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________________ [२०७ सूरजप्रकास वच्छर' दतूंसळूके खाटक कैसे दरसावै । इंद्र वज्रकी झाट ऐसी' नजर आवै । चाचरूंकी भचक संडाडंडंका उपाट* । चरखंकी भभक धोम धड़हड़का अंधार । वीरघंट किलावूकी घोर भमरूंका गुंजार । पौतकारूंका पनि फौजदारूंका हलकार जगजेठ ज्यू जूटै जांण आबू गिरनार' झाटकते'' हैं पोगर आसमांकू उपाड़ि इनांमूंकी उरड़ ऐसी गजराजूंकी राड़ि ऐसे' समैं मीर सिकारूनै१४ सलाम करि अरज गुजराई । जिस पर हुकम हुआ। १ ख. वछर। ग. वेत्छर। २ ग दरसावं। ३ ख. ग. झाटक । ४ ख. असे । ग. अस। ५ ख. ग सुंडाडंडूका। ___ *यहांसे प्रागे निम्न पंक्ति ख. तथा ग. प्रतियों में मिली हैं 'कुंभा थलू पर बझ्झौ काळदार भुजंगूंकी-सी झाट । ६ ख. पौतकारूका। ग. पौतकारूका। ७ ख. ज्यौ। ग. ज्यौं। ८ ख. जुट्टे । ग. जुट्ट। ६ ख. ग. जाणि। १० ख. झिरनार। ११ ग. झाटकतै । १२ न. ग. पोगरा । १३ ग. अस। १४ ग. सिकारूनै । १५ ग. तिस। १६ ख. ग. हुवा। २०१. वच्छर - ( ? )। दतूंसळंके - हाथीके मुंहके बाहरके दाँत । खाटक – टक्कर, आघात । दरसाव - प्रभाव दिखाना। झाट -प्रहार, चोट । चाचरूको - माथेकी, लिलाटकी। भचक - टक्कर, प्राघात । सुंडाडंडूका - सुंडका। उपाट - उठाना । चरखूकी - चरखी नामक औजार विशेष में बाँसकी दो नलियाँ जो लगभग सवा फुट लम्बी होती हैं और उनमें बारूद भरा हुआ रहता है। यह नलियों एक दूसरीको काटती हई ऊपर नीचे लगी रहती हैं और एक लम्बे बाँसके सिरे पर मजबूतीसे लगाई हुई रहती हैं। वि०वि० जब हाथी पूर्ण मस्ती में होता है और वह किसी आदमी पर झपट कर उसे मारने ही वाला होता है तो एक आदमी मैदानके किनारे बाँस पर लगी इस चरखीको लिए खड़ा रहता है जो चरखीदार कहलाता है। उस समय वह चरखी लेकर चलता है, उसके पास भी एक सूतका पलीता जला हुआ रहता है, वह उसको फूक लगा कर आग ताजा कर के चरखीके बारूद को जलाने की बत्ती (पलीता) को जला देता है, इससे चरखीके दोनों नलियों का बारूद जल जाता है। बारूद जलते ही बाँसके सिरे पर वह चरखी जोरसे घूमने लगती है और बड़ी जोर की फटाफटकी आवाज करती है, उसमें से ●ा भी निकलता है। · रखीदार उसको हाथी के मुंहके आगे ले जाता है जिससे हाथी घबरा कर आदमीका पीछा छोड़ देता है और भाग जाता है। भभक - धधक, विस्फोट । धोम- अग्नि, आग। धड़हड़ - ध्वनि, आवाज। बीरघंट- हाथी के पाखारके साथ बंधा घंटा। किलावूकी - एक मोटा रस्सा जिससे होथी को गर्दन से बांध रखते हैं। पौतकारूंका - जोश दिलाने वाला। पान -(?) फौजदारूंका - महावतोंका। हलकार - हुंकार । जगजेठ- पहलवान । जूट - भिड़ते हैं। भाटकते- टक्कर लेते। पोगर - हाथीकी सूड। राड़िलड़ाई, टक्कर । मीर- सरदार । सिकाख्ने - शिकारोंके । अरज गुजराई - प्रार्थना या निवेदन किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003387
Book TitleSurajprakas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSitaram Lalas
PublisherRajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur
Publication Year1992
Total Pages464
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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