रचलां । २२ ख. ग. विधि । २३ ख. जैसांग | राजा । २१२. विण - युद्ध । प्रयाक ( ? ) । चरण, पैर । जोम - जोश, शक्ति । धरा । श्रांणी - ले आया । २१०. रूपा – रूपावत शाखा के राठौड़ । नजरां भेंटें प्रत्थां - अर्थ, धन । जैसाह - सवाई - राजा जयसिंह | - ५ ख. फतै । १० ग. हौं यां २११. थाटपति - वैभवशाली, सेनापति । - स्थान, चौकी। दीध - दी। बापहूं - पितासे । चवगुणी - चौगुणी । बाजी - मान, विजय ( ? ) ! गुमर - गर्व । बियं दूसरे, द्वितीय। गाजी महाराजा गजसिंह | १४ ख. ग. प्रतियों में २० ख. ग. माहाराज । २१ ख. २४ ग. सजे । २५ ख. ग. माहा - लखे – देख कर । तप- प्रोज, तेज । पायश्रचड़ां महत्त्वपूर्ण कार्यो । भोमि – भूमि, २१३. लोधी - लिया । बुझल - वीर । पटो - जागीर । दीधौ - दिया । सोईज - वही । २१४. सवायो - अधिक, विशेष । जेसांण - जयसलमेर । - Page #252 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २२७ उछब' मिळ' त्रिय' जूथ पाए', गांन मंगळ चार गाए । अन काम कळस्स आणे , पहव' वंदण कीध पांणे ।। २१५ द्रव्य'' रूप भराइ दीधौ', कमंध तोरण वंदण' कीधौ । जोइयौ' पहनगर जेहौ', अगै वरणण' कीध एहौ१८॥२१६ दळां गहमह कोध इंबर', चौसरा सिर हुवा चंम्मर । गाजता ४ गजमेघ गाजा, वाजतां मंगळीक वाजा ॥ २१७ एम"५ गढ़२६ निज प्रौळ२ पावै२८, गांन सहचर ६झल गावै । कुंभ सनमुख निजर' कीधौ, लखे छत्रपति वांद लीधौ ॥ २१८ धरे तारक द्रव्य धारा, वदे तोरण जेण वारां । ऊतरे५ गजहूंत ६ यारां", जरी पगमँड पड़ि जियारां॥२१६ १ ख, उद्धव । ग. उछवा। २ ख. ग. मिली। ३ ख. त्रीय। ४ ख. ग. जंथ । ५ ग. प्राऐ। ६ ख. अनि। ७ ख. ग. कामणि। ८ ख. ग. कळस । ६ ख. प्राणे। ग. प्राण । १० ख. ग. पौहौव । ११ ख. द्रव्व । १२ ख. दीधो। १३ ख. वदण। ग. बंदन। १४ ख. जोवीयौ। ग. जोवियो। १५ ख. ग. पौहौ। १६ ग. जेहो। १७ ख. वणण | ग.वरणण। १८ ग.ऐहो। १४ ख. दल। २० ख. कीयां ग. कीधां। २१ ख, डम्मर। २२ ख. सिरि । २३ ख. हुता। ग. हूतां। २४ ख. ग्गजतां। २५ ग. ऐम। २६ ख. ग. निज गढ़। २७ ख. ग. पौळि । २८ ख. ग. प्राऐ। २६ ग. सहचरि। ३० ख. गाए । ग. गाऐ। ३१ ख. ग. नजर। ३२ ख. वांदि। ३३ ख. द्रव्व । ग. द्रव्य । ३४ ग. वद । ३५ ग. ऊरितरै। ३६ ख. गजहं। ३७ ख. नियारां । ग. यांरां। ३८ ख. ग. पगडि । ३६ ख. ग. मंडि। २१५. त्रिय - स्त्रिएँ । जूथ - समूह । मंगळचार - मांगलिक । कोम - कामिनी। पहव - राजा। वंदण -- अभिवादन । पांणे - हाथसे । २१६. जोइयो - देखा। अगै - पहिले । एहो - ऐसा । २१७. गहमह - भीड़, समूह । डंबर - उत्सव, हर्ष । चौसरा- चारों ओर। चंम्मर - चंवर । मंगळीक - मांगलिक । २१८. प्रौळ - प्रतोली, तोरणद्वार। सहचर - सखिएँ, सहेलिएँ। भूल - समूह । कुंभ - कलश । लखे - देख कर। वांद - अभिवादन कर के । २१६. तारक - चांदी, मोती ? । जेण - जिस । वारां - समयमें। जरी - चांदी-सोनेके तार, जिन पर सुनहला मुलम्मा हो। पगमंड - अादरके लिए किसी महात्मा या राजा महाराजाके मार्ग में पैर रखनेके लिये बिछाया हुआ कपड़ा । Page #253 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२८ ] सूरजप्रकास विछायत समियांन' वणिया, तई जरकसि हीर तणिया। सिंघ आसण छत्र सोहै, महा जगमग हंस मोहै ।। २२० उरस छिबतौ भूप आए, प्रगट बह खंगार पाए । चम्मरां' दुळतेस' चारे'२, तखत बैठौ छत्रधारे ॥ २२१ भड़ां मैंत्रियां जूथ भारा, सजै निज' दरबार'" सारा । भलां पातां जूथ'८ भेळा, वखांण' पह" जेण वेळो ।। २२२ आज 'अभमल' भूप एहौ', जुधां जीपण 'पंग' जेहो। सांसणां गयंदां समापै, कुरंद पातांतणा२३ का ॥ २२३ जोवतां हिंदवाण जोपै, अवर भूप न जोड़ प्रोपै । दांन खगरी अचड़ दहुंवै, चढ़ी कीरत चकां चहुंवै ।। २२४ १ ग. सामियान । २ ख. वणियां । ३ ग. तेइ। ४ ख. ग. जरकस । ५ ख. तणीयां । ६ ग. गजमग। ७ ख. छवितौ । ग. छवितो। ८ ख. ग. चौक । ख. ग. शृंगार । १० ख. ग. चम्मरे । ११ ग. दुळे। १२ ग. सीस चारे। १३ ग. छत्रधार । १४ ख. ग. मंत्रीयां। १५ ख. सझे । ग. सझे। १६ ख. नजरां । ग. नझरां। १७ ख. दरव । ग. दरब। १८ ख. ग. झूल । १६ ख. ग. वषांणे। २० ख. पौहो। ग. पोहो । २१ ग. ऐहो। २२ ख. ऊरय द । ग. कुरचंद । २३ ख. तणां । ग. तणो। २४ ग. काप्प। २५ ख. ग. कीरति । २२०. समियांन - तंबू, खेमा । जरकसि - सोने-चांदीके तारोंका काम। तणिया - तने । सिंघ पासण - सिंहासन । जगमग – चमक-दमक । हंस - मन, आत्मा । . २२१. उरस - प्रासमान । छिबतौ - स्पर्श करता हुआ। चम्मर दुळतेस - चंवर डोलाते समय। २२२. जूथ - यूथ, समूह । भारा - बहुत । पाता - कवियों। वखांणे - प्रशंसा करते हैं । वेळा - समय । २२३. एहो - ऐसा। जीपण - जीतने के लिये, जीतने वाला 1 पंग – राजा जयचंद । जेहो - जैसा। समापै - देता है। कुरंद - निर्धनता, कंगाली। कापै - मिटाता है, दूर करता है, काटता है। २२४. जोवतां - देखने पर, देखते हो। जोप- जोशमें आता है। जोड़- समानता । प्रोपे - शोभा देते हैं। दहुंदै - दोनों। चकां - दिशाएँ। चहुंदै - चारों। Page #254 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २२६ जावसी' नह जुगां जातां', वात रहसी वीस वातां । बहसि' जोड़ न होय बीजै, कोड़ जुग लग राज कीजै ।। २२५ सुणे वयणै इम सकाजा, रीझ बगसै महाराजा' । आरती द्वजराज'' प्रांणै, प्रीत उच्छब' कीध पाण१४ ॥ २२६ 'अभौ' जयचंद जेम प्राजा'५, राजमिंदर'६ वस' राजा। पतिव्रता बह ८ उछब पाए', अनम गढ़ तदिः जीति' आए॥२२७ नवल रंग उछाह नेहा, जुगति रति रतिराज जेहा । गुमर धरियां झिलै गोखां, जोधपुर गढ़ करै जोखां ॥ २२८ अधिक राजस छक अथाहै, मुणै जिहवा ६ बैत माहै । ........॥ २२६ दूहा'८- दवाबत मझि दाखियौ , इसड़ौ राज' अपाल । जोधांण जोधांण-पति, मांण धर 'अभमाल' ।। २३० १ ख. ग. जावसे। २ ग. जांतां। ३ ख. वहसि । ग. वसी। ४ ग. होड़। ५ ग. बीजो। ६ ग. कोडि। ७ ग. सुणै। ८ ख. वयणा । ग. वयणां। ६ ख. वगसे । १० ख. माहाराजा। ११ ख. ग. द्विजराज। १२ ख. ग. प्राणे। १३ स्व. ग. उछव । १४ ख. पाणे। ग. पांणे। १५ ग. अजा। १६ ख. राजमिदरा। ग, राजमिदरां। १७ ख. ग. बसे । १८ ख. वहौ। ग. वहु। १६ ख. प्राए । ग. पाये । २० ख. ग. पति। २१ ख. ग. जीत। २२ ख. धरीयां। २३ ख. जोधपुरि। २४ ग. जोषां । २५ ख. अथाहे । २६ ख, ग. जिमहा। २७ ख. ग. माहे । २८ ख. दोहा । ग. वोहो। २६ ख. ग. दवावैत । ३० ख. दाषीयौ। ३१ ख. राजस । २२५. जुगां-युगों। वात वीस वाता- निश्चय, अटल । बहसि - शोभा देगा। बीजे दूसरे। लग - पर्यन्त । २२६. रीझ - पुरस्कार, इनाम । बगस - प्रदान करते हैं। द्वजराज - ब्राह्मण। पाण हाथोंसे । २२७. प्राजा - अाज । वस - निवास करता है । अनम - नहीं झुकने वाले । २२८. नवल - नवीन, नया। रंग- पानन्द । उछाह - उत्साह । नेहा - स्नेह । रति कामदेवकी पत्नी। रतिराज – कामदेव । गुमर - गर्व । झिल - शोभायमान हो ___ रहा है, कांतियुक्त हो रहा है। जोखां - प्रानन्द, मोज । २३०. मझि - में। दाखियो - कहा, वर्णन किया। इसड़ौ - ऐसा । अपाल - बेरोकटोक, निःशंक । मांणे - उपभोग करता है। Page #255 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३० ] सूरजप्रकास इम खट रित करि उछब अति, दिल आणंद दुझाल । दरसण काज दिलेसरां', मेले दळ 'अभमाल' ॥ २३१ महाराजारौ दिल्ली प्रस्थान मिळिया दळ जोधांणमझि, देखे भूप दुबाह' । डेरा दिल्ली दिस' दिया, सुभ मुहरत' 'अभसाह' ।। २३२ कूच' नगारा वज्जिया, गिर गज्जिया गहीर । समँद उलट्टै जिम सजळ'", वट्टे' लगे वहीर' ॥ २३३ अठठ' अटाळां' भार अति, कठठे जूंग कतार । तोप कठढे गज टलां', जूटां' धमळ जियार ॥ २३४ बह' जूटां' कठठेस बह", अनि' बाराब'' अपार। पमँग गजां भड़ पड़तलां, वणि हिलोळ विसतार ।। २३५ १ ख. ग. दिलेस्वरां। २ ख. ग. दुवाह। ३ ख. दिसि । ४ ख. दोया। ५ ख. मोहौरत । ग. मोहरत। ६ ख. कूच । ७ ख. वज्जीया । ग. वाजिया। ८ ख. गज्जीया। ग. गंजीया। ६ ख. उलटां। ग. उलट्टां । १० ख, ग. सुजळ । ११ ख. वट्टां। ग. वाटां। १२ ग. बहीर। १३ ख. अटठ। १४ क. अताळां । ग. अटालौ। १५ ख. ग. कठट। १६ ख. ग. टिलां। १७ क. जूथां। १८ ख. वहौ । ग. बौहो। १६ ग. भूटां। २० ख. वहौ । ग. वौहो। २१ ख. ग. अति। २२ ख. पारवां । ग. प्रारबा। २३ ख, ग. भर । २३१. खट रित - छः ऋतुएँ । दुझाल - वीर, योद्धा। दिलेसरां- बादशाहके। दळ - पत्र चिट्ठी। प्रभमाल - अभयसिंह । २३२. दुबाह - वीर, योद्धा । अभसाह - अभयसिंह । २३३. कच- प्रस्थान । वज्जिया- ध्वनित हुए। गिर - पर्वत । गज्जिया - गर्जित हुए, ध्वनित हुए । गहीर - गंभीर । व?- वाट, मार्ग । वहीर - प्रस्थान । २३४. अठठ - अटूट, अपार (?) । अटाळा - सामान । कठठे - कठठकी ध्वनि करते चलना । जूंग - ऊँट। कठ8- बोझ आदिके कारण शकटादि ध्वनि करते चले। टला - टक्कर । जूटां - दो, युग्म । धमळ - बैल । जियार - जब । २३५. बह - बहुत । जूटां - जुतने पर। कठठेस - ध्वनि जो भारसे लदे शकटादिके चलने पर होती है। अनि -- अन्य । प्राराब - तोप । पमंग - घोड़ा। भड़ - योद्धा। पड़तलां = भड़पडतलां - योद्धानों के परतले जिनमें तलवारें लटकाई जाती थीं। हिलोळ - समुद्र। Page #256 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २३१ सौधां खांना' वेल सजि, वटा कहार वहाय । कावड़ सरवण धारि कंध, जाणै तीरथ जाय ।। २३६ भळहळ साजां गज भिड़ज, मफाइका सुखपाल । घोड़-बहल खासा घणा, दरगह मुहर दुझाल ।। २३७ करि तयार हाजर किया, औधांदारा प्राय । साज'' जरकसी सोवना', विध' विध नौख वणाय ॥ २३८ करि पौसाक'' ससत्र कसि, साजां तुरंग' सिंगार। इम चढ़ि चढ़ि भड़ आविया , दळ बह राजदुवार'' ॥२३६ आतस झळ पैदल अधिक, बहल खांसबरदार । दुझल नगारै दूसरै, आया दळ अणपार ।। २४० १ ख. वाना। २ स्व. ग. सझि। ३ ग. वाट। ४ ख. ग. कावडि। ५ ख. ग. जाणे । ६ क. पफा । ७ ख. मोहोर । ग. मोहोरि । ८ ग. कर। ६ ख. हरवर । १० ख. कीया । ११ ख. सा। १२ ख. सोवतां। १३ ख. विधि विधि। १४ ख. पौसाकां । ग. पौसाषां। १५ ख. ग. सस्त्र । १६ ख. जासां । ग. साजा। १७ ग. तुरगि । १८ ग. सिंगारि । १६ ख. प्रावीया । २० ख. वहौ। ग. बोहो। २१ ग. राजदवार । २२ ख. फळ । २३ ख. फल । २३६. सौयां खानां - राजप्रासाद, अन्तःपुर। वेल सजि - सरदारोंके पर्दानशीन जनानाकी सवारी विशेष जो बैलों द्वारा वहन की जाती है। वटा - मार्ग । कहार - पालकी आदिको उठा कर चलने वाला। कावड़ - बोझा ढोनेके लिये तराजूके प्राकारका एक ढांचा, कांवर । सरवण - श्रवणकुमार । जाणे - मानों। २३७. भळहळ – देदीप्यमान । साजा - घोड़े, ऊँट आदिके चारजामे के उपकरण। भिड़ज - घोड़ा। मफा - एक प्रकारकी सवारी । इका- इक्का। घोड़ वहल - घोड़ोंसे खींची जाने वाली गाड़ी विशेष । खासा - राजा या बादशाहकी सवारीका घोड़ा या हाथी । दरगह - दरबार । मुहर - अगाड़ी। दुझाल - वीर, योद्धा। २३८. प्रौधांदारां- पदाधिकारी। सोवना - सोनेका । नौख - बढ़िया, श्रेष्ठ । २३६. कसि - धारण कर के, बाँध कर के। तुरंग - घोड़ा। सिंगार - सजावट कर के। वळ - सेना। २४०. प्रातस झळ - तोप । बहल - शकट या रथ विशेष । खास बरदार - वह नौकर जो बन्दूक या बल्लम ले कर मालिकके आगे चलता हो । अणपार - असीम, अपार । Page #257 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३२ ] सूरजप्रकास तखि' झूलै' जरतारियां', कूची सोवन काम । तंग चहूं' रेसम तणा, जंग किलंगी जांम ।। २४१ मौहरी' डोरी रेसमी, नौखी चंदण नकेल । रूपाळक फण नाग रंग, बालक जुंग' बकेल ।। २४२ पाव घड़ी जोजन परा, जिके सहज मझ जाय । कसि मलूक गदरा किया, इसड़ा हाजर प्राय ।। २४३ सकति पूजि 'अभमल' सुपह, पहरि ऊंच पौसाक । करि दधबँध प्रावध कसे, मलपे छक मुसताक ।। २४४ हाल कलोहळ बह हुतां, मुजरा छक मैंमंत । तांम नगारै' तीसरे, गज'५ चढ़ियौ गहतंत ।। २४५ चौसर सिर हूतां'४ चमर, दळ५ सझि हले दुझाल । मिळण 'साह महमंद' हूं, महाराजा'६ 'अभमाल' ।। २४६ १ ख. ग. तषो। २ ख. ग. झूल। ३ ख. जरतारीयां। ४ ख. ग. चहुवै। ५ ख. मोहोरी। ग. मोहोरी। ६ ख. ग. जूंग। ७ ख. ग. मझि। ८ ग. पूज। ६ ख. दधिवंध । ग. दधिवद । १० ख. वौहौ । ग. बौहो। ११ ख. तगारै । १२ ख. गजि । १३ ख. सिरि। १४ ग. हुतां। १५ ख. दलि। १६ ख. माहाराजा । २४१. तखि - ऊँटके चारजामेके नीचे लगाई जाने वाली गद्दी विशेष । झूलै - झूल ऊँट, घोड़ा, बैल आदिकी पीठ पर डालनेका कपड़ेका बना उपकरण। जरतारियां - जिसमें सोने-चांदीके तारोका काम हो। कूची - ऊँटका चारजामा। सोवन - सुवणका, स्वणिम । तंग - ऊंट या घोड़ेकी जीन कसनेका पट्टा । जंग - जंगी, बड़ी-( ? ) । किलंगी- पक्षियों के पंखों या चमकदार जरतारों से बना शिरका आभूषण विशेष । जांम - ( जाम ? )। २४२. मौहरी- ऊँटको नाकके साथ बाँधनेकी रस्सी विशेष । नौखी - उत्तम, बढ़िया । नकेल - ऊँटके नाकमें डालने का काष्ठ या धातुका बना उपकरण विशेष । रूपाळक - चांदीके, रोप्यके । जुंग - ऊँट । बकेल – मस्त । २४३. सहज - प्रासानीसे। मझ - में । मलूक - सुंदर । इसड़ा - ऐसा।। २४४. सकति – शक्ति, देवी। अभमल - महाराजा अभयसिंह। ऊंच - श्रेष्ठ, उत्तम । दधबंध - ( ? ) । प्रावध - प्रायुध । मलपे - ( ? )। छक - जोश । मुसताक - उत्कंठित (?)। ४४५. हाल - गति, चाल । कलोहळ - कोलाहल । मुजरा - अभिवादन । मैमंत - मस्त । तांम-तब । गहतंत - मस्त । २४६. चौसर -- चारों ओर । सझि - सुसज्जित कर के । दुझाल - वीर । Page #258 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २३३ छंद हणूंकाल नग तुरँग घमघम नाळ, थट भोम धमहम थाळ । धसमसत धर धहराय, जदि सेस नमि नमि जाय ।। २४७ करि कटक हलत कमंध, कसकत कूरम कंध । उडि गरद चढ़ि असमांन', भर' तिमर ढंकिय” भांण ।। २४८ . जसवळ [i] हाक सजोर, घंटबीर घग्घर घोर । भळकंत चित्रत भाल, ढळकंत बह रंग'' ढाल'' ॥ २४६ दुति सेल फळ दमकंत', किरणाळ जिम चमकंत* । बँब' गजर१५ घोर त्रंबाळ, तळ वितळ चळचळ तोळ ।। २५० बहतास उरस विहंग, पर धार भार पनंग'६ । अकूळाइ७ पड़त अनेक, कुरंगांण मूझत' केक ॥ २५१ १ ग. हणुफाल। २ ख. ग. असमांण। ३ ख. ग. भर । ४ ख. ग. ढ़कीयो। ५ ख. ग. जसवल्ल। ६ ख. ग. घंटवीर। ७ ख. ग. घूघर। ८ क. कोर। ६ ख. वहौ । ग. बोहो। १० ख. गज । ग. गझ। ११ ख. ग. ढाल । १२ ख. ग. सेल। १३ ख. दमकति। *किरणाळ जिम चमकत ।'-पद्यांश ख. प्रतिमें नहीं है। १४ ख. वंव। १५ ग. राज । १६ ग. पन्नंग। १७ ख. ग. अकुळाय। १८ ग. मझत । २४७. मग - पैर, चरण । घमघम - ध्वनि विशेष । नाळ - घोड़े के समके नीचे बलयके प्राकारका लगाया जाने वाला लोहेका उपकरण। थट-वैभव। धमहम - कम्पायमान (?) । थाळ - स्थाल । धसमसत - धसती है। घर - भूमि। धहराय - कम्पायमान होती है। सेस - शेषनाग । २४८. कमंध - राठौड़। कसकंत -- दबता है, धसता है। कूरम - कूर्मावतार । गरद - धुलि । ढकिय - पाच्छादित हो गया। भांण - सूर्य । २४६. जसवळ - यशगायक, यश । हाक - आवाज । सजोर – जोरपूर्ण । घंटबीर - वीरघंट, हाथीकी झलके साथ लटकने वाला घंटा। घग्घर - ध्वनि । तेज । भळकत - चमकता है। भाल - ललाट । ढळकंत ढाल-पीठ पर लटकती हुई ढाल । २५०. दुति-द्युति, कांति । सेल - भाला। फळ - भालेका अग्र भाग, भालेकी नोंक । दमकत - चमकता है। किरणाळ - सूर्य । बंब - नगाड़ा, नगाड़े की ध्वनि । गजर - ध्वनि (?) । त्रंबाळ - नगाड़ा । तळ - सात पातालोंमें प्रथम पाताल । वितळ - पुराणानमार सात पातालोंमेंसे तीसरा पाताल । चळ - कम्पायमान । ताळ - ( पाताल ? )। २५१. उरस - पासमान । पर धार - पंख वाले। पनंग - सर्प, नाग। कुरंगांण - हरिणसमूह, हरिण। मूझत - दम घुटता है, घुटन होती है। Page #259 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३४ ] सूरजप्रकास वजि स्वास' नास व्रहास, तर भुड़द आतस तास । लंगरां' खरळक लागि, उडि पड़त गिरउर' आगि ।। २५२ हूकळां कळहळ हूंत, कळकळा झगझग कूत । असि फेण फबि धर एम, तै उरस उडगण तेम ।। २५३ सर सुखत जळ सरितास", खित चौक मंडित खास। दिन केक मांहि दुझाळ, इम लियां' दळ 'अभमाल ।। २५४ रवि जेम'२ मधिसम' रूप, भळहळत क्रांमति १४ भूप । अति उछब'' डमर' अनंग', आवियौ दिली अभंग ।। २५५ तब ६ अरज बगसी तांम, विध' आगमण वरियांम । जिण' सुणे१२ साह जबाब, तेड़ियौ' भूप सताब ।। २५६ खित नको जोतिस खूच, ऽवा हीज सायत ऊंच । साहरा डील सधीर, एवज्ज२६ मौज अमीर ॥ २५७ १ ख. ग. सास। २ ख. लंगारां। ग. लंगर। ३ ग. उड। ४ ख. ग. गिरवर । ५ ग. हुकला। ६ ग. सौष । ७ ख. ग. सलितास । ८ ख. ग. मंडित। ९ ख. केइक । ग. केयक। १० ग. मांझि। ११ ख. लोयां । ग. लोया। १२ ग. जेठ । १३ ख. मध्यसम । १. मधसम। १४ ग. क्रमती। १५ ख. ग. उछव। १६ ख. ग. डवर । १७ ख. ग. उमंग । १८ ख. प्रावीयौ । ग. प्रावियो। १६ ग. तवि। २० ख. ग. विधि। २१ ग. जिणे। २२ ग. सुण। २३ ख. जवाव। २४ ख. तेडोयो । ग. तेडोयो। २५ ख. ग. षिति । २६ ग. एवज । २५२. नास - नाक । व्रहास - घोड़ा। भुड़द - गिरते हैं - प्रातस - उष्णता। तास - त्रास, डर। लंगरां-हाथीके पैरकी जंजीरें। खरळक - शृखला या लंगरकी ध्वनि । गिरउर - गिरिवर, पर्वत । २५३. हूकळां - घोड़ोंके हिनहिनाहटकी ध्वनि । कळहळ – कोलाहल। हूंत - होता है । कळकळा - अत्यन्त उष्ण, तेज । झगभग – चमकते हैं (?)। कूत - भाला। फेण - फेन, झाग । फबि - शोभा देकर। २५४. सरितास - नदी। खित = क्षिति - पृथ्वी। २५५. भळहळ - देदिप्यमान होता है, चमकता है। क्रांमति - कांति, दीप्ति। उछब उत्सव । डमर - समूह। अभंग- वीर, योद्धा। २५६. बगसी - बखशी, वह अधिकारी जो लोगोंको वेतन देता हो । प्रागपण - पागमन, पाना। वरियांम - श्रेष्ठ । तेडियो - बुलाया। सताब - शीघ्र । २५७. खूच - कमी (?) । सायत - शायद, मुहूर्त ?। डील - व्यक्ति, प्रादमी। Page #260 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २३५ दिल्लीस मुनसपदार, अम्मीर' स्रब' उणवार । दळ पूर संग' दरियाव, औ अमीरल उमराव ।। २५८ विध सांमुहौ वरियांम, निज खांनदौरां नोम । मेल्यिा घण अम्मीर, सांमुहा भूप सधीर ॥ २५६ सुजि नमै साह समांन , विध' कहै' हुकम विधांन । सुणि हले पह२ 'अभसाह', दिल्लेस दिस दरगाह ॥ २६० जवनेस दरगह जाय, अतरे गजहूं प्राय । छक चढ़े पूर छछौह", बह जांणि संग्रफ बौह ॥ २६१ मुख उदत'८ जांणि प्रमाण, जगचक्ख' बारह जांण। ....... ॥ २६२ कवित्त छप्प २३ प्रांबखास मझि 'अभौ', उरसि२४ छिबतौ पहाए। दुहं३६ राह देखतां, अरज बगसी गुजराए । २६३ - १ ख. ग. अमीर। २ ख. ग. श्रव। ३ ख. ग. संगि। ४ ख, यौ। ग. यौं। ५ ख. विधि । ग. घि। ६ ख. मेल्हीया। ७ ग. यण। ८ ग. नमे। ६ ख. समाज । १० ख. ग. विधि। ११ ख. ग. कहे। १२ ख. ग. पौहौ। १३ ख. ग. दिसि । १४ ख. ग. छछोह। १५ ख. ग. बौहौ। १६ ख. वौह । ग. बोह। १७ ग. मुषि । १८ ख. ग. उदित। १६ ख. ग. जोति। २० ख. प्रमाणि। २१ ख. ग. जगचष्प । २२ ख. जांणि । २३ ग. छप्पे । २४ ख. ग. उरस । २५ ख. पौहो। ग. पौहो । २६ ख. दुहुँ । ग. दुहू। २५८. अमीरल उमराव - अमीर उमराव । २५६. खांन दौरां- बादशाहके एक दरबारीका नाम । २६०. अभसाह - महाराजा अभयसिंह । दिल्लेस - बादशाह । दिस - तरफ, ओर । दरगाह - दरबार। २६१. जवनेस -- बादशाह । छक - जोश । छछोह - तेज । २६२. उदत - कांति, तेज । प्रमाण - समान । जगचक्ख - सूर्य, भानु । २६३. प्रांबखास - प्रामखास । अभी - महाराजा अभयसिंह । उरसि - आसमान । छिबतौ - स्पर्श करता हुआ। राह -- सम्प्रदाय, पंथ, मार्ग। गुजराए - पेश की। Page #261 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३६ ] सूरजप्रकास तई पीर तुझकेस, नजर दौलत ऊचारे' । वदन नयण' विलकुलै', साह बह कुरब सधारे । *सौ सौ सलाम जोड़ग सझै, नरिंद त, अनमी नभै । दे हेत सबै साहसु मिळे, नरंद जठै अनमी नभै ॥ २६३ बहुत नजीक बुलाय, कहै इम साह हेत कर । हो चंगे खूसबखत, महाराजा राजेस्वर । वहुत दिनूस' मिळे, आज हमै खुस होई । दिगर खैर अफियत्त', सुमां सुभ निजर' सकोई । अंबखास जोति दूणी उदति, सोभा तप सरसाविया । तुरकाण हेक हिंदवांण तड़, दुहं भांण दरसाविया ॥ २६४ डेरां डंबर वणे, सीख करि तांम सधारे । गज अरोह दरगाह, प्रथो° रछपाळ१ पधारे। १ ग. उच्चार। २ ग. नयन । ३ ख. ग. विलकुलै । ४ ख. ग. बहौ। ५ ग. सधार । ...ये दो पंक्तियां प्राप्त सभी प्रतियों में अस्पष्ट हैं। *यहांसे पागे ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्तियां मिली हैं 'तरजवी पेच कोरां तिते अतिहठ हो पारणे अभै ।' ६ ख. वौहोत । ग. बहोत । .... चिन्हित पंक्तियां ग. प्रतिमें नहीं है। ७ ख. कहे। ८ ख माहाराजा । ६ ख. राजेसुर । १० ख. वहौत । ग. बहोत । ११ ग दिनौ। १२ ख. हम्मै । ग. अम। १३ ख. अाफियत । ग. प्राफिइत । १४ ख. ग. नजर। १५ ख. ग. उदित । १६ ख. सरसावीया । ग. दरसावीयौ। १७ ख. दरसावीया । ग. दरसावीयौ। १८ ग. सिधारे। १६ ख. ग. अरोहि। २० ख ग. प्रिथी २१ ग. रछिपाळ । २६३. तई - उस, आततायी। मीर तुझकेस - अभियान या जलूस आदिकी व्यवस्था करने वाला। नजर दौलत ऊचारे - "नजर दौलत" कहा। वदन - मुख । विलकुलै - ( ? )। सौ सौ....."सझे - बराबर के वैभव वाले सौ-सौ बार अभिवादन करते हैं। २६४. चंगे - स्वस्थ । खुसबखत - खुशकिस्मत, सौभाग्यशाली । अफियत्त - सुख, चैन, स्वास्थ्य, आफियत । सुमा - ( ? ) । दूणी - द्विगुणित । सरसाविया - सुशोभित हुए। तुरकाण - यवन । तड़ - दल । दरसाविया - दिखाई दिये । २६५. डेरा - पड़ावों या ठहरनेके स्थानों। डंबर - समूह । रछपाळ - रक्षक । Page #262 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २३७ प्राय डेरां ऊतरे', तेण' मौसर पतिसाहां । भेजे खिजमतिगार', पौस जरकसी जिलाहां । अंगूर नासपाती बिही', घणी सेव सरदा घणा' । मेलिया खूब महमांनियां', तरह तरह मेवां तणा ।। २६५ ते खुसबखती अतर, रचे डंबर रिझवारां' । गुल-क्यारां रंग गहर, हौद चादरां फुहारां । जळ धारां कढ़ि११ जमी, रोसदारां रसतारां । नीझारां कारजा, जिलहदारां गुलजारां । 'जसराज-पुरा' गोढ़े जदिन, रचै 'अभै-पुर' रंगरौ । इखतां हवाल ललचे अमर, उपवन जांणि अनंगरौ ।। २६६ हमीदखाका गुजरातमें प्राजाद होना एम झिलै १४ 'अभपती'', सुणै रंगराग सकाजा। झिलै साह महमंद, तई ६ आणंद तराजा। १ ख. उतरे। ग. ऊतरै। २ ग. तिण। ३ ख. षिजमतगार । ४ ख. ग. पोस । ५ ख. ग. वीही। ६ ग. घणां । ७ ख ग. मेल्हीया। ८ क. खून। ६ ख. महमानीयां । ग. महमांनीयां। १० ख. रीझवारां। ११ ग. कढ़। १२ कारंजा। ग. करंजण : १३ ख. ग जोडै । १४ ग. झिले। १५ ख. अजपती। ग. अभपति । १६ ख. नई । ग. तेइ। १७ ग प्राणंदि । २६५. मौसर - अवसर । खिजमतिगार - सेवक । पौस - पोशाक अर्थ ठीक बैठता है। जरकसी - सोने-चांदी के तारोंका काम । जिलाहां - (जिलह या चमकदार ?) । सेव - सेव नामक फल । सरदा - एक प्रकारका बढ़िया खरबूजा जो काबुलमें होता है। महमांनियां - आतिथ्य-सत्कार के लिये । २६६. डंबर - सुगंध, महक। रिझवारां - (रीझ, प्रसन्न करने वाले ?)। गुल क्यारा फूलोंकी क्यारियां । रोस - दारा - ( ? )। रसतारां- ( ? ) । जिलहवारां- कांतियुक्त, मनोहर । गुलजारां- उपवनों। गोढ़े- पास, निकट । जदिन - जिस दिन । इखतां - देखने पर । हवाल - हाल, स्थिति । २६७. झिल - मस्त होता है, हर्षयुक्त होता है। प्रभपती – महाराजा अभयसिंह। साह महमंद - मुहम्मदशाह बादशाह । तई - उसके । तराजा- समान, तुल्य । Page #263 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २३८ ] ५ दुंद' * ऊठे* चढ़िया दळ । * 19 समं जेणि' दखिणेस े, साहिजादा जंगळी, हैमंद दिखणियां एक हुय, हाका पुकार सौबा " हर्णे, वाका दिल्ली आविया " ।। २६७ मुरड़ि गुजरात महाबळ । सपति अमल उठाविया " 1 93 सात हजारां सहित, मारि गिरधरा बहादर । ५ बांणू लख माळवौ', लीध उज्जीणतणी" धर । सौंबा १ सूरततणा', अनै ग्रहमदपुर वाळा | २२ ते काजम रा तीन, किलम दारण कळिचाळा । चाळीस सहस दळ चापड़े, सौबा " जिकै संघारिया 1 भरांमकुळी** रुसतम अली, मुगल सुजाहत मारिया ।। २६८ १५ ૪ ६ वाका सुणि विदा कीध सूरजप्रकास पातिसाहरौ सर-बुलंदन गुजरातरौ सूबादार वणाणी - २६८. बांबूं - बानवे । श्रनं वीर । चापड़े - युद्ध के २६६. कहर - क्रोध, कोप । २० १ ग. जेण । २ ख. दक्षिणसूं : ग. दक्षिणसुं । ३ ख. ग. बूंद । ४ ख. उठे । चढ़ीया । **ग. प्रतिमें 'चढ़े उठि हियो दळ ।' पाठ है। ६ ख. ग. 1 ६. ग. साहिजादो । ७ ख. माहाबल । ८ख. दक्षिणीयां । ग. दक्षिणियां । होय । १० ख. उठावीया । ११ ख. ग. सोबां । १२ ख. हणे । १३ ख. प्रवीया । १४ ग. सहत । १५ ख. वाणूं । ग वांणू । १६ ग. माळवो । १७ ख. उज्जेणतणी । ग. उजीणतणी । १८ ख. सूवा । १६ ख. ग. सूरततरा । २० ग. अनेक | ग. सोवा । २२ ख. ग. जिके । २३ ख. संघारीया । २४ ग. अभीरांमकुली । मारीया । २६ ग सुण । २७ ख ग. कोपीयौ । २१ ख. २५ ख. सपती, कहर कोपियों" भयंकर । सिरविलंद, दूठ समसेर बहादर | = द्वन्द - उत्पात, कलह, उपद्रव । २६७. दखिणेस - दक्षिण के अधिपति या शासक । साहिजादी महाबळ हैमंद - हमीदखां । श्रमल अधिकार सौबा प्रान्त, प्रदेश, सूबा । वाका समा 1 चार, वृत्तान्त | - ने दुंद = ५. ख. • श्रर । किलम - यवन, मुसलमान । कळिचाळा - योद्धा, मैदान में, खुले मैदान में । कोपियो- कुपित हुआ । दूठ - जबरदस्त । Page #264 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २३६ दीध कोड़' हिक' दरब, दीध पच्चास सहँस दळ । सुजड़ खाग सिरपाव, मुसक असि दीध मद्दगळ । कत्ताबम' मुरजल-मुलकका, दीध अराबा घण मुदित । ईरांन विरद उजवाळ", पान दीध तूरांनपति ॥ २६६ सर-बुलंदरी अहमदाबाद पर अमल करणौ विखम दळां सझि 'विलंद', एम गूजर धर पाए । अँग नायब प्रापरौ, चुरस हरवळां चलाए । जांम सुणे जंगळी, चढ़े सांमुहां चलाया। सझे अडाळत समर, मारि दळ गरद' मिळाया । आवियौ विलंद' छिबतौ उरस, चकि 'हैमँद' तदि चालियो । दस सहँसहूँत सिर 'बिलंद'रौ, हरवळ मारे हालियौ ॥ २७० सर-बुलंदखांका अहमदाबाद पर सुतंतर बादसाह बणणौ साथ मंत्री साझिया'५, निडर दिल फिकर न धारे ६ । खिस गौ 'हमदखांन'१७, सरस तिण जोम सधारे । १ ख. ग. कोडि । २ ग. क। ३ ग. पचास । ४ ख. मुद्दगल । ५ ख. कितावम । ग. किताब। ६ ख. मुदित । ७ ग. अजवाळनं । ८ ख. गुज्जर । ग गुजर। ६ ख. ग. अडालज। १० क. गिरद । ११ स्व. प्रावीयौ। १२ ख. छिवतो । ग. छिवतो। १३ ख. चालीयौ। १४ ख. हालीयौ। १५ ख. साझीयां। १६ ख. बारे। १७ ख. ग. हैमंदषांन । २६६. हिक - एक । दरब - द्रव्य । सुजड़ - कटार । असि - घोड़ा। मद्दगळ - हाथी । कत्ताबम - खिताब, पद। मुरजल - मुबारिजुल-मुल्क-यह सर बुलंदखांकी उपाधि थी। अराव - तोप। .घण मुदित – अत्यधिक हर्षित हो कर । तूरांनपति - तूरान तातारका एक नाम है । भुगल तातारकी तरफसे आये थे, अतः कविने बादशाह मुहम्मदके लिए तूरानपति शब्दका प्रयोग किया है। २७०. चुरस - श्रेष्ठ । हरवळां - सेनाके अग्र भाग पर, हरावल । अडाळत - ( ? ) । गरद - धूलि । छिबतौ - स्पर्श करता हुआ, छूता हुआ। हैमंद - हमीदखां । हालियो - चला गया। २७१. खिस गौ - खिसक गया, पराजित हो गया। हमदखांन - हमीदखां । सरस - हर्ष पूर्वक । जोम -- जोश, उमंग। Page #265 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४० ] सूरजप्रकास इम मनसझ' जांणियौ', खूद न गिणूं धर खाऊं । अहमदपुर' अपणाय, जुदौ पतिसाह कहाऊं । करि इम सलाह मुरडे किसम, मेळ गनीमां मंडियौ । आपरौ अमल कीधौ इळा, असपति अमल उचंडियौ ॥ २७१ महाराजा अभैसींघजीरै प्रभावरौ वरणण उठ 'दिली ६ उणवार, 'अभौ' दारुण अतुळीबळ । उरस छिबै अधपती'", झळळ पौरस झाळाहळ२ । कमध१३ सहाई करै, आप मन मझि जीयांण'५ । अन१६ अमीर सुर असुर, जियां तिलमात न जाणै । ऊपटै भुजां पौरस'८ अघट, भाव कितां अभावणौ । धारियां'६ अडिग हिंदू धरम, तै सुभाव' घरवटतणौ ॥ २७२ महाराजा अभैसींघरौ दिलीमें सूररी सिकार करणी तथा बादसाहसू प्रामवासमें नाराज होणौ पर पातसाजीरो प्रभैसींघजीनूं मनावणौ । महमँद२१ रमणां२५ मांहि, दिली जाहर. दरबारां । सूर सौंस 3 प्रासुरां, सूर मारिया१४ सिकारां । १ ख. मनसझि। ग. मनमझि। २ ख. जांणीयो। ग आणियो। ३ ग. अहमदपुर । ४ ग. जुदो। ५ ख उवंडीयौ । ग. उचंडियो। ६ क. अभौ। ७ ख. अतुलीवल । ग. अतळीबळ । ८ ग. उरसि । ६ ख. ग. छिवै। १० ग. अधपति । ११ ग. पोरस । १२ ख. झालाहस । १३ ख. कंध । ग. कंधि। १४ ख. सह्वाई । ग. सवाई। १५ ख. ग. जिम प्राण। १६ ख. ग. अनि । १. ग. ऊपड़े। १८ ख. पौरिस। १६ ख. धारीयां। २० ग. सभाव। २१ ख. ग. महमद। २२ ख. ग. रमणा। २३ ग. सूस। २४ ख. मारीयां । २७१. खंद - बादशाह। अहमदपुर - अहमदाबाद। अपणाय - अपने अधिकारमें कर के । जदौ-पथकही। मुरडे - कुपित हो कर, विरुद्ध हो कर। मेळ - मित्रता । गनीमांशत्रों। वि.वि. - यहाँ पर यह शब्द मरहठोंके लिये प्रयोगमें लिया गया है। मंडियौ - कर लिया। इळा - पृथ्वी। असपति - बादशाह । उचंडियौ - उठा दिया, हटा दिया। २७२. अतुळीबळ - शक्तिशाली। प्रधपति = अधिपति - राजा। झळळ – देदीप्यमान । पौरस - पौरुष, शक्ति, बल। झाळाहळ - अग्नि, सूर्य । सहाई - मदद, सहायता । जियां - जिन। ऊपटं - उमड़ता है। अघट - अपार, असीम । भावे - चाहे । प्रभावणौ-अप्रिय, अरुचिकर । घरवटतणो-वंशका, कुलका । २७३. महमंद – बाहशाह मुहम्मदशाह । सूर - सूअर । सौंस - शपथ । Page #266 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास १ २ ऊभौ तुरराबाज, सुणै पाए आपण | * अडस' लागि प्रायौ, खाग जाळण खुरसां । ऊठावियौ । अंबखास किलमेस सहित रूठे कमंध, करि नजर प्रोत' भय हूंत" करि, महमद 'अभौ' मनावियो " ॥ २७३ बादसाह मुहम्मद साह खनै गुजरातसूं खबर श्रावणी ર दीवौ २ करि देखिजै, इसी नह लाय प्रकारी । १५ १६ १७ जोर तळब जायगा ३, विदा कीजै छत्रधारी । इम करतां आळोज, अरज वाकी इम आयौ । सिर" विलंद सिर जोर, अमल गुजरात उठायौ । फुरमाण न वदें प्रापरा, इम सुणि वचन प्रभाविया ६ । ततवोर करण मसलति तणा, वडा अमीर बुलाविया " ।। २७४ बगसी" अनै` वजीर, बहसि " प्रति जदा बरद्दी" । उभै वेग** आवियो", "खांनदौरा २४ कमरद्दी * । सुणे साह महमंद, सुणे नब्बाव सलाही । रंग किया राफजी", हुकम लोपिया" अलाही । १ ख. ग. सुणे । २ रा. पाय 1 ३ ख प्रर्डस । ग. श्रडसि । ४ ग. लाग । ५ ख. श्रावीयो । ग. श्रावियो । ६ ख. ग. बागि । ७ ख. उठीयौ । ग. उठावोयौ । ८ ख. ग. नजरि । ६ ख. ग. प्रीति । १० ग. हुत । ११ ख. मनावीधौ । १२ ख. दिवौ । ग. दीयो । १३ ग. जायमा । १४ ख. सिरि । १५ ख. वंदे । १७ . बुलावीया । १८ ख. ग. बगसी । १६ ग भने । ग. वरद्दी । २२ ख. ग. वेगि । २३ ख श्रवीया । कमरदी | २६ ख. सुणं । ग. मु २७ ख. सु २९ ख. ग. कीया । ३० ख. राफसी । ग. रापसी । २६ १६ ख. ग. प्रभावीया । २० ख. ग. बहस । २१ ख. २४ ख. खांनदोरां । २५ ग. । । नबाब | ७ [ २४१ .२८ २८ ख. नव्वाव । ग. ३१ ख. लोपीया । २७३. डस - डाह, दाह । किलमेस - बादशाह, यवन । श्रभौ - महाराजा अभयसिंह | मनावियो - प्रसन्न किया, संतुष्ट किया । २७४ दोवौ - दीपक । लाय - अग्नि काण्डकी प्रग्नि । अकारी - कमजोर । आळोज विचार | वाकौ - वृत्तान्त, समाचार । सिर-जोर - बागी, विद्रोही, सरजोर । प्रभाविया - प्रिय, अरुचिकर । ततवीर - अभिष्ट सिद्ध करनेके साधन, तदबीर | मसलती तणा - मस्लहत के, विचारके । २७५. बरद्दी - ( ? ) । राफजी - वह सेना या दल जो अपने अधिपतिको छोड़ दे ; शया मुसलमानोंका वह दल जिसने हजरत अली के लड़के जैदका साथ छोड़ दिया था । - Page #267 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४२ ] सूरजप्रकास आळोज करण लागा असुर, कहै' न' जाब कहावियौ । अहमदाबादहूंता इतै, वाकौ दूजौ प्रावियौ ॥ २७५ ईरांनी अतपाक', दखिण मिळ किया दुबाहां । मंडिया जठै गनीम, जठ सहनक पतिसाहां । आठ पहर रइयत्त'. जहर पीधां सम जावै । लूट'' कहर करि लियै', सहर विवराळा'४ गावें। धन लिय" मारि नांखै धणी, साथ ६ होण' न दियै ८ सतो। असपती सोच वधियौ१६ अधिक, इसड़ी सुणे अजाजती ।। २७६ सर वुलंदसू जुध करणसारू बादसाह मुहम्मदसाहरौ बीड़ी फेरणी बिहूं तांम बोलिया, साह अमखास सझावौ । नरिंद खांन करि निजर, फिजर बीड़ा फिरवावौ५। फटे निसा फजरांन, अंब - दीवांण वणाया। तखत बैठ६ सुरतांण, पान हाजर पधराया । सिर" विलंद खांन 'साहू सहित, आसँग हुवै सु पावसी । असमांन पड़े थांभै अडर, प्रौ नर३° पांन उठावसी ।। २७७ १ ख. ग. कहे। २ ग. नीबाब। ३ ख. ग. कहावीयौ। ४ ख. ग. प्रावीयौ। ५ ख. ग. इतफाक । ६ ख, ग. मिलि । ७ ख. ग. कीया । ८ ख. ग. दुवाहां। ४ ख. ग. मंडीया। १० ख. ग. रईयत। ११ ग. जांव। १२ ख. ग. लुटि । १३ ख. ग. लीय। १४ ख. वेवराल । ग. बेवराल। १५ ख. ग. लीयै। १६ ख. ग. साथि। १७ ख. होण। १८ ग. दीये। १६ ख. ग. वधीया। २० ख. दिहु । ग. विहू। २१ ख. घोलीया। ग. बोलीया। २२ ग. सझावो। २३ ख. ग. नजर । २४ क. फिकर । २५ ख. ग. फिरवावो। २६ ग. बैठि । २७ ख. सिरि। २८ ख. ग. आसंगद । २६ ख. ग. पावसि । ३० ख. पोरन । २७५. जाब - उत्तर, जवाब । कहावियो- कहलाया। २७६ प्रतपाक - इतिफाक । दुबाहां - वीरों । मंडिया - ठहरे। गनीम - लूटेरा, डाकू । सहनक - ( ? ) । रइयत्त - प्रजा। कहर - कोप, आपत्ति । विवराळा - त्राहि त्राहिकी पुकार । अजाजती- उपद्रव, उत्पात, ज्यादती। २७७. अमखास - आमखास । मझावौ - तैयार (करिये)। नरिद - नरेन्द्र, राजा । फिजर - फजर, प्रातःकाल । निसा- रात्रि । फजरांन - प्रातःकाल । अब-दीवांण - प्राम दीवाण। सुरतांण – बादशाह । प्रासंग - शक्ति, बल । थांभ - रोक दे। Page #268 -------------------------------------------------------------------------- ________________ そ जम्मीनके ऊपर परवरदिगारका हुसन दिल्ली सहर जोगमाया जिसके दरम्यान बावन वीर चौसठ जोगणीका वास । जैवींती २ १ .१४ १६ १८ १ विमर प्रकलका जहूर । पातिसाहूकार्ड तखत रुसनाईका पूर | जंवाहरका" तखत जंवाहरका छत्र । तेजको अथाह ऐसे दिल्लीका ३ साहिब जिस तखत पर विराजै है महमंद साह साहिबका नायब पैकंबरूंकी जात कहता' है । कुरांन चौवीस पीरूकी करामात जिसने ऊगती" मौसरूं ताळेके जोरसे" दिल्लोका तखत पाया । ऐसा महमंदसाह पातिसाह सिर" अंबखास ? वणवाया । तिस अंबखासके" वीच'' दोऊ दीनने प्राय सिर नमाया * । पातिसाहूका एक इसारा पाया । जिस बखतका तेज कैसा पर्यंत केसर सिंघ वाघ निजरूंके" वीच" प्रावै । तो पातिसाहूके" सांमूं देखणे न पावै । हपतहजारी* चमरूंकी झपट करते " हैं । दोऊ मिसलत हिंदू मुसलमान जिस बखत मीर तुजकके दस्त पर 3 २५ २६ २ खड़े हैं । जंवाहरका ४ ३१ ग. करते । सूरजप्रकास दवावत' १६ ० १ ग. दबावो । २ ख. परवरदगारका । ३ ख. ग. जोगमाया लिछमीका प्रकास । ४ ख. जिनके ५ ख. वावन । ६ ग. चौसठि । ७ ग. वासा । ८ख. जंवंतीका । ग. जैमतीका | ख. पातसाहूका । ग. पातसाहौका । १० ख. ग. रोसनाईका 1 जवारका । १२ ख. प्रेसी । ग. सा । १३ ख. ग. दिल्लीके १४ ख. ११ ग. । कहैता । १५ ग. उगती । १६ ग. ताळे । १७ ख. ग. जोरसं । १८ ग. दिलोका । १६ ख. ग. पातिसाह जिसने । २० ख. ग. सर । २१ ख. ग. श्रांमषास । २२ ख. ग. श्रांमपासकै । २३ ख. वीचि । २४ ग. नवाया । केसरी | २७ ख. ग. पातसाहूके तेज सौ | २५ ख पातसाहूका । २६ ख. ग. नजरूकै । २८ ख. वीचि । २६ ख. पातसाहूकै तेज सौ ग. ३० ख. ग. समुह । * ख. तथा ग. प्रतियों में यहांसे आगे - सपर समसेर धरते हैं हफत हजारी ।' ३२ ख. ग. मिसल । ३३ ख. हींदू । ग. हीदु । ३४ ग दसत | [ २४३ 70 २८. परवरदिगारका - पर्वरदिगारका, ईश्वरका हुसन - सौंदर्य, खूबसूरती, हुस्न । जहूर प्रकासन । रुसनाईका - प्रकाशका, रोशनीका । पैकंबरूंकी - पैगम्बरकी । जातउत्पन्न | मौसहं - श्मश्रुके बाल । ताळेके - भाग्यके । दीनने मजहबोंने । सांमूं - सम्मुख, सामने | चमकी - चंवरोंकी । झपट - चंवर डोलानेका भोंका । मिसलत - पंक्तियां । मीर-तुजक के जलूस या अभियान आदिकी व्यवस्था करने वाले के । दस्त पर - हाथ पर । Page #269 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४४ ] सूरजप्रकास पांनदांन। जिस बखत हाजर कोण-कौण। अंबखासका' वणाव। सत्तर : खांन बहौतर' उमराव । दिल्लीपतिकी सभा' इंद्रका समाजा । सबूंका सिरपोस जोधांणका राजा । जिस बखत पातिसाहूंने स्त्रीमुख हुकम फुरमाया । अमीर 'नुदिखां'११ मीर तुजक जो कोरबंधीसै फिरवाय' पांन। चित्रकेसे खड़े है हिंदू और मुसलमांन । जिस बखत मीर-तुजकूनै प्रादाब बजाय पांन फेरणकू" आया । जुबांनसै सवाल सबूंकू' सुणाया । यारौ जे ये पांन' जो सकस लेवै उठाय। जो सिरविलंदखांन साहूसै लड़िबेकू' जाय। जिण' ने बखत पातिसाही अमीर हाजर कोण कोण सो कहि दिखळाय५ । कमरदीखांनवजीर'६ इतमांदुदोल'" बहादर'८ चिनूंसरतजंग ।* रौसनदोलै तुरराबाज खांसीमबगसी रुस्तमजंग । सेर अफनखांन' समददोलेकी किताब । खोजे 3 साहुदीखां प्रातसमीर साहादतखां १ ख. प्रामषासका । ग. आबषासका। २ ख. और वौहीतर। ग. और वहतर। ३ ख. ग. दिल्लीको। ४ ख. ग. छभा। ५ ख. समाज । ६ ख. संम्बका। ७ क. सिरपौस। ८ ख. ग. पातसाहून । ६ ख. श्रीमुषि। १० ग. अमीनु । ११ ख. दोषां । ग. दोषां। १२ ख. कुंजो। ग. कू कूजो। १३ ग. फिरवाया। १४ ख. ग. हींदू। १५ ख. प्रतिमें नहीं है। ग. पोर । १६ ग. तुजकौं। १७ ख. ग फेरणेकू। १८ ख. सवू । ग. सब्बू। १६ ख. ग. यारो। २० स्व. एयांन । ग. एपांन । २१ ख. जंग करणेकं जाय । ग. जंग करणकौं जाय । २२ ख. जिस। २३ ख. ग. पातसाही। २४ ग. कौन कौन । २५ ग. दिषलाया। २६ ख. ग. कमरदोषांवजीर । २७ ख. ग. यतमावुदौल। २८ ख. वहार । ग. बाहादर। २६ ख. चीनुसरततजंग । चीनसरतजंग । *यहांसे आगे ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न पंक्तियां और मिली हैं 'षांन दोरा मीर बगसी सम साम दौले अमीरळ उमराव मनसूर जंग ।' ३० ख. ग. रुसतमजंग। ३१ ख. ग. अफगनषांन । ३२ ख. सामंददौलैका। ग. समसामैदौलका। ३३ ग. षौजे। ३४ ख. ग. साहुद्दीषां । २७८. पानदान - एक प्रकारका डिब्बा जिसमें पान और पानके लगानेकी सामग्री रखी जाती है। वणाव - सजावट, सौंदर्य। सबूंका - सबका । सिरपोस -- शिरत्राण, रक्षक। कोरबंधी - पंक्ति, कतार । सकस – शख्स, व्यक्ति, मनुष्य । लडिबेकू - युद्ध करनेके लिये। Page #270 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २४५ ? ⭑ अबदल बहादर ' दलेलजंग खां* बहादर दारोगे खवासां उरहां नल मुलक 'मखां बहादर मीर जुमलांमु ̈ जिकरियाखांन' संवेदार लाहौरके दिलदलेलखां बहादुर' मोर जुमलामुखान' खांना तारखां' बहादर जाफर" जंग सदरसहूर इरादत मंदखां बहादुर सरफ' दौकी किताब | मुरसदकलीखां जाफर खांन वसेरी अलैवरखां' बहादुर" मौतकदु" "दौले कर वल वेगी मदुफरखां" सूबेदार " अजमेर | ऐसे " ऐसे " हाजर बौहत उस बेर" । दिलेसुर देखते है सिरपौस २४ 3 મ a 3 ६ जिहांन । ऐसूंके" वीचमें फिरते " है पांन ॥ २७८ २ १ ग. बहादरा । कवित्त पांंकावणाव २ 33 फिर पान साहरा कितां " ज्यांन थरत्थर' फिर पांन साहरा, कितां निजरां न धरै कर । तुजकमीर" कर" तांन, केइक मसतांन कहावे । प्रांत प्रांत कथ कहै, पांन नह कोय उठावै । で ૭ २ ख. ग. षांन । ..... • चिन्हांकित पंक्तियां ख. तथा ग. प्रतियोंमें नहीं हैं । ३ ख. जिफरीयाषांन । ४ ख. लाहोरके । ५ ख. ग. बहादर । अजमषांन । ७ ख. ग. तरषां । ८ ख. ग. जफर । ६ ख. ग. वहादर । ग. बाहादुर । ११ ग. सर्फ । १२ ख. ग. दोलैका । १३ ग. मुरसदीकुलीषां । १४ ख अलैवरदीषां । ग. अलेववीरदषा । बाहादुर | २७८. ज्यांन - जान, प्रारण । थरत्थर - कंपायमान । ० * यहां से आगे निम्न लिखित पंक्तियां ग. प्रतिमें और मिली हैं'दारोगे षवासां ठुरहांनल मुलक । अबदळ समंदषां बहादर ।' 39 ४ १६ ख प्रतिमें नहीं है । २० ख. ग. बहुत । २१ ख. ग. । अ... चिन्हांकित पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । १७ ग. मुजफर । १८ ग. से । १६ ग. अँसे । वेर । २२ ख. दिल्लेस्वर । ग. दिलेसुर । २३ ग. देषत २४ ख. ग. सिरपोस । २५. ग. ऐसूकं । २६ ख. ग. वीचमै । २७ ग. फिरत । २८ ख. कवित छ । ग. छप्पे कवित | २६ ख. पांन फिरणका । ग. पांन फिरणेका । ३० ख. किता। ग. किती । ३१. ख. रा. थर थर । ३२ ख. फिरफिरें । ३३ ख. ग. नजरां । ३४ ग. तुझकमीर । ३५. ख. करि । ६ ख. ग. जुमलामुयरावत । १० ख. ख. मुरसदकुलीषां । १५ ख. वहादर । ग. Page #271 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४६ ] सूरजप्रकास 'अभमाल' विनां हिंदू' असुर, दिल अंबखास दबावियौ । मेरगिर भार' पांनां महीं, उण दिन निजरां प्रावियौ ॥ २७६ थरहरत पंजरै, असुर लेवण कजि आवै । मीर तुजक चख मिळे, खांन दहसत चित खावै । मुगलां उडै गुमांन, उरड़ आसँग नह पारण । पांन देखि पालट, वाघ दीठां जिम वारण । 'अभमाल' भूप रघुनाथ' अंग, रवद भूप अनि राहरा । हर धनख जनक' जिग जिम हुवा, पान दिली पतिसोहरा ।। २८० महाराजा अभयसिंहजीरौ दरबारमें सेरविलंदसू जुध करण सारूं पानरौ बोड़ो उठाणौ नी लियै खांन निबाब'', अांन न लिय'' अधपत्ती' । तुजक-मीर करहूंत, पांन लीधा असपत्ती । ग्रहे पान निज करग, नजर कमज्ज'५ निहारै । रहे एक औसरा, एम पतिसाह उचारे१६ । तद मुसलमान'८ हिंदू तणी'६,प्रासंग किणहि न प्राविया''। दईवांण देखि असपति दुचित, 'अभमल' पान उठाविया ॥ २८१ १ ख. हींदूर । ग. होंदू। २ ख. दवावीयौ । ग. दबावीयौ। ३ ख. धार। ४ ख. ग. नजरां। ५ ख ग. प्रावीयो। ६ ग. रघूनाथ । ७ ख. धनक । ८ ख. प्रतिमें 'जनक जिम हुवा।' ६ ख. लीवै । ग. न लीये। १० स्व. नवाव । ग. नबाब । ११ ख. ग. लीय। १२ ग. अधपति । १३ ख. ग्रहै । १४ ग. निजर । १५ ग. कम-ज्ज । १६ ग. उचारै । १७ ख. ग. तदि। १८ ग. मुसलमाण । १६ ग, हीदूतणी। २० ख. किएहीन । ग. अवरन । २१ ख. ग. प्रावीया । २२ ख. उठावीया । २७६. अभमाल – महाराजा अभयसिंह । मेरगिर - सुमेरु पर्वत । २८०. थरहरत - कंपायमान होते हुए । पंजरै - शरीर । चख – चक्ष, नेत्र । बहसत - भय, आतंक । गुमांन - गर्व । उरड़ - साहस । प्रासंग - शक्ति, बल । पारण - युद्ध । वारण - हाथी, गज। रवद - मुसलमान । . २८१. प्रांन - अन्य । अधपत्ती- राजा । प्रसपत्ती- बादशाह । करग - हाथ । निहारे - देखे। औसरा - अवसर, मौका। दईवांण - राजा। दुचित - खिन्नचित्त । अभमल - महाराजा अभयसिंह। Page #272 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २४७ बीड़ा ले बोलियौ', कमध' घाते' मूंछां कर । उछब' करौ असपती, सोच मति' धरौ दिलेसुर । मारि सीस मोकळू, काय पकडे पौहचाऊं । अजळ भाजि ऊबरै, मुगळ दळ गिरद मिळाऊं। अहमदाबाद हूंता असुर, एक दिवस मझि ऊथलूं । विण' पत्रां रूख जिम सिरविलंद, करे दिली'' दिस' मोकळू ।। २८२ बादसाह मुहम्मद साहरी महाराजा अभयसिंहजीनूं जोस दिराणों सुणि इम कहियो' साह, महाराजा'४ राजेसुर । आगै'५ घर'६ प्रापरै, हुवा 'गजबंध' नरेसुर । जेण" चाड जंहगीर', 'भीम' हणि 'खुरम' भजाया । लड़ि दखिणी' लूटिया'', बोलबाला' करि आया । जुध फतै २२ दिलो ईसांन जस, करि आया सोईज करै । मो तखत लाज 'महमँद' मुण, 'अभा' भरोसै प्रापरै ।। २८३ १ स्व. वोलीयो। ग. बोलियो। २ ग. कमंध । ३ ग. घात। ४ ख. ग. उछव । ५ ग. मत । ६ ख. दिलेस्वर । ग. दिलेसर। ७ ख. मार । ८ ख. पोहो। ग. पहुं । ६ ख. उथलू । ग. उत्थलू । १० ख. विणि। ११ ख. दिली। १२ ख. ग. दिसी। १३ ग. कहियो। १४ ख. ग, माहाराजा। १५ क. भागे। १५ ग. घरि । १७ ख. ग. जेणि। १८ ख. ग. जहांगीर । १६ ग. दषणी। २० ख. लूटीया। २१ ख. ग. वोलवाला। २२ ख. फते। २३ ग. सोहीज । २८२. घाते - डाल कर, रख कर । कर - हाथ। सोच - चिंता। दिलेसुर - बादशाह । मोकळू - भेज दूं । काय -- अथवा, या। पौहचाऊं- पहुँचा दूं। अजळ - अति नीच, बहुत ही कमीना। भाजि - भाग कर। ऊबर - बच जाय । दिवस - दिन । ऊथलं - हटा दूं, पराजित कर दूं, गिरा दूं। २८३. घर - वंश, कुल । मार्ग - पहले, पूर्व । गजबंध - महाराजा गजसिंह जोधपुर । नरेसुर - राजा, नृप। चाड - मदद, सहायता । भीम - सीसोदिया भीमसिंह । (वि वि. - परिशिष्टमें देखें)। लड़ि-युद्ध कर के । बोलबाला-विजय, अधिकार (?) । ईसांन - अहसान । सोईज - वही। मुणे - कहता है । भरोसे - सहारे पर, विश्वास पर। Page #273 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • २४८ ] सूरजप्रकास बादसाह मुहम्मदसाहरी प्रोरसं महाराजा अभयसिंहजीनं जुधारथ सहायता सारू धन पर अस्त्रसस्त्र देणा ताज कुलह सिर पेच, जरी तोरा जर कंबर' । खंजर जमदढ़ खड़ग, पवग सिरपाव फटाझर । तई लोक ताबीन, तोपखांनां गजबांणां । सझे साह बगसीस, लाख इकतीस खजांनां । अहमदाबाद दीधौ उतन, असपति सोच उथालियौ' । ईखतां दोइ' राहां 'अभौ', होय विदा इम हालियौ'२ ॥ २८४ महाराजा अभयसिंहजीरौ डेरां प्राणो अर अहमदाबादर जुद्धरी खबर चारों ओर फैलणी *गज बढ़ि डेरां गयौ'३, निहस बाजतां'४ नगारां । .. बात उडे चहुं वळां, खबरदारां हलकारां। १ ख. कंव्वर । ग. कम्मर । २ ग. पमंग। ३ ग. तइ। ४ ख. ग. तोबषांनां । घ. तोबरषांना। ५ ख. जगवानां । ग. गजबाना । ६ ग. सझे। ७ ख. ग. लाष । ८ ख. ग. अमदावाद । १ ग. दीधो। १० ख. ग. उथालीयो। ११ ख. ग. दोय । १२ ख. ग. हालीयौ। *इससे पहले ख. तथा ग, प्रतियोंमें निम्न कवित्त छप्पै मिला है-- 'पठां डार मझि प्रचंड, हले हेकल करि हौफर । मुकनांग यां दांमाहि, गयंद दताळ पटाझर । अनि सिंघां मझि अडर, दुरत नरसिंघ बहादर । पीयण जहर मलपियौ, जांगिण सिंध थटां जटाधर । बौही सस्त्र विनां पौही सस्त्र बंध, किलम विलंद सिर कोपीयो। अंबषास अमीरां मझि 'प्रभो', इम मल्हपंती औपीयो ।' १३ ख. अयो। ग. प्रायो। १४ ख. वाहत वाजतों। १५ ग. बळां । १६ ख. हरकारां। २८४. ताज - मुकुट कुलह - (?) । जरी - सोने-चांदीका बना हुआ । तोरा-तोड़ा, परका आभूषण विशेष । जर कंबर - ( ? )। खंजर - शस्त्र विशेष । जमदढ़ - कटार विशेष । पवंग - घोड़ा। पटाकर - हाथी। ताबीन = तईबीन - आधीन । तोपखांनां - तोप चलानेका सामान । गजबांणां - ( ? )। दीधौ - दिया। उतन - देश। उथालियौ - मिटा दिया। ईखतां - देखते हुए। अभी - महाराजा अभयसिंह । विदा - कूच । हालियो - चला, प्रस्थान किया। २६५. डेरा - ठहरनेका स्थान । निहस - जोशपूर्ण । बात'वळां - चारों ओर फैल गई। खबरदारां - समाचार ले जाने वालों। हलकारां - दूतों। Page #274 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास ६ देस देस सिरहदां', समाचारां तफसीलां । किया विदा कासीद, आप आपणां उकीलां । 'अहमद ' सतार' गढ़ वात ऐ", पमंग डाक खत पूजिया । तिणवार 'विलंदै' 'साहूतणा", धड़क" जीव उर धूजिया ।। २८५ चढ़े सभे चतुरंग, तिकण मौसर" 'अभपत्ती "" तोप कठठि गजटिलां जूट धवलां'" सांजत्ती' महाराजारौ दिलीसूं विदा होय जयपुर श्रावणौ २ १४ ६ २० २३ बूग " छडालां खिवै, होय नक्कीबां" हाकां । हुय दळवळ' हाथियां, धसळ ऊडंड धसाकां मुरतबा, तौगर नेजां महीं, धज बहरक फरहर धजां " दळहिले " एम मुरधर दिसी, समंद ऊभळे " ६ ७ મ 30 कठटि | १३ ख ग धमलां । १६ क. छडालें । ग. छडाळां । १ ख सिरहा । ग. सरहदां । २ ख. तपसीलां । ३ ख. कीया । ४ ख. ग. सितार । .५ ख. ग. वातए । ६ ग. पूजीया । ७ व. साहूंतरणा । ८ ख. धडकि । ६ ख. ग. धूजीया । १० ग. मोसर । ११ ख श्रगपती । १२ ख. ग. १४ ख. सामंती । ग. साझत्ती । १५ ख. मूंग । १७ ख. षोवं । ग. षिवे । १८ ख. नक्वीवां । ग. नकोबां । हलवल । ग. हळबळ | २१ ख. हाथीयां । २२ ख. ऊडडंक । ग. ऊडडत । २३ ख. ग. पचाकां । २५ ख. ग. तोग । २६ ख. ग. धज फरहर बहरक । २७ ख. जधां । २८ ख. ग. दलहले । २६ . दिली । ३० ख. उझल्ले । ग. ऊभले । १६ ख. ग. होय । २० ख. २८५ तफसीलां - तफसील, विस्तृत वर्णन । कासीद - सन्देशवाहक । उकीलां - वकीलों । ग्रहमंद - अहमदाबाद | सतार सतारा नगर । धड़क भयभीत होकर धूजिया - कम्पायमान हुए । • - - [ २४६ ४ 1 २८६. चतुरंग - चतुरंगिणी सेना । मौसर अवसर, मौका । श्रभपत्ती - महाराजा अभय सिंह | कठठि - ध्वनि विशेष करते हुए चली । टिलां टक्कर, प्राघात । जूटयुग्म, दो | धवलां-बेलों । सांजत्ती सामान उपकरण । बुग - भालों की नोंक । छडालां - भालों । खिवे - चमकती है । हाकां - ग्रावाज | बळवळ - तैयारी । धसळ - घोड़ेका जोश या मस्ती में होने का भाव । ऊडंड - घोड़ा । धसाकां - ( ? ) । मेजां - भालों । धज - ध्वजा । बहरक- भालेकी नोंकके साथ बंधी रहने वाली छोटी झंडी या ध्वजा । फरहर फहरा कर बिसी तरफ, ओर । ऊभळे - उमड़ता है। - जळसजां ।। २८६ Page #275 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५० ] सूरजप्रकास चमर हुतां चौसरां, मेघ-डंबर' झड़ माया । करहरतां' कोतलां, दळां पौरस' दरसाया । राग रंग डंबरां, अतर केसरां अपारां । जयगढ़हूंत नजीक, वणै भूपति जिणवारां । विलकुलै वधाईदार वधि, आणंद उछब' अथाह सूं । आगम्म खबर'" 'अभसाहरी', जाय कहै 'जैसाह 'सू* ॥ २८७ जयपुरमें महाराजा अभयसिंहजोरै स्वागतरी तैयारीरौ वरणण कवित्त २ दौढ़ी सुणि ब्रविया बह४ सुधन, दुझल वधाई१५ दारां। सझे अवासां'६ डंबर, चित्र अवछाड़ि' बजारां । चादर हौज फुहार, जळां भरि अतर खजांनां । रचि चिग पड़दा जरी, सरब'८ वज्जवे'६ सदांनां । ठाम ठाम विछि गिलम, विमळ अारांम वणाया। वाग जयनिवासरा, माग कुमकुमे' छटाया। १ ग. मेघडंब्बर। २ क. फरहरतां। ३ ख. पोरस। ४ ख. निज । ५ ख. ग. वणे । ७ ग बधाईदार। ८ ख.ग. उछव । ६ ग. प्राग्गम । १० ग. षवरि। ११ ग. जयसाहसु। *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। १२ ख. दौढ़ौ कवित । ग. प्रतिमें यह शीर्षक नहीं हैं। १३ ख. ग. प्रवीया। १४ ख. वहौ । ग. बहो। १५ ख. ग. वधाई। १६ ख. प्रावासां । १७ ख. ग. अवछाड । १८ व. ग. सरस। १६ ख. वजवे । ग. बजवि। २० ख. ग. सादांनां । २१ ख. ग. कुमकुमै। २८७. चौसरां - चारों ओर। मेघडंबर - मेघाडंबर, एक प्रकारका छत्र। करहरतां उछल-कूद करते हुए। जयगढ़हूंत - जयपुरसे। विलकुलै - त्वरा करते हैं । वधाईदार - मांगलिक संदेश देने वाला, खुश-खबरी देने वाला। प्रभसाहरी - महाराजा अभयसिंहकी। जैसाह - सवाई राजा जयसिंह । २८८. प्रविया - दिये। सुधन - श्रेष्ठ धन । वधाई दारां- खुशखबरी देने वालोंको । प्रवास – भवनों। डंबर - सजावट । प्रवछाडि- (?) । चिग-चिलमन । वज्जवै- बजाये जाते हैं। सवांनां - सादियाना, मांगलिक वाद्य । ठाम - स्थान । गिलम - गद्दे। माग - मार्ग। कुमकुमे - कुंकुम, केसर । छंटाया -छिड़काये। Page #276 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २५१ ४ चतुरंग वणाय गजराज चढ़ि, वजित्र' अनेक बजाविया । 'जैसा ह' उछब' इम करि जदिन, 'अभमल' सांमा आविया || २८८ दोनों राजावांरौ मिळणौ छपप्य कवित्त દ मिळे दहूं महिपती" हेत मनुहार चढ़े मेघ - डंबरां, 3 । १६ हुतां चमर हालिया अधिक रंगराग उछाहां । जोए सहर जळूस'", उरड़ गहमह उच्छाहां" । तदि द्वार ३ जयनिवासतणै ४, आय १५ गजांहूं ऊतरै तिणवार " तास जरकसतणा" तणा, वर पगमंडा विसतरै ।। २८६ दोनों राजावांरों जयनिवास वागमें पधारणौ वाग तांम वरियांम, दहूं" आए चढ़ि कारंजां चादरां, नीर धरहरे २५ अन्नेक ६, एक साथ विमळ पुहप विसतरे, भमर भणहणे ३२ २४ फबै धरहरै फुहारां । २७ गुँजारां । १ ग. वाजित्र । ६ ख. ग. दुहुं । हुलासां । प्रगट उच्छाह" प्रकासां* । २ ख. वजावीया । ७ ख. महपती । ग. उछाह । * यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं हैं । १० 1 - ३ ख. उछ्व । १३ ख. ख. हुता । १० ख. हालीया । ११ ग. जासूस । १२ ख. ग. प्रणयाहां । ग. द्वारि । १४ ख. ग. जैनिवासहतणा । १५ ख श्राइ । १६ ख. उतरे । ग. उतरें । १७ ग. तिणिवार । १८ ख. ग. जैसाहतणा । १६ ख. विस्तरे । ग. विस्तरे । वागि । २१ ख. दुहु । २२ ख. सजि । ग. सभि । २३ ख. डंबर । ग. डंब्बर । २४ ख. एकणिसा । ग. एकणि । २५ ग. साथि । २६ ख. ग. अनेक । २७ ख. पहा । २० ख. ग. पोहप | २८ ग. विस्तरै । डंबर ३ । विहत्तर | ४ ख. सांम्हां । ५ ख श्रावीयो । २८८. चतुरंग - सेना । वजित्र - वाद्य । जैसाह - सवाई राजा जयसिंह । २८६. महिपती - राजा उरड़ साहस गहमह - भीड़, समूह । तास- कपड़ा विशेष | पगमंडा - पांवडा । विस्तरै फैलाये गये । २६०. डंबर - हर्ष, उमंग, ( ? ) । कारंजां ( ? ) । विहत्तर - ठीक । धरहरं - ध्वनि करते हैं । पुहप - पुष्प, फूल । भणहणे- भौंरे गुंजन (ध्वनि) करते हैं । गुजारा - भौंरोंकी आवाज । Page #277 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५२ ] सूरजप्रकास छत्रपती साह' तदि' हुव छभा, छक रंग उच्छब' छोजिया । महपती दहूं मुकत्तीमहलि', वांणिकहूंत विराजिया ॥ २६० अँबर गुलाबी अतर, बँटे विध' विध जिणवारां । मँडे अधिक मनुहार, अमल वॅटि मुफर अपारां' । दोन राजावांरो अपणा सुभटारे साथ भोजन करणौ करै पांति'२ चौसरी, जरी तांणियां१३ सिमांनां । उठे'४ भूप आविया'५, थंभ दुहुँ ६ हिंदुसथांनां' । पांतियां'८ विराजे तांम पह, महा उछब गह मांनियां' । पनवाडि २ पात्र थंडे पवित्र, मँडे वडी3 महमांनिया४ * ॥ २६१ __चंडी भोग चत्रअसी, भात चत्रअसी पुहप२५ भर । पुड़ी अस्ट'८ परकार२६, अनै अाचार अपंपर । १ ख. ग. सहत। २ ख. ग. दुहुवै। ३ ख. उछव । ग. उछक । ४ ख. ग. छाजीया । ५ ख. ग. दुहुँ । ६ ख. ग. मुकतिमहल । ७ ख. विराजीया। ८ ग. अंतर । ६ ग. बंटे। १० ख. ग. विधि विधि। ११ ग. अणपारां । १२ ख. षांति। १३ स्व. ग. तांणीयां। १४ ख. उभै । ग. उठे। १५ ख. ग. प्रावीया। १६ ग. दुहू । १७ ख. ग. हींदुसथांनां । १८ ख. पांतीयां। ग. पांतीय । १६ ख. पोहौ। ग. पौहौ। २० ख. ग. उछव । २१ ख. ग. मांनीयां । २२ ग. पनवाड। २३ ग. कडे । २४ ग. महमानीयां । *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। २५ ख. पौहौष । ग. पौहोप। २६ ग. भरि। २७ ख. युडी। २८ ख. असट । ग. अष्ट । २६ ग. प्रकार । २६.. छत्रपती- राजा। साह – बादशाह। छभा- सभा। छक - हर्ष । रंग - प्रानन्द । छाजिया- सुशोभित हुए। मुकत्ती-महलि - मोतीमहल । वाणिकहूंत - शोभासे, सुंदरतासे । विराजिया - शोभायमान हुए । २६१. अंबर - एक सुगंधित वस्तु, यह हल मछलीकी अंतड़ियोंमें जमा हुअा एक पदार्थ है जो हिन्दुस्तान, अफ्रीका और ब्राजीलके समुद्री किनारे पर बहती हुई पाई जाती है । अमल - अफीम । मुफर - मनमें उमंग और उल्लास उत्पन्न करने वाला, वह औषध जो हृदयको आनदित करे, मुफरेह । पांति - पंक्ति । चौसरी - चार पंक्तियोंकी । थभस्तंभ - रक्षक । पांतियां - भोजन करते समय बैठने के लिये बिछाया जाने वाला कपड़ा। पनवाड़ि - ( ? ) । थंडे - एकत्रित किये गये। २६२. चडी भोग - मांस । चत्रप्रसी- चौरासी प्रकारके। भात - पकाए हुए चावल । अनै - और । अपंपर - अपार, असीम।। Page #278 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरज प्रकास पनरहं सत पकवान, पाक अड़तीस प्रमाण सरसा साग बतीस ', जियां संख्या बहु' जां ७ कनक" चौक" थाह कनक, सांमिल दहूं" नरेसुरां" । सासत्रां१२ जेम भोजन सतर, रीति आदि राजेस्वरां ॥ २६२ 3 ६ तांम छौळ' ८१४ घ्रततणी", वर्णै " ऊपरां बहौतरि" । छकै मसालां डमर 5, तकै सौरंभां अम्मरि" । १६ १ મ २३ जीमै पह इण जुगति, सहत भड़ थटां कवेसर ३ । २६ तवन सुजळ करि तई, पांन कप्पूरह कुण कहै पारवरणण सुकवि, जीमण तदि" वणिया बेर करै जोघांणनूं, कहौ तेण चिरज किसौ २८ £ इण'' उछाह 'अभमाल', स रहे केक दिन रचे, मिळे रचे एम. मचकूर, भुजा आपणां जिसौईज " ३४ करि जबत करां सोबा ४ महाराजा भैसींघजी र जैसींघजीरी श्रापसरी सलाह 3 a 3 - [ २५३ हाजर । २७ जिसौ" । O 'जैसाह' सकाजा । राजा महाराजा * । दिली भर । सर पद्धर । ३ ख. ग. छतीस । २ ख. ग. सरस । ६ ख. जांणे । ५ ख. कनक | १ ख ६ प्रमाणे । ४ ख. जीयां । बहु । ग. वहौ । ७ ग. कनक । ८. ग. चोक । ख. १० ग. दुहुँ । ११ ख. ग. नरेश्वरां । १२ ग. सास्त्रां । १३ ख. राजेश्वरां । १४ ग. छोळ । १५ ख. घततणी । १६ ख. ग. १८ ख. डंवर । ग. डंबरं । १६ ख. सोरंभा जोयें । ग. जीमे । २२ ख. ग. पौहौ । २५ ग. तद । २६ ख. वणीया । ग. वणियां । ग. श्रांमेर । २६ ग. तिण । ३० ग. किसो । ३३ ख. जेसाह । * यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । वणे । १७ ख विहौतर । ग. बहौतर । । २० ख. श्रंम्मर । ग. अम्मर । २१ व. २३ ख. ग. कवेसुर । २४ ग. कपूरह । २७ ख. ग. जसौ । २८ ख. मे श्रामेर | ३१ ख. ग. इम । ३२ ख. ग. सभे । ३४ ग. जिसोइज । ॥ २९३ २६२. सरसा - रसपूर्ण । कनक चौक - ( ? ) । थाळह - स्थाल, भोजन करनेका बड़ा बर्तन | कनक - स्वर्ण, सोना । नरेसुरां - नरेश्वरों, राजाओं । २६३. छौळ - प्रवाह, धारा । डमर - महक, सुगंध । तके - ताकते हैं । सौरंभां - सुगंध, महक । श्रम्मरि - देवता । तवन - ? ) । श्रचिरज - श्राश्चर्य । किसौ कौनसा । ( २६४. मचकूर - सलाह । ( ? ) । भर - भार, उत्तरदायित्व । पद्धर - सीधा । Page #279 --------------------------------------------------------------------------  Page #280 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २५५ छच्छौह' पायगछ छड़हड़ा, धुरा विरद करवत धरा । करि धाव जाव' इसड़ा तिकै', पाव घड़ी जोजन परा ।। २६६ महाराजा अभैसींघजी अर बखतसींघजीरौ माहोमाह मिळणी आरोहक अहड़ा, वेग आविया वछेकां । 'वखत वधाई व्रवी', उरड़ धन लहे अनेकां । आणंद सुणि अधिराज, मिळण आए सझि घूमर । हुय' सनेह बह'' हरख, सुपह इम मिळे पबैसर । तदि' जोड़ रांम लछमणतणी, विध" वांणक विसतारिया। बह कळस बांदि धर'६ रजत बह", पह' मेड़त पधारिया२२॥ २९७ _महाराजा अभैसींघजीरौ जोधपुर दिस आगमन सझे झळूसा साज, वाजराजां गजराजां। सझे ऊंच पौसोक२५, सरब विध ६ राज समाजां। १ ख. ग. छछोह । २ ख. ग. जाय। ३ ख. तिके। ग. जिके । ४ ख. प्रावीया। ५ ख. बषत। ६ ख. ग. ववे । ७ ग. लहै। ८ ग. प्राऐ। ६ ख. घुमर । ग. घुम्मर। १० ख. ग. होय। ११ ख. वहौ । ग. वोहो। १२ ख. पवैसर । ग. पवेसर । १३ ख. ग. तदि। १४ ख. ग. विधि। १५ ख. ग. वांणिक । १६ ख. विसतारीया। ग. विस्तारिया। १७ ख. वौहौ । ग. बौहो। १८ ख. वांधि । ग. वंदि। १६ ख. ग. धरि। २० ख. वोहो। ग. बौहौ । २१ ख. ग. पोहौ । २२ ख. ग. पधारीया । २३ ग. बीजराजां। २४ ग. सझ। २५ ख. पौसक। २६ ग. विधि । २६६. छच्छोह - तेज। पायगछ - ( ? )। छड़हड़ा- ( ? ) । धुरा- पूर्व, पहिले। विरद - विरुद । करवत धरा - भूमिको काटने वाला पारा, ऊंट । धाव - दौड़। जाव - जाना। २६७. आरोहक - सवार । अहड़ा - ऐसे। वेग - शीघ्र। बछेकां - ( ? )। वखत - बखतसिंह । वधाई - मांगलिक संदेश देने वालेको दिया जाने वाला पुरस्कार । ववी-दी। उरड़ - जोश। अधिराज - राजाधिराज महाराजा बखतसिंह। घूमर - दल । पबैसर - मानसरोवर । वाणक - ढंग, प्रकार । कळस बांदिवधाने वाली स्त्रीके शिर पर घरे हुए कलशका अभिवादन कर के। रजत - चांदी। पधारिया-पाये। २६८. मळूसां - जुलूसों, समारोहों। बाजराजां - घोड़ों । गजराजा - हाथियों। Page #281 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५६ ] सूरजप्रकास क्रसटवाळ' केसरां, करै' बह' चरू उकाळां । केसरिया बह करै, मसत उच्छब मतिवाळां । म्रगनाभ' अतर सौंधा'' प्रमळ'२, बँटि अरगजा वळोवळां । जदि चढ़े अनुज अग्रज गजां, हूतां हाल किलोहळां'५ ।। २६८ हळाबोळ६ चतुरंग, जळाबोळां केसरियां'८ । हाकां खंभायचां'६, डोह उच्छब. डंबरियां। अति घण२ मोला अतर, तई२४ म्रिगमद घण तन्नां । झोला सुगंध समीर, पड़े झोला जोजन्ना ८ । वाजंत तबल गाजंत गज, इम दळ हले अपालरौ । जोधाण दिस्स' चढ़ियौ जदिन, एम 'अभौ' 'अजमाल'रौ ।। २९६ १ ख. सटवाल । २ ग. करे। ३ ख. वहौ । ग. बहौ। ४ ख. चरूं। ५ ख. ग. केसरीयां। ६ ख. ग. बहो। ७ ख. करे । ८ ख. उछव । ग. उछाव । १ ख. ग. मतिवालां। १० ख. ग. मृगनाभ। ११ ख. सोघा। १२ ख. प्रवल । १३ ग. बंटि । १४ ख. वलोवलां। ग. बळोबळां। १५ ख. ग. कलोहळां । १६ ख. हलावोल । क. हलाबोल । १७ ख, जलावोला। क. जळाबोळां । १८ ख. ग. केसरीयां । १६ ख. भाइचां । क. भायकां । २० ख. ग. उछव। २१ ख. ग. डंबरीयां। २२ ख. घणा । २३ ख. ग. मूला। २४ ग. तेई। २५ ख. ग. मगमद । २६ ख. तत्रां। २७ ख. पडे। २८ ख. जोजन्न । २६ ग. बाजंत। ३० ख. अजमालरौ । ग. अभमालरौ। ३१ ग. दिसी। ३२ ख. चढ़ीयौ। ३३ ग. जदि । *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। २६८. क्रसटवाळ - ( ? ) । मतिवाळा - मस्त । म्रगनाभ - किस्तूरी। सौंधा - सुगंधित पदार्थ विशेष । प्रमळ – महक । वळोवळां - चारों ओर । अनुज - छोटा भाई। अग्रज - बड़ा भाई। किलोहळां - कोलाहल । २६६. हळाबोळ - बहुत, अपार । चतुरंग - सेना, दल । जळाबोळो - तरबतर, शराबोर । हाका- प्रावतां। खंभायचां- खम्माच रागिनी, यह मालकोश रागकी दूसरी रागिनी है। यह रातके दूसरे पहरमें पिछली घड़ी में गाई जाती है। डोह - आनंद । डंबरिया - बाहुल्यता, समूह। अति-धण-मोला - अत्यन्त बहुमूल्य । निगमद - कस्तूरी । तनां- (?)। झोला- प्रवाह । समीर - हवा । जोजनां - योजनों। अपालरी- बेरोकटोकका, अपार । दिस्स - तरफ, अोर । अभौ - महाराजा अभयसिंह । प्रजमालरी- महाराजा अजीतसिंहका । Page #282 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * डाक तबल मुरसलां *, चंद सूरजप्रकास हाक इतमांम गोळ बाजुवां, हुवै रंगराग ५ हुवे * चंम्मरां', नाद हुवै कोतल उछटां करै, नटां झपटा है" आवंत लोक सनमुख अनंत, करि सलांम नजरां आवियो " 'विभा' धरि " इंदरौ, 'अभौ " " उतनगढ़ श्रपरे ॥ ३०० झपट चंम्मरां', केसरियां दळ कमध, एम मुरधरपति आया । वंदि४ कळस वर तरणि, भार द्रब" कळस भराया । सिंगारे | .१५ १६ तोरण चित्र जर तार, सहर बाजार ७ १६ २३ वर" नौबति" वाजतां, महिल महाराज पधारे । जागियो २१ रळियांमणा । हुय हरख विमळ उच्छब ४ हुवै, मंगळ धमळ वधांमणी ।। ३०१ भाग जोधांणरौ, रंगराग - जसोलां' I हरोलां । पैनायक । । १ ग. जसौलां । * रेखांकित पद्यांश ख. प्रति में नहीं है । २ क. चंधि । ३ ग. बाजवां । ४ ग. हरौलां । ५. ग. हूँ । ६ ग. चमरां । ७ ख. ग. हुवे । ८ गवं । ग. निजरां । १० ख प्रावोयौ । ११ ख. ग. धरीयांस यंद | १२ ग. प्रभो । १३ ख. ग. केसरीयां । १५ ख. द्रव | ग. द्रव्य । १६ ख. तुरण । १७ ग. बर । १६ ख. ग. महलि । २० ख. ग. माहाराज २१ ख जागियो । ग्र. भागियो । २२ ख. रंगराज । २३ ख. ग. रळयांमणा । २४ ख. ग. उछ्व । १४ ख. ग. वांदि । १८ ग. नांबति । ३००. डाक - डंका, वाद्य विशेष | चंद तबल - वाद्य विशेष इतमांम - ( ? ) | जसोलां - यश-गायक । पीछे रक्षार्थ रहता हो चंदावल | गोळ - सेनाका बाजूमें। हरोलां - सेनाका अग्र भाग, हरावल | पैनायक - वाद्य विशेष । कोतल - जुलूस में अगाड़ी चलाया जाने वाला सजासजाया घोड़ा जिस पर कोई सवार न हो अथवा स्वयं राजाकी सवारीका घोड़ा । उछटां उछल-कूद, चंचलता । नटां-झपटां-है-नायक - ? ( ) । नजरां - भेंट | विभौ - वैभव, ऐश्वर्य । प्रभौ - महाराजा अभयसिंह | ३०१. तरणि- तरुणी, युवा स्त्री । भार समूह । द्रब- द्रव्य, धन । तोरण - वे मालाएं यदि जो सजावट के लिए खंभों और दीवारों आदिमें बांध कर लटकाई जाती हैं, बंदनवार | जर स्वर्ण, सोना, तार, चांदी | जागियो भाग जोधांणरौ - जोधपुर नगरका भाग्य खुल गया, वह अहोभाग्य या कृतकृत्य हो गया । रळियांमणा - आनंदपूर्वक, हर्षसहित, मनोहर । मंगळधमळ - मांगलिक गायन । वधांमणा - बधाईके गीत - नायक | करै । [ २५७ - मध्य । मुरसलां - वाद्य विशेष । सेनाका वह भाग जो सेना के भाग । बाजुवां - इर्द-गिर्द, झपट - चंवर डोलाने का झोंका । Page #283 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २५८ ] सूरजप्रकास सभि बतीस ' नव सात, मिळे सुकिया जुथ मेळा | चवै चंदवदन' सचेळा । वांणी कोकिल विमळ, हर वत्त* गायणी, करें उच्छब अधिकारां । महा ६ चित्रमिदरं वसे 'अभमल' जिणवारां । १ नवरँग सनेह प्राणंद" नव, उझळ " प्रफूल' रतिराज जोड़ नर" रज्जिए", महाराज મ १६ उदत निस वीती" आणंद ", श्रय गौख " मास, नरिंद निज राजतिलक मौसरां, फतै नागौर जदि जदि दीठौ तीसरी वार गढ़ सहर तदि, ईखे तीसरे बोल " जिसौ, उणां २८ २६ जेठात अधिक चढ़े 1 , .. ० - - उझाळ सूं'३ । अभमाल सूं" ।। ३०२ सूरज उणवारे । नगर निहारे ॥ ७ २ ख. सुकीया । ग. चंदवदनी । ४ ख. ३ ख चंद्रवदन । उछ्व । ७ ख. ग. संवेसन । ८ ख. १ ख ग छतीस । नृत । ग. नृति । ५ ख. करे । ६ ख. ग. ग. चित्रमंदिर । εग. वसै । १० ग. आनंद । ११ ख. उछन । ग. उत्छव । १२ ख. ग. प्रफुल । १३ ग. उझाळसौ । १४ ग. नह । १५ ग. रजीए । १६ ग. माहाराजा । १७ ग. प्रभमालसौ । १८ ख. विती । १६ ख. आनंदम । ग. श्रानंदमे । २० ख. ग. उदित । २१ ग. गोष । २२.ख. अम्मस । २३ ख. नागोर । २४ ख. फाई | २५ ग. दीठो । २६ ख. जिसे । २७. ख. वेण 1 ग. वैण । २८ ग. सहरि । २६ ख. वोल । ग. बौल । ३० ख चढ़े । ३१ ख. ग. अंम्मरां । २४ फबाई ४ । हूंता अधिकाई अडंबरां । रँग अंबरां" ।। ३०३ ३०२. सभि बतीस नव सात - बत्तीस प्रकार के आभूषण और सोलह प्रकारके श्रृंगार करके । सुकिया - स्वकीया, पतिव्रता । जुथ यूथ, समूह मेळा - मिलाप । चवै - कहती है । चंदवदन - चंद्रमुखी । सचेळा - गंभीर, गांभीर्यपूर्ण । नूतनृत्यका अधिकारांविशेष | महा चित्र मिंदरं महा चित्रमहल । श्रभमल महाराजा अभयसिंह । 3 अधिक नवरंग आणंद नव - नये ही आनंद और नवीन ही स्नेह से । उभळ - । प्रभमाल - प्रफूल - प्रफुल्लित । रतिराज - कामदेव । जोड़ - समानता अभयसिंह | - ३०३. निस - रात्रि । उबत उदय । प्रेमास - भवन, आवास । नरिद - नरेन्द्र, राजा मौसरां - श्मश्रुके बाल, अवसर। ईखे – देखा । श्रडंबरां - ग्राडंबर, शोभा, सजावट । बोल - वचन, शब्द । जेठातणे - जेष्ठके । - - उमड़ कर । महाराजा Page #284 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २५६ भड़ घड़जै' भूपाळ, कड़ा मोतियां' वधारां । असि सिरपाव अपार, दीध करि कुरब अपारां । सीख घरां दिस सझे, तवे इम हुकम तवांनां । सझि प्रावौ सामान, जदिन अखै परवांनां । जो हुकम कहै पगवंदि जदि, एम सुभड़ घर' आविया । कमधेस ताम मोती कड़ा, सघण जेम वरसाविया ॥ ३०४ कविराजा करि कुरब, तुरंग सिरपाव ववे तदि । समपे गज सांसणां, जड़ित नग कड़ा मुकत जदि । हेत नजर'* करि हरख, कहै ऊचरे' हुकम्मां । दै असीस विरदाय, करे सिल्लांम' कदम्मां'। हुय' विदा हले बह चित हरख, निज गुण कहत नरेसुरां। डहर्कत प्रथी'४ देखे हुँबर, राजेस्वरां१६ कवेसुरां ।। ३०५ जोख७ एम जोधांण, रीझ मंडे महाराजा । वागां गोठ वणाव, सझे२८ उच्छाह ६ सकाजा। १ ख. ग. पूज। २ ख. मोतीयां। ३ ग. कर। ४ ख. ग, उदारां। ५ ख. दिसि । ६ ग. तवै। ७ ख. प्रायो। ८ ख. ग. सामांन । ख. कहे। १० ख. ग. घरि । १: ख. प्रावीयां। १२ ख. वरसावीया। १३ ख. मुगति । ग. मुगत । १४ ख. तदि । १५ ग. निजर : १६ ख. कहे। १७ ख. उच्चरे। ग. उच्चरै। १८ ख. ग. दे। १६ ग. सिलाम। २० ल. कदमां । ग. कदमां। २१ ख. ग. होय। २२ ख. हल्ले । २३ ख. वहौ। ग. बहौ। २४ ख. ग. प्रिथी। २५ ख. डंमर। २६ ख. ग. राजेसुरां। २७ ख. ज्योष। ग. जोष। २८ ग. सझे। २६ ख. ग. उछाह । ३० १. घड़जे - घड़ाते हैं। वधारां- विशेष, जागीर । दीध - दिये । कुरव - प्रतिष्ठा । तवे - कहा। तवांनां – नुकसानका मुग्रावजा, क्षति-पूर्ति तावान । सझि - सुसज्जित होकर । परवानां - हुवम, आज्ञापत्र । जो हुक्म - जैसी श्रीमान्की आज्ञा हो। सुभड़ योद्धा । कमधेस - राठौड़ राजा। सधण - घन, बादल, यहां इंद्र अर्थ ठीक बैठता है । ३०५. तुरंग - घोड़ा। वे – दिये। सांसणां - राजा द्वारा चारणोंको पुरस्कारमें दी गई भूमि या गांव । जड़ित - जटित। मुकत - मोती, मुक्ता। असीस - प्राशीष । विरदाय - विरदा कर । डहकंत-हक्का-बक्का होता है। डंबर - (डंमर) वैभव । राजेस्वरां- राजारों। कवेसरां- कवीश्वरों । ३०६. जोख - आनंद, हर्ष । रोझ - दान, पुरस्कार । Page #285 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] सूरजप्रकास रचै रौस' रौसरी, कळा बहतरि अधिकारां । रमै कमंध राजिंद्र', रौस रौसरी सिकारां । जेठी कुरंग मदझर जुट, होय' इनांमां हुन्नरां । क्रीड़ा विलास विधविध करै, अभी 'इंद'' पाडंबरां ॥ ३०६ जळ चादर धरहरां, जोख वागीचां जोवै । रँग चौगांनां रमें, हरख औछब नित होवै । रमै वसँत राजद', पतंग चरखां'' अप्पालां१२ । केसर छौळ'४ अबीर, गूंज'५ डंबरां गुलालां । मंजलसां खास चौकी मँडै ६, अतर गुलाबां अंबरां । क्रीळा' विलास विधविध८ करै, 'अभौ'६ इंद' आडंबरां ।। ३०७ महाराजा अभैसींघजीरो अहमदाबादरै जुध सारू प्रापरा सामंतांनं फुरमाण भेजणा विधविध १ भोग विलास, करै२ उच्छब२3 कौतूहळ । पछ किया छत्रपती'५, विदा फुरमांण चहूंबळ । १ ख. चौसरांस। २ ख. राजेंद्र। ग. राज्यद्र। ३ ग. होय । ४ ग. हुंन्नरा । ५ ख. ग. विधिविधि। ६ ख. ग. इंद्र। ७ क. जौष। ८ ख. ग. उछव। ६ ख. नित्य । १० ख. ग. राज्यंद। ११ ख. ग. पिचरकां। १२ ख. ग. प्रपालां। १३ ख. ग. केसरि। १४ ख. ग. छोळ । १५ ख. डंझ। ग. डूंझ। १६ ख. ग. मडै । १७ ख. क्रीडा। १८ ख. विधि। १६ ग. प्रभो। २० ख. ग. इंद्र। २१ ख. ग. विधिविधि । २२ ख. करे। २३ ख. ग. उछव। २४ ख.ग. कीया। २५ ग. छत्रपत्ती। ३०६ रौस - ( ? ) । राजिंद्र - राजेन्द्र, महाराजा। जेठी- पहलवान । कुरंग - घोड़ा ( ? )। मवझर - हाथी। क्रीड़ा - खेल। अभौ - महाराजा अभयसिंह । इंद इन्द्र । आडंबरां - वैभव, ठाठ । ३०७. धरहरा - आवाज, ध्वनि । रंग - अानंद । प्रौछब - उत्सव । चरखा - कनकोनाका ___ डोरा लपेटनेका उपकरण। छौळ - धारा । गूंज -( ? )। डंबरां - समूह । मजलसां - मजलिसों, सभाओं। अंबरां - अंबर नामक सुगंधित पदार्थ। क्रोळा - क्रीड़ा, आनंद। अभी - अभयसिंह । प्राउंबरां-वैभव, ऐश्वर्य । ३०८. विदा - रवानगी, प्रस्थान। फुरमांण – फरमान। चहूंबळ - चारों ओर । Page #286 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६१ वांदि' वांदि फुरमांण, सिलह पाखर करि सांमां । आय' सबै उमराव, सूर बह' मिळे समांमां । दळ चढ़े पूर सामंद्र दुति, कमंध दरगह कामरा । फिर मिळे पदम अड्ढ़ार कपि, रांवण मारण रामरा ॥३०८ __ठांम ठांमसू मारवाड़रा सामंतारौ जोधपुर में एकठौ होवणौ हुकम वजीरां हुवा, करौ लसकर अधिकारां । तर कलमां दफतरां, हुवै अनेक हजारां । रहै लोक अणपार, हुवै घूमरां मुहल्लां' । आवै रहै अनेक, भड़ज१२ भड़ भल्ला भल्लां'३ । दादनी उरड़ झड़ मँडि दरब, मिळे'४ सबळ दळ मांमरा । किर'५ मिळे पदम अड्ढ़ार कपि, रावण मारण रांमरा ॥ ३०६ दळ बादळ बळ देखि, मगज ६ धरि भूप महाबळ । तांणि मूंछ खग तोलि, हुकम इम दीध' झळाहळ । १ ग. बांदि बांदि। २ ख. आप । ३ ख. ग. प्राय । ४ ख. वहौ । ग. बहौ । ५ ग, मिले। ६ ख. ग. सामंद। ७ ख. किरि। ग. करि। ८ ख. मिले। ६ ख. अढ़ार । ग. अढार । १० ख. ग. उजीरां । ११ ग. महल्ला। १२ ख. ग. भिड़ज । १३ ग, भला भला। १४ ख. ग. मिल। १५ ख. किरि। १६ ख. मगध। १७ ख. ग. कीध। ३०८. सिलह - कवच । पाखर -युद्ध के समय घोड़े या हाथीको पहिनाई जाने वाली झूल, हाथी या घोड़ेका कवच । सांमां - सामान या सुसज्जित । समांमां - अनुकूल। दुति - धुति, प्रकार, ढंग, ( ? )। दरगह – दरबार । किर - मानों। पदम - गणितमें सोलहवें स्थानकी संख्या, पद्म, जो इस प्रकार लिखी जाती है १०००००००००००००००। कपि- वानर । ३०६. वजीरां - मंत्रियों। लसकर - सेना, फोज। तर.........हजारां-( ? )। घूमरां - दलों। मुहल्लां - मोहल्ला, कूचा। भड़ज - घोड़ा। भड़ -- योद्धा । भल्ला भल्लां - बढ़िया से बढ़िया, एकसे एक उत्तम । दादनी- धन्यवाद की ? उरड़ - अधिक, बहुत, समूह । झड़ - निरंतर होने वाली वर्षा । दरब - द्रव्य, धन-दौलत । मामरा- ( ? )। ३१०. दल-बादल - एक प्रकार का बहुत बड़ा तंबू या खेमा। मगज - गर्व । तांणि...... तोलि - मूंछ पर ताव देकर हाथमें तलवार उठा कर । दीध-दिया। झलाहलरोबपूर्ण, जोशपूर्ण। Page #287 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ] सूरजप्रकास हुजदारां' आपरां, वेग ताकीद करावौ । दखिण गुजराति' दिसा, पेसखांना पधरावौ । फौजरौ सामान लेजाण वाळा ऊंटारो वरणण सिर वंदि' हुकम तिण हिज' समें, दिया' कारखांनां दुवा । कत्तार भार-वरदार कजि, हुकम सारवांनां हुवा ।। ३१० बुगर बलौच बँबाळ, जूंग जाळोरी' जब्बर । अजगर कंध अझीझ, भ्रगुट" मुदगर भैराहर। जोल'' खंभ देवळा १, कमठ ईडर कठठंता । घण भरतां जळ घाट, माट जैही'२ कठठंता'3 * । १. ख. ग. दुजदारां। २ ख. वेगि। ३ ख. करावो। ४ ख. ग. गुजरधर। ५ ख पेसषांनो। ग. पेसषांनां । ६ ख. पधरावो। ७ ख. वांदि। ग. बांदि। ८ ख. ग. होज । ६ ख. ग. दीया। १० ख. जालौरी। ११ ग. जबर। १२ ख. ग. अझोझ । . १३ ख. ग. भृगुट । १५ ख. मुरगर । १७ ग. भेराहर। १८ क. जौल। ग. जोळ । १६ ग. देवळां । २० ग. जेही। २१ ग. मटठता । * यह पंक्ति ख. प्रति में नहीं है । ३१०. हुजदारां- ( ? ) । वेग - शीघ्र। ताकीद – शीघ्रता । पेसखांना - सेनाका वह सामान जो पहिले ही उसके अगाड़ी भेज दिया जाता है, पेशखेमा । पधरावीभेज दीजिये। कारखांनां - सरकारी विभाग, महकमा। दुवा - दुपा प्राज्ञा, हुक्म । भार-वरदार - भारवाहक । कजि - लिये। सारवांनां - शूतर-सवारों। ३११. बुगर - एक प्रांत विशेष जहांके ऊंट बढ़िया होते हैं अथवा इस प्रांतका ऊंट । बलौच - बिलोचिस्तान या बिलोचिस्तानका ऊंट। बंबाल - तेजस्वी, तेज। जूग - ऊंट । जाळोरी- जालोर प्रांतका। जब्बर - जबरदस्त । कध - कंधा, स्कंध । अझीझ - बड़ा। भ्रगुट - मस्तक । मुदगर - काठका बना एक प्रकारका गावदुमा दंड जो मूठकी ओर पतला और प्रागेकी ओर कुछ भारी होता है । पहलवान. इससे कसरत करते हैं। भैराहर - कुएसे जल सींचनेका गिरीरा जिसे चाकला भी कहते हैं । इसकी ऊंटके शिरसे उपमा दी जाती है। जोल -पैर । देवला - देवालयों। कमठ - कच्छप। ईडर - ऊंटके वक्षस्थलका अवयव विशेष जहांकी चमड़ी खुरदरी एवं कठोर होती है। कठठता – जोशपूर्ण चलता हुआ, बोझके कारण ध्वनि विशेष करता हुआ। Page #288 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६३ मजबूत' धूम- डाचा मगर, जियां पूंछ करवत जिसा । झोखियां' सिंधु' नुखतां झटकि, अंध कंध राकस इसा ॥ ३११ नवहत्थो झोकरा, *मसत फीफरा भरारा। बगलां उरळी बिहूं, बगलि नीकळे छिकारा*। रँग केइक रातड़ा, भसम —हर भमराळा । जटा जूट ऊजळा, केइक भूरा केइ काळा । मिळि रीछ रूप अधियांमणा", जकस'२ जिहाजां जम जिसो । झोकियां सिंधु'४ नुखतां झटकि, अधकंध राकस इसा ।। ३१२ रब्बारां'५ थप्पले'६, घग्घ१७ पाकेट भयंकर । नेसां चसळक नयण, झाळ झागूडां नीझर । १ ख. जमबूत । ग. मजबूत। २ ख. थूड। ग. थूभ । ३ ख. झेकीया। ग. झेकिया। ४ ख. सुंध । ग. संध। ५ ख. ग. नवहथी। ६ ग. मसक । *...* रेखांकित पंद्यांश ख. प्रति में नहीं है । ७ ग. नाकले। ८ ग. बिकारा। ख. ग. भंभराळा। १० ख. ग. के। ११ ख. ग. अध्रीयांमणा। १२ ख. ग. जकसि। १३ ख. झेकीयां। १४ ख. ग. संध। १५ ख. रेवाला । ग. रेवारां। १६ ख. थापले । ग. थापल। १७ ख. ग. घघ । ३११. धुंभ - कोहान, डिल्ला। मगर - घड़ियाल नामक प्राणी । डाचा - मुख, खुला मुख । जियां - जिन । झोखियां - ऊंटको बैठाने पर। सिंधु-ऊंट, ( ? )। नुखतां - ऊंटका नाकसे बांथनेकी रस्सी, मोहरी। झटकि – झटके के साथ खींच कर । ३१२. नवहत्थी - नो हाथ लंबा। झोकरा - ऊंटके बैठने के स्थानका । मसत फोफरा-भरारा वह इतने मस्त हैं कि उनके फेफड़े फूले रहनेसे मुखकी आवाज भर्राई सी होती है। बगलां - ऊंटके दोनों अगले पैरोंके पासका वह स्थान जहांसे वे ऊंटके धड़से मिलता है। उरळी - चौड़ी। बिहूं- दोनों । छिकारा - (खरगोश ?) । रातड़ा - लाल । भसम - भस्मीके समान रंगका। हर - अाकाशमें बाहुल्यतासे छा जाने वाले रज-करण या इस प्रकारके छा जाने वाले रज-काके रंगके समान रंगका। भमराळा - भ्रमरके समान रंगका। जटा जूट - घने बालों वाला । ऊजळा - सफेद रंगका। काळा – श्याम रंगका। अधियांमणा - भयंकर। जकस - ( ? ) । जिहाजां - जहाजों । झोकियां - ऊंटोंको भूमि पर बैठाने पर । ३१३. रब्बारां - रेबासे राजस्थानकी एक जाति विशेष जिसका प्रमुख कार्य ऊँट रखने और चरानेका होता है। थप्पले – पीठ पर थपेड़े देकर जोश दिलाता है। घग्घ - ऊंट । पाकेट - ऊंट। नेस - ऊंट के दांत । चसळक - मस्तीमें पाए हुए ऊंट द्वारा अपने मुंहको चलाते हुए की जाने वाली दांतोंकी ध्वनि विशेष । झाळ - तेज । झाडांफेन । नीझर - निकलते हैं। Page #289 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] सूरजप्रकास आका रीठ कुरीठ, वयँड छोडे' वेछाड़ा । इसा दीठ अवनाड़, पीठ ले हलै पहाड़ां । कत्तार भार भर कठठिया', करै गाज झंझट करै । हालिया जांणि सांमंद्रहूं, भाद्रव वादळ जळ भरे' ॥ ३१३ ऊंटांन बैठा कर सामान उतारणौ अर तंबू तांणणा कठठ भार झेकिया'', घग्घ'३ राकस घाटंबर । उतारिया3 अप्पार, पेसखांना पाटंबर । करे नजर'५ भर कंत, फजर तजबीज फरासां । जळ डंबर तर जूथ, चौक' धर सम' चौरासां । मेखां निहाव पड़ि मेखचां, ताळी तजे तपेसरा'८ । धर धूजि' धमक' विसहर धुकै", सहस धुकै २२ फण सेसरा ॥ ३१४ तांण२३ सरद चवतरफ, करे तजबीज कनातां । कनक झळाहळ कळस, वणे बंगळा वनातां । १ ख. जोड। ग. झोडे । २ क. बेळाडां। ३ ख. यसा । ४ ख. कठटीया। ग. कठठीया। ५ ख. करे । ६ ख. ग. करे। ७ ख. हालीया। ८ ग. जांण। ६ ख. भाद्रवि । १० ग. भरै। ११ ख. झेझीया। १२ ख. ग. घघ । १३ ख. उतारीया। ग. उत्तारिया। १४ ख. ग. अपार । १५ ग. नजरि। १६ ख. ग. चौकि । १७ ख. समै । १८ ख. तपैसरां। १६ ख. धूज । २० ख. ग. धमकि । २१ ग. धूक। २२ ग. धूक । २३ ख. ग. तांणि । २४ ग. चौतरफ । ३१३. आकारीठ - जबरदस्त । कुरोठ - भयंकर । वयँड - हाथी। वेछाड़ां - उदण्ड, मस्त । दोठ - दृष्टि । अवनाड़ - जबरदस्त। गाज- गर्जना । झंझट - बखेड़ा। भाद्रव - भादो मास। ३१४. झेकिया - ऊंटोंको भूमि पर बैठा दिये । घग्घ - ऊंट । राकस - राक्षस । घाटबर - प्रकार, ढंग। पाटंबर - वस्त्र, रेशम । डंबर - शराबोर । तर -वृक्ष । चौरासांचारों ओरसे । सम - समतल । निहाव - प्रहार, चोट। मेखचा - खूटी ठोंकनेकी मुगरी, मेखचू । ताळी - ध्यानावस्था, समाधि । तपेसरां - तपस्वियों। धर - भूमि, धरा। धमक - प्रहार, चोट । विसहर - विषधर, सर्प । धुकै - ( ? ) । सहस - सहस्त्र । सेसरा - शेषनागके। ३१५. सरद- ( ? ) । चवतरफ- चारों ओर। तजबीज - बंदोबस्त, तजवीज । कनातां - मोटे कपड़ेकी वह दीवार जिसे किसी स्थानको घेर कर आड़ करते हैं। बंगळा - हवादार छोटा तंबू । Page #290 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६५ तण' पचरंग तणाव, गडे' मेखां त्रंबागळ । वंस' रजत सोवन्न', वणै डेरा दळ वादळ । . महराबदार मँडिया मँडप, ज्वाब ज्वाब ऊपर जुवा । दखिणादि धरा गुजरात दिस', हुवै हुकम डेरा हुवा ।। ३१५ करि गुलाब छड़िकाव'", जरी' रावटी जगामग'२ । झोलरियां' मोतियां, तिलाकारी'५ पड़दा चिग । मंडप तह मुखमुलां', खड़ग गहि बाला खांनां । जगमग खंभ जड़ाव, मॅडे जरदोज'८ समांनां । गिलमा विछायत मसदा गरक, परतकिया 'धर प्रेमरा। जगमग जड़ाव वणिया जठे, हेम तखत छत्र हेमरा ॥ ३१६ डेरारी वरणण इम डेरां आपरां, और२3 डेरा उमरावां । प्रगट व्यास प्रोहितां, कांमदारां कविरावां । १ स्व. तणि । २ ग. गजे। ३ ख. ब्रांवागल । ग. त्रांबागळ । ४ ख. ग. वांस । ५ ख. ग. सोवन । ६ ख. ज्वाव ज्वाव । ग. ज्वाब ज्वाब । ७ ख. ग. ऊपरि। ८ ख. दषिणाध । ९ व. ग. दिसि । १० ख. छडकाव । ग. छिडकाव । ११ ख. ग. जड़ी। १२ ख. ग. जगमग । १३ ख. झल्लारी। ग. झलारी। १४ ख. ग. मोतीयां। १५ ग. चिलाकारी। १६ ख. ग. मुषमला। १७ ख. वाला। ग. बालां। १८ क. जरदोज। १६ ख. ग. विछाति । २० ख. मसंदा । २१ ख. ग. कोया। २२ ख ग. धरि । २३ ग. ओर। ३१५. तण - खींच कर । तणाव - वे रस्सियाँ जिनके सहारे तंबू खड़ा किया जाता है। अंबागळ - ताम्रकी ( ? ) । मंडिया - बनाये गये। मॅडप - बहुतसे आदमियों के बैठने या ठहरनेके लिये चारों ओरसे खुला परन्तु ऊपरसे छाया स्थान । ज्वाब ज्वाब - ठीक स्थान पर, जा-बजा। जुवा-पृथक, भिन्न । ३१६. राघटी-कपड़े का बना एक प्रकारका छोटा डेरा जिसके बीच एक बंडेर होती है और जिसके दोनों ओर दो ढलुएं पर्दे होते हैं। यह बड़े खेमोंके साथ प्रायः नौकरों आदिके ठहरने के लिये लगाये जाते हैं, छौलदारी। जगमग- चमक-दमक । तिलाकारी-- सुनहरी कामदार । चिग - चिलमन । समानां - सामियाना, तंबू । मसदांबड़े तकिए, गोल तकिए। Page #291 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६६ ] सूरजप्रकास मिसल मिसल ऊपरा', डहे लरी' भर' डंबर । . वसँत जांण वनपत्रां', भार अड्ढ़ार पुहप भर । जोगणतणे सोसनं'' जरद, असपक तणिया'२ ऊजळा । सांमणे जाण'3 रँगरँग सिखर, वणे प्रांण" चहुंवै१५ वळा ।। ३१७ जुघरा सामानरो वरणण सीसा भार सतोल, भार बांणां गाडाभर । गंज'६ भार गोळियां', भार गोळां भैराहर । भार सोर भातड़ां ८, सूत सिलहां सांमांनां । - सरब भार सिरताज, भार पुरकार खजांनां । धर भार अराबां अरण-धज, *बेला हमलां बारणां। धुर भार सकट कट्टठ' धमळ* * *, भार बांण भारथरणां' ॥ ३१८ तोपांरी पूजा अर तोपारो वरणण साक पाक करि सुजळ, मात कहि कहि महमाई२५ । तेल धार२६ ततकाळ७, चाढ२८ मद-धार चढ़ाई। १ ग. उपरा। २ ख. लहरी। ग. लहरि । ३ ख. भरि। ग. करि। ४ ख. डब्धर । ५ ख. जांणि । ६ ख. ग. पनपती। ७ ख. ग. अठार । ८ ख. पोहोप । ग. पहौप । ६ ग. सर। १० ख. ग. जोगणेतणे। ११ ख. ग. सौसन । १२ ख. ग. तणीया। १३ ख. ग. जाणि। १४ ख. ग. आणि। १५ ख. ग. चहुवै। १६ ख. ग. गज्ज। १७ ख. गोलीयां । १८ ख. भाडों । ग. भाथड़ां । १६ ग. सिलह । २० ख. सामानां । ग. सामांनां। २१ ग. कठटे। २२ ग. धवळ । २३ ख. ग. भाथारणां । ___ *...* चिन्हांकित पद्यांश ख. प्रतिमें नहीं है।। २४ ख. कदि। २५ ख. माहामाई। २६ ग. धारि । २७ ख. ततकाळि । १३ ख. चाटि । ग. चाढ़ि। ३१७. मिसल - पंक्ति । उहे - ( ? )। डॅबर - ( ? ) । भार अड्ढ़ार - अष्टादश भार । असपक - खेमा, तंबू । सांमणे - श्रावण मासमें । शिखर - बादल । चहुवै वळा- चारों ओर । ३१८. सोसा- सीसक नामक मूल धातु जिसकी बंदूककी गोलिएँ भी बनती हैं। गंज- ढेर । भैराहर - ( ? ) । सोर - बारूद । भातड़ा-थैलों, तर्कशों। सिलहां - कवचों, अस्त्रशस्त्रों। अराबां - तोपों। प्ररणधज बेलां - प्रातःकाल । हमला- हमालों। कट्ठठ - ध्वनि विशेष । धमळ - बैल । ३१९. महमाई - महामाता, देवी, दुर्गा । मद-धार - शराबकी धार। Page #292 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६७ बलि' चाढ़े बोकड़ा', रुधर भैसड़ा जरूरं । वदन चोळ करि विखम, लोह कांबियां सिंदूरं । धुबितबल बंब' उडि अरणधज, हले' धमळ हुय"२ हळवळी। हाथियां' टिलां बेलां४ हमल, हठां नीठ कठठे'५ हली ॥ ३१६ कठठं जूट रहकलां, जूट' नाळियां'८ जंबूरां । रथ वलां रैवत्त, भार पडतल भरपूरां । पंथ लगस पैदलां, सबद घण सोर सुराबां'। धमळ कोडि बाळदां', गोड़ि गजराज गुराबां । तिण दिन वहीर डेरां तरफ, हाल कळोहळ करहली । निध सुजळ जांणि'६ नवसै नदी, एकण साथे ऊझली ॥ ३२० हाथियोंका वरणण मदतळ डांणां मसत, झर झरणां गिर नीझर । अन चारा तजि अरध, पिय८ तड़कां नीरोवर । १ ख. ग. वलि । २ ख. वोकडा। ग. बौकड़ा। ३ ख. ग. जरूरां। ४ क. चौळ । ५ व वोल। ग. बोळ । ६. ख. ग. कांवीयां। ७ ख. ग. सिंदूरां। ८ ख. धुवि । ६ ख. तवल। १० ख. वंव । ग. बंच । ११ ग. हके। १२ ख. ग. होय । १३ ख. हाथीयां। १४ ख. ग. वेलां। १५ ख. ग. कठटे। १६ ख. ग. कठट। १७ ग. जूटि । १८ ख. नालीयां। १६ ख. जंत्ररां । २० ख. रेवतां । ग. रेमंतां। २१ ख. सुरावां। ग. सराबां। २२ ख. वादलां। ग. बळधां। २३ ग. बहिर । २४ ख. ग. करिहली। २५ ख. ग. निधि । २६ ग. जाण । २७ ख. ग. उझली। २८ ख. पोए। ग. पीएं। ३१६. बोकड़ा-बकरा। भैसड़ा- भैसा । चोळ - लाल । विखम- भयंकर । धुबि-बज कर । तबल – वाद्य विशेष। बंब - नगाड़ा । अरणधज - अरुण ध्वजा, युद्धका झंडा । हळबळी - कोलाहल, आवाज । हमल - धक्का, टक्कर । नीठ - कठिनतासे । हाली- चली। ३२०. रहकळो - छकड़ा जिस पर बहुतसी बंदूकें लगी होती हैं। जूट -( समूह ? ) । जंबूरा-एक प्रकारकी छोटी तोप। वहल -बैल गाड़ी। रेवंत-घोडा। पडतलसामान, सामग्री। लगस - लंबायमान सेनाकी टुकड़ी। सुराबां - बारूद. ( ? )। गुराग - तोप विशेष। वहीर - प्रस्थान, रवाना । हाल - ध्वनि । निध सुजळ - समुद्र । ३२१. मद-तळ - हाथी। डांणां - हाथीके कंधेका मद । तड़का - तड़ागों, तालाबों । नीरो वर – जल, पानी। Page #293 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ । सूरजप्रकास डग' बेड़ियां' दुलट्ठ', लगां चहुंवां' पग लंगर । अाकासी सारसी, करै अग्राज भयंकर । भभरूत रजी धोसर भसम, काळदूत चख झाळ किध । बनि बसै भूतकाळा वयंड, वनखंडी अबधूत'' विध'' ॥ ३२१ छच्छ' २ मास छाकियां'३, हुवा डाकियां४ हठीलां । प्रचंड नील जमि पीठ, निलै त्रसळे जमि नीलां। सघण गाज' जिम सुणे", गाज मदमसत गयंदा । सादूळौ सिर पटकि, मरै संगार'८ मयंदां । करि फौतकार' झुक्कै कहर, चाढ़ि सूंड फण चाचरै । सिखराळ गिरँद चढि जांणि' स्रप२२, काळदार झाटक करै ।। ३२२ घणा इसा घेरिया२३, भचकि२४ करि गडां५ भयंकर । बैंठ बैठ बोलतां, नीठ बैठा जोरावर । १ ख. उग। २ ख. वेडीयां । ग. बेडीयां। ३ ख. दुछु । ग. दलव । ४ ख. लना। ५ ख. ग. चहुवै । ६ ख. ग. पानाज। ७ ख. ग. धूसर । ६ ख कीध । ६ ग, वलि। १० ख. ग. अवधूत । ११ ख. ग. विधि । १२ ख. छछ । ग. छछ। १३ ख. छाकीयां । १४ ख. डाकीयां। १५ ख. ग. त्रिसल। १६ स्व. जाग। १७ ग. सुणे। १८ ख. ग. सिणगार। १६ ग. फूतकार। २० ख. ग. झूक। २१ ग जांण । २२ ख. ग. श्रप। २३ ख. घेरीया। २४ ग. भचक । २५ ग, गढ़ा । ३२१. डग - हाथीके पिछले पैरोंको बांधनेका रस्सेका बन्धन विशेष । चहुबां - चारों परोंमें डाली जाने वाली जंजीर। सारसी - हाथीका मस्ती या जोशमें ग्राकर अपनी सूंडको उठा कर घुमाना । अनाज – गर्जना । भभरूत - जोश या आवेगपूर्ण । रजी धूलि। धोसर - धूलिमिश्रित । बयंड - हाथी। .. ३२२. छच्छ - छः-छः । छाकिया - मस्त । डाकिया - ( डाकी, मोटे ? ) । निल - ललाट । त्रसळे - क्रोधादि के कारण ललाटमें पड़ने वाली तीन सिकुड़न । सादूळौ - शार्दल, शेर । मयंदां - हाथी। फौतकार - सांप, बैल, हाथी प्रादिकी फूत कार । चाचरै - मस्तक पर, ललाट पर । सिखराळ - शिखर वाला। सप काळदार - कृष्ण सर्प । झाटक - सांपके फनका प्रहार । ३२३. घरणा - बहुत । भचकि – ( ? ) । गडा - गंडस्थलों (?) । Page #294 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६६ कलां' जळां सँपलाय', तेल प्रांमलां चढ़ावा । कलां जडेकांटिया, कलां बांधिया' किलावा । कल हूंत तिलक सिर काढ़िया, प्रगट धनख जिम पावसां । कज्जल पहाड़ झळ मँगळ किध, जांण" सिधां अमावसां ॥ ३२३ रसां भीड़'' रेसमां, झूल घुटवीर झळारी । परां गदीलां परठि, धरां१२ चाचरां अंधारी। जोख नोख गुलजार, कलाबूतां१३ वणि कम्मळ१४ । तरह काम तारीफ, हौसनायक झाळाहळ१५ । जगमगत फूल जरदोज।१६, वयँडां' पीठ'८ वखांणिया' । अंधार निसां जांणे वरस'", तारामंडळ१ तांणियां ।। ३२४ महावतारौ वरणण नट कछनी करि निहंग, धरे अंगरखा बहादर । जमदाढ़क गज वाग १, कसे सहटी कर कम्मर । m १ स्व. कडां। २ ख. ग. संपडाय। ३ ख. जले। ४ ख. ग. कांटीयां। ५ ख. ग. बांधोया। ६ काढ़ीया। ७ ख. ग. धनक । ८ ख. ग. कझ्झल। ६ ग. मझळ । १०. ख. ग. जांणे। ११ ख. ग. भीडि। १२ ख. ग. धरे । १३ ख. कलावूलां । १४ ग. कमळ । १५ ग. झळाहळ । १६ ख. ग. जरदोजरा। १७ ख. वयंदां। १८ न. ग. पीठि। १९ ख. ग. वांणियां। २० ख. ग. उरस। २१ ग. तारामंडलि। २२ ख. तांणीयां। २३ ग, नींहग। २४ ख. ग. वहाधर । २५ ख. वाघ । ग. बाघ । २६ ग. कमर । ३२३. संपलाय - स्नान करा कर । काटिया - हुक्क । कलां - कलासे, चतुराईसे । किलावा -- हाथोके गले में पड़ी हुई कई लड़ोंकी रस्सी जिसमें पैर फंसा कर महावत हाथीको हांकता है। धनख जिम पावसां - मानो वर्षाकाल में इन्द्रधनुष । मंगळ - आग, अग्नि। ३२४. रसां - रस्सों । भीड़ - कस कर, बांध कर। घंटवीर - वीरघंट। परां ( ? ) । गदीला - गद्दों। अंधारी- हाथीके कुंभस्थल पर डाला जाने वाला प्रावरण। कम्मळ – मस्तक, शिर। (?) । वयँडां- हाथियों। वरस - उरस, अाकाश। तांणिया - खींचे। ३२५. कछनी - घुटनेके ऊपर तक पहिना या कसा जाने वाला वस्त्र विशेष । निहंग ( ? )। जमदाढ़क – कटार । गज वाग - हाथीका अंकुश। सहटीं- दृढ़, मजबूत । कम्मर - कटि। Page #295 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७० ] सूरजप्रकास आडि' पेच' करि अडिग', पाघ पर धर हम्मां पर । लाज' विरज' ताईत, जंत्र' मुहरा" सिर ऊपर । इम सजे साज मुख करि अरण, जांण सीह हकालिया । सुत बळ बँधाय कहि कुळ कसब'', चढ़ण' २ महावत चालिया ॥ ३२५ कहै कुरांण कतेब, उरह' हुय'६ डम्मांडम्मां" । पैकंवरां पुकारि, मिळे'८ साजणां कुटम्मा । सूरज करे° सलाम, भिड़े मौसरां१ भुंहारे । काय लियूं3 ईनांम, काय जमधाम विचारे । नजरां चुकाय२६ गज्जन निजर८, तके पीठ पासण तठी। दौड़िया लियण नट दौवड़ी६, जांण पट्ट ' मंडिया २ जठी ।। ३२६ छगां छगां धरि नगां, चढ़े पासणां महावत । राह रूत रवि पूत५, धूत थापलिया ६ धूरत । १ ख. प्राडि । २ ग. पेट । ३ ख. ग. अडग । ४ ख. जाल । ५ ख. ग. वरज । ६ ग. जांत्र । ७ ख. ग. मौहरा। ८ ख. ग. सझे। १ ख. जांणे। १० ख. हकालीया । ११ ख. किसव । ग. कोसब। १२ ग. चढ़त। १३ ख. चालीया । १४ ख. ग. कहे । १५ ख. ऊचर । ग. उबर । १६ ख. होय । ग, होइ। १७ ख. डमाडवा । ग. डंमाडंबा । १८ ग. मिले। १६ ख. कुटंवां। ग. कुटंबां। २० ग. करे। २१ ख. ग. मौसर । २२ ख. भौहारे । ग. भौहार। २३ ग. लीयू। २४ ख. ग. इन्नांम। २५ ग. विचारै । २६ ग. चकाय। २७ ख. ग. गज। २८ ख. ग. निजनजर। २६ ख. ग. दोवडी। ३० ख. जाणि। ३१ ख. पट्ट। ग. पटि। ३२ ख. ग. मंडीया। ३३ ख. महाबल । ३४ ख. ग. रहि। ३५ ग. पूति । ३६ ख. ग. थापलीया। ३२५ .प्राडि-पेच - ( ? ) । जंत्र - यंत्र । मुहरा- हाथी के मुंह ऊपर डाला जाने वाला उपकरण । अरण - अरुण, लाल । हकालिया - ललकारा। बळ-बंधाय - साहस दिलवा कर । कसब - धंधा, कार्य । ३२६. डम्मा डम्मां- कम्पायमान, भयभीत । पैकंबरां-पैगम्बरों। साजणां - सज्जनों, मित्रों । कुटम्मा - कुटुंबियों। मौसरां - श्मश्रु, मूंछे। भुहारी – भौहें। काय - या, अथवा। ३२७. छगां छगां - चलने की गति विशेष । नगां-पैरों, ( ? ) । राह रूत -- राहू ग्रहके समान । रवि पूत - यमराज। धूत - मस्त, उन्मत्त । थापलिया- उत्साहित किये, जोश दिलाया। Page #296 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास वडे दळूंका तू-स, सिंगार तँ सेर वडे गढूंका जैत, वार इम कहि तरियलां डाकदारां तलक, खूभारण नग सिध पलक खुले धारे सबद, बा पुकारे कलाबूत कांमरा, परठि कटहड़ा खोलिया 1 बोलिया * ।। ३२७ प्रचंडे | जगमग नग्ग जड़ाव, मेघ डंबर पर मंडे 1 लाल हरो सिकलात, जिलह जाळियां जौदां । रसां कसे रेसमां, हेम रूपी हरि हौदां । के सकत" पूज नौबत कसे, प्रारोहक " के आरबां" । धर फरर चढ़े नीसांण धर, तोगां" मही-मुरातबां" ॥ ३२८ १० श्रमळा झपेटां । सुंडनाग" सांमळा", झोक दांतूसळ" ऊजळां, लगी‍ पांतळां लपेटां । १७ १ ख. तरीयलां । ग. तेरीयलां । २ ख. पोलीया । ३ ख पुकारे । ५ ख. ग. नगां । ६ ख. जालीयां । ७ ग. श्रजांदां । ८ ख. रूप । १० ग. केसकति । ११ ख. आरोहक । ग. प्रारोह । तोगां । १४ ख. मुरातवां । १५ ख. ग. सूंडिनाग | दंतूसलां । १८ ख. ग. लगां । १२ ग. आबां । १६ ख. सांमाला । गिराए । विरदाए । [ २७१ ३२७. दळूंका - दलोंका, समूहोंका । तरियां- ( ? ) । डाकदारां- मस्त हाथीको राह पर लाने वाले वे घुड़सवार जिनके हाथमें प्रायः सूतका गुंथा चाबुक - विशेष होता है, तलक ( ? ) । खूभारण - हाथी के 'पुकारे बोलिया - ध्यानावस्था में बैठे हुए . जिसे राजस्थानी में साट भी कहते हैं । बांधनेका स्थान | नग - पैर । सिध तपस्वी की पलक भी खुल जाय । ४ ख बोलिया । ६ ख. हरी । १३ ख. ग. १७ ख. ग. ३२८. कलाबूत कांमरा - सोने-चांदी के कसीदेके काम किया हुआ । कटहड़ा - काठका बना हाथी की पीठ पर रखनेका चारजामा । मेघ डंबर - छत्र विशेष । सिकलात- बहुमूल्य ऊनी वस्त्र | जिलह - चमक । जाळियां- ( ? ) । श्रजीदां - ( ? ) । सकत - शक्ति । प्रारोहक - सवार । श्रारबां - तोपों । नोसांण - झंडा । तोगां - मुगल साम्राज्यका ध्वज विशेष जिस पर सुरा गायके पूंछ के बालोंके गुच्छे लगे रहते हैं। यह ध्वज मुगलकाल में उच्च पदाधिकारियोंको ही बादशाहकी प्रोरसे विशेष सम्मान के रूपमें दिया जाता था । ३२६. दांतूसळ - हाथी के बाहर निकले हुए दांत । Page #297 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७२ ] सूरजप्रकास कोतक' हारां कळळ, अवर सुणजै' नह आहट । सणणाहट चरखियां', वीर घंटां ठणणाहट । गिल्लोलदार गड - धरि गहि, चरखदार मिळ" चालिया । गणपतो लार बह जाण' गण, हरदवार दिस हालिया ॥ ३२६ लळवळतां१३ पोगरां, पाय खळहळता लंगर । झळहळतां चख झाळ, चोळ१५ भळहळतां चाचर । धरा धूळ धकरूळ, करै फूंकार' कराळां । ग्रहि उखलै" गैतूळ, तूळ जिम मूळ तराळां। नेजां दकूळ. उडतां निहंग, हसत झूल मिळ१८ हालिया' । कुळ असट गिरंद जांणै १ सकळ, थावस२ सुज'3 जंगम थिया२४ । ३३० हसत जयारां१५ हले, खून करता खंधारां । तरियल लारां६ तळक, अरण मुख धोम ८ अंगारां। . धोमारां धड़हड़ा, डाकदारां हौकारां । चौबोरां प्रज चढ़े, पडै १ हट नाळ बाजारां । १ ख. ग. कौतगहारां। २ ख. ग. सुणजे। ३ ग. सणणाहटि। ४ ख. चरषीयां । ५ ग. ठणणाट । ६ ग. गिलोलदार । ७ ग. धारि। ८ ख. मिलि। ६ ख. चालीया। १० ख. वहौ । ग. बोहो। ११ ख. जाणि। १२ ख. चालीया । ग. हालीया। १३ ख. ललवणतां। १४ ख. पौगरां । १५ क. चौळ । १६ ख. ग. फौतार । १७ खः ऊषल। १८ ख. ग. इम। १६ ख. हालीया । २० ग. अष्ट। २१ ख. ग. जाणे । २२ ख. ग. थावर। २३ ख. ग. सुजि। २४ ख. थीयां । २५ ख. जीयारा । ग. जियारां। २६ ग: लारं। २७ ख. ग. चख । २८ ख. धो। २६ ख. ग. धड़हड़े। ३० ख. ग. चढ़े। ३१ ख. पडे । ३२६. कळळ - कोलाहल । चरखदार - चरखी चलाने वाला। ठणणाहट - ध्वनि विशेष । ३३०. लळवळतां - कोमलताके कारण इधर-उधर झुकने पर । पोगर - हाथीकी सुंड । खळहळता - ध्वनि करता हुआ । लंगर - हाथीके पिछले पैरमें लगी जंजीर । धकरूळ - अधिक धूलि उड़नेसे छा जाने वाला अंधकार । गैतूळ - धूलि समूह जो उड़ कर प्राकाशमें छा जाता है। तूळ - रूई । तराळा - वृक्षों। नेजां- भालां । दकूळ - वस्त्र, कपड़ा । निहंग-पाकाश। हसत - हस्ती, हाथी । थावस - स्थावर, अटल । जंगम - चलने वाला। ३३१. तरियल बारां-ऊंचे मकान जिनके चारों ओर दरवाजें हों। प्रजप्रजा। Page #298 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २७३ झरतां' अप्पारां' मदझरर', धारां किर घण धाविया । भणणतां अपारां सिर. भमर, इम दरबारां आविया ॥ ३३१ तन घण घटा तराज, धरर धर वाज तिलक धन । पंत दंत बक° पाज, वणै'' सोभाज' सेत वन । रणक घंट ददराज', गाज ज्यूंहीं४ गज गाजत । सिर अंकुस सिरताज, वीज'५ उपमा ज विराजत । सोहिया'६ साज रँगरँग सिखर, सघण समाज सकज्ज रै। अग्राज' करै छिबता'६ उरस, राजद्वार 'अभरज्ज' रै० * ॥ ३३२ घोड़ारौ वरणण भैराकी२' प्रारबी, धटी काछी खंधारी। के बल की सौवनी, केक४ तुरकी अग्रकारी । मोती सुरंग कमेत२५, लखी अबलख फुलवारी । रँग जड़ाव हमरंग, हरी सुनहरी हजारी । १ ख. धरतां । ग. धररतां। २ ख. ग. अपारी । ३ ग. मदधरर । ४ ख. किरि । ग. करि। ५ ख. ग. धावीया । ६ ख. भणणंता । ग. भणणंतं । ७ ख. प्रावीया । ८ ग. प्रतिमें यह शब्द नहीं हैं। ६ ख. धुज । ग. धुर । १० ख, ग वुक । ११ ख. ग. वणे। १२ ग. सोभान। १३ ख. ग. ददुराज । १४ ख. ग. जेहीं । १५ ख. वाज। १६ ख. सोहीया। १७ ख. ग. सकइझ । १८ ग. पानाज। १६ ग. छविता। २० ग. अभराज। *यह पंक्ति ख. प्रति में नहीं है। २१ ख. भैराको। २२ ख. ग. बलषी। २३ ख. सोदनी। ग. सोवनी। २४ ख. ग. केइक । २५ ख. कर्मत । ग. कुमेत। २६ ख. हझ्झारी । ३३१. किर - मानों। भणणतां - ध्वनि विशेष करते हुए, उड़ते हुए। ३३२. तराज - समान । पंत -पंक्ति । बक - बक पक्षी। रणक - ध्वनि विशेष । ददराज - उदधिराज, समुद्र । अभरज्ज - महाराजा अभयसिंह । ३३३. अराकी - घोड़ा विशेष, ईराक देशोत्पन्न घोड़ा। आरबी - अरब देशोत्पन्न घोड़ा । घटी - घाट ( ऊमरकोट ) देशोत्पन्न घोड़ा। मोती- रंग विशेषका घोड़ा अथवा घोड़ेका रंग विशेष। सुरंग - लाल रंगका घोड़ा। कमेत - रंग विशेषका घोड़ा । लखी - रंग विशेषका घोड़ा। अबलख - चितकबरा घोड़ा। फुलवारी-रंग विशेषका घोड़ा। Page #299 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७४ ] सूरजप्रकास मौहरी' चपा सेलो समँध', पचकल्याण पहचांणिये । अन्नेक रंग पसमां अलल, जेहा मुखमल जांणिये ॥ ३३३ डाच लगांणां डहै, इसा पंडवां अपारां । रौलपसम खुरहरां, मळे हाथळां अपारां। अँग काढ़े पारसी, पोत भरळकै पसम्मां' । दरियाई' कस दीध, राळ'२ लूंबै' 3 रेसम्मा । झाकत्ति'५ किलाबूत्ती' सझे, तँग रेसम'जुग तांणिया' । ऊकड़ा भीड़'' उडणी इसा, उभै २२ कड़ा कसि प्रांणिया२३ ।। ३३४ करे१४ पोस जरकसी, कड़ी सोवन कोतल२६ कसि । वागडोर२७ रेसमी, तरह पचरंग'८ धरे तसि । एम खोल प्रांणिया, परी करता नूत' पाए। सूरतपाक सुचंग, जळज कुरँगां वधि जाए । के रजत साज जंवहर कनक, छोगा मोत्रीयाळ४ छजि । प्रांणे अनेक हाजर३५ इसा, कमंध होण* असवार कजि ॥ ३३५ १ ख, ग. मुरहरी। २ ख. सधम। ३ ख. ग. पहचांणीय। ४ ग. जांणीय। ५ ख. णगाणा। ६ ख. पांडवां । ग. पांडवी। ७ ख. ग. रोलि। ८ ख. ग. काटे। ख. ग. भरल्लकां। १० ख. पसमां । ग. पसमां। ११ ख. ग. दरीयाई। १२ ख. साल । ग. याल । १३ ख. लूवां । ग. लूबा । १४ ख. रेसमा । ग. रेसमां । १५ ख. ग. साक्वति। १६ ख. किलावूती। ग. कलाबूती । १७ ख. तेग । १८ ग. रेसमां । १६ ख. ग. तांणीयां। २० ख. ग. ऊकटां। २१ ख. भीडि। २२ ख. ऊर्भ। २३ ख. ग. प्राणीया। २४ ख. ग. कसे । २५ ग. कडा। २६ ख. ग. कोतिल । २७ ख. वागडोरि । ग. बागडोरि। २८ ग. पंचरंग। २६ ख. ग षोलि । ३० ख. ग. प्राणीयां। ३१ ख. ग. नृत। ३२ ख. ग. सूरतिपाक । ३३ ग बधि । ३४ ख. ग. मोतीयाळ । ३५ ख. हाजरि। ३६ स्व. ग कमव । ३७ ख. होण। ३३३. सेली समॅध - रंग विशेषका घोड़ा । पसमां- बाल । अलल - घोड़ा। ३३४. डाच - मुख । लगांणां - लगाम । डहै - धारण करते हैं। खुरहरा - घोड़की पीठका मल हटाने का उपकरण विशेष। हाथळां- ( हथेलियों ? )। पारसी - आदर्श, दर्पण। भरळके - चमकते हैं। ३३५. सचंग - सुन्दर । जळज - ( ? ) । रजत - रौप्य, चांदी । Page #300 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २७५ वाहणारा नाम घोड़' वहल रथ घणा, धमळ धुर के असि धारी। सुजि' खासा सुखपाल, इका' माफा असवारी । सरब झळंसां साज, जोति सूर न जिगजग्गै'। ऊभा इसा अनेक, प्राय नप दरगह अग्गै । हुय'' कड़ाजूड़ पैदल वहल, धर'' बंदूक कर' धाविया । सांमांन इता दरगह सुपह, एक नगारै५ आविया ॥ ३३६ ठांम ठाम नक्कोब", हाक ताकीद हजारां। दळ पंडव'८ तिण दीह, सझे असि कीध सिंगारां । सझे भड़ां पौसाक, कसे प्रावधां करारां । सूर वंस खटतीस, तांम चढ़िया३ तोखोरां । हालिया' समँद हीलोहळा२४, जिसा लगस“बह जूजुवा । दळ प्रबळ नगारै दूसर, हाजर सह८ रावत हुवा ६ ॥ ३३७ महाराजा अभैसींघजीरौ वरणण सकति पूजि . 'अभसाह', तांम विधवत' छत्रपत्ती । पहरि ऊंच पौसाक, अत्त'३ जवहर पादत्तो । १ ख. घोडि । ग. घोड। २ ग. अस । ३ ख. सुज्य। ग. सुज । ४ ग. इक । ५ ख. ग. सूरज। ६ ख. जिमजग्गै । ग. जिमजाग। ७ ग. हुभा। ८ ग. यसा । ६ ख. ग. नप। १० ग. प्रागे। ११ ख. ग. होय। १२ ख. ग. धरि। १३ ख. ग. करि । १४ ख. धावीया । १५ ग. नगरे। १६ ख. प्रावीया । १७ ख. नक्वीव । ग. नकीब। १८ ख. पंडवां । ग. पांडवां । १६ ख. दीध। २० ख. ग. साज । २१ ख. सजे। ग. सझे। २२ ख. चढ़ीया। २३ ख. हालीया। २४ ख. हींदोहलां ग. हिलोहलां। २५ क. लगत । २६ ख. वहौ। ग. बो। २७ ख. जूजूवा। ग. जूजुवा। २८ ख. सौ हो। ग. सो हो। २६ ख. हूवा। ३० ग. पूज। ३१ ख. ग. विधि विधि । ३२ ख. ग. अतर। ३३ ग. अदुति । ३३६. धमळ – बैल। धुर – अगाड़ी । माफा - एक प्रकारका वाहन । झळूसा - चमकदार। जिगजग्गै -चमकते हैं। कड़ाजूड़-सुसज्जित । ३३७. पंडव -- यवन, बादशाह । तोखारां-घोड़ों। लगस - लम्बायमान सेना। जूजुवा पृथक। ३३८. छत्रपत्ती - राजा। प्रादुत्ती- अद्वितीय. ( ? )। Page #301 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७६ ] सूरजप्रकास . भीड़' ससत्र' भळहळा, साज बुलगार' सकाजा। - आए बाहर अभंग, मसत गज महाराजा । हळबळां दळां मुजरा हुवै", गह हाका पहाड़ गह। तण 'अजण' नगारै तीसरै, सुंदर गज चढ़ियौ' सुपह ॥ ३३८ हुय' हूकळ कळहळां, हले' दळ प्रघळ जळाहळ१६ । धर सळकै अहि धुकै , मरट वजि कमठ कळम्मळ । रज डंबर' ढकि अरक, घंट२२ द्रगपाल दहल घण । समँद लंक थरसलै२४, तांम बोलियौ'५ वभीखण'६ । मम संक" मथैयळ महण ६ रै", लंक ग्रही इळ' रघुपती। अग्रहां ग्रहै राजा 'अभौ', गहिया २ गहै न गढपती ।। ३३६ वस४ डेरां पह५ वसै ६, थाट जाळंधर थांणे । हसंब थाट सझि हले, पंथ ८ गुजरात पयांण । सझे ६ नास 'सिंधला'४०, आस पास४१ मेवासां । चत्रमासां गिर४२ चढ़े, उडर४४ फाटै आसिहासां५ । १ ख. भीडि। २ ख. सस्त्र। ३ ख. ग. वुलगार । ४ ख. ग. बाहिर। ५ ख. ग. माहाराजा। ६ ग. मुझरा । ७ ख. हुवा। ग. हूवा। ८ ख. गज। ग. गजि । ह ख. पहाड। ग. पाहड। १० ख. मह । ११ ग. चढ़ीयो। १२ ख. ग. होय । १३ ख. कळकळां । १४ ख. हले। १५ ख. प्रवल । ग. प्रबळ । १६ ख. ग. झळाहळ । १७ ख. ग. धसके । १८ ख. ग. धुके । १६ ग. तजि । २० ख. कलंमल । ग. कळमळ । २१ ख. टंवरि । २२ ख. ग. घंटां । २३ ख. ग. दिगपाळ । २४ ख. थरहले। ग. थरसले। २५ ख. वोलीयो। ग. बोलियो। २६ ख. ग. भभीषण । २७ ख, संकिम । ग. संकिम संकिम । २८ व. थीयल । ग. थायळ । २६ ग. महळ। ३० ग. रे। ३१ ख. ग. यळ । ३२ ख. ग्रिहीया। ग, ग्रहीया। ३३ ख. ग. ग्रहै । ३४ ख. ग. वसि । ३५ ख. ग. पौहौ। ३६ ख. ग. वसे । ३७ ग. हाट । ३८ ख. थंभ । ३९ ग. स.। ४० ख. ग. सीघलां। ४१ ख. ग. पासां। ४२ ग. झिर। ४३ ग. चढ़े। ४४ ख. ग, ऊवर । ४५ ख. ग. असहासां । ३३८. बुलगार - ( ? )। तण - तनय, पुत्र। ३३६. हूकळ - घोड़ोंकी हिनहिनाहट । कळहळा- कोलाहल । प्रधळ - अपार, पुष्कल । जळाहळ-समुद्र । सळक - कंपायमान होती है । अहि- शेषनाग। कमठ - कच्छपावतार । कळम्मळ - ( ? )। अरक - सूर्य। द्रगपाल - हाथी। दहल - भय । थरसल - कंपायमान होती है । वभीखण - विभीषण । मथैयळ - मथा जाने वाला। महण - महार्णव-समुद्र । ३४०. जाळंधर - जालोर नगर । Page #302 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २७७ महाराजा अभयसिंहका सिरोही पर आक्रमण नीसांण नाद नौबत' निहसि', वीरनाद तदि' वाजियौ । सिवपुरी बीह अरबद्द' सिर', 'अभौ' सीह अग्राजियौ ॥ २४० रोहाडौ कर' सरद, मारि गिरद' में १ मिळाए । तर झंगर था तरी, वाढ़ि चौगांन वणाए । पौसाळियौ'५ पहट्ट , मिळे गिरद' में ८ मुकांमां । तटां चढ़े तिणवार, धरां रावां उधामां । फौजां लडंग दौड़े फजर, धड़छे खग'' खळ ध्रोहियां । सिर छाब भरे प्राणैः सुभड़, सरदां जिम सोरोहियां ॥ ३४१ गिर२६ गिर गजगांमणो, हुइ म्रगगांमणि हल्ले ८ । लग तर तर पालणौ३०, झंब बाळक बह' झल्लै ३३ । १ ख. नौवति । ग. नौवति । २ ख. म. निहस । ३ ख. ग. तजि । ४ ख. ग. वाजीयो। ५ ख. ग. अरबद। ६ ख. ग. सिषर । ७ ग. सिंह। ८ ख. अग्राजीयौ। ९ क. ख. करि । १० ख. ग. गरद । ११ ख ग. मै। १२ ग. मिलाये। १३ ख. वाटि । १४ ख. वणाये । ग. वणाऐ। १५ ख. पोसालीयो । ग. पौसालिये। १६ ग. पहट । १७ ख. ग. गरद। १८ ख. ग. में। १६ ग. दोडे । २० ख. ग. घडछ। २१ ग. षगि । २२ ख. ग. धोहीयां। २३ ख. ग. प्रांणे। २४ ग. सुभट । २५ ख. सिरोहीया। ग. सीरोहीयां। २६ ख. गिरि गिरि। २७ ख. ग. हुई। २८ ग. हले। २६ ख. ग. लगि। ३० ख. ग. पालणां । ३१ ख. वही । ग. बौहौ। ३२ ख. झलं । ग. झेले। ३४०. नोसांण -वाद्य विशेष । वीरनाद - वाद्य विशेष । सिवपुरी-सिरोही नगर । बीह - भय, डर । अरबद्द - अाबू पर्वत । अनाजियो - गर्जना की। ३४१. रोहाड़ो-रोहाडी नामक एक गांव है । यहांका ठाकुर हीरादेवाड़ा मारवाड़में उत्पात करता था, सर्वप्रथम इसका महाराजा अभयसिंहजीने दमन किया। सरद - परजित । गिरद -धूलि । तर अंगर - घनी झाड़ी। वाढ़ि - काट कर । पोसालियो - सिरोही राज्यान्तर्गत एक गांवका नाम है। बांकीदासकी ख्यातके अनुसार महाराजा अभयसिंह गुजरात पर आक्रमण करते समय मार्गमें सिरोहीके रावके भाईकी पुत्रीके साथ इस पौसालिया गांवमें विवाह किया था। देखो-ऐतिहासिक वातां, ४४४। पहट - नाश कर, ध्वंस कर । लड्ग - लंबायमान सेना। धड़छे - काट दिये, संहार कर दिये। ध्रोहियां - शत्रुओं, दुश्मनों। छाब - डलिया। सीरोहियां - सिरोही वालोंको। , ३४२. गजगांभणी - हाथीके समान मस्त चालसे चलने वाली । म्रगामणि - हरिणके समान चलने वाली। हल्ले - चली, गतिमान हुई । तर तर - तरु-तरु, वृक्ष-वृक्ष। पालणो - झूला। झब -टहनी, वृक्षकी शाखा। . Page #303 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७८ ] सूरज़प्रकास घर' घर धर्मै मसांण, बिनां सिर सिर धड़ वैरी । कहि हरि हरि कंपिया, भोम परहरि झळ भैरी । के वचे " त्रणां धरि धरि कमळ, तेग छोडि जुध तेवड़ां" । इम कियौ कोप करि करि 'अभै', दळे मांण भड़ देवड़ां || ३४२ १० २ १४ १६ १८ करै'' न घड़ां" कुंवारि", करे चढ़ि तेल " कुंवारे" । ससत्र ' न कसे छतीस, अभ्रण छत्तीस अधारे । सोळ सिंगार समारो | राजकुंवरी स्रंगारी" । सझे न सोळह सार, सिणगारी नह फौज, 'उम्मेदराव'' नांमै 'अभै', लूटि डंड मछरीक करे " ताबीन मझि, इम पालणपुर डोळौ ४ लियौ I प्रावियो" ।। ३४३ .२८ ५. ख. १० ग. १ ख ग घरि घरि । २ ख. सिर सिरि । ३ ख. रा. धड । ४ ख. ग. कहै । कंपीया । ६ ख. ग. भोग । ७ ग. परहर । ८ख. ग. वचं । ६ ख. कमलि । छाडि । १ ख. ग. तेवडां १२ ख. ग. कीया । १३ ख. करे । १४ ख. यडा । १५ ख. कुंद्रारि । ग. कुमार । १६ ग. ते । १७ ख. कुमारे। ग. कुमारे । १८ ख. ग. सस्त्र । १६ ग. फोज । २० ख. ग. सिणगारी । २१ ग. उमेदराव | २२ ग. दंडि । २३ ख. डोलो । २४ ख लीयौ । पाहणपुर । २८ ख. प्रवीयौ | २५ ग. करें । २६ ख. ग. तावीन । २७ ग. a 3 झळ - ३४३. धर्म - धुंआ निकल रहा। परहरि छोड़ दी । भैरी - वाद्य विशेष । त्रणां - तिनकों । कमळ - मुख । दळे - नाश करके, मिटा करके, ध्वंस करके । मांण - गर्व देवड़ा शाखाके योद्धाओंका । ३४३. घड़ां कुंवारि - बिना युद्ध किये युद्धार्थ सजी-धजी सेना । कुंवारे - कुमारी । प्रभ्रण - आभरण, आभूषण । अधारे - धारण किये । सार - अस्त्र-शस्त्र । समारी - सम्हाले, धारण किये । गारी - श्रृंगार करवाया । उम्मेदराव - सिरोहीके महारावका नाम | डोळौ - विवाहकी एक प्रथा विशेष जिसमें पिता अपनी पुत्रीको विवाह हेतु वरके यहाँ ले जाता था अथवा भेज देता था। मछरोक - चौहान राजपूत । ताबोन - मातहत, प्राधीन । धारण कर, पकड़ कर । तेवड़ा- विचार करके । । देवड़ां - चौहान वंशकी Page #304 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २७६ कुल बळ' सहत' करीम, निहंग द्रब' सझि निजरामा । मिलै प्राय सांमुहौ, सझे अन्नेक' सलांमां । कहि करीम कर जोड़', सदा हम बंदा खासा । अनुचर गिण'' आपरौ, दीध भूपाळ दिलासा । सतरेज' तणे पहले सहर५, दळ सझियौ' 'गजबंध' दुवौ। उच्छाह" हुवौ सारी इळा, हद डेरां दाखलि'८ हुवौ * ॥ ३४४ सर बुलंदखांको महाराजारौ पत्र लिखणी खत लिखिया दिस' खांन, डकर धारै वजराई कहर गरीबां करण, मकर छाडौ२२ मुगळाई । कांम फैल मति' करौ, स्यांम४ ध्रम धरौ२५ सिपाही । सराजांम दौ२६ सरब, तोपखांनां पतिसाही । अहमदाबाद दीधौ" अम्हां, सुणौ८ हुकम पतिसाहरौ । मांमलौ तजौ आवौ ' मिळो, किलो सहर खाली करौ ।। ३४५ १ ख ग. दळ । २ ग. सहित । ३ ख. ग. द्रव्य। ४ ख. ग. नजरांमां। ५ ख. मिलो। ६ ग. अनेक । ७ ग, सिलांमां। ८ ख. ग. कहै । ६ ख. जोडि। १० ख. वंदा। ११ ख. गिणि। १२ ख. ग. सतरेच। १३ ख. तणौ। १४ ख. पहिले । ग. पहले। १५ ख. ग. सहरि । १६ ख. ग. सझियां। १७ ग. उछाह। १८ ग. दाखिल । *यह पंक्ति ख. प्रति में नहीं हैं। १८ ख. ग. दिसि ।। .....चिन्हांकित पद्यांश ख. प्रतिमें नहीं हैं। २० ग. धारौ। २१ ग. उवराई। २२ ग. छांडो। २३ ख. मत । २४ ग. साम । २५ ख. धरो । ग. धारौ। २६ ख. ग. द्यौ। २७ ग. दीधो। २८ ग सुणो। २६ ग. मामलो। ३० ग. तजौ। ३१ ग. प्रावो। ३२ ग. मिलां । ३३ ख. किलो । ३४ ख. करो। ३४४. बळ - सेना, दल । करीम - पालनपुरके नवाबका नाम । निहंग - घोड़ा। द्रब द्रव्य । निजरांमां - नजराना । दिलासा - सांत्वना । गजबंध दुवो- दूसरा गजसिंह, महाराजा अभयसिंहके लिये प्रयोग किया गया है। हद - बहुत, असीम । ३४५. खान - मुबारिजुलमुल्क सर बुलंदखां । डकर - जोश, आवेश। वजराई - वन जैसी कठोरता। कहर - ध्वंस, नाश । मकर - गर्व, अभिमान । छाडौ- छोड़ दो। मुगळाई -यवनत्व । फेल - उत्पात, उपद्रव । स्याम ध्रम - स्वामी धर्म। सराजांम - सामान । अम्हां - हमको। मामलौ - झगड़ा। Page #305 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८० ] सूरजप्रकास इम' लिखिया 'अभमाल', 'विलंद' कागज वचवाया। 'सयद अली' 'जम्माल', 'अली अहमंद बुलाया। तरियन खांन पठाण, सेख अलियार सलद्दी । मिले सेख मुजदाह", मुगल अागा मुतसद्दी' । दामादखांन अबदल फता, साहिब जादा सांभळे१२ । सिर विलंद हूंत मसलत सझण, मुसलमान एता मिळे'५ ॥ ३४४ अागा सेख मुसाद६, कहै जंग इहां न कीजे । हूव८ इलाहाबाद, लोह'६ कर उहां लड़ीजे । यहिज' फतेखां यलम २, यहिज कहि साहिब जादा। यह हुकम्म ६ असपति", यहिंज'८ नौकरां इरादा । सिर विलंद मनै न मनै असुर, च्यार वार' टेकां चडै । 'अहमद' 33 'जमाल' 'अलिहार' अर, तरियलखां जुध तेवड़े ॥ ३४५ मगल निजांमन मुलक, दखण५ सब मुलक दबाया । फतै करी य फौज, उहां फिर ८ कोयन आया । १ ख ग टाम। २ ख. ग. सईयद। ३ ख. ग. जमाल। ४ ख. अहवद। ५ ख. वुलवाया। ग. बुलवाया। ६ ख. ग. तरियण। ७ ख. ग. अलीयार। ८ ग. सलद्दी । ६ ख. ग. मिले। १० ख. मुजहाद । ग. मजहाद । ११ ग. मुतसदी। १२ ख. संभिले। ग. संमिले। १३ ख. सिरि। १४ ख. ग. मसलति । १५ ख. ग. मिले। १६ ग. मुजाद। १७ ख. ग. कीजै। १८ स्व. ग. हुवा। १६ क. लौह । २० ख. ग. लडीज। २१ ख ग. यंहोज। २२ ख. ग. इलम। २३ ख. इहीज । ग. यहीज। २४ ख. कहै । ग. कही। २५ ख. यहीज । ग.यहज । २६ ख.ग. हकम। २७ क. असत्री। २८ ख. ग. यहीज। २६ ख. सिरि। ३० ग. मान । ३१ ख. यार । ग. च्यार । ३२ ख. ग. चढ़। ३३ ख. अहवद । ग. अहमदावाद । ३४ ख. ग. तरीयनषां ३५ ख. दविण । ग. दक्षिण । ३६ ख. ग. दोय। ३७ ख. उहां । ग. हुंहां। ३८ ख. फिरि। ३६ ख. ग. कोई। ३४६. विलंद – मुबारिजुलमुल्क सर बुलंद । तरियनखांन - सर वुलंदकी सेना में एक वीरका नाम । अलियार - अल्लाहयार नामक यवन। ३४७. लोह · लड़ीजे - अस्त्रों-शस्त्रोंसे वहाँ पर जा कर युद्ध करना चाहिए। यहिज - यह ही । इरादा - विचार । च्यार''चड़े - चार वार अपनी बात पर पूर्ण रूपसे डटे रहे। तेव? - विचार किया। ३४८. दखण 'दबाया -- दक्षिणको अपने पूर्ण अधिकारमें कर लिया। Page #306 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २८१ इस' उज्जै तुम इहां, जंग कर अमल जमावौ । अवरन आवै इहां, आप पतिसाह कहावौ। सुणि' एम कीध नौबत सरू, इम जबाब लिखिया उतर । महाराज नाम सिरविलंद में, सिर सेत्री धूंगा' सहर ॥ ३४८ इम जबाब'' सुणि असुर, खिजे कमधज खेधायक' । अंग दवात उथपियां, नरिंद जांण रुघनायक' । उझल कोप उणवार, दुझल 'अभमल'१८ दरसायौ । काल जवन कथ कहै', जांण'' मुचकंद जगायो । पुर न दूं' तोय नमिळं परति, वदै अभी इम खळ बके१२ । दिन तीन मांय 3 मे९२४ दळे, तीन टेक धारी तिके ।। ३४६ कहि यम ५ हैजम करे, विखम रूपी विकराळा । चढ़ि मदझर चालियौ२६, तूर वाजतां वंबाळा । तूटे२६ नदी तटाक, हाक खूटे ताळीहर । पंगराव . जिम प्रबळ, हले फौजां पैसाहर' । १ ख. ग. इसी। २ ख. ग. करि। ३ ग. सुनि। ४ ख. नौवति । ग. नौबति । ५ ख. जवाव । ग. जुबाव । ६ ग. लिषिया । ७ ख. ऊतर । ८ ख. तांम। १ ख. ग. मै। १० ख. धुगा । ग. द्यौगा। ११ ख. जवाव । ग. जुबाब । १२ ख. कमवध । ग. कमंधज। १३ ख. ग. षेधाइक। १४ ग. अंगि। १५ ख. उथपीयां। ग. उथपि । १६ ख. जांणे। १७ ग रघुनायक। १८ ग. प्रभमाल । १६ ख. ग. कहे। २० ख. जांणि । २१ ख. ग. छौ। २२ क. वकै । २३ ख. ग. मांहि । २४ ग. मेद्र । २५ ख. ग. इम। २६ ख. चालीयौ। २७ ख. वाजंतां। ग. बाजतां । २८ ख. वाला। ग. त्रांबाळां । २६ ग. तूट । ३० ख. पंगएव । ३१ ख. घांसाहर । ग. घसाहर । ३४८, उज्जै - वजह, कारण । सरू - प्रारंभ । ३४६. असुर - यवन, सर बुलंद खां । खिजे - कोप किया। खेधायक – शत्र । रुघनायक - श्रीरामचंद्र । काल जवन - एक प्राचीन राजाका नाम जिसके पिता महर्षि गार्य थे तथा माता गोपाली नामकी अप्सरा थी (वि. वि. परिशिष्ट देखें)। मुचकंद - अयोध्याके प्राचीन राजा मुचुकुंद (वि. वि. परिशिष्ट देखें)। परति - प्रत्यक्ष। वदै - कहता है। प्रभो - महाराजा अभयसिंह । दळे - नाश कर के। ३५०. हैजम - सेना, दल । मदझर - हाथी। तटाक - तालाब । हाक - जोशपूर्ण अावाज । खूटे - घट गया। पंगराव - राठौड़ राजा जयचंद । घैसाहर - फौज, समूह । Page #307 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८२ ] हैनाळ पहट गिर तर हुवा, सरसती नदी तटि सिंधपुर, सूरजप्रका चढ़े घटा रज पर चँडे' । महिपत्ती' डेरा मँडे ।। ३५० महाराजा अभयसिंहका सरदारांरे साथ बड़ौ दरबार करणौ पर सरदारांरौ जोसपूरण उत्तर देण दरबार, उठे' कीधौ दुल सिरै 'अभपती' | प्रभती । तेड़िया ", प्रबळ उमराव तखत बैठ आठ मिसल उमराव, सूर आविया सकाजा । दुज मंत्री कवि दुफल, मिळे दरगह महाराजा” । ११ १ १४ ६ 'अभमाल' छभा वणि" दुल इम, जगचख मुखि मुख जोपिया' सांमठा सिंघ नरसिंघ रे, आगळ ८१५ जांणै प्रोपिया' दरगह पूर दुकाल, कहै " 'अभमाल' एम कथ | कहौ" भड़ां किम" करां भिड़े मुगळांहूं ८ १६ १२४ भारथ । चांपावत - तदि चांपा बोलिया, सिरै 'माहव' भड़ सारां | करि प्राया जिम करां, 'गजण' खुरमह गजभारां । ६ तद' कहै 'कुसळ ' 'हरनाथ' तण, मसतक छिबि रण वसंत फाग खागां रमां, खासावार्ड 19 १३ 1 ४ ख. सरौ । ग. १ . चढ़े। २ ख. ग. सीधपुरि । ३ ख. महिपती । ग. महपती । सरे। ५ ख ग उठ । ६ ग. बैठि । ७ ख तेडीया । ८ ग. प्रभत्ती । ६ ख. श्रावीया । १० ख माहाराजा । ११ ग. मिलि । १२ ख. ग. भूल १३ ख. जोपीया । ग. जोइया । १४ ख. सींघ । १५ ख. ग. श्रागलि । १६ व. जांणे । ग. जांण । १७ ख. प्रोपीया । ग. उपीया । १८ ख. ग. कहे । १६ ग. येम । कहो । २१ ख. इम । २२ ख. मूंगल । ग. मुगलहूं ग. माह । २५ ख. ग. तदि । २६ ख. ग. छवि । २० ग. २४ ख. । २३ ख वोलीया । * ख. प्रतिमें यह पंक्ति नहीं है । - ।। ३५१ असमांनरै । खांनरे * ।। ३५२ टक्कर लग कर । सरसती नदी ५०. हैनाळ - घोड़ोंके टापोंकी नाल । पहट मती नामक नदी । तटि - तट पर सिधपुर स्थानका नाम । ३५१. प्रभती - तेजस्वी, प्रभायुक्त । दुज - द्विज ब्राह्मण । दरगह दरबार | जगचख - सूर्य । मुखि - गाड़ी । जोपिया - जोशपूर्ण हुआ । नरसिंघ - नृसिंहावतार | ३५२. चांपा - चांपावत शाखाके राठौड़ । माहव - महासिंह चांपावत पोकरणका ठाकुर | - गजभारां- हाथियोंकी सेना । कुसळ - श्राउप्राका ठाकुर हरनाथसिंहका पुत्र चांपावत कुशलसिंह । छिबि - स्पर्श कर के । खासावाड़े मुख्य दल जो राजा या सेनापतिके इर्द-गिर्द होता है । साबर Page #308 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २८३ बहसि' 'करण' बोलियौ', सुतण 'राजड़' तिण मौसर । तोलि भुजां असमान, तोल' तरवार बहादर । अोरि तुरँग असुररां, जंगी हवदां लगि जाऊं। सिर विहँडूं घण सत्रां, विखम निज सिर विहँडाऊं । अभमाल अाप छळि करि अचड़, वप विहंडाय रँभा' वरूं । जंग'' करण महाभारथ'२ ज्युही', 'करण' नाम साचौ' करूं ।। ३५३ कहै अनावत सकत, जुई, जिम भूप जुजट्टळ१५ । कहै दलौ'६ 'मुकंद'रौ, हिचूं' अोर' असि हरवळ । दाखै 'भैरूंदास', लोह झेलू र झिलाऊं । कहै 'लाल' 'सकत'रौ१६, विखम खग झाट वजाऊं । तदि कहि' किसन्न'२१ 'जसंवत' तण २, अम्हां वडौ प्रब आजरौ । महाराज२३ सुछळ जुधराज मिळ६ राज लहूं" सुरराजरौ८ ।। ३५४ तेजावत तिणवार, 'रूप' बोलै मछराळो । विकराळा दळ१ विचै, करूं धमचक कळिचाळौ । १ ख. ग. वहसि । २ ख. वोलीयौ। ३ ख. ग. तोलि । ४ ख. तरवारि। ५ ख. वहादर । ग. बाहादर । ६ ख. ग. वोरि। ७ ख. जंगि। ८ ग. लग । __*यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । ६ ख. विहंडाए। १० ख. रंभ । ग. अपछर । ११ ख. जगि। १२ ख. माहाभारथ । १३ ख. जहीं। ग. जट्टी। १४ ख. सांचौ १५ ग. जुजठल । १६ क. दलू । १७ ख. ग. हिचू । १८ ख. ग. वोरे । १६ ग. सकति । २० व. ग. कहै । २१ ख. ग. किसन । २२ ख. ग. सुतण । २३ ख. माहाराज । २४ ख. ग. सुछलि । २५ ख. सुध । २६ ख. ग. मिलि। २७ स्व. लहौ । २८ ग. सूरराजरौ। २६ ख. छमराळौ। ३० ग. विकराळां । ३१ ग. दळं । ३२ ख. धंमचकि । ३५३. बहसि - जोशमें पाकर । करण - पालीके ठाकुर राजसिंह चांपावत का पुत्र करण । राजड़ - राजसिंह । विहंडू - नाश करू । विहंडाऊ- करवा दूं, नाश करवा दूं। छळि - लिए, युद्ध में । वप - शरीर।। ३५४. सकत - शक्तिसिंहका । जुजहळ - युधिष्ठिर । दलौ मुकंदरौ -- मुकंदसिंहका पुत्र, दलसिंह । हिचू - युद्ध कर। किसन्न - जसवंतसिंहका पुत्र किसनसिंह । सुछळ - युद्ध, लिये। सुरराजरौ - इन्द्रका। ३५५. तेजावा "रूप - रूपसिंह तेजसिंहका वंशज। मछराळो -- वीर, योद्धा। धमचक - जबरदस्त, भयंकर । कळिचाळो-युद्ध । Page #309 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८४ ] सूरजप्रकास 'केहर'' 'जसावत' कहै, घणां मुगळां खग घाऊं । काय आऊं जुध काम, कियै सिंभजियत' कहाऊं । बोलियौ सुतण 'हरियैद' बहसि, रुख मजीठ मुख रंगरै । मल सहँस जेम कहि सहसमल, जुई. अखाड़े जंगरै ।। ३५५ इम 'चांपा बोलिया", आदि विरदां अजवाळा१२ । कुंपावत- पह 'कूपा' पूछियौ, कहै इण' विध' कळिचाळा"। सिरै धणी 'पासोप', दुझल'८ झळहळ तप दारण' । रहे२० 'कन्ह 'रांम'रौ, स्यांम काम रौ सुधारण । रिण''समंद३ किलकिला पंख रचि, औरि तुरंग इम पाहुड़ा। तन" सेल मीर जादांतण, जंगी हवदांमझि जड़ां ।। ३५६ निडर 'धुंडावळ' २८ नाथ, रूप ग्रीखम रवि रावत । उदैभांण बोलियौ १६, फौज सिरपोस फतावत । हाकलि असि हरवळी", अणी दल 'विलंद' उडाऊं। खग झाटां खेलतो, जगि हवदां लगि जाऊं । १ ख. रा. केहरि। २ ख. षगि। ३ ख. धांऊं। ग. घाऊ। ४ ख. जुधि। ५ ख. भुजीवत । ६ ग. कहाऊ। ७ ख. वोलीयो । ग. बोलियो । ८ ख. हरीयंद । ९ ख. रुष। १० ख. जुहूं। ग. जूडू। ११ ख. वोलोया। १२ ख. ग. उजवाळा । १३ ख. ग. पौहो। १४ ख. वोलीया । ग. पूछिया । १५ ग. इम। १६ ख. ग. विधि। १७ ग. कळ चाळा। १८ ग. दुझह । १० ग. दारुण। २० ख. ग. रटै। २१ ख. ग. कान्ह । २२ ख. ग. रण । २३ ख. समदि । २४ ग. किलिकिला । २५ ख. ग. रुष। २६ ग. पोर। २७ ख. ग. तनि । २८ ख. ग. चंडावलि । २१ ख. धोलीयो। ३० ग. हरवला। ४ ख. उडाउं। ५ ग. पेलतां । ६ ख. जांऊ। ग. जाउ । ३५५. केहर जसावत - जसावत केसरीसिंह । सिभजियत - जीवित सिंह - युद्ध में घायल वीर। बोलियो.... रंगर - हरिसिंहका पुत्र सूरतसिंह या गजसिंह जोशमें आकर चेहरा लाल किये हुए बोला। मलसँहस - सहसमल बलुनोत चांपावत। जुहू - भिड़ जाऊं। अखाड़े - युद्धस्थल में । ३५६. चांपा - चांपावत शाखाके राठौड़। कूपां- कुंपावत शाखाके राठौड़। कळिचाळा वीर, योद्धा। तप - कांति, तेज । रदै - वीर | कन्हरांमरी - रामसिंहका पुत्र कन्हीराम कंपावत आसोपका ठाकुर । रिण समंद..."जड़ा- युद्ध रूपी समुद्र में किलकिला पक्षीके समान झपट मारते घोड़ोंको झोंक कर इस प्रकार युद्ध करूंगा कि हाथीके होदों पर बैठे हुए मीरजादोंके शरीर में भालोंका प्रहार करूंगा। ३५७. रवि- सूर्य । रावत - योद्धा, वीर । Page #310 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २८५ मौताज' अम्हां हरवळ मिळण, सो' कुळवाट न वीसरूं । 'गोरधन' कियौ' 'गजबंध' अग्र, कळह आप अन मैं करूं ।। ३५७ सुणि 'रामौ' सबळरौ, एम बोलियौ अडीखभ । विडंग प्रोरि दळ' "विलँद', जवन १ खग' हणू रूप जम। घण झेलू खग घाव, सांम निज काम सुधारूं । सिर समपूं" सँकरन", रंभ चौसरि गळ' धारूं' । जगतणी मोह माया तजूं, जिम गोपीचंद भरथरी । चढ़ि रथां अमरपुर मझि चढूं', अमर क्रीत करि प्रापरी ॥ ३५८ भड़' बोलै हरभांण' , भांण' पौरस भाळाहळ । असुर थाट ६ प्राछट्७, झाट बांणास२८ झळाहळ । समर वाग६ वज्र कुसम, भमर जिम करि भेदंगर । दूंदूहां 'मझि एक, सुवप अम्मर काइ संकर। १ ग. मोताज। २ ग. सौ। ३ ख. कोयौ । ४ ग. सूणि । ५ ख. रामौ । ग. रामो। ६ ख. सवल रौ। ७ ख. वोलीयो । ग, बोलियो। ८ ख. ग. अडोषम । ६ ख. ग. वोरि । १० ग. दळि। ११ ग. जवण । १२ ख. ग. षगि। १३ ग. सुधारौ। १४ ख. समपो। १५ ग. नौ । १६ ख. ग. चौसर । १७ ख. गळि । १८ ग. धारौ। १६ ग. चलो। २० ख. भडि । २१ ख. वोले । ग. बोले। २२ ख. ग. हरिभाण। २३ ख. ग. भांण। २४ ख. पौरस्स। २५ ख. भलाहल । ग. भळाहळ । २६ ख. ग. छाट । २७ ग. प्राछट। २८ ख. वाणांस । ग. वांणांस। २६ ग. वागि। ३० ख. दु। ग. हू। ३१ ख. दुहुवां । ग. दुहूवां। ३२ ग. भझ। ३३ ख. ग. हेक । ३४ ख. अंम्मर । ग. अमर। ३५ ख. ग. काय । ३५७. मौताज – मोहताज, इच्छुक । न वीस - विस्मरण नहीं करू। गोरधन - चंडावलका ठाकुर गोरधनसिंह जिसने महाराजा गजसिंहजीके पक्ष में रह कर शाहजादा खुर्रमसे भयं कर युद्ध किया था। ३५८. रामो - सबलसिंहका पुत्र रामसिंह। पड़ोखंभ - वीर । विडंग - घोड़ा। साम - स्वामी। चौसरि - पुष्पहार । ३५६. हरभर्माण - भोपतोत हरिभाणसिंह कूपावत । भेदंगर - भेदन करने वाला। Page #311 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८६ ] सूरजप्रकास 'सिरदार' 'पीथ' फतमालसुत, तई गयण भुज तोलिया' । जुध करां भीम 'अरजन' ज्युही, बँधव ‘भांण' इम बोलिया ॥ ३५६ 'सांवत'' रौ 'सुरतांण', तांम बहसे खग तोलै । रंग लाल रोसंग, बोळ लोयण करि बोले । असि झोकै प्रातसां, धसां घड़ 'विलँद' समर धर । कर बहसां' खग करां, विखम तहसां वैरीहर । ऊससां'२ ससत्र' झेलां उरडि, सिर बगसांससि इंदरै । रथ चढ़े हसां गळबांह रंभ, एम वसां पुर इंदरै ।। ३६० मेड़तियां ६ सिर मौड़, 'सेर' बोलै'८ बळ सब्बळ' । गाहट हरवल० गोळ, वहूं1 हौदां वीजूजळ२ । पाईं घणा प्रचंड, मसत मैंगळ खळ मुग्गल । काय भेदूं हथकमळ, काय जीव ५ पंच कम्मळ२६ । 'सिरदार' सुत छिबतौर उरस, अरण वदन इम उच्चरै६ । निज करै सिरारौ कुरब नप", कळह 'सरौ' जिमहिज करै ।। ३६१ १ ख. तोलीया। २ ग. अरजुन। ३ ख. ग. जहीं। ४ ख. वोलीया। ५ ख. ग. सामंत । ६ ग. रां। ७ ख. ग. वहसे। ८ ख. तोले। ६ ख. वोले। ग. बोले । १० ख. ग. करि । ११ ख. ग. वहसां । १२ ग. उससां। १३ ख. स । ग. सस्त्र । १४ ख. ग. उरड। १५ ख. वसां। १६ ख. ग. मेडतीयां। १७ ग. मोड। १८ ख. वोले । ग. बोले। १६ ख. सव्वल । ग. सबल । २० क. हरवत। २१ क. चहं । ग. वाहूं । २२ ग. बीजूजळ । २३ स्व. मूगल । ग. मुगळे । २४ ख. ग. भेदूं। २५ ख़. ग. जीवत । २६ ग. कमल । २७ ख. ग. सुतण। २८ ख. ग. छवितौ। २६ ग. उचरै। ३० ख. ग. नृप । ३५९. सिरदार - सरदारसिंह फतहसिंह कुंपावतका पुत्र । पीथ - पृथ्वीसिंह फतहसिंह कूपा वतका पुत्र । भांण - उदयभाणसिंह फतहसिंह कूपावतका पुत्र । ३६०. सुरतांण - सामंतसिंहका पुत्र सुरताणसिंह कूपावत । बोळ - लाल । लोयण - नेत्र । ऊससा - जोशमें। ससि इंदरै - महादेव । ३६१. सेर - रीयां ठाकुर शेरसिंह मेड़तिया। गाहट - ध्वंस कर, संहार कर। गोळ - सेना, दल। बीजूजळ - तलवार । मैंगळ – हाथी। सरदार - रीयां ठाकुर सरदारसिंह । Page #312 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास . - [२८७ अभंग 'पदम' बोलियौ', अगन' पौरस ऊघाडै । साजूं' जुध सहदेव, एम कुरखेत अखाड़े । जपै 'सूर' सुत' 'जैत', मुगळ बह खग झट मारूं । पहल वीर भद्र सुवप, धरे संकर वप धारूं । तदि कहै 'भीम' 'मौकम'१० तणौ, वप उपाट छक झळ वरण । जवनां निराट साबळ'' जड़े, घाट करूं१३ रँगमाट घण ॥ ३६२ जदि मुर्कंदावत 'जसौ', कहै उच्छाह' समर करि । ले जाऊ लोहड़ा, धड़छि धड़'५ 'विलँद' हीक धरि । पछटि खगां झिल' पडं १७, काय रणखेत सकाजा । काय बचूं'८ छक करे, सिंभु जीवत विद साजा। 'कलियांण'' तणौ२० 'गंमौ' कहै, सझू२३ समांमौ3 खग समर । करि जीत विहद कांमौ२४ करूं, इळा सुजस नांमौ२५ अमर ॥ ३६३ मतवाळौ ६ इम मुणै, कमँध दारण 'कुसळावत' । जाऊं खासा गजां, घणां मुगळां दळ घावत । १ ख. वोलीयो। २ ख. ग. अगनि। ३ ख. ऊघाडे । ग. उघाडे। ४ ख. ग. साझू । ५ ग, सत। ६ ख. वहौ। ग. बह । ७ ग. वपु । ८ ग. धारी। ग. तद । १० ख. महौकम । ग. मोकम। ११ ख. ग. सावल। १२ ग. करौ। १३ ख. ग. उछाह । १४ ख. जाउं । १५ ख, गड। ग. घड। १६ ख. ग. झिलि। १७ ख. पडं। ग. पडु । १८ ख. ग. वचूं । १६ ख. केलीयांण । २० ग. तणो। २१ ग. रामो। २२ ग. सझौ। २३ ग. समांगों। २४ ग, कामो। २५ ख. नामौ। ग. नांमो। २६ ख. मतिवालो। ग. मतिवोलो। २७ ख. दारुण । ३६२. पदम - पद्यमिह । सूर - सूरसिंह मेडतिया। जैत - जैतो या जैतसिंह मेड़तिया जो सूसिंहका पुत्र था। वीर भद्र - शिवके एक गणका नाम जो उनके पुत्र और अवतार माने जाते हैं, कहते हैं कि दक्ष का यज्ञ इन्होंनेही ध्वंस किया था। भीम - भीमसिंह मेड़तिया। मौकम - मुकमसिंह मेड़तिया । निराट - बहुत, भयंकर । जड़े प्रहार कर के । ३६३. मुदावत – मुनसिंहका पुत्र । जसो - जसवंतसिंह। लोहड़ा - शस्त्रों, तलवारों। हीक - प्रहार । पछटि - प्रहार कर के । सिंभु जीवत - वह वीर जो युद्ध में अनेक शस्त्र-प्रहार सहन कर जीवित रह जाता हो। कलियांण – कल्याणसिंह। रामौ - रामसिंह। समांमौ - उत्तम, श्रेष्ठ । विहद कामौ - महान कार्य । ३६४. मुणं- कहता है। कुसळावत - कुशलसिंहका पुत्र । खासा गजां-वे हाथी जिन पर बादशाह या राजा स्वयं सवारी करता है। Page #313 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८८ } सूरजप्रकास उडे खाग ऊपरा, हसै नारद रिख हासौ । विढ़ण' एम' वेखवै, तरण रथ थांभि' तमासौ । झड़ पडूं लोह पूरा झिलै, भोम कहै वद भारऊं । अपछरां हाथ प्याला अम्रत , पीतौ सुरग' पधारऊ११ ।। ३६४ जोधांनाथ जियार'२, जोध पूछ'जोधाहर । 'भीम' सुतण अणभंग, बहसि'४ बोलियौ'५ बहादर ६ । असि भेळू करि उमंग, रंग वीमाह महारिण' । तीर' अक्षत' झेलतो, वींद" जिम तोरण वंदण। खुरसांण विहँड 3 साबळ खड़ग, चोळ करां गज चाचरां । 'अभमाल' प्रताप रिण प्रापरै, कहै 'प्रताप' फतै करां ।। ३६५ झंझावत फतमाल, कहै नाहर करणावत । जग ५ लालावत जैत, दुवद६ 'मोहण' ऊदावत' । १. ख. विटं । ग. विढू । २ ग. येम। ३ ख. ग. थांभ । ४ ख. झडि पडू । ग. झडि पडौ। ५ ग. पूर। ६ ग. झले। ७ ख. ग. वृद। ८ ग. होथ । ६ ख. ग. अमृत। १० ग. सुरगि। ११ ग. पधारउ। १२ ख. जीयार। १३ ख. पूछे । १४ ख. ग. वहसि । १५ ख. वोलीयौ। १६ ख. वहादर । ग. बाहादर । १७ ख. महारण . ग. महारण । १८ क. तीन। १९ ख. ग. अषत । २० ग. झेलतो। २१ ग. बोंद। २२ ख. ग. वांदण। २३ ग. विहंडि। २४ ख. ग. तप। २५ स्व. ग. जगि। २६ ख. दुविदां । ग. देषि। २७ ग. उदावत । ३६४. विढ़ण - युद्ध । वेखवै - देखता है, देखेगा। तरण - तरणि, सूर्य । झड़' झिल - पूर्ण शस्त्र-प्रहारोंको सहन करता हुआ वीरगतिको प्राप्त होऊंगा। ३६५. जोधांनाथ – महाराजा अभयसिंह। जोधाहर - राव जोधाके वंशज । भीम - भीमसिंह। महारिण- महायुद्ध । तोर "वंदण - तीर रूपी अक्षत ( न टूटे हुये चावल जो देव-पूजामें देवताओंको चढ़ाये जाते हैं या मांगलिक अवसरों पर तिलक करनेमें लिये जाते हैं) को धारण करता हुआ जिस प्रकार दुल्हा तोरण पर आता है वैसे ही मैं युद्धस्थलमें जाऊंगा। खुरसाण - यवन, मुसलमान । विहँड -- नाश कर, ध्वंस कर के । प्रताप-प्रतापसिंह। ३६६. झंझावत फतमाल - झूझारसिंहका पुत्र फतहसिंह । नाहर -- नाहरसिंह करणावत । लालावत जैत - लालसिंहका पुत्र जैतसिंह । मोहण - मोहनसिंह । Page #314 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २८९ साहिव' खां 'जोध'रौ, 'वाघ' कहै सुतण' विहारी । ‘फतमल' सिवदांनरौ, भी च लीधां वद भारी। अ' कहै 'सूर' दारण इता, जरद पोस सेलां जड़ां । वरियांम मुहर 'सिर विलँद' हूँ, रमां डंडे हड रूकड़ां ।। ३६६ बहसि 'हठी' बोलियो', उरस छिबतौ' 'जोगावत' । चोळ वदन चखचोळ, रूप ग्रीखम रवि रावत । पमँग अोरि स्रब पहिल, करूं जुध घड़ा कुंवारी । सिर तूट तौइ४ जुटूं, ऐह'५ मो चित इकतारी । रंभ वरूं सराहै हाथ रवि, अर पग सारा है उरगि१६ । जोगेस कठण पावै जिकौ'८, सहज' तिकौ पाऊं सरगि१ ॥ ३६७ मुहर भूप पित मुहर, गुमर धर कुंवर 'गुमांनौ' । सादूळौ सिंघली, एम बोलियौ ४ 'अमांनौ' । जुड़ी५ एम जोसरां२६, वेस नां चढ२७ वपच्छर । मँडूं गळे मौसरां, पहल२६ चौसरां अपच्छर । १ ग. साहिब। २ ग. प्रतिमें यह नहीं है। ३ ख. वृद। ४ ग. । ५ ख. वरीयाम । ग. वरियाम। ६ ख. महौरि । ग. महौर । ७ ग. सिरि विलंद । ८ क. रिमां। ६ ख. ग. वहसि । १० ख. बोलीयौ। ग. बोलियो। ११. ख. छिबीयो। ग. छिवीयो। १२ ख. ग. पहल। १३ ख. ग. कुमारी। १४ ख. ग. तहीं। १५ ख. एह। १६ ख. ख. उरग। १७ ख. ग. कठिण । १८ ख. जिको। १६ ग. सहजि । २० ख. ग. तिको। २१ ख. ग. सुरग। २२ ख. नौहोरि । ग. मोहोरि । २३ ख. मौहरि । ग. मोहरि। २४ ख. वोलीयौ। ग. बोलियो । २५ ग. जुहु । २६ ग. जौसरां । २७ ख. ग. लगे। २८ स. ग. वपछर । २६ ग. पहिल । ३० ख. अपछर। ग. अपछरा। ३६६. जोधरौ- जोधसिंहका पुत्र । वाघ - बाघसिंह । विहारी - बिहारीदास । भीच - योद्धा । जरद पोस - कवचधारी । डंडे हड - चरचरी नृत्य, होलिका नृत्य । रूकड़ा तलवारों। ३६७. हठी - हठीसिंह । रावत - योद्धा, वीर । घड़ा कुंवारी- बिना युद्ध किये हुए सुसज्जित सेना। जोगेस - योगीश, महायोगी। ३६८. मुहर – अगाड़ी, अग्र। गुमांनौ - गुमानसिंह । सादूळो - शार्दूलसिंह । सिंघली-वीर। Page #315 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६० ] सूरजप्रका .€ वढ़' पड़' विहर' थाटां 'विद", भुजलग" भट सेलां भचड़ि' । स्रुग' वसूं कहै 'हटमल' सुतन, प्रमूनि' जिम खाटे अचड़ि ६ ।। ३६८ & १० उ उमेदवार रिधू दुजौ 'रतनागर' । 'अगस्त' जिम आचऊं, समर ग्ररि घूमर " सागर । 9 १२ 3 १६ भिड़ सिर' भद्र जातियां ", विहर" खग गंज वणाऊं । १८ माळ आदि मोतियां, उमां भूखण पहराऊं" । जिम करूं वीरभद्र दक्ष जग्यन, कचर-घांण किलमांणरौ । इम 'प्रभा' हूंत मिसलति" ग्ररज, रटै 'पतौ' 'महिरांणरौ' || ३६६ उदावत - ऊदां મ 3 × बूझं 'अभौ ४, 'हदौ" बोलियो बहादर । हद जूनौ खिलह्वार, जोध वदियौ " धमजग्गर & असि लोह उडाऊं । छळ बळ समर वछेक, वौर घाऊं'' खळ दळ घणां, चुरसि 39 મ 33 कुळि सुजस चढ़ाऊं । २ ग. पड । १ ख. वढ़ि । ग. विढ़ि । ५ ख भुजलंग । ६. ख. ग. भचड | ६ ख. ग. प्रचड । १० ग. उठे । ग. सिरि । १४ ख. ग. जातीयां । ग. मोतीयां । ग. मसलति । श्रभं । २५ ग. दो । २६ ख. वोलीयो । २६ ख वोर । ग. वोरि । ३० क. उंचाऊ । चुरस । १८ ख. ग. पहिराऊं । २२ ख. ऊदा । ग. उदा । ३३ ख. ग. सुजल । - - ३ ख ग विलंद ७ ख. ग. श्रुगि । * ४ ख विहंड ग. विहंडि । ८ख. ग. अभिमुनी । १२ ख. ग. भिडि । १३ ख. ८ ३६८. थाटां- दलों, सेनाओं भुजलग-तलवार । भचड़ि टक्कर खा कर । हटमल हठीसिंह । श्रमूनि अर्जुनपुत्र वीर अभिमन्यु | ११ ख. ग. घुम्मर । १५ ख. ग. विहरि १६ ग. गि । १६ ख. ग. दषि । २० ख. ग. जिगन । । I १७ ख. २१ ख. २३ ख. वृझे । ग. वृक्षं । २४ ख. ग. २७ ख. ग. विदीया । २८ ग. धमजाग्गर । ३१ ख. घांऊं । ग. घावु । ३२ ख. ग. । भिड़ संहार । पतौ प्रतापसिंह । ३६६. रिधू - निश्चय, अटल । रतनागर - रत्नाकर समुद्र श्राचवूं - श्राचमन करलूं । घूमर - सेना ( ? ) । जातियां श्वेत रंगके हाथियों | कचर-घांण - ध्वंस, महिरांणरी समुद्रसिंहका । ३७०. ऊदां - उदावत शाखाके राठौड़ । हृदो - रिदेराम उदावत | वौर - झोंक कर । लोह, उडाऊं - शस्त्र प्रहार करूं । - अगस्त- अगस्त मुनि । टक्कर लेकर । भद्र - धमजग्गर - युद्ध | Page #316 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६१ स्रीरांम मुहरि' लंका समरि, कियौ 'मजे कपि जिम करूं* । झागडु सेर-विलँदहुं, अमर पुर जाऊं अर रंभ वरूं ।। ३७० उण वेळां बोलियौ, अडर 'जसराज' पतावत । वरण अरण फबि” वरण, अरण लोयण दरसावत । हरवळ अस' हाकले, सत्रां धमरोळू साबळ' । गोळ जड़ सिर गयँद, खंभ' जंगी हवदां खळ । घण लोह वाहि' झेलू' घणा, वप चुख" चुख हौ रंभ' वरूं । काय होय सिंभजीवत कळह', कर मरंग' मुजरौ करूं ।। ३७१ 'जगड' हरां मधि" जोध, एक हूंतौ'८ उणवारां । एक लाख एरसौ', विखम पौरस' विसतारां' । १ ख मौहौरि। ग. मोहर। २ ख. ग. समर। ३ ख. कोयौ। ४ ग. प्रजो । * ख. तथा ग. प्रतियोंमें यहां पर निम्नलिखित पंक्ति है _ 'प्रापर मोहर राजा अभा. धड असुरां असि नग धरू ।' • यह पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियोंमें नहीं है। ५ ख. वोलीयौ। ग. बोलियो। ६ ग. जसुराज । ७ ख. ग. फवि। ८ ख. ग. प्रसि । ग. धमरोलौ। १० ख. सावल! ग. साबल। ११ ख. ग. भ। १२ ग. बाहि । १३ ख. लेहूं। १४ ग. चष चष। १५ ख. ग. होयरंभ । यह पद्यांश ग. प्रतिमें निम्न प्रकार है 'काय होय जीवत सिंभु ज्यौं कलह ।' १६ ख. करिमरंगि। ग. करि मररंग। १७ ख. मझि। ग. मझियोध। १८ ग. हतो । १६ ग. ऐरसौ। २० ख. पौरिस । २१ ग. विसतारो। ३७. अजै कपि - अंजनीपुत्र हनुमान । झागडूं - युद्ध करू। ३७१. धमरोळू - संहार करू, मारू। साबळ -- भाला विशेष। गोळ - एक प्रकारका भाला। जई - प्रहार करू। खळ - शत्रु । सिंभजीवत - वह वीर जो युद्धस्थल में शस्त्र प्रहारोंसे क्षतविक्षत हो कर जीवित रह जाय । ३७२. जगड़ हरां मधि - जगरामसिंहके वंशजोंमें । Page #317 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६२ ] सूरजप्रकास कहै सिलह नह' करूं*, मिळू खग झाट' समेळा । नजर चढ़े नीसांण, वाज' औरूं तिण वेळा । धारण सलाह चित नह धरै, प्रारण करण उतावळौ । वावळा गयँद मसतां विधी, वींफरियो रिण वावळौ ।। ३७२ करणावत-'करणावत' कळिचाळ, तांम'° पूछे'' 'अभपत्ती' । रगावत 'अभमाल', पांण छक कहै प्रभत्ती। अोरे१२ स हरवळां, सेल खळ' खगां'४ सँघारूं१५ । गज असवारां गोळ, धड़छि घण लोह लोह सँघारूं१६ । ह्वां अमर काय सिंभजोत' हां, विखम 'विलँद' फौजां'८ विहरि । करमाळ रँगे मुजरौ१० करूं, केसरिया १ झक बोळ करि ।। ३७३ १ ग. न। २ ग. करौ । * यहांसे आगे ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न वर्णन मिला है (कहै सिलह नह करू), सपर नह वोट सधारी । सुजड धारि षग सेल, भिडज वीरौ गज भारौ। घण मुगल वेध पछट घणा, घण विषतोरण धामरी । वरियांम हूंत इण विध बदै, मान सिंघ सुभ रांमरौ। जैता पूछे जदिने, प्रोट पायक प्रोरावत । पहल पतो पूछीयौ, गुमर धार कगो रावत । के है जैजन करो, (मिलूं षग झाट समेळा)।' ३ ख. भाटि। ४ ख. वाजि। ५ ग. अोरू। ६ ग. एणविध । ७ ग. उत्तावळौ । ८ ख. ग. मसतांन । ६ ख. वीफरीयो। १० रा. तेम। ११ ख. ग. पूछे । १२ ग. औरे। १३ ख. ग. षगि। १४ ख. ग. षलां। १५ ग. सिघारौ। १६ ख. ग. सधारूं । १७ स्व. ग. सिभ वत। १८ ग. फोजां। १६ ग. विहर । २० ग. मुजरो। २१ ख. केसरीयां २२ ख. वोल। ३७२. मिळू समेळा - जहां पर भयंकर तलवारका प्रहार होता होगा वहां जा कर युद्ध करूगा । वाज पौरूं - घोड़ा झोंक दूंगा। वींफरियौ - क्रोध किया। रिण वावळौ - रणोन्मत्त। ३७३. करणावत - राठौड़ोंकी एक शाखा जिसमें वीर दुर्गादास जन्मा था। करणावत शाखाका राठौड़ । कळिचाळ - योद्धा, वीर । दुरगावत अभमाल - देशभक्त वीर राठौड़ दुर्गादास का पुत्र अभयसिंह । गोळ - सेना, या सेनाका पीछेका अथव सेनाका मध्य भाग । धड़छि - काट कर, संहार कर। सिंभजीत - वह वीर जिसके शरीर पर युद्धस्थल में युद्ध करते समय अगणित शस्त्र-प्रहार हो गये हों। Page #318 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [२६३ जैतौ' अग्गि' व्रजागि, ताम बोलै' महकन तण । अंग पौरस' ऊफणे, घणै छकहूंत विरद घण । कहै अोरि केकाण, सेल असुरांण करूं सळ । वीसहथी हथवीस", अोक पाऊं रत ऊजळ' । भुज लगां विलँद' घड़ भड़ भिड़ज, धरा पाटि' झाटकि'२ धरूं'३ । आपरा लूण" हूंता'५ 'अभा', कळह बोलबाला'६ करूं ।। ३७४ ऊगती१७ मौसरां, अडर सिंघ'८ 'करण अभावत'१६ । कंवरां• गुर इम'' कहै, वरण मुख अरण वधावत । अणी फूल ऊपरा, झोकि ऊडंड झळाहळ । सझू राड़ सांघणी, वाहि सांबळ१२ वीजूजळ । जरदाळ घण पखराळ जुडि, विहँड13 खाळ४ नारँग वहै । हद करां इसौ' जुध विहदहूँ, करां झोकि सूरिज' कहै ॥ ३७५ १ ग. जेतो। २ ख. ग. प्रागि । ३ ख. वोले । ग. बोले । ४ ग. महानतन । ५ ख. पौरिस । ग. पोरस । ६ स्व. ग. ऊफण । ७ ग. हथवास । ८ ख. ग. भोक । ४ ख. ग. रथ। १० ख. ऊझल। ग. उझल । ११ ख. ग. पाट। १२ ग. झाटक । १३ म. धरौ। १४ ख. खूण। १५ ग. हुता। १६ ख. वोलवाला। ग. बोर बालक । १७ ख. ग. उंगती। १८ ग. सिंध। १६ ग. प्रभाव । २० ख. ग. कवरां। २१ ख. इ। २२ क सामल । ग. साबल। २३ ख. विहंडि। २४ ख. पालि । २५ ग. इसो। २६ ख. ग. झोक । २७ ख. ग. सूरज । ३७४. जैतो...." महकन तण - महकरण या महेकावतका पुत्र करणोत जेता वज्राग्निके समान था, उस समय बोला । प्रोक - देवीका खप्पर जिससे वह पान करती है, अञ्जलि रत - रक्त, खून। भिड़ज - घोड़ा । धरा पाटि - भूमिको पाट कर। प्रभा - महा राजा अभयसिंह । कळह - युद्ध । बोलबाला - विजय, जीत । ३७५. ऊगंती - निकलती हुई। मौसरां - श्मश्रु, श्मश्रुके बाल । सिंघ - करणोत सिंघ जो अभकरणका पुत्र और वीर दुर्गादासका पौत्र था। करण प्रभावत - अभयकरणका पुत्र । सांघणी - बढ़िया। वाहि - प्रहार कर के। वीजूजळ - तलवार । जरदाळ – कवचधारी योद्धा। पखराळ - कवचधारी घोड़ा। जुड़ि - भिड़ कर । नारंग - रक्त, खून । हद'....'कहै - मैं इस प्रकारसे भयंकर युद्ध करूंगा कि मेरे हाथोंको सूर्य भगवान भी धन्यवाद देंगे। Page #319 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६४ ] सूरजप्रका करमसिहोत - पुहव' तांम पूछियौ', करमसोयौत कमधज । उदसींघ बोलियो, छाक पौरस बळ ऊछन । भिड़ज हरोळां भेळि, रवद साबळां जड़े रिम | जांहूं लोपि सतेज, तोप वाळां गोळां तिम | दळ 'विद' घणा विहँडे दुजड़, उरड़ गोळां धज ऊनगे" । करि दुसह भूक मुजरौ " करां'", रूक सेल दहुंवै ' रँगे ।। ३७६ 93 १४ भदौ ४ 'दली"" कुळ' ' भांण, 'कलौ" संग्रांम ग्रणकळ । राणावतां भुंकार', 'सिवौ' 'बाला" सहंसबळ । 'भीम' धवेचां भांण, 'माल' 'राजल' महवेचां । जैतमालां 'नरहरौ ३, 'मग्घ'४ पातां जुध मेचां । केसवौ" भड़ां मँडळां 'मुकँद", वोदां हिंदू" सिंघ वर्ण । कहै करौ" खग झट इसी, रवि सारा है हाथ रिण ।। ३७७ & २६ ख. ग. मुकट । रवि । २० १ ख. ग. पहाँव । २ ख. ग. पूछया । ३ ख. ग. उदैसिघ । ५ ख. उछज । ७ ग. घणू । ८ख. ग. विहं ६ ख. ग. जडं । ११ ख. ग. मुजरो । १२ ख. करूं । ग. करौं । १० ग. अनंगे । १४ ख. ग. भदां । १५ ग. दलौं । १६ ख. कुलि । ग. कुण । १८ ख. संगराम । ग. सगरांम 1 १६ ख. ग. जुझार । २० ख. बाल । २२ ख. ग. रावल । २३ ग. नरहरां । २४ ख. ग. मेघ । २७ ख. ग. हो । २८ ख. ग. करां । १८ ३७६. करमसीयोत - राठौड़ोंकी एक उपशाखा या इस शाखाका व्यक्ति । रवद - मुसलमान । दुजड़ - कटार । दुसह - शत्रु । भूकं संहार, ध्वंस । ३७७ भदौ- राठौड़ोंकी भदावत शाखाका वीर दलौ दलसिंह | कलौ - कल्याणसिंह । श्रणकळ - वीर । राणावतां - राठौड़ वंशकी एक शाखाका | 'बालां - राठौड़ोंकी बाला शाखाके व्यक्तियों में । धवेचां - राठौड़ोंकी घवेचा शाखाके व्यक्तियोंमें । माल - मालदेव । महवेचा राठौड़ोंकी महवेचा शाखाके व्यक्तियोंमें। जैतमालां राठौड़ोंकी जैतमालोत शाखाके व्यक्तियों में । पातां - राठौड़ोंकी पातावत शाखाके व्यक्तियोंमें मंडळां - राठोड़ोंकी मंडला शाखा के व्यक्तियोंमें । वीदां - राठोड़ोंकी व दावत शाखा के व्यक्तियोंमें । - ४ ख. वोलीयौ । । ६ ग. उडज । १३ ख. ग. दुहुवं । १७ ख. ग. कलां । सिवो । २१ ग. २५ क. कस्सव । २६ ख. रणि । ग. Page #320 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६५ भोजहरां' 'नाहरौ', 'मोकमल' भड़ भारमलोता । भीमोतां' 'साहिबौ', त्युंहिज' 'जसक्रन' भीमोतां । 'सुरतौ'' 'गांगावतां', नरां 'पदमौ' नर नायक । अणभंग 'चूंडावतां''', 'विजौ' कमां' वरदायक । दूझड़ा'२ रायपालां' दुझल, वयल धरां'" सिर दुंद वण' । प्रै कहै करौ खग झट इसी, रवि वाखाणे हाथ रिण' ।। ३५८ विखम रूप वांकडौ', कहै ऊहड़ कळिचाळौ । सयद पठाणां सिरै, पमँग१५ झोकू२२ पखराळो । समर धीबि३ अड़सलां१४, रवद जरदैतां रालू । आज लंण प्रापरौ, 'अभा' जुध करि अजवाळू५ । केवांण पांण कणकण करूं, आछट२६ घड़ असुरांणरी । कपिराज जेम कर२७ ग्रहि करूं, पोथी वेद पुरांणरी ।। ३७६ भाटी-भाटी पूछ८ भूप, छकां 'उद-भांण'२६ वरै छजि' । जिणरौ३३ दादौ ३ 'रांम', आयौ ४ मुरधर कजि । १ ग. भोजहरौ। २ ख. ग. मोहक । ३ ग. भारमलौतां । ४ ख. भीमोतो। ग. भोमोतां। ५ ख. त्यूहीज । ग. त्यौहीज। ६ ख. रूपोतां । ग. रूपोतां। ७ ख. ग. सुरतो। ८ ख. गंगावतां । ९ ग. पदमो। १० ख. चौडावतां । ग. चांडावतां । ११ ख. ग, कमज । १२ ख. ग. दूदडौ । १३ ख. रायपालो। १४ ख. धरौ । १५ ख. ग. सिरि। १६ ख. ग. दूद । १७ ख. ग. वणि । १८ व. ग. करी । १६ ख. ग. रणि । २० ख. बांकडौ। ग. वांकडो। २१ ख. पमंग। ग. पवंग । २२ ग. झोको । २३ ख. धीवि । ग. धीब। २४ ख. ग. सावलां। २५ ख. अजुवालू । ग. उजवाल । २६ ग. प्राछटि । २७ व. ग. करि। २८ ख. ग. पूछे । २६ ग. उदैभांण। ३० ख. ग. सिरै। ३२ ग. छज । ३२ ग. जिणरो। ३३ ग. दादो । ३४ ग. प्रायो। ३७८. भोजहरां- राडौड़ वंशकी भोजावत शाखाके व्यक्तियोंमें। भारमलोतां- राठौड़ वंशकी भारमलोत शाखाके व्यक्तियोंमें । भीमोतां - राठौड़ वंशकी भीमोत शाखाके व्यक्तियोंमें । नरां- राठौड़ वंशको नरावत शाखाके व्यक्तियोंमें। चूंडावतां - चूंडावत शाखाके व्यक्तियोंमें। विजौ -- विजयसिंह । रायपालां- राठौड़ोंकी रायपाल शाखाके व्यक्तियोंमें । ३७६. ऊहड़ - राठौड़ोंकी ऊहड़ शाखाका व्यक्ति । कळिचाळी - योद्धा, वीर । पखराळो - कवचधारी घोड़ा। अड़सलां - शत्रुओं। जरदैतां - कवचधारी योद्धानों। केवांण - कृपाण, तलवार। घड़ - सेना । Page #321 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २९६ ] चितसाच, सूर दारण मसलत्ती । स्यांमध्रमी' बहसि 'भांण' बोलियो पांण तप भांण प्रभत्ती* । सम' एम पसँग प्ररूं समर, पमँग कसै धारक पदम । समसेर भांण' विहँडा सत्रां, करे मेर जेही कदम || ३८० 'सूर' सुतण तिण समैं, 'हठी' बोलियो' झळाहळ । उमंग समर उछाह दुसँग पौरस ' दावानळ । कहै भोक केकाण, पहल धजि" कूंत धपाऊं । १२ पछै विलँद थट परा, अजर खग पछट उडाऊं । & मसतक्क'' हाथ पग जड़ " मुगळ, "तेग" प्ररण झक बोळ तिम" । 'विलँद'रा जोध' ' दमँगळ विचे, जुड़े करूं नट भगळ जिम ।। ३८१ 'नाहर' सुत नरनाह", कहै हाजर छ कारण । घैसाहर" सिणगार", दुती भैराहर दारण । कहै निवाहर कथन, तुरंग दळ धू माहर दुसह, प्रणहथा हर ५ नाहर जिम तोरूं । १४ सूरजप्रकास .२ ३ १ ख स्यांमध्रमी । ग. सामध्रमी । * यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । २ ख. ग. समि । जैही । ६ ख. बोलीयौ ! ग. बोलियो । पौरिस | १० ख. ग. झोकि । मसतक । ग. मसतकि । १४ व. ग. जडि । ११ ख. ग. यह पद्यांश ख. तथा ग. प्रतियोंमें अलग अलग निम्न प्रकार हैंख. 'ते कवोल मजीठ तिम ।' ग. 'ते कबोल मजीठ तिम।' १५ ख. तक । ग. तेझ | १६ ग. जौध । १७ ख. ग. विचै । १८ ग नरनाथ । १९ ख ग जाहर । २० ख. घसाहरस । ग. घांसाहर । २१ ख. ग. सणगार ग. दुरत । २३ ग. नवाहर । २४ ग. हड़ । २५ ग. मधि । २६ ख. वोखं । २२ ख. ५ मभि" श्रोरू 1 ५ ख. ३ ख भाटि न झाट । ४ ख विहंडं । ग. विहं । ७ ग. झळाळ । ८ख. ग. दुगम । धज । १२ ख पछौ । ग. पछो। १३ ख. ६ ग. ३८०. पांण प्रारण, शक्ति, बल । प्रभती प्रमा, कांति । समसेर - तलवार । विडां संहार कर दूं । ३८१. सुतण - पुत्र । हठी हठीसिंह । सूर सूरसिंह । झळाहळ - तेजस्वी । उमंग जोश । दुसँग - अग्नि-करण । थट - सेना । पछट प्रहार । दमंगळ - युद्ध । नट भगळ जिम - इन्द्रजालके खेल करने वाले के समान | ३८२. घेसाहर - सेना, दल । - - Page #322 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २९७ धौंखळे' रिमां खग झट धजर', धुर' मौहर चौसर धरूं । कर* सूर सराहै इम' कळह, कहै 'सूरजादौ' करूं ॥ ३८२ 'सहँसौ'८ बोले सूर, अडर उण वार 'अखा'रौ' । पमँग'' प्रोरि २ सब पहल, करूं घमसांण करारौ। वाहूं" साबळ वीज'५, सहूं वीजळ बहु साबळ' । वाढ़ि मुगळ दळ वढू, चढ़ रंभा रथ चंचळ । हालऊं सुरग चमरां हुतां, अमरां मझि वप धर'८ अमर । अजवाळि' रिजक राखू अखै, सा ऊजळ° कीरत'' समर ॥ ३८३ चौहान-बहसि २ तांम बोलिया, बिन्ह ४ चहुंबांण बहादर५ । 'अजबौहरौ' २६ अभंग, रत्त मुख चख रातंबर । जंग झोकि जंगमां, असह खग६ बरंग° उडावां' । ते सरियत २ कुळ तणी', करे कुळ विरद कहावां । भखियौ ज लूण भूपाळरौ, घणा रिजक सांमल४ घणौ । कहि संभरीक ऊजळ करां ६, तिकौ लूंण सांभर तणौ ॥ ३८४ १ ख. धौषले । ग. धूषले। २ ग. धजरि। ३ ख. ग. धूरि। ४ ग. घरौ। ५ ख. सर । ६ ख. ग. यम। ७ ख. करौ। ८ ग. सहसो। १ ख. वोले। १० ख. अपारी। ११ ग, पवंग। १२ ख. वोरि। ग. वोरे। १३ ख. ग. श्रव । १४ ग. बाहूं। १५ ग. बीज । १६ ख. ग. वहौ। १७ ख. सांवल । ग. सावल । १८ ख. ग. धरि। १६ ख. उजवाळि। २० ग. ऊझळ । २१ ख. ग. कीरति । २२ ख. ग. वहसि । २३ ख. वोलीया । ग. बोलीया । २४ ख. विह। ग. बिह। २५ ख. बादर। ग. बाहादर । २६ ख. अजवौह । ग. बाह। २७ ख. ग. रंग। २८ ख. ग. रातंवर । २६ ख. ग. षगि। ३० ख. ग. वरंग। ३१ ख. उडावा। उडांवां। ३२ ख. ग. सरीयत। ३३ ख. कुळ तणा। ३४ ख. सांमिल । ग. सौमिल । ३५ ख. उजल । ३६ ग. करौं। ३७ ख. तिको। ३८ ख. संभरि । ख. सांभर तणूं । ३८२. धौंकळे - ध्वंस कर के। धजर - भाला। ३८३, अखारौ - अक्षयसिंहका। घमसांण – युद्ध । वीज - तलवार। वोजळ - तलवार । ३८४. रातंबर - लाल । जंगमां - घोड़ों। बरंग - खंड, टूक। संभरीक - चौहान राज पूत । Page #323 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २६८ ] सूरजप्रकास दुजणसिंघ दईवांण, सूर बोले' 'सबळावत। भूप भड़ां भुजदंड', पटा इण कजि पूजावत' । अाज तिको अवसांण, घाव खग करि 'साऊ' घड़। . सत्रां खाग घण सहूं, भाग धिन मूझ कहै भड़। पिंड विहँड होय चुख चुख पड़ , ताय वरूं रँभ हित तिकौ । सुलभ ही जिकौ'' पांऊं सुरग, जगत घणौ दुल्लभ जिकौ ॥ ३८५ उण वेळा'२ बोलियौ', 'दलौ' सोनगरौ'४ दारण । तुरंग थाट तुरकांण, वीच अोरूं१५ घड़ वारण । बगतर धार बँगाळ, कहर खग धार पछट करि । घण विहरू१६ खळ घाट, पाट तर चंदण तणी परि। घण प्रळय लोह झेलू घणा, रंभ वरूं सुख सरग१८ रिध । इळ नौख अचड़ राखू अमर, वीरम रांणग' देव विध' ॥ ३८६ खांप खांपरा खत्री२२, एम बोलै २३ भड़ अडर ४ । राजगुरु पुरोहित केसरीसिंह राजा प्रोहित राज, जठे पूछ२५ छक जाहर । १ ख. वोले। २ ग. भुजडंड। ३ ग. पुजावत । ४ ख. प्राजि । ५ स्व. जिको । ग. जिको। ६ ख. धनि । ग. धन। ७ ग. जझि। ८ ग. चष चष। ६ ग. हिव । १० ख. ग. तिको। ११ ख. ग. जिको। १२ ख. वेलां। १३ ख. वोलीयो ।' १४ ख. सोनगिरौ। १५ ख. ग. वोरूं । १६ ग. विहंडू। १७ ख. ग. रत। १८ ख. सरगि। ग. सुरगि। १६ ख. रांणंग। २० ख. देव। २१ ख. ग. विधि । २२ ग. क्षत्रि । २३ ख. वोले । ग. बोले। २४ ख. ग. अडर। २५ ख. पूजे । ३८५. दईवांण- वीर, समर्थ । सबळावत – सबलसिंहका पुत्र। भुजदंड – समर्थ, शक्ति शाली। साऊ - शाहू मरहठा जो सर बुलंदकी तरफ था। चुख चुख - खंड-खंड, टक-टूक । ३८६. सोनगरी - चौहानोंकी सोनगरा शाखाका व्यक्ति । दारण - जबरदस्त । तुरंग - घोड़ा। थाट - सेना। वारण - हाथी। बंगाळ - मुसलमान। कहर - कोप। रिध - ऋद्धि, अटल। ३८७. खाप - शाखा, गोत्र । Page #324 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ २६६ कहै प्रोहित 'केहरी', अम्हां घरवट अधिकाई | सांम सुछळ' सत्र वाढ़ि े, वडा' जुध तरै वडाई' । रिण' सेल खाग जमदढ़ रिमां", वाहि भेल अपछर वरूं । महाराज' आज महाराज छळि, कोधौ 'दळपति' तिम करूं ।। ३८७ चारण कवि-तदि बोलियो" सतेज, 'सुभौ' जैसिंघ समोभ्रम | प तौ छोटी वेस, सूर कुळ वाट वडी" स्रम | श्राप मुहरि" 'अभपतो, भिड़ज श्ररूं गजभारां । जड़ें मुगळ जरदैत, धमक झळहळ चव धारां I इम सूं गोळ मभि करि उरड़, मसत लोपि घड़ मैंगळां । २ १३ ऊजळा करूं पीळा- अक्षत, असुर विहँड खग ऊजळां ॥ ३८८ ७ पह'" बारट" पूछियौ, बहसि 'गोरख' जद" बोलै । प्रमाण ११ छबि डर, तांण २ मूंछां खग तोलै । ३२ २४ जुड़े 'गजण' जालोर, रमे 'प्रजा' सुछळि 'केहरी, २६ ४ ख. लडाई | ५ ख. १ ख. ग. सुछलि । २ ख वाटि । ३ ख बढ़ा। ग. वढ़ां । ग. रणि । ६ ग. जमदाढ़ । ७ ग. रिम । ८ख. ग. केलि । ६ ख. माराराज । १० ख. ग. जिम । ११ ख. वोलोयौ । ग. बोलियो । १२ ग. वाटि । १३ ग. चडी । १४ ख. मौहौरि ! ग. मौहरि । १५ क. भवधारां । ग. भवधारौ । १६ ख. ग. पीळा अषित । १७ ख. ग. पौहौ । २१ ग. श्रासमांन । २५ ख. वग । १८ ख. ग. वाट । २२ ख. तांडि । ग. २६ ख. सुछल । १९ ख. ग. पूछीया । २० ख. तदि । ग. तद । ताणि । २३ ख. ग. जालोर । २४ ख. रमे । 'राजड़' खग " धारां । प्रगट जुध कीध अपारां । । छलि - युद्ध, लिये । ३८७. केहरी- केसरीसिंह पुरोहित । घरवट - वंश, वडाई - बड़प्पन, महानता । जमदढ़ - कटार । कर के | झेल - सहन कर के । वरू -वरण करू ३८८. समोभ्रम - पुत्र । वपतौ शरीर तो । जरदेत - कवचधारी । धमक प्रहार । चवधारां - भालों । गोळ - सेना पीळा अक्षत - मांगलिक अवसरों पर कुंकुंमपत्रिकाके स्थान पर प्रयोगमें लिये जाने वाले केसर में रंगे चावल । ३८६. गोरख - गोरखदान बारहठ । राजड़ - राजसिंह बारहठ । केहरी - केसरीसिंह बारहठ | - वंश-गुण । बाढ़ि रिमां शत्रुत्रों । - काट कर । वाहि- प्रहार Page #325 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०० ] सूरजप्रकास ऽवां' जेम' अोरि असि रिण' अथग, साजू 'विलँद' समाजसू । असुरांण रुधिर खग करि अरुण, सझू दवा महाराज सूं ।। ३८६ ____ कवित्त दौढ़ो सूर सती सुत सूर, रटै रुघपत्ती रोहड़ । विद्रं झाट वीजळा, घाट विमरीर त्रवधि' घड़ । कहि 'द्वारौ' धधवाड़", असुर असि धकै चढ़ाऊं । तिसी झाट रूपकां, जिसी खग झाट वजाऊं। वींद ज्युं ही चढ़ि वांन, तेजवानह अति तीखौ । 'मुकन' १२ जेणि' मौसरां, सुकवि जोवबा' सरीखौ'५ । तुररौस'६ धारि औरूं तुरूंग, हई७ सेल खागां हणे । सुभराज करूं महाराज सू१८, वीर साज इण' विध वणे ॥ ३६० सुतण 'नाथ' 'खेतसी', वदै सांदू खग वाहण' । 'वखतौ'२' खिड़ियौ वदै, रचूं 'अमरा' जैही रण। १ ख. ग. वां। २ ख. ग. जेमि। ३ ख. ग. रण। ४ ख. ग. साझं। ५ ख. अरण । ६ ख. ग. माहाराज। ७ ख. दोढ़ो। ग. दौढ़ौ। ८ ग. रुघपति । ख. ग. विषमरी । १० ख. ग. त्रिवध । ११ ख. दधवाङ । १२ ख. ग. मुकंद। १३ ग. जेण। १४ ख. जोउवा । ग. जोयवा। १५ ख. सरिषो। १६ ख. तुररोसु । ग. तुररोस । १७ ख. हुई। १८ ग. सौ। १६ ग. इणि । २० ग. वाहण । २१ ग. बषतो। २२ ख. षडीयो। ग. षडियो। ३६०. रुघपत्ती - रघुनाथसिंह । रोहड़ - रोहड़िया शाखाका चारण कवि । वीजळां तलवारों। घाट - प्रकार। द्वारो धधवाड़ - द्वारकादास धधवाड़िया गोत्रका चारण कवि। रूपका - कविताएँ अथवा डिंगल गीत (छंद विशेष)। मुकन - मुकंददान चारण कवि । सुकवि "सरीखौ - मुकंददान चारण कवि जो उस समय देखने योग्य था। हई - घोड़ा। सुभराज - अभिवादन, जिसका अर्थ प्रापका राज्य अथवा आप स्वयं सबके लिये कल्याणदायक हो। ३६१. नाथ - नाथूसिंह सांदू गोत्रका चारण। खेतसी - नाथूसिंह सांदू चारणका पुत्र । सांदू - चारणोंका गौत्र विशेष । वखतौ खिड़ियौ - खिड़िया गोत्रका बखता नामक चारण कवि जो अपने समय का प्रसिद्ध कवि था। अमरा - यह बखता खिडियाका पिता था, इसने महाराजा अजीतसिंहके समय बड़ी स्वामी-भक्ति प्रदर्शित की थी। Page #326 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३०१ मुणे नवल महियोर', रहूं हरवळां महारण । रटै वीर रूपकां, चवै इण विध' कथ चारण । सझि सझि सलाम बहस सुभड़ , जियां कहै वद जूजवा । रस्सवीर कवी सोभा रचै"," हेक जांणि बह'' वप हुवा ॥ ३६१ पूछे व्यास पवित्र, तांम महाराज 'अजण'तण । स्यांमध्रमी' बुध सरस, घj५ सुभचिंत' देखि' घण। 'दीपावत' ‘फतमाल', एम बोलै ८ अग्रकारी । सझि खग सत्र रत्र' सीस, जुगत° पूजूं' जटधारो। प्रासरीवाद करि करि अचड़, अँग२२ सुरंग२३ धारूं जलौ । ताजीम कुरब दीधौ२६ तिकौ५, आदि दिखाऊं ऊजळौ२८ ॥ ३९२ मुत्सुद्दो-पह६ वजीर पूछिया', धरा थंभण बुधधारी'। स्यांमध्रमी दिल साच, एक खांवद३२ इकतारी। एक हुकम आधीन, अवर सद्धन नह४ आणै । ओप३५ सूर उदार३६, जोध विदिया सह ८ जाण । १ ग. मीहयार । *यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है। २ ख. विधि । ३ ग. सजि सजि । ४ ख. ग. सलाह। ५ ख. ग. वहस। ६ ग. सुभट। ७ ख. जीयां। ८ ख. ग. वृद। ६ ख. जूजूवार। ग. जूजुवार । ख. तथा ग. प्रतियोंमें यह पद्यांश निम्म प्रकार है ___ 'रसवीर सुकवि सोभा रचे ।' १० ख. रचे । ११ ख. ग. वहौ। १२ ख. हूवा । १३ ग. सांमध्रमी । १४ ख. वुधि । ग. बुधि । १५ ग. धण। १६ ग. सुभच्यंत । १७ ख. ग. देषि। १८ ख. वोले। १६ ख. रन । ग. रत। २० ख. ग. जुगणि। २१ ख. पूजु । ग. पूजू । २२ ख. ग. रंगे। २३ ग. सूरंग । २४ ख. जलौं। २५ ख. जीम। २६ ख. दोघो। २७ ख. तिको। २८ ग. ऊळो। २६ ख. ग. पहौ। ३० ख. ग. पूछीया। ३१ ख. बुधिधारी। ३२ ख. ग. ख्वायद । ३३ ख. साधन । ग. साधण । ३४ ग. नहि। ३५ ख. ग. आपै। ३६ ख. ग. उदार । ३७ ख. विदीया। ३८ ख. ग. जुध । ३९१. मुणे - कहता है। नदल महियार - नवलदान महियारिया गोत्रका चारण कवि । ३६२. फतमाल - व्यास पदवी धारण करने वाला ब्राह्मण । अनकारी - अग्रगण्य । सत्र - शत्रु । रत्र - खून, रक्त । जटधारी - महादेव । ३९३. बुधधारी - बुद्धिमान । स्याम' 'इकतारी - सच्चे दिलसे जो स्वामी भक्त था तथा एक ही मालिकको मानने वाला था। Page #327 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०२ ] सूरजप्रकास बोलिया' 'रतन' 'गिरधर' बिन', सिरै दीवांण' सकाजरा । झट खाग रमां खासां झंडां, मंत्री तौ महाराज रा ॥ ३६३ राजभार व्रद रछिक, कहै 'धनरूप' एम कथ । असि झोका उजबका, भिडं जरदैतां भारथ । 'दलौ' 'लखौ दईवांण, कहै जुध करां' किरम्मर' । पुणे' एम गोपाळ, जडू १४ हरवळ धमजग्गर । बगसी बाळ किसन्न', कहै जरदैतां कापू । सिरबंधी१६ रातळां, अमख जवनां तिण' आ । तिण बार वहम' जयदेव तण, निहँग छिबै प्रारक नयण'। महाराजा तांम पूछ मतै, राजखांन 'सांमां' 'रयण'१३ ।। ३६४ वदै 'रयण' तिणवार, सार संसार एह सति । सरस मरण अवसांण, पछट खग धार सुछळ४ पति । कथ इम सासत्र कहै, दुलह लहिजै पूरब ८ दत। आज दोय अधिकार, मध्धि सरस्वति द्वारामति । १ ख. वोलोया। ग. बीलीया। २ ख. विहूं। ग. विहू । ३ ख. दिवांग ' ४ ख. माहाराजा। ५ ख. विद । ग. वृद। ६ ग. ऐम। ७ ख. ग. झोके । ८ ग, दलो। ६ ग. लषो। १० ग. करौ। ११ ख. ग. किरमर । १२ ग. पुणे। १३ ग ऐम। १४ ख. जुड़। ग. जुडू। १५ ख. ग. बाळकिसन । १६ ख. सिरि । १७ ख. ग. वित । १८ ख. ग. धार। १६ ग. ब्रह्म । २० ख. ग. छिवै । २१ ग. नयन। २२ व. माहाराज । २३ ख. रयण। २४ ख. ग. सुछलि। २५ ख. सास्त्र । २६ ग. दुलभ । २७ ख. ग. लहजै । २८ ग. पुरब । २६ ग. दति। ३० ख. मधि । ग. मद्य। ३१ ख. ग. सरसती। ३६३. रतन - रतनसिंह, भंडारी शाखाका प्रोसवाल। गिरधर - यह भी भंडारी शाखाका प्रोसवाल था। ३६४. उजबकां - तातारियोंकी उजबक जातिका व्यक्ति । घमजग्गर - युद्ध । रातळो - मांसाहारी पक्षी विशेष । श्रमख - आमिष, मांस। निहंग-आकास। प्रारक - लाल। ३६५. वदै - कहता है । रयण - रतनसिंह । सति - सत्य। पछट - प्रहार कर के । सुछळ - लिए, युद्ध । दुलह - दुर्लभ । पूरब दत - प्रारब्ध । मध्धि - मध्य । सरस्वति - साबरमती नदी। द्वारामति - द्वारका। Page #328 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३०३ नज फतै आप संदेह नह, नप' प्रब' हूं' चूकू नहीं। किलमांण विहँड खग" म्रत करूं, जुध द्रोणाचारज ज्युही' ।। ३६५ रटै अवर कथ 'रयण', सूर संगारसँपेखै १२ । सरब धरम सिरपोस', स्यांमध्रम ध्रम१४ संदेखे। सूरलोक' ६ सतपुरी, ध्रता धांमिकां धरां'८ ध्रति । इंद्रपुरी सुख अधिक, उमा'६ उमळा विमळा रति । सुज'° लहै सूर खग म्रत'' सझे, निरजर लखि व्रख#२२ नहीं । किलमांण विहँड खग म्रत करूं, जुध द्रोणाचारज ज्युंहीं ॥ ३६६ सिरै इता अवसांण, बहल, मो बाधि२७ भगत-बळ । अयं२८ अरथ ले जाय, प्राय सनकादक ऊजळ । मिळ२ मुकति-सांमीप, हुवै हरि दरस दसा हिम । पुरी सूर इंद्र पुरी, जिकै ३ दीस दासी जिम । सुजि लहूं प्रीति भारी सझे, मो इकतारी३४ चित महीं । किलमांण विहँड ५ खग म्रत करूं, जुध द्रोणाचारज ज्युही ॥ ३६७ १ ख. ग. नृप । २ ख. प्रव। ३ ग. हौ। ४ ख. चूकू । ग. चूको। ५ ख. किलिमांन । ६ ख. विहंडि। ७ ग. षळ । ८ ख. ग. मृत । ६ ग. ध्रोणाचारज। १० ख. ग. जहीं। ११ ख, ग. शृंगार । १२ ख. संपेषे। १३ ग. सिरपौस । १४ ख. ग. धरम। १५ ग. सदेष। १६ ग. सुरलोक। १७ ख. धृतां । ग. धाता। १८ ख. ग. परा। १६ ख. ग. रुमा। २० ख. ग. सुजि । २१ ख. ग. मृत । २२ ख. ग. वृखभ। २३ ख. किलिमाण । २४ ख. ग. विहंडि । २५ ख. ग. जही। २६ ख. ग. वहल । २७ ख. वाधि । ग. बांधि । २८ ख. ग. अयो। २६ ख. मेळे। ३० ख. ग. सनकादिक। ३१ ख. उज्जल । ग. उझळ । ३२ ख. मिळे । ग. मिळे । ३३ ख. ग. जिके । ३४ ख. इकतारा । ३५ ख. ग. विहंडि । ३६ ख. ग. मृत। ३७ ख. ग. जहीं। ३६५. प्रब - पर्व, पुण्य अवसर। किलमांण - यवन, मुसलमान । विहंड - संहार कर के । द्रोणाचारज - द्रोणाचार्य । ३६६. सँपेखै - देखता है। सिरपोस - श्रेष्ठ, शिरमौर। सूरलोक - वीरगति प्राप्त होने वाले बीरोंको प्राप्त होने वाला लोक । सतपुर - पतिके साथ सती होने वाली सतियोंको प्राप्त होने वाला लोक। भ्रता - ( ? ) । धांमिका- ( ? ) । निरजर - देवता। वखभ- (?)। ३६७. बाधि-विशेष, उत्तम । भगत-बळ - भक्तिका बल । मिळे - प्राप्त होते हैं । मुकति सामीप - एक प्रकारकी मुक्ति जिसमें मुक्त जीवका भगवानके समीप पहुँच जाना माना जाता है। पुरी सूर - सुरलोक । इकतारी- एक ही, दृढ़। Page #329 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०४ ] सूरजप्रकास महाराज' 'अभमाल', पूछ' धावड़ महपत्ती' । एक रंग अणभंग, बोल करि भ्रगुट बिरत्ती । आप काज" इण वार, सुभज कुळ लाज सुधारूं । वाज" प्रोरि' घड़ 'विलँद', आज जगि नांम उचारू १४ । निरख" नाग थट निजर, धजर ज्यां सीस धमोड़ .१३ १ बजर'" जेम बांणास', अजर पिसणां अंग तोड़ | ૨૧ R3 पळचार आस पूरूं प्रगट, चित उछाह इसड़ौ" चहै | वणि अमर देह अपछर वरूं, करूं एम धावड़ कहै || ३६८ ० ६ ह बिहूं" बँधव विरदैत, अनड़ धांधल अतुळीबळ । अभँग नरै 'भगवान', अरज कीधी पह ग्रागळ । आप मुहरि" असि" प्रोरि, घणां मुगळां खग घाऊं आवां कांम अचूक, पुरी सातह सुर पाऊं 39 । 3 3 — १८ ख. १ ख. ग. माहराजा । २ ख. ग. पूछि । ३ ख. महपती । ४ ख. कोलि । 1 ५. ख. कर । ६ ख भृगुट । भृगुटि । ७ ख. विरती । ग. विरत्ती ८ख. काल । ख. ग. सुभुज । १६ ग. सधारू । ११ ख. वाजि । ग. बाज | १२ ग. श्रोर । १३ क. प्राच । १४ ख. ग. उगरूं । १५ ख. ग. निरषि | १६ ख. ग. नजर । १७ ख. ग. धमोडू । वजर । ग. वज्र । १६ ख. ग. वाणास 1 २० ख. ग. पिसुणां । २१ ख. अगि । ग. अंग । २२ ग. पलच्यार | २३ ग. पूरु । २४ ग. इसडौ । २५ ख. विहं । ग. बिहूं । २६ ख. बंधव । ग. बंधव । २७ ख वरदैत । २५ ख धाधिल । ग. घांधिल । २६ ख. ग. पौह | ३० ख. मोहोरि । ग. मौहर । ३१ ख. असयो । ग. प्रसवार । ३२ ख. धावां । ग. घावां । ३३ ख. कांमि | ३४ ख. ग. पावां । - ३९९. विरदंत - यशस्वी, विरुदधारी । अनड़ - वीर । धांधल अथवा इस शाखाका व्यक्ति । अतुळोबळ - अतुल्य बलशाली राठौड़ । श्रीगळ - अगाड़ी । मुहरि - अगाड़ी । घाऊं निश्चय ही । । सुभज ३१८. धावड़ - राजकुमारको दूध पान कराने वाली स्त्रीका पति गुट - मस्तक, ललाट । बिरती ( ? ) । घड़ सेना | नाग थट - हाथी दल बजर - वज्र । बांणास तलवार । अजर - श्रजयी । पिसणां शत्रुनों । पळचार - मांसाहारी । । धजर - भाला। धमोड़ - प्रहार करू । - । १७ संहार 32 - 3% प्रणभंग - वीर योद्धा । श्रेष्ठ । बाज - घोड़ा । । wate राठौड़ोंकी एक शाखा नरं नरावत शाखाका कर दू | अचूक - Page #330 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३०५ तिण वार कहै तिजड़ाहथौ, 'केहर" खीची जोस करि । खग झटां करे दहवट' खळां, वसू अमरपुर रंभ वरि ॥ ३६६ दूहा - तदि' मसलति मझि तेडियौ', नरिंद बँधव नरनाह । वेळो तिण आयौं 'बखत', गहमहत्त दरगाह ॥ ४०० "अनुज नमे' तदि अग्रजे", ठह'५ ताजीमां ठीक । करो' कुरब्बां'४ पलक करि, दिय५ पासण नजदीक* ।। ४०१ सेनापति दूजौ१६ सगह, तेड़े पह" तिण वार । विखम भड़ां लीधौ ‘विजौ१८, प्रायौ' मँत्री उदार ।। ४०२ नमे कदमां' तदि निजर, यसारत२२ बरियांम२३ । तदि.४ पाए५ बैठौ२६ मँत्री, सझे तीन सल्लांम८ ॥ ४०३ प्रथम 'अभैपति'२६ 'पूछियौ', भूप कणैठी' भ्रात । अब झगड़ो कीजे किसूं, वखतसिंघ वडगात ॥ ४०४ १ ख केहरि २ ग. देहवट । ३ ग. वसु । ४ ग. वर। ५ ख. ग. दोहा । ६ ग. तद। ७ ख. तेडीयो। ग. तेडियो। ८ ख. तिणि । ६ ख. गहमहतै। ग. गहमहते । १० ख. नमै । ११ ख. पौहौ अग्रज । १२ ख. ठहि । १३ ख. करो। १४ ख. पलकां कुरव। १५ ख. दीय। *...* यह दोहा ग. प्रतिमें नहीं है। १६ ग दूजो। १७ ख. पौहौ। ग. पौह। १८ ग. विजो। १६ ग. प्रायो। २० ख. ग. नमे। २१ ख. कदमां । ग. कदमां। २२ ख. ग. इसारति । २३ ख. वरियाम । ग. वरीयांम। २४ ग. ततदे । २५ ग. पाय । २६ ग. बैठां। २७ ग. साजे। २८ ख. ग. सलाम। २६ ग. अनंप्रत। ३० ख. पूछीयौ। ३१ ग. कणीठी । • यह पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न प्रकार है कर जोडे कोधी अरज, वखतसिंघ वडगात ।' ३६६. तिजड़ाहो - खड्गधारी वीर। केहर - केसरी सिंह । खीची - चौहान वंशकी खीची शाखाका व्यक्ति। झटो - प्रहारों। दहवट - ध्वंस, संहार । ४००. तेड़ियो- बुलाया। भरिद - नरेंद्र, राजा अभयसिंह । नरनाह – नरनाथ, राजा । वेळा - समय । बखत - बखतसिंह । गहमहत्त- जनसमूह । दरगाह - दरबार । ४०१. ठह - ठहर कर। कुरब्बा - सम्मान । ४०२. सगह - सगर्व । तेड़े - बुला कर, बुलाया। विजौ - भंडारी विजयराज । ४०३. यसारत - इशारा या संकेत, इशारत । बरियांम - श्रेष्ठ । सल्लांम - अभिवादन । ४०४. कणंठी - छोटा, कनिष्ट । झगड़ो - युद्ध । वडगात - वीर, महान । Page #331 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०६ ] सूरजप्रकास छंद वृक्षरी [ बेप्रखरी] स्री महाराज प्राप' कुळ सूरिज । धरपति तेरह साख कमंधज । *कर ग्रहि मूझ निवाजस कीधौ । दूजौ राज नागपुर दीधौ* ॥ ४०५ नेजा खासा तोग नवब्बति । पह दीधा मो विना' दिलीपति' । सो ऊजळा करूं कसि सारां । भिड़ज वधे अोरूं१२ गज - भारां ।। ४०६ राज' मौहरि उपति'५ रघुराई । भि १६ जेण' विध'८ लखमण भाई । भिडि६षल थाट करूं जुध भूकां । रांवण जेम 'विलँद' दळ रूकां ।। ४०७ उडती झाळां लोपि० अराबां । बह२१ गजघड़ खगि हणूं निबाबां । १ ख. वे प्रक्षरी। ग. बे अक्षरी। २ ख. ग. माहाराज। ३ ख. ग. प्राज। ४ ख. ग. सूरज । ५ ग. दूजो। ६ ग. नागपूर । *.* ये दो पंक्तियां ख. प्रतिमें नहीं मिली हैं। ७ ख. ग. नववत्ति। ८ ख. ग. पौहौ। ख. मौ। १० ख. विनौ। ११ ग. दिलीपत्ति । १२ ग. गेरू। १३ ख. राजि। १४ ग. मोहरि। १५ ख. अभपति । ग. अभमल । १६ ग. भिडे। १७ ग जेसा। १८ ख. ग. विधि। १९ ग. लडि। २० ग. लोप । २१ ख. वही। ग. बहो। २२ ख. ग. नबाबां। ४०५. घरपति - राजा। तेरह साख - राठौड़ वंशको प्रमुख तेरह शाखाएं। निवाजस - महरबानी, बख्शीश । नागपुर - नागौर । ४०६. नेजा - भाला। खासा - राजा या बादशाहकी सवारीका हाथी या घोड़ा। नवब्बति - नौबत । सारां-- तलवारों। भिड़ज - घोड़ा। गज भारां- हाथीदल । ४०७. मौहरि-पूर्व, प्रगाड़ी। उपति - महाराजा अभयसिंहके लिए प्रयोग किया गया है (?) । रघुराई - श्रीरामचंद्र भगवान । लखमण - लक्ष्मण । पल थाट - शत्रु-सेना । भूका ध्वंस, नाश । रूकां - तलवारों। ४०८. झाळां - प्रागकी लपटें। प्रराबां - तोपें। गजघड़ - गजघटा, हस्तिसमूह ।। Page #332 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३०७ कुंभाथळां विहरि घण काळां । मारि' गजां लोपूं मछराळां ॥४०८ इम हरवळ दळ डोहि' अथागां । खासां - मँडां वजाऊं खागां । झिलम समेत किलम सिर झाडं । पखरैतां जरदैतां पाई ॥४०६ 'सिर - विलँदेस'- तणा घेसाहर । पाई खग झट घणौ' पँवाहर' । वीज अखाढ़ जेम'२ खग वाढां'३ । गोळ दरोळ करूं अवगाढ़ां ॥ ४१० झेलं१४ लोह अनेक झिलाऊं । अरुण होय मुजरा कजि पाऊ'५ । रैवत सहित होय रातंबर' । करूं१७ सलाम'८ रंगिय किरमर ॥ ४११ १ ग. मार। २ ख. ग. मतिवाला। ३ ग डौहि। ४ ख. सहेत। ग. सहित। ५ ख. झाडं। ग. झाडू। ६ ख. जरपाडूं । ७ ख. सिरि। ८ ग. विवळदेस। ६ ख. ग. घांसाहर। १० खः घणो। ग. घणा। ११ ख. ग. पवाहर। १२ ग. जैम। १३ ख. वाहां। १४ ग. झेलौ। १५ ख. प्रांऊं। १६ ख. रावंतवर । १७ ग. करौ। १८ ग. सिलाम । ४०८. कुंभाथळां - कुम्भस्थलों। विहरि - विदीर्ण करके। मछराळा - वीरों । ४०६. डोहि - विलोड़ित करके, मंथन करके। प्रथागां - अपार, असीम। वजाऊं खागां - तलवारोंके प्रहार करू। झिलम - युद्ध के समय सिर पर धारण करनेका टोप विशेष । किलम - मुसलमान । झाड़- काट डालूं । पखरतां - कवचधारी घोड़ों। जरदैतां - कवचधारी योद्धाओं। ४१०. सिर-विलवेस - सर बुलंदखां । धेसाहर - सना, दल । पॅवाहर - ( ? )। वीज - बिजली। अखाढ़-प्राषाढ़ मास । बाढ़ा - कांटों। गोळ - सेना, फौज। दरोळ - . उपद्रव । अवगाढ़ा-वीरों, धैर्यवानोंमें । ४११. झेलू लोह - प्रहार सहन करूं। अरुण - लाल । मुजरा - अभिवादन। रवंत - घोड़ा। रातंबर- लाल। किरमर - तलवार । Page #333 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३०८ ] सूरज प्रकास रहूं जेणिहूं' करूं वाधि रिण । 'अजमल' तण तौ आपरौ बँधव आणंद' वर इम सुणि वयण हुवौ स्याबासिय बँधव राजेसुर ।। ४१२ प्रफुलत वदन होय 'प्रभमल' ह । सुभड़ 'धिराज'तणा पूछे सह । कहै " भड़ां किण'' विध जुध कीजै । ११ ५२ 93 दिल मभि" होय तेम कहि दीजै ।। ४१३ छोटी । छोटा दिनां वेस वप१४ मोटी अकल लाज कुळ करि करि तीन सलांम जेम कर मोटी । ५ बहस " बहसि बोलिया अणभँग सिरै जोध 9 'बहादर ' .१६ करणावत । 'करणावत* । अचळ सूरज तायक जोध 'पतौ' 'महकन'" तण । घणछक दुहूं बोलिया ३ ब्रद४ घण ||४१५ २२ २३ १ ग. हु । २ ग. करू । ३ ख. ग. रण । ४ ख. हु । उर । ७ ख. सावासीयौ । ग. सावासियो । ८ख. ग. पौहौ । २० ख. ग. कहौ । ११ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है । १२ रू. विधि । १४ ग. बप । १५ ख कर कर । १६ ख. ग. करि । १८ ख. बोलीया । ख. तथा ग. २१ ख. महिन । * ॥ ४१४ ५. ग. श्रानंद । ६ ख. ग. εख. सौहौ । ग. सोहौ । १३ ग. मभि । १७ ख. ग. बहसि वहसि । १६ ख. वहादर । ग. बाहादर । २० ख. ग. श्रणचल । प्रतियोंमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है - ' प्रणचल सूरज करण प्रभातव । ' २२ ग. दूहूं । २३ ख. वोलीया । ग. बोलोया । २४ ख. ग. विद । ४१२. वाधि - विशेष । तण - तनय, पुत्र । वयण हित किया, जोश दिलाया । ४१३. सुभड़ - योद्धा । धिराज - अधिराज, महाराज बखतसिंह । ४१४ वे वस, श्रायु । वप - शरीर । मोटी - महान, बड़ी । ४१५. श्रणभँग - वीर योद्धा । जोध - योद्धा करणावत राठौड़ वंशकी एक शाखा या इस शाखाका व्यक्ति । प्रणचळि - अटल, दृढ़ । पतौ प्रतापसिंह । महऋन - मह कररण | घणछक - युद्ध ( ? ) । व्रद घण - अनेक विरुदोंको धारण करने वाले । - - वचन, वाक्य | स्याबासियो - उत्सा Page #334 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धसे ' आडा ७ १० हरखे पह बूझिया झळाहळ । ४ मेड़तिया - मेड़तिया " बोलिया' सूरजप्रकास हरवळां चौड़े' धड़े । लोहां लड़ां अखाड़े ह १२ दूजौ । । दाखै तांम 'कुसळ सी' सिरदारोत" महाभड़" " सूजौ .११६ । साकुर पहल ओरलूं ओरलू सारां । धमरोळू" हरवळ चौधारां" ।। ४१७ ह रँग मट फूट घट करि रवाळां । ܘ कळह झाट खेलूं किरमाळां । जाजळमांन 39 भयंकर जोस । 3 0 ૨ पाड़ं बहरे खळ बगतर - पोसां ।। ४१८ घण ठेलूं मुग्गळ - दळ घेरां । सांम मुख झेलूं समसेरां । २४ - 9 3 महाबळ १३ ।। ४१६ ४१७. सिरदारोत- सिरदार सिंहका पुत्र । सूजौ धमरोळूं - संहार कर दूं, मारू । चौधारां 1 १० ख. झाळाहळ | १ ख. ग. घसि । २ ख. ग. हरवल । ३ ग. चोडेधाड़े । ४ ख श्राडी । ५ ख. पगां । ग. बागां । ६ ख. ग. श्राषाड़े । ७ ग. हर । ८. ग. पौहौ । ६ ख वृकीया । ग. बूझिया । ११ ख. ग. मेडतीया । १२ ख. वोलीया । १.३ ग. माहाबळ । १४ सिरदारौत | ग. सिरदारांत । १५ ग. महोभड़ | १६ ग. सूजो । १७ ग. धमरोळां । १८ ख. चवधारां । ग. चौवधारां । १६ ख. ग. फुट । हूं। २१ ख जाजुलिमांन । ग. जाजुलमांन । २२ ख. बौहौ । ग. वोहो । सांहै । ग. सां । २४ ख. मुषि । २० ख. २३ ख. ४१६. चौड़े-धाड़े खुले आम । श्राडा... 'लड़ां - तलवारोंसे युद्ध करेंगे। अखाड़े - युद्ध | बूझिया - पूछे । झळाहळ - तेजस्वी । - ४१. रंग मट - रंग डालनेका मिट्टीका पात्र घट [ ३०६ सूरजमल या सूरजसिंह । साकुर - घोड़ा। • भालों । मानों । किरमाळां - तलवारों । बगतर-पोस - कवचधारी । शरीर । रचदाळां - यवनों, मुसल ४१. घण घेरां मुगलोंके अपार दल समूहको पीछे हटा दूंगा । झेलूं - सहन करूंगा । समसेरां - तलवारों । Page #335 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१० ] . सूरजप्रकास वर' अपछर' जग क्रीत' वधाऊं । का सिंभजीवत विरद कहाऊ ।। ४१६ विढ़तां नारद सँकर वखांणै । पह तो रिजक लियौ परमाण । आगि व्रजागि बोलियौ अन्नड़ । 'भोज' तणौ 'अखमाल' महाभड़११ ।। ४२० वधि' खळ थटां करूं१३ झळ वेगां । तखा भुजंग ज्यु१४ ही झल५ तेगां । झळहळ गदा जेम खग झाई । भीम पँडव' जिम गजां भमाई १८ ॥ ४२१ 'हरियद'१६ 'भाऊ'२° सुतन' हठाळौ । 'चंद' हरौ २ बोले कळिचाळौ । अोरू३३ वाज हरवळां ऊपर४ । जरदैतां खेलूं खग गज्जर२५ ॥ ४२२ - - १ ख. ग. वरूं। २ ख. ग. प्रछर । ३ ख. ग. क्रोति । ४. ख. ग. काय। ५ ख. पौहौ। ग. पोहौ। ६ ख. तौ। ७ ग. प्राग। ८ ग. व्रजाग। ख. वोलीयौ । ग. बोलियो। १० ख. ग. अनड। ११ ख. माहाभड। १२ ग. विधि। १३ ग. करौ। १४ ख. ग. जहीं। १५ ख. ग. झट । १६ ख. तेषां। १७ ग. पाठवि । १८ ख. भंमा। १९ ग. हरबिंद। २० ग. भीव। २१ ख. सुतण। ग. सूतण । २२ ख. हलो। २३ ख. ग. वोरूं। २४ ग. उपर। २५ ग. गजर । ४१६. वर - वरण करके, पाणिग्रहण करके। क्रीत - कीर्ति । का-या, अथवा। सिंभ. जीवत - युद्ध में बहुतसे अस्त्र-शस्त्रके घावोंको सहन कर घायल होने वाला वह वीर जो जीवित रह गया हो। ४२०. विढ़तां - युद्ध करते हुएको। वखांण - प्रशंसा करें। रिजक - जागीर। प्रागि व्रजागि - वज्राग्निके समान । अन्नड़ - योद्धा, वीर । ४२ . वधि - संहार करके । थटां - सेनाओं। झळ - अग्नि । तखा- तक्षक नाग, तेज । झल - धारण करके । तेगां - तलवारों। झळहळ -- चमचमाती हुई, देदीप्यमान । झाड़- प्रहार करू', प्रहारसे गिरा दूं। भमाड़-भ्रमायमान कर दूं । ४२२. हरियद - हरिसिंह । हठाळो - हठीला वीर। हरौ-वंशज। कळिचाळी - वीर । वाज-घोड़ा: गज्जर -प्रहार । Page #336 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [३११ दुगम जवन घड़ि' कामणि दोळी । हुय' खेलूं गेहरियां' होळी । खग झट वसँत महारिण खेलूं । झट खग सुजळ अनि रता झेलू ॥ ४२३ बळे करूं रिण मंझि विमाहौ । सुध दस रेख खाग झट साहौ । हेकणि हाथ अछर हथळेवौ । करि हिक खग वाहूं° धर केवौ ।। ४२४ पड़ि रिण'' रथ चढ़ि सुरग' पधारूं । इळा एण विध१४ अचड उबारूं । रटै हेक 'पदमौ'१५ 'रतनावत' । दूजौ'६ ‘पदम' रटै'" 'दौलावत' ॥ ४२५ वाहि'८ वुहाय'६ घणी वीजूजळ । तंडळ खगां" करे ह्वां' तंडळ । १ ख. ग. घड। २ ख. ग. होय। ३ ख. गेहरीयो। ४ ख. माहारण। ग. महारण । ५ ख. ग. रण। ६ ख. मझि। ग. मझ। ७ ख. ग. वीमाहौ। ८ ग. हेकण । ६ ख. म. हथळेवो। १० ग. बाहू । ११ ख. ग. रणि। १२ ख. रथि। १३ ख. सुरगि। १४ ख. ग. विधि। १५ ग. पदमो। १६ ग. दूजो। १७ ग. रटें। १८ ख. बाहि । १६ ख. ग. बह्वाय । २० ख डलां। ग. षोळां । २१ ख. ग. ह्वां। ४२३. दुगम - दुर्गम, कठिन । घड़ि - घटा, सेना। कामरिण - कामिनी। दोळी - चारों ओर । गेहरियां - फाल्गुन मास का गेहर नामक नृत्यमें भाग लेने वाला । महारिण महारण, बड़ा युद्ध। ४२४. बळे - फिर, पुनः। विमाहौ - विवाह । साहो --विवाह-लग्न । हेकणि -- एक । हथळेवौ - पाणिग्रहण, पारिणपीडन। ४२५. सुरग - स्वर्ग । पधारूं - गमन करूं। इळा - पृथ्वी, भूमि । अचड़ -- महत्त्वपूर्ण कार्य, कीर्ति । ४२६. वाहि- चला कर, प्रहार कर। हाय - चलवा कर । चीजूजळ - तलवार । तंडळ - ध्वंस, नाश, खंड-खंड। Page #337 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१२ ] सूरजप्रकास इम प्रथमी' सिर' क्रीत' उबारां । परणे अपछर सुरगि पधारां ।। ४२६ दारण वाघ रूप दरसावत । चांपावत- चोळ नयण बोलै' चांपावत' । तेज पुंज 'सुरतौ'६ ‘हरियँद" तण । 'अचळावत' 'तेजो'८ पंचांणण' ।। ४२७ चवै एह कुळ सुजळ चढ़ावा । विखम थाट खग झाट वजावां । तिण वेळा रावत 'वखतारा । कंपावत- कुंपावत बोले ११ कळि' नारा ।। ४२८ देवीसिंघ संमत'१३ सुत दारण । 'राम' सुतण रघुपति रोसारण । दाखै १४ अ गज घड़ा'५ दमंगळ । वाह६ करै'" हाथळ वीजूजळ ।। ४२६ १ ख. ग. प्रिथमी। २ स्व. ग. सिरि। ३ ख. ग. क्रोति । ४ ख. वोले। ग. बोले । ५ ख. चंपावत। ६ ग. सुरतो। ७ ग. हियंद। ८ ग. तेजो। ६ ख, ग. कुळि । १० ग. वजावं । ११ ख. वोले। १२ ग. कळ । १३ ख. सामंत । ग. सांमत । १४ ख. वष्पै । ग. दे। १५ ख घडां। ग. घटां । १६ ग. बाह। १७ ख. ग. करां। ४२६. सिर – ऊपर, पर । क्रील - कीति । परणे - विवाह करके । सुरगि - स्वर्गमें । ४२७. दारण - दारुण, भयंकर । चोळ - लाल, रक्त । चांपावत - राठौड़ वंशकी एक उप__ शाखा अथवा इस शाखाका व्यक्ति । सुरतौ - सुरतसिंह। हरियेद - हरिसिंह । तेजो- तेजसिंह। ४२८. चवे- कहता है। सुजळ - कांति, प्राभा । विखम - विषम, भयंकर । थाट - सेना, दल, समूह । खगवजावां - तलवारके प्रहार करें, तलवारके घाट उतार दें। वेळा - समय, अवसर । रावत - योद्धा, वीर। वखतारा-महाराजा बखतसिंहके । कंपावत - राठौड़ वंशकी एक उपशाखा या इस शाखाका व्यक्ति । कळि नारा - वीर, योद्धा। ४२६. संमत – सांमतसिंह पावत । राम - रामसिंह। रघुपति - रघुनाथसिंह । रोसारण - रोसमें लाल, जोशपूर्ण । वाखै - कहता है । गजघड़ां- हाथियोंके दल । वमंगळ - महान, जबरदस्त, युद्ध । वाह - प्रहार । हाथळ – हाथकी। Page #338 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास संकर सकति ' महाभड़ उचरै जोधा राठौड़ - जाजुळमांन जगि सुरतांणसिंघ जाजुळमांन' 'दलौ' घण वद धार कहै E दुसहां खेलं रूक डँडे । 9 रोधा । 'जोधा' । 'भूंझावत'" । 'जगतावत' || ४३० ७ ५ बंधी घड़ | तण 'राजल'" 'पातल" अतुळीबळ । हरनाथ ' 'करण' झाळाहळ ॥। ४३१ ० दुहवै " कहै एण विध" दारण | विडंग झोकि लोपां घड' ३ वारण | घाय खगां खळ करां बरंग घट । 3 १४ लां खळां तणी बह" खग झट ।। ४३२ ३ ख. ग. जूझावत । ४ ख. १ ग. सगति । २ ख. जाजुलिमांन । ग. जाजळमांन । जाजुलिमांन। ग. जाजळमांन । ५ ख. ग. त्रिवधी । ६ क. खेलुं । ७ ख. ग. राजड । ८ख. पातुल । ६. अतुलीवल । ग. अतळीबळ । १० ख. हरिनाथौत। ग. हरिनाथोत । ११ ख. ग. दहुंवै । १२ ख. ग. विधि | १३ ख घण । १४ ख. वहौ । ग. बहो । [ ३१३ ४३०. जोधा - राठौड़ोंकी एक उपशाखा या इस शाखाका व्यक्ति । भूंझावत- भूंभारसिंहका पुत्र । दलौ जगतावत- जगतसिंहका पुत्र दलौ । ४३१. घणधार - अपार विरुदोंको धारण करने वाला । त्रबंधी घड़ - तीन प्रकारकी सेनासे ( पैदल, श्रश्व-दल और गज-दल । दुसहां - शत्रु । रूक - तलवार | डॅडेहड़ - होलिकोत्सव के समय गेहर नामक नृत्य में उपयोग में ली जाने वाली काष्टकी छड़ी । राजल - राजसिंह । पातल प्रतापसिंह । श्रतुळीबळ - अतुलबलशाली । हरनाथोत - हरनाथसिंहका पुत्र | करण - कर्णसिंह । झाळाहळ - तेजस्वी | ४३२. विडंग - घोड़ा । लोपां - लाँघ जाय । घड-सेना । वारण- हाथी, गज। घाय खगां - तलवारोंसे संहार कर के, तलवारके घाट उतार कर के खळ घट - - शत्रुनों के शरीरको खंड-खंड कर दूंगा। लांझट और विपक्षियोंके अमित शस्त्र प्रहारों को सहन करूंगा । Page #339 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१४ सूरजप्रकास पड़ि चुख चुख हुय' वरां अपच्छर' । अमरापुरां वसां हुय 3 अम्मर " । उदावतं - अतुळीबळ बोल ऊदावत । (भड़) सारां सिरै 'चैन' सूजावत ॥ ४३३ धख करि फूल अणी असि धारूं । मुगळ सिलह बंध खग झट मारूं । खेलूं'• झिलू' अखाड़ां१२ खंडां' । झूल हणूं खळ खासां झंडां ॥ ४३४ कमध 'पतावत' मते करारै । करमसीयोत- इणहिज विध४ 'ऊदल' उच्चारै'५ । हुय'५ विमरीर रूप झाळाहळ । बोलै १६ 'करमसियोत'१७ महाबळ ।। ४३५ १ ख. ग. होय। २ ख. ग. अपछर। ३ ख. ग. होय। ४ ख अंम्मर । ग. अमर । ५ स्व. अतुलीवल । ६ ख वोले । ७ ख. ग. सिर। ८ ख. ग. सुभावत। ६.ख. ग. धव। १० क. खिलं । ११ ख. झिलू । ग. झेलौं। १२ ख. अडां। ग. प्राडां। १३ ख. म. षडां। १४ ख. विधि। १५ ख. ऊचारै। १६ ख. ग. होय। १७ ख. वोले। १८ ख. करमसीयौत । ४३३. पड़ि... अपच्छर - तथा युद्धस्थल में खंड-खंड हो कर गिरूगा और वीरगति प्राप्त होता हुअा अप्सराका वरण करूंगा। अमरापुरां- स्वर्गका । अम्मर - अमर, देव । ऊदावत - राठौड़ोंकी एक उपशाखा तथा इस शाखाका व्यक्ति । भड़ सिरैयोद्धाओं में सर्वश्रेष्ठ । चैन सूजावत - चैनसिंह सुजावत । ४३४. धख - रोश, जोश, कोप । फूल अणी- तलवारकी नोंक । सिलह बंध - अस्त्रशस्त्रोंसे सुसज्जित, कवचधारी। खेलू "खंडां - युद्धस्थल में युद्धरूपी खेल खेलू और शस्त्रप्रहारोंको धारण करता हुआ विपक्षियोंको खंड-खंड करता हुआ उनके झुण्ड (झूल)के झुण्ड खासा झंडाके पास ही ध्वंस कर दूंगा। ४३५. पतावत - प्रतापसिंहका पुत्र | मत करार- जबरदस्त विचारसे । ऊवल - उदावत शाखाका वीर। उच्चार - कहता है । माळाहळ - अग्नि या सूर्य । करमसियोत - राठौड़ वंशकी एक उपशाखा या इस शाखाका व्यक्ति । Page #340 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३१५ लाल नयण अंबर सिर लगतौ' । . जद बोलियौ 'लखावत''जगतौ५* । वधि हरनाथ तणौ जिण' वारै । इम हिज सिंभूसिंघ उचारै' ॥४३६ अचिरज किसौ१ एह अधिकाई । भड़ विमरीर 'ऊद'रै१२ भाई । ऊहड राठौड़- घाय खगां भांजण१३ उजबक १४ घड । अणभंग तांम बोलियौ'५ ऊहड़ ।। ४३७ प्रोपम नयण धिखंतां पारण । दाखै सूर विहारी' दारण । हाथियांतणां१६ जंगी हवदांमें । रो सेल घड़ां रवदांमें १८ ।। ४३८ अंग झकबौळ६ रुधर हुय' पाऊं। कायम जीवत सिंभ२३ कहाऊं । १ ग. लगतो। २ ख. ग. जदि। ३ ख. बोलीयौ। ग. बोलियो। ४ ग. लाषावत । ५ ग. जगतो। * इस पंक्तिसे आगे ख. तथा ग. प्रतियों में निम्न पंक्तियां मिली हैं __ 'विधि विधि बीझळ झाळ वजाऊं। घण रवदाळ सिलह बंध थाऊं।' ६ ख. विधि। ग. बधि । ७ ग. तणो। ८ ग. तिण। ग. वारे। १० ख. उचरि। ११ ग. किसो। १२ ख. ऊदरौ। ग. ऊदरो। १३ ख. भां। १४ ख. जवक । १५ ख. वोलीया। ग. बोलिया। १६ ख. हाथीयांताणा। १७ ख. ग. हवदांम। १८ ख. ग. रवदांमै । १९ ख. वोल। ग. बोल । २० ख. ग. रुधिर। २१ ग. होय। २२ ख. प्रांऊ। ग. जाऊं। २३ ग. सिभु। ४३६. अंबर - प्रासमान । जगतौ - जगतसिंह । ४३७. अचिरज - आश्चर्य । ऊदरै -- उदयसिंहके। घाय 'घड़ -- तलवारोंके प्रहारोंसे उजबकों (यवन शाखा विशेष)को सेनाका ध्वंस करूगा । अणभंग - वीर । ऊहड़ - राठोड़ोंकी एक उपशाखा या इस शाखाका व्यक्ति । ४३८. धिखतां - प्रज्वलित । प्रारण - लोहारकी भट्टी। बिहारी- बिहारीसिंह । दारण - शक्तिशाली, वीर। हवदांमें - हाथियोंके हौदोंमें। रोj सेल - भाला (एक शस्त्र) खड़ा करू। ४३६. झकबोळ "पाऊं- हाथीके हौदेमें भालेका प्रहार करूंगा और मैं स्वयं अस्त्रशस्त्रोंके प्रहारोंसे अपने शरीरको रक्त में तरबतर करके ही आ कर महाराजासे सलाम करूगा। जीवत सिंभ - युद्ध में हो कर जीवित रहने वाला वीर । Page #341 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१६ ] चौहाण - जें संभरी चाहवाण * सूरजप्रका संभर बोल 'लाल' सुतण मौकौ' अजरायल । तै बंधव' 'माहव'' ११० रिण तायल । औ दाखै असि झोक " प्रथाहां । aft सूरजमाल 'जूंझा'"" रौ उजवाळा । कळिचाळा ॥। ४३६ भाटी - अरण नयण चख रीस भड़ विमर बोलिया १४ खळां सीस ३ खग वाहां ॥ ४४० सुतन भड़ 'नाथ' रौ - उपाटी । भाटी । 'सांमळ' | झळाहळ ।। ४४१ ६ ७ केकांणां' 1 घमसांणां । कहै दुहूं ओरे' घण खग झाट रमां तण जगमाल 'हिमत' तिण वारै । ग्राऊं" कांम १६ एम उच्चारै ॥ ४४२ १८ २० १ ग. जे । २ ख. ग. संभरा । ३ ख. ग. ऊजाळा | १ ख. ग. चावण । ५ ख. बोले । ग. बोले । ६ ख. मोहौकौ । ग. मोहोको । ७ स्व. ग. श्रजराइल | ८ग. ते I ६ ख बंधव । ख. ताव । ११ ख. झोकि । १२ ग. विधि | १३ ख. सीसि । १५ ख ग. भूझा । १६ ख. ग. वोरे । १६ ख. कांमि । २० ग. उचारे । १० १७ ख. कांणां । १४ ख. बोलीया । श्रांऊं । ग. श्राऊ । १८ ख. - ३३६. जें जो । संभरी चौहान वंशका विरुद, चौहान । संभर- सांभर नामक स्थान । उजवाळा - उज्ज्वल करने वाला । कळिचाळा - वीर योद्धा । ४४०. लाल - लालसिंह मौको मुहकमसिंह । श्रजरायल - वीर। माहव - माधवसिंह | तायल - ( कोपवान ? ) । - ये । दाखे - कहते हैं । भोक झोंक कर । थाहांअपार । वधि वधि - बढ़ बढ़ कर । खग वाहां- तलवारका प्रहार करें, योद्धा । ४४१. उपाटी - बढ़ी । | सांमळ - श्यामसिंह | ४४२. केकाणां - घोड़ों । घण घमसांणां - पार तलवार प्रहार करते हुए युद्धस्थल में युद्ध खेल खेलेंगे। हिमत - हिम्मतसिंह । श्राऊं कांम - वीरगतिको प्राप्त हो जाऊंगा। - Page #342 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३१७ . घण व्रद पूर बारहट' घररौ । करणीदांन कहै केहररौ' । अोरूं ऊछट' जोम अलीलौ । नेजायतां तणै विच नीलौ ॥ ४४३ वीजळ कळहळ धार विहारां । पछद्रं जरद - पोस” अणपारां । भूलूं नह कुळवाट सुभाए । असी सुरंगी ये खग'' आए । ४४४ कहै पिरोहित राज अणंकळ । 'माहव'रौ 'विजपाळ' महाबळ१४ । भेळू'५ तुरँग भमर गज भारां । धड़छू दुसह ऊजळी धारां ॥४४५ ते पौहचं लग नील'६ पताखां । इम उजवाळं पीळां - आखां । १ ख. ग. वारहट । २ ख. कहरा। ३ ख. प्रौरूं । ग. औरौं । ४ स्व. उछट । ५ ख. ग. विचि । ६ ख. ग. झळहळ । ७ ख गरद अस । ग. गरद पोस। ८ ख. ग. प्रासी। ९ ख. सूरंगी। ग. सूरंगि। १० ख. ए। ग. ऐ। ११ ख. ष। ग. षगि। १२ ख. पितौहित। १३ ख. अणंदकल । १४ ख. माहावल । ग. माहाबळ । १५ ख. मेलू । १६ ग. वाळ । १७ ग. अजवालू । १८ ख. ग. पीळापाखां । ४४३. घण'' पूर - अनेक विरुद धारण किये हुए। करणीदांन – यह मुदियाड़के ठाकुर केसरी सिंहका पुत्र था। केहररौ- केसरीसिंहका । ऊछट - विशेष, श्रेष्ठ । जोम - जोश । अलीलो - घोड़ा। नेजायतां तणे-भाला-धारियोंके । नीलो - रंग विशेषका घोड़ा। ४४४. वीजळ - तलवार । कळहळ - युद्ध, युद्धका कोलाहल । कुळवाट - कुलमार्ग । असी - घोड़ा। सुरंगी- लाल रंग। ४४५. अणकळ-वीर । माहवरी-माधवका (पत्र)। भेळ-झोंक दं। भमर -श्याम रंगका घोड़ा । गज भारां- हाथियोंका दल । धड़छू-संहार कर दूं। धारां- तलवारों । ४४६. ते - उससे । पोहचूं - पहुंच जाऊं। लग - तक, पर्यन्त । नील पताखां - हरे रंगकी झंडी। उजवाळू - उज्ज्वल कर दूं । पोळां प्राख - मांगलिक अवसरों पर केशरमें रंगे हए अक्षत । वि. वि. राजस्थान में यह एक प्रथा है कि मांगलिक अवसरों पर अपने इष्ट मित्रों व संबंधियोको चावलको केसर या पीले रंग में रंग कर निमंत्रण-पत्रके तौर पर ब्राह्मणके साथ भेजे जाते हैं। यहां कविका तात्पर्य यह है कि महाराजाने मुझे मांगलिक अवसरों पर आमंत्रित किया है अतः आजके इस युद्ध में भी मैं अपना कर्तव्य पूर्ण करूगा। Page #343 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१८ ] सूरजप्रकास 'अधिराजरौ' दिवाण' उचारै । भेळू असि खग कढि गज भारै ।। ४४६ धड़चूं' (छू) मुगळ पह चख ज धौळी। पुणे एण विध 'लाल' पँचोळी । कहै व्यास खळ हणां किरमर' । नंदलाल हरलाल'१ नभै नर ॥ ४४७ तोले' खाग गयण भूज तोले'४ । 'बखतेसरा जोध इम बोलै'५ । छक इसड़ौ 'अधिराज' छभारौ । औ६ स्रब' तेज प्रताप 'अभा'रौ ।। ४४८ उण मौसर ८ पहलूंण उजाळौ । पूछ१ स्यांमध्रमी 'विजयाळौ' । सावधांन दहुंवै१३ गुण साहै । मंत्रीपणा खत्रीवट माहै२४ ।। ४४६ १ ख. ग. दीवांण। २ ग. कटि। ३ ख. ग. धडछू। ४ ख. ग. पहो। ५ ख. चिधज । ग. चिधिज ६ ग. पुणे। ७ ग. ऐण। ८ ख. ग. विधि । ६ ख. पचौली। ग. पचोळी १० ख. करिमर । ग. करिमर । ११ ख. ग. हरिलाल । १२ ख. ग. नभै । १३ ग. तोल। १४ ख. तोले। १५ ख. बोले। १६ ख. प्रौपं। ग. प्रो। १७ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है। १८ ख. ग. मौसरि । १६ ख. ग. पौहो। २० ख. उजाल । २१ ख. पूछ। २२ ख. ग. दुहुंचे। २३ ख. साहे। २४ ख. षत्रीवट माहे । ४४७. अधिराजरौ - महाराज बखतसिंहका । भेळू - झोंक दूं। गज भार- हाथियोंके । - समूहमें। ४४७. धौळी - श्वेत, धवल । पुणे- कहता है। लाल-लालचंद। पंचोळी - कायस्थ । किरमर - तलवार । ४४८. तोले-प्रहार हेतु तलवार उठा कर । गयण - प्रासमान । बखतेसरा - महाराजा , बखतसिंहका। छक - तेज, रुतबा, प्रभाव । बब- सर्व, सब। प्रभारौ - अभय सिंहका। ४४९. मौसर – अवसर, मौका। विजयाळी - विजयराज भंडारी। मंत्रीपणा - मंत्रीत्व । खत्रीवट माहै - क्षत्रियत्वमें । Page #344 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३१६ कीधी अरज 'विजै' जोड़े कर । सुणिजे' महाराज' राजेस्वर । आज प्रताप राजरौ' अहो । जग ऊपरा सहँस - किर जेहौ ॥ ४५० दळबळ'' द्रब्ब१ दांन खग दावै । अनि भूपाळ जोड़ नहीं पावै । कूत साहनूं हुतौ सकाजा । मौहम'४ जिसी लीध' महाराजा'६ ॥ ४५१ थाट दिलेस भार भुज थुभियौ । पापां'८ जिसौ काम प्रारंभियौ' । समर जीत ‘गजणहूं सवाई । आप तणा खग तणी प्रवाई ॥ ४५२ खांन अवर दहसत' सब खावै । आपहूंत लड़वा नह आवै । सरस आप खग तप सरसांण । 'मुदफर' दळ भागा मुगळांण ॥ ४५३ १ ग. सुणजे। २ ख. माहाराजा । ग. महाराजा। ३ ख. ग. राजेसुर। ४ ग. प्राप। ५ ख. ग. एहो। ६ ख. उपरां। ७ ख. ग. सहस। ८ ख. ग. कर। ६ क. जैहो । १० ख. दलवल । ११ ख. द्रव्व । ग. द्रव। १२ ग. नहि। १३ ख. हुतो । ग. हुतो। १४ ग. मोहम। १५ ख. ग. लोधी। १६ ग. माहाराजा। १७ ख. थंभीयो । १८ ग. प्राप। १६ ख. प्रारंभीयो। २० ख. श्रव वहसत पावै । ग. सब दहसत पावै । ४५०. विज - विजयराज भंडारी । जोड़े कर - करबद्ध होकर । प्रताप - प्रभाव, ऐश्वर्य । सहस-किर – सूर्य । ४५१. अनि - अन्य। जोड़ - समानता । कूत - अनुमान । मौहम - ( ? )। ४५२. थाट - सेना, दल । दिलेस - दिल्लीश, बादशाह । भार भुज - उत्तरदायित्वके रूपमें । थभियो - थाम्हा । समर - युद्ध । गजणहूं - महाराजा गजसिंह। सवाई - विशेष, अधिक । प्रवाई - खबर, संदेश । ४५३. दहसत - भय, अातंक । सरस - जोशपूर्ण । तप - प्रभाव, तेज । सरसाणे - फैल गया। Page #345 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२० ] सूरजप्रकास आप तणा खग तेज अप्रबळ ' । दहल' वगा वाजींद तणा दळ | राव ताव खग देखि धोम रवि । भज्ज' गयौ इंद्रसिंघ मनव भवि ॥। ४५४ बह से आप सिंघ जिम बोलै । तुरराबाज" सीस' खग तोल । २ पह इम चढ़े लियण .१४ १५ अंबखास' दिस आगम सुण ६ आपरी १७ स्रब जळ थाप हुई ऊठे" सपति गयौ सतर बहोत र इसड़ौ तप प्रसंग किहि अमीर न आवत । २२ --- १३ निज पाया । 3 घाट चलाया ॥ ४५५ अवाई | ४ आपरौ पतिसाही भड़ां ε १ "अगेतौ । १ ख श्रप्रवल । ग. अपरबळ । २ ख. दहलि ३ ख. ग. भगा । १५ ख. ग. दिसि । ५ ख. भाजि । ग. भाज । ६ ख मांनि । ग. मांन । ७ ख. ग. भव । ६ ख बोले । १० ख. वाजि । ग. तुरराबाजि । ११ ख. ग. सोसि । १३ ख. ग. लेयण । १४ ख श्रविषास । ग. बषास । सुणि । ग. सुणी । १७ ख. ग. थाळ उठे । २१ ग. श्रगेतो । २४ ख. किणहों । ग. किण । १८ ग. हुइ । २२ ख. वहतर । ग. वहैतर । । २३ सहेतौं ।। ४५६ 'अजावत' । ४५४. प्रबळ - अपार असीम | दहल भय । वगा - ( ? ) । वाजोंद तणा - ( ? ) । राव - नागौर अधिपति इन्द्रसिह । ताव - रौब । धोम - ( ? ) । रवि सूर्यं । इंद्र-नागौराधिपति राव अमरसिंहका वंशज । मनव मनमें। भवि - भय ४५५. बहसे - जोश में आ कर । ४ ख ग रव । ८. बहसे । १२ ख. ग. पौहौ । १६ ख. २० ग. १६ ख. ग. पतिसाई । २३ ख. सहेतो । ग. सहैतौ । - ४५६. श्रागम - आगमन, आना । लब.... पतिसाही - श्रापके आगमन की सूचना सुन कर दिल्लीकी बादशाहत इस प्रकारसे कम्पायमान हो गई जैसे जलाशय के जलके मध्य थप्पड़ मारने से पानी विलोड़ित होता है । ४५७. तप रोब, प्रभाव । धजावत- महाराजा अजीतसिंह के पुत्र । प्रासंग - बल, शक्ति, सामर्थ्य | - Page #346 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास दिलीस्वरां' धर जिती दबाई । स्रब जोवतां दिली पतिसाही ।। ४५७ धर हिंदू दूजां तुरक 'इरांन'" अनै प्रापहूत लड़िवा कजि आवै । रजधांनी । 'तूरांनी' | १६ दोय अमीर इसा एक निजांम तेवड़ै ८ दूजौ सेर विलँदखां 19 आरण | दारण । तौ । सूरापण मसलत बळ 'विलँद' निजांम हूंत पणि वधौ ।। ४५६ ११ १२ दरसावै ।। ४५८ असवारां । अड़ताळीस सहंस खांनजिहां जिण हणे ४ खँधारां । 93 १४ धारे । सँघारे ।। ४६० १६ धर पूरब्ब" धीर छत्र साठि हजारां हूंत 'सूर विलँद' विढ़ता जीतौ सफरजंग दळ सभि धसे समँदचै अंदर । 'विलँद' लियौ " गढ़ छइया वंदर ।। ४६१ 0 - सुरतांणां । जमरांणां । ४ ग. ६ ग. १ ख. ग. दिलीसुरां । २ ख. दवाई । ग. दबाइ | ३ ख श्रव । ग. सरब । पतिसाई । ५ ख. ग. हींदू । ६ ग ईरान । ७ ग. लडवा । ८. दूजो । सुरापान । १० ग. पण । ११ ख. रा. अठताली । १२ ग. षांणजहां । १३ ख. ग. जिणि । १४ ख. ग. ह । १५ ख. पूरव्व । १६ ग. वढ़तां । १७ ख. लोयो । ४५७. दिलीस्वरां- बादशाहों । ४५८. रजघांनी - राजधानी। दरसाव दिखाई देते हैं । ४५६. तेवड़े - विचार करता है । धारण - युद्ध । दारण- जबरदस्त । सुरापण - शौर्य । मसलत - मस्लहत । सतौ - साधन करता हुआ । पणि- भी। वधतौ- विशेष । ४६१. जमरांणां - यमराजके तुल्य, जबरदस्त । [ ३२१ Page #347 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२२ ] सूरजप्रकास इसड़ौ' 'विलँद' सँबाहै। आजा । मोटो भाग तूझ महाराजा । सझे समर जीतसां सरोसौ । भाग आपरातणौ भरोसौ ॥ ४६२ इसड़ौ 'विलँद' मरै काइ' भाजै । छत्रपति तूझ वडौ जस छाजै । इण मारियां काढ़ियां इणनूं । दहल सोच पड़सी दक्खिणनूं ॥ ४६३ साहू मंत्री मेळ'' (सी) सकाजा' । मिळणे'३ पाहूंता'४ महाराजा'५ । कर जोड़े६ अरजां सुज' करसी । धणी जेम निजरां द्रब' धरसी ॥ ४६४ उभ० कंठौ १ 'पीलू' नह आसी । जो पासी लड़ि भाजे जासी । सत्र नमसी भय प्रीत सकोई । करि3 सिर कान न कड्ढे कोई ॥ ४६५ १ ग. इसडो। २ ख. सवाहे । ग. सिमाहे । ३ ग. मोटो। ४ ख. ग. माहाराजा। ५ ख. ग. काय । ६ ख. छत्रपती। ७ ख. यण । ८ ख. मारीयां । ६ ख. काढ़ीयां । १० ख. दष्पिण नूं । ग. दषणनू । ११ ख. ग. मेल्हसी। १२ ग. साजा। १३ ख. ग. मिलण। १४ ख. प्रापहूंत । ग. प्रापहूता। १५ ख. माहाराजा। १६ ग. जोडे । १७ ख. ग. सुजि । १८ ख. नजरां । ग. नजरौ। १६ स्व. ग. द्रव । २० ख. ग. उभय । २१ ग. कंठो। २२ ख. ग. प्रीति । २३ ख. ग. कर। २४ ख. ग. कट्ट। ४६२. विलँद - सर विलंद खां । संबाहै - ( ? )। प्राजा - उज्वका बहुवचन जिसका अर्थ हाथ, पैर प्रादि शरीरके अवयव अथवा साहस। सरोसौ - रोशपूर्ण, रोशयुक्त । ४६३. काइ - या, अथवा । छाजे -- शोभायमान होगा। काढ़ियां - निकालने पर । दहल - प्रांतक, भय । ४६५. सकोई - सब। करि'कोई - कोई भी तुमसे युद्ध करनेके लिए कान तक ऊंचा नहीं करेगा। Page #348 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३२३ खळ मेवास' धड़क सह' खासी । एक हुकम सारी धर आसी । वणसी अमल चकरवरतीरौ । तदि आवसी कि' पर धरत्रीरौ ॥ ४६६ थाटनाथ होसी दहं थाटां । झळहळ भड़ां परख खग झाटां । असपति सुणे करेसी आणंद । मुनसप पटा मेलसी' 'महमँद' ।। ४६७ पह सांभर लगि' सांमँद'' पाजा ।। रहसी दास होय अनि राजा । । कूळ पैंतीस सेव स्रब.२ करसी । भूपति रैत जेम दंड भरसो ।। ४६८ महि हम तम खमसी प्रतिमांमां' । सौ सौ गजहूं करसि सलांमां । सिलह ससत्र करि वीर समोजा । जुध वैगौ५५ कीजे ६ महाराजा' ॥ ४६६ १ ग. मैवास। २ ख. ग. सौहौ। ३ ख. ग. को। ४ ख. ग. ५। ५ ख. ग. धरती। ६ ख. असपती। ७ ख. ग. मेल्हसी। ८ ख. ग. पौहो। ६ ख. ग. संभरि । १० ख. ग. लग। ११ ग. सांमद। १२ ख. सव । ग. सब। १३ ग. अतमानां । १४ ख. ग. सस्त्र। १५ ख. वैगो । ग. वेगो। १६ ख. ग. कीजै। १७ ख. माहाराजा । ४६६. मेवास - डाकुओं या लुटेरोंके सुरक्षित रहने के स्थान । धड़क - भय, आतंक । अमल - अधिकार । चकरवरती- चक्रवर्ती। पर - शत्रु, अन्य, दूसरा। धरत्री धरती। ४६७. थाटनाथ - सेनापति । परख - परीक्षा। प्रसपति - बादशाह । मुनसप - मनसब । पटा-जागीरकी सनद । ४६८. लगि - तक । समिद - समुद्र । पाजा- सीमा, हद । ४६६. महि - पृथ्वी। हम तम - हम और तुम, राजस्थानमें प्रचलित अनादर-सूचक प्रयोग । खमसी - सहन करेंगे। प्रतिमांमा - ( ? )। बैंगो- शीघ्र। Page #349 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२४ ] सूरजप्रकास आप मुहरि' हूं लडं अचूकां । रांम मुहरि' हणमत जिम रूकां । इसड़ी वात सुणे 'अभपत्ती' । . मंत्री थापलियौ महिपत्ती ॥ ४७० वीर जके ताबीन विचारी । 'अभमल' पह पूछ० अग्रकारी । करि सलाम बोलै कलिनारौ । वेढ़क सांमतसिंघ 'विजा'रौ ॥ ४७१ ओरे तुरँग थाट अवियाटां१२ । झळहळ भगळ रम खग झाटां । करवत विहर करूं केवांणां ।' काठ चंदण जेही किलमांणां ॥४७२ झेलू लोह अनेक झिलांऊ । कळहण१४ जीवतसिंभ कहाऊं । 'ईदावत' 'सत्रसल' भड़ आखै । 'दौळौ५५ 'पदमावत' इम दाखै ।। ४७३ १ ख. ग. मौहौरि। २ ख. मौहरि । ग. मोहरि। ३ ग. सुण । ४ ख. ग. थापलीयौ । ५ ख. ग. महपत्ती। ६ ख. ग. जिके। ७ ख. ग. तावीन । ८ ख. ग. विजारी । ६ ख. ग. पोहौ। १० ख. पूछ । ११ ख. वोले। १२ ख. ग. प्रवियाटां। १३ ग. केवांगी। १४ ख. ग. कलहणि। १५ ग. दोलो। ४७०. मुहरि - प्रगाड़ी, अग्र। हणमत - हनुमान । रूकां - तलवारों। थापलियौ - उत्सा हित किया, जोश दिलाया। महिपत्ती- राजा । ४७१. ताबीन - प्राधीन । वेदक - योद्धा, वीर । ४७१. अवियाटां - युद्धों । भगळ - ऐंद्रजालिक खेल । रमं - खेल खेलं । विहर - विदीर्ण । केवांणां - तलवारों। जेही - जैसे ही । किलमांणां - यवनों, मुसलमानों । ४७३. झेलू - सहन करू। लोह - शस्त्र-प्रहार । झिलांऊ - अनेकों पर शस्त्र प्रहार करूं। कळहण - युद्ध । जीवतसिभ - वह योद्धा जो रणक्षेत्रमें अनेक अस्त्र-शस्त्रोंके घावोंसे माहत होने पर भी जीवित रह जाता है। पाखै - कहता है । दाखै - कहता है। Page #350 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३२५ अस' दळ मुग्गळ' ओर' अथागां । खेलां भगळ झळाहळ खागां । तद बोले 'जालम” 'केहर' तण । घण मगरूर सूर पौरस घण ॥ ४७४ घूमर असि झोके सत्र घाऊं । अधर भ्रकूट वीजळा'१ उडाऊं । बहसि'२ रईस लिये झक बौळा१४ । गवड़ खेलवादी जिम गोळा'५ ॥ ४७५ बोळकरे' असमर' रत' बोहां। लालंबर हुय पूरा लोहां । सत्र विहंड3 खुरसांण सकाजा । मुजरौ२४ करूं२५ एम महाराजा२६ ॥ ४७६ धज कुळ वाट१७ मेड़ता धुरतौ । 'सेरावत' बोलै २८ भड़ 'सुरतौ' । १ ख. ग. असि । २ ख. भूगल । ग. मुगल । ३ ख. पौरि । ग. और। ४ ग. ल्हां । ५ ख. ग. तदि। ६ ख. वोले । ग. बोले। ७ ख. ग. जालिम। ८ ख. पोरस । ग. पिड पोरस । ६ ख. घूमर । ग. धूमर । १० ख. भृगुट । ११ ग. बीझळा । १२ ख. वहौसि । ग. बौहौसि । १३ ख. ग. लीये। १४ ख, वोला । ग. बोळा। १५ ख. वोला। ग. गोळा । १६ ख. बोल । ग. बोळ । १७ ग. करै। १८ ख. ग. असिमर । १६ ग. रति। २० ख. वोहां। २१ ग. पुरा। २२ ख. लोहां । ग. लोहा । २३ ख. ग. विहंडे । २४ ग. मुजरौ। २५ ख. ग. करौं। २६ ख. महाराजा । ग. माहाराजा। २७ क. दाट । २८ ख. वोले । ग. बोले। ४७४. प्रोर - झोंक कर । अथागां - अपार । मगरूर - गर्वधारी, गर्व । ४७५. घूमर - समूह, दल। सत्र - शत्रु। घाऊ- संहार कर दूं । भ्रकुट - शिर, मस्तक । वीजळा- तलवार। बहसि - जोशमें आकर । झक बौळा - खूनमें तरबतर, सरा बोर । गवड़ खेलवादी- गौड़िया बाजीके समान । ४७६. बोळ - लाल, रक्तपूर्ण। असमर - तलवार । रत - रक्त, खून । बोहा- प्रवाह, ( ? ) । लालबर- लाल रंग पूर्ण। लोहां - शस्त्र प्रहारों। विहंड - ध्वंस करके। खुरसांण - यवन, मुसलमान । मुजरौ- अभिवादन । ४७७. धज - ध्वज । कुळ वाट - कुल-मार्ग, वंश-गुण । धुरती - धारण करता हुआ। Page #351 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२६ ] सूरजप्रकास अणभंग राजसिंघ' 'पेमावत' । सिंभूसिंघ बोलियौ' 'हटी' सुत ॥ ४७७ जवन हरोळ विहरि मधि जावां । असुर गोळ मझि' लोह उडावां । 'गजण' 'सवाई' तणौ खत्री गुर । आखै जई साबळां प्रासुर ॥ ४७८ लोही ताळ सिलहबँध लोभै । समँद वीच जिम वादळ सोभै । दाखै 'विजपाळोत 'बहादर' । हरवळ अणी हाकलू हैमर ।। ४७९ करूं झाट झळहळ केवांणां । मछ अोछा'' जळ ज्यूं मुगळांणां । भिड़ जस मेलूं' खळ' दळ भारै । एम' 'हटी'. • सूत 'सिवौ' १४ उचारै ।। ४८० खाग पछट काढू रत खाळां५ । रँगमट'६ जेम'७ भ्रगुट ८ रवदाळां । १ ग. राजांसिर । २ ख. वोलीयौ। ग. बोलीयो । ३ ग. महि । ४ ख. पत्र। ५ ख. सांवलां । ग. साबलां। ६ ख. वीचि । ग. बीच । ७ ख. ग. विजपालरौ। ८ ख. ग. हाकलू । ६ ग. करौ। १० ख. ग. वोछा। ११ ग. मेळो। १२ ख. षग । १३ ग. हेम। १४ ख. ग. सिवो। १५ ख. पाला। १६ ख. रंगमंट। १७ ख. ए। ग. एम। १८ ख. ग. भृगुट । ४७७. अणभंग - नहीं झुकने वाला वीर । पेमावत - पेमसिंहका पुत्र । हटी - हटीसिंह । ४७८. विहरि - विदीर्ण कर के, नाश कर के । मधि - मध्य, बीच । गोळ - सेना, दल । लोह उडावां- शस्त्र प्रहार करें। गजण -- गजसिंह। सवाई - सवाईसिंह । पाखै - कहता है । जड़- प्रहार करू। साबळा - भालों विशेषों। प्रासुर - यवन, मुसलमान । ४७६. ताळ - तालाब । सिलहबंध - कवचधारी या अस्त्र-शस्त्रधारी। लोभ - लोभायमान होते हैं । अणी - सेना, अनीक । हैमर - घोड़ा। ४८०. झाट - प्रहार । झळ हळ - चमकदार । केवांणां - तलवारों। मछ - मछली, मत्स्य । मुगळांणां - मुसलमान । सिबी - शिवसिंह। ४८१. पछट - प्रहार कर के । काढू - निकाल दूं । खाळi - नाला। रंगम्ट - रंग डालने या घोलनेका पात्र विशेष । रवदाळा - मुसलमानों। Page #352 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास अणभंग कहै जोध ' ऊदावत'" । आणि व्रजागि 'गजौ' " 'लालावत ' ॥ ४८१ २ लोहां भड़ झड़ां लगावां । असुर दड़ां जिम सीस उडावां । * जाजुलि जुध भेळं असि 'सिरदाररौं' कहै भड़ धख कथ एण हीज विध 'मौह्कम' 'राम'' 'भ्रमर' सुत वदे वहूं खासा भँडे " डंडेहड़ मँध हठीसुत रूप कराळौ । चवै गुलाब सिंघ" कळिचाळौ । 3 घण खळ असि झोके खग १४ घाऊं" । वयळ मँडळ नट कुंडळ वणाऊं ॥। ४८४ अरि हति १७ फूल धार भेलै " १६ प्रति । १८ भूत गणां संकर पूजावति । जालिम * । 'सालिम' ।। ४८२ धारूं । मारूं । १० खेला " खेलां" जुध वागां । १२ १ ख. ग. इंदावत । ५. ग. जालम । ६ ग. सालम | ७ ख. ग. विधि | १० ख. बेल्हां । ११ ख. ग. झंडी । ग. षगि । १५ ख. ग. घावूं । १८ ख. ग. पूजभति । २ ख. गलौ । ग. गजो । ३ ग. श्रोडां । खागां ॥। ४८ ३ १२ ग. हठीसूत । १६ ख. हथ । ग. हथि । - ४ ख. ग. जुधि । ८ ग. राव । ख. ग. त्रिहूं । १३ ख. सिंघ सिंघ । १४ ख. १७ ख. भेटू । ग. भेलू । ४८१. ऊदावत - राठौड़ वंशकी एक शाखा या इस शाखाका व्यक्ति । गजौ - गजसिंह । लालावत - लालसिंहका वंशज । ४८२. श्रौझड़ां - प्रहार । दड़ां गेंद । जालिम - जबरदस्त । सिरदाररौ ४८३. धख - जलन, जोश । एण - इस [ ३२७ जाजुलि - जाज्वल्यमान । भेळूं - झोंक दूं । सिरदारसिंहका । सालिम - सालिमसिंह | वर्द कहता है। डंडेहड़ - होलिका नृत्यके समय प्रयोग में लिया जाने वाला डंडा या छड़ी । ४८४. चव - कहता है । कळिचाळौ - वीर योद्धा । धाऊं ध्वंस कर दूं । वयळ मंडळ सूर्यमंडल । नट कुँडळ - ( ? ) । ४८५. अरि- शत्रु । हति संहार कर के फूल धार - तलवार । - Page #353 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२८ ] सूरजप्रकास करूं सनांन विहर रत वदै जटी सनांन जेम 'गुलाब' नेह पहरू हार गुलाब चमर हुतां रथ' चढ़े ૬ जुगति एण ७ कम्मळ' | गंगाजळ ।। ४८५ अवरीरा । परीरा | चलाऊं । अमरापुर गजघड़ तुरंग हाकलूं गहतंत । सुत 'गोकुळ' दाखै इम 'सांमँत' । धी सेल सनाह धड़ाळां । बरघळ" कर" पाहूं ३ बंगाळां ॥ ४८७ १२ वदै 'किसन' 'पिथ' सुत कुळ वाटां । 93 झाडं सूर खळां खग झाटां । 'रांम' सुजाव मौड रिमराहां । वदै झोक १४ असि वीजळ वाहां ॥ ४८८ अरि करनत्त न १५ हंस उड़ाऊं'" कहै 'रतन' जस उतन कहाऊं १७ जाऊं ॥। ४८६ ६ व. १ क. कंम्मल । २ क. जवन । ३ ग. सिनांन । ४ ख. हुंता । ५ ख. ग. रथि । ६. अमरापुरि । ७ ख. गगजघड । ग. गजघट । ८ख. धीवे । ग. धीबे । संनाह । ग. सन्नाह। १० ख. ग. वरघल । ११ ख. करि । १२ ख. पांडूं । १३ ख. हूं । १४ ख. ग. झोकि । १५ ख. रा. करिनतन । १६ ख. ऊडावूं । ग. उडावूं । १७ ग. कहा । ४८५. विहर-काट कर। रत रक्त, खून। कम्मळ - शिर । जटी - महादेव । ४८६. वरोरा - नागकन्या विशेष जिसको वीरगति प्राप्त करने वाले वीर ही प्राप्त करते हैं । परीरा - श्रप्सराके । श्रमरापुर - स्वर्ग । ४८७. गजघड़ - हाथी दल । तुरंग - घोड़ा । हाकलूं - हांकू, चलाऊं । गहतंत - मस्त । ढा - कहता है । सांमत - वीर, योद्धा, सामंतसिंह । धीबै- प्रहार कर के, मार कर के | सनाह - कवच | घड़ाळां- ( ? ) । बरघळ - बड़ा छेद । पाहूं - संहार कर दूं । बंगाळां - यवन, मुसलमान । ४८८. वदे - कहता है । किसन किसनसिंह । वीजळ - तलवार । ४८६. हंस - प्रारण । रतन रतनसिंह । उतन जन्मभूमि । - - Page #354 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास उचारै । मँझारै ॥ ४८६ 'अजण' तणौ 'जगतेस' मेळू प्रसि हरवळी' किलम सिलहबँध खांडू जस कर | प्रचंड किसन चाणूंर तणी पर । इ हिज विध' ' सुरतेस' 'प्रखावत ' रटै धीर 'अमरावत ' रावत ।। ४६० कहै 'भीम' सुत दारण 'केहर' रैंवत १० प्ररूं जाडै घूमर' घण रवदाळ साबळां घाऊं" । कहै 'रतन' 'जस' उत्तन कहाऊं * ॥। ४६ १ इण हिज' विध' ३ कथ कहै" उ चारण । १३ १५ १६ दुफल ' सुखावत' 'केहर'" दारण' 1 रैवत" वधि प्ररूं"धिकतै तवै एम 'भगवंत' 'भाऊ' १ रिण १ ख. हरवले । २ ख. ग. पांडूं | ३ परि । ६ ख. ग. विधि । ७. ग. चोरूं । १० ख. घूमर । ग. घूमर । १२ ग. हीज । १३ ख. ग. विधि । दारुण । १७ ख. रेवंत । ग. रेवत । २० ख ग रण । २१ ग. भावू । ह * यह पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियोंमें निम्न प्रकार है'वीजळ हाथ लग जां वजावूं ।' - 616 तण ।। ४६२ ख. ग. जुध । ४ ख. ग. करि । हरि । ८ ख. रेवंत । ग. रेवंत । ११ ख. घांबू । घांबू [ ३२६ ४८. जण - प्रर्जुनसिंह । जगतेस जगतसिंहका वंशज | हरवळां - हरावल । मंकारं - मध्य में । ५ ख. र. ६ ख. म. १४ ख. ग. करें । १५ ख. ग. केहरि । १६ ख. १८ ख श्ररु । ग. प्रोरू । १६ ख. ग. विषतं । ४०. सिलहबँध - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित । चाणूर - कंसका पहलवान जिसका श्रीकृष्णने वध किया । ४६१. भीम - भीमसिंह । केहर केसरीसिंह । रेवत - घोड़ा। जाडे घूमर घने दल में | साबळां - भालों । घाऊं - संहार करूं । ४२. दुफल - वीर । सुखावत सुखसिंहका पुत्र । केहर - केसरीसिंह । बारण - जबरदस्त । aft - बढ़कर, जोश में आ कर । धिकते प्रज्वलित । रिण - युद्ध | तवं - कहता है। भगवंत - भगवतसिंह | भाऊ - भाऊसिंह । Page #355 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३.३० ] सूरजप्रकास जड़कू सेल जैतखंभ जेहै' । असि असवार कहै' चित्र एहै । 'भूप' कहै सुत 'देव' सुभेवौ । काढ़ देव दाणवां केवौ' ।। ४६३ खग झट 'विलँद' थटां परि' खेलं । असुरां नारंग ताळ उझेलू । कह 'जैसिंघ' 'सिंभु'सुत' इम कथ । भुज-लग झट विहँडूं खळ भारथ ।। ४६४ विहँड'' खळां बहने स्रोण' वहाऊं । पत्र भरि भरि'४ काळिका धपाऊं । 'राम' सुतन' बोलै ६ 'सिंघ' राजड़'८'। घण खग हाथळ वहूं त्रविध घड़ ।। ४६५ मारूं 'भैरव' सतण महाबळ" । 'वैरौ'२५ बोलै २२ तोले२३ वीजळ४ । मेळू असि घूमर मुगळांणां । करूं निहाव घाव२५ केवांणां ॥ ४६६ १ ख. ग. जेही। २ ख. ग. रहै। ३ ख. एही। ग. ऐहों। ४ ग. सुभेवो। ५ ख. दाणवो। ६ स्व. केवो। ७ ख. सिरि । ग. सिर । ८ ख. ग. कहै । ६ ग. जेसिंघ । १० ख. सिंभूसुत। ११ ग. बिहंडि। १२ ख. वौहो । ग. बौहो। १३ ख. श्रोणि । ग. श्राण। १४ ग. भर। १५ ख. ग. सुतण। १६ ख. वोले । ग. सिंघ। १७ ग. बोले। १८ ग. राज। १६ ख. त्रिवध । ग. त्रिबध । २० ख. माहावल । ग. महाभड । २१ ख. वैरो। २२ ख. वोले। २३ ख. तोले। २४ ग. बीजळ । २५ ख. षाव । ४६३. जड़क - प्रहार करू । जैतखंभ -- जयस्थंभ । सुभेवौ - श्रेष्ठ, रहस्यपूर्ण, ( ? )। केवौ – शत्रुता, प्रतिकार, संकट । ४६४. थटां - दल, सेनाएं । नारंग – रक्त, खून। ताळ - तालाब। उझेलू - उभड़ा हूँ । भुज-लग - तलवार । विहँडूं - मार-काट करू, ध्वंस करू। भारथ - भारत, युद्ध । ४६५ स्रोण - शोणित, खून । धपाऊं - तृप्त कर दूं । सिंघ राजड़ - राजसिंह । हाथळ - शस्त्र-प्रहार ( ? ) । घड़- सेना । ४६६ तोले - प्रहार हेतु शस्त्र उठा कर । वीजळ - तलवार । घूमर - दल । मुगळांणां - मुगलों, यवनों। निहाव - प्रहार। केवांणां - तलवारों। Page #356 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास घुमर' खळां विहंडि खग घाटां । झेलूं वहळ खळां खग झाटां । 3 विच गळ रंभ वरूं वरमाळां । श्रयण मभि उभळतां झाडं खळां" सिलहबँध भळहळ । १० दुरदां टिला करूं दांतुसळ पड़ अखाड़े । इम चुख-चुख" हुय' चंचळ तांम अछर रथ चाड़ै ।। ४६८ झळ हळ विवांणां झोकां । सुर हुय" इम जाऊं" सुरलोकां । मेड़तिया अड्डुर । इम बोलै ६ धुर जोधार चौरंग" जिण गिळिया" 'चौडावत' । 19 .१३ ८ ७ अँोळां ॥। ४६७ ह पुछै पाटोधर || ४६६ × .43 और बोलै 'राजड़' 'किसनावत' । १ ८ ख. १२ ख. . घूमर । ग घूमर । २ ख विचि । ३ ख धरूं । ग. धरौ । ४ ग. वरमालौं । ५ ख श्रघणां । म. श्रीयणां । ६ ख. उलटां । ग. उलझतां । ७ ग. झडू । ग. वगां । ६ ख. टिलां । १० ख. दंतूंसल । ग. दंतूसल । ११ ग. चष चष । होइ । ग. होय । १३ ख. बेडि । ग. बेलि । १४ ख. ग. होय । १५ ख. जांऊ । १६ ख. बोले । १७ ख. मेडतीया । १८ ख. ग. जोधां । १६ ख. ग. पूछे । २० ख. ग. चौरंगि । २१ ख. गिलीया । २२ ख. प्रो । २३ ख बोले । [ ३३१ ४७. घुमर - सेना । विहडि - ध्वंस करके, संहार करके । वहळ - अपार बहुत । गळ - कंठ, गर्दन | रंभ - अप्सरा । श्रयण- पैर, चरण । मति - में । उभळतां बंधते हुए । त्राळा - प्रांतें । ४६८. दुरदां - द्विरदों, गजों । टिला - टक्कर, आघात । दांतूसळ - हाथीका बाहरका दांत । चुख-चुख - खंड-खंड | पड़- वीरगति प्राप्त हो जाऊं । भखाड़े युद्ध में । चंचळ चपल । तां - तब । श्रछर - अप्सरा । ४६६. विवांणां - विमानों, वायुयानों । मेड़तिया राठौड़ वंशकी एक शाखा । श्रडुर - निर्भय । धुर - प्रथम । पाटोघर राजसिंहासनाधिकारी, राजा । ५००. चौरंग - युद्ध | ( ? ) । गिळिया - निगल गया। चौडावत - राव चंडाका वंशज । राजड़ - राजसिंह | Page #357 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३२ ] सूरजप्रकास ‘राजड़' कहै दळां रवदाळां । कळह बसत खेलूं' किरमाळां ॥ ५०० इम बोल' जोधा छक ऊजळ' । 'ऊदा' पूछ तांम 'अभैमल' । सिरै 'मांन' भड़ 'कांन' समोभ्रम । सूरा च्यार दुजा इण हिज सम ॥ ५०१ उचरैः पंचां भड़ा अभंगां । जुड़ा' पांच पंडव' जिम जंगां । रजवट छक बोलै'२ इम' रावत । 'करणौ १४ 'भाऊ' सुत कूपावत५ ॥ ५०२ जरदैतां ओरे'६ असि जाऊं । वजर धजर घण गजर वजाऊं । 'अभै' ताम पूछ वड रावत । सूरवीर कुरम सेषावत ॥ ५०३ १ ग. लो। २ ख. वोले। ३ ख. उजल । ग. उझल। ४ ख. कान्ह । ग. कान्ह । ५ ख. ग. सूर। ६ ख. ग. दूजा । ७ ख. ग. हीज। ८ ख. ऊचरे । ६ ख. पाचां । ग. थांचां। १० ग. जड़ा। ११ ख. पांडवां। ग. पंडवां। १२ ख. वोले। ग, बोले। १३ ख. ग. वड। १४ ग. करणो। १५ ख. कुंपावत। १६ ख. वोरे। ग. वोरे। १७ ख, जांऊं। ५००. रवदाळां - यवनों। किरमाळां - तलवारों । ५०१. जोधा - राव जोधाके वंशज, राठौड़ोंकी एक उपशाखा । छक - सभा, समूह । ऊदा - राठौड़ोंकी उदावत शाखा । ताम - उन, तब । प्रभमल - महाराजा अभयसिंह । सिरै - श्रेष्ठ । मान - मानसिंह । भड़ - योद्धा । कान - कानसिंह । समोभ्रम - पुत्र । दूजा - दूसरे। सम - समान । ५०२. जुड़ा - भिड़ जाय। रजवट - क्षत्रियत्व । छक - जोश। रावत - योद्धा। कुंपा. वत - राठौड़ वंशकी एक उपशाखा । ५०३. जरवैतां - कवचधारी योद्धाओं। वजर - तलवार । धजर माला। गजर - प्रहार । वड रावत - महावीर । कूरम - कछवाहा वंश । सेषावत - कछवाह वंशकी एक शाखा। Page #358 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [३३३ लाल तांम बोले' चख लालां । ढाहूं खग झाटां गज' ढाला । काको 'लाल' तणौ कळिनारौ' । इम सुणि बोलै 'विसन' 'अभारौ' ।। ५०४ जवन हरोळ विहँडि मधि जाऊं । वीजळ खासा गजां वजाऊं । सर सावळ खग खंजर दुसारां । पंजर हवां लडं अणपारां ।। ५०५ पाड़ि'' घड़ा'३ मुगळांण पठाणां । वरि अपछर' इम चढू विवाणां । पह'५ जोधांण सुछळ'६ जस पावां । इम अांबेर'८ दुरंग अँजसावां ६ ॥ ५०६ नरिंद सिखर हर पूछि ' निवाहर२२ । नरूहरा पूछ २३ नर नाहर । १ ख. वोले। २ ग. गळ । ३ ख. म. कलनारौ। ४ ग. सुण। ५ ख. वोले । ६ ख. ग. अनारौ। ७ ख. हरौल। ८ ख. जावू । ६ ग. साबळ। १० ग. हवां । ११ ग. पाड। १२ ख. ग. घणां। १३ ख. ग. अपछर वरि। १४ ग. विमांणां । १५ ख. ग. पौहो । १६ ख. ग. सुछळि । १७ स्व. ग. पाऊं । १८ ख. प्रांवेर । १६ ख. ग. अंजसाऊं। २० ग. हरि। २१ ख. बूझि। ग. वूझ । २२ ग. निवाहै । २३ ख. ग. पूछे । ५०४. ढाहूं-गिरा दूं, मार दूं। गज ढालां - हाथीके मस्तक ऊपर युद्ध के समय धारण कराया जाने वाला उपकरण । काको - चाचा। लाल तणौ - लालसिंहका। कळि नारौ- योद्धा, वीर । विसन - विसनसिंह । ५०५. मधि - मध्य में, बीचमें । वीजळ 'बजाऊ - बादशाहके सवारीके हाथी पर तलवारका प्रहार करू। सर - तीर । सावळ - भाला विशेष । खंजर -एक प्रकारका छुरा या शस्त्र विशेष। पंजर - शरीर । अणपारां - अपार, असीम। . ५०६. पाड़ि - मार कर । घड़ा - सेना । वरि - वरण कर के । अपछर - अप्सरा । विवाणां - विमानों। सुछळ - श्रेष्ठ युद्ध । अांबेर - आमेर नगर। अंजसावां - गौरवान्वित करूं। ५०७. नरिंद - नरेंद्र, राजा। सिखर हर - शेखावत ( ? )। नरूहरा- नरूका शाखाके कछवाह। Page #359 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३४ ] सूरजप्रकास छाक बँबाळ' अपछरां' छायल । अरज कीध 'पदमै' अजरायल ।। ५०७ हरवळ वीच हाकलू हैमर । पार करूं साबळ खळ पिंजर । झळहळ वीज' रूप खग' झाडूं । पिसण घणां जरदैत पछाडं ॥ ५०८ वणि होळिका' थंभ जुध वेरां । सिर पर बह झेलू समसेरां । धार विहार अणी घट धौरँग । चुख-चुख होय पडू रिण'' चौरँग । ५०६ वरूं अपछर' चढि कनक' विवांणां। इम'६ जाऊं' सुरिइंद१८ आथांणां । भूलिहूं इण विध' झाळाहळ । मसलत १२ सझ बोलियौ५४ महाबळ ।। ५१० इम भड उरड देखि छक ऊजळ२५ । .. अति ग्रब पह६ धारियौ ७ 'अभैमल' । १ ख. वंवाल। २ ख. ग. अपछारां । ३ ख. वीचि । ४ ग. वाज। ५ ग. चष षग। ६ ग. होळका। ७ ग वैरां। ८ ख. वहौ । ग. बहौ। ६ ख. झेलौ। १० ग. वट । ११ ख. ग. इम। १२ ख. ग, वरूं । १३ ख. अछर। १४ ग. क। १५ ख. ग. विमांणां। १६ ख. ग. यम। १७ ख. जांऊं। ग. जाऊ। १५ ख. सरडंद। ग. सरियंद। १६ ख. ग. झूल। २० ख. ग. त्रिहूं। २१ ख. ग. विधि। २२ ख. ग. मसलति । २३ ख. ग. मझि। २४ ख. वोलीया। ग. बोलीया । २५ ख. ग. उझल । २६ ख. पौहौ । ग. पोहौ। २७ ख. ग. धारीयो । ५०७. छाक बंबाळ - महा जबरदस्त । अपछरां छायल - अप्सरा वरण करनेको प्रबल उत्सुक । पदमै – पदमसिंह । अजरायल - जबरदस्त । ५.८. हैमर - घोड़ा। पिजर - शरीर । झाडूं - प्रहार करू । पिसण - शत्रु । ५०९. झेलू – सहन करू । विहार - विदीर्ण होकर। अणी - शस्त्रकी नोक या पैना भाग। घट - शरीर। धौरंग - ( ? )। रिण चौरेंग - युद्धस्थल, युद्ध-भूमि । ५१०. कनक – स्वर्ण, सोना। सुरिइंद - इन्द्र । प्राथांणां - घर, भवन । ५११. उरड़ - साहस । Page #360 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३३५ महाराज अभयसींघजीरौ वरणण कहि जिण वार 'अभैमल' केहौ । जळधर बांध लियौ' लँक जेहौ ।। ५११ सुपह जांणि प्रगटयौ तेरह सख । जग चख वसि तेरमौ जगाचख' । जोत वदन उद्योत उजाळा । झळहळ नयण तेज मय झाळा ।। ५१२ सामँद जळाबोळ वप सब्बळ । हळाबोळ' जळ'' जोम हिलोहळ । वप तप इम दीसै उण वेळा । भांण बार' चक्र सुद्रसण भेळा ॥ ५१३ उण'४ वाररौ५ कमंध 'अजावत' । 'अभौ'१६ जोम इस.७ दरसावत । जदि'' द्रगपाळ'६ रंक करि जांण । पाहड़ दीसै रती प्रमाणे ॥ ५१४ उरस छिबै रस वीर उछाहां । साझण काज दिली पतिसाहां । १ ख. ग. कहै। २ ख. वांधि । ग. बांधि । ३ ख. लीये । ग. लिये। ४ ख. ग. प्रगटो। ५ ख. जगचष । ग. जगचषि। ६ ख. ग. जोति । ७ ग झीळां । ८ स्व. जळावोल । ६ ख. सबल । १० ख. हळावोल । ग. हलोषाळ। ११ ख. जम । ग. जग। १२ ख. वार। १३ ख. वेला। १४ ख. ऊण। १५ ग. रो। १६ ख अभौ। १७ ग. इसडौ। १८ ख. ग. जगि। १६ ख. दिगपाल ' २० ख ग. पाहाड । ५११. जळघर – समुद्र । लंक - लंका। ५१२. सख - शाखा। उद्योत - प्रकाश । झाळा - प्राग । ५१३. जळाबोळ – जलपूर्ण । वप - शरीर । सब्बळ - बलवान । हळाबोळ - अपार, ___बहुत, जोश । हिलोहळ - समुद्र । तप - तेज, कांति । भांण – भानु, सूर्य । बार बारह । चक्र सुद्रसण - सुदर्शन चक्र । .५१४. ब्रगपाळ - दिक्पाल । रती - रक्तिका, बहुत छोटे । ५१५. साझण-सफल करनेको। Page #361 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३६ ] सूरजप्रकास तपत बांण' कीधौ हर' तांणिक । वांमी - बंध एरसै वांणिक ।। ५१५ गुण कवि' इकठा इक लग गावै । 'अभौ' तदिन दीठां वणि आवै । घण छक इसाहूंत पौरिस घण । तोले खग बोले 'अजमल'तण ॥ ५१६ __महाराजा अभंसींघजीरौ जोस बूतौ किसू निबाब तणौ बळ'" । दळ सझि मोसूं'' करै दमंगळ । जूटै मूझहूंत उण दिन जिम । अठ पतिसाह ग्रहै जैछुद इम ।। ५१७ प्रासँग' करे१४ खाग ऊछाजै'५ । भिड़ियां मुगळ भिडै का'८ भाजै । मारे ६ दळ सह गिरद मिळाऊ । लुटे११ रखत अराबा लाऊने ।। ५१८ असुर तणौ दळ बळ ऊखेलूं । भिसत काय जमद्वारा२४ भेळं५ । १ ख. वाण। २ ख. ग. हरि । ३ ग. किवि । ४ ख. ग. कठा। ५ ख. ग. एकलग । ६ ख. पौरसि । ग. पारस । ७ ख. वोले। ग. बोले। ८ ख. ग. वृतौ । ६ न. नवावतण । ग. नबावतण। १० ख, बल । ११ ग. मोसौ। १२ ख. ग्रह। १३ ग. प्रासंग । १४ ख. धरै। ग. धरे। १५ ख. उछाज। १६ ख. भिडीया। १७ ख. ग. मरै । १८ ख. ग. काय । १६ ग. मारै । २० ख. सौहौ । ग. सोहौ। २१ ख. लूटे । ग. लूट। २२ ख. लांऊं । ग. लाउ। २३ ख. अषेलू। २४ ख. ग. ध्रमद्वारां। २५ ख. भेलू । ग. भेलू । ५१५. वांमी बंध - राठौड़ । एरस - ऐसे । वाणिक - शोभा, कांति । ५१६. इकलग - लगातार, निरन्तर । घण छक - समूह। ५१७. बूतौ - शक्ति, बल, सामर्थ्य । दमगळ - युद्ध । जूट - भिड़े, टक्कर लें। ५१८. प्रासँग - साहस, बल । ऊछाजे - उठावे । का-या, अथवा। रखत - धन-दौलत, द्रव्य । प्रराबा - तोपादि, युद्ध -उपकरण । ५१६. ऊखेलूं - उन्मूलन करदूं । भिसत - भिश्त, स्वर्ग । भेळू - मिला दूं, भेज दूं। Page #362 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३३७ औ कहि असुर न दिया' अराबां । औहिज' दिये करां तजि आबां ॥ ५१६ वदै असुर गढ़ न दूं' वरग्गां । कूची दे आपरा करग्गां । असुर कहै मिळबा" नह आवां । पड़े आप समहौ निज पावां ॥ ५२० इण विध' बहुवै'' टेक उतारूं१३ । असुर 'विलँद' तदि' जीव उबारूं । एम असुर ध्रमद्वार चलाऊं । जीप'५ गुजरधर अमल जमाऊं ॥ ५२१ इण विध' करूं कहै 'अभपत्ती'१८ । सेवग'६ तौ० अंबका२१ सगत्ती२२ । धणी वयण३ संभळ४ इम धारण । दूणे जोम२५ चढ़े भड़ दारण ॥ ५२२ . १ ग. दिउ । * यह पंक्ति ख. प्रतिमें नहीं है । २ ग. प्रोहिज । ३ ख. रा. दिये । ४ ख. ग. सुकरां । ५ ख. । ग. द्यो । ६ ग. करगां । ७ ख. ग. मिलवा । ८. ग. नहि । । ख. सांम्हो। ग. सामौ । १० ख. ग. विधि। ११ ख. ग. तहुवै। १२ ख. ग. उतारी। १३ ख. तदि। ग. तब। १४ ग. चलाउ। १५ ख. ग. जीपि। १६ ग. जमाउ। १७ ख. ग. विधि । १८ ख. अभपती। ग. अभपत्ति । १६ ग. सेवक । २० ख. तो। ग. तो। २१ ख. अंविका। ग. प्रबका । २२ ख. सकती। ग. सकती। २३ ख. ग. वचन। २४ ख. सांभलि । ग. सांभल । २५ ख. जोमि । ग. जोम । - ५१९. आबां - पानी। ५२०. वरग्गां - शत्रुओं ( ? )। करग्गां - हाथोंसे । समहौ - सम्मुख । ५२१. हुंदै - तीनों। टेक - प्रतिज्ञा । जीप - जीत कर, विजय कर। ५२२. वयण-वचन । Page #363 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३३८ ] सूरजप्रकास महाराजा भैसींघजीरो सेनामें भासण तथा सूरवीरां घरम समझाणो सुभड़ां' पह खत्रवाट सिखावै । समझावै । सूरां धरम कहै ग्रंथ विनोद वीर गुण विसवामित्र राज रिख वायक ॥ ५२३ गायक । ५ अलप आव जिणहूत न होई । 93 कळजुग मध असमेध" न कोई " वदियो" सिख जोड़े नासत किम श्रासत १४ विसवामित्र" बोलियो" मुनिवर । ७ १ १६ उण" संदेह मेट" प्रत - उत्तर । २० २२ ३५ * धुनि । सभि दुय फौज " प्राहुड़े सूरा । पतिचे कांम २३ स्यांमध्रम धारै पग सांमा सुणि ब पग पग जिग" असमेधतणौ सिख वळि रिख पूछे बुधि तपसी २७ पुनि । .२६ साजा । सिध" सूरहूंत राजा ।। ५२६ - कर वायक । रिखनायक ।। ५२४ पूरा ।। ५२५ १ ख. सुभडा । ग. सुभटां । २ ख. पौहौ । ग. पोह। 1 ३. कहे । ४ ग. वीज । ५ ख. ग. विसवामित्र । ६ ख. आयु । ७ ख. ग. तिहूंत । ८. कलियुग । ग. कलिजुग । εख. मभि । ग. मध्ये । 1 १०. ख. प्रस्वमेष । ग. श्रश्वमेष । ११ ग. कोइ । १२ ख. वदीयो । ग. बदियो । १३ ख जोडे । ग. जोडे । १४ ख. ग. प्रासति । १५ ख. ग. विश्वामित्र । १६ व. बोलीयो । ग. बोलीयो । १७ ख. ऊण । १८ ख. ग. मेटण । १६ ख. ग. प्रतिऊतरि । २० ख. दौय । ग. दोय | २१ ग. फोज । २२ ग. हूडे । २३ ग. सांमधम । २४ व. सांम्हां । २५ ख. श्रंव । ग. त्रंबा । २६ व. जिम । २७ श्रसमेतणो । २८ ख. सिषि । २. ग. बुधि । ३० ख. सिद्ध । ५२३. सुभड़ा - योद्धाओं । खत्रवाट - क्षत्रियत्व । राज-रिख - राजर्षि । वायक • वाक्य, वचन । -- ५२४. अलप आब - श्रल्पायु । श्रसमेघ - श्रश्वमेघ । वदियौ - कहा । नासत - नास्ति, अभाव । श्रासत - शक्ति, बल, सत्ता । ५२५. प्रत-उत्तर- प्रत्युत्तर । श्राहुई - भिड़ते हैं, युद्ध करते हैं । ५२६. ब - नगाड़ा । धुनि - ध्वनि, आवाज। जिग- यज्ञ । रिख - ऋषि । Page #364 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [३३६. इम रिख' सिखहूं तांम उचारा । धुर खत्र मारग खंडा धारा । विधि सिख सुणि रिज कहै करूं विध' । सूर जोड़ न हुवे तपसी सिध ॥ ५२७ अंग तपसी सुख कारण आपै । तप पँच अगनि धूमरा तापै । भुजंग घोख साझ तप भारी । धारै मूनि' वरध कर धारी ॥ ५२८ थाटेसरी अकास मुनी थट । जळ सझि'' कर वधारै नख जट । जोबन हूं तरण (णी) तज' जावै । छोडि अवास' गिरां मझि छावै ॥ ५२६ सीत घांम दुख व्रखा सहाये'८ । अनि' तजि कंदमूळ १ खणि खाये । दुख अनेक इम तन मझि दाम । सुख आगिला२४ जनम कजि साझै ॥ ५३० १ ख. रिषि। २ ख. ग. कहूं। ३ ख. ग. विधि। ४ ग. अग्नि। ५ ग. साज । ६ ख. ग. मुनि । ७ ख. उरध । ग. करध। ८ ग. क। ९ख. थाढेसरी। ग. थांढेसरी। १० ख. मूनि । ग. मुनि । ११ ग. सजि। १२ ख. जोवन । ग. जोवम। १३ ख. ग. हूंत। १४ ख. ग. तरणि। १५ व. ग. तजि । १६ ख. ग. जांव। १७ ग. प्रावास । १८ ख. सहाए। ग.सहाऐ। १६ ख. ग. अन । २० ग. तज। २१ ग. मूलकंद । २२ ग. पनि । २३ ख. षाए। ग. पाऐ। २४ ग. प्रागला। ५२७. ताम - तब। जोड़- समान, बराबर । ५२८. धूमरा - अग्निका। भुजंग घोख - भुजाओं और शरीरको झुका कर (?)| साझे सिद्ध करता है, सफल करता है। ५२६. थाटेसरी-वैभवशाली। जट- जटा, केस ! तरण - युवा स्त्री, तरुणी। छावं निवास करे। ५३०. सीत - सर्दी। घाम - उष्णता । ब्रह्मा- वर्षा । अनि - अन्न, अनाज । खणि खोद कर । तन - शरीरमें। प्रागिला-पाने वाला। Page #365 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४० ] सूरजप्रकास कळहणि' सूर सांमरै कारण' । ऽवै' सुख तजै पलक मझि आरण । सूरां तेज इसौ दरसावै । इण विध" तपसी जोड़ न आवै ॥ ५३१ सिख सिध सूर कही समताई । विध सुणि सुजि सूरमां वडाई । भय मन'' काळ तजै नर भोगां । जम नेमादि सझै अठजोगां'' ॥ ५३२ प्रथम करै पासण२ पदमासण । प्रगट असटत्रण' अवर प्रगासण ६ । पूरक कुंभ करै७ चक पूरै । धारण अनिल'६ चढ़े ६ मग धूरै ॥ ५३३ विखम क्रिया विखमी साधन वक्र । चौके पंचभेदवे खट - चक्र । १ ख. कलहण । २. ख. कारणि । ३ ख. वे। ग. वि। ४ ग. सुषे । ५ ख. प्रारणि । ६ ग. यसो। ७ ख. ग. विधि । ८ ख. ग. विधि । ६ ख. ग. सूरिमां। १० ख. ग. मनि । ११ ग. अट्ठजोगां। १२ ग. प्रासण। १३ ग. पदमासन । १४ ख. अस । ग. प्रसी। १५ ग. तण । १६ ख. ग. प्रकासण । १७ ख. करे । १८ ख. अनल । १६ ख. ग. धरै। २० ग. क्रीया । २१ ख. चोके। ग. चौके । ५३१. कळहणि - युद्ध में। सांमरे - स्वामीके । कारण - लिए । पारण - युद्ध । ५३२. समताई-समानता। सूरमा - वीरों। वडाई - महानता। भोगां - भोग-विलास । जम नेमादि - यमनियमादि । अठजोगां - आठ प्रकारके योग, अष्ट योग । ५३३. पदमासण-योगका एक प्रासन विशेष, पद्मासन । प्रगासण-प्रकाशन । पुरक - प्राणायाम विधिके तीन भागोंमें से प्रथम भाग जिसमें श्वासको नाकमें खींच कर अंदर ले जाते हैं अथवा योग विधिसे नाकके दाहिने नथुनेको बंद कर के बायें नथुनेसे श्वासको भीतरकी ओर खींचना। कुंभ - प्राणायामका एक भाग जिसमें श्वास लेकर वायुको शरीरके भीतर रोक रखते हैं, यह क्रिया पूरकके बाद की जाती है, कुंभक । चक पूरै ( पूरा करें ? )। अनिल - वायु, हवा। मग- मार्ग । धूरै-ध्रुव अटले । ५३४. विखम क्रिया-विषम क्रिया। खट चक्र – शरीरके भीतर कुंडलिनीके ऊपरके छः चक्र, यथा : १. प्राधार, २. स्वाधिष्ठान, ३. मणिपूर, ४. अनाहत, ५. विशुद्धि और, ६. प्रज्ञा। Page #366 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास चढ़ावै वंकीनाळि घण अटकैर हीरामण तिल हिक* अमख कपाट छेदे तास गयण मग भी तँत जिम नाद & वाटां' । २० घाटां ।। ५३४ सतूट * छूटै । झकै । भमर गुंजारउ सबद ११ अस" पँखी पँख सहँसह " आवे । दीपत परमहंस दरसा | सरसति जमना गंग त्रवेणी | 93 .१४ १६ १८ त्रहुंवै " उलटी" वद जगमग जोति उदोत पच्छिम दिसा भांण परका २१ जोति मूंह " प्रथां अंगुस्ट वा मूरत" दिव्य नयणां प्रां २४ ६ भणकै ।। ५३५ त्रिवेणी" ।। ५३६ जगास १६ २७ T ।। ५३७ १ ख. ग. वाढ़ां । २. हटके । ग. सुटं । ६ ख. ग. मभि । ३ ख. हीरामणि । ४ ख. ग. हेक । । ७ ख. ग. कोण । ८ख. ग. तंति । १० ख. ग. सबद । ११ ख. ग. भ्रष्ट । १२ ख. सहसह । ग. सहस । १५ ग. उलटि । । ग. जमनां । १४ ख. ग. त्रिहुवे । १८ ग. उबोति । १६ ख. ग. उजासे ग. अंगुष्ट २३ ख. ग. भौह | ग. दिद । २७ ख. श्राव । १६ ख. ग. वहै । २० ख. ग. पछिम । २१ ख. परगासं । २४ ख. ग. वा । २५ ख. ग. मूरति । [ ३४१ ५ . तू । ख. ग. गुंजारव । १३ ख. जिमनां । ३३४. वंकीनाळि - शरीरकी एक नाड़ी, साधुग्रोंकी बोलचाल में सुषुम्ना नाड़ी जो मध्यमें मानी गई है । १७ ग. त्रीवेणी । २२ ख. २६ ख. ५३५. हिक - एक श्रमख - ( ? ) । झीर्ण - प्रत्यन्त महीन । तँत - वाद्यका तार झणकै - ध्वनिमान हो । गुंजारउ - गुंजन । ५३६. असट पँखी - अष्ट पंखड़ीयुक्त । वि० वि० - राजस्थानी में योग और तंत्र में माने जाने वाले अष्टकमल जिन्हें हिन्दी में षट्चक्र ही मानते हैं। राजस्थानी के अनुसार भ्रष्टकमल या अष्टचत्र निम्नलिखित हैं- १. अनाहत, २. आज्ञाचक्र, ३. ब्रह्मरंध्र, ४. भंवरगुफा, ५. मणिपुर, ६ . मूलाधार, ७. विशुद्ध, ८. स्वाधिष्ठान । सहँसह- सहस्रार । परमहंस - वह सन्यासी या महात्मा जो ज्ञानकी परमावस्थाको पहुंच गया हो अर्थात् सच्चिदानंद मैं ही हूं इसका पूर्ण रूपसे जिसे अनुभव हो गया हो । त्रवेणी - हठ योग के अनुसार इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना इन तीनों नाड़ियोंका संगम स्थान | ५३७. जगास - प्रकाशमान करें । भाण- सूर्यं । Page #367 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४२ ] सूरजप्रकास भमर - गुफा मझि रमै तजै भ्रम । जीत निंद्रा त्रिकुटी संजम । मन मोहणी नागणी मारै । सवै ताम अम्रत' तत' सारै ॥ ५३८ जदि त्रख' खुधा दहूं मिट जावै । लगै समाधि रहै चित लावै । प्रगा तंस अर अंस प्रगाता । मद विण इम घूमै'' मदमाता ॥ ५३६ जरा'' काळ कोयक'२ दिन जीतै* । वय'३ औपर वोतां दिन वीतै । वरस लक्खि'५ इम जोम'६ वधाए । जोगी तरै सुरग पुर जाए'८ ॥ ५४० करै कळाप'६ जीवबा कारण । धारै कठण जुगत २० इम धारण । माया झपट'' करै विच माहै । जुगति सको है। वीर२४ हि जाहै।५ ॥ ५४१ १. ख. ग. अमृत । २ ख. ग. तन। ३ ख. विष । ग. त्रिष। ४ ग. दुह । ५ ख. ग. मिटि । ६ ख. ग. जाय। ७ ख. ग. लव। ८ ख. ग. लाये। ख. विणि। १० ख. घूमै। ११ ख. ज्वुरा। ग. जुरा। १२ ख. कोइक। * ग. प्रतिमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है 'जुरा काळ कढ़ि कोइ न जीते। १३ ख. वष । ग. वप। १४ ख. प्रारि । ग. प्रापरि। १५ ख. ग. लष्य । १६ ख. जोग । १७ ग. पूरि। १८ ग. जाये। १६ ख. ग. कलाप। २० ख. ग. जुगति । २१ व. झप। ग. भपटि। २२ ख. विधि । ग. विचि । २३ ख. वै। ग. । २४ ख. ग. ठोर। १५ ख. ग. हिजाए। ५३८. भमर-गुफा - योगके पाठ कमलोंमेंसे एक । त्रिकुटी- दोनों भौंहों के बीच कुछ ऊपरका स्थान । संजम - संयम। मन"मारे - मनको मोहित करने वाली माया रूपी नागिनको मार डाले। ५३६. ख- तृषा । खुधा - क्षुधा, भूख । मद- नशा । ५४०, जरा-वृद्धावस्था। क्य-मायु। ५४१. कळाप-परिश्रम, यत्न । Page #368 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३४३ इसी' रोत' सिध' आदि अनादा । जोगेसां लालच तन जादो । सूर जिको पति छळ घमसांणै । जीरण वसत्र जिहीं तन जाण ॥ ५४२ रचतां कठण जुगत'' अंतराभै । लख वरसां स्रग' जोगी लाभै । औ' स्रुग' धणी सुछळ भड़ पावै । पलक मांहि सूरौ स्रग'५ पावै ॥ ५४३ इम सूरौ पति धरम इरादा । जोगेसरां'६ सिधांहूं जादा । लड़े नचित' लोह नह लागै । जिकौ'८ सूर तपसी सम जागै ॥ ५४४ अणभंग लागां लोहां आवै । सूर जिको सिध पर दरसावै । सूर अनेक लोह बहि१२ साहै । महा४ अचेत पड़े रिण ५ माहै।६ ॥ ५४५ १ ग. यसी। २ ख. ग. रीति। ३ ख. ग. सिधि। ४ ग. करें। ५ ख. तिको। ग. जिको। ६ ख. ग. छळि । ७ ख. ग. वस्त्र। ८ ख. जहीं। ग. जिही। ६ ग. तम । १० ख. ग. जुगति । ११ ख. श्रुग । ग. श्रुगि। १२ ख. ग. प्रो। १३ ख. श्रुग । ग. श्रुगि। १४ ख. ग. सुछलि । १५ ख. ग. षग। १६ ख. जोगेस्वरां। ग. जोगेसुरा । १७ ख. निचंत । ग. निचित । १८ ख. ग. जिको। १६ ख. जिको। २० ख. ग. सम । २१ क. दसराव। २२ ख. ग. वहि। २३ ख. ग. साहे। २४ ख. माहा । २५ ख. रण । २६ ख. माहे। ५४२. अनादा- अनादिकालसे। जोगेसा - योगीशों। जादा- ज्यादा । छळ - लिए, निमित्त । घमसांणे - युद्ध में । जीरण -पुराना, जीर्ण। धसत्र - वस्त्र । जाणे समझते हैं। ५४३. धणी- स्वामी। सुछळ - निमित्त, लिए। सूरौ- शूरवीर । नग - स्वर्ग । ५४४. जोगेसरां- योगीश्वरों। जिको - वह।। ५४५. अचेत - मूच्छित, संज्ञा-शून्य । पड़े- वीरगतिको प्राप्त होता है । माहै - में । Page #369 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४४ ] सूरजप्रकास इम रिणहूंत' अचेत उठावै । कायम जीवतसिभ' कहावै । भिडि' पति सुछळि पड़े गज भारां । साचै जीव ऊजळा' सारां ॥ ५४६ नर सुर अहि उण जोड़ न कोई । सिध तपसी उण उरै सकोई । सुरइँदहूंत अधिक सरसावै । दईवतणौ नायब दरसावै ॥ ५४७ सिखहूं'' रिख इम कहै सकाजा । रटै' भड़ांहूंता तिम राजा । सूरां धरम सीख'२ सँभळाहे । स्रीमुख हुकम कियौ खग साहे ।। ५४८ चित मो उछब१४ श्रेण'५ विध' चाहूं। वधि'८ वधि खाग स्रीहथां वाहूं। देखू० हाथ आज दइवांणां । किसड़ा एक२१ तुटौ२२ केवांणां ।। ५४६ १ ख. ग. रणहूता। २ ख. ग. सिभु। ३ ख. ग. भिड। ४ ख. जीवि। ५ ग. उजळा। ६ ग. सारं। ७ ख. सुरिइंदहूंत । ग. सुयंरिद। ८ ख. दरसावै । ६ ग. दइवतणो। १० ग. सिखहो। ११ ख. रटे। १२ ग. साष। १३ ख. संभलाहे । १४ ख. ग. उछव । १५ ग. एणि । ग. एण। १६ ख. ग. विधि। १७ ग. चाहौ। १८ ग. विधि विधि । १६ ग. वाहां। २० ग. देषौ । २१ ख. इक । २२ ख. जूटो । ग. जूटो । ५४६. कायम - अटल, दृढ़ । जीवसिभ - युद्ध-भूमिमें शस्त्र प्रहारोंसे घायल हो कर जीवित रहने वाला वीर । भिड़ि - युद्ध कर के। सुछळि - युद्ध में, लिए । गज भारां- हाथी दल। सारां - तलवारों। ५४७. उर- इस पोर । सकोई - सब । सुरईद - इन्द्रसे, सुरेन्द्रसे। सरसाव - प्रसन्न रहे। दईबतणौ - ईश्वरका। ५४८. सिखहूं - शिष्यसे । सँभळाहे - सुना कर । स्रीमुख-स्वयं । साहे - धारण कर के। ५४६. बधि वधि - बढ़-चढ़ कर। वाहूं- प्रहार करू। दइवांणां - वीरों। केवांणां - तलवारों। Page #370 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास रवि रथ थांभि' विलोकै राजा | सो आपरा जोध सिरताजा । दे दे पाव गजां दांतूसळ | वाघां जेम वीजूजळ ।। ५५० ग्रहै* जँगी हवदां जवनां हिंये जड़ां चढ़ां धड़ मीरजां नट किलकिला चौंड जिम नांखां ।। ५५१ प्रवगाढ़ां । जमदाढ़ां । बंधि इम धांखां २ ख तं । ग. तो । ७ ख. धाषां । ग. धोषां । १ ग. भ । ६ ख. होये । ग. कीरति । ११ ग. कौसी । १२ ख. १५ ख. ग. चढ़ीयौ । १६ ख. ग. भाले । कीरत सारौ जगत .१० रवि १२ ससि जेतै नांम समर १४ सिरै चढ़ियां " आच कँकण केहो प्रारीसौ ।। ५५२ भाळे १६ जोम पूर इण भत्ती । पौ तारिया" भड़ां 'अभपत्ती' । करि मुजरा बाहुड़ै सिलह करण आया भड़ - कहेसी " । 93 रहेसी । सारीसौ । करारा । सारा ।। ५५३ ३ ख. ग. दंतूसळ | ४ ग. वाधां । ५ ख. ग्रहे । ८ ग. किला किला । ख. ग. चोट । १० ख. रसि । १३ ग. रहसी । १४ ग. समरि । १७ ख. तांयां । ग. तारीयां । ५५० यांभि - रोक कर विलोकं देखे। दांतूसळ - हाथी के बाहरका दांत । वीजूजळ - तलवार । ५५१. हवदां - हौदों । श्रवगाढ़ां - वीरों । हिये - हृदय, वक्षस्थल । जड़ां - प्रहार करें । मीरजां - यवनों । वधि - संहार कर, वध कर । ५५२. कीरत - कीर्ति । सारो सब । सारीसौ - समान । श्राच आरसी । [ ३४५ ४५३. भाळे - देखता है। जोम - जोश। इण भत्ती - इस प्रकार । पौ योद्धा । मुजरा - अभिवादन | बाहुड़े - वापिस लौटे, मुड़े। सिलह - कवच, अस्त्र-शस्त्र । हाथ । श्रारीसो - दर्पण, Page #371 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४६ ] सूरजप्रकास जोधारांरी तयारीरौ वरणण कवित्त'- इम सलाह करि 'अभै', हुकम दीधा हुजदारां । करौ वेग' ताकीद', जंग साजति जोधारां । ठाह ठाह ठहरिया, काम अति कामागारां' । मँडिया" झड़ रूप में, ससत्र खटतीस समारां । ऊससै कमँध लागै उरसि", रोजा चढ़ियौ' वीररस । उण वार लोह मुंहगौ' हुवौं, सोनाही हूंता सरस ।। ५५४ पमँग गजां पाखरां, जंगी , हवदां समरीजै । चाठां१४ बगतर चढ़े, कूत अणियां'५ काढ़ीजै । झेरै वाढ झळाळ'", काळ'८ जमदढ़ केवांणां । तूटै दमँग'६ अताळ, झाळ छूटै खुरसांणां । हमगीर करण जुध हैमरां, धोम अराबां धरहरै । चिलतह छतीस प्रावध४ जुरस, कुळ छतीस राजस' करै॥ ५५५ १ ख. ग. कवित्त छप्प। २ ख. ग. वेगि। ३ ग. ताकीस । ४ ग. ठाम ठांम। ५ ख. । ठहरीया। ६ ख. कामागारां । ग. कामांगारा । ७ ख. मंडीया। ८ ख. ग. मै। ६ ख. ग. सस्त्र । १० ख. उरस। ११ ख. चढ़ीयो। १२ ख. मुंगो। ग. मूहगो। १३ ग. होदा। १४ ग. चाढ़ा। १५ ख. अणीयां। १६ ख. वाट। १७ ग. झळाहल। १८ ख. काल। १६ ग. दमंगल। २० ग. छट। २१ ख. ग. गज। २२ ख. चिलत। २३ ख. छहतीस। २४ ख. प्रावधा। २५ ख. ग. साजति । ५५४. हुजदारां- ( ? )। वेग - शीघ्र, जल्दी । ठाह ठाह - स्थान-स्थान । . कामा गारां - काम करने वाले। ऊससै - जोशमें आते हैं। मुंहगो - महंगा। सरस - बढ़ कर, श्रेष्ठ। ५५५. पर्मंग - घोड़ा । पाखरां- घोड़ा या हाथीका कवच । कूत - भाला। बाढ़ - तल वारादि शस्त्रका पैना भाग । झळाळ - चमकयुक्त तेज । दमंग- अग्निकरण । प्रताळ - तेज । खुरसांणां - शस्त्र पंना करनेका अौजार, शान। हैमरा - घोड़ों। धोम - अग्नि, धुंआ। पराबां - तोपों। घरहर - ध्वनि करती हैं। प्रावध - आयुध । चुरस - श्रेष्ठ । Page #372 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३४७ गँज सीसा घण गळे', भरै सच्चाळभरारां । गंज पड़े गोळियां', विखम गोळां विसतासं' । नसतर धर नायकां, मिळे पायकां समेळा । मेवा जेसळ मिळे, ऊर' रूपा सम चेळा । तूजियां' जेब कीजै तई, धांनंखी चिल्ला'. धरै । इण भांत ' थटां 'अभमाल'रा, कुळ छतीस साजत करै ॥५५६ वळ काढिजै१३ गांसियां, परां चाढिजै४ पँखाळां । वाढ़ अणी करि वलक'५, आब' कीजै अणियाळा' । बंध'८ बँदुका ६ बंध, धुप छौळां' जळधारां । दिये २ फूल दारुवां, रजिक 3 पाडिजै४ अपारां । छजि२५ फूल वाढ़ खंजरां छुरां, धारै अणियां धजधरै८ । इण भांत थटां' 'अभमाल'रा, कुळ छतीस साजत १ करै ।। ५५७ १ ख. लगे। २ ख. सचालां। ग. संचाळ । ३ ख. गोलीया । '४ ग. वसतारां। ५ ख. तुरस । ग. चुरस । ६ ग. रूपी। ७ ख. तूजीया। ८ ख. जेव। ग. जेम । ६ ख. धात्रकी। ग. धान्नकी। १० क. चित्ता। ११ ग. भांति । १२ ख. काढ़े। ग. काटे। १३ ख. गांसीयाँ। ग. गांसियां। १४ ख. चाढ़ज । ग. चाढ़जे । १५ ग. बळक। १६ ख. गः प्रोप। १७ ग. अणीयाळां । १८ ख. वंध। १६ ख. 'वदूकां । २० ख. बंधै। प. बंधै । २१ ग. छोळ। २२ ख. ग. दीये। २३ ख. ग. रंजक । २४ ख. पाडीजे । ग. पाडे । २५ ख, छलि। ग. छजि। २६ ग. वाट। २७ ख. अणीयां। २८ ख. धज्जरं। ग. झझरे। २६ व. भांति । ३० ग. थट। ३१ ख. ग. साजति । ५५६. नसतर - नश्तर - चीर-फाड़ करनेका औजार विशेष जिसका अगला भाग नुकीला होता है और प्रायः इसके दोनों ओर घार होती है। नायका - मरहमपट्टी करने वाले। तूजिया - धनुष । धानखी - धनुषधारी योद्धा। चिल्ला- धनुषकी प्रत्यंचा। थटां-दलों। . ५५७. वळ - ऐंठन। गांसियां - तीरका अग्र भाग। पंखाळा - पर वाले, सपंख, तीरों, बाणों। वाढ़ --शस्त्रका पैना भाग। वलक - ( ? )। प्राब- चमक । अणियाळा - भालों। फूल - तलवार ( ? )। Page #373 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३४८ ] सूरजप्रकास ६ ६ हूनरबंधां' हुनर, घणी तिण दिन मुंहगाई । चत्र रुपियां चौबधी, जंगम खुरताळ जड़ाई । art मोलकबांण, करै तदि चाक कबांणां । मोल" सेल लै माप, सेल चाढ़े खुरसांणां* । काढ़े" जौ वाढ़ पूणी कटै"; झळळ दुग्रंगल फेरमां । तेगरी" मोल दीजै तरें, तेग समारै तेरमां३ ।। ५५८ छोळ १४ अंब घण छौळ", औौळ सांगळां कपड़े बंध गज कठां, धरै मँझारां धूप, .१५ १६ उतारें । 10 ३२ प्रापतापा " प्रतापां 1 थेलां दारू थंडे ४, गजां६ गोळां अणमापां | कांबियां " रंग मौहरा" करै, रंग बां" भैंसा " रगति । जदि चाढ़ि मदां ज्वालामुखी, स तांम तोपां सगति ४ ॥ ५५६ १ ग. हुनर बंधा । २ ख. हुंनर । ३ ख. मौहोगाई। ग. मोहौगाई । ४ ख. ग. रूपीयां । ५ ख चैवंधी । ग. गौबंधी । ६ ख. ग. बोगस । ७ ख. मोलकवांण । ग. सोलकमांण । ८ख. ग. मोल । ग. सैल । 3 3 1 ★ 3 ४ १७ रौंळ" चाकां कर धारै१६ १८ प्रतिमें यह पंक्ति निम्न प्रकार है 'मोल सैल लागा पमेल चाढ़े बुरसांणां ।' तेगमां । १० ख. ग. काढ़ । ग. छोळि । १७ ख. ग. रोलि । ग. करि । ११ ख कढ़े । १२ ख. तेगरो । १३ ख. १५ ख छौलि । ग. छोळि । १६ ख. उतारे । १८ ख. १६ धारे । २० ख. धरे । २१ ग. श्राषतापा । २२ ग. प्रातां । २३ ख. ग. थैला । २४ ख. ग. दारूं । २५ क. थंडे । २६ ख. ग. मजां । २७ ख. कांवीया । ग. कवियां । २८ ख. महौरां । ग. मोहरां । २६ ख. करे । ३० ख. रंगेवकर । ग. रंगेकर | ३१ ख. ग. भैसां । ३२ ख. रगति । ग. रकत्ति । ३३ ख. ग. सके । ३४ ख. ग. सकति । ५५८. जंगम - घोड़ा । करें कबणां - धनुषों को तैयार करते हैं । पूणी - धुनी हुई रूईकी बत्ती जो चरखे पर कातनेके लिए तैयार की जाती है । भाळळ - चमकदार । दुगल- दो उंगली के मापकी लंबाई या चौड़ाई । ५५६. श्रौळ सांगळां - श्याम रंगका मैल। कपड़ कठां - कपड़ा लिपेटे हुए काटके बने गज । रौळ - घुमा कर । चाकांधारे - तैयार करते हैं । श्रापतापा - सूर्यं । श्रातापां - श्रग्नि । थंडे - डाल कर, ठूंस कर । कांबिकां रंग - लाल रंग । मोहरा - मुख रंग रगति - बकरों और भेसोंके खून से ( तोपोंके मुख) रंग कर । मदां हाथियों । - १४ ख. छैलि । Page #374 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३४६ कवित्त दौड़ो' : फौजरी कूच वजै' ध्रीह त्रंबाळ', पमँग साकति सझि पक्खर । कसि हौदां कुंजरां, तई पाखरां बगत्तर । सिलह करै कसि ससत्र'", तांम" भड़ चढ़े तुरंगां । हाजर दरगह' हुवा, सूर लोयणां सुरंगां । वट्टां हले वहीर, विखम पहटां अविघट” वट । . राजद्वार१५ आवियौ'६, थटे 'बगतेस१७ वीर थट । करि वप सनाह प्रावध कसे,लिये १८ सकति जप जय' लभौ । चक्रवती झपट हतां' चमर, प्राय गयँद चढ़ियौ अभौ ॥ ५६० छप्प हुय५ मुजरौ६ रावतां, होय हाका पड़-सद्दां । हाक जसोला' हुई ८, निहस ६ –बागळ° सद्दां' । वोम गोम हय विकट, धोम चढ़ि गरद अंधारां । हालै समँद हिलोळ, प्रचंड दळ वहल अपारां । १ ग. दोढ़ौ। २ ख. ग. वजे। ३ ख त्रांवाल । ग. तावाल । ४ ग. साजि । ५ ख. पाषर । ग. पाषरं। ६ ख. होंदा। ७ ग. तेई। ८ ख. ग. विहतर। ६ ख. करे । १० ख. ग. सस्त्र । ११ ग. महा। १२ ग. चढ़े। १३ ख. ग. दरग। १४ व. ग. अवघट । १५ ख. राजद्वारि। १६ ख. प्रावीयौ। १७ स. न, बरतेस। १८ ख. लीय। ग. लिये। १६ ख. जप। २० ग. झपटा। २१ ग. हुवैतां । २२ ल. चंसर । २३ ख. चढ़ीयौ। २४ ग. प्रभो। २५ ख. ग. होय। २६ ख. ग. मुजरा। २७ क. जसौलां। २८ ख. ग. होय । २६ ख. निहसि । ग. निहंस । ३० व. त्रांवागल। ग. त्रांबागल । ३१ ख. नद्द।। ग. नदां। ३२ ख. ग. होय। ३३ ख. ग. हाले । ५६०. ध्रीह-नगाड़ेकी ध्वनि, प्रावाज । बंबाळ -- नगाड़ा। पर्मंग - घोड़ा। सावति - जीन । पक्खर - घोड़ेका कवच । कुंजरां- हाथियों । बगत्तर - कवच । सिलह - कवच । तुरंगां - घोड़ों। लोयणां - नेत्र, लोचम । सुरंगां- लाल रक्त । बगतेस - महाराजा बखतसिंह । सनाह - कवच ! प्रावध - प्रायुध, अस्त्र-शस्त्र । चक्रवती चक्रवर्ती, राजा । झपट - झोंका। प्रभो - महाराजा अभयसिंह। ५६१. मुजरौ- अभिवादन, सलाम। हाका - आवाज, हल्ला-गुल्ला। पड़-सदां - प्रति ध्वनि । जसोलां - यश-गायकों। निहस - अावाज। बागळ -- नगाड़ा। सद्दांशब्द, ध्वनि । वोम : व्योम - प्राकाश। गोम - गौ, पृथ्वी, भूमि। धोम - धुंआ । गरद - धूलि । हिलोळ - तरंग, लहर । Page #375 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५० ] सूरजप्रकास धर धुकै' सेस कूरम धड़कि, काळीका ऊछह २. किया । मगरूर रूप अध्रियामणौ, अडालच " डेरा दिया ।। ५६१ खबरदार खांनरा, कहै दळ रूप कराळां । काळ रूप कटकियां", चाळ बंधण" कळिचाळां । सचाळां भड़ां, संभळ ' रवाळां । 9 3 रूप .१४ ६ .२३ . २४ बगसरां सकाजां । प्रसँग नह आविया ", छोह झाला छड़ियालां । प्रावियो " चोट खग नह असुर, प्रोट प्रराबां प्रवियो नवकोट थाट देखे निडर, कोट 'विलँद' साजत कियौ " ॥ ५६२ सेरविलंदरी तैयारी दुदु स हँस बँदूक, सहति तै दस दस भरि तोप, डहै भुरज भुरज प्रारबा, दुगम मतिवाळां मेलिया ६, कँगुर फिरणिया चहूं तरफां फिरे, काळ काढ़िया खगां किलकां" करे, डका ढोल तबलां डकां ।। ५६३ २६ २७ बारह दरवाजां । जुथ" गोळंदाजां । कंगुरे " सकाजां । रूप अरबाचकां ३२ 3 1 ५ ८ १ ख. धुके । २ ख. कुरम । ३ ख. ग. काळिका । ४ ख. ग. उछ्व । ५ ख. कीया । ६ ख. ग. अप्रियामणे । 1 ७ क. अंडालच । ८ख. दीया । ६. ख. ग. कहे । १० ख. दलकीया । ग. दळकिया । ११ ख. वांधण । १२ ख. कलिचालां । ग. कळिचाळां । १३ ख ग सांभाळ । १४ ग. प्रसंग । १५ ख श्रावीया । १६ ख. छडीयालां । १७ख. श्रावीयो ग. प्रावियो । १८ ग. आबां । १९ ख प्रावीयौ । ग. श्रावियो । ३० ब. ग साजति । २१ ख. ग. कीयौ । २२ ख. ग. दोय दोय । २४ ख. ग. सहस । २५ ख. सहथि। ग. सहथि। २६ ख. ग. वगसरां । २७ ख. ग. हे । २८ ग. दरबाजां । २६ ग. जूथ । ३० ख. ग. मेल्हीया । ३१ ग. कांगुर । ३२ ग. कांगुरे । ३२ ख. ग. फिरणीयां । ३३ ख श्ररवांचकां । ग. अरवांचका । ३४ ख. ग. काढ़ीया । ग. किल । ३६ ख ग करें । 1 ३५ ख. २० ५६१. मगरूर - गर्वोन्मत्त । श्रप्रियामणौ भयावह, जबरदस्त । ( प्रडालच एक दूसरे से ड़े हुए, समीप ? ) । - । ५ ५६२. सचाळी - तेजस्वियों । प्रासँग - साहस, शक्ति । छड़ियालां - भालों । नवकोट - मारवाड़ । थाट - सेना, दल । साजत - तैयार । प्रारबा- तोप | ५६३. बगसरां - यवनों । डहै - ठहरे, मुकर्रर हुए। भुरज - बुर्ज । फिरणिया - फिरने वाले, घूमने वाले एक प्रकारका शस्त्र ( ? ) । किलकां - कोलाहल । डका - ढोल या नगाड़ेको बजानेका डंका । जुथ यूथ, समूह - Page #376 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास रोहिला वजावै । डफ खंजरी दुतार, विखम पसतौ' अरबी' पाड़', किवळा सिजदा करै, जांणि प्रेत जागिया', जुड़ि मीरखांन प्राया जदिन, मुगळ भीड़ " दरगह मिली । कळिचाळ सिरे " दरबार करि, बैठौ 'विलँद' महाबळी गजल कड़खा बह गावै । किलम उच्चरै कुरांणी । महारिण काळ मसांणी । .११ १२ 13 ४ .१६ दवावेत जिस बखत सिर - विलंदखां" बहादुर " ममरजुलमुलक पीरोजजंग" मीरजादू खांनजादूंके "बीच" कैसा " दरसावे । लंकाकी छभा राकसूंकै " बीच" दसकंध सा निजर प्रावै ४ । तिस बखत परवरदिगारकूं सिजदा करि महमंद" मरतुजा अलीको ૨ ૧ याद करि दाहिणे " दस्त सेती समसेर तोल हुकम फुरमाया । 19 - जो - [ ३५१ ८ १ ख पसतो । ग. पिसतो । २ ख. अरवी । ग. श्रारबी । ३ ख. ग. पाढ़ । ४ ख चौहौ । ग. बौहो । ५ ख. कुसणां । ग. कुराणां । ६ ख. जागोया । ७ ख. ग. महारण । ख. मसांणां । ९ ख जदिन । १०. भीड । ११ ख. सरौ । ग. सरां । १२ ख. बैठौ । ग. बैठो । १३. ख. महावली । ग. महाबला । १४ ख. सिरिविलंदखां । वाहादर । ग. बाहादर । १६ ख. ममीरजुलमुलक । ग. ममारजुलमुलक । १७ ग. जंग | १८ ख. ग. जादूषांन । १६ ख. वीचि । ग. विचि । २० म. केसा | सुं । २२ ख. वोचि । ग. वीच। २३ ख. ग. नजर । २४ ख श्रायें । महमुद । २६ ख. मुरतजलीको । ग. मुरतजालीको 1 घ. मुरतज्जाश्रलोकूं । दांहिणे । ग. दांहणं । २८ ग जौ । २६ ग. घारौ । ३० ख. ग. दिलीके । || ५६४ .२६ यारो' दिल्लीके ५६४. डफ - देशी वाद्य विशेष । खंजरी - वाद्य विशेष । दुतार - दो तारका वाद्य विशेष । रोहिला - एक मुसलमान कौम । पसतौ पश्तो साढे तीन मात्राका ताल जिसमें दो आघात होते हैं, इसके बोल निम्न प्रकार हैं- ति, तक, धि, धा, गे । अरबी - वाद्ययंत्र, तासा । पाड़ मिला कर ? । कड़खा - राजस्थानी छंद विशेष जो प्रायः युद्ध के समय ही पढ़ा जाता है । किवळा - ( किबला, सम्माननीय ? ) । जांणि - मानों । मसांणी - श्मशान भूमिका | ५६५. मंमरजुलमुलक = मुबारिजुलमुल्क - सर बुलंदखांका खिताब । पीरोजजंग - ( ? ) । मीरजादू खांनजादू - अमीरों और खानोंके पुत्रोंके बीच छभा सभा । बसकंध रावण | परवरदिगारं पर्वरदिगारको पालन-पोषण करने वालेको, ईश्वरका | सिजदा - ईश्वर के लिए सर झुकाना, नमाजमें जमीन पर सर रखना, प्रणाम, सिज्द: । मरतुजालीको हजरत अलीकी एक उपाधि हात नली । दसत - = हाथ | १५ ख. पारोज २१ ख. २५ ग. २७ स्व. Page #377 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५२ ] सूरजप्रकास .५ १० १२ 93 १५ ६ २१ २२ पातिसाहके हुकम सेती मुझ पर गुस्सा कर हिदुस्थांनका' पातिसाह जंग करणंकूं आया सो" जंग करणेका मनसुभा ठहरावौ । जिसी " जिसीकी अकल हिम्मत के " दरम्यान आवै तिसी वजै जब सेती १४ कहिकै दिखावा । इस हुकम पर आदाब बजाय " खड़े सो सिपा कैसे । उरसके खंभ सेरूंके" झुंड " जैसे १६ । कळळूके' बाराह दिल्लूं के उमंदा । गल्ले गुलाबूंके पियाक पुलाबूंके खुरंदा* * सूरतके भयांणंख जमरांणूंके जोस । जंगूंके जालम तीरमदाजूंके सिरपोस । रूह के सुरख चमरूंके मंजार । रोसके झाळाहळ प्रातसके अंगार | ख्वावंदके" हुकमपर जमसेती जंग करें । निमखकी सरीयत पर ज्यांन कुरबांन करें । हूर वर" वरणैकी उछाह प्रांण । मरणा अरि मारणा खेल करि जांण । आपण ३५ ख्वायंदकी फौजूंके" लोहैकी " ढाल । सेरूंकी सावजूं चिकी मिसाल | जमकेसे फिरसते " लगे" असमांण जिनूंके २६ २६ ३१ 33 ४ 3 ४० देखे से ४ ७ १ ख. ग. पातसाह | २ ख. ग. मुज । ३ ख. ग. गुसा । ४ ग. करि । स्थानका । ग. हिंदुस्थानका । ६ ख पातसाह | ७ ख. ग. करणेको । ६ ख. ग. करणेका । १० ख. मनसुवा । ग. मनसूबा । श्रकलि । १३ ख हिम्मतिके । ग. हींम्मति । १४ ख. ग. जवां । १७ ख. संरूके । । २१ ग. दिलके । २२ २५ ख. चम्मूंके । ग. २८ ग. निमकाकि । १८ ग. झड ग. गल्लू । चष्युके । - । कर । १६ व. ग. सिपाह । २० ख. कल्लूंके । ग. कलूके । २४ ख. सुरतके । ग. सूरनके २७ क. स्वायंदके । ख. घांइंदके ग. प्रतियों में यह शब्द नहीं है । श्रर । ग. श्ररु । ३४ ख कर । ३५ ख श्रपणे । ग अपने । ३६ ख. ग. व्वाइदकी । ३७ ग. फौझोके । ३८ ख लोहेकी । ग. लोहकी । फीरसते । ४१ ख. लगो । ग. लगे । ४२ ख. जिन्हूंके ३१ ख होस । ग. हांस । ३२ ग. मरण | ३३ ख. .४२ ८ग. सु । ११ ग. जिस जिसकी । १२ ग. 3 । २६ ख. ग. सरियत । - द - ४ 3 ५ ख. हिंदु १५ ख. ग. वजाय १६ ख. जैसे । २३ ख. पियाक । २६ ग. भीळाहळ । ३० ख. ४० ग. ३६ ख. ग. चित्तूंकी | ग. जिहुके । ४३ ख. देषेते । दिल्लूंके -- ४६५. मनसुभा - विचार । कळके - कलियुगके। गुलाबूंके - गुलाब के फूलोंकी शराबके। पियाक - पीने जो मांसको चावलोंके साथ पकानेसे बनता है । खुरंदा खाने वाले । भयाणंख भयावने, भयानक । जमराणूंके यमराजके । सिरपोस यहां श्रेष्ठ अर्थ ठीक बैठता है । रूह - कान्ति, रुख । झाळाहळ - तेजस्वी । श्रातसके - श्रग्निके, श्रागके । Watch - मालिक | सरोयत - पालन, नियम । साथजूं - सिंहके बच्चे । चित्रंकी - चीतोंकी | जमकेसे फिरसते - यमराजके दूत जैसे । दिलके, हृदयके । गल्ले वाला । पुलाबूंके - व्यंजन Page #378 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रका [ ३५३ १ .५ ७ ह .१५ १ १४ १६ ७ २२ सूकै मदमसत. फीलंके डांण । फुरकान इजील तौरतें जंबून के fast मां । ऐसे सबूंका सिरपोस सईद ' प्राबद अलीखांन सो प्रावधअलीखांन कैसा । दिलावरखांनका फरजन दिलावरखांन" जैसा | जिन" दिलावरखांननै कल्हके रोज दक्षनके दरम्यान निजांमन ३. मुलक सेती जंग किया " । च्यार हजार दुसमनकूं" मार समसेरूंकी धारसेती निमककी सरियतपर" सिर दिया । अपनी मनीके श्रागे" औरूंकी " खातर न प्रांण । वाहरेकी समसेरकूं सब प्रालम जांणै । जैसाही आप जैसा जमाल अलीखां ४ भाई | दोनूं " सइयदूंन तिस बखत प्ररज गुजराई । नबाब फील प्रसवार होय नजरूंके २८ वीच धरै । हरवळ के पेस होय हम - जंग जरै" । ग्राही " वडै ३ महाराज " 'अजमाल' सैं " संभरके विरादर हसनखां गिरदखां हुसैनखांने जंग कर सिर दिया " । जिन्हुंनके " मरणैसे तारीफके .२३ २४ २६ ० 3 ३४ 3 & ७ खेत हमारे " ८ ૨ 3 - 19 १४ ख. ग. १ ग. सूके । २ ख. कीलूंके । ग. फीलूके । ३. फुरकान्ह । ४ ख तौरल । ग. तौरेत । ५ ख. ग. जवूलके । ६ ख. सईयद । ग. सहय । ७ ख. ग. प्रावदअलीखां । ८ख. प्रावदलीषांन। ग. श्रावदलाषां । ६ ख. ग. दिलावरषांका । १० ख. ग. दिलावरषां ११ ख. ग. जिस 1 १२ ख. दक्षिणके । ग. दध्यिणके । १३ ख. निनामन । कीया । १५ ख. बुसमनूंको । ग. दुसमनौकौ । १६ ख. ग. समसेरांकी । १७ ख. ग. नमककी । १८ ख. ग. सरतपर । १९ ख श्रपणी । ग. श्रपणे । २० ग. मनाकै । २१ ख. आगं । ग. अगै । २२ ख. औरकूं । ग. ओरको । २३ त्व. जैसाई । ग. जैसा । २४ ख. इलीषां । २५ ख. दोयूं । ग. दोयू । २६ ख. सईयूंबुजं । ग. सहय्तंदूनं । २७ ख. नव्वाव । २८ ग. निजरूंकौ । २६ ख. विचि । ग. विच । ३० ख. ग. हरवलकै । ३१ ख. ग. करें । ३२ ख. ग. श्राग्रेभी । ३३ ग. वडा । ३४ ख. ग. माहाराजा । ३५ ख. प्रजमालसे। ग. अजमल से । ३६ ख. सांभरकै । ३७ ख. हमारे । ३८ ख. करि । ३६. ग. सच्चे । ४० ख. बिलसै । ग. दिलसे । ४१ ख. दीया । ४२ ख. जिन्हूके । ग. तिन्हके । ४३ ख. मरण । - ५६५. मदमसत - मदमस्त, मदोन्मत्त । फोलूंके हाथियोंके । डांग - हाथीकी गर्दनका मद । फुरकान - मुसलमानोंका धर्म-ग्रंथ, फुर्कान, कुन । इजील - ईसाइयोंकी मुख्य धार्मिक पुस्तक, ईजील । तौरतें - वह आस्मानी ग्रंथ जो हजरत मूसा पर उतरा था, तोरात । जंबून के -जबूनके, नीचके । फरजन संतान । सरियत पर - शरचित पर । श्रालम - संसार, दुनिया । संभर- सांभर नामक स्थान । विरादर - भ्रातृ, भाई, बरादर । ० & ४० सच्चे दिल से सवाल सब आलम Page #379 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५४ ] सूरजप्रकास परि' जिया। उसी' उजाह जाय असीलूकी चोट खेलै । सिरोहियांकी चोट झेलै । पुरजां पुरजे होय' जावै भिसतर्फे चलि' हरके हाथू से लेवै नूरके प्याले इस वजैका ४ ज्वाब'५ प्रावधअलीखां'६ जमालअलीखांन दिया' । तिस पछै तरीयनखां पठाणने इल तमास किया। राठोडं पठाणूंके जंग आगूस लेखा जिसी बखत मुकालबाहुवा तिसी बखत आफताफनै असिपकड़ि तमासा देखा फेर हमारै माहाराजास' वैर प्रागै यक२२ वडे3 महाराज गजसिंघ जहंगीरके १५ हरवळ होय हमारे तरीयन ६ समसेरखां बहलोलखां केतांई ६ मारिकरि फतै पाई। वहैं' वैर लेणे यहै सायत आई जिससेती जनेबूं मुरगळूकी झाट खातूं २ झंडु के वीच ३ खेलेंगे। सिरोही५ जोधांणकी समसेरूके घाव सिर ऊपर ६ झेलेंगे। औराकूके ८ छाकसै छाके जमो पर जावेंगे हरूक" व्याहि करि १ ख. ग. पर। २ ख. ग. जीया। ३ ख. ग. उसही। ४ ख. जहंस । ग. उनह । ५ ख. अस्टीलूकी। ग. असीलोका। ६ ख. बेल्है । ७ ख. सीरोहीयूंकी । ग. सीरोहियोका । ८ ग. चौट । ६ ग. जेल। १० ख. पुरज। ग. पुरजां। ११ ख. हुइ। १२ ग. जिससकूँ। १३ ख. चाले । ग. वाके प्याले। १४ ग. वजेका। १५ ख. ज्वाव । १६ ख. ग. प्रावदनली । १७ ख. ग. दीया। १८ ख. ग. कीया। १६ ख. मुकाविला । ग. मुकालवा । २० ख. असपकसि। ग. प्रसपकसित । २१ ख. माहाराजूस । ग. माहाराजौसै । २२ ख. ग. इन्हके । २३ ख. प्रतिमें यह शब्द नहीं है । २४ ख. माराजा। ग. माहाराजा। २५ ख, जांहांगिरके । ग. जांहांगीरके । २६ ख. तरीयत। २७ ग. पठाण समसेरषां । २८ ख. ग. वहलोल। २६ ग. कैताई। ३० ख. ग. मारीकरि। ३१ ख. ग. वह । ३२ ख. ग. षासे । ३३ ख. ग. वीचि । ३४ ख. लैंगे। ग. लगे। ३५ ख. ग. सोरोही। ३६ ग. ऊपर। ३७ ख. झेलैगे ग. झेलेंगे। ३८ ख. ग. एराकूकी। ३६ स्व. जावेगे । ग. जावेगे। 1.ग. हरूंका । ५६५. उजाह - वजह, कारण । असोलूकी - बढ़िया लोहके अस्त्रकी। सिरोहियांको - सिरोहीकी बनी तलवारोंकी । झेल - सहन करते हैं । भिसतकं - बिहिश्तको, स्वर्गको, हूरके - यवनोंको वीर गति प्राप्त होने पर स्वर्ग में मिलने वाली अप्सराके। नूरके - चहरेकी आबोताबके, मुखछटाके । मुकालबा - मुकाबिला, भिड़त । आफताफनै - सूर्यने । हरवळ - सेनाके आगे रहने वाला, हरावल । तरीयन - सबसे अधिक । यहै - यह । सायत - समय, अवसर । जनेबू - तलवारों। मुरगाबूंकी- एक प्रकारकी तलवार ( ? )। भाट - टक्कर । समसेरूंके - तलवारोंके । पराकके - तेज शराबके । छाकस - शराब पीनेके प्यालोंसे । छाके - छके हुए, मस्त । Page #380 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३५५ भिसतमें प्रावैगे' । तरीयनखां असे बोले तिन वार। कायमखां सैद सेख बोले अलीहार । तीन पौहरूका आफताफ राठौड़ पर रौसनाई ठहरावें । चौथं पहरकी रौसनाई सब आलमपर आवै। असे' राठौड़ के ३ पातिसाह जिन्हूंसेती समसेरूंका जंग करें । फीलूके'५ विचमै ६ फीलूकू धरैं। सेलूकू पहरि समसेरूंकू चलावै । निमककी ८ सरीयत'६ सो° पाक' करि दिखलावै । जीवै तौ लेवें सितरहजार गुजरातका राज । मरै तौ हूर भिस्तका समाज२३ । इस वजैसे बोले २४ च्यार हजार५ । सौं६ पालकी-नसोन आठ फीलूके'८ असवार । जमराजकासा ६ दरबार जोम सँग १ हम हताहै३२ अमराऊ3 उमीरूंकू अास्रीवाद कहता है तिस बखत निबाब ६ उमराऊंसे कहा। जैसा था भरोसा तैसा तुमनै " ज्वाब दिया । जंगका तजबीर २ ऐ भी मनजूर४४ किया५ । पै-गढ़का सामांन४६ तोपूस झाड़ि । तिस पीछे करेंगे ८ चौड़ेकी ६ राड़ि ॥५६५ १ ख. ग. भिस्तम । २ ख. पावैगे। ग. पावैगे। ३ ख. वोले। ४ ख. ग. तिस । ५ ख. अलिहार । ग. अलिबार । ६ ख. प्राफताप। ७ ख. रोसनाई। ग. हौसनाइ। ८ ख. पोहोरको । ग. पोहरकी। ९ ख. रोसनाई। १० ग. पालमपै। ११ ग. प्रैस । १२ ग. राठौड़ाके। १३ ग. पातसाह । १४ ख. जिन्हंसेती। ग. जहू। १५ ग. फोर्क । १६ ख. वीचमै । ग. वोचिम। १७ ग. समसेरकू। १८ ख. ग. निमषकी । १६ स्व. ग. सरियत । २० ग. सौ। २१ ख. ५। ग. पकी। २२ ग. हुर। २३ ग. समाजा। २४ ग. बोल। २५ ग. हजारी। २६ ख. ग. सो। २७ ग. पालषीनसीन। २८ ग. फीलौक। २६ ख. जमराका । ग. जमराजकैसा। ३० ख. ग. दरवार। ३१ ख. ग. सैग। ३२ ग. ताहै। ३३ ख. उमरावू । ग. उमराऊं। ३४ ख. उमीरूकी। ३५ ख. वाद । ग. पाश्रीवाद । ३६ ख. ग. नबाब । ३७ ग. उमरांवुस । ३८ ग. जेसा। ३६ ग. भरोसे । ४० ग. तिसा। ४१ ख. नमूने । ग. तमैनि। ४२ ख. ग. दीया। ४३ ख. ग. ततवीर । ४४ ग. मंजूर । ४५ ख. कीया। ४६ ग. समान। ४७ ख. तोपूस। ग. तोपोसै। ४८ ख. करैगे। ग. करैगे। ४६ ग. चौडौंकी। ३६५. रौसनाई - प्रकाश । भिस्तका - बहिश्तका, स्वर्गका। चौड़ेकी - खुले मैदानकी । राड़ि-युद्ध । Page #381 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५६ ] सूरजप्रकास महाराजा श्रभंसिंघजीरो सरबुलंदर प्रत संवेस कवित्त-कुंडलियो गज' ढाल । वेळा ' उण खत 'विलँदनूं', इम मेल्हे 'प्रभमाल' । हूं प्रायो' लड़जे हमें, धरि मुहरे धरि मुहरे गज ढाल, प्राय चौड़े कोट ट मतितके, डर लड़ि रीत" अमीरां । पति - ईरां । 19 हूं श्रायौ तोहूंत, १२ घणूं जूटण खग घाए' 1 93 १४ १६ २ कदम डग'' कीजिये", जोम छाडे "मति जाए"। इम' १६ वाच" ज्वाब 'अभमालरा, धरि व्रजागि बळ" धांखियौ । घ्रत जेम १४ आग" सींची घणूं", उरस लाग" उपड़ांखिपौ“ ।। ५६६ .२३ .२५ सरबुलंदरौ जबाब नीसांणी ३६ २ लिख भेजे " खतका जबाब ", करि रीस अकारी । मै दावा 'महमंदसूं, कीया सकरारी | मै पग छंडूं किस वजै, हुय" हास हमारी । तेग बँधी ६ मै तखतसै", काची" नह धारी ॥ ५६७. मत । १० ख. तकै । ग. करें । १ ख. ग. वेला । २ ग. हु । ३ ग. श्राया । ४ ख. मोहोरे । ग. मोहोरे । ५ ग. गय। ६. ग. मोहोरे । ७ ख. कोटि । ८ ख. प्रोटि । ६ ख ११ ख. ग. रोति । १२ ग. घाऐ । १३ ग. कइम | १४ ख. ग. श्रडिंग । १५ ख. कीजिए। ग. कीजिये । १६ ख. ग. जंग १७ ग. छाडे । १८ ग. जाऐ । १६ ख. एम । २० ख. ग. वांचि । २१ ख. वल । ग. बलि । २२ ख. घाषीयौ । ग. धषियौ । २३ ख. ग. घृतं । २४ ख. जांणि । ग. जांणं । २५ ख. ग. श्राणि । २६ ख ग घ । २७ व. ग. लागि । २८ ख. उपडालीयौ । ग. उपडाषीयौ । २६ ख. ग. लिषि । भे । ३० ख. ३१ ख. ग. जवाव । ३२ ख. करी । ३३ ख. महमंदसौं । ग. महमंदसौ । ३४ ख. छाडूं । ग. छाड् । ३५ ख. ग. होय । ३६ ख. बांधी। ग. बंधी । ३७ ग. तखतसौ । ३८ ग. कांची । ५६६. मेल्हे - भेजे । श्रभमाल - महाराजा अभयसिंह हूं - मैं हमे - अब । मुहरेआगे । पति-ईरां - ईरानियोंका स्वामी । जूटण - भिड़नेको । जोम - जोश, उमंग । वाच - वचन | ज्वाब - जवाब । घांखियो - प्रज्वलित हुग्रा ( ? ) । उपडांखियो - जोशीला, वीर ५६७. प्रकारी - तेज । सकरारी - प्रतिज्ञापूर्ण । वजे - कारण। काची - कच्ची । Page #382 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [३५७ अती लिखी' अजाजती', सो भली विचारी । । इहां ढील कुछ भी नहीं, यां है सब त्यारी । मुझकू लड़णका मगज, तिस'' परि'' इकतारी। सझणे अँग आवौ सताब, धर छक छत्रधारी ।। ५६८ मैं नांही चीनी3 फरौस", मै हफत - हजारी'५ । ....... || ५६४ महाराजा अभैसिंघरौ वखांण छंद पद्धरी सुणि खत जबाब ६इम 'अभैसाह'१७ । सूरमां' मौड़ पहरै० सनाह । प्रोपिय २२ तेज झळहळ नरिंद२३ । सुणि२४ जांणि तेज उभळे समंद५ ।। ५७० लालंबर लोयण२६ वदन लाल । उद्योत२७ भांण बारह.८ अपाल । सझि खाग सुजड़ धांनंख६ सीस। रवदाळतणे सिर १ काळ रीस ॥ ५७१ १ ग. लिषि । २ ख. ग. जाजती। ३ ख. ग. यहां। ४ ख. यहां । ग. इहां। ५ ख. ग. सबै । ६ ख. तयारी । ग. तियारी। ७ ख. मुजकुं । ग. मुजनू । ८ ख. उलते । ग. लडन। ६ ख. मुगज। १० ग. तीस । ११ ख. ग. पर। १२ ख. सताव । ग. सिताब । १२ ग. चीन्ही। १४ ख. फरोस । १५ ग. मेंहफत हजारी। १६ ख. जवाव । १७ ख. ग. अभयसाह । १८ ख. सूरिमा । ग. सूरिमां। १६ ख. मोड । ग. मौडि । २० ख. परे। २१ ख. सताह । २२ ख. ओपीयौ । ग. प्रोपियो। २३ ख. ग. नरिंद्र । ३४ ग. सुजि । २५ ख. समंद्र । २६ ग. लोयन । २७ ख. उद्योत । ग. उद्यौत । २८ ख. ग. वारह। २६ ख. ग. धानंष। ३० ग. कसीस। ३१ ख. ग. सिरि। ५६८. अजाजती- ( ? ) । इहां- यहां । ढोल - विलम्ब । यां- यहां। मगज - गर्व । सताब - शीघ्र। छक - जोश, उमंग । छत्रधारी- राजा। ५६९. चीनी फरौस - चीनी मिट्टी के खिलौने बेचने वाला । हफत - हजारी। ५७०. सूरमा मोड़ - शूरवीरों में श्रेष्ठ । सनाह- कवच । प्रोपियै - शोभित हुए। झळ हळ - सूर्य। नरिंद - नरेंद्र, राजा। उझळे - उमड़ा हो। ५७१. लालंबर - पूर्ण लाल । लोयण - लोचन, नेत्र । वचन - मुख । अपाल-( ? )। सुजड़ - कटार । रवदाळतणे - यवनके । Page #383 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३५८ ] सूरजप्रकास उणः वार फबे 'अभमाल' एम । जुध करण लंक स्त्रीराम जेम । अड्ढार' पदम जिम भड़ अड्ड । जरदैत ससत्र' कसि कड़ाजूड़ ॥ ५७२ 'वखतेस' 'लखण' जिम महा वीर । सझि सिलह ससत्र' कसियां सधीर । 'विजपाळ' हणूं जिम रिण व्रजागि । लोह में सझे भड़ उरस लागि ।। ५७३ एकणी नगारै थाट प्रेम । हल्ले वहीर' जिम सलित हेम । पंडवां' करे साकति पमंग । सजि' पाखर वादळ • घड़ सुचंग ॥ ५७४ हाथियां मेघ-डंबर४ हवद्द । जंगी कसि हवदां विखम जद्द१६ । पाखरां पूर कीधा अपाल । दलिप चमर चाचरां ढलकि'८ ढाल ॥ ५७५ १ ख. अढ़ार । २ ख. ग. सस्त्र । ३ ख. ग. सस्त्र । ४ ख. कसीयां । ग. कसाया। ५ ख. ग. रण। ६ ख. ग. मै। ७ ग. सझे। ८ ग. उरसि । ६ ग. एकण । १६ ख. वहीर । ग. बहीर। ११ ख. ग. पांडवां। १२ ख. ग. सझि। १३ ख. ग. हाथियां । १४ ख. डंव्वर । १५ ख. ग. हव्वद । १६ ख. ।। १७ ख. ग. टलि। १८ ख. ढलक। ५७२. अड़ - जबरदस्त । जरदैत - कवचधारी। कड़ाजूड़ - सुसज्जित । ५७३. लखण - लक्ष्मण । विजपाळ - भंडारी विजयराजके लिए प्रयोग किया है जिसने अहमदाबादके युद्ध में मेड़तिया राठौड़ोंके तीसरे मोर्चे पर बड़ी बहादुरीका कार्य किया था। हणूं - महावीर हनुमान । ५७४. एकणी - एक ही। थाट - सेना, दल । वहीर - प्रस्थान, कूच । सलित हेम - हिमालय पहाड़की नदी (?) । पंडवा - यवनों, मुसलमानों। घड़ - सेना। सुचंग - (?) । ५७५. हवद्द - होदा। हवदां - हौदों । जद्द - जब । ढुळि चमर - चंवर डुला कर । चाचरी- मस्तकों, ललाटों। ढळकि - लुढकती हो। ढाल - हाथीके मस्तक पर - युद्ध के समय धारण कराया जाने वाला उपकरण । Page #384 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३५६ धरि' नवबति चढ़ि नीसांण धार । पर तौग' मही-मूरतब प्रकार । धर' सकति पूंज द्वज' चढ़े धाम । त्रहुं घड़ा सुभड़ असि चढ़े तांम ॥ ५७६ धुजि चढ़े गजां हथनाळ धारि । द्वरदाळ'' आंणियां'२ राजद्वार । 'बखतेस' 'विजौ' दहुं१४ घड़ वणाय । उण वार खड़ा दरगाह प्राय ॥ ५७७ अति कड़ाजूड़ पैदल अनंत । धोम मै ससत्र'५ तोड़ाधिकंत'६ । तदि' अरज कीध खिजमत्तिदार'८ । पह' हाजर बहुंवै' घड़ अपार ॥ ५७८ दूसरौ२१ डंका वाजे दमाम । धर गिर तर धूजेने दुसहर धाम । जिण वार भूप करि सकति जाप४ । पढ़ि जैत मंत्र सोळह प्रताप२५ ॥ ५७६ १ ख. ग. धर । २ ख. ग. तोग। ३ ख. परि । ग. पसि । ४ ग. पूज। ५ ख. व ज । ग. दूज। ६ ख. त्रिहु । ग. चिहूं। ७ ख. ग. धुज। ८ ग. चढ़े। ६ ख. ग. हथनालि । १० ग. धरि। ११ ख. ग. दुरदाल । १२ ख. प्राणीया । १३ ख. राजद्वारि। १४ ख. दुहुँ । ग. दुहूं। १५ ख. ग. सस्त्र । १६ ख. तोडाधिषंत । ग. तोडाधुषंत। १७ ग. तद। १८ ख. षिजमतगार । ग. षिजमतिगार। १६ ख. पोहौ। ग. पोहो । २० ख. हुंदै । ग. त्रिहोवे। २१ ख. दूसरौ। ग. दूसरो। २२ ग. धूज। २३ ख. सुसह । २४ ग. जार। २५ ग. प्रकार । ५७६. नवबति - नोबत । नीसांण – झंडा। ५७७. धुजि - ध्वजा, झंडा। हथनाळ - तोप विशेष । द्वरदाळ - हाथी। प्राणियों - ___ लाने पर। वखतेस - महाराजा बखतसिंह। विजौ - विजयराज भंडारी ( ? )। घड़- सेना। दरगाह - दरबार । ५७८. कड़ाजूड़ - अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित । धोम मै - अग्निमें, क्रोधाग्नि में । तोड़ाधिकंत - प्रज्वलित पलीता लिए हुए। खिजमत्तिदार - सेवक । ५७६. बमांम - नगाड़ा। दुसह – शत्रु । धाम - स्थान । जाप - जप, पठन-पाठन । Page #385 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६० ] सूरजप्रकास साबळ झलि' हालै' पह' सधीर । वप रूप जांणि नरसिंघ वीर । गहतंत अयौ बाहर' गरूर । सिहरहूं प्रगटियौ जांणि सूर ॥ ५८० सिर नमे हजारां बंध साथ । निज करे कुरब जोधाण नाथ । धरियां छक चढ़ियों'' गणूद धाम । तीसरौ१२ नगारौ हुवौ१४ तांम ॥ ५८१ तदि वड्डि अरण धज वजि तबल्ल । हलि तोप गजां धमळां हमल्ल' । भरि१८ दारू गोळां मजां भार । प्रारबा६ अवर० कठठे२१ अपार ॥ ५८२ __महाराजा अभैसींघजीरी सेनारौ वरणण घण छपन२२ कोड़ि३ धुजि२४ घाट'५ । थरसले अनड़ बह हले थाट । १.ख. सझि। २ ख. हाले। ग. हलि। ३ ख. ग. पौंहो। ४ ग. जाण। ५ ख. वाहरि। ६ ग. सिहिरह। ७ ख. प्रगटोयो । ग. प्रगटीयो। ८ ग. जाण। ख. कुवर। १० ख. धरीयां। ११ व. चढ़ीयो। ग. चढ़ियो। १२ ग. तोसरो। १३ ग, नगारो। १४ ख. हुप्रौ। ग. हुवो। १५ ख, ग. उडि। १६ ख. तव्वल। १७ ख. हम्मल । ग. हमल। १८ ख. ग. भर । १६ ख. पारवां। २० ख. परव। २१ ख. कठटे। २२ ख. छयन । २३ ग. कोटि। २४ ख. धुर । ग. ध्रर। २५ ग. घंटा । २६ ख. अनल। २७ ख. वौहो। ग. बहो । ५०. नरसिंघ - नृसिंहावतार । गहतत - गर्वपूर्ण। गरूर - गर्व । सिहर -शिखर, बादल । ५८१. छक -जोश, उत्साह । ५८२. प्ररण धज - अरुण-ध्वजा, लाल झंडा। धमळो - बैलों। हमल्ल -- ( ? ) । वारू - बारूद । मजा भार - ( ? ) । पारवा - तोप । कठठे- ध्वनि करते चले। ५८३. थरसले - कंपायमान हो गये। अनड़- पर्वत । Page #386 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३६१ काळायण कठठे काळ - कीठ' । दुति सिखर' भमर गजराज दीठ ॥ ५८३ उडि गरद धोम चढ़ि आसमांण । भमरंग दिसा दीसै न भांण । सेनारौ घण-घटासू रूपक बांधणौ पखरैतां कांठल भमर पाज । गाजत गयँद नौबत्ति गाज ।। ५८४ हैमरां दादुरां कळळ होय । जगि तोडां दमँग खिदौत जोय । जसवळांतणां'• हाका-स जोर । मिळि'' सबद जांणि' चात्रग्ग' मोर ।। ५८५ वादळां सिलह पोसां वणाव' । साबळां१५ भळक वोजळ सिळोव । . नीसांण धनँख फरहर अनंत । दुरदां हरौळ बक'६ पंत दंत ॥ ५८६ १ ग. कालकोट । २ ग. भमर सिषर गजराज''। ३ ख. ग. निसा। ४ ग. दोसे। ५ ग. काठल। ६ ग. गाजंति। ७ ख. नौवति । ग. नौवत्ति । ८ ल. दमंगि। ६ ख. ग. षिदोत। १० ग. जसबळांतणा। ११ ग. मित्रि । १२ ग. जांण । १३ ख. चात्रग । ग. चात्रक। १४ ख. वणाय । १५ ख. सावलां। १६ ख. ग. वुक । ५८३. काळायण - श्याम घन-घटा। काळ-कोठ - अत्यन्त श्याम । ५८४. धोम - धुंपा। भमरंग दिसा - दिशाएँ धूलि आच्छादित हो गई है। पखरतां कवचधारी घोड़ों या योद्धानों। ५८५. हैमरा - घोड़ा। दादुरां- मेंढकों। कळळ - ध्वनि । तोडां- पलीतों। खिदौत - खद्योत, जुगनू । जोय - देख । जसवळांतणा- यशगायकोंके । हाका-स-आवाज । चावग्ग - चातक। ५८६. सिलह पोसां - कवचधारियों । भळक - चमक, द्युति । वीजळ - बिजली या तलवार । सिळाव - बिजलीकी चमक । नीसांण -झंडा। धनख - इन्द्रधनुष । दुरवा - द्विरदों, हाथियों। हरोळ - प्रगाड़ी। बक - बक-पक्षी । पंत -पंक्ति । Page #387 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६२ ] सूरजप्रकास धरहरै' सुजळ मद गयंद धार । इळ वीच कीच माचै अपार । दळ रवदतणा भांजण' दुकाळ । वरससी' अगे गोळां व्रसाळ ॥ ५८७ है नास सास धूबि वीर हाक । धूजिया दसै द्रिगपाळ धाक । फेर दूसरौ रूपक भिड़जाळ नाळ धर धसकि भार । हबि' सेस सीस लटिया हजार ॥ ५८८ डाकां जिम अहि फण चोट दीध । कमठरी पीठ त्रंबाळ कीध । कड़कियौ'कमठ घट कळमळेस । धड़कियों'' त्रकुट१२ औदक धनेस ॥ ५८६ वाजतां त्रंबागळ डाक वाधि । सिध गिरँद गुफा छूटै समाधि । भमता खग उडता बह४ भुजंग । कळमळ१५ पड़े६ मुझे कुरंग ।। ५६० १ ग. धरहरे। २ ग. भाजत । ३ क. वरसीस। ४ ख. धूजीया । ५ ग. नळ । ६ ख. धसिकि । ७ ख. ग. हुवि । ८ख. ग. अह । ख. त्रांवाल । ग. तांबाळ । १० ख. कडकीयो । ग. कडकिया। ११ ख. धडकीयो । ग. धरकियो। १२ ख. तृकुट । ग. त्रिकुट । १३ ख. ग. छूटे। १४ ख. वहौ । ग. बहु । १५ ग. कळमळे । १६ ग. पडे । १७ ग. मुझे। ५८७. धरहरै- ध्वनिमान होते हैं। इळ - इला, पृथ्वी। कीच-पंक, दलदल । दळ सेना । रवदतणा- यवनके । भांजण – नष्ट करनेका। दुकाळ - दुष्काल, दुर्भिक्ष । व्रसाळ - वर्षा । ५ ८. है- हय, घोड़ा। नास - नासिका, नाक । धाक - भय, पातंक । भिड़जाळ - घोड़ा। नाळ - घोड़ेके सुमके नीचे लगाया जाने वाला उपकरण। हुबि-दब कर । ५८६. डाका - नगाड़ा बजानेके डंके । दोध - दी। कमठरी- कच्छपावतारकी। वाळ - नगाड़ा। कड़कियो - बोझके कारण दबनेसे आवाज हुई। कळमळेस - तड़फड़ाता है। धड़कियो- भयभीत हुअा, कंपायमान हुमा । कुट-त्रिकुटाचल पर्वत । प्रौदक - भयभीत हुआ। धनेस- कुबेर । ५६०. बागळ - नगाड़ा। सिंध - सिद्ध । गिरद-गिरीद्र। समाधि- ध्यानावस्था। कळमळे - बेचन होते हैं। मूझ - अमूझते हैं। कुरंग - हरिण । Page #388 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सूरजप्रकास [ ३६३ चौगड़द धोम रज डंमर चाक । वीछटिया' मेळा चक्रवाक । दळ इसा पंग जिम किया' दूठ । रवदाळ 'विलँद'सिर' काळ रूठ ।। ५६१ अहमदपुरहूंत नज्जीक आय । चौकियौ दुर्ग रसवोर चाय । 'सिर विलँद' न प्रावियौ खागि साहि । मुगळेस सँभाहे किला मांहि ॥ ५६२ उणवारतणौ दळ बळ अपार । पुणतां नह प्रावै जेण पार । ........... || ५६३ इति सप्तम प्रकरण। इति मध्य भाग। १ ख. वींछटीया। ग. वोछटियम। २ ख. कीयां। ३ ख. विलंदसिरि । ग. सिरविलंद । ४ ख. ग. नजीक । ५क. चौकीयां । ग. चौकीयो। ६ ख. ग. प्रायौ। ७ ख. ग. षाग। ८ ख. संवाहे । ग. समाहे । ६ ग. उणवारतणो । ५६१. चौगड़द - चारों ओर । धोम - धुंपा। रज - धूलि । डमर - समूह। चाक - दिशा। वीछटिया-पृथक हो गये। पंग - जयचंद राठौड़। दूठ - जबरदस्त । काळ - यमराज। ५६२. नज्जीक - निकट। चौकियो - प्रावेष्ठित किया, घेर लिया। दुरंग - दुर्ग, गढ़ । खागि साहि-तलवोर संभाल कर । ५६३. उणवारतणो- उस समयका । Page #389 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 11 Bit: 11 परिशिष्ट १ नामानुक्रमणिका अ अंब ( श्रमेर ), ५, ५३ ५५, ५६, ८३, ६३, १७०, १७७, २०१, २०७ अंब-खास (श्राम खास ) ११, ५०, ५१, ५५, ७१, ८२, ८३, ६६, ११४, १२५, १२७, २३६, २४१, २४३, २४४, २४६, ३२० अंब दिवांण (श्राम दीवान) ७१ अंब-दीवांण (ग्राम दीवान) ११, २४२ अकबर ८५ ३१० श्रखमाल ( सीसोदिया) ८८,९१ माल (योद्धा का नाम ) अखा (संभव एक योद्धा का नाम ) २६७ श्रखावत ( सिंह का पुत्र) अखाहर ११६ ३२६ गजीत ( महाराजा प्रजीतसिंह जोधपुर ) ३४, ३७, ३८, ३६, ४६, ५०, ५१, ५७, ५६, ७६, ८१, ८८, १८, ११२, १२१, १३४ श्रगसत्त' २६० श्रधरण - मास ४१, १२१ अचळ (योद्धा का नाम ) ३० चळावत (चांपावत प्रचळसिंह का पुत्र ) ३१२ जर ( महाराजा अजीतसिंह जोधपुर ) ३८, ५६, ८४, ८५, ८७, ६३, ६७, ६६, १००, १११, ११६, ११७, ११६, १२४, १२३, २७६, ३०१ अजण ( महाराजा बखतसिंह को सेना का एक वीर ) ३२९ अजण उत ( महाराजा अभयसिंह) १६६ जन ( महाराजा अजीतसिंह जोधपुर ) ८३ प्रजन ( पाण्डुपुत्र अर्ज ुन ) १३२ अजन ( महाराजा प्रजीतसिंह जोधपुर ) ११८ जब ( जबसिंह चौहान ) २१८ अजमल ( महाराजा अजीतसिंह जोधपुर ) ३६, ५६, ५७, ६१, ६२, ७०, ७१, ७२, ७४, ७५,७६, ८६, ६२, ६७, ११०, १११,१२८, ३०८, ३३६ अजमलराव उत ( महाराजा अभयसिंह ) २०२ अजमल - ( महाराजा प्रजीतसिंह) ७३,७४ जमाल - ( महाराजा अजीतसिंह ) ४०, ४७ ५५, ६०, ७६, ८४, ८६,८७,८८, ६० ε२, ६५, ६६, ६७, १३२, १३३, २०१, २२१, २५६, ३५३ अजमेर ६५, ६७, ६८, ११२, १२१, २४५ जम्मल ( महाराजा अजीतसिंह) ७४ जा ( महाराजा श्रजीतसिंह ) ३५, ६६, ११८, २६६ प्रजावत ( महाराजा श्रभर्यासह ) ३२०, ३३५ अजीत ( महाराजा श्रजीसह ) ६०, ७०, ७३, ७६, ६०, ६२, ६३ श्री ( महाराजा जीतसिंह) २४ जीतसिंह ५६, ६१, ६६, ६७, १११ ( महाराजा श्रजीसह ) ३६, ४०, ५३, ५६, ५६, ६०, ६७, ७६, ७७, ८३, १४, १६, १११, ११२, १२७ भजे ( अंजनी पुत्र हनुमान ) २९१ Page #390 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २ ] प्रजो (महाराजा अजीतसिंह) २४, ३३, १३५, १४०, १४७, १४६, १६२, २४६, ५३, ५४, ५५, ५६, ६४, ६६, ७८, ६४, २४७, २४८, २७७, २८२ प्रभरज (महाराजा अभयसिंह) २७३ प्रजो (अर्जन-गौड़) १२ अभरांमकुळी २३८ अजौधिया (अयोध्या) ४८ प्रभसाह (महाराजा अभयसिंह) ५१, १०८। अथ (अथर्वेद) १५८ १.६, ११०, १११, १२४, १४३, २३०, २३५, २५०, २७५ अधिराज (राजाधिराज महाराजा बखत प्रभा (योद्धा का नाम) ३३३ सिंह) २५५, ३१८ प्रभा, २६५, (महाराजा अभयसिंह) अनावत (अनोपसिंह का पुत्र शक्तसिंह ४८, १२३, १९७, २०२, २४७, २६०, चांपावत) २८३ २६३, (महाराजा अभयसिंह) ३१८ अपभ्रंस-भाखा २०३ . प्रभावत (स्वामीभक्त राठौड़ दुर्गादास प्रबदळ ७३ के पुत्र अभयकरण का पुत्र) २६३ अबदळ-फता २८० प्रभूमांण (महाराजा अभयसिंह) १६६ अबदुल ६४ अभै (महाराजा अभयसिंह) ४६, ७६, अबदुल खांन ७६ १११, ११२, १२६, २०१, २२४, २७८, प्रभपति (महाराजा अभयसिंह) १७०, ३३२, ३४६ अभपती (महाराजा अभयसिंह) ७५, २३७, प्रभपति (महाराजा अभयसिंह) ३०५ २८२, २६६ प्रभपती (महाराजा अभयसिंह) १७० अभपत्ती ६७, १००, १४९, २४६, अभैपुर २३७ प्रभैमल (महाराजा अभयसिंह) ७५, ७६, २६२, ३२४, ३३७, ३४५ १२२, १३४, १५३, ३३२, ३३४, ३३५, प्रभमल (महाराजा अभयसिंह) ५२,७५, प्रभमाल १८६ ११०, ११३, १२७, १३२, १५०, २०१, अभयसिंह ३३५ २०४, २१६, २२०, २३२, २४६, २५१, प्रभसागर १७५ २५८, ३०८, ३२४ प्रभसाह (महाराजा अभयसिंह) १६६, प्रभमल्ल (महाराजा अभयसिंह) ४८, ३५७ ११०, १३५ अभैसिंघ (महाराजा अभयसिंह) ३५७ प्रभमाल (महाराजा अभयसिंह) ४१, १००, घभैसींघ (महाराजा अभयसिंह) १७७, १०१, १०२, १०३, ११०, ११३, १२२, २४०, २५३, २५५, २६०, २७५, ३३६, १२५,१२६, १२७, १२६, १३२,१३५, ३३८, ३६० १४०, १४१, १४३ १४५, १४७,१५३, अभौ (महाराजा अभयसिंह) ४७, ४८, १७८,१८२, १८४, १८५,१८७, १८८, ५०, ५१, ८५, ६५, ८, ९, १११, १६६, १६६, २००,२२०, २२६, २३०, १२२, १२३, १२४, १२५, १२६, १३२, २३२, २३४, २४६, २५३, २५८, २८०, १३३, १३४, १५४, १६६ २२६, २३५, २८१, २८२,२८३, २८८, ३०४, ३५६, २४०, २४१, २४८, २५४, २५६, २५७, ३५८ २६०, २७६, २७७, २८१, २६०,३३५, प्रभमाल (स्वामीभक्त वीर राठौड़ दुर्गा ३३६, ३४६ दास का पुत्र अभयसिंह) ३४७ अमर (राव अमरसिंह राठौड़ नागौर) १०, अभयसिंह ९७, १००, १११, १२६, १३४, | ११, १२, १३, १४, ३५ Page #391 -------------------------------------------------------------------------- ________________ श्रम - खास ११२, २४२ अमर (नीमाज ठाकुर अमरसिंह) ११७, ११६, १२१ अमर ( महाराज कुमार अमरसिंह उदयपुर ) ३६ श्रमर (महाराणा अमरसिंह ) ५७, ५८, ५६ अमर ( श्रम्बर चम्पू ) २, ३ अमरसिंघ ११ अमरसिंह (महाराणा ) ५७ श्रमरा" ३०० अमरावत ( राव श्रमसिंह का पुत्र राव इन्द्रसिंह राठौड़) ३४ अमरेस ( राव श्रमसिंह राठौड़) ११ श्रमरेस (महाराणा अमरसिंह ) ५७ अमरेस (नीमाज ठाकुर अमरसिंह) ११६, १२० श्रम (महाराणा अमरसिंह ) ५६ ain ( कूंपावत श्रमानसिंह ) २८९ श्रमूनि ( श्रभिमन्यु) २६० (बखता खिड़िया का पिता ) अम्मर (निमाज ठाकुर अमरसिंह) १२० अरकरण (अर्ज ुन गोड़) १२ श्ररजन २८६ अरबद २७७ अलियार २८० लिहार २८० अली २८० अलीहार ३५५ थली हुसेन ७६ प्रलंवर खां २४५ [ ३ ] प्रवरंग (बादशाह श्रीरंगजेब ) १६,१८, १६, २१, २२, २५, २६, २८, २६, ३६, ३७, ४७, ४८, ४६, ५२, ७३, ७६,७७, ७८, ११६ अवरंगजेब २२, २८, ३७, ७८ प्रवरंग - साह ३६ सपई (बादशाह) २०१ सपति ( बादशाह) २, १३, २२, ३७, ५१, ५५, ५६, ६६, ७१, ७२, ७३, ७४, ७५, ७६, ७७, ७८, ७६, ८४, १०१, १२१, २३८, २४०, २४६,२४७, ३२०, ३२३. प्रसपत्ति (बादशाह) २,५५,६०,८३, १०३, ११३, २८० असपती ( बादशाह) ११,७७, ८०, १२३, १२६, २४२, २४७ सपत्ती ( बादशाह) ५७, ७०, ७३, ७५, १२५, १३३, २४६ असप्पति ( बादशाह) ६३ असुर (मुसलमान) १८, २०, २७, ३६, ६४, ६६, ६७, ६८, ११७, १२०, १२१, १२२, १२४, १२६, २८०, २८१, २८३, २८५, ३००, ३२६, ३२७, ३३६ असुरांण ८१, ४, ११५, २६३, २६५, ३०० असुरायण ६१ ग्रहमंद २४६, २८० ग्रहमंद नगर १८४ ग्रहमंद पुर ३६३ श्रहमद २८० अहमदपुर २३८, २४० अहमदाबाद २३६, २४२, २४७, २४८, २६०, २७६ आ श्रांबेर ५६, २५३, २३३ श्रांब खास २३५ ग्रांम ( राव अमरसिंह राठौड़) १३ प्रांम खोस २४० आगरा १८, ६४ आगरे १४, ८४ प्राणा-सेख २८० श्राढा (चारों का एक गोत्र ) १०, २३, २४ Page #392 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राबद-अलीखांन ३५३ प्रावध अलीखां ३५४ प्रावध अलीखांन ३५३ प्राबू २०७ पालम ८२ ८६, १६३, २०१, ३५३, ३५५ पालमीन ६१, ७१ मालमीन कताब ८० प्रासावत (स्वामीभक्त, धीर दुर्गादास राठोड़) २८ प्रासुर (मुसलमान) ७०, ८१ प्रासुरां ३६, ६१, ७६, ६४ पासोप २८४ उनियापुर ५७, १७० उदियापुरा ३६ उदैगिरि २ उद-पुर ५७, ५६ उदै-भांण (भाटी) ३१ उदै-भांण (कुंपावत) २८४ उदै-सींघ (खीमसर ठाकुर) २६५ उम्मेद-राव (सिरोही) २७८ उर-वसी ३१, १५० उरहानळ मुलक २४५ इंदा (राव अमरसिंह का पुत्र राव इंद्रसिंह राठौड़) ३४ इंदावत बखतसिंह की सेना का वीर इन्द्रसिंह का पुत्र शत्रुशाल ३२४ इंदौ (राव अमरसिंह का पुत्र राव इन्द्रसिंह राठोड़) २२५ इंद्रसिंघ ( राव अमरसिंह का पुत्र ) ३४, २२०, २२१, २२४, ३२० इंद्रसिंघ (सौपुर का राव) १८, ६१ इजील ३५३ इतमांदुदोलै २२४ इरादतमंद खां २४५ इरादतमंद्र १२१ इरादति मंदखांन ११४ इलाहबाद २८० ऊंचत्रवा ६२ ऊद (ऊदावत) ११६ ऊद (खीमसर ठाकुर) ३१५ ऊदल ३२ ऊदल (खोमसर ठाकुर) ३१४ ऊवां (ऊदावत) २८८ उदा ३३२ उदावत २६, ३१, ३४, २८८, ३१४, ३२७ ऊहड़ २६५, ३१५ ऐरापति ६२ प्रो औ औरंगसाह ३८ ईरा ३५६ ईरांनी २४२ उजबक ११५, ३०२ उजेणी १८ उज्जीण, २३८, ३२८ उज्जेण २६ उद-भांण (उदयभाण-भाटी) २६५ उदावत (राव सूजा के पंचम पुत्र राव ऊदा के वंशजों की राठौड़ों की एक उपशाखा) २९० कंस २४ कन्हरांम (प्रासोप ठाकुर) २८४ कपिराज १७८, २६५ कमंध ५.७, २१, २२, ५६, ६७, ६९, १०२, १०३, १२४, १२५, २२७, २३३, २४१, २६०, २६१, २७४, २८७, ३२७ ३३५, ३४६ कमंधज ३०६ कमठ (कच्छपावतार) २२४, २७६ कमध १३, १६, २३, २५, २४, २५, ३७, ३८, ३६, २७, ६५, ८३,६४,९८, १११, १२६, १५४, १६६, २४०, २४७, २१७, २६५, ३१४ Page #393 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कमधज १३, १४, १६, ३७, ३६, ४७, ५२,५६, ७०, ७६, १११, २८१, २९४, कमधज्ज १३, ७८, ८०, १००, १११, ११६, १४०, २४६ कमधेस ८४, २५६, कमरदी-खांन २४४ कमरद्दी २४१ करक ४२, ४३ करण (दानवीर राजा करण) १७८, २८३ करण (पाली ठाकुर राजसिंह का पुत्र करणसिंह) २८३ करण (देशभक्त राठौड़ वीर दुर्गादास का पौत्र करणसिंह) २६३ करण (राठौड़ों की जोधा शाखा का वीर), करणावत (राव रिडमल के पुत्र करण के वंशज, राठौड़ों की एक उपशाखा) २८८ २६२, ३०८ करणी-वान (महाराजा अजीतसिंह की सेवा में रहने वाले बारहठ केसरीसिंह का छोटा पुत्र और गोरखदान का भाई) करनावत ३४ करमसिहोत (राव जोधा के सातवें पुत्र करमसी के वंशजो की राठोडों की एक उपशाखा) २६४ करमसीयोत ३१४ करीम (करीम दादखाँ) २७६ कळजुग ३३८ कलम ६५ कलियाँण (महङ्क जाडा का पुत्र चारण कवि) 8 कलौ (योद्धा का नाम) २६४ कल्याण (मेड़तिया राठौड़ एक योद्धा का नाम) २८७ कवसल्ल ४८ कविया (चारणों का एक गौत्र) १० कसमीर १०६ कस्समीर २१५ काक रिख १७४ काक रिख भुसंडी १७४ कागा १७४ कायमखाँ ३५५ काळ जवन २८१ किलम ३०, ३१, ३२, ३३, ३७, ३८, ५२, १२५, २३८, ३०७ किलमांरण २, ११३, २८९, ३०३, ३२४, किलमेस २४१ किलम्म ६५ किसन (किसना पाढा-यह दुरसा पाढा का पुत्र था, इसको महाराजा गजसिंह ने लाख पसाव तथा पाँचेटिया गाम प्रदान किया था) ६, २३ किसन (योद्धा का नाम) ३२८ किसन (श्रीकृष्ण) २४, ४८, ३२६ कितन्न (श्रीकृष्ण) १५३ किसन्न (जसवंतसिंह का पुत्र किसनसिंह) २८३ किसनावत (किसनसिंह मेड़तिया का पुत्र राजसिंह मेड़तिया) ३३१ कुंभ-रासि ४२ कुरम ५६ कुरांण ८०, ८१, १४ कुरॉन ७२ २४३ कुसळ (नीमाज का ठाकुर कुसळसिंह उदावत ) ११६, १२२ कुसळ ( हरनाथसिंह चांपावत का पुत्र कुसळसिंह) २८२ कुसळसी (कुसळसिंह मेड़तिया) ३०६ कुसळावत (कुसळसिंह मेड़तिया का पुत्र) २८७ कूपा (राव रणमल्ल के पुत्र प्रखैराज, प्रखैराज के पुत्र मेहरान, मेहराज के पुत्र Page #394 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कंपा के वंश जो की राठौड़ों की एक उपशाखा) ३४, २८४ कंपावत १३ २८४, ३१२ कंपो ६७ कूरम १७, ५७, ६५, ६६, ८२, ८८, २३३, केतह ४२ केसरीसिंह (राजगुरु पुरोहित) २६८ केसव (केसवदास गाडण, यह महाराजा गसिंह का कृपा पात्र था। महाराजा गजसिंह ने इसको लाख पसाव दिया था। महाराजा गजसिंह की प्रशंसा में इसने एक 'गजगुणरूपक बंध' नामक बड़ा ग्रंथ रचा है) केसवौ (राठौड़ों की मंडला शाखा का वीर) २६४ केहर (जसवंतसिंह का पुत्र केसरीसिंह) २८४ केहर (जालमसिंह का पुत्र केसरीसिंह) ३२५ केहर (भीमसिंह का पुत्र केसरीसिंह) ३९६ कहर (सुखसिंह का पुत्र चारण कवि) ३२६ केहर (केसरीसिंह बारहठ) ३१७ । केहरी (राजगुरु पुरोहित केसरीसिंह) २६६ कैलास ७० कोक-कळा ४३ कोक-सार १५८ कोम (कच्छपावतार) १८, १०, १०१ कौरवराज १५ कतका १८२ . क्रन (दानवीर राजा करण) ८ क्ररण (श्रीकृष्ण) १३२ खप्परांणो ५५ खां हसन्न ६ खान (सर-बुलंद) २८२ खाँन अबदुल ६४ खाँन जिहाँ ३२१ खाँन दौरा १२६ खान दौरा १६६, २३५, २४१ खाँन नाहर ११२ खाना खान २४५ खासा २७५, ३०६ खासा • चौकी २६० खासा-गजां ३३३ खासा झंडां ३०२, ३०७, ३१४ खासा झंडे ३२७ खासा-वाड़े २८२ खीम ३२ खोमसी ६३ खुरंभ २ खुरम ४, ५, ६, ७, २४७ खुरमह २८२ खुरसारण २०, ४८, ८५, १०६, २४१, २८८, ३२५ खरसांग १६, ४८, ७७ खूद ७७, २४० खूदालमां ७४ खूदालमि ६४ खूमाण ६ खेडेचां . २ खेतल (कवि खतसी लाळस) & खेतसी ३०० खेम धधवाड़ ६, २३ खोजे साहुदो खो २४४ खोद २६, ५१, ७६, ११३ खौदालम १२७ ख खंधारा ३११ खट चक्र ३३६ खट वरना १५४ खट वन्न १७७ ग गंग (गंगानदी) ३०, १६३ Page #395 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ७ ] गोयंद २६ गोरख १७७ गोरधन २८५ गोरे १७३ गोळकूडौ ३ गौड़ ८८, ६१ ग्यांन-ब्रहम गोरवम ६३, ७०, २८४ घा घोड़-वहल २७५ गंग जळ ३० गंगा १८६ गंगाजळ ३२८ गंगेव १७७ गंगेव (गंगा+इव) १६६ गजण (महाराजा गजसिंह) १, २, ३, ४, . ७, ६, २३, २८४, २६६, ३१६ गजरण (सवाईसिंह का पुत्र गजसिंह) ३२६ गज-पति (महाराजा गजसिंह) १०,७६ गज-बंध (महाराजा गसिंह) १, २, ५, ७, ८ ३३, ५५, ६४, ७८, २००, २२४, २४७, २४७, २७६, २८५, गज-साह (महाराजा गजसिंह) ४०, १०, ५२ गज सिंघ ८, ९६, ३५४ ।। गजै (महाराजा गजसिंह) १० गजौ (महाराजा गजसिंह) ६४, १६ गजी (लालसिंह का पुत्र गजसिंह) ३२७ गनीम २४० गहलोत २१ गांगावत (गंगासिंह का पुत्र) २६५ गाडण (चारणों का एक गोत्र) गाजी (महाराजा गर्जासह) २२६ गायत्री १५५ गिरदखां ३५३ गिरधर २३८ गिरनार २०७ गुजरात २३८, २४१, २६२, २७६, ३५५ गुणसठ ४१ गुरजबरदार ९५ गुलाब ( ) ३२८ गूजर-धर २३६, ३३७ गूड (गोड़) २१ गोकुळ १० गोपीचंद २८५ चंड नयर २२, ११० चंड नयरा ५६ चंडावल २६४ चंद (चांदावत शाखा का मेड़तिया) ३१० चंदण १०३, १३८, १५५, २६८ चंदन-चौक १०८ चंद्र भांण २६, ३० चंद्र-वंसो २, १७६ चकत्थ६४ चक्र-सुदरसण १८७ चखडोळ १०६ चगौ ७१ चतुरदसी ४१ चमराळ २६ चरक्ख १६६ चरखू २०७ चरुसुकाळ २१६ चहुवाँण (महाराजा अभयसिंह की माता) ४० चहुवाण २६७ चाँणूर ३२६ चांपा ३४, २८२, २८४ चांपावत (राव रणमल्ल के चतुर्थ पुत्र चांपा के वंशजों की राठौड़ों की एक उपशाखा) १३, २८२, ३१२ Page #396 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ८ ] चारण ३२, १६३, २६६, ३०१, ३२९ जमना (हठ योग के अनुसार पिंगला नाड़ी चाहवाँण ३१६ का नाम) ३४१ चित्र गढ ६१, १७७ जमाल २८० चित्रोड़ २०० जमाल अलीखाँ ३५३, ३५४ चिनूसतर जंग २४४ जमुना १६६ चीनी फरोस ३५७ जम्माल २८० चूंड-राव २१६ जय-गढ (जयपुर २५०) चूंडा २१६ जयचंद ६२, ६३, २२६ चुंडावत २६५ जयदेव (ब्राह्मण) ३०२ चैन (सूरजसिंह का पुत्र चैनसिंह उदावत) जय निवास २५०, २५१ जवन १३, २५, ६०, ६४, २८५, ३०२ चोपदारूं १८५ जवनाँण ३१, १०६, ११६ चौंडावत ३३१ जवनेस ३८, १०८, १०६, २३५ चौक सिणगारु १४६ जवनेस-नगर १०६ चौहाँण ३१६ जवन्न ११६ चौहाँन २६७ जसकन २९५ जसराज (महाराजा जसवंतसिंह) १४, १५, छइया बंदर ३२१ १६, ३६ ६३, १२७, १२८, २२० । छोर समुद्र १७५ जसराज (प्रतापसिंह उदावत का पुत्र) २६१ जसराजपुरा २३७ जंहगीर ६ जसवंत (महाराजा जसवंतसिंह) १६, २४, जईन (जैन) १५६ २५, ६६ जगड़ (नीमाज ठाकुर जगरामसिंह) २६१ जसवंत (जसवतसिंह चाँपावत) २८३ जगत (महाराणा जगतसिंह) ६ जसवंतसिंघ (महाराजा जसवंतसिंह) १४, जगत-गुरु १६ २३ जगतावत (जगतसिंह जोधा का पुत्र) ३१३ जसवळ २३३, ३६१ जगतेस (जगतसिंह एक योद्धा) ३२६ जसा (महाराजा जसवंतसिंह) २५, २७, . जगतौ (करमसिहोत जगतसिंह) ३१५ २६, ३५, ७५, ७७ जगमाल (भाटी जगमालासह) ३ ६ जसा (सवाई राजा जयसिंह पामेर) ६६ जगसाह (नीमाज ठाकुर जगरामसिंह) जसावत (महाराजा अजीतसिंह) २५ । ११६, ११७ जसावत (जसवंतसिंह चांपावत का पुत्र) जद्दवि (महाराजा अजीतसिंह की माता) २८४ यादव कुल को कन्या) २४ जसै (महाराजा जसवंतसिंह) १०, १६, जनक २४६ - २०, २२, २३, २५, २७ जनमपत्री ४० जसे (सवाई जयसिंह भामेर) ५६, ६२, जमना (यमुना नदी) १०८ ८७, २५४ Page #397 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जसौ ( महाराजा जसवंतसिंह) १०, १६, १७, १८, २०, २२ जौ (महाराणा जयसिंह ) ३६ जौ ( जसवंतसिंह चाँपावत) २८७ जहंगीर ३५४ जाडावत (जाडा महडू का पुत्र) ६ जातक भरण ४३ जातिका भरण ४४ जादम्म ७७ जाफर ५२ जाफरखाँ ५२ जाफर खाँन २४५ जाफर जंग २४५ जालंधर (जालोर) ३७, ४०, २७६ जालम ( जालमसिंह ) ३२५ जालोर २६६ जुजदृळ २८३ जजस्ठळ २१८ जुजिस्तर १७७ जु (यजुर्वेद) १५८ जुलफ गार ७३ जूंझा ( जूंझारसिंह भाटी ) ३१६ जेजियो ८१, ६३ [C] जैचंद २००, ३३६ जैत ( कूंपावत शाखाका योद्धा) २८७, २८८ जैलगड २२० जैतमाला (राव संलखा के पुत्र जैतमाल के वंशज राठौड़ों की एक उपशाखा) २६४ जैतारण ११६ जैती (वीर दुर्गादास के पुत्र महकरण का पुत्र जैतसिंह) २६३ जै-राज १५ जैसलमेर २२६ जैसरण (जयसलमेर) २२६ जैसा (सवाई राजा जयसिंह श्रामेर ) ५५, जैसाह ५, ६, १७, ५५, ५६, ५६, ६६, 1 ८२, ८३, ८५, ८७, ८८, ६३, ११३, ८०, १२१, १२२, १२३, २२६, २५०, २५१, २५३ जैसिंघ (सवाई राजा जयसिंह आमेर) ६०, - ७६, ११४ जैसिंघ ( महाराणा जयसिंह ) ३६ जैसिंघ ( चारण कवि) २९९ जैसि ( एक योद्धा) ३३० जैसींघ (सवाई राजा जयसिंह आमेर) २५३ जोगणी नागर ७५ जोगीपुर ८४ जोग-पुर १२४ जोगावत ( जोगसिंह का पुत्र हठीसिंह) २८६ जोतख १३१ जोतग १३० जोतसि ४० जोतिखी ४३ जोध ( जोधा शाखा का राठौड़) २६ जो (जर्घासह ) २८ जोध ( जोधसिंह उदावत) ३२७ जोध- दुरंग ७५ जोधपुर २, ५, १३४, १४६. १६६, २२६.२६१ जोधारण ४, ७, १०, ५२, ५५, ५६, ७०, ७७५,८७,८८,८६,१११, ११३, ११८, १२७, १३२, १३४, १७०, १७३, १७५, १७६, १७७, २०५, २०६, २२०, २२६, २३०, २२४, २५३, २५६, २५७, ३३३, ३५४, ३६० जोधाण १६,४६, ५२, ५६, ६३, १५४, २२६ जौघांणी ३८, १२७ जोधा ( राव जोधा के वंशज, राठौड़ों की एक उपशाखा) ३४, ३१३, ३३२ जोधा ( राव जोधां ) २८८ जोधा-छात ( महाराजा अभयसिंह) १५४ Page #398 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ १० ] जोधा-नाथ २८८ तुळ (राशि) ४२ जोधौ (राव जोधा) २६ तूराण १२ ज्वालामुखी २२१ तूरांन २३६ तूरांनी ३२१ झुझार राठौड़ों की रांगावत उपशाखा का तेजावत ( तेजसिंह का पुत्र रूपसिंह योद्धा २६४ चांपावत ) २८३ झंझावत (झूझारसिंह का पुत्र फतेसिंह तेजी (तेजसिंह चांपावत) ३१२ कुंपावत) २८८ तोग २२, ६५, १३६ ३०६, झंझावत (झूझारसिंह का पुत्र सुरताणसिंह तोडिचंद ३ जोधा) ३१३ तोपखाँना २४८, २७६ तोरण ४६, ५३, ६०, १४१, १४५, २२७, डिडवांणौ ६५ २५७, २८८ डीडवांणा ६०, ७० तोरा ६७, ११४, १३३, २४८ ढूंढाड़ ६० तौग ३५६ २४६ तोरते ३५३ तौरा १२५ तनूज भांरिग १६३ तरपणं १५५ त्रकुट ३६२ अप्परग १५४ तरियन खांन २८० त्रिकुटी ३४२ तरियल खां २८० त्रवेणी, त्रिवेणी ३४१ तरीयन खां ३५४, ३५५ तळ (प्रधः लोक) २३३ तसबीखांन ७१ दंपति १५३ तांबा-पत्र १२८ दइवाँण ७७, ६३, १०३, तार-खां २४५. तारा-गढ ६४, ११६, ११६ दईवारण २४६, २६८, ३०२ तारा दुरंग ६५, ६६ दक्खरण ५५ तिमंगळ ग्राह १७५ दक्खरण को भागा २०२ तीरथ ८१ दक्विण २०३, ३२२ तुजक १८५ दक्ष (राजा दक्ष) २६० तुजकधार ११७ दक्षन (दक्षिण) ३५३ तुजक-मीर १२५, १६९, २४५, २४६ . दखरणी ५५ तुरक ३२१ दखिण ३, २६२ तुरकरण ८२, २३६, २६८ दखिणेस २३८ तुरकाण ४७ दफतर ५१ तुरकरणौ ३८ दरगह ५८, १२४, २६१, २७५, २८२ तुरराबाज २४१, २४४ दरगाह १३, ६६, ११०, १४७, १८१, Page #399 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ११ ] २३५, २३६, ३०५ वळ थंभ (महाराजा गजसिंह) ३, ८ दळभरण (महाराजा गजसिंह) ६ दळपत (योद्धा का नाम) ३२ दळपति (पुरोहित) २६९ दलावत (दला का पुत्र भारमल उदावत) दलेलजंगखाँ २४५ दलौ (मकुंदसिंह चांपावत का पुत्र) २८३ दलो (चौहानों को सोनगरा शाखा का वीर) २६८ दसरथि ६७ दामाद खाँन २८० दिलावर खाँन ३५३ दिली ३, २४, २६, २८, २९, ३६, ४८, ५५, ७०, ७१, ७२, ७७, ८०, ६३, ६४, ६६, १०२, १०६, १११, २०२, २३४, २४०, २४६, २४७, २५३, ३२१ दिली-नाथ ६०, १२४ दिलीपति २८, ७६, ३०६ दिलीस्वर ३२१ दिलेस ११, ४४, ८३, ८४, ८५, ६८ दिलेसरा १२८ विलेसाँ ७० दिलेसुर २४५, २४७ दिलेस्वर ७१, ७४ दिल्ली ४, ५, १६, ६६, ७२, ७६, ६८, १२६, १६६, २३०, २३८, २४३, ३५१ दिल्लीनाथ १ दिल्ली-पति २४४ दिल्ली-वर ७३ दिल्लीस ८२, २३५ दिल्लेस ५१, २३५ दिल्लेसरी २३० दिल्लेसुर ७०, १७५, २० दिवाण ७१, ११२ दीपावत ३०१ दीवाँण ५८, ११२, १०८, ३१८ दुजर्णासंघ (चौहान वंश का वीर) २९८ दुरगावत २६२ दुरगेस (बीर राठौड़ दुर्गादास) ३७ दुरस (कवि दुरसा पाढा) 6 दूदा (राव जोधा के पुत्र दूदा के वंशज जो मेड़तिया भी पुकारे जाते हैं) ३४ देवकी (श्रीकृष्ण की माता) ४८ देवकन्न (देवकरण नामक योद्धा) ११६ देवड़ा (चौहान वंश की एक शाखा) २७८ देवीसिंघ (कंपावत शाखा का वीर) ३१२ दोलावत (दौलतसिंह का बेटा पदमसिंह मेड़तिया) ३११ दौला साह ८४ दौलौ (योद्धा का नाम) ३२४ द्रगपाळ २७६, ३३५ दिगपाळ ३६२ द्रोण १७७ द्रोणाचारज ३०३ द्वारा (दाराशिकोह) १७ . द्वारामति ३०२ द्वारावत २६, ३० द्वारौ (द्वारकादास धधवाड़िया चारण कवि) ३०० धनरूप ३०२ धधवाड़ (चारणों का धधवाड़िया गोत्र) ६, २३, ३०० धवेचा (रावळ मल्लिनाथ के पुत्र मंडलीके पुत्र धव से धवेचा नामक राठौड़ों की एक उपशाखा) २६४ धावड़ ३०४ धाँधळ (राव पासथान राठौड़ के पुत्र धांधल के वंशजों को राठौड़ों की एक उपशाखा) ३०४ Page #400 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घूहड़ (राव घहड़ के वंशज, राठौड़) २६, ३३ धोकळ सींग ११० न नंदलाल ३१८ नकीब ६१, ६२ नक्की २४६, २७५ नयर जोध (जोधपुर) ५ [ १२ नरबदा ५७ नरसिंघ ११, २८२, ३६० नरहर ( श्रवतार चरित्र के रचयिता नरहर दास बारहठ २३ नरहरौ ( जेतमालका शाखा राठौड़ वीर ) २९४ नर (नाहरसिंह धांधल राठौड़) ३०४ नi ( राव सूजाजी के पुत्र नश के वंशजों की नरावत शाखा) २६५ नवकोट १४, ३५० नवैनिध ४६ नवरोज ७१ नव सस २४, २९ नाग दुरंग २२१ नाम पिंगळ २०३ नागौर ११, ३५, १३३, २२३, २२४ २२६, २५८ नाथ (नाथ सांदू चारण कवि) २४, ३०० नाथ ( भाटी योद्धा) ३१६ नाथावत २७ नारद ३१० नारद रिख २८७ नारनोळ १०८, ११० नारनौल ६८, १०३, ११२ नाहर (करणसिंह का वंशज ) २८८ नाहर ( एक भाटी योद्धा) २९६ नाहर खांन ११२ निजांम ३२१ ] निजांमन मुलक २८०, ३५३ निबाब ३८, ८३, २४६ निवाहर ( एक भाटी योद्धा) २६६ निवाहर (कछवाह वंश में सेखावत शाखा का वीर) ३३३ afai २४४ प पंग ( राजा जयचंद राठौड़) १४८, ३६३ ) ७६ ) १४६ पंग-तूप ( पंग- राज ( पंग- राव ( ) २८१ पंचरण ( पंचायण सह चांपावत) ३१२ पंच हजारी ७५ पंचोळी ३१८ 17 " " 39 पंजाबी २०० पंडव (पांडव ) १५, ३१० पंडव ( सईस ) ६९, ३५८ पंडव (पवन) २७५ पग-मंड २२७ पग मंडा २५१ पच्छिम २०३, ३४१ पठाण ३१, १०४, १०६, ११४, २८०, २२५, ३३३. ३५४ पतसाह ५६ तावत (प्रतापसिंह बारहठ का पुत्र राजसी बारहठ ) ६ पतावत ( प्रतापसिंह उदावत का पुत्र जसराज ) २६१ पतावत ( प्रतापसिंह उदावत का पुत्र) ३१४ पतिसाह ४ १७, ३७, ५०, ५१, ५६, ७०, ७१,७६,७७, ७८, ७६, ६१, ६२, ९५, ६६, ६६, १०८, ११७, १२५, १२६, २३७, २४०, २४२, २४३, २४६, २७६, २८१, ३५५ पतिसाहि २७६, ३२०, ३२१ Page #401 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पती (महिराण - समुद्र सिंह का पुत्र प्रताप सिंह) २६० पतौ (स्वामी भक्त वीर राठौड़ दुर्गादास का पौत्र और महकरण का पुत्र प्रतापसिंह करणोत राठौड़) ३०८ पदम (योद्धा का नाम ) २८७ पदम ( दौलतसिंह का पुत्र पदमसिंह मेड़तिया ) ३११ पदमावत ( पदमसिंह का पुत्र दौलतसिंह ) ३२४ पदमासन ३४० पद (पदमसिंह योद्धा) ३३४ पदम (नरावत शाखा को राठौड़ पदमसिंह ) | १३ २६५ पदमौ ( रतनसिंह का पुत्र पदमसिंह मेड़तिया ) ३१९ पदम्म (सामुद्रिक चिह्न) ४५ पबै-सर २५५ परवरदिगार २४३ पांच हजारी १२ पनि दांन १८६, २४४ पाटोघर ३३१ पातल ( राजसिंह जोधा का पुत्र प्रतापसिंह ) ३१३ पात साह १७५ पात साही २४४ पात साहू १७४ पाति साह १०, ५६, १७७२४३, पाता २०४, २४३, २४४ पा (अर्जुन) १७७ पारसी २०४ पालरण-पुर २७८ पिरोहित ३१७ पीथ ( फतेसिंह कूंपावत का पुत्र पृथ्वीसिंह) २८६ पीर ७२, ६४ | पोरूं २४३ पीरोज जंग ३५१ पीलसोत १५० पीला अक्षत २६६ पीला प्राखा ३१७ पुर-ब ५६ पुरनारनोळ ६८ पुरबधर ७ पुरब्बधरा १७ पुर साहिजा १०६ पुराण २६५ पुरी सतह ३०४ पुरोहित २६६ पूरक ३३६ पूरब २०३ पूरब्ब ३२१ पेमावत ( प्रेमसिंह का पुत्र राजजित ) ३२६ पैकंबर ७२ पॅकंबरु १४३ पैस खांना २६२, २६४ पौसाळियौ २७७ प्रक्रत भाखा १६८, २०३ प्रताप (प्रतापसिंह कूंपावत) २८८ प्रोहित २६६, १४६ प्रहितराज ६२, १४८, १८६२६८ फ फतमल ( शिवदानसिंह का पुत्र फतेसिंह ) २८६ फतमाल ( फतह सिंह कूंपावत) २८६ फतमाल (भूंकारसिंह का पुत्र फतहसिंह ) २८८ फतमाल (फतमल नामक व्यास गोत्र का ब्राह्मण) ३०१ फता ( फतह खां ) २८० फावत ( फतहसिंह कुंपावन का पुत्र उदै - भासह) २८४ Page #402 -------------------------------------------------------------------------- ________________ फतेखां २५० फरक सेर (बादशाह फर्रुखसियर ) ७३ ) ७६ ) ८३ फररकसाह ( फर रकसेर ( फुरकान ३५३ " 12 19 A ब 12 बंगस १२१ बंगाळ २६८, ३२८ बस (वैश्य ) १५६ बखत ( महाराजा बखतसिंह ) ३०५ बखतसींध २५५ बता ( महाराजा बखतसिंह) ३१२ खतेस ( ३४६, ३५६ बखतसी २३४, २३५, २४१ बलू (गोपालदास का पुत्र बलू चांपावत) १३, २४ बहलोल खां ३५४ बहादर ८५ बहादर ( बहादुरसिंह कूंपावत) २८८ बहादर (विजयपालका पुत्र बहादुरसिंह ) ३२६ 13 [ १४ ] او ) २५४, ३१८, बहादरसाह ५७, ५८, ६६, ७३ बहादुरसाह ६६ Sairat (air का पुत्र हरिदास सिंढायच चारण कवि ) 8 बांमी-बंध ३३६ ara ( बिहारीदास का पुत्र बाघसिंह कूंपावत) २८९ बादसाह ६६, १०८, २३६, २४१, २४२, २४७, २४८ बारट २६ε बारहट २३, ३१७ बाळकिसन ३०२ बाळसमंद १७५ बाला ( राव रणमल के पुत्र भाखरसी के 2 पुत्र बाला के वंशजों की राठौड़ों की एक उपशाखा) २९४ बिलवर २१५ बीकम १७८ बोड़ो २४२ बुध ४२ बुध ( राव बुधसिंह बूंदी) ८८, ९१ बूंदी ८८, ६१ भ भगवंत (भाऊसिंह का पुत्र) ३२६ भगवान (भगवानसिंह धांधल राठौड़) ३०४ भदौ (करमसिहोत राठौड़) २६४ भमर-गुफा ३४२ भरथरी २८५ भार ( कूंपावत शाखा का राठौड़ योद्धा) २८६ भांग ( भाटी वंश का योद्धा) २६६ भाऊ ( कूंपावत शाखा का राठौड़ योद्धा) १३, ३३२ भाऊ (योद्धा का नाम ) भाऊ (चांदावत शाखा का मेड़तिया राठौड़) ३१० भाऊ (योद्धा का नाम, संभव है यह चारण हो) ३२६ भागवत १३२ भाटां १० भाटी २६, ३०, ३१, ३६५ भारमल २६ भारमलोत ( राव जोधा के पुत्र भारमल के वंशजों की राठौड़ों की एक उपशाखा) २६५ भीम (भीमसिंह शीशोदिया) ६, ७, २४७ भीम (पाण्डु पुत्र भीम ) २८६, ३१० भीम ( मोहक्रमसिंह का पुत्र भीमसिंह कूंपावत राठौड़) २८७ भीम. ( जोधा शाखा का राठौड़ वीर) २८८ Page #403 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १५ ] भीम (धवेचा शाखा का राठौड़ वीर) | महमंदसाह ९७, ९८, ११४, १२२, २४३ २६४ महमदसाह ८४ भीम (एक योद्धा का नाम) ३२६ महराबखान ५६ भीमाण (भीम शीशोदिया) ६ महवेचा (रावळ मल्लिनाथ के वंशज भीमोत (राव चूंडा के पुत्र भीम के वंशजों राठौड़ों की एक उपशाखा) २६४ की राठौड़ों की एक उपशाखा) २६५ महापुराण १६३ भैरव (भैरवसिंह एक राठौड़ योद्धा) ३३० महारांण ५७ भैरूदास (चांपावत शाखा का राठौड़ वीर) महि मुरतब २२ २८३ महियार (चारणों का एक गोत्र) ३०१ भोज (मेड़तिया शाखा का योद्धा) ३१० माहिरांण २६० भोज (राव मालदेव के पुत्र भोजराज महीमुरतब ६५, १३६, ३५६ के वंशजों को राठौड़ों की एक उपशाखा महेस (महेसदास आढ़ा गोत्र का चारण जिसे भोजावत भी कहते हैं) २६५ कवि) मान (भाट) १० मांन सरोवर १७५, १७६ मंगळ (ग्रह) ४२, १८३ माधव (माधोदास धधवाड़िया चारण कवि) मंडळा (राव रण मल्ल के पुत्र, मंडला के वंशजों की राठौड़ों की एक उपशाखा) माधव (एक चारण कवि) १० मारव-४, ७, २०, ३५ २६४ मारवाड़ २६१ 'डोवर १७३, २१७ मारू (मारवाड़) ३५ मकररासि ४२ मारू १०, ६६, ६८ मगध देस १९७ माल (महवेचा शाखा का राठौड़) २६४ मगधदेसी १९६, १९७ माल-फत (फतमल नामक शीशोदिया) ६१ मछ (सामुद्रिक चिह्न) ४६ माळवौ २३८ मछरीक २७८ माहव (चांपावत शाखा का राठौड़) २८२ मदफर ५५, ६६, १०५ माहव (चौहान माहवसिंह) ३१६ मदुफरखा २४५ माहव (राजगुरु पुरोहित) ३१७ ममरजळमुलक ३५१ मिथन ४२ मरुधर १२७ मिरजा राजा ५७ मळियागिर १७१ मिसल १७८ महडू (चारणों का एक गोत्र) ६, २४ मीन, मीन रासि ४२ महताब १३७ मीर खान १६६, ३५१ महत्ताबी १७६ मीरजादा १०६ महमंद ६०, ८०, ६३, ६७, ६८, ११४, मीर जुमलू २४५ ११७, १२२, १२४, १२५, १३२, २४०,, मीर तुजक १२६, २४३, २४४, २४६ २४१, २४७, ३२३, ३५६ । मोर तुजकेस २३६ महमंदखान ११४ मीर अजक ११ Page #404 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मीर सलाबत ११ मीर सिकार २०७ मीर सिकारी २०८ मुकंद ( मुकंदसिंह चांपावत शाखा का राठौड़ ) २८३ मुकंद ( मुकंदसिंह मंडळा शाखा का राठौड़) २६४ मुकंदात ( मुकंदसिंह कूंपावत का पुत्र जसवंतसिंह) २८७ कति महलि २५२ "मुकन ( धधवाड़िया शाखा का चारण कवि ) ३०० मुगळ २०, ३१, ३६, ३७, ५६, ७१, ७२, ६३, ७, १०२, १०४, १०६, २४७, २८०, २८७, २६६, २६७, ३१४, ३३६ मुगळां २०, २३, ३७, २३८, २४६, २८२, २८४, २८७, ३०४ मुगळांण ३६.५२, ३२५, ३३०, ३३३ मुगळेस ३६३ मुगळळे १०२ मुग्गळ ६४, २८६, ३२५ मुचकंद २८१ मुरजळ मुलक २३६ मुरत ६७,६८,२४६ मुरवर ३६, ७३ मुरधर २६, २६, ४६, ५३, ५५, ५६, ६०, ८३, १११, ११२, १३४, १८१, १६८, १६६, २४६, २५७, २६५ [ १६ ] मुरधर भाखा १६६ मुरधरा ५६, ८८, ११८, ११६ मुरसद कुळी खां २४५ मुराद १६, १६ मुरादि १८. २१ मुळांगियां ६१ मुसलमान २४३, २४४, २४६, २८० मुहम्मदसाह २४१, २४२, २४७, २४८ मेघडंबर १३६, २५०, २५१, ३५६ मेघाडंबर ६६, १३५, २०८, २२३ मेड़ता २०५, ३२५ मेड़तिया २८६, ३०९, ३३१. मेड़ते २२५, २५५ मेर. १७७, २६६ मेर गिर १०६, २४६ मेवाड़ ७,२२६ मेवास ३२३ मोकमल ( भारमलोत शाखा का राठौड़ वीर) २६५ मोहकम (नागौर के राव अमरसिंह के पुत्र इंद्रसिंह का पुत्र) ७४ मोहकम (एक योद्धा का नाम) ११७ मोहण १६ मोहरण ( उदावत शाखा का राठौड़ वीर ) २८८ मौकम ( कूंपावत शाखा का राठौड़ वीर) २८७ Har (मोहकर्मासह चौहान ) ३१६ मौजदीन ७२ ७३ ७६ मोकोल - २४५ मोहकम ( योद्धा का नाम ) ३२७ र रघु (ऋग्वेद) १५८ रघुनाथ (भंडारी श्रोसवाल) १०० रघुनाथ (श्री रामचंद्र ) ६७, २४६ रघुपति ( रामसिंह का पुत्र रघुनाथसिंह कूंपावत) ३१२ रघुपती ( श्रीरामचंद्र) २४६ ) ३०६ रघुराई ( रघुवंस १३२ रतन (भंडारी रतनसिंह ) ३०२ रतन ( रतनसिंह बखतसह की सेना का योद्धा) ३२८, ३२६ रतनागर ( रतनसिंह प्रथवा समुद्र सिंह " Page #405 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नामक पायत शाखा का योद्धा) २६. रतनावत (रतनसिह का पुत्र पदमसिंह) . रयण (रणछोड़दास जोधा राठौड़) ३०। रयण (योद्धा विशेष) ३०२ रवद (मुसलमान) १४, २८, ५१, ६८, ९२ ११८, २४६, २६४, २६५, ३१५, ३६२ रववरळ (मुसलमान) २१, ११५, ३०६, ३२६, ३२६, ३३२, ३५०, ३५७, ३६३ रविल ६१,७१ रब्बारा (जाति विशेष) २६३ रविदपति ११३ रविमंडळ ३१ रहमाण ८१ रांणंग (राणंगदेव सोनंगरा चौहान) २६८ रांग (महाराणा) १, ३६, ५७, १८, ६३ राण (राजा अर्थ) १७७ राणावत (राव रणमल्ल के पुत्र प्रखैराज के पुत्र राणा के वंशजों की राठौड़ों की एक उपशाखा। यह शीशोदिया वंश की राणावत शाखा से भिन्न है) राणेवा २०१ राण (महाराणा) २२६ राम (श्रीरामचंद्र) ४८, ६३, २५५ २६१ राघव (श्रीराम भगवान) ४८ राज-खान ३०२ राजगुरु २६८ राजड़ (चांपावत शाखा का राठौड़ राजसिंह पाली ठाकुर) २८३ राजड़ (महाराजा गजसिंह का कृपापात्र बारहठ प्रखा का पुत्र राजसी बारहठ) २६६ राजड़ (राजसिंह मेड़तिया शाखा का राठौड़) ३३१ राजतिलक १२६, २५८ राजमोहित १३२ राजमंदिर १४९, २१९ राजरिख ३३८ राजल (राजसिंह महवेचा शाखा का राठौड़) २६४ राजल (जोधा शाखा का राठोड़ राजसिंह) ३२४ रांम (रामसिंह भाटी) २६५ रांम (राठौड़ों में कुंपावत शाखा का योद्धा) ३१२ मि (बखतसिंह की सेना का एक योद्धा) ३२८ रांम (राजसिंह का पिता) ३३० रांमपुर ६१ रोमो (सबलसिंह कूपात का पुत्र रामसिंह राठौड़) २८५ रामौ (कल्याणसिंह कूपावत का पुत्र राठ रामसिंह) २८७ रोवरण ६३, २६१, ३०६ राजसिंघ (पेमसिंह का पुत्र) ३२६ राजसी (बारहठ असा का पुत्र राजसिंह बारहट) राजसी (बारहठ पाता का पुत्र) ६ राजसी (महाराणा राजसिंह उदयप र)८८ रायपाळा (राव जोधा के पुत्र रायपाल के वंशजों को राठोड़ों की एक उपशाखा) २६५ राव ११, ३५,७६, ८८, ९१, ६३, ६६ १०८, १७७, १८६, १८८, २००, २०६ २२१, २२४, २२६, २७८, ३२० राव अमरसिंघ ११ रावत १७७ रावळ १७७, २०० रिख (नारद ऋषि) ३५, ६६ रिक्ख (नारद ऋषि) ६७ रिणछोड़ २६ रितराज १७६ रुघ (श्रीरामचंद्र) १०६ Page #406 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । लाळस (चारणों का एक गोत्र) लालावंत (लालसिंह का पुत्र मेलमिल कुंपावत) २८८ ' लालावत (लालसिंह का पुत्र गजसिंह) ३२७ घखत (महाराजा बखतसिंह) २५५ वखतेस ३५८ धखतो (खिड़िया शाखा का चारण कवि) क्य-नाथ (योहा विशेष) २६ रुगनाथ (भंडारी प्रोसवाल) १०० रघनायक (श्रीरामचंद्र) ११ रुघपति (भंडारी प्रोसवाल रघुनाथ) ६६ रुघपती (रघुनाथ नामक रोहड़िया शाखा का चारण कवि) ३०० रुघौ (रुघनासिंह भाटी) २६, ३० रुघौ (योद्धा विशेष) ३२ रुसतमप्रली २३८ रुस्तमजंग २४४ रूप (तेजसिंह का पुत्र रूपसिंह) २८३ रूपा (राव रणमल्ल के पुत्र रूपा के वंशज की राठौड़ों की एक शाखा) २२६ । रैणायळ (जोधा शाखा का रणछोड़दास राठौड़) २६ रोद ६७ रोसनदोले २४४ रोहड़ (चारणों का रोहड़िया गोत्र) ३०० रोहाड़ो २७७ रोहिलाखांन ६२ रौद ६८ लंक (लंका) १०३, २७६, ३५८ लंका २६१, ३५१ लखण (राम भ्राता लक्ष्मण) ३५८ लखमण ( ,) ३०६ . लखावत (लक्ष्मणसिंह करमसोत का पुत्र) चभोखरण २७६ घसंत ३११ वसिस्ठ १२ वाहररपुर ६१ विजपाळ (ब्राह्मण) ३१७ विजपाळ (भंडारी विजयराज) ११६, ३५८ विजपाळोत ३२६ विजपाळी (भंडारी विजयराज) ३१८ विजव-पंजर १७७ विजा (योद्धा का नाम) ३२४ विज (विजयराज भंडारी) ३१६, ३५६ विजो (मामेर के राजा सवाई जयसिंह का (छोटा भाई विजयसिंह) ५५ विजौ (विजयसिंह राठौड़ एक योद्धा) विजौ (विजयराज भंडारी) ३०५ . वितळ २३३ विरहानपुर १०६ विलेद २३६, २४६, २८०, २८४, २८५, २८६, २८७, २६०, २६२, २९३, २९६, ३००, ३०४, ३०६, ३२१, ३२२, ३३०, ३२७, २५०, ३५१, ३६३ विसन (भामेर का राजा विष्णुरिणह) ८६, ८८ विसन (अभयसिंह का पुत्र विष्णसिंह) ३३३ विसवामित्र ३३८ विसाखा ४१ विहारी २८९ लखो (लक्ष्मीचंद) ३०२ लछमण (राम भ्राता लक्ष्मण) २५५ लसकरीखांन ३० लाखपसाव लाल (शक्तिसिंह का पुत्र लालसिंह चांपावत) २८३ लाल (लालचंद पंचोली) ३१८ लाल-कोट १४, ८२ Page #407 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वींभाजळ २२३ वीकम.८ वीकारण २२५ बीकानेरा २२५. वीदां (राव गोधा के पुत्र वौदा के वंशजों को राठौड़ों की एक उपशाखा) २६४ . वीर ४१ वीरभद्र २८७, २६० वोरम (वीरमदेव सोनगरा शाखा को चौहान) २६८ वेद १६, ५३, १२१, १५५, १५८, २६५ वेद-व्यास १६० व्यास ३०१,३१८ गंदावन १५३ दावन १५३ व्रतरतनाकर १६१ वस्चक्र ४२ वस्चक्र सक्रांत ४२ ब्रहमपुरांण ६४ बहसपति ४२, ४५, १८१ ब्रहस्पति ४२, ४४, १८३ सकत (लालसिंह का पिता शक्तिसिंह चांपावत) २८३ सक्रांत ४२ सठिक ४५ सतापुरी ३०३ सत-लोक १४ सतहरचंद ८ सतार २४६ सतारा २४९ सतारौ ३ सत्रसल ३२४. सनकादक ३०३ सनकादि १६ सनकादिक १६० सनीसर ४५ सपतास २०८ सफरजंग ३२१ सफरा २१ सबळ (सबळसिंह कुंपावत) २८५ सबळावत (सबळसिंह चौहान का पुत्र दुर्जसिंह) २६८ समदोदले २४४ सयद १०, ६१, ६३, ६४,६८, ६६,७३, ८३, ८६, २८०, २६५ सयद हुसेन ५६ सयवांण ८३, ८४, ८७, ८८ सयहां ६०, ६८ सयहांण ६५, ६७ . सरफदौळे २४५ सरवरण २३१ सर-संभर ७०,६६ सरसती २८२,३४१ सर-स्वति ३०२ सर बुलंद २३८, २३९, २४२, ३५६ . सर-बुलंदखा २७६ सवाई ( बखतसिंह की सेना का योद्धा सवाईसिंह) ३२६ .. संख (सामुद्रिक चिह्न) ४६ संग-असम २१५ संगमरमर २१५ संढायच (चारणों का एक गोत्र) २३ । संभर (सांभर) ६४, ३१६, ३५३ संभरि (सांभर) ६०, ६५ संभरी (सांभर) ३१६ संभरीक (चौहान राजपूत) २६७ संमत (सांवतसिंह कूपावत शाखा का राठौड़) ३१२ संस्ऋत-भाखा १६५ सइद ३५३ सईद ३५३ सकत ( अनाड़सिंह का पुत्र शक्तिसिंह चांपावत ) २८३ | Page #408 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहमहमंद. ११२, २३७ साहिजपूरी १८, ११२ साहिजादां १७, ७२ साहिजादा १६ साहिजादै १७ साहिजादौ २३, २३८, ३१७ साहिब-खां २८९ साहिबौ २६५ साहू २४२, २४६, ३२२ सिंगार-चौकी ५३ सिंघ-अजीत ६० सिंघ-राजड़ ३३० सिंढायचे (चारणों का एक गोत्र) २३ सिंधी-भाखा २०२ सिंभू ३३० सिसिंघ (करमसिहोत शाखा का राठौड़) सवाई राजा जयसिंह ५५ सहसमल २८४ सहसौ २९७ सहदेव २८७ सहस-नव १४ - सहादतखा २४४ सांदू (चारणों का एक गोत्र) २४, २७, ३२, ३०० सांभर ६०, २९७, ३२३ सांभर-पुर ६१ सांभरि ६०, ६५ सांभरी-खेत ६६ सांमत (सांवतसिंह) ३२८ सांमतसिंघ ३२३ सांमळ (श्यामसिंह भाटी) ३१६ सामोर (चारणों का एक गोत्र) सांवत (सवितसिंह कुंपावत राठौड़) २८६ सा (बादशाह) ८४ साऊ २६८ साक ४१ सादूळौ २६८ सार जसवंत १६ सारस्वत (व्याकरण) २०३ साळग्गरांम८१ सालिम ३२७ सालोतर ६२ साह ४, ५, ८, १७, २५, २७, ४८, ५०, ५१,५५, ५७,६०,७०,७१,७४,७८, -७६, ८०, ८३, ८५, ६२.६५,१०१, ११३, ११४, १२१, १३३, १३६, २३४, २३६, २४७, २५२ साहज्यहां १६ साहज्यां १७ साहज्यां-पुर १०६ साहफररक १६ साहबहावर ५५,७२ . . सिंभूसिंघ (हठीसिंह का पुत्र) ३२६ सिंह २८७ सिखहर (शेखावत) ३३३ सिजदा ३५१ सिणगार चौकी १४७ सिध जोग ४१ सिधपुर २८२ सिरदार (फतहाँसंह का पुत्र सरदारसिंह कुंपावत) २८६ सिरदार (सरदारसिंह मेड़तिया शाखा का राठौड़) २८६ सिरदार (सरदारसिंह, एक योद्धा) ३२७ सिरदारोत (सरदारसिंह मेड़तिया का पुत्र सूजी) ३०६ सिर विलंद २४१, २४२, २४७, २६२, २८०, २८१, २८६, ३२१, ३५१, ३६३ सिर बिलंद खांन २४४ . सिर विलंदेस ३०७ . सरिविलंद २३८ Page #409 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिर-दीर्वाण ५८,१८८,३०१ | सूजा (शाहजादा शुजा) १७ सिरोही २७७, ३५४ सूजावत (सुजान सिंह का पुत्र रघुनासिंह) सिवदान २८९ सिध-पुरी २७७ सूज (शाहजादा शुजा) १७ सिवराज १५ सूजी (सुजानसिंह मेड़तिया राठौड़) ३०९ सियो (राठोड़ों की बाला शाखा का वीर) सूर (शूरसिंह कुंपावत) २८७ २६४ सूरज-कुळ १३३ सिवी (हठीसिंह का पुत्र बखतसिंह की सूरज-मंडळ ३३ सेना का योद्धा) ३२६ सूरजमल ३३ सीसोद ८८,६१ सूरजमाल ३१६ सीह (राव सिंहा राठौड़) ७८ सूरज-बंस ७६ सुक्र ४२, ४३ सूरज-बसी १७६ सुखदेव १६० सूरजादो ( सूरसिंह का पुत्र एक राठौड़ सुखावत (सुखसिंह का पुत्र केसरीसिंह योद्धा) २६७ चारण कवि) ३२६ सूरत (गुजरात का एक नगर) २३८ सुजावत (राठौड़ों को उबाबत शाखा सुजान सूरलोक १४, ३०३ सिंह का पुत्र चैनसिंह) ३१४ सूर-सेनी १६६, १६८ सुजाहत २३८ सूरिजकुळ १५४ सुभागवत १५५ सूरिजसिंघ २ सुभौ (जयसिंह चारण का पुत्र) २९६ सेख ३५५ सुमेर १६३ सेख अलियार २८० सुर (हिंदू ) २०, ६४, ७६, ६४ सेख-मुजदाह २८० सुरताण (बादशाह) ४, ११, १३, ३१, सेख मुसाद २८० ४८, ५५, १०६, ११२, १२६, २४२, सेखावात ३३२ ३२१ . सेर (रियां ठाकुर शेरसिंह मेड़तिया) २८६ सुरताण (सांवतसिंह कुंपावत का पुत्र सेर अफगान २४४ . सुरतांणसिंह) २८६ सेरावत (शेरसिंह मेड़तिया का पुत्र) ३२५ सुरताणसिंघ ३१३ सेर-विलंद २४६, २६१ सुरतांणोत (भाटी वंश की एक शाखा) २६ सेर-विलंब खां ३२१ सुरतेस (प्रोसिंह का पुत्र सुरतापसिंह) सेरौ (रियां ठाकुर शेरसिंह मेड़तिया) २८६ ३२६ सैद ७६, ७६, ८७, १८, ६३, ३५५ सुरती (राठौड़ों को गांगावत शाखा का सोनगरौ (चोंहानों की सोनगरा शाखा धीर) २६५ का वीर) २६८ सुरती (हरिसिंह चौपावत का पुत्र) ३१२ सोपुर ८८ सुरतो (शेरसिंह मेड़तिया का पुत्र) ३२५ सोरठ २०३ . सुवण (चौहान वंशकी सोनगरा शाखा) ४८ | सौंधाखांना २३१ Page #410 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २२ ] सौपुर १ स्यामदास स्त्री-भागवत १९१ नुत-बोध १९१ हजारी पांच ५२ हजारी-हफत ६७ हट-मल २६० हटी ३२६ हठी (सूरसिंह का पुत्र) २९६ हठी ३२७ हणमंत १०३, २०५, ३२३ हणूं ३५० हदौ (उदावत शाखा का राठौड़ रिदेरांम) २६० हमदरखांन २३६ हरचंद ८, १२८, १७७ हरदास हरनाथ (पाउनाका ठाकुर चांपावत हरनाथ सिंह) २८२ हरनाथ (करमसिहोत शाखा का राठौड़) वत) ३१० हरियंट (हरिसिंह चांपावत बखतसिंह का सेना का योद्धा) ३१२ हरी (हरिदास सिंदायच गोत्र का चारण कवि) २३ हसती-बध १०३ हसन अली ७३, ७४ हसन खां ६४, ३५३ हसनली ७४, ७५, ६४ हसन्न ७६ हाडा २१, २८ हिंदवां ४६, ५६ हिंदवाण ८१, १४, २००, २२०, २२८, २३६ हिंदवांणां ५५, १२८, १७०। हिंदवाणे ४१७ हिंदसथान ३८ हिंदु ८२ हिंदुसथान ८२, १३२, १७७, १८२, २५१ हिंदुस्थान ३५२ हिंदू २४०, २४३, २४४, २४६ . हिंदूसिंघ २६४ हिमरित ४१ हुसेन खां ६४ हुसन खां २५३ हेम (सांमोर गोत्र का चारण कवि) ६. हैदरकुळी ११४, १२१ हैमंद २३८, २३६ होळिका १०६ . हरनाथोन (हरनाथ जोधा राठौड़ का पुत्र करण) ३१३ हर-भांण २८२ हरलाल ३१८ हरसुक्ख १० हरियंद (हरिसिंह चांपावत) २८४ हरियंद (भाऊसिंह का पुत्र हरिसिंह फँपा- Page #411 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ श्री॥ परिशिष्ट २ संगीत एवं नृत्य संबंधी शब्द तथा भिन्न-भिन्न प्रकार के वाद्यों को नामानुक्रमणिका अरबी ३५१ जंत्र १५१, १८६ अलगौजूं १८६ झंझर १८६ प्रलाप १५१, १८८, १८६ झणणणण प्रस्ट ताळ १८६ झालरा ८८ उघट १५१, १५२ झालरि २ उरप १५२ . झिमझिम १५२ कलियांग १५३ टिकोर १८६ क्रुकु थुग शुंग रत १५२ टांमक २२१ खंजरी १५२, ३५१ डंको ३५६ खंभायच २५६ डका ३५० खडज १८६ डफ ३५१ गंधार १८६ डाक ३८, २५७, ३६२ गजर १०१, २३० डाको ६२ गाइण १५० ढोल ३५० गायरणी ६० तंबूर १५१, १५२, १८९ गुणीजण तबल ४, ३५, ३७, ६२, १००, १०८, प्रांम १८८ ११०, २५६, २५७, २६७. ३५० घंट २, १३६ तबल्ल ११६, ३६० घडाळ १६९ तबल्लू २२१ घूघर १५० *तान १५१ चंग १५२ *तान संगीत शास्त्र में मूर्छनाओं के आधार पर चौरासी ताने मानी गई है। उनमें उनचास षाडव और पैंतीस प्रोडुव हैं । (शुद्ध मूच्छंनाओं की संख्या सात होने के कारण) षड्ज ग्राम में षाडव मूर्च्छनाओं का लक्षण सात प्रकार का है । यथा-षड्ज ग्राम में षड्ज, ऋषभ, पञ्चम और निषाद से रहित चार तानें हैं।' [शेष फुट नोट पृ० २४ पर] ' मूर्छनासं श्रितास्तानाश्चतुरशीतिः । तत्र एकोनपंचाशत् षट्स्वरा: पंचत्रिंशत् पंचस्वराः । लक्षणं तु षट् स्वराणां सप्त विधम् । यथा-षड्जर्षभगन्धारहीनाश्चत्वारस्तानाः षड्ज ग्रामे । ___ भरत०, बंबईसंस्करण अध्याय २८, पृ० ४३७ । Page #412 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [. २४ ] [पृ० २३ का फूट नोट] . इसी प्रकार मध्यम ग्राम में, षड्ज, ऋषभ और गान्धार से हीन तीन ताने मानी गई हैं। इस प्रकार से सब मूर्च्छनाओं में की जाने वाली ये (पाडव) तानें उनचास होती हैं २, जो इस प्रकार हैं-- उत्तर मन्द्रा २३. ग म ४ ध नी सरे १.४ रे ग म प ध नि २४. ग म प ध x स रे २. स x ग म प ध नि अभिरुद्गता३. स रे ग म x ध नि २५. रे ग म प ध नी x ४. स रे ग म प ध x २६. x ग म प ध नी स रजनी २७. रे ग म x ध नी स ५. नी x रे ग म प ध २८. रे ग म प ध ४ स ६. नी सा x ग म प ध सौवीरी (मध्यम ग्राम)७. नी सा रे ग म x ध २६. म प ध नी x रे ग ८. x सा रे ग म प ध ३०. म प ध नी स x ग उत्तरायता ३१. म प ध नी स रे x ६. ध नी x रे ग म प हारिणाश्वा। १०. ध नी स x ग म प ३२. ग म प ध नी x रे. ११. ध नी स रे ग म x ३३. ग म प ध नी स x १२. घ x स रे ग म प ३४. x म प ध नी स रे शुद्ध षड्जा कलोपनता१३. प ध नी x रे ग म ३५. रे ग म प ध नी x १४. प ध नी सा x ग म ३६. x ग म प ध नी स १५. x ध नी सा रे ग म ३७. रे x म प ध नी स १६. प ध x सा रे ग म शुद्धमध्यामत्सरी कृता ३८. x रे ग म प ध नि १७. म प ध नीx रे ग ३६. स ग म प ध नि १८. म प ध नी सा x ग ४०. स रे x म प ध नि १६. म ४ घ नी सा रे ग २०. म प ध x सा रे ग ४१. नी x रे ग म प ध प्रश्वक्रान्ता ४२. नी सा x म म प ध २१. म म प ध नी.x रे । ४३. नी सा रे x म प ध २२. ग म प ध नी स x [शेष टिप्पणी पृ० २५ पर] मार्गी २ मध्यम ग्रामे तु षड्जर्षभ गान्धार हीकास्त्रयस्नानाः। एवमेते सर्वासु मूच्र्छनासु क्रियमाणा भवन्त्येकोन पंचाशत्तानाः। भरत०, बंबई संस्करण, अध्याय २६, पृ० ४२६ Page #413 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हृष्यका [ २५ ] [पृ० २४ का फुट नोट पोरवी४४. ध नी x रे ग म प ४७. प ध नी X रे ग म ४५. ध नी स x ग म प ४८. प ध नी स X ग म ४६. ध नी स रे X म प . ४६. प ध नी स रे x म संगीत शास्त्र के अन्तर्गत पांच स्वर वाली तानों का लक्षण पांच ही प्रकार का है। उदाहरणार्थ षड्ज ग्राम में 'षड्ज पंचमहीन', 'ऋषभ पंचमहीन' और 'गान्धार निषादहीन' तीन तानें (एक मूर्च्छना) में होती हैं। मध्यम ग्राम (की एक मूर्छना) में गान्धार निषादहीन' और 'ऋषभ धैवत हीन' दो तानें होती हैं। इस प्रकार सब मूर्च्छनात्रों में बनाई जाने वाली प्रोडु व तानें पैंतीस होती हैं; षड्ज ग्राम में इक्कीस और मध्यम ग्राम में चौदह ।' इनके रूप निम्नलिखित हैं। उत्तर मन्द्रा • मत्सरी कृता१. x रे ग म X ध नि १३. म X ध नी X रे ग २. स x ग म X ध नि १४. म X ध नी स x ग ३. स रे x म प ध x १५. म प ध X स रे x रजनी अश्वक्रान्ता४. नी x रे ग म X ध १६ ग म X ध नीX रे ५. नी स x ग म X ध १७. ग म X धनी स X ६. x स रे X म प ध १८. X म प ध X स रे उत्तरायता अभिरुद्गता७. ध नी x रे ग म x ८. ध नी स X ग म x १६. रे ग म X ध नी x . ६. ध x स रे X म प . २०. x ग म X ध नी स शुद्ध षड्जा २१. रे x म प ध x स १०. X ध नी X रे ग म सौवीरी (मध्यम ग्राम)११. X ध नी स x गम २२. म प ध X स रे x १२. प ध Xस रे X म २३. म प X नी स x ग १ पंच स्वराणां तु पंच विधमेव लक्षणम् । यथा षड्ज पंचम होना ऋषभ पंचम हीना गान्धार निषाद हीना इति त्रयस्तानाः षड्ज प्रामे । मध्यम ग्रामे तु गान्धार निषाद बद् धोना वृषभ धैवत हीनाविति द्वौ त नौ। एवं पंचस्वरा सर्वासु मूर्च्छनासु क्रियमाणास्तानाः पंच प्रशद् भवन्ति । षड्ज ग्राम एक विंशतिर्मध्यम ग्रामे चतुर्दश । भरत बंबई संस्करण, अध्याय २८ Page #414 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ २६ ] तार १५२ धौलकं १८६ तालंग १३९ नगारा १२१, २३०, २४० ताळ १५१, १५२, १८६ नगारौ ५७, ३६० तुरपंग १५२ नग्गारा १२४ तूर ३७, १०१, ११५, २८१ नववती १३१, ३५६ चंब १०१, ३३८ नाटक १५१ बागळ २२३, ३४६, ३६२ नाद १३६ बंबाळ १८, ६३, २३०, २५४, ३४६, निखाख १८९ ३६२ नीसांण १००, १७३ नंबाळा २८१ नौबत ८, ६२, ११०, १४८, २१३, वेवट १५२ २२४, २७१, २८१ थाट १८६ नौबति ५०, ५२, ६६, ६६, ११४, १३६, धुंग १५२ २५७, ३६१ थेइय थेइय तत थेइय ततततत थेइय थेइय नौवती १६६ तत १५२ नत ६० दमाम ३५६ पंचम १८६ दाट १५२ परन १८६ बुंदुभ १३४ परवेज १८६ घईवंत १८९ पसतो ३५१ धुधकट स धुकट धुकटस धुकट १५२। पाड ३५१ [पृ० २५ का फुट नोट ] हारिणाश्वा मार्गी२४. X म प ध X स रे ३०.X स रे x म प ध २५. ग म प x नि स X ३१. नि स X ग म प x कलोप नता पौरवी२६. रे-X ग म ध X स ३२. ध X स रे X म प २७.X ग म प x नि स ३३.X नि स x ग म शुद्ध मध्या हृष्यका२८. स रे X म प ध x ३४. प ध X स रे X म २६. स x ग म प x नि ३५. x नि स x ग म इस प्रकार उनघास षाडव तानों और पैंतीस औडुव तानों को जोड़ने से तानों की संख्या चौरासी होती है।' ' एव मेत एकत्र गम्यमानाश्चतुरशीति भवन्ति। भरत०, बंबई संस्करण, पृ. ४३६ Page #415 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिनाक १५२, १८६ पैनायक २५७ बंग १००, २३०, २५४, २६७ बाजंत्र ८५, ८६, ६० बाजत्र ४७, १४८ बाजित्र २५१ भेर भेरी मधम १८६ मरदंग १५२ मरछन १५१ ★ मुरछना १८६ मुरसल १३१, २५७ मुरसल्ल १३६ वंग १५१, १५२, १८६ रंग १३१ षडज ग्राम ललिता मध्यमा चित्रा रोहिणी मतंगजा सौवीरी षडमध्या [ २७ ] उत्तर- मुद्रा रजनी उत्तरायणी सुर १५१, १८८ सुरवीण १५२ सुर-वी १८६ त्रीमंडळ १५६ तान पर दी गई टिप्पणी इस संबंध में देखें । * मूरछना - संगीत में एक ग्राम से दूसरे ग्राम तक जाने में सातों स्वरों का आरोह अवरोह ग्राम के सातवें भाग का नाम मूर्च्छना है। भरत के मत से गाते समय गले को कंपाने से ही मूच्र्च्छना होती है और किसी किसी का मत है कि स्वर के सूक्ष्म विराम को ही मूच्र्च्छना कहते हैं । तीन ग्राम होने के कारण मूर्च्छनाएँ २१ होती हैं जिनका विवरण निम्न प्रकार से है । मध्यम ग्राम पंचमा मत्सरी मृदुमध्या शुद्धा अता कलावती तीव्रा शुद्ध षडजा मत्सरीकृता अश्वक्रांता अभिरुता रखव १८६ राग ३५ लाग १५२ वाजंत्र १५० विलावळ १५७ विहंग १५३ वीणा १५१ वारि १५१ संगीत ६०, १५०, १५१, १५२, १५८ संगीत - सार १५१ सहनाय ११५, १३१, १३६ सवाद १३१ मतान्तर से मूर्च्छनानों के नाम इस प्रकार भी मिलते हैं सौवीरी हारिणाश्वा कपोलनता शुद्ध मध्या मार्गी पौरवी मंदाकिनी गान्धार ग्राम रौद्री ब्राह्मी वैष्णवी खेदरी सुरा नादावती विशाला नंदा विशाला सोमपी विचित्रा रोहिणी सुखा अलापी Page #416 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥श्री॥ परिशिष्ट ३ विशेष प्रकार के अस्त्र-शस्त्रों की नामानुक्रमणिका परिणयाळा २४७ अराब २६६ अराबा २३६, ३०६, ३३६, ३३७, ३४६ असरण ६, २२४ असमर ७३, ३२५ प्रसि २१ प्राराब १४,१८, २३० पारबा ४, ५, ६, १७, १८, १६, १७, ३५०, ३६० प्रावधू २२२ इकहत्थ १४५ इकहथी ६६ कवारण ६३, ११५ करमाळ २६२ किरमर ७०,३१८ किरमर २७, ३०७, ३१८ किरमाळ १२, १९८, २६२, ३०६, ३३२ किरम्मर-३०२ किलकिला २२१ कूत २७, २३४, ३४६, केजम ६२ . केवाण ४४, २९५, ३२४, ३२६, ३२६, ३३०, ३४४, ३४६, ३४८ कोहक-बाण ६.१६ खंजर ७, २३, ७५, ११९, १२६, २४८ गज-बांण २४८ गज-बाग गज्जर ३१० गदा ३१० गुरज ६५, २०६ गुराव २६७ गोळ २६१, २६२ च चव-धार २६ चबधारा २६, २९६ चौधारा ३०६ चिलतह २४६ चिला ६१ चिल्ला २४७ छडाला ६५, २४६ छड़ियाळा ३५० छुरा २४७ छुरूं २१४ जंबूरी २६७ जनेबू ३५४ जमदाडं ६५, ६८ जमंधर १२, १७, ५० जमदढ़ ७, ८, १२, ६१, ११३, ११८, १२६, १८४, १६९, २४८, २९६ जमवाढ ७, ६५, ६८, ७५, ३४३ . खंजरूं २१४ खंडा ३३६ खंडा-धार ७७ Page #417 -------------------------------------------------------------------------- ________________ . [ २६ ] जमदाढ़क २६८ जरद ६, २६, २८६, २६३, ३१७ जरदाळ ७,६१. झिलम १०४ ठठरूं २२१ बगतर २९८, ३४६ बांक १६६ बांणास २८४, ३०७ बूग २४६ भातड़ा २६६ भुजलग २६०, २६३, ३३० भूतारण ६१ तबल ३ तरगस्स ११५ तिजड़ा ३०५ तूजियों ३४७ तेग ४, १०३, २६५, ३१०, ३४८, ३५६ दुजड़ २६४ मुरगाबू ३५४ धज २१, ६२, २६४, ३४६ धजर १४, १६, २६७, ३०४, ३३२ धमाकू २२४ धूप १३०, १८४ रहकळां २६७ रूक २१, ३७, ६४, १०३, २६४, ३०६, ३१३, ३२४ रूकड़ां २ नराज १०५ नाराज १२ नाळ १६, ८५, ६३, ११८, २२१ नाळकियां ६५ नाळियां २६७ नाळू २२३ नेजा ३, ६२, १२४, ३१७ वजर ३३२ वडफर ६१ वीज २९७ वीजळ ३३, २६७, ३१०, ३२८, ३३०, ३३२, ३६१ वीजळां ६, २८, ३०० वीजळा ३२५ वीजूंजळ ७, २०, २१, २८, ३२, १६४, १६५ २११, २८६, ३११, ३१२, ३४५ स सफर १८६ सनाह ३२८, ३५७ ... समसेर १७, २३, ७६, ११७, १७७, १८६, १९६, २६६, ३३४, ३५१, ३५४ समसेरूं १९४, ३५५ साबळ ७, १६, २.०, २८, ३०, ३१, ३५, ३७, ६६, २१०, २८७, २८८, २६४, २६०, ३२६, ३२६, ३३३, ३३४, ३६०, पंखाळा ३४७ पक्खर २६, ३४६ पक्खराळा ६६ पखर २६३ पाखर ५, ३५, १२०, २६१, ३५८, ३४६, ३४६ पेसखांना २६२, २६४ फूल २६३, ३४७ फूलधार ३२७ Page #418 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साबलू २२३ सायक ३७ सिरपोस ५०, २४४, २४५, २८४, ३०३, ३०६ सिरोहियां ६४, ३५४ . .... सिलह ८, २१, २६, ३५, ६२, ११६, २२२, २६६, २६२, ३१४, ३२३, ३२६, । ३३१, ३४५, ३४६, ३५८, ३.५६, ३६१ सुजड़ २३, १०५, १.२६ :सेल ४, ६, १३, २०, २५, ३१, २३३, २८९, २६०, २६२, २६३,२६४, २९६, ३००, ३१५, ३२०, ३३०, ३४८, ३५५ हाथळ २१ परिशिष्ट ४ वस्त्र तथा वस्त्रों संबंधी शब्दों की नामानुक्रमणिका अंजील १७८ २५१ प्रतळस ५८, १०५ जरकसि २८८ असलूफ १४६ जरकसी १३०, १३५, १७६, १८०, २१६, प्रासावरी १०६ २३१, २३७ इकतार १०६ जरक्कसी १६६ इलाइच १०५ जरतार ५८, ५६, १३५, १३७, २५७ कन्न १५५ जरतारियां २३२ कसबीस १०५ जरताव १३८ कार-चोभ १८४ जरदोज २६५ कार-चौभ १०५, १५६ जरदोजी १७६ खास १०५ जरबफत १३७, १८० खिन-खास १५५ खिम खाप १०५ जरिय १४६ जरियसि १०५ खिरोद १५५ गिलम १०६, १४६, १५०, २५०, २६५ जरी २२७, २४८, २६५ जरी स० १४६ गिलमूं १७९ जाजम १४२ गोंदवा १४२ तख-तास १०५ गुलजार १३७ तहताज १०५, १४१, १४४, गुलदार १०६ चिकन्न १५६ तास ५८, ८६, १४१, १४२, १४६, १५९, चीरा १०५ १६६, २५१ चोपस्मी १७८ तिलकारी १८० जरकस ५८, १३५, १४१, १४४, १८६, | थिरमा १०६ Page #419 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३१ ] दुसाल १०६ दुल्लीच १०६, १४२ नीलक १०६ पटंबर १५६ पसम १४६ १५० पसमी ५८ पसमीन १७६ पसमीर १०६ पसमी-स १४२ पसम्म १४६ पाघ १८२ पायंदाज १४६, १७६ पितंबर १५५ पोत १०५.१०६ पौस २३७ भिडवच १०३ बाब १४२ बाला १८४ बाला-बंध १८४ बासता १०५ बुलगारु १८४ लाहानूर १७८ वनात २५४, २६४ वादळा १४१ विछायत १५० सफंम १०६ सिकलात १०५, १३७, २७१ सिर-पाव ८, २३, ५५, ११६, १२६, १४४, २३६, २४७, २५६ सुथाळ१०६ स्त्रीसाप १०५, २१६ परिशिष्ट ५ आभूषणों की मामानुक्रमणिका प्रणोट १६७ कंकणी १६४ कंठ १४४ कड़ा १४४, २५६ किलंगी १८२ कुलह २४८ गज्जरा १६४ चंद्रबाह १६४ चंद्रहार १६३ छना १६४ छन-घंट १६५ जग्योपवीत १९३ जरकंबर १८३, २४८ झंझर १६६ अटक १६२ धुगधुगी १४४, १३ नवग्रही १८३ नवजरी १४८ नपर १६६ नौग्रही १६४ पवित्रेस १४४ पाँच १६४ बाजू-बंध १६४ मुद्रिका १८४ मुद्रिका १६४ रतन-पेच १९२ सिर-पेच १८२ हमेल १६३ हाथसांकळे १८३ wwwwwwwww Page #420 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ६ छंदानुक्रमणिका पृ० प्रकरण पद्यांक १९६ ७ १८५ ३५६ ७ ५६६ ३०४ ७ ३९८ ३०२ ७ ३६४ ३४६ ७ ५६० ३००७ ३९० GGGG गाथा १५० ७ १०३ छदनाम प्रथम पंक्ति इकतीसौ साह के कटहरे विफरी ठाढौ अभसाह . कवित्त कुंडळियो वेळा उण खत 'विलंद' नूं इम मेले 'प्रभमाल' कवित्त दोढ़ी छक बोले रिणछोड़ सूर जोधौ ‘गोयंद' सुत महाराज 'प्रभमाल' पूछ धावड़ महपत्ती राजभार वद रछिक कहै धनरूप एम कथ बजे ध्रीह त्रंबाळ पमंग साकति सझि पक्खर सूर सती सुत सूर रटै 'रुघपत्ती' रोहड़ ताल प्रदंग तंबूर भुगधा वेस प्रमाण सुत राघव कवसल्ल सोलह सझि सिरणगार गीत कहर इरादतमंद 'जैसाह' हैदरकुळी छप्पय, छप्प अंबखास 'अभमाल' झळळ पौरस झाळाहळ (कवित्त) 'अजमल' सकति अराधि प्रोण रक्केब उधारे 'प्रजौ बाळ अवसता लेख वइवगढ़ लीधौ - अठी एम पह उभे दळां पारंभ दरसाया अठ जठे असि मोरि लोह स्रोहयां लगाया अभंग 'पदम' बोलियौ प्रगन पोरस ऊघाड़े 'अमर' रांरण करि उछब पोह सांमुहौ पधारे 'अमर' लोथि माविया वीर दारण विकराळा 'प्रवरंग' प्रसपति हुवौ विखम चंडनयर विचाळे । 'अवरंगहूं करि प्रांटि अडर डेरां भड़ पाया असपति मेळ 'अजीत' धरा नायक नह धारै असि सिरपाव अनेक कड़ा मोती गज कंकण प्रस्ट लाख उरण वार लहै 'खेतल' कवि लाळ स प्रांब खास मझि 'प्रभो' उरसि छिबतो पह पाए प्राइ दिली ईखिया जोध चौतरा जसारा प्रागा सेख मुसाद कहे जंग इहां न कीजै १५० ७ १०२ १२१ ६ ३५२ १२५ ६ ३५८ ६२ ६ ८६ ३३ ६ १६ ६४ ६ २८७ ६२ ५७६ २२ ५ २५ ७६ ६ १३६ ८ ४ १६ ४ १९ २३५ ७ २६३ ७७ ६ १३८ २८० ७ ३४५ Page #421 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम छप्पय, छप्पै (कवित्त) 9 9 or » , , +Ur [ ३३ ] प्रथम पंक्ति प० प्रकरण पद्यांक पाप हुबै उसवास, रेविदपति साँग इमरीसां ११३ ६ ३२३ पाया छिबता उरस तेज खड़िया तोखारां प्रायौ लालच उतनु सेतो पह बखत सिधारे २५ ६ ३ इंद्र जेम प्रोपियौ 'अजौ' नरिंद अवतारी इते खुरम प्राविय साह परि सझि वळ सब्बळ इम चाँपा बोलिया आदि विरदां अजवाळा २८४ ७ ३५६ इम जवाब सुणि असुर खिजै कमधज खेधायक २८१ ७ ३४६ इम डेरां प्रापरा और डेरां उमरावां २६५ ७ ३१७ इम वसकत प्राविया देखि वाचिया सयद्दा इम नौबत बजाई दुझल जीतियौ दमंगळ इम लिखिया 'अभमाल' 'विलंद' कागज वचवाया इम वासर ऊगतां डाक वागी दस देसां ३८ ६ २८ इम सलाह करि 'अभ' हुकम दीधा हुजदारां ३४६ ७ ५५४ 'ईदारा उरण वार अमल थांणा उट्टाए ३४ ६ २० उठ उमेदह वार रिधु दूजौ 'रतनागर' २६० ७ ३६६ उठे 'गजरण' प्रावियो अभंग दळ लियां अथाहां १ उठ दिली उणवार 'प्रभो' दारुण अतळीबळ २४० ७ २७२ उठ भीम हरवळां हुवौ खूमाण हठाळी उरण अवसर मझि 'अमर' अधक धर दुंद उठायौ उण मौसर 'अगजीत' तई भुज गयण सु तोल ____६८ ६ २४६ उरण वेळां बोलियो अडर 'जसराज' 'पतावत' . २६१ ७ ३७१ उरण वेळा बोलियो ‘दलौ' सोनगरी दारण २६८ ७ ३८६ उदैभांण अरिहरा बाहि खग करे विहारां उभे तरफ ऊपड़ी वाग तिरण चार विडंगां उभे मिसल अंबखास पड़े घड़हड़ प्रणपारां ऊगंती मौसरां अउर 'सिंध' करण 'प्रभावत' २६३ ७ ३७५ ऊवां बूझ 'अभौ' 'हदो' बोलियो ‘बहादर' २६. ७ ३७० एकठ करि नप उभै हिले सामल पतिसाहां एक समें 'प्रभमाल' एम प्रावियो पुजाए १२६ ६ ३६० एक साथ मारवा दुगम बिहुँदै बळ दग्ग. १६ ५ १६ एका बाळ अमीर बडो करि प्रांटि वणावै एम झिले 'अभपती' सुणे रंग राग सकाजा २३७ ७ २६७ एम देखि 'प्रभमाल' पांण तप तेज प्रभत्ती १२५ ६ ३५६ एम सुणे 'मजमाल' पाप ऊपरि वळ पाया , . ९७ ६ २४५ भैराकी प्रारबी घटी काछी खंधारी. २७३ ७ ३३३ K GKG xxn on G G Page #422 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३४ ] प्रथम पंक्ति पृ० प्रकरण पाक छंदनाम छप्पय, छप्प (ककित्त) रखा पब घरण गजि पटाझर कठठ जूट रहकळां जूट नाळियाँ जंबो । २६७ ७ ३२० कमांपति कूरमा उमुरडिया अधप्पति 'करणावत' कळिचाळ तांम पूर्छ 'अभपत्ती' २६२ ७ ३७३ करतां इम मंचकूर अडर 'अवरंग' वळ पाया करि गुलाब छड़िकाव जरी रावटी जगामग २६५ ७ ३१६ करै न घड़ां कुंवारि करे चढि तेल कुंवारे २७८ ७ ३४३ करे पोस जरकसी कड़ी सोवन कोतल कसि २७४ ७ ३३५ करे बरंग दळ किलम 'रुघौ' सूजावत रूका कर राज इम कम 'जसौ' छत्रपति जोधारण १६ ५ १४ कलाबूत कामरा परटि कटहड़ा प्रचंड २७१ ७ ३२८ कहि यम हैजम करे विखम रूपी विकराळा २८१ ७ ३५० कहै अनावत 'सकत' जुहू जिम भूप जुजगुळ २८३ ७ ३५४ कहै कुरांण कतेब उरह हुय डम्मा डम्मां २७० कुळ बळ सहत करीम निहंग ब्रबं सझि निजराणां २७६ ७ ३४४ केक दोह मझि कमंध, 'अभी' जोगणिपुर पाए १२४ ६ ३५७ के करम कमंधरा विहंड घायल जिरण वारां ६६ ६ ११८ खड़की गढ़ धोखळे गोळ कूडौ गाहट्ट खत लिखिया दिस खांन डकर धारे वजराई २७९ ७ ३४५ खत्रियां गुरु अंबखास अने पह सझै अदालत ___६६ ६, २४२ खबरदार खांनरा कह दळ रूप कगळी ३५० ७ ५६२ खळ भागा देखतां चोर छळ जोर निसाचर खांडां झट छः स्वंड दळा विहंडे 'द्वारावत' . ३० ६. १२ खांप खांपरा खत्री प्रवर बहु सूर अकारा खांप खांपरा खत्री एम बोलें भड़ अड्डर २९८ ७ ३८७ खौदाळम अंबखास प्रचड़ कटहरे उबारी १२७ ६ ३६२ गंज सीसा घण गळे भर सच्चाळ भरारां . ३४७ ७ ५५६ गाहट हरवळ गोळ चोळ चंदवळ करि चुख चुख २१ ५ २४ गिर गिर गज गामणी हुई सग गमिरिण हल्ले २७७. ७ ३४२ गिलम विछायत गरक पसम मौडा तकिया पर १५० ७ १०१ गोळो तीर वजागि मागि झा पई अंगारा ३५ ६ २२ ग्यांनी सीख ग्यान कवी सौख कविताई... घण इसा धेरिया भवकि करि गई भयंकर .. २६८ ७ ३२३ घोड़ पहल र घणा धमळू पुर के प्रसि धारी २७५ ७ ३३६ ताप चौगण पाटं पिततणे प्रभत्ती - १३३ ७ १७ gai ram Page #423 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम छप्पय, छप्प ( कवित्त ) प्रथम पंक्ति [ ३५ ] छगां छगां धरि नगां चढ़े प्रासरणां महावत छच्छ मास छाया हुवा डाकियां हठीला छोळ अंब घण छोळ घोळ सामळां उतारै जंगम प्रसि जवहार 'अमर' बहु निजर अधारे 'जगड़' हरां मधि जोध एक हूंतौ उण वारां जदि दळ सजि 'अगजीत' उतन जोधाण प्रायो जदि न 'अभै' जांगियों इळा थंभण उमरावां जदि नजीक जोधाण स मुक्काम सकाजा जदिन साह 'जैसाह' अंबगढ़ हूंत उथप्प जदि मुकंदात 'जसौ' कहे उच्छाह समर करि जमे मल जोधारण करे दळ सबळ कराळा जयचंद जेम 'जीत' मसत उच्छब घर मांण 'जसे' दिया जवनरै उवर मझि दाह प्रकारा जाडां थंडां जियार लोह श्राडां भड़ लागा जिnt करूं ऊजळी जंग करि लूण 'जसा 'रौ 'जैतो' प्रग्गि व्रजागि तांम बोले 'महकन' तण जोघांनाथ जियार जोध पूछे जोधा हर भूंझावत फतमाल कहे 'नाहर' 'करणावत' ठin ठांम नक्की हाक ताकीद हजारां डफ खंजरी दुतार विखम रोहिला वजाव डाच लगणां ड इसा पंडवां अपारां डेरां दाखिल दुफल होय दरबार कीध हद तइ साज साजि तुरग प्राणि पंडवां श्राधारे तखत रवा तइयार रहे नालकियां हाजिर त-दिन 'भारं तिलक साह स्त्री हथां सधारे तदि बोलियो सतेज ' सुभी' 'जैसींघ' समोभ्रम तन घरप घटा तराज धरर घर बाज तिलक धन तपत झळाहळ अतुळ पंड झळाहळ पौरिस तांम 'जसौ' तेडियो अधिक दळबळ सभि प्रायो तांम प्रीत भयतरणी ववे वह साह वधारा तम साह तजबीज एम चित मझि अधार तिरा दिन 'जसवंत' तथा निडर बह भड़ नर नाहर तेज पुंज 'गजीत' जोम भरियो महाराजा तेजपुंज नृपसुतरण हुवौ जस बेस हळाहळ तेजावत तिन चार 'रूप' बोलं मछराळो पृ० प्रकरण पद्यांक २७० ७ ३२७ २६८ ७ ३२२ ३४८ ७ ५५६ ५६ ६ ८१ २६१ ७ ३७२ ५२ ६. ६६ ६ ३२० १११ १३५ ७ २० ५५ ६ ७४ २८७ ७ ३६३ ५६ ६ ८२ ६३ ६ २३६ २५ ६ २ ६ ४ १२ २७ ६ ७ S ७ ३७४ २६३ २८८ ७ ३६५ २८८ ७ ३६५ २७५ ७ ३३७ ३५१ ७ ५६४ २७४ ७ २३४ १२३ ६ ३५५ ६६ ६ २४६ ६५ ६ २४१ १२६ ७ १ २६६ ७ ३८८ २७३ ७ ३३२ २ १ ४ १७ ५ -१५ २२ ५ २६ ५ ४ १० २४ ६ १ ३७ ६ २७ ४६ ६ ५६ २८३ ७ ३५५ Page #424 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम छप्पय, छप्पै (कवित्त) पृ० प्रकरण पद्यांक २३७ ७ २६६ २८२ ७ २५२ ६ २३० २१ ५ २३ १३४ ७ १६ २६८ ७ ३८५ २८२ ७ ३५१ ३५० ७ ५६३ ७७ ६ १३६ १५२ ७ ११० २६६ ७ ३२५ [ ३६ ] प्रथम पंक्ति त खुस बखती प्रतर रंचे डंबर रिझबारां दखिण धरा रस दियौ प्रसह नह कर इरादौ दरगह पूर दुझाल कहै 'प्रभमाल' एम कथ वळ पाड़े बह रवव पड़े झिल लोह अपारां दळ सझि 'प्रजो' दुझाल 'प्रजौ' तारागढ़ प्रायो दस हजार रववाळ पड़े गज भिड़ज अपारां दोह केक मझि दुझल 'प्रभौ' मुरधर मझि पाए बुजसिंघ वईवाण सूर बोल 'सबळावत' दुझल सिर दरबार उठ कीधौ ‘प्रभपत्ती' दुय दुय सहस बंदूक सहति बकसरां सकाजा धख इम चख (...) धिखे तांण मूछा खग तोले धुनि सवंग धुध कटस धुकट धुधुकटस धुकट धुर धोम नयण सिंधुरां जंगी हौवां पाखर जडि नट कछनी करि निहंग घर अंगरखा बहादर नाभराज इक निमळ प्रफुलि गिरराज वंस पर नाळ घमस वजि निहंग धरा जहराळ कमळ कि 'नाहर' सुत नर नाह, कह हाजर छक कारण निडर चंडावळ माथ रूप प्रीखम रवि रावत निडर भूप नागौर समर झोके बळ सम्बळ पंगराज प्रमाण प्रगट चढ़ियो 'प्रभपत्ती' पमंग गजां पाखरां जंगी हवदां समरीज पह 'अजमल' परताप प्रसिद्ध दौलत इण पाई पह कुमार पग पनि 'प्रभो' खांचे मुख अंचळ पह दाखल पोसाक प्रनै जवहर घर पाए । पह बारट पूछियो बहसि 'गोरख' जद बोल पह वजीर पूधिया धरा थंमरण बुधधारी पांच हजारी पांच घड़ी जडि हणे जर्मघर । पूछ व्यास पवित्र ताम महाराज 'प्रजरण' तण पेखि रोस पतिसाह माळ मोतियो समप्प प्रगट खांप खांप रा एम दौड़ बड रावत प्रजळे उर पतिसाह वाह ौरिस प्रति दाझे पुहव तांम पूछियौ करमसीयौत कमज बां भरै गळबांह हयां जमदाढ़ झळाहळ बहै घमक साबळां वह झाटक बीजूजळ वहसि 'करण' बोलियो सुतण 'राजड़' तिण मौसर १६ ५ २० २९६ ७ ३८२ २८४ ७ ३५७ २२४ ७ २०४ १४६ ६ १०० ३४६ ७ ५५५ ११२ ६ ३२२ ६ २४३ ७ ३८९ २९६ १२ ३०१ ७ ३९२ १२६ ६ ३६१ ३७ ६ २६ ७० ६ १२० २६४ ७ ३७६ ७ ४ १४ २८३ ७ ३५३ Page #425 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० प्रकरण पद्यांक २६७ ७ ३८४ २८६ ७ ३६७ २३६ ७ २६४ १५ ५ १० २३ ५ २८ ३०४ ७ ३६६ २८५ ७ ३५६ २६४ ७ ३७७ २६५ ७ ३८० १५२ ७ १११ २९५ ७ ३७८ ६७ ६ २४४ [ ३७ ] छंदनाम , प्रथम पंक्ति छप्पय, छप्प - बहसि ताम बोलियो बिन्ह चहुवारण बहादर (कवित्त) बहसि 'हठी' बोलियो उरस छिबतो 'जोगावत' बहुत नजीक बुलाय कहै इम साह हेत कर बाज राज नत बेव करै नटराज तरणी कळ बारहट नरहर बगसि एक लख प्रथम उजागर बिहुं बंधव विरवैत अनड़ धांधल अतुळीबळ भड़ जीता भाराथ एण विध 'अजमल' धाळा भड़ बोले 'हरभाण' भांण पौरस भाळाहळ 'भदौ' 'दलो' कुळ भांरण 'कलौ' संग्राम अणंकळ भाटी पूछ भूप छका उद-भांण वर छजि भाटी 'रुघौ' भुजाळ खाग झाटी कळि खाटी भाव हाय रंग भेद काम कट्टाच्छ उघट ऋत भोजहरां नाहरौ 'मोकमल' भड़ भारमलोतां मंगळ क्रोध महमंद साह प्रजळे दळ सब्बळ मंगळ धमळ उदमाद वजे बाजंत्र जिण वेळा मंगळीक नंदि महा बजै नौबति जिण वेळा मतवाळी इम मुणे कमंध दारण 'कुसळावत' : मदतळ डांणा मसत झर झरणा गिर नीझर महमंद रमणा मांहि दिली जाहर दरबारां महमांनी सझि 'अमर' जुगति करि सुपह जिमाए महाराजा 'अजमाल' कर राजस अधकारै . मुगळ निजामन मुलक दखण सब मुलक दबाया । मुहर भूप पित मुहर गुमर घर कुमर 'गुमांनो'. मेड़तियां सिर मौड़ 'सेर' बोले बळ सब्बळ मेवाड़ा मारवां वह साबळ वीजूजळ 'मोकळियौ' 'अभमाल' सझै दळ पूर सकाजा. रचि 'अवरंग' मुरादि गजां चढ़िया गह धारे रटै अवर कथ 'रयण' सूर नगार संपेखें रसां भीड़ रेसमां झूल घंट वीर झलारी: रहो अठ महाराज प्राप पाणंद उपाए रांण राज तिण वार जुगति धर वेष लग जदि राज तेज 'जसराज' सहस नवपति सहंसकर रोहाड़ो कर सरद मारि गिरद में मिलाए लळवळता पोगरा पाय खळहळता लंगर लाख प्रथम पनि लहै प्रादि 'राजसो' 'अखावत' २८७ ७ ३६४ २४० ७ २७३ ___३१ २८० ७ ३४६ २८६ ७ ३६८ २८६ ७ ३६१ १२२ १८ ५ १८ ३०३ ७ ३६६ २६६ ७ ३२४ ६८ ६ २४७ ३६ ६ २३० १४ ५ २७७ ७ ३४१ २७२ ७ ३३० ६ ४ १८ Page #426 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चंदनाम छप्पय, छप्प ( कवित्त ) प्रथम पंक्ति [ २८ ] विव as as कुळ वfरयांम साख पैतीस सकाजा चदे 'रण' तिणवार सार संसार एह रूति at दुजां त वifण वर्ष कवि वाणि सुजस वधं राज सुख विहद व हित संपत वधायक चळ काढ़ि गांसियां परां चाढ़िजे पंखाळा बस डेरां पह वसे थाट जालंधर थां ret सुणि सपती कहंर कोपियो भयंकर वाहि सेल खग वाहि करें 'भाऊ' कळिचाळी विखम तबल वाजतां गयंद गाजतां गरूरां विखम तबल वाजिया डंका सिंधव दवे दळ विखम दळां सझि 'विलंद' एम गूजर घर आए • विखम रूप वांकड़ों कहे कहड़ कळिचाळी faar faat जिरण वार धोम धिखि हुवौ मुरद्धर 'संभरि ' लोध तिण सम लूटि डिडवांणो लोधौ संसऋत है सुरभाव श्रादि पहिला उच्चारू कति पूजि साह ' तांभ विधवत छत्रपत्ती सजि मसलत सुरतांण प्रनै दीवांण श्रमीरां सझि 'जरण' हू सलाम तांम महहपे 'प्रभपत्ती' सदि श्राया सयद कहे इण विध हलकारां सभि दळ फळहळ सकळ गयंद चढ़ियों गह धारे सझि बाळक सिरपोस नांम किताब निबाबां सझि हौदां जंग सजे महारावतां मदग्गळ स सिलह करि ससत्र महाराजा राजा मिळि सतियां 'ग्राम' सहेत बाग वेदोगति दोधा समद पूर दळ सबळ हुम्रा देखें झाळाहळ सयां (ग) इम सजिया उडे वाका प्रणा समर हुआ संफळा जोध प्रवरंग 'जसा 'रां सम सरिता धरण सुजळ वह धरण पंथ वहीरां समें तेरा सुरतांण अंब दीवांण वणयो समें तेण सुरताण दिली फबि 'साह बहावर' समै जेण पतिसाह दुगम बुधि काळ दबायो समं जेण 'हसनली' चूक करि हणं चकत्यां 'सहंसी' बोल सूर डर उग वार 'खा' रो सांदू चारण सूर मोहर रावतां महाबळ - 'सांवत'रो सुरतांण तांम बहस संग तोले पृ० प्रकरण पद्यक ३८ ६ ३०२ ७ ૪૨ ६ ४८ ६ २६ ३६५ ५६ ५७ ३४७ ७ ५५७ २७६ ७ ३४० २३८ ७ . २६६ ३१ ६ १५ ८ २१ G २७० ७ ३७६ ३६ ६ २४ ६५ ६ २३६ १६६ ७ १७२ २७५ ३३८ ११२ ६ ३२१ १०० ६ २५० ६१ ८७ १३४ ७ १८ ५० ६ ६० ६१ ६ ८६ ६२ ६ ८५ ४ ४ ३५ ६ २३६ २६५ 67 १३ ५ ५ ६५ ६ २४० ६६ ६ ११६ २६ ६ १० १५ ५ १७ ११ ५ १ ५५ ६ ७३ ७६ ६. १३७ Y ६ २३७ २६७ ७ ३८३ १७ ३२ ६ २८६ ७ ३६० Page #427 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ३६ 1 छंदनाम - प्रथम पंक्ति पृ० प्रकरण पद्यांक छप्पय, छप्पै साफ पाक करि सुजळ मात कहि कहि महमाई २६६ ७ ३१६ (कवित्त) सात हजारां सहित मारि गिरधरा बहावर २३८ ७ २६ साथ मंत्री साझिया निडर दिल फिकर न धारे २३६ ७ २७१ साह ताम समसेर जड़त जवहरां जमंघर सिरै इता अवसांण बहल मो बाधि भगत बळ ३०३ ७ ३६७ सिरै भड़ां नव सहस जो (ध) 'रैणायल' जूटे . २६ ६ ११ सिसु उथापि इकसाह साह सिसु अवर सथप्पै । सीसा भार सतोल भार बांणां गाडा भर २६६ ७ ३१८ सुजि डीडवाणां संभरि सहित बहु मुलक सकाजा ६० ६ ८३ सुजि बाळक पतिसाह माफ करि खून मनाव सुणि अनि भड़ कथ सुकवि काम प्रावण नीमण कर २८ ६ ८ सुणि इम कहियो सुकवि सूर नाथावत 'सूजै' सुणि कथ इम 'जैसाह' अन उमराव इकोसां ११३ ६ ३२४ सुणि 'रांमौ' सबळ रौ एम बोलियौ अडीखंभ २८५ ७ ३५८ सुणे सयद ऊससे अडर वाहर पुर वाळा सुतण 'नाथ' खेतसी वदै सांदू खग वाहण ३०० ७ ३६१ सुत स्याबास सुपह पांन दीधा निजपणे ___६६ ६ २४८ सूंड नाग सांमळा झोक प्रांमळा झपेटां २७१ ७ ३२६ सूरज हिंदवांण रौ गाढ़ तोल रौ गिरवह २०० ७ १८७ . 'सूर' सुतण तिण समै 'हठी' बोलियौ झळाहळ २६६ ७ ३८१ सेल जड़े लोहथां 'जसो' पाड़े जरदतां २० ५ २२ सैद मुगळ साजतां अभी 'महमंद' बंचाए ६३ ६ २३५ सोनिंग दुरंग सकाज हणे मुगळांण हजारां हसत जयारां हले खून करता खंधारां २७२ ७ ३३१ हुतां राग होकबा बहूं पाए छत्रपत्ती ५८ ६ ७६ हुनर बंधा हुनर घणी तिण दिन मंहगाई ३४८ ७ ५५८ हुय मुजरौ रावतां होय हाका पड सद्दां ३४६ ७ ५६१ हुय हूकळ कळहळां हले दळ प्रघळ जळाहळ २७६ ७ ३३६ अधिक राजस छक प्रथा है. २२६ ७. २२६ 'प्रभौ' जयचंद जेम प्राजा २२६ ७ २२७ प्राज 'अभमल' भूप एहो २२८ ७ २२३ उछब मिळ त्रिय जूथ पाए २२७ ७ २१५ उरस छिबतौ भूप प्राए २२८ ७ २२१ एंम गढ़ निज प्रोळ पावै २२७ ७ २१८ जस विरद सुणि दुरंग जरा ... २२५ ७ २०६ बंग Page #428 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४० ] छंदनाम दंग २२७ ७ प्रथम पंक्ति पृ० प्रकरण पब जावसी नह जुगां जाता २२६७ २२५ जीत दळ सझि हले राजा २२५ ७ २०५ जोवतां हिंदवणां जोप २२८ ७ २२४ थटे प्रायौ जत थंडे २२५७ २०८ थाट पति मेवाड़ थांण : २२६ ७ २११ दळां गहमह कीध डंबर २२७ ७ दावागर करतास दावा २२५ ७ द्रव्य रूप भराइ दीधौ २२७ ७ धरे तारक द्रब्य धारां नवल रंग उछाह नेहा २२६ ७ २२८ भगा पौरस मांण भागो २२५ ७ २०७ भडॉ मंत्रियां जूथ भारा २२८ ७ २२२ लड़े इम नागैर लीधौ २२६ ७ २१३ विछायत समियान वरिणयां २२८ ७ २२० विदरण पहल प्रयाफ वागा २२६ ७ २१२ सझे अचड़ा दळां सवायौ २२६ ७ २१४ सुणे रूपाँ दरौं सत्था २२६ ७ २१० सुणे वयणे इम सकाजा २२६ ७ . २२६ ऐसा गढ़ जोधारण और सहर का दरसाव १७० से १६१ तक ७ ऐसी विध पंडत राज १६३ से १६५ तक ७ ऐसी भाँति से खटि भाखा २०३ से २१६ तक ७ जिस बखत स्त्री महाराज २१६ से २२४ तक ७ जमीन के ऊपर परवरदिगार का २४३ से २४५ तक ७ . जिस बखत सिर विलंदखाँ ३५१ से ३५५ तक ७ अठठ अटाळी भार प्रति २३० ७ २३४ अति प्रकास गति भेद प्रति १५१ ४ १०८ अनुज नमे तदि अनजे ३०५ ७ ४०१ अमर प्रवाड़ा एण विध असि सिरणव गयंद अथ ___२४ प्रस्ट अंग राजस अडिग ६३ ६ २३४ प्रातस झळ पैदळ अधिक २३१. ७ २४० इम खट रित करि उछब २३०. ७ २३१ इम दत खग बहु करि प्रचड़ .. २४ ५ २६ इम निस विति पाणंदमै १५४ ७ ११५ इम पंच भाखा उच्चरे १९८ ७ १८२ दवावंत दूहा (दोहा) Page #429 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [४१ ) खंदनाम हा (दोहा) प० प्रकरण पद्यांक १२९ ७२ १५३ ७ ११४ २३१ ७ २३८ २३१ ७ २३६ १५४ ७ ११७ २०४ ७ १६६ २३० ७ २३३ १५४ ७ ११६ ११ ४ २५ २३ ५ २७ २३२ ७ २४६ ५२ ६ ६४ ५४ प्रथम पंक्ति इम विध विध 'अभमाल' से उच्छब हास विलास प्रति करि तयार हाजर किया करि पोसाक ससत्र कसि करि वंदरण सूरिज कमंध कुरब रोक पाए करें कूच नगारा वज्जिया खट वरनां ताळा खुलै गज अस अवि नागोर गढ़ गांम पाठ बारह गयंद चत्रगज सांसरण दूरण चत्र चौसर सिर हुंता चमर मग सास्तर कहिया जिता जनमे राम प्रजौधिया जुगति च्यार जुग च्यार जंत्र ने चाकर जोधाण रा झळहळ साजा गज भिड़ज तखि झूलै जरतारियां तदि मसलति सझि तेडियो तप वधियौ 'प्रभमाल' तणौ ताल प्रस्ट द्वादस तवन दवाबैत मझि दाखियो नमे कदम्मां तदि निजर पांण तपोबळ बयळपति पाव घड़ी जोजन परा पुत्र दोय गजपति' रै प्रथम 'प्रभपति' पूछियो बह जूटां कठठेस बह बहु राजस सुखदान बहु मांन सप्त सुर प्रांम मुर मिळिया वळजोधांण मझि मौहरि डोरी रेसमी लग कलियांण विहंग लग लाल वदन चख लाल वज भास्वा मुरघर विमळ १५१ ७ १०७ १७० ७ १६५ २३१ ७ २३७ २३२ ७ २४१ ३०५ ७ ४०० १५१ ७ १०६ २२६ ७ २३० ३०५ ७ ४०३ १० ४ २३ २३२ ७ २४२ १० ४ २२ ३०५ ६ ४.४ २३० ७ २३५ १० ४ २१ १५१ ७ १०५ २३० ७ २३२ २३२ ७ २४२ १५३ ७ ११३ १६६ ७ १८६ १९८ ७ १८३ . Page #430 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम चूहा (दोहा) पृ० प्रकरण पक्षांक २३२ ७ २४ १२२ ७ ३५३ ३०५ ७ ४०२ १५१ ७ १०६ २३१ ७ २३६ १७० ७ १६४ १५४ ७ ११८ २३२ ७ २४५ १६७ ७ १५४ १६२ ७ १४१ १५६ ७ १२३ नाराच १६५ ७ १४९ [ २ ] प्रथम पंक्ति सति पूजि 'प्रभमल' सुपह सझिबळ महमंद साहरा सुकवि 'मान' 'गोकल' सुकवि सेनापति दूजो सगह सो प्रवीण गायण सकत सोधाखांनां वेल साझ सब हिंदू राजा सिरै हाका मासीसा हुदै हाल कळोहळ बह हुतां प्ररपोट वींछिया उदार पाय पंख पंकजं अनंग बांए लाजि जाइ ईख नैण अंजणं अनट्ट जे नखा प्रवाच्य सूरमंस री नरा अनेक जोध मंत्र प्राय वंदवै वळावळा अराध वीर मंत्र एक साधनं सधोतरा इसौ समाज राज ऊंच दीपियो नीरदरै उरस रूप में उदार राजए उरोजयं करत कनक काम जोति भांण में जसं करत कुंकमं तिलक्क पाणि राजप्रोहितं करत केक चित्र काम रूप भूप रंग रा. करी तुरी चित्रम कळि द्वार द्वार डंबरं कळा बतीस पोस काम जोति तास यौँ जगे कुचं अलक्क छूटि केस वेस जे प्रभा वणी खिरोद कन्न खिनखास धारियं धुजबरं खले बजार हाट खूटि छज्जयं विछायत चुनी सुचंग रूप चै कणस नील क्रांमती छजं चित्रं कटी-स छीण छुध्र घट छाजयं छमासहं मसत्तछाक चाचरै नरं चढ़े। जवाहरं परक्ख जोत के जवाहरी कर जिगंन ज्वाळ होम ज्वाप ग्रहत्तं व्रतं अप डगंस बेड़ियां डहै जंझोर भार जुलां उधूत भूत सा अनेक जोम काळ जेहड़ा दिपंत एम राज द्वार राज नग्र राजमें दुजिद वेद मंत्र दाखि प्रासिवाद उच्चरे दुवार है सरब्ब वास जं बसेख दुज्जयं दुहूं विसाळ चंपडाळ प्रोपयं भुजा इसी .n८ ८ ८ ८ १३३ १५८ ७ १२९ G १५७ १२८ १६५ १५० १२१ १६३ १४४ १६८ ७ १५६ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ ८ १६० १५५ ७ १२० १६९ ७ १६० १६६ ७ १६१ १६६ ७ ५३ ६ ६६ १५७ ७ १२७ १६४ ७ १४६ G. . Page #431 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाराच पृ० प्रकरण पद्यांक १६० ७ १३७ १५८ ७ १३० .१६७ ७ १५६ १५७ १४७ १३. १६० ७ १६८ ७ १५८ १५६ ७ १३४ १६१ ७ १३८ , १५६ ७ १३२ १५४ ७ ११६ १५५ ७ १२२ छंदनाम . प्रथम पंक्ति निवारण त्री भरत नीर रूप कुंभ हेमरा पढ़त जोतको पुरांण तारकेस के तवं परी चौगणास रूप इंद्र लोक इंदरां पवन्नि सांमुहै पवंग पासवार धारब पाए सुचंग स्यांम पाट पै कनक नपरं प्रवीण कंकिणीस पौच गज्जरा ज नौग्रही रंग अनेक रंगरेज प्राबदार अंबरं राजे मुखं समाधि रूप ज्योति चंद्रहूं जहीं वछर केतलं सवागि फेरकं फरावतं बढ़ाल सेल के वरणाय, कोध प्रोपमैकळा वणे भुजंग रूप वेणि मंग सीस मोतियं विनोदान वागवांन फूलवांन केवळं सजंत के चिकन्न साज सुंदरं ससोभरा सझंत ब्रह्मके सिनांन केक त्रप्पणं कर सनांन के खत्री सझंत ते करंत तरपरणं सनांन वान के सजंत ते बईस उग्रता समुद्रिका छलास छाप जो जड़ाव संगरा सरीस कंठ सोभयं मुकत माळ नम्मळी सरीस मोतियां सधार कोर भाल केसरी सरूप पिड कस्स सोभ सुंदरं सुसुब्भर ससोभ भूखणं तं वणे जड़ाव बामरा सिधं निधं अठं नवं स सच्चयं घरं घर सुकीर नासिका सरूप वेस रोत राजिय नीसारणी प्रेतीलिखी प्रजाजती सो भली विचारी कल्ह तुझंदा पित्र सो 'प्रजमाल' उपंदा तूं दा रावळ व्याहित रंक राव रचंदा तूझ गुणंदां पार ना ज्या रेण कणंदा तेंडा उन्नूदा तुझक दूरणे दनसंदा । दीपंदा 'प्रभमल' दुडंच तूं सख तेरंदा में नांही चीनी फरौस मैं हफत-हजारी रज्जा तं बड्डा सबै सिरपोस रजंदा लिख भेजे खतका जबाब करि रोस अकारी होय बंदा सो ऊबर खळ होय मरंदा मीसाणी हंसगति अंग संनिपात ज्यहीं हुय पाळस प्रारीं पहर रहै घर अंदर १४८ १४५ १६१ ७ १४० १६६ ७ १५२ १६२ ७ १४२ १५७ ७ १२६ १६२ ७ १४३ ३५७ ७ ५६८ २०० ७ १६० २०० ७ १८६ २०२ ७ १६४ २०१ ७ १९१ २०० ७ १६२ ३५७ ७ ५६८ २०० ७ १८ ३५६ ७ ५६७ २०२ ७ १९३ GG ८८ 6666 ७२ ६ १२६ Page #432 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम नीसांणी हंसगति पद्धरी [ ४४ ] प्रथम पंक्ति 'अजमल' तेज दिलेसां ऊपरि बरखं प्रोखम भांग बिहंतर 'प्रजमल' विदा कियो जिए श्रीसरि धरि दळ पुर 'भौ' पाटोधर मिळिया प्रपतित 'श्रमल' प्रसपति कुरब किया अ ( प ) रंपर छांवळ घाले महाराजा घूंघट घाले तांम दिलोधर मोहकम मारि लिया दिल्ली मझि गिणिया नहीं दिलेस्वर गुम्मर सदिळ पूर आए साहिजादा धोखळ धोम वध दिल्लीधर अंग तेजवंत सोभा अनंग प्रति कड़ा जूड़ पैदल अनंत प्रति कोक कला भोगी अपार प्रति वर्ष क्रोत दोरग्घ प्रव 'अमरेस' सधरण गोळा श्रपार श्रनि धरणा कोध जुध सु छळि श्राप sai मांहि मिळे 'जैसाह' प्राथ प्रसि खडग सकति तोरण उदार ग्रहमंद पुरहंस नज्जवीक प्राय धापरा लूण परताप अन ऊजळ कुमार उपजं उदार ७५ ६ ३ वर अमीर भूपजां प्रागळि करें सिलांम दहूं जोड़े कर ७३ इम पतिसाह नमाय लोध इळ एहा भूप 'अजीत' उजगार खिल्बति करें न खिलबति खांने तसबी खांने जूं न तंतर जिग प्रवरंग तथा दळ जीता श्रातम सकति वजाई असमर जीता मौजदीन दळ जीता कैद करे तकबीर करहर भळहळ रती भुजां भर झल्ले हल्ले उतन नरेस 'जसाहर' देखि देखि 'श्रभैमल' सेज जिक दिन श्रालम राह कथे कथ उच्चर पृ० प्रकररण पद्यांक ७० ७० ७३ ६ १२२ தீ ६ ७१ ६ १२४ ६ १३० ७३ ६ १२८ ७५ ६ १३२ १२६ १२१ ७४ ६ १२० ११७ ७६ ६ १३५ ७५ ६ १३३ ७१ ६ १२३ १३४ ११६ ६ ४३ ६ ७२ ६ १२७ १२ १३२ ७ ३५६ ७ ५७८ ४३ ६ ૪૧ ४५ ६ ४६ ६ ३४६ ६ ३३७ ११६ ६ ३३३ ४६ ६ ५० ३६३ ७ ५६२ ३३६ ३६ १३१ Page #433 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रथम पंक्ति छेदनाम पद्धरी पृ० प्रकरण पद्यांक ११४ ६ ३२६ : ३६१ ७ ५८४ ३५८ ७ ५७२ ३५८ ७ ५७४ १३० ७ ७ ११४ ६ ३२८ ११३ ६ ३२५ ११८ ६ ३४२ ४३ ६ ४० ३६० ७ ५८३ १२० ६ ३५० उडत धर्मस नौबति अग्राज उडि गरद धोम चढ़ि पासमारण उण वार तणो दळबळ अपार उणं बार फबै 'प्रभमाल' एम एकणी नगार थाट प्रेम प्रोपियो छत्र जगमग उदार करि करि नौछावरि द्रब्ब केक करि को विदा कीधा सक्रोध कहि हस्त चिहन वारिणक प्रकार काळरा कुटंबी रूप काळ किलमांण मार बहु गरद कोध गढ़ चढ़े नाळ दगऊं गरोठ गुरजणाहूंत अति विनय ग्यांन धण छपन कोडि धुजि घाट चालंत इसा गोळा अचूक चित सुद्धि रासि ग्रह इम चवेस चौगड़द घांम रज डमर चाक छक बाध नोख नोधारण छात नाणंत कळा बहतरि सुजांग डाकां जिम अहिफरण चोट दोध तदि उडि अरण धज बजि तबल्ल तदि निसा च्यार घटिका वितीस तपवंत भूप निज धाम तत्र तपवंत हुवै 'अजमल' सुतन्न तपवर्ष भाण उद्योत तेम तुलबाद बरोबर राज तेज तेजमें रूप बहु पुत्र ताच थट नाथ फब बळ पूर थाट दहवांण 'प्रजण' तद बचन दीध दूसरौ डंका वाजे दमाम दे कुरब भाल बह खांन दोष दोहूं प्रहां जोडि फळ किसूं दाखि धज चमर छत्र कर रेख धन्न घर थंभ बरोबर तुजकधार धरहरै सुजळ मद गयंद धार ११८ ६ ३४१ ३६२ ७ ५८६ ३६० ७ ५८२ ' २६ ७ ४७ ६ ३ ५२ ११७ ६ ३३६ ४३ ६ ४२ ११७ ६ ३३८ ३५६ ७ ५७६ ११६ ६ ३४६ ४४ ६.४३ ११७ ६ ३४० ३६२ ७ ५८७ Page #434 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम प्रद्धरी पृ० प्रकरण पद्यांक ३५६ ७ ५७६ ११६ ६ ३४५ ३५६ ७ ५७७ ११६ ६ ३४७ ४५ ६ ४८ १३० ७६ १३१ ७ १२६ ७ ३५८ ७ ५७३ ३६२ ७ ५६० १२० ६ ३५१ ११८ ६ ३४३ [ ४६ ] प्रथम पंक्ति धरि नवबति चढ़ि नीसांण धार धारे छक 'मोहण' हर सुधांम धुजि चढ़े गजां हथनाळ धारि नव खंड सिरै जुध करण नाम नप जोग असी चत्र अडिग नेम पग मंडा जरकसी वरिण अपार । पह तिळक कोध कुंकम सु पाणि पौसाक ऊंच जवहर अपार प्रम अंस सूर दाता प्रमाण 'बखतेस' 'लखरण' जिम महावीर बलि जुदौ जुदौ गुण कहि वताय बाजंतां त्रंबागळ डाक बाधि मिळ उडै अरघ घट रंग माट मुरधरा मौहर वळ सझि अमाप रचि मीन रासि सनि कर राह लालंबर लोयण वदन लाल वडवडा खांन भूपति बुलाय वरिणयो गढ़ 'अम्मर' सूरवीर वरदाय पढ़त गुण कवि वखांणि वहतां दळ उजड़ हुवे वाट वादळां सिलह पोसां वरणाव वस्चक सक्रांत दिन खट वितीस सझियो जैतारण जुध सधीर सहनांम मुरसला रंग सवाद साबळ झलि हालै पह सधीर सिर नमे हजारां बंध साथ सिरपाव बगसि बह सिलह साज सुणि खत जबाब इम 'प्रभसाह' सुग्रही अने के इन्द्र सार सुत 'कुसळ' 'ऊद' हरवळ सकाज सोळे से साफ चववीस तास सोवन जवाहर अति सरूप सोहियो 'अभौ' इण विध सकाज स्री गणपति सरसति प्रणम साधि स्री भगवत गीता हित सधार ३५७ ७ ५७१ ११४ ६ ३२६ १२० ६ ३४८ ११५ ६ ३३० ३६१ ७ ५८६ ३६० ७ ५८० ३६० ७ ५८१ ११६ ६ ३४४ ३५७ ७ ५७० १३२ ७ १४ Page #435 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ४७ ] - पृ० प्रकरण पद्यांक ...३५८ ७ ५७५ ११५ ६ ३३२ ११४ ६ ३२७ ३६२ ७ ५८९ ३६१ ७ ५६५ ३१५ ७ ४३६ ३३६ ७ ५२८ ३२१ ७ ४६० .३१५ ७ ४३७ ३४३ ७ ५४५ ३०८ ७ ४१५ ३१६ ७ ४४१ ३२८ ७ ४८६ - ३२७ ७ ४२५ .३३८ ७ ५२४ छंदनाम प्रथम पंक्ति पद्धरी हाथियां मेघ डंबर हबद्द हालंत इसा उजबक हरोळ हैदर कुळी वळवळ गहीर है नास सास धुवि वीर हाक हैमरां दादरां कळळ होय बेनखरी (प्रक्षी) अंग झकबोळ रुधर हुय प्राऊं अंग तपसी सुख कारण प्राप पड़ताळीस सहंस प्रसवारी अचिरज किसौ पह अधिकाई अणभंग लागां लोहां प्राब प्रणभंग सिर जोध करणावत अरण नयण चख रीस उपाटी अरि करन' तन हंस उडाऊं परि हति फूल धार झेले प्रति प्रलप प्राव जिण हूंत न होई प्रसटखी पँख सहसह प्राव प्रस दळ मुग्गळ ओर प्रथागा असुर तणौ दळ बळ ऊखेलूं प्रागम सुरण प्रापरी प्रवाई आपतरणा खग तेज अप्रबळ प्रापमुहरि हूँ लडूं अचूक प्रासंग कर खाग अछाजे इण विध करूं कहै 'प्रभपत्तो' - इण विध हुँदै टेक उतारूं • इण हिज विध कथ कहै उ चारण इम बोले जोधा छक ऊजळ इम भड़ उरड़ देखि छक ऊजळ इम रिख सिखहूँ ताम उचारा इम रिण हूंत अचेत उठावं इम सूरां पति धरम इरादा इम हरवळ दळ डोहि प्रथागां इसौ तप प्रापरौ 'प्रजावत' इसड़ौ 'विलंद' मर काई भाज • इसड़ौ "विलंब' संबाहै पाजा इसी रीत सिध' प्रादि अनादा ३२५ ७ ४७४ ३३६ ७ ५१६ ३२० ७ ४५६ ३२० ७ ४५४ ३२४ ७ ४७० ३३६ ७ ५१८ ३३७ ७ ५२२ ३३७ ७ ५२१ .३२६ ७ ५६२ ३३२ ७ ५०१ ३३४ ७ ५११ ३३६ ७ ५२७ ३४३ ७ ५४४ ३०७ ७ ४०९ ३२० ७ ४५७ ३२२ ७ ४६३ - ३२२ ७ ४६२ ३४३ ७ ५४२ Page #436 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० प्रकरण पद्यांक ३३२ ७ ५०२ ३०६ ७ ४०८ ३१८ ७ ४४६ ३३५ ७ ५१४ ३२२ ७ ४६५ ३३५ ७ ५१५ ३१३ ७ ४३० ४५६ ३२४ ७ ४७२ ३१४ ७ ४३५ ३२७ ७ ४८४ ३२६ ७ ४६० ३४२ ७ ५४१ ३४० ५३१ [ ४८ ] छंदनाम प्रथम पंक्ति बेप्रखरी (अक्षरी) उचरं पंचां भड़ा अभंगां उडती झाळां लोपि प्रराबा उरण मौसर पह लूण उजाळी उरण धार री कमंध 'प्रजावत' उभ कंठौ पीलू नह प्रासी उरस छबै रसवीर उछाहां उबर संकर सकति प्ररोधा एक निजाम तेवड़े पारण प्रोपम नयण धिखंतां पारण । मोरे तुरंग थाट अविपाट कंमध 'पतावत' मत करार कमध 'हठी' सुत रूप कराळो करूं झाट झळहळ केवांणां कर कळाप जीवबा कारण कळहणि सूर सामरै कारण कहै दुहुं प्रोरे केकाणी कहै पिरोहित राज अणकळ कहै 'भीम' सुत दारण 'केहर' किलम सिलह बंध खांडू जसकर कीधी भरज 'विजे' जोड़े कर कीरत सारी जगत कहेसी खग झट 'विलँद' थटा परि खेलू खाग पछट काढू रट खालां खळ मेवास धड़क सह खासी . खांन प्रवर दहसत सब खावै गज घड़ तुरंग हाकळं महतंत गुण कवि इकठा इक लग गावं प्रहै जंगी 'हवदा प्रवगाढ़ा . घरण ठेलू मुग्गळ दळ घेरा घण ब्रद धार कहै प्रबंधी घड़ घण वद पूर बारहठ घररौ घुमर खळा विहंडि खग घाटा घुमर प्रसि झोके सत्र घाऊं चवै एह कुळ सुजळ चढ़ावां . चित मो उछब प्रेण विध चाहूं चौरंग जिण गिळियां चौडावत G८ ८ ८८८८८८८८ ४८१ ३१७ ७ ४४५ ३२६ ७ ५६१ ३२६ ७ ५६० ३१६ ७ ४५० ५५२ ३३० ७ ४६४ ३२६ ७ ३२३ २ ४६६ ३१६ ७ ४५३ ३२८ ७ ४८७ ३३६ ७. ५१६ ३४५ ५५१ ३०६ ७ ४१६ ३१३ ७ ४३१ ३१७ ७ ४४३ ३३१ ७ ४६७ ३२५ 9999 ३१२ ७ ४२८ ३४४ ७ ५४६ ३३१ ७ ५.० Page #437 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० प्रकरण पद्यांक ३४१ ७ ५३७ ३३० ७ ५६३ ३४२ ७ ५३६ ३३२ ७ ५०३ ३४२ ७ ५४० ४७८ ३३३ ३३१ ७ ४९९ ५०५ [ ४६ ] छंदनाम प्रथम पंक्ति बेप्रखरी (वेप्रक्षरी) छोटा दिनां बेस वप छोटी जगमग जोति उदोत जगास जड़कू सल जैत खंभ जेहें जदि ख खुधा दहूं मिट जावै जरदैतां प्रोरे असि जाऊं जरा काळ कोयक दिन जीते। जवन हरोळ विदरि मधि जावां जवन हरोळ विहंडि मधि जाऊं झळहळ खेड़ि विवाणां झोकां झाडू खळा सिलहबंध झळ हळ झेलूं लोह अनेक झलाऊं झेलं लोह अनेक झिलाऊं तिल हिक प्रमख कपाट सतूट तोलें खाग गयण भुज तोल तौ पोहचूं लग नील पताखा थाट दिलेस भार भुज थंभियो थाट नाथ होसी दहुँ थाटां थाटेसरी प्रकास मुनि थट दळ बळ द्रबब दान खग दावं दारण वाघ रूप दरसावत दुगम जवन घडि कामणि दोळी दुहवे कहै एण विध दारण धख कथ एणहीज विध धारूं धख करि फूल प्रणी असि धारूं धड़ (छू) मुगळ पह चख धौळी धन कुळ वाट मेड़ता धरती धर हिंदू दूजां रजधांनी धसे हरवळां चौड़े घाई धार पग सामा सुणि त्रंब धुनि नर सुर अहि उण जोड़ न कोई नरिद सिखर हर पूधि निवाहर नेजा खासा तोग नवब्बति पड़ि चुख चुख हुय घरां प्रपच्छर १, ११,११,१११ १२ १ ४४६ ३२४ ७ ३०७ ७ ३४१ ७ ३१८ ४४८ .३१७ ७ ३१६ ७ ४५२ ३२३ ७ ४६७ ३३६ ७ ५२४ ३१६ ७ ४५१ ३१२ ७ ४२७ , , ८ ८ ३२७ ७ ४८३ ३१४ ७ ४३४ ३१८ ७ ४४७ ८ ३२५ - ७ ४७७ ३२१ ७ ४५८ ३०६ ७ ४१६ ३३८ ७ ५२६ ३४४ ७ ५४७ ३३३ ७ ५०७ ३०६ ७ ४०६ ३१४७ ४३३ Page #438 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प० प्रकरण पद्यांक ३११ ७ ४२५ ३२३ ७ ४६८ ३३३ ७ ५०६ ३४० ७ ५३३ ३०८ ७ ४१३ । ३२० ७ ४५५ ३३६ ७ ५१७ ३२५ ७ ४७६ ३४२ ७ ५३८ ३४५ ७ ५५३ ३२३ ७ ४६६ ३०६ ७ ४१७ ३४३ ७ [ ५० ] छंदनाम प्रथम पंक्ति बेप्रखरी(अक्षरी) पड़ि रिण रथ चढ़ि सुरग पधार पह सांभर लगि समिंद पाजा पाडि घड़ा मुगळांण पठाणां प्रथम कर भासण पदमासण प्रफूलत वदन होय 'अजमल' पह बहस पाप सिंघ जिम बोल वृतो किसू निबाब तरणौ बळ बोळ करे असभर रत बोहां भमर गुफा मझि रमै तजै भ्रम भाळ जोम पूर इण भत्ती महि हम तम खमसी प्रतिमांमां मारू 'भैरव' सुतन महाबळ मेड़तिया बोलिया महाबळ रंग मट फूट घट करि रवदाळां रचतां कठण जुगत अंतराम रहूं जेणिहूँ करूं वाधि रिण रवि रथ यांभि विलोक राजा राज मोहरि उपति रघुराई 'लाल' ताम बोले चख लाला लाल नयण अंबर सिर लगती 'लाल' सुतण 'मोको' अजरायल लाहां भड़ प्रौझड़ा लगावां लोही ताळ सिलह बंध लोभ वरिण होळिका थंभ जुध वेरा बदै असुर गढ़ न दूं वरगां धदै 'किसन' 'पिथ' सुत कुळ वाटां वदै गुलाब' नेह प्रवरीरा वधि खळ थटा करूं झळ वेगां वरू अपछर चढ़ि कनक विवाणां बळे करूं रिण मंझि विमाहौ वाहि वहाय घणी विजूजळ विखम क्रिया विखमी साधन वक्र विढ़ता नारद संकर बवाण विसवामित्र बोलियो मनिवर विहंड खळां बह स्रोण वहांऊं 6 6 6 6 6 66 ५४३ ३०८ ३४५ ३०६ ७ ४०७ ३२७ ७ ४८२ ३२६ ३३४ ७ ५०६ ३३७ ७ ५२० ३२८ ७ ४८८ ३२८ ७ ४८६ 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 6 ३३४ ७ ५१० ३११ ७ ४२४ ३११ ७ ४२६ ३४० .७ ५३४ ३१० -७ ४२० ३३८ ७ ५२५ ३३० ७,४६५ Page #439 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५१ ] . पृ० प्रकरण पद्यांक ३१७ ७ ४४४ ३२४ ७ ४७१ ३३५ ७ ५१३ ३२२ ७ ४६४ ३४० ७ ५३२ ३४४ ७ ५४८ ३०७ ७ ४१० ४६१ ४०५ ३३५ ७ ५१३ ३३८ ७ ५२३ ३२१ ७ ३०६ ७ ३१० ७ ४२२ ३३४ ७ ५.०० १५३ ७ ११२ ६८ ६ ११४ ६९ ६ ११२ छंदनाम प्रथम पंक्ति बेप्रखरी (अक्षरी) वीजळ कळहळ धार विहारां वीर जकै ताबीन विचारी सांसद जळाबोळ वप सब्बळ साहू मंत्री मेळ (सी) सकाजा सिख सिध सूर कही समताई सिख हूँ रिख इम कहै सकाजा सिर 'विलंदेस' तणा घेसाहर सीत घांम दुख व्रखा सहाऐ सुपह जांणि प्रगट्यौ तेरह सख सुभड़ां पह खत्रवाट सिखावै सूर विलंद बढ़ता सुरतांणां स्त्री महाराज आप कुळ सूरिज 'हरियंद' 'भाऊ' सुतन हठाळो हरवळ वीच हाकलू हैमर विरखेक वांणिक एम विनोद 'प्रभमल' इत्र इसी विराज 'अ' जेरण वारां अपच्छं उमाही करं पाव के किलक्कै हकार कूरमं कमंधं खगां धार खूट जुड़े भूप जंग तई कुंभ तूटा तई सीस तूट तुरी वाग ताणं त्रुटै घाव तुंडं ध्रबै खाग धारूं पड़े पक्खराळा परी कंत पाव भंभारा भभक्क मारू फील मंता लगां लोह लुट वहै लोह वंका विना धू विहंडं सयहां संघारे .. TO ६७ ६ १०५ ६६ ६ १०४ - ६६ ६ १०२ ६६ ६ ६९ ६५ ६ ६७ . ६८ ६ ११७ Page #440 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम विराज x x वैताळ 6 6 x श्लोक 6 6 6 6 6 ११ । [ ५२ ] प्रथम पंक्ति पृ० प्रकरण पद्यांक सयहांरण सारां ६७ ६ १०६ सुतं सच्छळेसं ६७ ६ ११० हुवै जंग हौदां हुवै दिव्य देहा ६८ ६ ११३ हुवै लोह हत्थं ग्यांन ब्रह्म जस राज गुण अनुष्टुप प्रष्ट पद जुक्तं १९१ गजगमरिण प्रवासी '१६८ ७ जुगे अठ कठाणं १६७ ७ नृपतिरभसिंहश्च तंद्र मेवांबभा १६२ ७ १७० पंच दस मालनी छंद १६१ बोले चाली पाणं १९६ ७ १७४ रंगा नौ गय धमयं १६७ ७ १७६ सिधाणं च शिरोमणि १९२ ७ १६६ स्त्रीमनरेंद्र जमुना तव खङ्ग धारा *. १६६ ६६ ७ १७३ परि झंडनतें रिनसिंघ अन भुज दंडनि पानि प्रचंड रचे १९८ ७ १८४ पाला मुदफरखान २०२ ६ १९५ इम अचड़ां प्रणवाल १२७ ६ १६३ कवि उमरावां केक १२८ ६ ३६७ कुरी प्रचे हमार चाचर-चरु सुकाळ २१६ ७ २०२ जस ध्रम काज जगीस १२८ ६ ३३६ जोधाण जिणवार १२७ ६ ३६४ धरि हिंदवांणां ढाल १२८ ६ ३७० भूपति बाके भाह २०२ ७. १६६ वणि हरचंद जिम वार १२८ ६ ३६६ सांसण जूना सोय १२७ ६ ३६५ सुजि धर असि सिरपाव १२८ ६ ३६८ अजमाल सुरिणजे एह ७६ ६ १४७ अजमाल भूप प्रवास ६० ६ २२१ अजमाल सजि ऊच्छाह अण-भंग तप प्रण थाह ८४ ६ १८२ प्रतरेस छटि प्रवास १४८ ७ ९३ प्रति किमति हीर उदार १०७ ६. २६४ अति धरै धक प्रण भंग १०२ ६ २६६ सया सोरठा हणूंफाळ Page #441 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम हणूंफाळ पृ० प्रकरण पद्यांक ९० ६ २१८ ७८ ६ १४१ ८० ६ १५८ १०३ ६ २७० .१३८ ७ ३५ ७८ ६ १४२ १४६ ७ ८१ ८४ ६ १८३ . [ ५३ ] प्रथम पंक्ति अति रूप क्रांति उजास अनि कर कुरण इण भांति अनि करै कुण विरण प्राप अनि लोक संपति इंद प्रबनोस चंदण अंग अरु वैर तीजी गाय असलूफ रंग उजास असुरांण सीस उपाडि आगर गढ उण वार प्रागै जु दियौ छुडाय - प्रा मिटण न दूं अनादि सामूझि मग अकुळाइ प्रावंत पह 'प्रभमाल पावंत लोक अपार प्रावस धकै श्रमास इक साइयां के एह इक साह तखत उथापि इस मांहि एक अदाब इण वणे रूप प्रभंग इम पाप डेरा प्रोप इम खबर मुदफर प्राय इम चढे कवर अभंग इम चोपदार उदार इम जळे घण प्रागार - इम ठांम ठाम अगन्नि इम भूप सनमुख प्राय . इम वणे निज प्राथांण इळ कनक मोर उडाय इळ चढ़े पह उण बार उडत खग प्रसमारण उडि पड़े पाट दिवाळ उण नाम भड़ प्रखमाल' • उण वार परिण नर इंद्र उरण होज विध सुत अस्स असहर को ऊफांण ८२ ६ १६६ १०१ ६ २५७ १४३ ७ ६५ १४० ७ ४७ १०३ ६ २६७ ७६ ६ १५० ८४ ६ १७६ ८३ ६ १७२ १४६ ७ ८५ १०८ ६ ३०० १०२ ६ २६० २५१ aur 99 or ur or ur 9 or ur १०४ ६ २७८ १०४६ २७७ १४१ ७ ५५ १४६ ७ १०८ ६ २६९ १४६ ७ ८० १०१ ६ २५६ १०४ ६ २७५ ८८ ६ . २०६ १३५ ७ २१ १४५ ७ ७० १०३ ६ २७१ Page #442 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम हणूंफाळ | प्रथम पंक्ति श्रो 'बुध' बूंदी ईस कटहड़ों मंडप कराळ कथ श्री कीध करार [ ५४ ] कथ एम सुणि मचकूर कथ कहे एम कुण कथ ख खमां कहत करि कड़ा सोवन काज करि कनक छड़ियाँ केक करि जाजमां पर कीध करि तहस नहसां केक करि रजत कंचन केक कळ रंग घाट कुमाच किलंगी स तुरा केक काजिये इण विध कांम कीजिये फेर सकाज कुंभ सुपहरण की कुळ भांग विरद कहाय के जड़ित जवहर कांम कोतिल बह कांग खट छपर चंदण खाट खित नको जोतिस खूंच गजगांमणि सोळ सिंगार गज बोल चित्रह गात गढ़ लीध करि गजगाह गाजतां गयंद गंभीर गायरी नृत संगीत ग्रहि अमीर-स बेगार ग्रहणे साह गर घड़ पड़े स िघमसांण घण सोर जोर न घात चढ़ि एण विध चक्रवत्ति चळ चळे चवदह चाळ चालंत इम चतुरंग छक वंस पूर छतीस छ विच पुर छाडि पृ० प्रकरण पद्यांक ६१ ६ २२५ १०४ ६ २७६ ८७ ६ १६६ ७८ ६ १४० ८० ६ १५३ १४७७ ८७ १४४ ७ ७२ १३६ ७ ૪૪ १४२ ७ ६१ १०३ ६ २६८ १०५ ६ २८१ १०७ ६ २६५ १३७ ७ ३२ ७६ ६ १४५ ८६ ६ १६५ १४५ ७ ७६ ११० ६ ३१२ १३६ ७ २४ १३६ ७ ४२ १०३ ६ २७३ २३४ ७ २५७ ७ ७७ १४५ १३५ ७ २२ ८५ ६ १८६ ११० ६ ३१३ ६० ६ २१६ १०७ ६ २६३ ६ ८३ १७७ १०४ ६ २७४ १०६ ६ ३०४ १४७ ७ 5& ८६ ६ १६० १४० ७ ४६ ६२ ६ २३२ ८६ ६ २१२ Page #443 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५५ ] प्रथम पंक्ति छंदनाम हणूंफाळ १० प्रकरण पद्य ८० ६ १५७ १४२ ७ ६४ ८३ ६ १७५ जंग जीत तखतह जाय जगमगत इम वह जोति जदि सीख करि 'जैसाह जरतार कस गुलजार जर वफत झूल जमाज जवनेस दरगह जाय जवनेस नगर सजोस जसवळ हाक सजोर जिग होय दुज जप जाप जुध करे हणे जवनांण जुध सुणे इम जैसाह जैसाह हूंता जंग जैसाह हूंत जबाब जैसाह मिळे जियार जैसिंघ ध्रोह जणाय तदि हुमा हाजर ताम तनि जीव प्रसपति त्रास तब अरंज बगसी ताम तवि निजर दौलति ताम तूरांण मुलक तवंद ते लिखौ हित कथ तीख ते सुभड़ मंत्री ताम बंब गजर तूर वहाक त्रिय जूथ मिळि बह ताम दगि नाळ झाळ दुरंत दळ दिली कळळ दरोळ दळ साह जीपि दुबाह दहूं तंग रेसम दोध दिल्लीस मुनसफदार दिल्लीस रखत दरब्ब दुति सेल फळ दमकंत दुहुँ राह दिस कुळदीप द्रब रूप भरि दुझाल धन लूट कीधौ धांण धनवंत कोड़ियधज्ज १३७ ७ ३४ २३५ ७ २६१ १०६ ६ ३०७ २३३ ७ २४६ ८१ ६ १६२ १०६६ ३०८ ८५ ६ १८७ ८७ ६ २०० ८३ ६ १७४ ८८ ६ २०७ ७६ ६ १५१ ६० ६ २२२ ७६ ६ १४६ २३४ ७ २५६ ६१ ६ २२३ ६२ ६ २२६ ८७ ६ २०१ ८७ ६ १९८ १४० ७ ५० ८५ ६ १८६ १०६ ६ ३०५ २३५ ७ २५८ ८२ ६ १७० २३३ ७ २५० ६२ ६ २३१ १४१ ७ ५६ ११० ६ ३०६ १४२ ७ ६२ Page #444 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम हणू फाळ प्रथम पंक्ति धनि कमंध कुळ प्रवधेस घर दिली पड़ियौ धांस धर फरस जेम धरीस घर साह धोंकळ धींग धर साह लूटण धाव धर सिखर थरहर धांम [ ५६ ] धुगधुगी सोवन्न धार धुबि झाल झळहळ धोम धूजंत धर तन धीर नक्केल सुरंग नराट नक्a सिख भूषण नौख नग जड़ित सुजड़ नराज नग तुरंग घम घम नाळ नर यंद हालत नि नरियंद नजर नगाह नवछावस सनेह निज जोगणिपुर नाह निज नगर एम निहारि नूप गौड निज ताबीन पग मंड थांन अपार पड़ दिली तांम प्रकार पचरंग मौहरिय पेस पतिव्रता नेह अपार परि पूर लच्छि प्रताप परि लसं सारंग पीव पह कही वात प्रमाण यह सरण सेवत पाव पासार हट्ट प्रयोग पोसाक ऊंच अनोप पोसाक जवहर पूर पोसाक तास अपार प्रफूलंत वदन प्रवोत बजि स्वास नास ब्रहास बहु चित्र हट्ट बाजार बहता स उरस बिहंग पु० प्रकरण पद्यांक १११ ६ ३१८ १११ ६ ३१७ १४६ ७ ८२ ११० ६ ३११ १०२ ६.२६५ १०१ ६ २५५ १४४ ७ ७३ १०३ දි २७२ १०८ ६ ३०२ १३८ ७ ३७ १४२ ७ ६३ १०५ ६ २८२ २३३ ७ २४७ १३६ ७ ४३ १ ६ २२७ १४७ ७ ६० ૬૪ ६ १८१ १४४ ७ ७० ६१ ६ २२६ १४६ ७ ८३ १०८ ६ ३०१ १३८ ७ ३८ ६० ६ २१७ १०७ ६ २६२ १०२ ६ २६४ ७८ ६ १४३ ६१ ६ २२४ १०६ ६ २६० १३६ ७ २५ १३७ ७ ३३ ८६ ६ २१३ १४० ७ ५१ २३४ ७ २५२ १४१ ७ ५७ २५१ २३३ ७ Page #445 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम हणूंफाळ [ ५७ ] प्रथम पंक्ति वह माल सांमंद बीट बह लंगर धर चख बोळ बहसती खाग संबाहि बाजंत कळहळ बाज बाजे बजत बमेक बाजार लूटंत बजाज बावना चंदन बोह बसता भिड़बच बंध बिच हट्ट हट्ट बिछात far वाघ जिम वध बाब भजि गया विग गज भार भर मौल नीलक भार भरि कोम कसकत भार भळहळत चित्रत भाळ भांजिया जिके भुजाळ भिळे तिमर ढंकियौ भांण मंडि जाब ज्वाब मतंग मंत्री स सकवि समाज मझि छमा राज मंझारि महमाय पूजा मांन महाराज बिच रहमाण हिमाल बह पसमीर मिळ घाट लुटे अमीर मिळ मौजदीनह मारि मिळ लालकोट मंझार मुख उदत जांणि प्रमांत मुख बचन कहि सामाज मुख वचन वह मनुहारि मो मदत की हमेस यां हूंत होत उथाप रचि 'बुध' बूंदी राव रजतेस कनक रखत रवि जेम मधि सम रूप राखियो डगतो राज राखूं सुरहि रन धीर पृ० प्रकरण पद्यांक १०६ ६ २८८ १३६ ७ २६ १०२ ६ २६३ १३६ ७ ४६ ८ ६ २१५ १०५ ६ २८३ १०६ ६ २६१ १०५ ६ २८५ १४२ ७ ६० १०२ ६ २६१ १०२ ६ २६२ १०६ ६ २८६ १०१ ६ २५४ १३६ ७ २७ ११० ६ ३१० १०० ६ २५३ १४७ ७ ८६ १४८ ७ ६१ १४६ ७ ६६ १३६ ७ ६६ ८१ ६ १६० १०६ ६ २८७ १०५. ६ २८० ७६ ६ १४६ ८२ ६ १६५ ७ २६२ ८७ ६ १६७ ८७ ६ १६६ ८६ ६ १९२ ८६ ६ १६३ ८८ ६ २०६ ६ १८० २३५ ८४ २३४ ८२ ८२ ७ २५५ ६ १६८ १६६ Page #446 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ५८ ] छंदनाम हणूंफाळ पृ० प्रकरण पद्यांक १०६ ६ ३०६ १३८ ७ ३६ ८० ६ १५६ १४७ ७ ८८ प्रथम पंक्ति रघुतपत बांण सधार रेसम्म सांमळ रंग लख दोय दळ हम लार लख लोक गहमह लार लसणिया नील झळक्क लहीस कोर हुलास लूटे न ग्रेह अलीण बड वडा गढ़ बरियांम वड़ वडा भड़ विकराळ वणि एम छबि विसतार वणि मही-मुरतव वाग वणि रतन होदा वाधि वर तिलक कोज वार घर रजत कुंभ विसाळ वां पीठि चह असवार वाजंत्र वजत विसाळ वाजत्र बजत बमेक विढ पड़े जुध उस वेर विध इती मांनी वात विध सांमुहौ वरियांम वीट सी सोवन वेल सजि दसकतां सुरताण सज्जंत सोळ सिंगार सझि पाभ्रणेस छतीससझि तीन हाथ सलंब सझि तोप कोट सनाह सझि थाट कुरब सथाल सभि थाट चढ़िया सूर सझि रजत सोवन साज सझि रीझ बह सुरतारण सझि वाम सोळ सिंगार सझि सज्झि तीन सलाम सयदाण कमध सकाज सर सुखत जळ सरितास सहचरी चतुर सबोह १४१ ७ ५८ १०८ ६ २९७ ८६६ २१० १०० ६ २५२ १४५ ७ १३६ ७ १३५ ७ २३ ૨૪ ૭ ૩૭ १४१ ७ १३८ ७ ६० ६ २२० १४८ ७ ६२ ७६ ६ १४८ ८२ ६ १७१ २३५ ७ २५६ १४४ ७ ८८ ६ २०४ १४० ६९४ or ur १ १ww 9 ur or ur 9 ४१ ८५ ६ १८४ ८६ ६ १६४ १८५ १३७ ७ ३० ८८ ६ २०६ १४३ ७ ६६ ६२६ २३० ८३ ६ १७६ २३४ ७ २५४ १४८ ७ १५ , Page #447 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छंदनाम हेणूंफाळ पृ० प्रकरण पद्यांक १०५ ६ २८४ -८६ ६ २१४ १०३ ६ २६६ ६० ६ २१६ १४४ ७ ७१ १४६ ७ . ८४ ६१ ६ २२८ १७८ [ ५६ ] प्रथम पंक्ति सिकळात मुखमल खास सिणगार गज असि सोभ सिप्पाह बस कमंध सिर चमर होत सकाज सिरपाव जरकस साज सिर मौहरि चौकसिंगार सीसोद करत सलाम सुज तेज देखि सधीर मुजि काहि वैर सकाज सुजि तार रेसम सूत सुजि नमै साह समान सुनि बाळ वय समराथ सुजि वांम भुज समराथि सुण वयण इम सयदाण सुणि कहे इम सयदारण सुणिया न दीठा सोय सुरिण लूट पहल सिपाह सुत तास मिळे सनेह सुनहरिय तार सकाज सुभ चिहन सीळ सुचंग सुभ्र द्रस्ट करि प्रभसाह सो किया यह 'जैसाह' सोभंत रूप सरीर सो लीध पह 'जैसाह' सो लोप न सके सैद' लंगार विध विध साज सब लोक नजर सुपेस स्त्री हत्य लेखि सकज्ज हम रहे नौकर होय हरखंत मुख जुत हास हरखंत सहर उछाह हसि मिळे 'प्रजण' हुलास हिंदवाण तीरथ होय हुय धाम जळविरहक्क हूंकळां कळहळ हूंत है करत कूक हजार १०६ ६ २८९ २३५ ७ २६० ८२ ६ १६७ १४१ ७ ५४ ८७ ६ २०२ ८३ ६ १७३ १०८ ६ २६८ १०४ ६ २७६ १११ ६ ३१५ १४२ ७ ५६ १४० ७ ५२ १४३ ७ ६६ ८० ६ १५५ १४५ ८८ ६ २०५ ८८ ६ २०३ १४० ७ १४६ ७ ८ , urur 9 ur ४८ ८१ ६ १५६ १४३ ७ ६८ ८६ ६. २११ १११ ६ ३१६ ८१ ६ १६१ १०१ ६ २५६ २३४ ७ २५३ १०६६ ३०३ Page #448 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट ७ ७२ कलाओं की नामावलि १ लिखितम् २ गणितम् ३ गीतम् ४ नृत्यम् .. ५ पठितम् ६ वाद्यम् ७ व्याकरणम् ८ छन्दः ६ ज्योतिषम् १० शिक्षा ११ निरुक्तम् १२ कात्यायनम् १३ निघंटुः १४ पत्रच्छेद्यम् १५ नखच्छेद्यम् १६ रत्नपरीक्षा १७ प्रायुधाभ्यासः १८ गजारोहणम् १६ तुरगारोहणम् २० तपः शिक्षा २१ मन्त्रवाद: २२ यन्त्रवादः २३ रसवाद: २४ खन्यवादः २५ रसायनम् २६ विज्ञानम् २७ तर्कवादः २८ सिद्धांत २६ विषवादः ३० गारुडम् ३१ शाकुनम् ३२ वैद्यकम् ३३ प्राचार्यविद्या ३४ प्रागमः ३५ प्रासादलक्षरणम् ३६ सामुद्रिकम् ३७ स्मृति ३८ पुराणमृ ३६ इतिहास ४० वेद ४१ विधिः ४२ विद्यानुवादः ४३ दर्शन संस्कारः ४४ खेचरीकला ४५ अमरीकला ४६ इन्द्रजालम् ४७ पातालसिद्धिः ४८ धूर्त्तशम्बलम् ४६ गन्धवावः ५० वृक्षचिकित्सा ५१ कृत्रिममणिकर्म ५२ सर्वकरणी ५३ वश्यकर्म ५४ पणकर्म ५५ चित्रकर्म ५६ काष्ठघटनम् ५७ पाषाणकर्म ५८ लेपकर्म ५६ चर्मकर्म ६० यन्त्रकरसवती ६१ काव्यम् ६२ अलंकारः ६३ हसितम् । ६४ संस्कृतम् ६५ प्राकृतम् ६६ पैशाचिकम् ६७ अप्रभ्रंशम् ६८ कपटम् ६६ देशभाषा ७० धातुकर्म ७१ प्रयोगोपायः ७२ केवलिविधिः। (प्रबंधकोश से) १ गीतकला २ वाद्यकला ३ नृत्यकला ४ गणितकला ५ पठितकला ५ लिखितकला ७ वक्तृत्वकला ८ कवित्वकला ६ कथाकला १० वचनकला ११ नाटककला १२ व्याकरणकला १३ छंदकला १४ अलंकारकला १५ वर्शनकला १६ अभिधानकला १७ धातुवादकला १८ धर्मकला १६ अर्थकला २० कामकला २२ वाद कला २२ बुद्धिकला २३ शौचकला २४ विचारकला २५ नेपथ्यकला २६ विलास कला २७ नीतिकला २८ शकनुकला २६ क्रीतकला ३० वित्तकला ३१ संयोग कला ३२ हस्तलाघवकला ३३ सूत्रकला ३४ कुसुमकला ३५ इंद्रजालकला ३६ सूचीकर्मकला ३७ स्नेहकला ३८ पानककला ३६ आहारकला ४० सौभाग्य कला ४१ प्रयोगकला ४२ मंत्रकला ४३ वास्तुकला ४४ वाणिज्यकला ४५ रत्न कला ४६ पात्रकला ४७ वैद्यककला ४८ देशकला ४६ देशभाषितकला ५० विजयकला ५१ प्रायुधकला ५२ युद्धकला ५३ समयकला ५४ वर्तनकला ५५ हस्तिकला ५६ तुरगकला ५७ नारीकला ५८ पक्षिकला ५६ भूमिकला ६० लेपकला ६१ काष्ठकला ६२ पुरुषकला ६३ सैन्यकला ६४ वृक्षकला ६५ छप्तकला ६६ हस्तकला ६७ उत्तरकला ६८ प्रत्युत्तरकला ६६ शरीरकला ७० सत्वकला ७१ शास्त्रकला ७२ लक्षणकला। (वस्तुरत्नकोश से) -00%%20100 Page #449 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ ६१ ] ३६ प्रकार के श्रायुधों की नामावलि १ चक्र २ धनु ३ वज्र ४ खङ्गः ५ क्षुरिका ६ तोमर ७ कुंत ८ शूल e त्रिशूल १० शक्ति ११ पाश १२ अंकुश १३ मुद्गर १४ मक्षिका १५ भल्लभाला १६ मिडवाल १७ मुसुठि १८ लुंठि १६ गदा २० शंख २१ परशु २२ पट्टिश २३ रिष्ठि २४ कणय २५ संपन्न २६ हल २७ मुशल २८ पुलिका २६ कर्तारि ३० करपत्र ३१ तरवारि ३२ कोद्दाल ३३ दुस्फोट ३४ गोफण ३५ डाह ३६ डबूस । मतान्तर से - ( राजस्थानी ) १ सर २ सींगणि ३ छुरि ४ कुंत ५ सांग ६ डोडी ७ हल ६ गोफण १० संख ११ गुरज १२ मूसल १३ घण १४ तोमर १७ खड्ग १८ गदा १६ चालक २० फरसौ २१ कुहक बाण २४ कटार २५ खपटसो २६ सेल २८ सोटौ १६ चक्र २३. ढाल ३० वसहड़ि ३६ दंडायुध । ३१ कडि लगण ३२ भूकत ३४ सुलो २७ त्रिसूल ३३ चहुलि ८ मोगर १५ प्रसी २२ बंदूक २६ धर्को ३५ चटक Page #450 -------------------------------------------------------------------------- ________________ GOVERNMENT OF RAJASTHAN RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE JODHPUR (INDIA) Hon. Director. Padmashree Muni Jinvijaya, Puratattvacharya PUBLICATIONS RAJASTHAN PURATANA GRANTHAMALA General Editor: PADMASHREE MUNI JINVIJAYA, PURATATTVACHARYA DECEMBER, 1961 Page #451 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #452 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PUBLICATIONS Up to July, 1961 RAJASTHAN PURATAN GRANTHAMALA (General Editor-Padmashree MUNI JINVIJAYA, Puratattwacharya ) Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. November 1961. A. SANSKRIT 1. Praman-manjari -- by Saryadeva, with commentaries by Advayaranya, Balbhadra and Vaman Bhatt, ed. by Pattabhiram Shastri, Ex-Principal, Maharaja's Sanskrit College, Jaipur, now Prof. of Darshan, University of Calcutta. -Rs. 6.00 2. Yantraraja-rachana-An astrological work written under orders of Maharaja Sawai Jai Singh of Jaipur, ed. by Late Pe. Kedar Nath Jyotirvid, Editor, Kavyamala Series. -Rs. 1.75nP. 3. Maharshikul-vaibhavam Pt. I-by Late Vidyavachaspati Madhusudan Ojha, ed. by Mahamahopadhyaya Pt. Giridhar Sharma Chaturvedi. --Rs. 10.75 nP. 4. Maharshikul-vaibhavam Pt. II, Text.--by Late Vidyavachaspati Madhusudan Ojha, ed. by Pt. Pradumna Ojha. - Rs. 3.50 np. 5. Tarksamgrah—by Annam Bhatt with commentary of Kshmakalyan Gani, ed. by Dr. Jitendra Jetli, MA., Ph.D., Prof., Ramananda Arts College, Ahemdabad. -Rs. 3.00 6. Karakasambandhodyota-by Rabhas Nandi, ed. by H.P. Shastri, M.A., Ph. D., Vice Principal, B. J. Institute Vidya Bhawan, Ahemdabad. —Rs. 1.75 nP. 7. Vrittidipika--by Mouni Krishna Bhatt, ed. by Purushottam Sharma Chaturvedi, formerly Prof, Mayo College, Ajmer. -Rs. 2.00 8. Shabdaratnapradipa—by an unknown author ed. by H.P. Shastri, M.A., Ph. D., Vice Principal, B. J. Institute Vidya Bhawan, Ahemdabad. -Rs. 2.00 Page #453 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 2 ] 9. Krishnagiti-by Somanatha, ed. by Dr. Priyabala Shah, M.A., Ph. D., D. Litt., Prof., Ramanands Arts College, Ahemdabad. -Rs. 1.75 nP. 10. Nritt-samgrah-a treatise on Indian Dance-by an unknown author, ed. by Dr. Priyabala Shah, MA., Ph.D., D. Litt., Prof, Ramananda Arts College, Ahemdabad. -Rs. 1.75 nP. 11. Shringarharavali-by Shri Harsha Kavi, ed. by Dr. Priyabala Shah, M.A., Ph. D., D. Litt., Prof., Ramananda Arts College, Ahemdabad. -Rs. 2.75 nP. 12. Rajvinod Mahakavyam-by Udairaj, a medieval Sanskrit poem on the life and achievements of Mahmud Begra, Sultan of Ahemdabad, ed. by G. N. Bahura, M. A., Dy. Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. --Rs. 2.25 nP. 13. Chakrapanivijaya Mahakavyam-by Lakshmi Dhar Bhatt, a romantic Sanskrit poem based on the love story of Usha and Aniruddha, ed. by K.K. Shastri, Curator and Prof, B., J. Institute, Gujrat Vidya Sabha, Ahemdabad. -Rs. 3.50 nP. Kumbhakarna treatise on Indian 14. Nrityaratna-Kosha Pt. 1-by Maharana Deva of Chittore; a long awaited authentic Dance, ed. by R. C. Parikh, Director, B. J. Institute, Gujrat Vidya Sabha, Ahemdabad. -Rs. 3.75 15. Uktiratnakar-by Sadhu Sunder Gani, ed. by Puratattwacharya Muni Jinvijayaji, Hon. Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. -Rs. 4.75 nP. 16. Durgapushpanjali-by Late Mahamahopadhyaya Pt. Durga Prasad Dwivedi, ed. by G. D. Dwivedi, Lecturar, Maharaja's Sanskrit College, Jaipur. -Rs. 4.25 nP. 17. Karnakutuhal and Shri Krishnalilamritam -by Mahakavi Bholanath, a protege of Sawai Pratap Singh of Jaipur, ed. by G. N. Bahura, M.A., Dy. Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. -Rs. 1.50 np. Page #454 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 3 ] 18. Ishwarvilasa Mahakavyam-by Kavikalanidhi Shri Krishna Bhatt, a work based on the History of Jaipur, written under orders and in the time of Maharaja Sawai Ishwari Singh, son of Maharaja Sawai Jai Singh of Jaipur. The work bears an eyewitness description of the Ashwamedha yajna performed by Sawai Jai Singhi, ed. by Mathuranath Bhatt, Sahityacharya, with a foreword by late Dr. P.K. Gode, M.A.,D. Litt., Curator, B. O. R. Institute, Poona. . -Rs. II.50 np. 19. Rasadeerghika- by Vidyaram Kavi, a rare and abridged work on Sanskrit rhetorics, ed. by G.N. Bahura, M. A., Dy. Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. --Rs. 2.00 20. Padya-muktawali--A compilation of Literary and Historical poems of Krishna Bhatt, a contemporary of Sawai Jai Singh of Jaipur, ed. by Mathuranath Bhatt, Sahityacharya. ---Rs. 4.00 21. Kavyaprakash—of Manimata, with Samketa by Someshwar Bhatt, found in Jaisalmer Grantha Bhandar. Edited by R. C. Parikh, Director B.J. Institute, Gujrat Vidya Sabha, Ahemdabad. Pt. I, Rs. 12.00 » Pt. II, Rs. 8.25 nP. 23. Vasturatnakosha--by an unknown author, Edited by Dr. Priyabala Shah M. A., Ph. D., D. Litt. Prof. Ramanand Arts College, Ahemdabad. - Rs. 4 so np. 24. Dashkantha Vadham-by late Mahamahopadhyaya Durga Prasadji Dwivedi, a poetical work on Ram-Charitra. Edited by Shri Gangadhar Dwivedi, Prof. Maharaja Sanskrit College, Jaipur. -Rs. 4.00 25. Bhuwaneshwari Mahastotram-by Prithwidharacharya, with commentry of Padmanabha, edited by Shri G.N. Bahura, M.A. Dy. Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. -Rs. 3.75 nP. B. RAJASTHANI AND HINDI 1. Kanadhade Prabandha-by Mahakavi Padmanabha, a famous 22. Page #455 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 4 ] Rajasthani Historic Poem dealing with the chivalry of Kanadhade Chouhan at the time of the attack of Alauddin Khilji on the fort of Jalore, ed. by Prof. K.B. Vyas, M.A., Elphinstone College, Bombay. -Rs. 12.25 nP. 2. Kyamkhan Rasa-by Alaf Khan, Nawab of Fatehpur (Shekhawati), a Poetical History of Kayamkhanis, the Muslim Rajpoots of Rajasthan, ed. by Dr. Dashrath Sharma, M. A. D., Litt., Professor, Hindu College, Delhi and Shri Agar Chand Nahata, Bikaner. -Rs. 4.75 nP. 3. Lava Rasa-by Gopaldan Kaviya, a contemporary description of the battle of Madhorajpura between the Chief of Lava and Ameerkhan of Tonk, ed. by Mehtab Chand Khared, Jaipur. -Rs. 3.75 nP. 4. Vankidas-ri-Khyat-a History of Rajasthan, writen in Rajasthani prose by Vankidas, the famous Historian of Jodhpur, ed. by Prof. Narottamdas Swami, M.A. Vice Principal, Maharana Bhupal College, Udaipur. -Rs. 5.50 nP. 5. Rajasthani Sahitya Sangrah Pt. I-A collection of old Rajasthani literary prose, ed. by Prof. Narottamdas Swami, M.A. Vice Principal, Maharana Bhupal College, Udaipur. -Rs. 2.25. 6. Rajasthani Sahitya Sangrah Pt II-Three old Rajasthani stories i.c. Bagdawatan Ri Vat, Pratap Singh Mahokam Singh Ri Vat and Veeramde Soneegara Ri Vat, edited by P.L. Menaria M.A., Sahitya Ratna, Offtg. Senior Research Asst. Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. -Rs. 2.75 nP. 7. Kavindra Kalpalata-by Kavindracharya Saraswati, a contemporary of Emperor Shahajahan, ed. by Rani Shrimati Lakshmi Kumari Chundawat, Jaipur. -Rs. 2.00. 8. Jugal Vilasa-a poem by Maharaja Prithvi Singh of Kushalgarh, ed. by Rani Shrimati Lakshmi Kumari Chundawat, Jaipur. -Rs. 1.75 nP. 9 Bhagat Mala-a poetical work in Rajasthani by Charan Page #456 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 5 ] Brahma Dasji Dadupanthi, ed. by Udairaj Ujjwal, Jodhpur. -Rs. 1.75 nP. 10. A Classified List of Manuscripts Pt. I-a list of 4000, manuscripts collected in The Rajasthan Oriental Research Institute upto the year 1955. -Rs. 7.50 nP. 11. A Classified List of Manuscripts Pt. II-a list of 3855 Mss. collected in the Rajasthan Oriental Research Institute from Apr. 1956 to March 1958. Edited by Shri G. N. Bahura, Dy. Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. -Rs. 12.00. 12. A List of Rajasthani Manuscripts Pt. I-Collected in the Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur upto March 1958. Edited by Padmashri Muni Shri Jinvijaiji. -Rs. 4.50 nP. A List of Rajasthani Manuscripts-Pt. II-Mss collected during the year 1958-59. Edited by Purushottamlal Menaria M.A. Sahitya-Ratna. 13. -Rs. 2.75 14. Munhata Nensiri Khyat Pt. 1-by Munhata Nensi of Jodhpur. History of Rajasthan in Rajasthani prose, edited by Shri Badri Prasad Sakaria. -Rs. 8.50 nP. A work on -Rs. 8.25 relating a few Edited by Smt. -Rs. 4.50 nP. 15. Raghuwar Jas Prakash-by Charan Kishnaji Adha. Rajasthani rhetories, edited by Shri Sitaram Lalas. 16. Veer Van-by Dhadhi Badar, a Rajasthani poem heroic events of Veeramji Rathod of Jodhpur. Rani Laxmi Kumari Chundawat of Rawatsar. 17. A Catalogue of Late Purohit Harinarayanji B. A. Manuscripts Collection-edited by Shri G. N. Director Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur and Shri L. N. Goswami, Senior Research Asst. Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. -Rs. 6.25 P. Vidyabhooshan Bahura. Dy. 18, Sooraj Prakash Pt, I-by Charan Karnidan Kaviya. History of the Rathods of Jodhpur in Rajasthani Poem, edited by Shri Sita Ram Lalas. -Rs. 8.00 19. Nehatarang-by Raoraja Budha Singhji Hada of Bundi. A work on rhetorics, edited by Shri Ramprasad Dadheech M. A. Lecturer, Hindi Dept. Jaswant College, Jodhpur. -Rs 4.00 Page #457 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RAJASTHAN ORIENTAL RESEARCH INSTITUTE, JODHPUR B. WORKS IN THE PRESS Editor : 1. Tripura Bharati Laghustawa Muni Shri Jin vijayaji by Laghu Pandit 2. Balshiksha Vyakaran by Sangram Singh 3. Padarth Ratna Manjusha by Krishna Mishra 4. Karnamritaprapa by Someshwar 5. Prakritanand by Raghunath Kavi 6. Shakun-pradeep 7. Hameer Mahakavya of Naya Chandra Soori 8. Ratna paretekshadi of Thakka Pheru 9. Vasant Vilasa Phagu Shri MC. Modi 10. Chandra Vyakaran by Chandra Shri B.D. Doshi Gomi 11. Swayambhoochhanda Shri H.D. Velankar 12. Nritya Ratna Kosh Pt. II Prof. R.C. Parikh & by Maharana Kumbhakarna Dr. Priyabala Shah 13. Nandopakhyan Shri B. J. Sandesara 1.4. Vrittajatisamuchchaya Shi HD. Velankar by Kavi Virahanka 15. Kavi Darpan 16. Kavi Kaustubha Shri M.N. ori by Kavi Raghunath Manohar 17. Gora Badal Padmini Chaupai Shri Udai Singh Bhatnagar by Kavi Hemratan 18. Indra Prastha Prarbandh Dr. Dashratha Sharma 19. Vasavdatta of Subandhu Dr. Jaideva Mohan al Shukla 20. Ghatkharparadi Panchalaghu Pt. Amrit Lal Mohan Lal Kavyani 21. Bhuvan deepak of Yavnacharya Pt. Purshottam Bhatt 22. Rajasthan Men Sanskirt Sahitya Translation in Hindi Ki Khoj by Dr. Bhandarkar by Shri Brahma Dutt Trivedi 23. Munhata Nensi ri Khyat Pt. II Shri Badri Prasad Sakaria 24. Rathore Vanshri Vigat Muni Shri Jinvijayaji 25. Puratattva Samshodhan Ka Itihasa Page #458 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [7] Shri Sitaram Lalas Muni Shri Jin vijayaji Muni Shri Jinvijayaji Padmashri Muni Jinvijayaji 26. Sooraj Prakash Pt. II 27. Rathodan Ri Vanshawali 28. Rajasthani Bhasha Sahitya Grantha Suchi 29. Mira Brihat Padawali, complited by Late Pt. Hari Narayanji Purohit Vidya Bhooshan 30. Rajasthani Sahitya Samgrah Pt. III 31. Sthulibhadra Kakadı 32. Matsya Pradesh Ki Hindi Ko Den, Shri L.N. Goswami Dr. A.R. Jajodia Dr. Moti Lal Gupta, M.A. Ph. D. P. L. Manariya M.A., Bhatt Shri Mathuranathji 33. Rukmini Harana by Sayanji Jhoola 34. Vrittamuktawali by Shri Krishna Bhatt 35. Agamraha sya Shri G. D. Dwivedi Page #459 -------------------------------------------------------------------------- ________________ SOME COMMENTS 1--Kanadhade Prabandha--by Mahakavi Padmanabha, ed. by Prof. K. B. Vyas M. A., Elphinstone College, Bombay. We are indeed grateful to the Rajasthan Puratativa Mandir for giving to the interested world this beautiful edition of a very fine work which should be known all over India. SUNITI KUMAR CHATTERJI M, A, D.Litt. Chairman, Govt. of India Sanskrit Commission. 2–Rajavinoda Mahakavyam-by Udairaj, ed. by Shri Gopal narayan Bahura, M. A., Dy. Director, Rajasthan Oriental Research Institute, Jodhpur. The series of important rare Sanskrit and Prakrit texts called the Rajasthan Puratan Granthamala started by Muniji under his General-Editorship is doing valuable service to Indology... With his characteristic vision and historical insight Muniji has selected for this series some rare texts of great historical, literary and cultural value... These texts in Sanskrit will facilitate the search for similar texts...The manuscript of the Rajavinoda Kavya in praise of Mahamud Begda was acquired by Dr. Buhler in 1857 for the Govt. of Bonbay. Muni Jinvijayaji was the first to realise the importance of the poem and make arrangements for its editing and publication in the series of the Rajasthan O. R. Institute Accordingly he entrusted the work of editing this poem to Shri Gopalnarayan and I am happy to find that this learned editor has spared no pains in giving us an edition worthy of the series in which it appears... I have to convey my hearty congratulations to Muni Jinvijayaji upon the wise planning of his scheme of Rajasthan Puratana Granthamala and its successful execution by entrusting different works in it to competent scholars like Shri Gopalnarayan, who also deserves the best thanks of all lovers of Indian Page #460 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 9 ] History and Sanskrit by making available to them a new text, hitherto unknown and unpublished. Annuals of the Bhandarkar Oriental Research Institute, Poona Vol. XXXVII, 1957 3-Ishwarvilasa Mahakavyam-by Kavikalanidhi Krishna Bhatt, ed. by Shri Mathuranatha Bhatt, Sahityacharya, Jaipur. The publication of an 18th century poem of Krishna Bhatt, a Jaipur-court bard, brings out interesting fact that the 'Ashvamedha Yajna' was organised by rulers to assert their supremacy over neighbouring princes as late as 200 years ago. Bhatt in his book 'Ishwarviläsa Kavya' describes the 'Ashvamedha Yajna' performed by his friend and master Raja Ishwari Singh some time after he ascended the Amber gaddi in 1743 on the death of his father Sawai Jai Singh II, who founded Jaipur. 1 P. K. GODE, M. A., D. Litt. Bhatt himself attended the Yajna. Besides describing the "Yajna' in detail, he names the persons who witnessed the cermony. 7th November, 1959. 4-Classified List of Manuscripts Pt. II-ed by Shri G.N. Bahura M.A. Dy. Director Rajasthan Oriental Research Inst. Jodhpur. Director Indian Institute, Paris 16th. Feb. 1960 A. All students in Indology will be glad to consult this excellent catalogue, containing many rare and precious Sanskrit works. Journal of The Oriental Institute, Baroda. December. 1960 TIMES OF INDIA B. It is evident from the list that the Institute possesses a rich collection of Sanskrit Manuscripts on almost all subjects and branches of learning cultivated in ancient India, and also a large number of Prakrit, Rajasthani, Old Gujarati and Hindi manuscripts, and these lists will undoubtedly prove to be important tools of research to scholars doing textual work in Sanskrit and derived languages. LOUIS RENOU B. J. SANDESARA Page #461 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 10 ] C. The catalogue adds to our knowledge of the manuscript material still existing in the Indian libraries. IsMEO Via Merulana 248 Rome. Giuseppe Tucci East and West. June-September, 1961 D. Die Rajasthan Puratna Graathamala, welche im Auftrag der Regierung von Rajasthan Werke in Sanskrit, Prakrit, Alt-Rajasthani, Gujarati und Hindi herausgibt, ist in Europe bisher wenig bekannat. Sie hat jedoch bereits eine grobe Reihe schoner Veroffentlichungen herousgebracht, darunter manche bisher unbakannte Werke. Der vorliegende Band enthalt ein Handschriftenverzeichnis. Der erate Teil dieses Verzeichnisses behandelte die bis 1956 erworbenen Handschriften. Der vorliegende zweite Teil verzeichnet die Neuerwerbungen von April 1956 bis Marz 1958, zusammen mehr als 4000 Nummern. Angegeben sind in hergebrachter Weise Tital, Verfasser, Datum und Beatterzahl der Handschrift und, wenn notig, sind kurze Bemerkungen beigefugt. Im ersten Anhang sind Anfang und Schlub einer Anzahl wichtigerer Handschriften wiedergeben. Der zweite Anhang enthalt ein alphabetisches Verzeichnis der Verfassernamen. Ein dritter Anhang bringt ein Verzeichnis der ehemaligen Palastbiblithek von Indra-gardh, die nunmehr unter die Obhut des Oriental Research Institute in Jodhpur gestellt ist. Druck und Ausstattung des Bandes sind sehr gut. Von cinigen besonders wertvollen Handschriften sind einzelne Blatter abgebildet. E, FRAUWALLNER Journal of the Institute of Indology, University of Vienna. "...I appreciate them very much, for their being at rue enrichment to any library specialised in the Orientalistic field.” Prisident IsMEO (Oriental Institute) Prof. TUCCI Rome (Italy) "...I am very glad to know that the Institute is so actively engaged in editing the unpublished manuscripts of Rajasthan in Sanskrit and other languages. This is a valuable contribution to Sanskrit studies." Indian Institute University of Oxford Prof. T. BURROW 26 July 1961 Page #462 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 11 ] 5-Dasakanthvadham, by M. M. Pandit Durgaprasad Dwivedi, edited by Shri Gangadhar Dwivedi. "The author of the work under review has depicted the life of Rama from the spiritual point of view in his work called Dasakanthvadham on the lines of Yogavasistha, a well-known extensive philosophical treatise on Advaita Vedanta ... The author is a gifted poet of a very high order the treatment of the theme especially in the first chapter is highly elaborate and the descriptions abound in rich poctical imagery of high acsthetic value.' H.C. METHA Journal of the Oriental Institute Baroda Vol x. No. 3, March 1961 ६-श्रीभुवनेश्वरीमहास्तोत्रम्-पृथ्वीधराचार्यविरचित, कविपद्मनाभकृत भाष्यसहित, सम्पादक श्रीगोपालनारायण बहुरा एम.ए., उपसञ्चालक राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर । क. "मूल स्तोत्र की प्रबोधिनी टीका और पाद-टिप्पणियों में जो अनेकानेक पाठान्तर दिये गये हैं, उनसे इस प्रकाशन की उपयोगिता तथा महत्त्व बढ़ गया है। २६ जून, १९६१ महाराजकुमार डा० रघुवीरसिंह एम.ए., एल.एल. बी., डी. लिट्. एम पी. सीतामऊ ख. "इस स्तोत्र में भुवनेश्वरी के स्वरूप, ध्यान और मंत्रों का सम्यक रूप से विवेचन है। साथ ही अन्य १२ स्तोत्रों के द्वारा भुवनेश्वरी के माहात्म्य की पर्याप्त सामग्री एकत्र की गई है। यथासंभव उपासनासम्बन्धी कई ज्ञातव्य विषय दिए गए हैं। प्रारंभ में 'प्रास्ताविक परिचय' नाम से श्रीगोपालनारायण बहुरा ने विद्वत्तापूर्ण भूमिका लिखी है। उससे इस स्तोत्र तथा इसके विषय को समझने में बड़ी सहायता मिलती है। ता० २० अक्टूबर, १९६१ -दैनिक हिन्दुस्तान, नई दिल्ली ७-राजस्थानी साहित्य संग्रह-- भाग १. सम्पादक श्रीनरोत्तमदास स्वामी, एम.ए. भाग २. सम्पादक श्रीपुरुषोत्तमलाल मेनारिया, एम.ए., साहित्य-रत्न। ...."साहित्य और भाषा की दृष्टि से ही नहीं, इतिहास-सम्बन्धी भी बहुत Page #463 -------------------------------------------------------------------------- ________________ [ 12 ] अधिक सामग्री उक्त वार्ता-साहित्य में प्राप्य है। तत्कालीन आचार-विचार, रहन-सहन, धार्मिक भावनाओं और अंध विश्वासों आदि की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करने के लिये इस प्रकार के गद्य साहित्य का गहरा अध्ययन सर्वथा अनिवार्य हो जाता है ।......पाद-टिप्पणियों में दिये गये पाठान्तरों और साथ ही आवश्यक शब्दार्थों से इस संस्करण का विशेष महत्त्व हो गया है। इन दोनों भागों में दी गई भूमिकायें भी उपयोगी और विचार-प्रेरक हैं। ता० २६ जून, १९६१ ८-स्व० पुरोहित हरिनारायणजी विद्याभूषण-ग्रंथसंग्रह-सूची–सम्पादक श्रीगोपालनारायण बहुरा, एम.ए. और श्रीलक्ष्मीनारायण गोस्वामी दीक्षित । स्वर्गीय पुरोहित हरिनारायणजी स्वयं ही एक सजीव संस्था थे। उन्होंने एकाकी जो काम किया, वह अनेकानेक सस्थाओं के मिल कर काम करने पर भी उतनी पूर्णता और तत्परता से किया जाना कठिन ही होता। अत: उनके निजी पुस्तकालय के राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान को सौंपे जाने से वस्तुतः एक बड़ी सांस्कृतिक निधि की सुरक्षा हो गई है, जिसके लिये राजस्थान ही नहीं भारत का समूचा शिक्षित समाज पुरोहितजी के सुपुत्र श्रीरामगोपालजी का सदैव अनुगृहीत रहेगा । अतः ऐसे महत्त्व के पुस्तक-संग्रह की यह पुस्तक-सूची अवश्य ही विद्वानों, संशोधकों आदि सब ही के लिये बहुत ही उपयोगी होने वाली है। प्रतिष्ठान का यह प्रकाशन संग्रहणीय है। ता० २६ जून, १९६१ 8-सूरजप्रकाश भाग १-- कविया करणीदानजीकृत, सम्पादक श्रीसीताराम लालस। - साहित्य-प्रेमियों के साथ ही इतिहासकारों के लिये कविया करणीदानकृत "सूरजप्रकास" का विशेष महत्त्व है । मारवाड़ के इतिहास के प्रमुख आधारग्रंथ के रूप में इस ग्रंथ का अध्ययन किया जाता है। अत: उसको प्रकाशित करने का आयोजन कर प्रतिष्ठान ने एक बड़ो कमी को पूरा किया है। ता० २६ जून, १९६१ महाराजकुमार डॉ० रघुबीरसिंह . एम.ए., एल.एल. बी., डी. लिट्., एम.पी. Page #464 -------------------------------------------------------------------------- ________________ राजस्थान पुरातन ग्रन्थमाला प्रकाशित ग्रन्थ संस्कृत-भाषा-ग्रन्थ-१. प्रमाणमंजरी-तार्किकचूड़ामणि सर्वदेवाचार्य, मूल्य 600 / 2. यन्त्रराज रचना-महाराजा सवाई जयसिह, मूल्य 1.753. महाषकुलवभवम्-स्व० श्री मधुसूदन ओझा, भाग 1, मूल्य 10.75 / 4. महर्षिकुल वैभवम्, स्व० श्री मधुसूदन अोझा, भाग 2, मूलमात्रम्, मूल्य 4.00 / 5. तर्क संग्रह-पं० माकल्याण, मूल्य 3.00 / 6. कारकसम्बन्धोद्योत-पं० रभसनन्दि, मूल्य 1.75 / 7. वृत्तिदीपिका-६० मौनिकृष्ण मूल्य 2.00 / 8. शब्दरत्नप्रदीप, मूल्य 2.00 / 6. कृष्णगीति-कवि सोमनाथ, मूल्य 1.71 10. शृङ्गारहारावली-हर्षकवि, मूल्य 2.75 / 11. चक्रपाणिविजयमहाकाव्य-पं० लक्ष्मीपरभट्ट, मूल्य 3.50 / 12. राजविनोद-कवि उदयराज, मूल्य 2.25 / 13. नृत्त संग्रह, मूल्य 1.75 / 14. नृत्यरत्नकोश, प्रथम भाग-महाराणा कुम्भकर्ण, मूल्य 3.75 / 15. उक्तिरत्नाकर-पं० साधुसुन्दरगणि, मूल्य 4.75 / 16. दुर्गापुष्पाञ्जलि-पं० दुर्गाप्रसाद द्विवेदी, मूल्य 4.25 / 17. कर्णकुतूहल तथा कृष्णलीलामृत-भोलानाथ, मूल्य 1.50 / 18. ईश्वरविलास महाकाव्य-श्रीकृष्ण भट्ट, मूल्य 11.50 / 16. पद्यमुक्तावली-कविकलानिधि श्रीकृष्णभट्ट, मूल्य 4.00 / 20. रसदीधिका-विद्याराम भट्ट, मूल्य 2.00 / 21. काव्यप्रकाशसङ्कत-भट्ट सोमेश्वर, भाग 1, मूल्य 12.00 / 22. भाग 2, मूल्य 8.25 / 23. वस्तुरत्न कोश, अज्ञात कर्तृक, मूल्य 4.30 / 24. दशकण्ठवधम्-पं. दुर्गाप्रसाद द्विवेदी, मूल्य 4.00 / 25. श्री भूवनेश्वरीमहारतोत्रम् सभाष्य, पृथ्वीधराचार्य विरचित, कवि पद्मनाभकृत भाष्य सहित, मूल्य 3.75 / 26. रत्नपरीक्षादि सात ग्रन्थ-संग्रह, ठक्कुर फेरू, मूल्य 6.25 राजस्थानी और हिन्दी भाषा ग्रन्थ- 1. कान्हडदे प्रबन्ध-कवि पद्मनाभ, मूल्य 12.25 / 2. क्यामखांरासा-कवि जान, मूल्य 4.75 / 3. लावारासा-गोपालदान, मूल्य 3.75 / 4. वांकीदासरी ख्यात-महाकवि वांकीदास, मूल्य 5.50 / 5. राजस्थानी साहित्य संग्रह, भाग 1, मूल्य 2.25 / 6. राजस्थानी साहित्य संग्रह भाग 2, मूल्य 2.75 / 7. जुगलविलास-कवि पीथल, मूल्य 1.75 / 8. कवीन्द्र कल्पलता-कवीन्द्राचार्य, मूल्य 2.00 / 6. भगतमाळ-चारण ब्रह्मदासजी, मूल्य 1.75 / 10. राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण मन्दिरके हस्तलिखित ग्रन्थोंकी सूची, भाग 1, मूल्य 7.50 / 11. राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान के हस्तलिखित ग्रन्थों की सूची, भाग 2, मूल्य 12.00 / 12. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग 1, मूल्य 8.50 / 13. मुंहता नैणसीरी ख्यात भाग 2, मूल्य 6.50 / 14. रघुवरजसप्रकास, किसनाजी पाढ़ा, मूल्य 8.25 न.पै.। 15. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूची, भाग 1, मूल्य 4.50 / 16. राजस्थानी हस्तलिखित ग्रन्थ सूची भाग 2, मूल्य 2.75 / 17. वीरवाण, ढाढी बादर कृत, मूल्य 4.50 / 15. विद्याभूषण-ग्रन्थ-संग्रह-सूची, मूल्य 6.25 / 16. सूरजप्रकास, कविया करणीदानजी, भाग 1, मूल्य 8.00 / 20. सूरजप्रकास कविया करणीदानजी, भाग 2, मूल्य 6.50 1 21. नेहतरंग, रावराजा बुधसिंह, मूल्य 4.00 / प्रेसों में छप रहे ग्रन्थ संस्कृत-भाषा-ग्रन्थ- 1. त्रिपुराभारतीलघुस्तव-लघुपंडित / 2. शकुनप्रदीप-लावण्यशर्मा। 3. करुणामृतप्रपा-ठक्कुर सोमेश्वर / 4. बालशिक्षा व्याकरण-ठक्कुर संग्रामसिंह 5. पदार्थ रत्नमञ्जूषा-पं० कृष्णमिश्र / 6. वसन्त-विलास फागु / 7. नृत्यरत्नकोश भाग 2 / 8. नन्दोपाख्यान। 6. चान्द्रव्याकरण। 10. स्वयंभूछंद-स्वयंभू कवि / 11. प्राकृतानंदकवि रघनाथ 12. कविदर्पण / 13. वृत्तजातिसमुच्चय-कवि विरहाङ्क। 14. इन्द्रप्रस्थप्रबन्ध / 15. हम्मीरमहाकाव्यम्-नयचन्द्रसूरि / 16. एकाक्षर नाम माला / 17. स्थूलिभद्रकाकादि। 18. वासवदत्ता-सुबन्धु / 16. घटसर्प रादि / 20. भुवनदीपक, यावनाचार्य / 21. वृत्तमुक्तावली, श्रीकृष्णभट्ट / राजस्थानी और हिन्दी भाषा ग्रन्थ- 1. मुंहता नैणसीरी ख्यात, मुंहता नैणसी भाग 3 / 2. गोरावादल पदमिणी चऊपई-कवि हेमरतन। 3. राजस्थान में संस्कृत साहित्य की खोज-भण्डारकर / 4. राठोड़ारी वंशावली। 5. सचित्र राजस्थानी भाषा-साहित्य ग्रंथ सूची। 6. मीरां बहद् पदावली। 7. राजस्थानी साहित्य-संग्रह, जाग 3 / 6. सूरजप्रकास कविया करणीदान कृत, भाग 3 . 6. मत्स्य प्रदेश की हिन्दी साहित्य को देन, डॉ० मोतीलाल गुप्त / 10. रुखमणी हरण-सांयांजी झूला /